शुक्रवार, 14 अक्तूबर 2016

सिविल कोड पर छिड़ी बहस-विरोध में उतरे मुस्लिम संगठन

देशहित में नहीं है यूनिफार्म सिविल कोड: पर्सनल लॉ
ट्रिपल तलाक का विरोध करना भी गलत: रहमानी
ओ.पी. पाल. नई दिल्ली।
केंद्र सरकार द्वारा देश में समान नागरिक संहिता यानि यूनिफार्म सिविल कोड लागू करने की मुहिम का विरोध करते हुए मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने कहा है कि यह देशहित में नहीं होगा। सरकार के प्रयास से गृहयुद्ध जैसे हालात पैदा होने का खतरा है। पर्सनल लॉ बोर्ड ने ट्रिपल तलाक के विरोध को भी गलत करार दिया है।
आॅल इंडिया मुस्लिम पसर्नल लॉ बोर्ड के महासचिव मौलाना मोहम्मद वली रहमानी के नेतृत्व में गुरुवार को यहां एक संवाददाता सम्मेलन में नौ मुस्लिम संगठनों के प्रतिनिधियों ने यूनिफार्म सिविल कोड लागू करने के लिए केंद्र सरकार के प्रयासों का विरोध किया। वहीं इन संगठनों ने ट्रिपल तलाक का किया जा रहा विरोध भी संविधान के मौलिक अधिकार के खिलाफ है, जो पूरी तरह से गलत है। पर्सनल लॉ बोर्ड के रहमानी ने समान नागरिक संहिता पर विधि आयोग द्वारा तैयार की गई प्रश्नावली को खारिज करते हुए कहा कि वे एक भी सवाल का जवाब नहीं देंगे। बल्कि अन्य मुस्लिम समुदाय और संगठनों से भी अपील की जा रही है कि वे विधि आयोग की इस प्रश्नावली का बहिष्कार करें। उन्होंने कहा कि विधि आयोग की इस प्रश्नावली का वास्तविक मकसद मुस्लिम पर्सनल लॉ को समाप्त करना है और यह प्रश्नावली लोगों को भ्रमित करने के लिए तैयार की गई है। रहमानी ने आरोप लगाया कि संविधान के अनुच्छेद 44 का उल्लेख कर समान नागरिक संहिता को संवैधानिक दर्जा देने की कोशिश की गई है, जो नीति निर्देशक तत्वों के खिलाफ है और इसे लागू नहीं किया जा सकता है। जबकि भारतीय संविधान के मौलिक अधिकार के अनुच्छेद 25 के तहत हर व्यक्ति को अपने मन पसंद धर्म को चुनने, उसका प्रचार करने और उसे अपनाने का अधिकार है। समय-समय पर अदालतों ने भी अपने फैसलों में कहा है कि व्यक्ति का मौलिक अधिकार सर्वोच्च है। यदि केंद्र सरकार नीति निर्देशक तत्व को लागू करने के लिए वाकई गंभीर है तो उसे सबको शिक्षा देने, सबको स्वास्थ्य सुविधाएं देने और नशाबंदी को लागू करना चाहिए, जो सीधे जनता की बेहतरी के लिए हैं।
क्या है यूनिफॉर्म सिविल कोड
यूनिफॉर्म सिविल कोड या समान नागरिक संहिता का मतलब है, कि भारत के सभी नागरिक वो चाहे किसी भी धर्म और जाति के हों उनके लिए समान कानून रहेगा। समान नागरिक संहिता एक धर्मनिरपेक्ष कानून होता है, जो सभी धर्मों के लोगों के लिये समान रूप से लागू होगा। यह कानून भी किसी भी धर्म या जाति के सभी निजी कानूनों से ऊपर होगा। फिलहाल हर धर्म के लोग इन मामलों का निपटारा अपने पर्सनल लॉ यानी निजी कानूनों के तहत करते हैं यानि दुनिया के सबसे बड़े लोकतांत्रिक देश भारत में हिन्दू और मुस्लिमों के लिए अलग-अलग कानून हैं और अलग तरीके से लागू होते हैं। केंद्र सरकार की यह कवायद यदि अंजाम तक पहुंची तो देश में समान नागरिक संहिता यानि यूनिफॉर्म सिविल कोड लागू हो जायेगा।
क्या है सरकार का मकसद
केंद्र सरकार का इस कानून के तहत देश में रहने वाले हर व्यक्ति के लिए एक ही तरह का कानून अनिवार्य करने का मकसद है, जो सभी धर्म और संप्रादाय पर लागू होगा। मसलन इस कानून के लागू होने के बाद भारत में हर धर्म के लोगों के लिए शादी, तलाक,गोद लेना और जायदाद के बंटवारे जैसे मामलों में एक ही कानून लागू होगा। केंद्र सरकार ने गत जुलाई में देश में समान आचार संहिता लागू करने के मुद्दे पर विधि आयोग से अध्ययन कराने और इसके लागू करने संबन्धी एक रिपोर्ट तैयार करने को भी कहा था, जिसमें केंद्रीय विधि एवं न्याय मंत्रालय ने विधि आयोग को पत्र लिखकर मामले में विस्तृत रिपोर्ट की मांग थी। इसीलिए विधि आयोग ने पर्सलन लॉ बोर्ड समेत सभी समुदायों के संगठनों को एक प्रश्नावली भेजकर उनके जवाब के रूप में राय मांगी है।
मुस्लिम महिलाओं ने कहा
ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड और कुछ दूसरे मुस्लिम संगठनों की ओर से तीन तलाक एवं समान नागरिक संहिता से जुड़ी विधि आयोग की प्रश्नावली के बहिष्कार का ऐलान किए जाने के बाद मुस्लिम महिला कार्यकर्ताओं ने बोर्ड और इन संगठनों पर निशाना साधते हुए कहा कि ये लोग मुसलमानों के प्रतिनिधि नहीं हैं और उनका रुख धार्मिक नहीं बल्कि राजनीतिक है।भारतीय मुस्लिम महिला आंदोलन की सह-संस्थापक जकिया सोमान ने कहा,विधि आयोग ने सिर्फ तीन तलाक की बात नहीं कही है। उसने हिंदू महिलाओं के संपत्ति के अधिकार और ईसाई महिलाओं के तलाक से संबंधित मामलों की भी बात की है। इसलिए आयोग पर सवाल खड़े करना अनुचित है। जकिया ने आरोप लगाया, पर्सनल लॉ बोर्ड में बैठे लोग मुसलमानों के प्रतिनिधि नहीं हो सकते। यह बोर्ड महज एक एनजीओ है और देश में हजारों एनजीओ हैं। इसलिए इनकी बात को मुस्लिम समुदाय की बात नहीं कहा जा सकता। मुझे लगता है कि इनका रूख धार्मिक नहीं बल्कि पूरी तरह से राजनीतिक है। महिलाओं की मांग कुरान के मुताबिक है और उन्हें उनका हक मिलना ही चाहिए।
14Oct-2016

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें