मंगलवार, 28 अप्रैल 2015

जल्द होगी कलर कोड प्रणाली लागू

हवाई अड्डो के निकट भवन निर्माण पर नरम विमानन प्राधिकरण
ओ.पी. पाल.
नई दिल्ली।
केंद्र सरकार ने हवाई अड्डों के आसपास बहुमंजिला भवनों के निर्माण के लिए नियमों व मानदंडों में बदलाव करके इसे आसान बनाने की कवायद शुरू कर दी है। खासकर दिल्ली और मुंबई हवाई अड्डों के निकट भवनों के निर्माण और उसकी ऊंचाई के लिए विमानन प्राधिकरण कलर कोड प्रणाली शुरू करने की तैयारी में है। सरकार का मकसद हवाई अड्डों और विमानों की सुरक्षा को सुनिश्चित करना है।
नागर विमानन मंत्रालय के अनुसार हवाई अड्डो के समीप भवनों एवं संरचना की ऊंचाई को विनियमित करने क लिए पांच साल पहले जारी नियम व मानदंडों का पिछले तीन साल में 15 हवाई अड्डो के निकट हुए निर्माण में उल्लंघन सामने आया है। ऐसे उल्लंघन से निपटने के लिए विमानन प्राधिकरण ने अब हवाई अड्डो के निकट बहुमंजिला भवनों के निर्माण के लिए नए मानदंड बनाने की तैयारी शुरू कर दी है, जिसके लिए विमानन प्राधिकरण जल्द ही कलर कोड प्रणाली जारी करेगी। सूत्रों के अनुसार यह कलर कोड केवल दिल्ली और मुंबई जैसे महानगरों के लिए लागू होगा। उसके बाद इस प्रणाली को अन्य शहरों में भी लागू किया जा सकता है। मंत्रालय के सूत्रों की माने तो इन दोनों महानगरों के हवाई अड्डों के आसपास निर्माण के लिए विभिन्न हिस्सों के लिए अलग-अलग कलर कोड जारी किया जाएगा। इस प्रकार के मानदंडों के तहत बहुमंजिली इमारतों के लिए विमानन प्राधिकरण से इजाजत हेतु लंबी लंबी प्रक्रिया से बचा जा सकेगा। विमानन प्राधिकारण को इसी कलर कोड के जरिए पता चल जाएगा कि किसी एरिया में उंची इमारत बनाने के लिए प्राधिकरण से इजाजत लेने की आवश्यकता है या नहीं। नागर विमानन मंत्रालय के सूत्रों का कहना है कि शहरी विकास मंत्रालय और अन्य संबन्धित मंत्रालयों के बीच निर्माण कार्यो के लिए इजाजत देने की प्रक्रिया को आसान बनाने पर चर्चा हो चुकी है। इसी बैठक में नागर विमानन राज्यमंत्री महेश शर्मा ने भी हिस्सा लिया और सुझाव के बाद कलर कोड प्रणाली जारी करने पर सहमति बनी। फिलहाल यह सिस्टम दिल्ली और मुम्बई के लिए होगा, लेकिन बाद में दूसरे शहरों के लिए भी यही कलर कोड प्रणाली लागू की जा सकती है।
कैसी होगी कलर कोड प्रणाली
सूत्रों के अनुसार इन दोनों महानगरों में हवाई अड्डों के आसपास किसी क्षेत्र में जहां कितनी भी ऊंची बिल्डिंग बनाने को लेकर विमानन प्राधिकरण को कोई आपत्ति न हो, उस एरिया को वह ग्रीन कलर दे सकती है। ग्रीन कलर देखकर स्थानीय निकाय ही नक्शे पर विमानन प्राधिकरण की ओर से इजाजत दे देंगे। इसी तरह से एक अलग कलर से यह पता चल सकेगा, कि यहां एक तय सीमा से ऊंची इमारत बनाने की इजाजत नहीं दी जा सकती। इसके अलावा जिन इलाकों में शर्तो के साथ इजाजत दी जा सकती है, उस एरिया के लिए अलग कलर होगा। इस तरह से कलर देखकर ही पता चल जाएगा कि ऐसे निर्माण को विमानन प्राधिकरण की इजाजत की जरूरत है अथवा नहीं।
28Apr-2015

सोमवार, 27 अप्रैल 2015

किन्नरों को सामाजिक दायरे में लाने की कवायद!

राज्यसभा में पारित विधेयक लोकसभा में होगा पेश
ओ.पी. पाल.
नई दिल्ली।
मोदी सरकार समाज के हाशिए पर जीवन जीने को मजबूर विपरीत लिंगी व्यक्तियों यानि किन्नरों के अधिकारों के संरक्षण पर गंभीर हैं। राज्यसभा में ध्वनिमत से पारित किये जा चुके विपरीत लिंग व्यक्तियों के अधिकार विधेयक-2014 को अब लोकसभा में पारित कराया जाना है। सरकार इस निजी विधेयक के जरिए विपरीत लिंगी व्यक्तियों को सामाजिक मान्यता देने की कवायद में है।
राज्यसभा में शुक्रवार को द्रमुक सांसद तिरुचि शिवा द्वारा शीतकालीन सत्र में पेश किये गये विपरीत लिंग व्यक्तियों के अधिकार विधेयक-2014 ध्वनिमत से पारित कर दिया गया। इस विधेयक में तीसरे लिंगी व्यक्तियों यानि ट्रांसजेंडस के अधिकार और हकदारियों,शिक्षा, कौशल विकास एवं रोजगार, सामाजिक सुरक्षा, स्वास्थ्य, पुनर्वास और आमोद-प्रमोद, समुचित सरकार के कर्तव्य और जिम्मेदारियों से जागरूकता बढ़ाने की बात कही गई है। वहीं विपरीत लिंगी व्यक्तियों के लिए राष्टÑीय और राज्य आयोग, अधिकार न्यायालय, अपराध एवं शास्तियां तथा प्रकीर्ण जैसी सुविधाओं को उसी प्रकार से लागू करने के प्रावधान है जिस तरह सामान्य समाज को अधिकार मिले हुए हैं। इस निजी विधेयक के मकसद और इसे लागू करने के कारणों में स्पष्ट किया गया है कि केंद्र सरकार ने हाल ही में देश में सामाजिक और आर्थिक विकास के उपाय किये हैं, लेकिन इसके बावजूद विपरीत लिंगी समुदाय की अनेक समस्याओं को इन उपायों से किनारे रखा गया है। पहले से ही तीसरे लिंगी व्यक्तियों को सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक न्याय से वंचित रखा जाता रहा है, जिसके कारण उन्हें शिक्षा, स्वास्थ्य, कानूनी सहायता, रोजगार जैसी सुविधाएं न होने के कारण सामाजिक न्याय नहीं मिल पाता। इसलिए विपरीत लिंगी समुदाय को लेकर उत्पन्न कलंक को मिटाने के लिए उन्हें सामाजिक दायरे में शामिल करना जरूरी है। इस विधेयक को पेश करते समय सांसद तिरुचि शिवा ने अंतर्राष्टÑीय सिविल और राजनैतिक अधिकार संबन्धी कानून में अनुच्छेद 17 का उल्लेख करते हुए तर्क दिया है कि किसी कि साथ भी उसकी निजता, परिवार, घर या वार्तालाप में गैर कानूनी हस्तक्षेप नहीं किया जा सकता। उनका तर्क था कि ऐसे समुदाय के लोगों को भी उन सभी अधिकारों की जरूरत है जो सामान्य समाज को दी जाती हैं। हालांकि इस विधेयक को अब लोकसभा में पारित कराया जाना है, जहां सरकार के सामने इस पर मुहर लगवाने में कोई परेशानी आने की गुंजाइश नहीं है और संसद की मुहर लगने के बाद राष्टÑपति की मंजूरी के बाद किन्नरों को सामाजिक और आर्थिक रूप से सभी अधिकार प्राप्त हो सकेंगे।
चार दशक बाद दोहराया इतिहास
संसद के इतिहास में यह भी एक इतिहास है जब 36 साल बाद संसद में किसी निजी विधेयक को मंजूरी मिली है। इससे पहले एक विधेयक वर्ष 1970 में पारित किया गया था। यह भी दिलचस्प पहलू है कि उच्च सदन में इस विधेयक को पारित कराने का किसी ने विरोध नहीं किया, लेकिन तीसरे लिंगी समुदाय के अधिकारों के संरक्षण में 12 दिसंबर को पेश किये गये इस विधेयक पर सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्री थावरचंद गहलौत ने सुप्रीम कोर्ट का हवाला देते हुए कहा कि सरकार इस बारे में एक विस्तृत विधेयक लेकर आएगी, जिसका तिरुचि शिवा ने विरोध किया और शिवा के विरोध का समूचे विपक्ष ने समर्थन किया। विपक्ष की एकजुटता पर जब मत विभाजन की मांग उठी तो सदन में मौजूद वित्त मंत्री एवं सदन के नेता अरुण जेटली ने सहमति बनाकर इस विधेयक को सर्वसम्मिति से पारित कराने की बात कही।
आरबीआई भी बैकपुट पर होगा
केंद्र सरकार की जनधन योजना में देश के हर व्यक्ति के बैंक खाते खोलने की योजना में तीसरे लिंगी समुदाय के व्यक्तियों को परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है। ऐसी शिकायत पर केंद्रीय रिजर्व बैंक के तहत तीसरे लिंगी लोगों को बैंक खाते खुलवाने के लिए आ रही समस्या को दूर करने के लिए नए फार्म छपवाने के निर्देश दिये थे, जिनमें तीसरे लिंग का कालम जोड़ने की बात कही गई थी, लेकिन इस विधेयक के पारित होने के बाद आरबीआई को अपने ये निर्देश भी वापस लेने पड़ सकते हैं।
27Apr-2015

शनिवार, 25 अप्रैल 2015

सार्थक चर्चा में ‘ठेकेदार’ पर बिफरा विपक्ष

राज्यसभा: बैकपुट पर आने को मजबूर हुए केंद्रीय मंत्री
ओ.पी. पाल.
नई दिल्ली।
राज्यसभा में कृषि क्षेत्र व किसानों की समस्या से निपटने के लिए सार्थक चर्चा का दौर जारी था। अचानक विपक्ष की सत्तापक्ष पर टिप्पणियों से एक केंद्रीय मंत्री आपा खो बैठे और उनके एक शब्द ‘ठेकेदार’ ने विपक्ष को हंगामा करने के लिए मजबूर कर दिया। नतीजा यह हुआ कि विपक्षी दलों की आपत्ति के बाद केंद्रीय मंत्री को अपने शब्द वापस लेकर खेद जताना पड़ा।
हुआ यूं कि उच्च सदन में चर्चा के दौरान जब जदयू के केसी त्यागी बोलने लगे तो उन्होंने सत्ता पक्ष पर टिप्पणियां की और दो दिन पहले जंतर-मंतर पर एक किसान की मौत के लिए सात मंत्रालयों को गुनाहगार करार दिया तो सदन में इनमें से उर्वरक और रसायन मंत्री अनंत कुमार अपनी सीट से खड़े होकर केसी त्यागी पर टिप्पणी कर दी कि क्या उन्होंने खुद खेती की है? और कह डाला कि उन्हें (त्यागी को) खुद को किसानों का ‘ठेकेदार’ नहीं समझना चाहिए। फिर क्या था सदन में विपक्षी दलों का हंगामा शुरू हो गया। केंद्रीय मंत्री की टिप्पणी को उप सभापति प्रो. पीजे कुरियन ने जांचा और तत्काल ही इस शब्द को अससंदीय मानते हुए सदन की कार्यवाही से अलग किया गया। विपक्षी दल यहीं नहीं थमा और मांग शुरू कर दी कि मंत्री अपने शब्द को वापस लें तभी सदन की कार्यवाही आगे बढ़ सकेगी। और सरकार को शर्मसार करने वाली इस एक घटना में विपक्ष ने राज्यसभा में एकजुटता दिखाते हुए केंद्रीय मंत्री को अपने अपने शब्द वापस लेने को मजबूर कर दिया, जिन्होंने खेद भी जताया। विपक्षी दलों ने मंत्री के इन शब्दों को न केवल आपत्तिजनक, बल्कि संसद की गरिमा के विपरीत असंसदीय भी करार दिया।
क्या था अनंत का तर्क
सदन में विपक्षी दलों के हंगामे के बाद केंद्रीय मंत्री ने हालांकि आपत्ति के बाद अपने शब्द वापस लिये। इसके साथ ही अनंत कुमार अनंत कुमार ने कहा कि केसी त्यागी जिस अंदाज में बात कर रहे थे, उसे देखते हुए उन्होंने कहा कि उन्हें अपने आपको ही किसानों का एकमात्र प्रतिनिधि नहीं समझना चाहिए। सभी किसानों को लेकर समान रूप से चिंतित हैं। यदि सदस्यों को उस शब्द से आपत्ति है तो वह उसे वापस लेते हैंं। इससे पहले माकपा के सीताराम येचुरी ने मामले को शांत कराने की दिशा में हस्तक्षेप करते हुए मंत्री से अनुरोध किया था कि यह केवल एक शब्द का मामला नहीं है बल्कि यह पूरे संसद के खिलाफ की गयी टिप्पणी थी, इसलिए उन्हें अपने शब्द वापस लेकर कार्यवाही को आगे बढ़ने दिजिए। वहीं तृणमूल कांग्रेस के सुखेन्दु शेखर राय, बसपा के सतीश चन्द्र मिश्रा, जदयू के शरद यादव एवं कई अन्य विपक्षी दलों के सदस्यों ने भी मंत्री से उनके शब्द वापस लेने की मांग की थी।
25Apr-2015

