रविवार, 16 अक्तूबर 2016

राग दरबार:महिलाओं के अधिकार पर स्यापा क्यों?

मियां बीवी राजी तो क्या करेगा काजी..
भारत में एक समानता का माहौल बनाने की कवायद में जुटी मोदी सरकार जीएसटी की तरह ही धर्मनिरपेक्षता को आगे बढ़ाने का प्रयास कर रही है, भले ही सरकार को विपक्षी दलों की आलोचना का सामना करना पड़ रहा हो। ऐसी ही कवायद मे समान नागरिक संहिता यानि सिविल कोड़ लागू करने की तैयारी चल रही है। सिविल कोड़ और खासकर तीन तलाक के मुद्दे पर अचानक तेज हुई सियासी बहस में एक देश-एक कानून लागू करने की सरकार की और से जारी इस कवायद के विरोध में उतरे मुस्लिम संगठनों खासकर आॅल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड द्वारा रायशुमारी कर रहे विधि आयोग के उन 16 सवालों का बहिष्कार करने का ऐलान किया है, जिसमें एक साथ तीन तलाक का मुद्दा भी शामिल है। इन मुस्लिम संगठनों के विपरीत 95 फीसदी से भी ज्यादा मुस्लिम महिलाएं खासतौर पर तीन तलाक के मुद्दे पर सरकार की द्वारा सुप्रीम कोर्ट में सरकार द्वारा दिये गये हलफनामें को उचित ठहराने का इसलिए साहस किया है, क्यों कि वे ऐसे शरियत कानून में हो रहे अन्याय से छुटकारा पाने को बेताब हैं। मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के सरकार के खिलाफ उगले जहर पर इस मुद्दे पर केंद्र का बचाव करते हुए कानून मंत्री रवि शंकर प्रसाद ने तर्क दिया कि जब एक दर्जन से अधिक इस्लामी देश कानून बनाकर इस चलन का विनियमन कर सकते हैं, तो भारत जैसे धर्मनिरपेक्ष देश के लिए इसे किस प्रकार गलत माना जा सकता है। ऐसे मे सामजिक एवं कानून के जानकारों में चर्चा है कि भारत के संवैधानिक इतिहास में पहली बार किसी केंद्र सरकार द्वारा मुस्लिमों में बहुविवाह, निकाह हलाला और एक साथ तीन तलाक के चलन का उच्चतम न्यायालय में विरोध के समर्थन में मुस्लिम महिलाएं सक्रिय होकर आगे आ गई तो सरकार के ऐसे मामलों में देश में एक कानून लागू करने का काम आसान हो जाएगा। ऐसे में वही कहावत चरितार्थ होती नजर आएगी कि जब मियां बीवी राजी तो क्या करेगा काजी...।
भंवरजाल में केजरी सरकार
दिल्ली में ईमानदारी का चोला ओढ़कर सत्ता पर काबिज हुई आम आदमी पार्टी की केजरीवाल सरकार की की पोल ऐसे खुलती जा रही है, शायद दिल्ली में सरकार बनाने वाली आम आदमी पार्टी भारत के इतिहास में ऐसा पहली सत्तारूढ दल है जिसके मंत्री और विधायकों को आपराधिक या अन्य गैरकानूनी मामलों में फंसते आ रहे हैं और करीब एक दर्जन को जेल की हवा भी खानी पड़ी। रही सही कसर खुद केजरीवाल सरकार ने पूरी करते हुए ऐसी संवैधानिक मुसीबत को गले लगा लिया है, जिससे लगता है कि 70 सदस्यीय दिल्ली विधानसभा में 67 का आंकड़ा हासिल करने का इतिहास बनाने के बावजूद आप की सरकार अपने कार्यकाल को शायद ही पूरा कर पाए। सीएम केजरीवाल द्वारा नियुक्त किये गये संसदीय सचिव के लाभ का पद देने पर जल्द ही 21 विधायकों को अयोग्यता ठहराया जा सकता है। इनके अलावा राष्टÑपति 27 ऐसे ही और आप विधायकों की जांच के लिए एक याचिका चुनाव आयोग को भेजी है, जिन्हें लाभ के पद के रूप में रोगी कल्याण समितियों का अध्यक्ष बनाया हुआ है। राजनीतिक चर्चा यही है कि यदि चुनाव आयोग ने आप के इन करीब 45 विधायकों को अयोग्य करार दे दिया तो आम आदमी पार्टी के संयोजक और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की सरकार का पतन तय है।
राजनीति जिंदा रहनी जरूरी ?...
राजनीति और नेता का मानो चोली दामन का साथ है। कुछ भी हो जाए दोनों साथ-साथ ही चलते रहेंगे। इन्हे एक-दूसरे का पूरक भी कहा जाता है। बात चाहे सर्जिकल स्ट्राइक की हो या सरकार द्वारा किए गए किसी नीतिगत फैसले की। हर बात पर राजनीति नहीं होगी, ऐसा संभव नहीं है। सर्जिकल स्ट्राइक के बाद राजनीति हुई जिसमें कोई सबूत मांग रहा था तो कोई कुछ और कह रहा था। फिर इसके बाद सरकार के नीतिगत फैसलों को लेकर ट्वीटर पर तू-तू-मैं-मैं का दौर शुरू हो गया। चारों तरफ बस क्रेडिट लेने की होड़ मच जाती है, कोई कहता है मैंने अच्छा काम किया तो दूसरा कहता कि मैंने किया। क्या करें इसी का नाम तो राजनीति है। नहीं करेंगे तो काम कैसे चलेगा। राजनीति का जिंदा रहना भी जरूरी है।
-ओ.पी. पाल व कविता जोशी
16Oct-2016

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