बुधवार, 5 अक्तूबर 2016

नई तकनीक से होगी देश में पुलों की सुरक्षा!

सरकार ने शुरू की भारतीय पुल प्रबंधन प्रणाली
ओ.पी. पाल. नई दिल्ली।
देश में सुरक्षित सड़क परियोजनाओं के साथ देशभर में राष्ट्रीय राजमार्गो समेत तमाम सड़को पर नदी-नहरों, रेलवे लाइन या सड़कों के ऊपरी पुलों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए अब पुल प्रबंधन प्रणाली तकनीक का इस्तेमाल किया जाएगा। देशभर में हजारों की संख्या में ऐसे पुल हैं जो जर्जर हालत में सुरक्षित निर्माण की बाट जोह रहे उनका पता लगाने में शुरू की गई यह प्रणाली वरदान साबित होगी।
दुनिया के विकसित देशों में काम कर रही पुल प्रबंधन प्रणाली को पहली बार भारत में भारतीय पुल प्रबंधन प्रणाली (आईबीएमएस) के नाम से शुरू किया गया है। इस तकनीकी प्रणली के जरिए देशभर के पुलों और पुलियों की सुरक्षा सुनिश्चित करने की दिशा उनका वरीयता के आधार पर डाटाबेस तैयार किया जा सकेगा। इस प्रणाली की मंगलवार को नई दिल्ली में केंद्रीय सड़क परिवहन राजमार्ग मंत्री नितिन गडकरी ने शुरूआत की है। गडकरी ने कहा कि यह प्रणाली देश में सभी पुलों की फेहरिस्त बनाने में सहायक सिद्ध होगी। मसलन भारतीय पुल प्रबंधन प्रणाली (आईबीएमएस) का मकसद देश में सभी पुलों का डाटाबेस तैयार करना और उन पुलों की विस्तृत ब्योरा सुरक्षित रखना है, ताकि पुलों की गंभीर स्थिति या उसकी परिस्थितियों के आधार पर मरम्मत या नया पुल बनाने का काम समय पर किया जा सके। आईबीएमएस विश्व का सबसे बड़ा मंच है जिसमें 1.50 लाख से भी अधिक पुलों का डाटाबेस सुरक्षित रखा जा सकता है। हालांकि देश में सरकार अब तक 85 हजार पुलियों समेत 1.15 लाख पुलों की सूची तैयार करा चुकी है,जिसके डाटा का आईबीएम विश्लेषण करेगा और उन पुलों की पहचान करेगा, जिन पर तत्काल सुधार करने की आवश्यकता है। इस प्रणाली के तहत पहचान किये गये पुलों की संचालन उपलब्धता में सुधार, अवधि में वृद्धि तथा मरम्मत कार्य को प्राथमिकता देने के लिए निरीक्षण कार्य किया जाएगा। डाटा से यह निर्णय लेने में मदद मिलेगी, कि किस पुल की स्थिति कितनी गंभीर हैं और किसे फिर से बनाने की जरूरत है।
ऐसे काम करेगी यह प्रणाली
भारतीय पुल प्रबंधन प्रणाली (आईबीएमएस) में तकनीकी प्रक्रिया के तहत फेहरिस्त (इनवेंटरी) बनाने का आधार समयानुसार प्रत्येक पुल को अनूठी पहचान संख्या या राष्ट्रीय पहचान संख्या, राज्य, आरटीओ जोन तथा राष्ट्रीय राजमार्ग अथवा राज्य का राजमार्ग और जिले की सड़क पर किया जाता है। फिर जीपीएस के माध्यम से अक्षांश, देशांतर के संदर्भ में पुल के वास्तविक स्थान का पता किया जाता है और इसी के अधार पर पुल स्थान संख्या दी जाती है। इस प्रक्रिया के बाद उसके डिजाइन, मेटेरियल, पुल के प्रकार, पुल की आयु, लोडिंग, यातायात लेन, लम्बाई, चौड़ाई संबंधी जानकारियां एकत्रित की जाती हैं। इस प्रणाली का इस्तेमाल करके पुल वर्गीकरण संख्या दी जाती है और पुलों को ढांचागत रेटिंग संख्या भी दी जाती है। यह संख्या शून्य के 9 के स्केल पर प्रत्येक पुल को दी जाती है। यह रेटिंग पुल के ढांचे से संबंधित घटकों पर विचार करने के बाद दी जाती है। देश में पुलों को सामाजिक, आर्थिक पुल रेटिंग संख्या भी दी जा रही है। इससे क्षेत्रीय सामाजिक आर्थिक गतिविधि में पुल के योगदान का महत्व निर्धारित होगा।
राजस्थान व महाराष्ट्र में शुरूआत
केंद्रीय सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्रालय के अनुसार तैयार की जा चुकी सूची के आधार पर राजस्थान और महाराष्ट्र में रेल ओवर ब्रिज पर कार्य शुरू किए हैं। चूंकि ऐसे पुलों को तकनीकी नवाचार को अपनाने की जरूरत है, ताकि कम लागत में उपयोगी और उचित ढांचे का इस्तेमाल किए जा सकें। केंद्रीय मंत्री गडकरी ने तो कचरे के इस्तेमाल और निर्माण के लिए स्थानीय स्तर पर उपलब्ध कच्ची सामग्री के इस्तेमाल पर बल दिया, ताकि लागत कम की जा सके। दरअसल अभी तक देश में पुलों को लेकर कोई डाटा सरकार के पास उपलब्ध नहीं था, जिससे पुलों की सही संख्या और स्थान स्पष्टता तय की जा सके। मंत्रालय ने राज्य सरकारों की मदद से खासकर जर्जर पुलों की सूची तैयार करना शुरू किया है।
05Oct-2016

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