शुक्रवार, 24 अप्रैल 2015

उच्च सदन में असमंजस में दिखे माननीय

किसानों की दुदर्शा पर चर्चा का मामला
ओ.पी. पाल
. नई दिल्ली।
देश में किसानों की दुदर्शा और आप की रैली में किसान गजेन्द्र की आत्महत्या जैसे गंभीर मामले पर राज्यसभा में चर्चा करीब एक घंटे तक अटकी रही। मसलन सदन में सभी दलों के सदस्य इसी असमंजस में उलझे रहे कि चर्चा का जवाब कौन देगा। असमंजस की स्थिति यहां और भी गहरी हो गई जब सरकार की ओर से सुझाव आया कि चाहे तो चर्चा सोमवार को भी कराई जा सकती है। हालांकि ज्यादातर विपक्षी दल प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की उपस्थिति में चर्चा कराने की मांग करते रहे। आखिर एक घंटे बाद पीठ की व्यवस्था के बाद चर्चा शुरू कराई जा सकी।
दरअसल लोकसभा की तर्ज पर राज्यसभा में भी सुबह कार्यवाही शुरू होने पर विपक्ष की ओर से किसानों की आत्महत्या का मामले पर शोरशराबा किया गया और कांग्रेस, जदयू, सपा समेत पांच दलों की ओर से प्रश्नकाल स्थगित कराकर इस मुद्दे पर चर्चा कराने की मांग की गई। सरकार की रजामंदी को देखते हुए विपक्षी दलों के इस गंभीर मुद्दे पर चर्चा कराने की अनुमति भी सभापति हामिद अंसारी दे चुके थे। भोजनावकाश से पहले बसपा सुप्रीमो मायावती और अन्य दल के कुछ नेता इस मुद्दे पर अपनी बात कह भी चुके थे और सरकार की ओर से संसदीय कार्यमंत्री वेंकैया नायडू भी सरकार का पक्ष रख चुके थे। चर्चा का समय दो बजे तय किया गया। दो बजे शुरू हुए सदन में उप सभापति पीजे कुरियन ने चर्चा शुरू कराने की बात कही, लेकिन जदयू प्रमुख शरद यादव पहले गजेन्द्र की मौत पर कुछ सदस्यों को बोलने का मौका देने की बात कहते रहे। कई बार विपक्ष के नेता गुलामनबी आजाद को चर्चा शुरू करने को कहा गया, लेकिन आजाद यह कहकर खड़े होने को तैयार नहीं हुए कि विपक्ष के कुछ दलों में सहमति बनने के बाद ही वह बोल सकते हैं। उधर विपक्षी दलों में भी बिखराव नजर आया जिसमें गजेन्द्र की मौत के मामले को कई मंत्रालयों से जुड़ा मामला बताकर यह सवाल खड़ा किया गया कि चर्चा का जवाब कौन देगा? यानि यह मामला कृषि, उपभोक्ता मामले, वित्त और गृह मंत्रालय से जुड़ा है, तो विपक्ष की ओर से आवाज आई कि प्रधानमंत्री को ही जवाब देना चाहिए और चर्चा उनकी सदन में मौजूदगी के बाद ही श्ुारू करनी चाहिए। ऐसे में संसदीय कार्यमंत्री वेंकैया नायडू ने कहा कि सरकार के पास काम बहुत है यदि सहमति बने तो चर्चा सोमवार में भी कराई जा सकती है क्यों कि शुक्रवार का दिन प्राइवेट मैंबरों के लिए निर्धारित है। इस पर एकबारगी तो प्रतिपक्ष नेता गुलामनबी आजाद और जदयू नेता शरद यादव भी सहमत नजर आए। इसी बीच सपा के नरेश अग्रवाल और अन्य सदस्य सवाल उठाकर हंगामा करने लगे। इसी असमंजस में फंसे सदस्यों के कारण एक घंटे का समय बर्बाद हो गया।
इसलिए शुरू हुई चर्चा 
इस मुद्दे पर सोमवार को चर्चा पर सहमति बनते देख अन्य कामकाज निपटाने की बात सरकार की ओर से आई तो उप सभापति पी.जे. कुरियन ने कहा राज्यसभा में नेता प्रतिपक्ष गुलाम नबी आजाद ने नोटिस सौंप कर सदन में कामकाज निलंबित करने और किसानों के मुद्दे पर चर्चा कराने की मांग की थी, जिस पर सरकार ने सहमति जताई है। ऐसे में सपा के नरेश अग्रवाल कहां चूकने वाले थे जिन्होंने इस मुद्दे पर चर्चा की मांग की है। क्योंकि चर्चा से पहले अन्य कोई काम काज नहीं हो सकता। इस पर सरकार और विपक्ष के नेता नियमों की किताबे उलटते देखे गये और बाद में तीन बजे बाद इस मुद्दे पर प्रतिपक्ष नेता गुलामनबी आजाद ने चर्चा की शुरूआत की।

सचिन तेंदुलकर भी बने गवाह
हरिभूमि ब्यूरो. नई दिल्ली।
दिग्गज क्रिकेटर और राज्यसभा सदस्य सचिन तेंदुलकर गुरुवार को उच्च सदन के नए सत्र के पहले दिन संसद में उपस्थित हुए। भारत रत्न तेंदुलकर ने दोपहर करीब 12 बजे सदन में प्रवेश किया। उनके पहुंचते ही कुछ साथी सदस्यों ने उन्हें घेर लिया। द्रमुक के टी सिल्वा और युवा सदस्यों समेत कुछ सांसदों ने सचिन का स्वागत किया और उनसे हाथ मिलाया। सचिन को अप्रैल, 2012 में राज्यसभा के लिए मनोनीत किया गया था। हालांकि वह संसद कभी-कभार ही पहुंचते हैं। इसके चलते उनकी अक्सर आलोचना होती है। वह पिछले सत्र की 19 बैठकों में से महज तीन में उपस्थित हुए थे। जबकि पिछले शीतकालीन सत्र की 22 बैठकों में भी सिर्फ तीन बार भाग लिया था। पिछले साल मानसून सत्र के दौरान उच्च सदन में सचिन की गैरमौजूदगी का मुद्दा उठा था। सदस्यों ने पार्टी लाइन से हटकर उनकी लंबे समय से अनुपस्थिति को सदन का अनादर करार दिया था।
24Apr-2015

गुरुवार, 23 अप्रैल 2015

राज्यसभा का सत्र : भूमि समेत कई मुद्दों पर सरकार व विपक्ष आमने सामने

हंगामेदार शुरूआत होने की संभावना
ओ.पी. पाल.
नई दिल्ली।
राज्यसभा का सत्र कल गुरुवार से शुरू हो रहा है, जिसमें भूमि अधिग्रहण समेत कई महत्वपूर्ण मुद्दों पर विपक्षी दलों लामबंदी सरकार को आक्रमकता के साथ घेरने की है। सरकार भी विपक्ष के हमलों का माकूल जवाब देने की रणनीति के साथ सदन में आने की तैयारी कर चुकी है। इसके बावजूद उच्च सदन में पहले ही दिन सरकार की घेराबंदी करने के लिए विपक्ष के हंगामे की संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता।
उच्च सदन में संख्याबल के लिहाज से विपक्षी दलों की एकजुटता सरकार पर भारी है, इसलिए भूमि अधिग्रहण और अन्य महत्वपूर्ण विधेयकों को पारित कराने के लिए सरकार के सामने बड़ी चुनौती मानी जा रही है। 23 अप्रैल से 13 मई तक चलने वाले राज्यसभा के 235वें सत्र में खासकर भूमि अधिग्रहण के मुद्दे पर कांग्रेस की अगुवाई में पहले से ही लगभग समूचा विपक्ष सरकार के खिलाफ मोर्चा खोल चुका है। माना जा रहा है कि कल गुरुवार को उच्च सदन की बैठक में पहले ही दिन विपक्षी दल भूमि अधिग्रहण अध्यादेश के विरोध के साथ-साथ बुधवार को जंतर-मंतर पर आप की किसान रैली में एक किसान द्वारा आत्महत्या करने के मामले को भी उठाएगी। वहीं लोकसभा की बैठक की तर्ज पर सत्तापक्ष के मंत्रियों और राजग के सहयोगी दलों द्वारा विवादित बयानों पर भी विपक्ष हंगामा करने से चूकने वाला नहीं है। मुस्लिमों के प्रति परिवार नियोजन और उनके मताधिकार को छीनने वाले बयान देने वाली शिवसेना पर निशाना साधते हुए सरकार को घेरने की रणनीति विपक्ष बना चुका है। इसका कारण है कि शिवसेना के संजय राउत राज्यसभा के ही सांसद है। लोकसभा में बजट सत्र के दूसरे चरण में पहले ही दिन विपक्ष ने सरकार द्वारा ािफर से लाए गये भूमि अधिग्रहण अध्यादेश का जोरदार तरीके से विरोध करते हुए हंगामा किया। राज्यसभा में भी पहले दिन विपक्ष की लामबंदी और सरकार के कमजोर संख्याबल का लाभ उठाकर भूमि अधिग्रहण समेत कई अनेक मुद्दों पर विपक्ष का हंगामा करने की संभावना बनी हुई हैं। सरकार को उच्च सदन में घेरने के लिए विपक्ष के पास कई और भी मुद्दे हैं, लेकिन सरकार भी विपक्ष की चुनौतियों का सामने करने के लिए पूरी रणनीति के साथ सदन में आने की तैयारी कर चुकी है।
महत्वपूर्ण मुद्दो पर होगी चर्चा
संसदीय कार्य मंत्रालय के अनुसार राज्यसभा का सत्र 13 मई तक चलेगा, जिसमें 13 बैठकें तय की गई हैं। बजट सत्र के पहले भाग के तहत शुरू हुए राज्यसभा का 234वे सत्र 20 मार्च 2015 को स्थगित कर दिया गया था और फिर संसदीय मामलों पर कैबिनेट समिति की सिफारिश को ध्यान में रखते हुए इसका सत्रावसान कर दिया गया था। उच्च सदन में होने वाली बैठकों में रेलवे की अनुदान मांगों एवं 2015-16 के आम बजट पर चर्चा और प्रासंगिक विनियोग व वित्त विधेयकों को पारित किया जाना सरकार के मुख्य एजेंडे में शामिल है। इसी तरह पांच मंत्रालयों के कामकाज पर चर्चा किया जाना भी इस सत्र के प्रमुख एजेंडे में शामिल है। इस दौरान जिन मंत्रालयों के कामकाज पर चचार्एं होंगी, उनमें विदेश, पेट्रोलियम एवं प्राकृतिक गैस, विधि एवं न्याय, सामाजिक न्याय व सशक्तिकरण और सूक्ष्म, लघु व मझोले उद्यम मंत्रालय शामिल हैं।
बजट सत्र का हिस्सा नहीं
गौरतलब है कि बजट सत्र के पहले चरण में 20 मार्च को स्थगित हुए राज्यसभा के 234वें सत्र का सत्रावसान कराने के बाद ही सरकार फिर से भूमि अधिग्रहण अध्यादेश लेकर आई थी, जिसके पहले अध्यादेश की मियाद 5 अप्रैल को समाप्त होने से पहले दूसरा अध्यादेश लाना पड़ा। संविधान में नियम के अनुसार सत्र के दौरान सरकार कोई अध्यादेश नहीं ला सकती, जिसके कारण राज्यसभा के सत्र का सत्रावसान कराना पड़ा था। चूंकि दिसंबर में लाए गये पहले भूमि अधिग्रहण अध्यादेश लोकसभा में विधेयक के रूप में पारित होने के बावजूद राज्यसभा में लटक गया था, इसलिए सरकार को दूसरा अध्यादेश लाना पड़ा। अब उच्च सदन का यह सत्र नए सिरे से शुरू माना जाएगा।
23Apr-2015

बुधवार, 22 अप्रैल 2015

फर्जी पायलट उड़ा रहे विमान!

हवाई यात्रा को सुरक्षित करने को सरकार ने उठाए ठोस कदम
ओ.पी. पाल
. नई दिल्ली।
सड़क यात्रा में ही नहीं हवाई यात्रा करने वाले लोगों की जाने खतरे में हैं। कारण फर्जी दस्तावेजों के आधार पर पायलट का लाइसेंस हासिल करके विमानों की उड़ान भरने वाले पायलटों के कारण हवाई यात्रियों की जान जोखिम में डाल रहे हैं। हालांकि डीजीसीए ऐसे 140 पायलटों के लाइसेंस पहले ही रद्द कर चुका है।
देश की सरकारी और निजी विमान कंपनियों में फर्जी दस्तावेजों या अनिवार्य परीक्षा दिये बिना उड़ान का लाइसेंस हासिल करके विमान उड़ाने वाले पायलटों पर केंद्र में आई मोदी सरकार ने शिकंजा कसना शुरू कर दिया था। इसका परिणाम यह हुआ कि ऐसा एक नहीं, बल्कि बारी बारी से 140 पायलट डीजीसीए की गाज का शिकार बने और पिछले साल सितंबर में ऐसे फर्जी पायलटों के लाईसेंस निरस्त कर दिये गये। इसके बावजूद भी देश की विमान कंपनियों में फर्जी दस्तावेजोें के आधार पर कुछ पायलट विमान उड़ा रहे हैं। हालांकि फिलहाल ऐसी शिकायत के बारे में नागर विमानन मंत्री अशोक गजपति राजू ने सोमवार को लोकसभा में उठाए गये एक सवाल के जवाब में इंकार किया है। फिर भी उन्होंने पायलटों के दस्तावेजों की प्रक्रिया के तहत जांच कराने की बात कही। नागर विमानन मंत्रालय के सूत्रों के अनुसार पिछले साल सितंबर में 140 फर्जी पायलटों के खिलाफ कानूनी कार्रवाही की गई। वहीं पिछले तीन साल में पायलटों की दक्षता जांच के बाद विभिन्न विमान कंपनियों के विमानों की उड़ान भरने वाले ऐसे 320 पायलटों को हटाने की कार्यवाही हुई, जिनकी अनिवार्य परीक्षण की वैधता समाप्त हो गई है। इनमें एयर इंडिया के 101, जेट एयरवेज के 130, एयर इंडिया एक्सप्रेस के 70, स्पाइसजेट के 10 तथा इंडिगो एयरलाइंस के नौ पायलट शामिल थे।
क्या है नए दिशा निर्देश
नागर विमानन मंत्रालय के सूत्रों की माने तो राजग सरकार ने हवाई मार्ग और हवाई यात्रा में यात्रियों की सुरक्षा को प्राथमिकता देते हुए जाली पायलट लाइसेंसो की उच्च स्तरीय जांच करके कानूनी कार्रवाही करने के निर्देश जारी कर दिये थे। ऐसे दिशा निर्देशों के आधार पर डीजीसीए ने सख्त प्रक्रिया को लागू किया, जिसके तहत जाली μलार्इंग स्कूलों के खिलाफ भी कार्यवाही का पैमाना तय किया गया है। नए दिशा निर्देशों के अनुसार नागर विमानन नियामक डीजीसीए ने लाइसेंस जारी करने से पूर्व दस्तावजों के सत्यापन के लिए ठोस कदम उठाने शुरू कर दिये हैं, जिसमें विदेशों से पढ़ाई करके लौटे भारतीय पायलटों को भी जांच के दायरे में लाया जा रहा है। मसलन विदेशी लाइसेंस को भारतीय लाइसेंस में परिवर्तित करने के लिए पायलट के लाइसेंसों का सत्यापन विदेशी लाइसेंस जारी करने वाले वाले देश के संबधित विनियामक प्राधिकरण से कराना अनिवार्य बना दिया गया है। वहीं विदेश में ली गई उ ड़ान के अतिरिक्त संबन्धित पायलट की अपेक्षित विमान कौशल परीक्षा भी भारत में कराना जरूरी कर दिया गया है।
डीजीसीए ने उठाए ठोस कदम
नागर विमानन महानिदेशालय ने पायलट लाइसेंस हासिल करने वालों की जालसाजी से बचने के लिए डीजीसीए के परीक्षा प्रभाग से परिणामों का सत्यापन कराना शुरू कर दिया है। इसी प्रकार भारतीय पायलट का लाईसेंस हासिल करने वाले विदेशी लाइसेंसी पायलटों का भी विनियामक से सत्यापन कराने का प्रावधान लागू किया। डीजीसीए के अनुसार विदेश में उड़ान परीक्षण के सत्यापित होने के बावजूद विदेशी पायलट को भारतीय कंपनी का लाइसेंस हासिल करने के लिए कौशल परीक्षण भी भारत में करना जरूरी होगा। सूत्रों के अनुसार डीजीसीए फर्जी पायलटों की शिकायत की जांच में पुष्टि होने पर विमानन कंपनी के मुख्य परिचालन अधिकारी और प्रशिक्षण प्रमुख को भी नोटिस जारी करता है, जिनके द्वारा ही लाइसेंस के लिए हर छह महीने में होने वाली पायलट दक्षता जांच (पीपीसी) परीक्षण जैसी कौशल परीक्षा (प्रोफिशिएंसी टेस्ट) विमानों की उड़ान भरने की दक्षता की संस्तुति की जाती है।
22Apr-2015

