सोमवार, 27 अप्रैल 2015

किन्नरों को सामाजिक दायरे में लाने की कवायद!

राज्यसभा में पारित विधेयक लोकसभा में होगा पेश
ओ.पी. पाल.
नई दिल्ली।
मोदी सरकार समाज के हाशिए पर जीवन जीने को मजबूर विपरीत लिंगी व्यक्तियों यानि किन्नरों के अधिकारों के संरक्षण पर गंभीर हैं। राज्यसभा में ध्वनिमत से पारित किये जा चुके विपरीत लिंग व्यक्तियों के अधिकार विधेयक-2014 को अब लोकसभा में पारित कराया जाना है। सरकार इस निजी विधेयक के जरिए विपरीत लिंगी व्यक्तियों को सामाजिक मान्यता देने की कवायद में है।
राज्यसभा में शुक्रवार को द्रमुक सांसद तिरुचि शिवा द्वारा शीतकालीन सत्र में पेश किये गये विपरीत लिंग व्यक्तियों के अधिकार विधेयक-2014 ध्वनिमत से पारित कर दिया गया। इस विधेयक में तीसरे लिंगी व्यक्तियों यानि ट्रांसजेंडस के अधिकार और हकदारियों,शिक्षा, कौशल विकास एवं रोजगार, सामाजिक सुरक्षा, स्वास्थ्य, पुनर्वास और आमोद-प्रमोद, समुचित सरकार के कर्तव्य और जिम्मेदारियों से जागरूकता बढ़ाने की बात कही गई है। वहीं विपरीत लिंगी व्यक्तियों के लिए राष्टÑीय और राज्य आयोग, अधिकार न्यायालय, अपराध एवं शास्तियां तथा प्रकीर्ण जैसी सुविधाओं को उसी प्रकार से लागू करने के प्रावधान है जिस तरह सामान्य समाज को अधिकार मिले हुए हैं। इस निजी विधेयक के मकसद और इसे लागू करने के कारणों में स्पष्ट किया गया है कि केंद्र सरकार ने हाल ही में देश में सामाजिक और आर्थिक विकास के उपाय किये हैं, लेकिन इसके बावजूद विपरीत लिंगी समुदाय की अनेक समस्याओं को इन उपायों से किनारे रखा गया है। पहले से ही तीसरे लिंगी व्यक्तियों को सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक न्याय से वंचित रखा जाता रहा है, जिसके कारण उन्हें शिक्षा, स्वास्थ्य, कानूनी सहायता, रोजगार जैसी सुविधाएं न होने के कारण सामाजिक न्याय नहीं मिल पाता। इसलिए विपरीत लिंगी समुदाय को लेकर उत्पन्न कलंक को मिटाने के लिए उन्हें सामाजिक दायरे में शामिल करना जरूरी है। इस विधेयक को पेश करते समय सांसद तिरुचि शिवा ने अंतर्राष्टÑीय सिविल और राजनैतिक अधिकार संबन्धी कानून में अनुच्छेद 17 का उल्लेख करते हुए तर्क दिया है कि किसी कि साथ भी उसकी निजता, परिवार, घर या वार्तालाप में गैर कानूनी हस्तक्षेप नहीं किया जा सकता। उनका तर्क था कि ऐसे समुदाय के लोगों को भी उन सभी अधिकारों की जरूरत है जो सामान्य समाज को दी जाती हैं। हालांकि इस विधेयक को अब लोकसभा में पारित कराया जाना है, जहां सरकार के सामने इस पर मुहर लगवाने में कोई परेशानी आने की गुंजाइश नहीं है और संसद की मुहर लगने के बाद राष्टÑपति की मंजूरी के बाद किन्नरों को सामाजिक और आर्थिक रूप से सभी अधिकार प्राप्त हो सकेंगे।
चार दशक बाद दोहराया इतिहास
संसद के इतिहास में यह भी एक इतिहास है जब 36 साल बाद संसद में किसी निजी विधेयक को मंजूरी मिली है। इससे पहले एक विधेयक वर्ष 1970 में पारित किया गया था। यह भी दिलचस्प पहलू है कि उच्च सदन में इस विधेयक को पारित कराने का किसी ने विरोध नहीं किया, लेकिन तीसरे लिंगी समुदाय के अधिकारों के संरक्षण में 12 दिसंबर को पेश किये गये इस विधेयक पर सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्री थावरचंद गहलौत ने सुप्रीम कोर्ट का हवाला देते हुए कहा कि सरकार इस बारे में एक विस्तृत विधेयक लेकर आएगी, जिसका तिरुचि शिवा ने विरोध किया और शिवा के विरोध का समूचे विपक्ष ने समर्थन किया। विपक्ष की एकजुटता पर जब मत विभाजन की मांग उठी तो सदन में मौजूद वित्त मंत्री एवं सदन के नेता अरुण जेटली ने सहमति बनाकर इस विधेयक को सर्वसम्मिति से पारित कराने की बात कही।
आरबीआई भी बैकपुट पर होगा
केंद्र सरकार की जनधन योजना में देश के हर व्यक्ति के बैंक खाते खोलने की योजना में तीसरे लिंगी समुदाय के व्यक्तियों को परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है। ऐसी शिकायत पर केंद्रीय रिजर्व बैंक के तहत तीसरे लिंगी लोगों को बैंक खाते खुलवाने के लिए आ रही समस्या को दूर करने के लिए नए फार्म छपवाने के निर्देश दिये थे, जिनमें तीसरे लिंग का कालम जोड़ने की बात कही गई थी, लेकिन इस विधेयक के पारित होने के बाद आरबीआई को अपने ये निर्देश भी वापस लेने पड़ सकते हैं।
27Apr-2015

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