सोमवार, 20 अप्रैल 2015

किसानों का हितैषी बनने की सियासी होड़!

भूमि अधिग्रहण: किसानों का हितैषी बनने की होड़
-सरकार और विपक्ष आर-पार के मूड़ में
ओ.पी. पाल
. नई दिल्ली।
देश के किसानों के सहारे सियासी जमीन मजबूत करने में जुटे राजनीतिक दल भूमि अधिग्रहण विधेयक को मुद्दा बनाकर किसानों के सामने अपने आपको हितैषी बनने का प्रयास कर रहे हैं। खासकर कांग्रेस को खोई हुई सियासी जमीन किसानों के सहारे मिलने की उम्मीद नजर आ रही है। इसलिए वह अन्य विपक्षी दलों से कहीं ज्यादा भूमि अधिग्रहण विधेयक के विरोध में मुखर नजर आ रही है। वहीं मोदी सरकार भी हर हालत में भूमि अधिग्रहण विधेयक को संसद में पारित कराने की रणनीति बनाने में पीछे नहीं है।
संसद में बजट सत्र के पहले चरण में मोदी सरकार भूमि अधिग्रहण विधेयक को राज्यसभा में संख्याबल में कमजोर होने के कारण पारित नहीं करा सकी थी, जिसके कारण सरकार को मजबूरन राज्यसभा के सत्र का सत्रावसान कराकर दिसंबर में लाए गये भूमि अधिग्रहण अध्यादेश की मियाद खत्म होने से पहले दूसरा अध्यादेश लाना पड़ा। इसलिए मोदी सरकार कल सोमवार से शुरू हो रहे बजट सत्र के दूसरे चरण में भूमि अधिग्रहण अध्यादेश को विधेयक के रूप में पारित करना चाहती है। विपक्षी दलों में इस अध्यादेश पर ज्यादा बिफरी कांग्रेस सरकार से आर-पार करने के मूड़ में हैं और किसानों की हितैषी बनने की गरज से रविवार को दिल्ली के रामलीला मैदान में शायद पहली बार किसान-खेत मजदूर रैली आयोजित की है। लोकसभा चुनाव के दौरान देशभर में अपनी सियासी जमीन खो चुकी कांग्रेस को उम्मीद है कि किसानों के मुद्दों को रिलांच करने से उनके सहारे उनकी सियासी जमीन वापस मिल सकती है। कांग्रेस की एक मजबूरी यह भी है कि वर्ष 2013 में उसकी यूपीए सरकार ने भी भूमि अधिग्रहण विधेयक को पारित कराने के लिए उसी तरह विपक्ष का विरोध झेला था, जिस प्रकार इस समय मोदी सरकार झेलती आ रही है। वहीं कांग्रेस के सामने किसानों के सामने यह दिखाने का प्रयास भी है कि उनकी सरकार में लागू भूमि अधिग्रहण कानून किसानों के हित में थे। कांग्रेस यदि मोदी सरकार के भूमि कानून का विरोध नहीं करेगी तो किसानों के हितैषी होने का श्रेय मोदी सरकार को चला जाएगा। ऐसा कांग्रेस बर्दाश्त करने के मूड में नहीं है। अन्य विपक्षी दलों का अपना सियासी मकसद है जिसके कारण वे भूमि अधिग्रहण विधेयक का विरोध कर
रहे हैं।
झुकने को तैयार नहीं सरकार
भूमि अधिग्रहण विधेयक पर स्वयं प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और उनकी सरकार के अन्य मंत्रियों ने इसका विरोध करने वाले अन्य दलों पर किसानोें को गुमराह करने का आरोप लगाने जैसे बयान भी दिये हैं। वहीं सरकार विपक्षी दलों के साथ इस मुद्दे पर कई बार आपसी सहमति बनाने का प्रयास करती नजर आई, लेकिन कांग्रेस इस मुद्दे पर अपनी साख बचाने की मजबूरी में शायद टस से मस होने को तैयार नहीं है। ऐसा नहीं है कि सरकार ने किसान संगठनों या किसानों से राय नहीं ली। संसद का सत्र शुरू होने से एक दिन पहले की राजनीति से यही लगता है कि मोदी सरकार भी भूमि अधिग्रहण के मुद्दे पर कांग्रेस जैसे विपक्षी दलों के दबाव में आने को तैयार नहीं है। यही कारण था कि जब रामलीला मैदान में कांग्रेस की रैली चल रही थी, तो प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी भी संसदीय पुस्तकालय के बालयोगी आॅडिटोरियम में भाजपा के तमाम सांसदों को भूमि अधिग्रहण मुद्दे पर किसानों व गरीबों के बीच इस विधेयक की खूबिया गिनाने की मुहिम चलाने का फरमान दे रहे थे। मसलन सरकार की इस रणनीति से लगता है कि केंद्र सरकार भी भूमि अधिग्रहण विधेयक को पारित कराने के पूरी ताकत झोंकने के लिए गंभीर है।
अप्रैल माह की मार
भूमि अधिग्रण विधेयक को पारित कराने के लिए वर्ष 2013 में कांग्रेसनीत यूपीए सरकार भी विपक्षी दलों से आम सहमति बनाने के लिए अप्रैल के महीने में प्रयास में जुटी थी। उसी तरह की मार इस मौजूदा साल के अप्रैल में मोदी सरकार भी मशक्कत कर रही है। यूपीए सरकार को इसके बावजूद वर्ष 2013 में बजट के दूसरे चरण में भी विधेयक पारित कराने में सफलता नहीं मिल सकी थी, जिसे मानसून सत्र में पारित कराया जा सका था। उसी तर्ज पर भूमि अधिग्रहण के लिए राजग सरकार को मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है। अब देखना है कि सरकार अपने रणनीतिक फार्मूले से बजट सत्र के दूसरे चरण में यह विधेयक पारित करा पाएगी या नहीं? यह अभी भविष्य के गर्भ में है।
20Apr-2015

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