मंगलवार, 21 अप्रैल 2015

भूमि अधिग्रहण: हर चुनौती से निपटने को तैयार सरकार!

-आमसहमति से और संशोधन पर भी हो रहा है विचार

-विपक्ष अड़ा रहा तो संयुक्त अधिवेशन होगा अंतिम विकल्प
ओ.पी. पाल. नई दिल्ली।
संसद में बजट सत्र के दूसरे चरण में भूमि अधिग्रहण मुद्दे पर विरोध करने के लिए पहले ज्यादा आक्रमक नजर आ रहे विपक्षी दलों के मूड़ को केंद्र सरकार शायद भांप चुकी है। यही कारण है कि भूमि अधिग्रहण विधेयक को हर हालत में संसद में पारित कराने के इरादे से सरकार हर तरह की चुनौतियों से निपटने को तैयार है। विपक्ष के विरोध करने की नीति के आधार पर विधेयक में कुछ ओर संशोधन लाने के लिए आम सहमति बनाने का प्रयास भी केंद्र सरकार के रणनीतिक फार्मूले में शामिल है। यदि विपक्ष इस मुद्दे पर विरोध की जिद पर अड़िग रहा तो सरकार संयुक्त अधिवेशन बुलाकर भूमि अधिग्रहण विधेयक को अंजाम तक पहुंचाने के लिए अंतिम विकल्प की राह पर होगी।
संसद में बजट के दूसरे चरण में ही भूमि अधिग्रहण विधेयक को खासकर उच्च सदन में पारित कराने के लिए स्वयं प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने जिस तरह से विभिन्न दलों के सहयोग के साथ ही बेहतर फैसले करने की बात कही है, उससे संकेत हैं कि भूमि अधिग्रहण विधेयक पर विपक्षी दलों के साथ आम सहमति बनाने का भी प्रयास किया जाएगा। सूत्रों के अनुसार सरकार इसमें कुछ और संशोधन ला सकती है। इन संशोधनों में सरकार सहमति के प्रावधान को वापस ला सकती है, भले ही सहमति को 70-80 फीसदी से घटाकर 50-60 फीसदी पर सहमति बना सकती है। वहीं भूमि अधिग्रहण की निगरानी और किसानों के हितों में सांसदों-विधायकों की समितियां बनाने का प्रस्ताव शामिल किये जाने के भी संकेत हैं। इसी प्रकार नगरीय निकायों की सीमाओं का दायरा बढ़ाते हुए शहरी इलाकों से सटे किसानों की अधिग्रहित भूमि पर ज्यादा मुआवजा देने का प्रावधान शामिल किया जा सकता है। लोकसभा में सरकार को किसी भी मुद्दे को अंजाम तक ले जाने में कोई दिक्कत नहीं है, लेकिन राज्यसभा में विपक्ष के बहुमत और उसके इस मुद्दे पर ज्यादा आक्रमकता सरकार के लिए चिंता का कारण बनी हुई है। इसी चुनौती से निपटने की रणनीति पर सरकार आगे बढ़ने का प्रयास कर रही है।
मजबूरी में होगा अंतिम रास्ता
राज्यसभा में बजट सत्र के पहले चरण में सरकार लोकसभा में पारित होने के बावजूद भूमि अधिग्रहण विधेयक को पेश तक भी नहीं कर पाई थी। इस दूसरे चरण में विपक्षी की आक्रमकता कुछ ज्यादा ही विरोध करने की नजर आ रही है। सूत्रों के अुनसार यदि सरकार कुछ और संशोधन करने जैसे मुद्दों पर भी विपक्षी दलों के साथ आम सहमति बनाने में सफल नहीं होती तो उसके पास अंतिम संवैधानिक विकल्प संयुक्त सत्र बुलाने के अलावा कोई नहीं है। सरकार को भूमि अधिग्रहण विधेयक को पारित कराने के लिए इस राह पर आने के लिए मजबूर होना पड़ सकता है। यदि ऐसी नौबत आई तो भारत के इस लोकतांत्रिक इतिहास में यह चौथा मौका होगा, जब कोई कानून संयुक्त सत्र में पारित कराया जाएगा। इससे पहले दहेज निरोधक कानून, बैंकिंग सर्विस कमीशन रिपील कानून तथा पोटा कानून बनाने के विधेयक को संयुक्त सत्र में पारित कराया जा चुका है। गौरतलब है कि बजट सत्र के पहले चरण में लोकसभा में नौ संशोधनों के साथा पारित भूमि अधिग्रहण विधेयक के राज्यसभा में अटकने के कारण सरकार को फिर से दूसरा अध्यादेश लाने के लिए गत 3 अप्रैल को पहले अध्यादेश की मियाद खत्म होने की स्थिति में दूसरा अध्यादेश लाना पड़ा।
सरकार के सामने बड़ी चुनौती
राज्यसभा में संख्याबल कम होने की मजबूरी में ही शायद एक दिन पहले संसदीय कार्य मंत्री वेंकैया नायडू ने सभी भाजपा सांसदों से पूरे समय सदन में मौजूद रहने को कहा है। इसका कारण साफ है कि समूचा विपक्ष भूमि मुद्दे पर लामबंद होने के साथ आक्रमक भी है। भूमि अधिग्रहण मुद्दे पर किसानों के सहारे रिलांच होती कांग्रेस की आंदोलनात्मक रण्नीति, जनता परिवार का विलय, बेमौसम बारिश से दुखी किसानों की खुदकशी भी सरकार के खिलाफ विपक्षी दलों को ताकत दे रही है, जो किसी चुनौती से कम नहीं है। ऐसे में विपक्ष सरकार के सामने भूमि के अलावा अन्य लंबित विधेयकों में भी रोड़ा बन सकता है। सूत्रों के अनुसार ऐसी ही चुनौतियों से निपटने के लिए सरकार सकारात्मक और सकर्तकता के आधार पर अपनी रणनीति बनाने का प्रयास कर रही है।
21Apr-2015

सोमवार, 20 अप्रैल 2015

भूमि समेत कई मुद्दों पर हंगामे के आसार!



संसद के बजट सत्र का दूसरा चरण आज से
विपक्षी दलों ने की सरकार को घेरने को तैयारी
ओ.पी. पाल
. नई दिल्ली।
संसद के बजट सत्र का दूसरा चरण सोमवार से शुरू हो रहा है। कांग्रेस समेत सभी विपक्षी दल खासकर भूमि अधिग्रहण विधेयक के मुद्दे पर सरकार को पहले से ही घेरे हुए हैं, इसके अलावा विपक्षी दलों के हाथ कई ऐसे मुद्दे भी लग चुके हैं, जिन पर संसद में मोदी सरकार विपक्षी दलों के हंगामे का सामना करना पड़ सकता है।
संसद के बजट सत्र का दूसरा चरण एक माह बाद कल सोमवार से शुरू होगा, जिसमें लोकसभा की बैठक में कांग्रेस सरकार द्वारा भूमि अधिग्रहण पर लाये गये दूसरे अध्यादेश का विरोध करने के लिए पहले ही तैयारी कर चुकी है। वहीं कांग्रेस को इस मुद्दे पर जनता परिवार के विलय से छह दलों की एकजुट हुई ताकत और अन्य विपक्षी दलों का साथ मिलने की पूरी संभावना है। यही नहीं भूमि अधिग्रहण अध्यादेश के अलावा बेमौसम बारिश में किसानों के नुकसान की भरपाई, जम्मू-कश्मीर, नक्सली हमलों और तृणमूल कांग्रेस की मुख्यमंत्री पर शारदा चिटफंड के मुद्दे पर सीबीआई का शिकंजा कसने जैसे कई मुद्दे विपक्षी दलों के लिए मोदी सरकार की संसद में घेराबंदी करने के लिए काफी हैं। हालांकि विपक्षी दल सबसे पहले भूमि अध्यादेश को दोबारा लाने की जल्दबाजी पर सबसे पहले सवाल खड़े करेगी। कांग्रेस ने तो रविवार को किसान-खेत मजदूर रैली करके पहले ही सरकार को घेरने के संकेत दे दिये हैं। इसलिए संसद में बजट सत्र के दूसरे चरण के पहले ही दिन हंगामे के आसार बने हुए हैं। हालांकि केंद्र सरकार भी सोमवार को संसद में विपक्षी दलों के हमलों का माकूल जवाब देने के लिए अपनी रणनीति के साथ पूरी तैयारी कर चुकी है। इसके संकेत प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने भाजपा सांसदों की कार्यशाला में हुए अपने भाषण में दे दिये हैं। जनता परिवार के सूत्रों की माने तो एकजुट हुए ये छह दल बिहार को दिये गये पैकेज पर सवाल उठाते हुए बिहार को विशेष राज्य का दर्जा देने की मांग उठा सकते हैं।
आज का एजेंडा
सोमवार से शुरू हो रहे संसद के बजट सत्र के इस चरण में पहले ही दिन सरकार के सामने विधायी कार्यो समेत भारी भरकम कामकाज निपटाने का एजेंडा है। लोकसभा में सोमवार की कार्यसूची में प्रश्नकाल के बाद ही केंद्रीय संसदीय कार्य मंत्री राजीव प्रताप रूडी तीन अप्रैल को राष्टÑपति द्वारा दी गई मंजूरी के बाद लागू भूमि अधिग्रहण अध्यादेश की प्रतियां सदन के पटल पर रखेंगे। यहीं से सदन में हंगामा शुरू होने के आसार बन सकते हैं। हालांकि सरकार ने विधायी कार्यो के तहत सूक्ष्म, लघु और मझौले एंटरप्राइजेज विकास (संशोधन) विधेयक-2015 शामिल किया है, जिसे केंद्रीय मंत्री कलराज मिश्र पेश करेंगे। इसके अलावा लगभग 28 आवश्यक ऐसे दस्तावेज हैं जिन्हें सदन के पटल पर रखा जाना है। कार्यसूची में रेलवे, रसायन और उर्वरक, पेयजल और स्वच्छता पर अनुदान मांगो पर संसदीय स्थायी समिति के प्रतिवेदन भी सदन में पेश किये जाने हैं। इसके अलावा नियम 193 के तहत गत 18 मार्च को अधूरी रही कृषि पर चर्चा को आगे बढ़ाया जाएगा। इसी प्रकार नियम 377 के तहत सांसदों को महत्वपूर्ण मुद्दे उठाना भी इस कार्यसूची में शामिल हैं।
20ASpr-2015

किसानों का हितैषी बनने की सियासी होड़!

भूमि अधिग्रहण: किसानों का हितैषी बनने की होड़
-सरकार और विपक्ष आर-पार के मूड़ में
ओ.पी. पाल
. नई दिल्ली।
देश के किसानों के सहारे सियासी जमीन मजबूत करने में जुटे राजनीतिक दल भूमि अधिग्रहण विधेयक को मुद्दा बनाकर किसानों के सामने अपने आपको हितैषी बनने का प्रयास कर रहे हैं। खासकर कांग्रेस को खोई हुई सियासी जमीन किसानों के सहारे मिलने की उम्मीद नजर आ रही है। इसलिए वह अन्य विपक्षी दलों से कहीं ज्यादा भूमि अधिग्रहण विधेयक के विरोध में मुखर नजर आ रही है। वहीं मोदी सरकार भी हर हालत में भूमि अधिग्रहण विधेयक को संसद में पारित कराने की रणनीति बनाने में पीछे नहीं है।
संसद में बजट सत्र के पहले चरण में मोदी सरकार भूमि अधिग्रहण विधेयक को राज्यसभा में संख्याबल में कमजोर होने के कारण पारित नहीं करा सकी थी, जिसके कारण सरकार को मजबूरन राज्यसभा के सत्र का सत्रावसान कराकर दिसंबर में लाए गये भूमि अधिग्रहण अध्यादेश की मियाद खत्म होने से पहले दूसरा अध्यादेश लाना पड़ा। इसलिए मोदी सरकार कल सोमवार से शुरू हो रहे बजट सत्र के दूसरे चरण में भूमि अधिग्रहण अध्यादेश को विधेयक के रूप में पारित करना चाहती है। विपक्षी दलों में इस अध्यादेश पर ज्यादा बिफरी कांग्रेस सरकार से आर-पार करने के मूड़ में हैं और किसानों की हितैषी बनने की गरज से रविवार को दिल्ली के रामलीला मैदान में शायद पहली बार किसान-खेत मजदूर रैली आयोजित की है। लोकसभा चुनाव के दौरान देशभर में अपनी सियासी जमीन खो चुकी कांग्रेस को उम्मीद है कि किसानों के मुद्दों को रिलांच करने से उनके सहारे उनकी सियासी जमीन वापस मिल सकती है। कांग्रेस की एक मजबूरी यह भी है कि वर्ष 2013 में उसकी यूपीए सरकार ने भी भूमि अधिग्रहण विधेयक को पारित कराने के लिए उसी तरह विपक्ष का विरोध झेला था, जिस प्रकार इस समय मोदी सरकार झेलती आ रही है। वहीं कांग्रेस के सामने किसानों के सामने यह दिखाने का प्रयास भी है कि उनकी सरकार में लागू भूमि अधिग्रहण कानून किसानों के हित में थे। कांग्रेस यदि मोदी सरकार के भूमि कानून का विरोध नहीं करेगी तो किसानों के हितैषी होने का श्रेय मोदी सरकार को चला जाएगा। ऐसा कांग्रेस बर्दाश्त करने के मूड में नहीं है। अन्य विपक्षी दलों का अपना सियासी मकसद है जिसके कारण वे भूमि अधिग्रहण विधेयक का विरोध कर
रहे हैं।
झुकने को तैयार नहीं सरकार
भूमि अधिग्रहण विधेयक पर स्वयं प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और उनकी सरकार के अन्य मंत्रियों ने इसका विरोध करने वाले अन्य दलों पर किसानोें को गुमराह करने का आरोप लगाने जैसे बयान भी दिये हैं। वहीं सरकार विपक्षी दलों के साथ इस मुद्दे पर कई बार आपसी सहमति बनाने का प्रयास करती नजर आई, लेकिन कांग्रेस इस मुद्दे पर अपनी साख बचाने की मजबूरी में शायद टस से मस होने को तैयार नहीं है। ऐसा नहीं है कि सरकार ने किसान संगठनों या किसानों से राय नहीं ली। संसद का सत्र शुरू होने से एक दिन पहले की राजनीति से यही लगता है कि मोदी सरकार भी भूमि अधिग्रहण के मुद्दे पर कांग्रेस जैसे विपक्षी दलों के दबाव में आने को तैयार नहीं है। यही कारण था कि जब रामलीला मैदान में कांग्रेस की रैली चल रही थी, तो प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी भी संसदीय पुस्तकालय के बालयोगी आॅडिटोरियम में भाजपा के तमाम सांसदों को भूमि अधिग्रहण मुद्दे पर किसानों व गरीबों के बीच इस विधेयक की खूबिया गिनाने की मुहिम चलाने का फरमान दे रहे थे। मसलन सरकार की इस रणनीति से लगता है कि केंद्र सरकार भी भूमि अधिग्रहण विधेयक को पारित कराने के पूरी ताकत झोंकने के लिए गंभीर है।
अप्रैल माह की मार
भूमि अधिग्रण विधेयक को पारित कराने के लिए वर्ष 2013 में कांग्रेसनीत यूपीए सरकार भी विपक्षी दलों से आम सहमति बनाने के लिए अप्रैल के महीने में प्रयास में जुटी थी। उसी तरह की मार इस मौजूदा साल के अप्रैल में मोदी सरकार भी मशक्कत कर रही है। यूपीए सरकार को इसके बावजूद वर्ष 2013 में बजट के दूसरे चरण में भी विधेयक पारित कराने में सफलता नहीं मिल सकी थी, जिसे मानसून सत्र में पारित कराया जा सका था। उसी तर्ज पर भूमि अधिग्रहण के लिए राजग सरकार को मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है। अब देखना है कि सरकार अपने रणनीतिक फार्मूले से बजट सत्र के दूसरे चरण में यह विधेयक पारित करा पाएगी या नहीं? यह अभी भविष्य के गर्भ में है।
20Apr-2015

शनिवार, 18 अप्रैल 2015

चन्द्रशेखर की विरासत पर होगी अब सियासत!


-विलय के बाद साइकिल पर सवार हुआ जनता परिवार
ओ.पी. पाल
. नई दिल्ली।
मुलायम सिंह यादव की अगुवाई में छह क्षेत्रीय दलों के विलय के बाद जनता परिवार ने पूर्व प्रधानमंत्री स्व. चन्द्रशेखर की विरासत पर सियासत करने का फैसला किया है। मसलन विलय के बाद नए राजनीतिक दल ‘समाजवादी जनता पार्टी’ होगा और चुनाव चिन्ह ‘साइकिल’ पर सहमति बनाई गई है। इसका ऐलान कल चन्द्रशेखर की जयंती के मौके पर किया जा सकता है या फिर संसद के बजट सत्र से पहले इसकी घोषणा होगी।
जनता परिवार के छह दलों ने बुधवार को विलय करने के बाद एक नई राजनीतिक पार्टी बनाने का ऐलान किया था। इस नई पार्टी के नाम, झंडे और चुनाव चिन्ह के फैसले के लिए एक छह सदस्यीय समिति गठित की गई थी, जिसमें सभी छह दलों के नेता शामिल थे। सूत्रों के अनुसार विलय के बाद बनाई जा रही नई पार्टी के नाम और उसके चुनाव चिन्ह पर यह समिति आपसी सहमति से अंतिम निर्णय ले चुकी है। सूत्रों के अनुसार समिति के सदस्यों एच डी देवगौड़ा, लालू प्रसाद यादव, शरद यादव और प्रो. रामगोपाल यादव,कमल मोरारका, अभय चौटाला ने नए राजनीतिक दल का नाम ‘समाजवादी जनता पार्टी’ और चुनाव चिन्ह ‘साइकिल’ पर सहमति बना ली है। सूत्रों के अनुसार समिति में समाजवाद की राजनीति के वजूद को बनाए रखने की दिशा में समाजवादी के पक्षधर रहे पूर्व प्रधानमंत्री चन्द्रशेखर की विरासत को जिंदा रखने पर भी निर्णय हुआ। इसलिए जनता परिवार के बिखराव के बाद 1991 में चंद्रशेखर द्वारा बनाई गई समाजवादी जनता पार्टी के नाम को आगे बढ़ाने पर सहमति बनाई गई है। जहां तक चुनाव चिन्ह का सवाल है उसमें समाजवादी पार्टी की साइकिल पर सहमति बन चुकी है। सूत्रों की माने तो झंडे में लाल, हरा और सफेद रंग यानि तिरंगा रखने पर फैसला हो चुका है। सूत्रों के अनुसार इस समिति ने लोकसभा में मुलायम सिंह यादव और राज्यसभा में शरद यादव को नई पार्टी के सांसदों का नेता बनाने पर भी अपना फैसला किया है। बताया गया है कि पार्टी के नाम, झंडे और चुनाव चिन्ह का ऐलान कल स्व.चन्द्रशेखर की 88वीं जयंती के मौके पर या फिर संसद के सत्र शुरू होने से एक दिन पहले कर दिया जाएगा।
विलय पर समाजवाद भारी
जनता परिवार के इन छह दलों के विलय से पहले ही एकजुटता की जारी कवायद में समाजवादी जनता पार्टी या समाजवादी जनता दल के नामों को लेकर मंथन चलता रहा है। इस सियासत में हर लिहाज यानि संसद और विधानसभाओं में समाजवादी पार्टी के सदस्यों की संख्या सबसे ज्यादा है, जो जाहिर सी बात है कि भारतीय सियासत में समाजवाद को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। यही कारण है कि कांग्रेस और भाजपा जैसे बड़े दलों के मुकाबले तीसरी राजनीतिक ताकत को खड़ा करने की कवायद में कई सालों से जुटे मुलायम सिंह यादव को तरजीह देना जरूरी भी है। तभी तो विलय के बाद नई पार्टी और संसदीय दल की कमान उन्हें सौंपी गई। संसद में लोकसभा और राज्यसभा में भी सपा के सदस्यों की संख्या बाकी पांच दलों पर भारी है।
विपक्ष की भूमिका होगा अगला निशाना
राजनीतिक सूत्रों की माने तो संसद के दोनों सदनों में इस नई पार्टी के 45 सदस्य हैं, जिनमें लोकसभा में 15 और राज्यसभा में 30 सदस्य हैं। इस आंकड़े को बढ़ाने के लिए इस नए दल की नजरें राष्‍ट्रीय राजनीति में बड़ी ताकत बनने पर होगी। मसलन यदि इस नए सियासी समीकरण में यह परिवार जैसा की तृणमूल कांग्रेस, बीजद और वामदलों से बातचीत करने का दावा कर रही है, तो इसमें सफल होने पर यह नया दल लोकसभा में विपक्षी दल का दर्जा भी हासिल कर सकता है। यानि इनके साथ तृणमूल कांग्रेस के 34, बीजद के 20 और वामदलों के दस सदस्य जुड़ने की स्थिति में इनकी संख्या 79 हो जाएगी। इसी प्रकार राज्यसभा में तृणमूल कांग्रेस के 12, वाम दलों के 11 और बीजद के 7 सदस्यों से हाथ मिलाकर इनकी संख्या 60 हो जाती है। ऐसी स्थिति में यह नया गठजोड़ उच्च सदन के किसी भी फैसले की अहम भूमिका में शामिल हो सकता है, जिसकी रणनीति पर जनता परिवार तैयारी में भी है।
18Apr-2015


गुरुवार, 16 अप्रैल 2015

दल तो मिले, पर दिल मिलने में संशय!

-सपा समेत परिवार के कई दलों में उजागर हुई अंतर्कलह
ओ.पी. पाल.
नई दिल्ली।
केंद्र में मोदी सरकार के खिलाफ मोर्चा खोलने के इरादे से जनता परिवार के छह दलों का विलय तो हो गया। इस एकजुटता में चौतरफा झोल इसलिए भी नजर आ रहे हैं कि इन क्षेत्रीय दलों के झंडे और चुनाव चिन्ह उनके अपने अपने राज्यों की सियासी बिसात में मायने रखते हैं। शायद यही कारण है कि इन दलों की एकता की दुहाई के बीच एक झंडे और एक चुनाव चिन्ह पर निरंतर मंथन के के बावजूद अंतिम निर्णय नहीं हो सका। इन्हीं मुद्दों की चिंता के बीच राज्य स्तर की राजनीति के प्रभावित होने की आशंका पर सपा और राजद जैसे दलों में अंतर्कलह की आवाज भी आने लगी है।
जनता परिवार की पिछले छह माह से एकजुटता के साथ एक झंडे व बैनर तले तीसरी सियासी ताकत को बढ़ाने की कवायद सही मायने में अंजाम तक नहीं पहुंच पायी। मसलन इन छह दलों का मिलन तो हो गया, लेकिन दिल मिलने पर बरकार संशय की संभावनाओं से भी इंकार नहीं किया जा सकता। इसका कारण साफ है कि क्षत्रप सियासत में नई पार्टी के झंडे व चुनाव चिन्ह से इन छह दलों की सियासी बिसात को पटरी पर लाने के लिए मशक्कत करनी पड़ेगी। सूत्रों की माने तो झंडे पर इतना बड़ा पेंच नहीं है जितना चुनाव चिन्ह के मुद्दे पर फंसा हुआ है। इस महाविलय में शामिल हर पार्टी की इच्छा है कि उसके दल का चुनाव चिन्ह हो। सपा के मुलायम सिंह तो पहले से ही ‘साइकिल’ का अलाप कर रहे हैं, जिसका विरोध अन्य दलों ने इसलिए किया कि उससे यूपी से पहले बिहार में चुनाव चिन्ह को सिरे चढ़ाना होगा, जहां इसी साल चुनाव होने हैं। यही कारण है कि जनता परिवार के एकजुट होते इस कुनबे पर सपा और राजद में ज्यादा अंतर्कलह की आवाज सुनाई दे रही है। सूत्रों के अनुसार विलय के ऐलान के लिए बुलाई गई बुधवार की बैठक में नाराजगी के चलते सपा के महासचिव प्रो. रामगोपाल यादव ने हिस्सा नहीं लिया। वहीं यूपी में सत्ताधारी इस पार्टी के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ही इन पार्टियों के विलय के खिलाफ हैं। सूत्रों के मुताबिक बेनाम की पार्टी के अध्यक्ष मुलायम के बेटे ही नहीं, बल्कि समाजवादी पार्टी के कई सांसद ने भी इस कवायद के खिलाफ अपना मत प्रकट करते नजर आ रहे हैं। उधर राजद के सांसद राजेश रंजन उर्फ पप्पू यादव पहले ही इस विलय के विरोधी स्वर सुना चुके हैं। राजनीतिकारों की माने तो समाजवादी पार्टी को निकट भविष्य में राजग गठबंधन से कोई खास खतरा महसूस नहीं हो रहा है, बल्कि राजद और जदयू के साथ मामला उल्टा पड़ने की संभावना है, जहां इसी साल चुनाव की सुगबुगाहट होने लगी है। यह सपा भी जानती है कि लोकसभा चुनाव में खोई सियासी जमीन को पाने के लिए चिरद्वंदी जदयू-राजद दोनों की ही विलय करने की मजबूरी रही।
संसद में दलीय गणित
संसद में विपक्ष के सशक्त भूमिका निभाने का दावा कर रहे इन दलों के कुल 45 सदस्य हैं। लोकसभा में जनता परिवार के इन दलों में से पांच राज्यों से पांच दलों के कुल 15 सदस्य हैं। उत्तर प्रदेश से सपा के पांच, बिहार से राजद के चार और जदयू के दो सदस्य चुने गए हैं। हरियाणा से इनेलो और कर्नाटक से जदएस के दो-दो सदस्य लोकसभा में निर्वाचित हैं। जबकि राज्यसभा में पांच दलों के 30 सदस्यों में सपा के सर्वाधिक 15, जदयू के 12 और जद-एस, राजद और इनेलो के एक-एक सदस्य शामल हैं। लोकसभा में इस महाविलय के बाद भी फिलहाल तो प्रमुख विपक्षी दल के रूप में नई पार्टी भूमिका में नहीं होगी, लेकिन राज्यसभा में 30 सदस्यों के साथ तीसरे नंबर की पार्टी के रूप में निश्चित तौर से नजर आएगी।
राष्टÑीय दल का मिल सकता है दर्जा
इन सभी दलों के विलय के बाद नई बनने वाली पार्टी को राष्ट्रीय दल के रूप में निर्वाचन आयोग मान्यता दे सकता है। हालांकि नई पार्टी के गठन के लिए पुराने दलों के विलय, विभाजन और विघटन की प्रक्रिया इतनी आसान नहीं होगी। फिर भी राष्टÑीय मान्यता के मानकों को इन दलों को लोकसभा चुनाव में मिले वोटों के आधार और राज्य  विधान सभाओं में निर्वाचित सदस्यों के सहारे पूरा कर सकती है। निर्वाचन आयोग के नियमों के मुताबिक स्थायी चुनाव चिह्न और बाद में राष्ट्रीय दल की मान्यता बनाए रखने के लिए चार राज्यों के विधानसभा चुनावों में कम से कम छह प्रतिशत वोट के साथ चार या इससे अधिक सदस्यों की जीत जरूरी होगी।
16Apr-20105

नए झंडे के नीचे जनता परिवार का विलय

बुधवार, 15 अप्रैल 2015

नए दल की अगुवाई करेंगे मुलायम!

-शरद यादव हो सकते हैं पार्टी के संयोजक
जनता परिवार में एकजुट हुए दलों की बैठक आज
ओ.पी. पाल.
नई दिल्ली।
आखिर जनता परिवार के बिखरे दलों एकजुटता सियासी पटरी पर आ गई है। मुलायम सिंह यादव की अगुवाई में कल बुधवार को छह दलों के विलय से एक नए राजनीतिक दल का ऐलान होने जा रहा है, जिसकी आपसी सहमति से पूरी पटकथा लिखी जा चुकी है। ए जा रहे एक संयुक्त राजनीतिक दल का ऐलान हो जाएगा।
संसद के 20 अप्रैल से शुरू होने वाले सत्र में मजबूत विपक्ष की भूमिका के रूप में एक नई पार्टी के साथ आने की तैयारी में जनता परिवार के छह दलों सपा, राजद, जद-यू, जद-एस, सजपा और इनेलो का विलय हो चुका है। इस विलय की लिखी जा चुकी पटकथा के पन्ने बुधवार को सपा प्रमुख मुलायम सिंह यादव के दिल्ली स्थित सरकारी आवास पर होने वाली जनता परिवार के दलों की बैठक के बाद खुलना तय माना जा रहा है। इस बैठक के बाद गैर भाजपा और गैर कांग्रेसी एक नए सियासी दल की इमारत सबके सामने आने की संभावना है। जदयू के महासचिव केसी त्यागी के अनुसार सभी छह दलों की आम सहमति से विलय के बाद एक संयुक्त राजनीतिक दल और उसके झंडे व चुनाव चिन्ह भी तय कर लिया गया है, लेकिन इसका खुलासा इस कवायद में बुधवार को होने वाली अंतिम बैठके के बाद ही किया जाएगा। हालांकि सूत्रों की माने तो जनता परिवार का नया सियासी दल ‘समाजवादी जनता पार्टी’ या ‘समाजवादी जनता दल’ हो सकता है, जिसके लिए पिछले छह माह से माथापच्ची चलती आ रही है। जहां तक चुनाव चिन्ह का सवाल है उसमें सपा के चुनाव चिन्ह ‘साइकिल’ पर सहमति बनाई जा चुकी है। चूंकि सभी राजनीतिक दल समाजवादी विचार धारा से जुड़े हुए हैं इसलिए उसी विचार धारा को भविष्य की राजनीति में आगे बढ़ाने की तैयारी में हैं। मुलायम सिंह की अध्यक्षता में होने वाली इस बैठक में सपा महासचिव रामगोपाल यादव, राजद प्रमुख लालू प्रसाद यादव, जदयू प्रमुख शरद यादव व बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार, जदयू महासचिव केसी त्यागी, जद-एस प्रमुख एचडी देवगौड़ा, सजपा प्रमुख कमल मोरारका और इनेलोद नेता दुष्यंत चौटाला प्रमुख रूप से हिस्सा लेंगे।
ये हो सकता है दल का स्वरूप
इस नए राजनीतिक दल के गठन के बाद संसद के दोनों सदनों के नेताओं और पार्टी कार्यकारिणी की रूप रेखा भी तैयार हो चुकी है। सूत्रों के अनुसार लोकसभा में मुलायम सिंह यादव और राज्यसभा में शरद यादव इस पार्टी के नेता होंगे। जब कि नए दल के अध्यक्ष मुलायम सिंह यादव और संयोजक शरद यादव हो सकते हैं। महासचिव के पद पर जदयू के केसी त्यागी, सपा के प्रो. राम गोपाल यादव, जद-एस के दानिश अली, राजद के जयप्रकाश नारायण यादव, तथा इनेलो के दुष्यंत चौटला की चर्चा है। वहीं राजद की राबड़ी देवी और सजपा के कमल मोरारका को उपाध्यक्ष का पद दिया जा सकता है। जनता परिवार के विलय की सुगबुगाहट पिछले वर्ष लोकसभा चुनाव के बाद से ही शुरू हो गई थी जब नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में भाजपा को चुनाव में जबर्दस्त जीत मिली थी और बिहार में जदयू और राजद तथा उत्तर प्रदेश में सपा और हरियाणा में इनेलोद को करारी पराजय का सामना करना पड़ा था।
बिहार के साथ यूपी पर नजरें
लोकसभा चुनाव से सबक लेते हुए भाजपा व कांग्रेस से अलग एक अलग विकल्प बनाकर जनता परिवार के इन दलो की नजरें एक संयुक्त दल बनाकर इस साल बिहार और 2017 में उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनावों में सियासी जमीन मजबूत कर फतेह करने पर हैं। वहीं इस एकजुटता को परवान चढ़ाने का मकसद मोदी व भाजपा के विजय रथ को रोकना और केंद्र सरकार के खिलाफ मोर्चा खोलना भी है। जनता परिवार के नेता पहले विलय को अंजाम देने और बाद में इसमें अन्य दलों को जोड़ने का अभियान भी चलाने का इरादा कर रहे हैं, जिसमें रालोद, तृणमूल कांग्रेस और अन्य क्षेत्रीय दलों से भी बातचीत को दौर चल रहा है।
15Apr-2015

मंगलवार, 14 अप्रैल 2015

भू-अधिग्रहण पर पीछे नहीं हटेगी सरकार!

-सुप्रीम कोर्ट के नोटिस का देगी तर्कता के साथ जवाब
ओ.पी. पाल
. नई दिल्ली।
भूमि अधिग्रहण अध्यादेश के दोबारा लाने के विरोध में कांग्रेस समेत विपक्षी दलों की चौतरफा आलोचना का शिकार केंद्र सरकार पीछे हटने को तैयार नहीं है। इस अध्यादेश की संवैधानिक वैधता को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती पर मिले नोटिस का भी सरकार तर्क संगत जवाब देगी। राज्यसभा के अगले सत्र में भू-अध्यादेश को विधेयक के रूप में पारित कराने के इरादे से केंद्र सरकार हालांकि विपक्षी दलों के सुझावों पर संशोधन के लिए भी नरमी बरतने की रणनीतिक कदम बढ़ा सकती है।
केंद्र सरकार द्वारा संप्रग सरकार द्वारा लागू भूमि अधिग्रहण कानून में संशोधन करके दिसंबर में अध्यादेश जारी किया था। यह विधेयक लोकसभा में नौ संशोधनों के साथ पारित होने के बावजूद विपक्षी दलों के एकजुट विरोध के चलत् राज्यसभा में अटक गया था। चूंकि अध्यादेश की मियाद पांच अप्रैल को समाप्त हो रही थी। बजट सत्र का अभी सत्रासवान नहीं हुआ था इसलिए नियमों के मुताबिक संसद सत्र के चलते कोई अध्यादेश नहीं लाया जा सकता। इसलिए सरकार ने राज्यसभा के सत्र का सत्रावसान कराने के बाद लोकसभा में पारित भूमि अधिग्रहण बिल के मसौदे के साथ दूसरे अध्यादेश को कैबिनेट में मंजूरी दी और उस पर राष्टÑपति की मुहर लगवाई। संविधान के नियमों के अनुसार किसी विषय पर अध्यादेश तीन बार लाया जा सकता है। इसलिए जैसे ही भूमि अधिग्रहण पर दूसरा अध्यादेश लागू हुआ तो विपक्षी दलों खासकर कांग्रेस के तेवर ज्यादा तीखे हो गये, जिसकी 19 अप्रैल को किसान-मजदूर रैली भी प्रस्तावित है।
चुनौतियों से निपटने की तैयारी
सरकार के भूमि अधिग्रहण पर लाये गये दूसरे अध्यादेश की संवैधानिक वैधता को पिछले सप्ताह ही दिल्ली ग्रामीण समाज, भारतीय किसान यूनियन और ग्रामीण सेवा समिति समेत चार संगठनों ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देते हुए याचिका दायर की, जिस पर आज सोमवार को सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को नोटिस जारी किया है। इस नोटिस के बारे में संसदीय कार्यमंत्री वेंकैया नायडू का कहना है कि सरकार इस नोटिस का तर्क संगत जवाब देगी, लेकिन किसानों के हितों पर विपक्षी दलों की वोट बैंक की राजनीति हावी नहीं होने देगी। संसदीय कार्य मंत्री वेंकैया नायडू ने यह भी संकेत दिये हैं कि केंद्र सरकार अपने सहयोगी और विपक्षी दलों इस मुद्दे पर लोकसभा में पेश किए गए विधेयक में 11 आधिकारिक संशोधन करने के लिए तैयार है। सूत्रों के अनुसार सरकार राजमार्गों एवं रेलवे लाइनों के दोनों तरफ एक किलोमीटर तक औद्योगिक गलियारों को सीमित करने, खेतिहर मजदूरों के प्रभावित परिवार के एक सदस्य को अनिवार्य रोजगार, जिला स्तर पर शिकायतों की सुनवाई और उनका निदान, कम से कम जमीन अधिग्रहण करने जैसे 11 आधिकारिक संशोधन लाने का फैसला कर चुकी है। फिर भी विपक्षी दलों की चिंताओं और आशंकाओं का समाधान करने के लिए सरकार ने विधेयक में बदलाव के लिए ऐसे सुझावों के रूप में विकल्प खुला रखा है, जिसमें किसानों और खेती के हित जुड़े हुए हों।
रायशुमारी जारी
केंद्र सरकार की ओर से केंद्रीय वित्त मंत्री अरूण जेटली, संसदीय कार्य मंत्री एम वेंकैया नायडू एवं ग्रामीण विकास मंत्री चौधरी वीरेंद्र सिंह भूमि अधिग्रहण विधेयक के मुद्दे पर राजग के सहयोगी दलों के नेताओं के अलावा विपक्षी दलों और किसान एवं खेती से जुड़े अन्य संगठनों सहित समाज के सभी वर्गों से रायशुमारी कर रहे हैं। जबकि सरकार द्वारा लाए गये संशोधन भी ऐसे संगठनों से मिले सुझावों के बाद ही लाये गये थे। फिर भी सरकार इस विधेयक को संसद में पारित कराने के लिए पूरी तरह से गंभीर है और सभी राजनीतिक दलों व किसान संगठनों का सहमति के साथ सहयोग चाहती है।
कितने गंभीर हैं मोदी
भूमि मुद्दे विपक्ष की आलोचनाओं और सुप्रीम कोर्ट के नोटिस के बाद जर्मन के हेनेवार में होते हुए भी प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने से घिरे प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी भूमि अधिग्रहण पर अपनी गंभीरता को दबा नहीं सके। मोदी ने हेनेवार में ही अपने बयान में स्पष्ट कर दिया कि उनकी सरकार भूमि अधिग्रहण का एक तर्कसंगत ढांचा बना रही है, ताकि किसानों और भू मालिकों को लाभ पहुंचाया जा सके। मोदी ने कहा कि सरकार किसानों और भू मालिकों को किसी परेशानी में डाले बिना भूमि अधिग्रहण के लिए एक तर्कसंगत ढांचा गठित कर रहे हैं। इस ढांचे में विकास और अर्थव्यवस्था को गति देने के लिए लंबित परियोजनाओं को पूरा करना मोदी ने प्राथमिकता बताया।
14Apr-2015

नये कानून से होगी जजों की नियुक्तियां !

न्यायिक नियुक्ति आयोग लागू
हरिभूमि ब्यूरो
. नई दिल्ली
सर्वोच्च न्यायालय व उच्च न्यायालयों में जजों की नियुक्ति के लिए अब तक चली आ रही कॉलेजियम प्रणाली समाप्त कर दी गयी है। राष्ट्रपति से मंजूरी के बाद केंद्र सरकार ने सोमवार को राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग की अधिसूचना जारी कर दी। आयोग के अध्यक्ष सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश होंगे। इस बीत आयोग को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सर्वोच्च न्यायालय में 15 अप्रैल को सुनवाई भी होगी।
सरकार ने उच्चतम न्यायालय एवं उच्च न्यायालयों में न्यायाधीशों की नियुक्ति की मौजूदा प्रणाली में बदलाव लाने के लिए राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग अधिनियम, 2014 और 121वें संविधान संशोधन अधिनियम, 2014 को अधिसूचित किया। ये विधेयक 13 अगस्त, 2014 को लोकसभा में और 14 अगस्त 2014 को राज्यसभा में पारित हो गए थे। इसके बाद इन विधेयकों का अनुमोदन निर्धारित संख्या में राज्य विधानसभाओं ने कर दिया और फिर राष्ट्रपति की मंजूरी इन्हें मिल गई। इसके बाद सोमवार, 13 अप्रैल से केंद्र सरकार ने इस अधिनियम को प्रभावी घोषित करते हुए अधिसूचना जारी कर दी। उपयरुक्त अधिनियम में ह्यराष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोगह्य द्वारा उच्चतम न्यायालय एवं उच्च न्यायालयों के न्यायाधीशों के चयन के लिए एक पारदर्शी एवं व्यापक आधार वाली प्रक्रिया का उल्लेख किया गया है। पूर्ववर्ती कॉलेजियम प्रणाली की तरह ही ह्यराष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोगह्य के अध्यक्ष भी भारत के मुख्य न्यायाधीश ही होंगे। आयोग के सदस्यों में उच्चतम न्यायालय के दो वरिष्ठतम न्यायाधीश, केंद्रीय विधि एवं न्याय मंत्री, भारत के प्रधानमंत्री की कमेटी द्वारा मनोनीत दो जाने-माने व्यक्ति, भारत के मुख्य न्यायाधीश और लोकसभा में विपक्ष के नेता अथवा विपक्ष का नेता न होने की स्थिति में लोकसभा में सबसे बड़े विपक्षी दल के नेता शामिल होंगे। आयोग की संरचना को समावेशी बनाने के मकसद से इस अधिनियम में यह कहा गया है कि एक जाने-माने व्यक्ति को अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, अन्य पिछड़ा वर्गों, अलपसंख्यकों अथवा महिलाओं के वर्ग से मनोनीत किया जाएगा। आयोग अपने नियम खुद ही तैयार करेगा। इस बीच इस आयोग के खिलाफ सर्वोच्च न्यायालय में दायर याचिकाओं पर सुनवाई 15 अप्रैल को सुनिश्चित की गयी है। वकीलों के कई संगठनों ने सर्वोच्च न्यायालय में याचिका दाखिल की थी। इस पर 7 अप्रैल को सर्वोच्च न्यायालय की खंडपीठ ने मामले को संविधान पीठ को भेज दिया था। पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ 15 अप्रैल को मामले की सुनवाई करेगी।
14Apr-2015

सोमवार, 13 अप्रैल 2015

सात समंदर पार अपनो का है इंतजार!



विदेशी जलों में बंद हैं साढ़े छह हजार भारतीय 
ओ.पी. पाल. नई दिल्ली।
केंद्र सरकार ने युद्धबंदी में फंसे भारतीयों को भले ही सुरक्षित निकाल लिया हो, लेकिन इससे भी कहीं ज्यादा रोजगार की गरज से दुनिया के विभिन्न देशों में पैसा कमाने की गरज से कानूनी शिकंजे में फंसे हुए हैं। ऐसे विदेशी जेलों में बंद करीब साढ़े छह हजार भारतीयों के परिवारों को उनकी रिहाई का इंतजार है।
केंद्र सरकार के विदेश मंत्रालय और प्रवासी भारतीय मामलों के मंत्रालय द्वारा विदेशों में रोजगार के लिए रहने वाले भारतीयों के लिए कानूनी मदद या अन्य मुसीबत के लिए हाल ही में ई-योजना के तहत ‘मदद’ नामक वेबसाईट शुरू की, जिसके जरिए परदेश में मुसीबत में घिरने वाले भारतीय अपनी भारतीय सरकार से सीधे मदद की गुहार कर सकते हैं। इसके अलावा प्रवासी मामलों के तहत भारत खासकर भारतीय श्रमिकों को कानूनी सहायता देने की योजना भी चला रहा है। विदेश मंत्रालय के मुताबिक विदेशों में जेलों में बंद किसी भी भारतीय को को सहायता प्रदान करने के लिए संबन्धित देश में भारतीय मिशनों और दूतावासों के जरिए हर संभव प्रयास किये जाते हैं। वहीं सजायाμता लोगों के लिए भारत का पाक, बांग्लादेश, श्रीलंका और संयुक्त अरब अमीरात जैसे खाड़ी देशों समेत 30 देशों के साथ एक-दूसरे देश के कैदियों के आदान-प्रदान करने के लिए संधि भी विद्यमान है और भारत सरकार विदेशी सरकारों से भारतीयों को क्षमा देने का अनुरोध भी करती है। इसके बावजूद इन संधियों का भारतीय कैदियों को रिहा कराने में कोई लाभ नहीं मिल पा रहा है। मंत्रालय के अनुसार ऐसे करारों के तहत अमेरिकी राज्यों के संगठन की बहुपक्षीय कन्वेंशन से भी सहमति जताई गई है, जहां अभी तक 54 बंदियों को लाभ मिला है, जिनमें से मौजूदा बंदियों के अलावा 45 कैदियों की भारत वापसी कराई जा चुकी है। केंद्र सरकार ने जिस तरह यमन की युद्धबंदी के चलते वहां रह रहे करीब पांच हजार भारतीयों को सुरक्षित भारत लाकर एक बड़ा काम किया है। उसी तरह सरकारी आंकड़ों के मुताबिक 72 देशों की जेलों में बंद 6443 भारतीयों की रिहाई के लिए यहां उनके परिवार सरकार पर भरोसा कर रहे हैं, जो विदेशी जेलों में सजा काट रहे भारतीयों को छुड़ाने के लिए दूतावासों और भारतीय विदेश मंत्रालय के चक्कर काटने में अभी इसी उम्मीद के साथ थके नहीं हैं कि एक दिन उनके अपने घर लौट आएंगे।
क्यों फंसे हैं भारतीय
दरअसल विदेश में पैसा कमाने की ललक में विदेश जाने वाले भारतीयों के काम करने की प्रक्रिया इतनी कठिन है कि उसकी औपचारकिता पूरी कर पाने में ही लोग हथियार डाल देते हैं। यूरोप और अमेरिका में काम के लिए वीजा पाना टेढ़ी खीर है, लेकिन खाड़ी देशों में दक्षिण एशियाई देशों के लोगों को काम तो मिल जाता है, लेकिन ऐसे प्रवासी श्रमिकों पर मुसीबत का पहाड़ उस समय टूटता है जब वे किसी इस्लामिक कानून के उल्लंघन में जकड़ जाते हैं। एक तो वहां का सख्त इस्लामिक कानून और दूसरा गैर कानूनी तरीके से वहां काम करना या रहना कानून के उल्लंघन का कारण बन जाता है। यही कारण है कि खाड़ी देशों में कानून की मार झेलने वाले भारतीय कैदियों की खाड़ी देशों में संख्या ज्यादा है। एक रिपोर्ट के अनुसार भारत से बाहर विदेशों में रहने वाले 2 करोड़ 21 लाख प्रवासी भारतीयों में से 27 फीसदी खाड़ी देशों में काम कर रहे हैं। दुनिया के करीब 80 देशों की जेलों में बंद भारतीयों में से 45 फीसदी भारतीय आठ खाड़ी देशों की जेलों में ही बंद हैं और इन भारतीयों के खिलाफ इस्लामिक कानून के उल्लघंन, चोरी, धोखाधड़ी और गैरकानूनी तरीके से काम करने या गैरकानूनी तरीके से प्रवास करने जैसे आरोप ही ज्यादा हैं। सरकारी आंकड़े के अनुसार यमन में भी चार भारतीय कैदी हैं, लेकिन सूत्र बताते हैं कि यमन की जेलों में भी भी दो हजार से ज्यादा भारतीय बंद हैं।
खाड़ी देशों में सर्वाधिक कैदी
विदेशी दलों में बंद भारतीयों में सर्वाधिक 1534 नागरिक सऊदी अरब में, उसके बाद 833 संयुक्त अरब अमीरात में बंद हैं। नेपाल में 614, ब्रिटेन में 437, अमेरिका में 391, पाकिस्तान में 352, मलेशिया में 319, कुवैत में 290, बांग्लादेश में 257, सिंगापुर में 158,इटली में 145, चीन में 117, बहरीन में 106, कतर में 96, ओमान में 85, म्यांमार व थाईलैंड में 76-76,श्रीलंका में 73, स्पेन में 60 और ईरान में 52 भारतीय कैदी के रूप में बंद हैं। अन्य जेलों में भी इसी प्रकार कैदी बंद हैं। जहां तक पाकिस्तान का सवाल है वहां की जेलों में सुरक्षा से जुड़े कर्मियों में 54 लोग 1971 की जंग में पाकिस्तानी जेलों में युद्धबंदी हैं। पाकिस्तान की जेलों में बंद ये भारतीय उन 172 मछुआरों से अलग है जिन्हें फरवरी में ही पाक द्वारा रिहा किया गया है। 
13Apr-2015


बसपा की सियासी जमीन पर संकट

चुनाव आयोग भी झटका देने की तैयारी मे
ओ.पी. पाल.
नई दिल्ली।
सोलहवीं लोकसभा चुनाव में राष्ट्रीय पार्टियों के रूप में चुनाव लड़ने वाली जिन तीन दलों के राष्ट्रीय दर्जा छीनने के कगार पर है उसमें बहुजन समाजवादी पार्टी भी शमिल है। जहां तक उत्तर प्रदेश की राजनीति का सवाल है उसमें बसपा की सियासी जमीन पर भी खतरा मंडराने लगा है।
उत्तर प्रदेश समेत पूरे भारत में बसपा अपना जनाधार बनाने की कवायद में जुटी मायावती को वर्ष 2012 के यूपी चुनाव में सत्ता से हटने के बाद झटके पर झटके लग रहे हैं। बसपा सोलहवीं लोकसभा चुनाव में अपना खाता तक नहीं खोल पाई। उत्तर प्रदेश में ही नहीं बसपा का हर राज्य में जनाधार घटता जा रहा है। खासकर इसका सबसे ज्यादा राजनीतिक लाभ उत्तर प्रदेश की सत्ताधारी समाजवादी पार्टी को होगा। इसका कारण यह भी माना जा रहा है कि वर्ष 1984 में जिस बसपा की स्थापना कांशीराम ने करते हुए मायावती को फर्श से अर्श तक पहुंचाया था। उसी कांशीराम के भाई दलबारा सिंह ने बसपा को चुनौती देने के लिए एक अलग से नई पार्टी बहुजन संघर्ष पार्टी (कांशीराम) बनाकर उत्तर प्रदेश में आगामी विधानसभा लड़ने का ऐलान भी कर दिया है। इसी पार्टी के बैनर तले कांशीराम की जयंती पर पिछले महीने दलित सम्मेलन में मायावती पर आरोप ही नहीं लगाए थे, बल्कि मायावती द्वारा निकाले गये पूर्व मंत्रियों और पूर्व सांसदों व विधायकों को इस पार्टी में जगह देना शुरू कर दिया है। इस सम्मेलन में कांशीराम के दलितों के उत्थान के अधूरे मिशन को पूरा करने के साथ बाबा साहब भीमराव अंबेडकर के सामाजिक राजनीतिक और आर्थिक मुक्ति आन्दोलन को पूरे देश में फैलाने का सकंल्प भी लिया गया। यूपी में समानांतर नए राजनीतिक समीकरण में इस सियासत को राजनीतिक गलियारे में मायावती के घटते जनाधार के रूप में देखा जा रहा है।
जल्द छीनेगा राष्टÑीय दल का दर्जा
16वीं लोकसभा चुनाव में राष्ट्रीय दलों में शुमार होने के बावजूद बसपा को 4.1 प्रतिशत वोट मिले, जो राष्ट्रीय दल को बरकरार रखने के लिए नाकाफी साबित हुए। लोकसभा चुनाव के दौरा पूरे भारत में बसपा के प्रदर्शन को लेकर चुनाव आयोग भी बसपा को उसकी राष्टÑीय दर्जे के दल की मान्यता खत्म करने की तैयारी में है। इसका कारण है कि लोकसभा चुनाव में बसपा राष्टÑीय दर्जा बरकरार रखने वाले नियमों के तहत वोट बैंक नहीं जुटा पायी यानि उसके जनाधार में भारी कमी आई। राजनीतिक विशेषज्ञों की माने तो चुनावी आंकड़ों के लिहाज से भी ऐसे संकेत मिलने लगे हैं कि देश भर मे बहुजन समाज पार्टी की लोकप्रियत मे तेजी से कमी आ रही है और इसका कारण सिर्फ मायावती की रणनीति और खुद के निर्णय लेने जैसे अडियल रवैये को माना जा रहा है। वर्ष 1986 मे पहली बार बहुजन समाज पार्टी ने लोकसभा चुनावों मे 86 सीटों पर चुनाव लड़ने के बाद मात्र एक सीट जीतकर 2.07 प्रतिशत मत हासिल किये थे। लोकसभा चुनावों मे बसपा का सबसे अच्छा प्रदर्शन वर्ष 2004 के आम चुनावों मे रहा, जिसमे उसने 435 सीटों पर चुनाव लड़कर 19 सीटें हासिल की थी और जबकि बसपा की सियासी जमीन खिसकने के लिए मायावतती को सबसे बड़ा झटका 16 वी लोकसभा मे लगा, जब सबसे ज्यादा 503 सीटों पर चुनाव लड़ने के बावजूद बसपा एक भी सीट नहीं जीत सकी। अभी तक अभी तक छह राष्ट्रीय राजनीतिक दल और 51 क्षेत्रीय दल हैं। चुनाव आयोग का निर्णय आते ही राष्ट्रीय राजनीतिक दलों की संख्या पांच और क्षेत्रीय राजनीतिक दलों की संख्या 52 हो जायेगी।
ऐसे चला झटकों का दौर
लोकसभा चुनाव के बाद से मायावती को लगातार झटके लगते आ रहे हैं। वैसे तो लोकसभा चुनाव से पहले ही प्रो. एसपी सिंह बघेल ने पार्टी छोड़ी और चुनावों के बाद बसपा के राष्ट्रीय महासचिव और पूर्व राज्य सभा सांसद अखिलेश दास गुप्ता, राज्य सभा सांसद जुगल किशोर भी अपनी नेता पर हमला बोलने में पीछे नहीं रहे। ऐसे में उनका पार्टी से नाता टूटना तो तय ही था। वैसे भी मायावती ने इन्हें ही नहीं कई कद्दावर नेताओं को बाहर का रास्ता दिखाया, जिनमें पूर्व सांसद दारा सिंह चैहान व कादिर राणा कि अलावा शाहिद अखलाक और हाल ही में विधायक बाला प्रसाद अवस्थी भी शामिल है।
13Apr-2015

शनिवार, 11 अप्रैल 2015

अंतर्राष्ट्रीय मानकों से होगी सड़क सुरक्षा

जल्द पारित होगा सड़क परिवहन एवं सुरक्षा विधेयक
केंद्र ने किया राज्यों के साथ विचार विमर्श
ओ.पी. पाल.
नई दिल्ली।
देश में सड़कों पर दुर्घटनाओं में इंसान की जिंदगी बचाने की कवायद में जुटी केंद्र सरकार सख्त कानून बनाने की दिशा में अंतर्राष्ट्रीय सुरक्षा मानकों पर मंथन कर रही है। राज्यों के साथ विचार विमर्श करके सरकार ने सड़क परिवहन व सुरक्षा विधेयक के मसौदे को अंतिम रूप देने का निर्णय लिया है। सरकार का इरादा संसद के मौजूदा बजट सत्र में ही इस विधेयक को पारित कराने का है।
केंद्र सरकार ने पुराने मोटर वाहन कानून की जगह नया सड़क परिवहन व सुरक्षा कानून लागू करने की कवायद को संसद के मौजूदा सत्र में ही अंजाम तक पहुंचाने का इरादा किया है। सरकार का लक्ष्य है कि संयुक्त राष्ट्र के कार्य दशक में वर्ष 2020 तक देश में सड़क दुर्घटनाओं में 50 प्रतिशत कमी लाई जाए। इसके लिए इस लक्ष्य में राज्यों के साथ समन्वय करके नये कानून को लागू किया जाना जरूरी है। गौरतलब है कि दुनियाभर में सबसे ज्यादा सड़कों पर दुर्घटनाओं में होने वाली मौत के मामले में भारत पहले पायदान पर है। सरकार इन मौतों को कम से कम करने के लिए यातायात के सख्त कानूनों को लागू करने के इरादे से सड़क सुरक्षा विधेयक का मसौदा तैयार करने में जुटी हुई है। इस विधेयक में केंद्र सरकार ने छह विकसित देशों अमेरिका, कनाडा, सिंगापुर, जापान, जर्मनी और ब्रिटेन के अंतर्राष्ट्रीय सड़क सुरक्षा मानकों को शामिल करने का निर्णय लिया है। सड़क परिवहन और राजमार्ग सचिव विजय छिब्बर के अनुसार राज्यों में तभी वास्तविक कार्य होगा जब संयुक्त राष्ट्र के कार्य दशक के अंतर्गत तय लक्ष्यों को हासिल करने और सड़क दुर्घटनाओं को कम करने का एजेंडा तेजी से आगे बढ़ेगा।
राज्यों के साथ विचार विमर्श
केंद्रीय सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्रालय में सचिव विजय छिब्बर ने शुक्रवार को राज्य सरकारों की अखिल भारतीय सड़क सुरक्षा और राज्यों के परिवहन विभाग के प्रतिनिधियों के साथ बैठक की। उन्होंने कहा कि सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय और अंतर्राष्ट्रीय सड़क फेडरेशन द्वारा संयुक्त रूप से मंथन करने का मकसद सड़क सुरक्षा के संबंध में राज्य सरकारों द्वारा किए गए विभिन्न उपायों के मूल्यांकन और उन्हें मंत्रालय से संभावित सहायता की प्रकृति को समझना। उन्होंने राज्य सरकार के प्रतिनिधियों से कहा कि वे लोगों की जान बचाने के उद्देश्य को ध्यान में रखते हुए सड़क अभियांत्रिकी की शिक्षा की दिशा में कदम उठाएं। उन्होंने कहा कि सड़क सुरक्षा से जुड़ी प्रमुख समस्याओं को दूर करने के लिए सिविल सोसाइटी को शामिल किया जाना चाहिए। बैठक के दौरान राज्यों में वर्तमान सड़क सुरक्षा परिदृश्य, कमियों को देखने वाले तथा इन समस्याओं का हल ढूंढने का प्रयास कर रहे प्रतिनिधियों ने भी अपनी प्रस्तुतियां दी।
अंतिम चरण में है मसौदा
राज्यों के परिवहन प्रतिनिधियों को सड़क परिवहन और राजमार्ग सचिव विजय छिब्बर ने बैठक के दौरान का कि केन्द्र सरकार का प्रस्तावित सड़क सुरक्षा विधेयक का मसौदा अंतिम चरण में है, जो कानूनी प्रावधान की जांच पड़ताल के लए विधि मंत्रालय के विधायी विभाग के पास है। यह भी उम्मीद है कि जल्द ही इस प्रस्तावित मसौदे को केंद्रीय मंत्रिमंडल को मंजूरी के लिए भेजा जाएगा, ताकि 20 अप्रैल से शुरू होने वाले संसद में बजट सत्र के अगले चरण में इसे पेश करके संसद की मंजूरी हासिल की जा सके। यह विधेयक मौजूदा मोटर वाहन कानून का स्थान लेगा।
11Apr

गुरुवार, 9 अप्रैल 2015

भारतीय विमानन सेवा की ऊंची उड़ान!

-डीजीसीए को मिला प्रथम श्रेणी का दर्जा
ओ.पी. पाल.
नई दिल्ली।
अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर संघीय विमानन प्रशासन ने भारतीय विमानन क्षेत्र में विकास की गति को बेहतर करार दिया। संघीय विमानन प्रशासन ने भारतीय नागर विमानन क्षेत्र में नियामक संगठन के रूप में नागर विमानन महानिदेशालय को प्रथम श्रेणी में सूचीबद्ध कर लिया है।
नागर विमानन मंत्रालय के अनुसार मंगलवार को भारत के दौरे पर आये अमेरिकी परिवहन विभाग में मंत्री एंथनी फॉक्स के नेतृत्व में अमेरिकी प्रतिनिधिमंडल ने यहां नागर विमानन मंत्री पशुपति अशोक गजपति राजू से मुलाकात की। इस दौरान अमेरिकी परिवहन विभाग के मंत्री एंथनी फॉक्स राजू को जानकारी दी कि अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर संघीय विमानन प्रशासन द्वारा नागर विमानन महा निदेशालय यानि डीजीसीए का ग्रेड़ बढ़ाकर प्रथम श्रेणी का दर्जा दे दिया है। फॉक्स के नेतृत्व में इस अमेरिकी प्रतिनिधिमंडल के साथ भारतीय नागर विमानन मंत्री राजू के अलावा डीजीसीए डा. प्रभात कुमार और मंत्रालय के प्रमुख अधिकारियों के साथ बैठक में विमानन सेवाओं से जुड़े विभिन्न मुद्दों पर चर्चा भी हुई। बैठक के दौरान भारत में नागर विमानन क्षेत्र के विकास के बारे में एक प्रस्तुति पेश की गई, जिसमें उन क्षेत्रों की पहचान को इंगित किया गया, जिनमें साझेदारी, तकनीकी सहयोग और 'मेक इन इंडिया' की दिशा में आगे बढ़ा जा सकता है। बैठक में बुनियादी ढांचा विकास, वायु सुरक्षा, विमानन सुरक्षा, कौशल विकास, एमआरओ, राष्ट्रीय विमानन विश्वविद्यालय और विमानों के निर्माण में सहयोग के अवसरों के बारे में विचार विमर्श किया गया। दोनों पक्षों ने भारत व अमेरिका के बीच संयुक्त कार्यदल की स्थापना करके लाभकारी संबंध स्थापित करने पर सहमति बनाई। अमरीकी प्रतिनिधिमंडल में विमानन और अंतर्राष्ट्रीय मामलों की सहायक मंत्री सुश्री सूसन कुरलैंड और अमरीकी व्यापार और विकास एजेंसी यानि यूएसटीडीए की निदेशक सुश्री लिओकेडिया जाक भी शामिल रही।
क्या है डीजीसीए
भारत में नागर विमानन क्षेत्र में विमानों के परिचालन के नियमों को लागू करने के लिए एक प्रमुख नियामक संगठन के रूप में नागर विमानन महानिदेशालय यानि डीजीसीए अपनी जिम्मेदारी निभाता आ रहा है। यह संगठन विमान अधिनियम-1937 के प्रावधानों के तहत देश के भीतर और देश से बाहर विमान यातायात सेवाओं का नियमन तय करता है। डीजीसीए को देश से बाहर हवाई यातायाता के निर्धारण के लिए अन्य देशों के साथ द्विपक्षीय और बहुपक्षीय समझौते करने की शक्ति भी प्रदान है। विमान चालकों, विमान रखरखाव इंजीनियरों और उड़ान इंजीनियरों के अलावा हवाई अड्डों और विमान वाहकों को लाइसेंस भी डीजीसीए से ही जारी होते हैं। वहीं यह संगठन नागरिक विमानों का पंजीकरण करने और भारत में विमानों के पंजीकरण में उड़ान योग्य आवश्यकताओं के बाद उपयुक्त विमानों को प्रमाणपत्र जारी करने की जिम्मेदारी भी निभाता है। अंतर्राष्ट्रीय उड़ानों के लिए डीजीसीए की जिम्मेदारी अंतर्राष्ट्रीय नागरिक विमानन संगठनों से संबद्ध कार्यों में समन्वय स्थापित करना भी है। उड़ान तथा ग्लाइडिंग क्लबों की प्रशिक्षण गतिविधियों पर निगरानी रखने के साथ डीजीसीए उड़ान के दौरान होने वाली दुर्घटनाओं की जांच और सरकार द्वारा नियुक्त न्यायालय या जांच समितियों को तकनीकी सहायता उपलब्ध कराने का काम भी करता है। इसके अलावा डीजीसीए का काम शिकागो संघि और उसके अन्य प्रावधानों तथा विमानन संबंधी अन्य अंतर्राष्ट्रीय समझौतों को देश में लागू करने की दिशा में विमानन संबंधी अन्य कानूनों में संशोधन करना है।
मोदी की कवायद
नागर विमानन मंत्रालय के सूत्रों ने बताया कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और अमरीकी राष्ट्रपति बराक ओबामा के बीच अमेरिका और भारत में हुई अनेक बैठÞकों के दौरान विमानन क्षेत्र में विकास को बढ़ाने के लिए कई मुद्दों पर चर्चा हुई थी। मोदी व ओबामा के बीच विमानन सेवा के क्षेत्र में डीजीसीए की भूमिका को भी सराहया गया था। उन्होंने विमानन क्षेत्र में 49 प्रतिशत एफडीआई लागू करने के साथ भारतीय विमानन सेवा को विश्वस्तरीय बनाने का संकल्प किया था। मेक इन इंडिया जैसे मिशन पर विमानन क्षेत्र में अंतर्राष्ट्रीय स्तर के संघीय विमानन प्रशासन ने भारत में बढ़ते विमानन विकास को देखते हुए डीजीसीए को प्रथम श्रेणी का दर्जा दिया है, जिसे प्रधानमंत्री मोदी की कवायद का नतीजा माना जा रहा है।
09Apr-2015

बुधवार, 8 अप्रैल 2015

छग समेत आठ राज्यों की जेलों को 609 करोड़

जेल सुधार में होगा मानवाधिकार आयोग की सिफारिशों पर विचार
ओ.पी. पाल
. नई दिल्ली।
जेल प्रशासनिक सुधार की दिशा में केंद्रीय सहायता के अलावा छत्तीसगढ़ समेत आठ राज्यों को तेरहवें वित्तीय आयोग द्वारा 609 करोड़ जारी किये गये हैं। मसलन पिछले एक दशक से भी ज्यादा समय से जेलों के सुधार की कवायद में जुटी केंद्र सरकार देश में विभिन्न राज्यों की शिथिलता को लेकर ज्यादा चिंतित है। इसके अलावा सरकार के पास जेलो में सुधार के लिए राष्टÑीय मानवाधिकार आयोग की 52 सिफारिश लंबित है जिन पर केंद्र सरकार विचार कर रही है।
केंद्र में मोदी सरकार आने के बाद दिसंबर में जेल सुधार के लिए राष्‍ट्रीय मानवाधिकार आयोग द्वारा एक राष्‍ट्रीय सम्मेलन के दौरान सभी राज्यों के प्रतिनिधियों की मौजूदगी में केंद्र सरकार को एक रिपोर्ट सौंपी गई थी, जिसमें आयोग द्वारा जेल प्रशासनिक सुधार की दिशा में 52 सिफारिशें की थी। इन सिफारिशों में मॉडल जेल मैनुअल-2003 को समुचित रूप से संशोधित करना भी शामिल था, जिसके लिए केंद्र सरकार पहले से ही एक समिति गठित कर चुकी है। गृहमंत्रालय के मुताबिक 2002-09 की सात वर्षीय योजना के तहत देश के 27 राज्यों को 1347.17 करोड़ की निधियां जारी कर चुकी है। इसके अलावा तेरहवें वित्तीय आयोग ने भी आठ राज्यों को अलग से 609 करोड़ की धनराशि जारी की है, जिसमें छत्तीसगढ़ को 150 करोड़, आंध्र प्रदेश को 90 करोड़, अरुणाचल को दस करोड़, केरल को 154 करोड़, महाराष्टÑ को 60 करोड़, मिजोरम को 30 करोड़, ओडिसा को 100 करोड़ तथा त्रिपुरा को 15 करोड़ रुपये की निधि शमिल है। इसके बावजूद केंद्र सरकार की चिंता इसलिए भी बढ़ जाती है कि अरुणाचल प्रदेश, अंडमान एवं निकोबार, बिहार, गोवा,केरल और सिक्किम राज्यों के अलावा किसी अन्य राज्य ने केंद्र सरकार के मॉडल जेल मैनुअल-2003 को अंगीकार करने का प्रयास ही नहीं किया। सूत्रों के अनुसार केंद्र सरकार निरंतर राज्यों को अपने-अपने जेल मैनुअल में सुधार करने के लिए दिशा निर्देश व सुझाव भी जारी करती आ रही है।
जेल सुधार के कारक
चौदहवें वित्त आयोग की सिफारिशों के मुताबिक जेलों के आधुनिकीकरण और जेल प्रशासनिक सुधार के लिए राज्यों के पास प्रयाप्त निधियां हैं, जिनसे सुधार किया जा सकता है। केंद्र सरकार के मुताबिक केंद्र से जारी राज्यों को सात वर्षीय योजना के तहत जारी निधियों से अभी तक राज्य सरकारों द्वारा 127 नए कारागार, मौजूदा कारागारों में 1579 अतिरिक्त बैरकों और 8658 स्टाफ क्वार्टरों का निर्माण किया गया है। जबकि राष्टÑीय मानवाधिकार आयोग की सिफारिशों में जेल सुधार के लिए प्रमुख रूप से अवधारणा, समीक्षा, विधायी कार्रवाई, भीड़भाड, विदेशी राष्टÑीयता वाले कैदी, महिला कैदी, जेल प्रशासन, कौशल का विकास तथा क्षमता संवर्धन, कैदियों के स्वास्थ्य की देखभाल, स्वच्छता और शुद्ध पेयजल, पर्यावरणीय मुद्दे, पुनर्वास, गैर सरकरी संगठन और सामाजिक कार्यकर्ताओं से संबन्धित 52 सिफारिशें की गई हैं।
08Apr-2015


रविवार, 5 अप्रैल 2015

पानी में जहर को पीने को मजबूर हैं हम!

-भू-जल में घुलता आर्सेनिक बन रहा बड़ी चुनौती
-गंगा किनारे बस्तियों के करोड़ो लोग प्रभावित

-हरियाणा के 17 जिले पी रहे जहरीला पानी
 -छत्तीसगढ़ के राजनन्दगांव का पेयजल भी खराब
ओ.पी. पाल
.नई दिल्ली।
अध्यात्म और मानव जीवन की दृष्टि से यह एक अच्छी पहल है कि मोदी सरकार गंगा स्वच्छता अभियान के तहत ‘नमामि गंगे’ मिशन को अंजाम तक पहुंचाना चाहती है। इसके बावजूद विश्व बैंक, विश्व स्वास्थ्य संगठन और अन्य एजेंसियों की वह रिपोर्ट केंद्र सरकार के लिए चुनौती से कम नहीं है, जिसमें गंगा के किनारे बसी शहरों व बस्तियों के लोग पानी के साथ जहर पीने को मजबूर हैं।
केंद्र सरकार ने ‘नमामि गंगे’ नाम से गंगा व अन्य नदियों के जल को प्रदूषण रहित बनाकर उसके जल को निर्मल बनाने का संकल्प बार-बार दोहराया ही नहीं है, बल्कि केंद्र सरकार ने गंगा स्वच्छता अभियान के लिए 2727 करोड़ रुपये का बजट भी मंजूर कर दिया है। हालांकि सरकार देश में जल प्रबंधन और हर इंसान को शुद्ध पेयजल मुहैया कराने की योजनाओं पर भी काम कर रही है, लेकिन गंगा के किनारे ही बसे करोड़ों लोग भूजल के आर्सेनिकयुक्त पानी को पीने के लिए मजबूर हैं और सरकार उन अध्ययन रिपोर्टो से भी वाकिफ है कि गंगा तेरा पानी अमृत की मान्यता अब वेद-पुराणों के पन्नों में ही सिमट गई है। मसलन बढ़ते शहरीकरण, औद्योगिक विषैले कचरे और अन्य प्रदूषणयुक्त तत्वों ने अन्य नदियों के साथ पवित्र गंगा के जल में भी आर्सेनिक जैसा जहर घुला हुआ है। वैज्ञानिकों और डब्ल्यूटीओ की ताजा रिपोर्ट ही नहीं, संसदीय स्थायी रिपोर्ट में भी इसका जिक्र आ चुका है कि अकेले गंगा के किनारे बसे कम से कम दस शहरों के करोड़ो लोग भूजल में आर्सेनिक युक्त पानी व ऐसे जहर से बुझे भोजन का उपयोग करने को मजबूर हैं। नतीजन आर्सेनिक जैसे धीमे जहर से जलजनित बीमारियों का प्रकोप इंसान के शरीर को खोकला कर रहा है। वैज्ञानिकों के मुताबिक गंगा के पानी के सेवन से आर्सेनिक से दांतों का पीला होना, दृष्टि कमजोर पड़ना, बाल जल्दी पकने लगना, कमर टेड़ी होना, त्वचा संबंधी बीमारियां प्रमुख हैं। आर्सेनिक पर हुए शोध इसे कैंसर, मधुमेह, फेफड़ों जैसे भयानक बीमारियों का कारण भी बता रहे हैं। हालांकि गंगा उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड, पश्चिम बंगाल से होकर गुजरती है, लेकिन ताजा अध्ययन रिपोर्ट के मुताबिक इनके अलावा हिमाचल प्रदेश, पंजाब, हरियाणा, दिल्ली, कर्नाटक, असम और मणिपुर राज्यों के भूजल में आर्सेनिक की मात्रा पाई गई है।
क्या कहती हैं रिपोर्ट
कृषि मंत्रालय से संबन्धित संसदीय स्थायी समिति ने तो जल प्रदूषण और जलप्रबंधन पर अपनी रिपोर्ट में अंतर्राष्टÑीय रिपोर्टो को भी पीछे छोड़ दिया है। मसलन शीतकालीन सत्र में पेश की गई डा. मुरली मनोहर जोशी की अध्यक्षता में गंगा किनारे ही नहीं, बल्कि देश के सात राज्यों बिहार, कर्नाटक, पंजाब, हिमाचल प्रदेश, उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल, असम और मणिपुर की 1991 बस्तियों के भूजल को पूरी तरह से आर्सेनिक की गिरμत में बता दिया। इनमें सबसे अधिक 1124 बस्तियां पश्चिम बंगाल, 424 असम और 357 बस्तियां बिहार की शामिल है। इसके साथ ही रिपोर्ट में देश के 13 राज्यों के 98 जिलों के भूजल में आर्सेनिक की अत्यधिक मात्रा होने का जिक्र किया गया है, जिसमें दस राज्यों के 86 जिले तो ऐसे हैं जहां आर्सेनिक की मात्रा निर्धारित मानकों की सीमा लांघ चुकी है। समिति की रिपोर्ट में आर्सेनिक जल पीने से सफेद दाग, रक्त की कमी, पैर में सूजन, यकृत, फेफडे और नस संबंधी बीमारियां, गैंगरीन और कैंसर जैसी घातक बीमारियों का जिक्र है। उत्तर प्रदेश, बिहार तथा पश्चिम बंगाल में गंगा के किनार बसे लोगों में भारी संख्या में आर्सेनिक से जुड़ी बीमारियां हो रही हैं।
हरियाणा व छत्तीसगढ़ में भी असर
हरियाणा राज्य के अंबाला, भिवानी, फरीदाबाद, फतेहाबाद, हिसार, झज्जर, जींद, करनाल, पानीपत, रोहतक, सिरसा, सोनीपत व यमुनानगर के भूजल में आर्सेनिक की मात्रा भी मानकता से कहीं अधिक है। जबकि इन जिलों में गुडगांव, कैथल, कुरूक्षेत्र, महेन्द्रगढ़ के अलावा आर्सेनिक की मात्रा के साथ इन जिलों में लौह की सांद्रता भी अधिक पाई गई है। दूसरी और छत्तीसगढ़ का राजनन्दगांव मात्र एक ऐसा जिला है जिसके भूजल में निर्धारित 0.01 मिग्रा/लीटर की मानकता से अधिक भूजल में आर्सेनिक की मात्रा मौजूद है।
05Apr-2015

शनिवार, 4 अप्रैल 2015

..तो एयर इंडिया के बेड़े से हटेंगे पुराने विमान!

-अगले साल तक आ जाएंगे सात और ड्रीमलाइनर
-विश्वस्तरीय सेवाओं के लिए जुड़ रहे 111 जहाज
ओ.पी. पाल
. नई दिल्ली
निजी विमानन सेवाओं से मुकाबला करने के लिए एयर इंडिया अब अपने बेड़े से पुराने विमान हटाने की तैयारी कर रही है। यात्रियों को विशिष्ट अनुभव प्रदान करने के लिए खरीदे गए सात और ड्रीमलाइन अगले साल तक आ जाएंगे। हालांकि शुरूआती दिनों में बोइंग ड्रीमलाइनर 787 भारत के लिए कुछ सुखद अनुभूति नहीं लेकर आया था। ड्रीमलाइनर के एयरफ्रेम, सॉμटवेयर और विंडशील्ड में क्रैक की लगातार आ रही लगातार आ रही शिकायतों ने एयर-एक्सपसर्टस की नींदें उड़ा दी थीं। भारत सरकार से करार के विपरीत ड्रीमलाइनर का कुल वजन सात टन ज्यादा पाकर 2008-06 में दिए गए 27 विमानों का सौदा विवादों में घिर गया था। बाद में करार के अनुरूप ड्रीमलाइनर की आपूर्ति सुनिश्चित करने के भरोसे के बाद इसी श्रृंखला में पहला विमान सितंबर 2012 में भारतीय एयरस्ट्रिप पर नमूदार हुआ था।
नागर विमानन मंत्रालय के अनुसार वर्ष 2005-06 में इंडियन एयर लाइंस का एयर इंडिया में विलय करने के बाद भारतीय विमान सेवाओं को विश्वस्तरीय बनाने की कवायद में 27 ड्रीमलाइनर समेत कुल 111 अत्याधुनिक विमानों की खरीद के लिए आर्डर दिये थे, जिनमें 27 बी-787 बोइंग विमान ड्रीमलाइनर भी शामिल थे। फिलहाल एयर इंडिया के बेड़े में 20 ड्रीमलाइनर विमानों समेत 101 विमानों को शामिल किया जा चुका है। ड्रीमलाइनर विमानों के अलावा एयर इंडिया ने आठ बी-777-200एलआर, 15 बी-777-300ईआर, 18 बी-737, चार ए-320, 19 ए-319 तथा 20 ए-321 विमानों की खरीद के लिए आर्डर दिया था। इनमें से अभी सात बी-787 ड्रीमलाइनर तथा तीन बी-777-300 ईआर विमानों को एयर इंडिया के बेड़े में आना बाकी है। एयर इंडिया के प्रबंध निदेशक रोहित नंदन बीसवें ड्रीमलाइनर मिलने के दौरान कह चुके हैं कि बाकी विमानों को अगले वर्ष यानि 2016 तक कंपनी अपने बेड़े में शामिल कर लेगी। नागर विमानन मंत्रालय का दावा है कि बोइंग 787 ड्रीमलाइनर विमान एयर इंडिया को हो रहे घाटे को पाटने में भी किफायदी साबित हो रहे हैं। खासकर र्इंधन और लम्बे सफर के लिये ज्यादा उपयुक्त नजर आ रहे हैं। जबकि बी-777-200एलआर विमानों से एयर इंडिया को र्इंधन व लंबे मार्गो के परिचालन में किफायती साबित नहीं हो पा रहे हैं। इसलिए बेड़े में शामिल आठ में से पांच को हटाकर उनकी बिक्री कर चुकी है।
तीन साल में पूरी होगी प्रक्रिया
नागर विमानन मंत्रालय के मुताबिक एयर इंडिया को आर्थिक रूप से मजबूत करने और सुरक्षित हवाई सेवा को विश्वसनीय बनाने की दिशा में नए और अत्याधुनिक विमानों को शामिल करने के सिलसिले के साथ ही बेड़े में शामिल पुराने यानि अप्रयोज्य विमानों को चरणबद्ध तरीके से हटाने की नीति पर भी कार्य किया जा रहा है। हालांकि ऐसे पुराने विमानों को हटाने के लिए कोई समय-सीमा डीजीसीए ने अभी निर्धारित नहीं की है। डीजीसीए डा. प्रभात कुमार के अनुसार एयर इंडिया ही नहीं अन्य भारतीय विमानन कंपनियों के विमानों की प्रचालन क्षमता को भी सुरक्षित बनाने के लिए यह प्रावधान अपनाया जा रहा है। डीजीसीए के सूत्रों के अनुसार देश में विमानों के आयात करने के लिए उनकी आयु के लिए एक प्रावधान लागू किया गया है, जिसमें 15 वर्ष से अधिक आयु वाले दबावयुक्त तथा 20 वर्ष से ज्यादा दबाव रहित विमानों को अनुसूचित, गैर-अनुसूचित तथा सामान्य विमानन उद्देश्यों के लिए आयात करने की अनुमति नहीं दी जा रही है। डीजीसीए से स्पष्ट कर दिया है कि नियमानुसार उड़ान प्रशिक्षण संगठनों के लिए विनिर्माण वर्ष से लेकर 30 वर्ष से अधिक आयु वाले विमानों का उड़ान प्रशिक्षण गतिविधियों के लिए किसी भी कीमत पर उपयोग नहीं किया जाएगा। इसलिए निर्देश जारी किये जा चुके हैं कि तीन साल के भीतर या 31 जनवरी 2018 तक चरणबद्ध रूप से विमानों को बेड़े से हटाना होगा।
खरीद सौदों पर कैग सख्त
देश में नागर विमानन क्षेत्र के इस कार्य के निष्पादन पर आठ सितंबर 2011को संसद में पेश हुई कैग रिपोर्ट में एयर इंडिया में खरीद के आर्डर के बावजूद विमानों की आमद में विलंब का मुद्दा प्रमुख रूप से शामिल रहा था। कैग की रिपोर्ट की जांच में संसद की लोकलेखा समिति यानि पीएसी ने नागर विमानन के निष्पादन पर हुई कार्रवाही की रिपोर्ट तलब की, जिसे नागर विमानन मंत्रालय ने इसी साल आठ जनवरी को पीएसी के सुपुर्द किया। इसलिए यह मामला अभी पीएसी के पास विचाराधीन है। दरअसल नए बोइंग विमानों की खरीद के लिए एयर इंडिया ने अमेरिकी कंपनी से सौदा किया था, जिसमें विलंब के कारण एयर इंडिया को ड्रीमलाइनर और अन्य विमानों पर ऊंची वित्तीय लागत चुकानी पड़ी है और कैग रिपोर्ट के अनुसार एयर इंडिया को आर्थिक नुकसान को सहना पड़ा है, इन्हीं कारणों पर पीएसी ने नागर विमानन मंत्रालय की कार्रवाही की रिपोर्ट तलब करके कैग रिपोर्ट की जांच की है। मंत्रालय के अनुसार इस जांच रिपोर्ट का विमानों की खरीद और उनकी आमद या बिक्री प्रभावित नहीं होगी।
04Apr-2015