रविवार, 5 अप्रैल 2015

पानी में जहर को पीने को मजबूर हैं हम!

-भू-जल में घुलता आर्सेनिक बन रहा बड़ी चुनौती
-गंगा किनारे बस्तियों के करोड़ो लोग प्रभावित

-हरियाणा के 17 जिले पी रहे जहरीला पानी
 -छत्तीसगढ़ के राजनन्दगांव का पेयजल भी खराब
ओ.पी. पाल
.नई दिल्ली।
अध्यात्म और मानव जीवन की दृष्टि से यह एक अच्छी पहल है कि मोदी सरकार गंगा स्वच्छता अभियान के तहत ‘नमामि गंगे’ मिशन को अंजाम तक पहुंचाना चाहती है। इसके बावजूद विश्व बैंक, विश्व स्वास्थ्य संगठन और अन्य एजेंसियों की वह रिपोर्ट केंद्र सरकार के लिए चुनौती से कम नहीं है, जिसमें गंगा के किनारे बसी शहरों व बस्तियों के लोग पानी के साथ जहर पीने को मजबूर हैं।
केंद्र सरकार ने ‘नमामि गंगे’ नाम से गंगा व अन्य नदियों के जल को प्रदूषण रहित बनाकर उसके जल को निर्मल बनाने का संकल्प बार-बार दोहराया ही नहीं है, बल्कि केंद्र सरकार ने गंगा स्वच्छता अभियान के लिए 2727 करोड़ रुपये का बजट भी मंजूर कर दिया है। हालांकि सरकार देश में जल प्रबंधन और हर इंसान को शुद्ध पेयजल मुहैया कराने की योजनाओं पर भी काम कर रही है, लेकिन गंगा के किनारे ही बसे करोड़ों लोग भूजल के आर्सेनिकयुक्त पानी को पीने के लिए मजबूर हैं और सरकार उन अध्ययन रिपोर्टो से भी वाकिफ है कि गंगा तेरा पानी अमृत की मान्यता अब वेद-पुराणों के पन्नों में ही सिमट गई है। मसलन बढ़ते शहरीकरण, औद्योगिक विषैले कचरे और अन्य प्रदूषणयुक्त तत्वों ने अन्य नदियों के साथ पवित्र गंगा के जल में भी आर्सेनिक जैसा जहर घुला हुआ है। वैज्ञानिकों और डब्ल्यूटीओ की ताजा रिपोर्ट ही नहीं, संसदीय स्थायी रिपोर्ट में भी इसका जिक्र आ चुका है कि अकेले गंगा के किनारे बसे कम से कम दस शहरों के करोड़ो लोग भूजल में आर्सेनिक युक्त पानी व ऐसे जहर से बुझे भोजन का उपयोग करने को मजबूर हैं। नतीजन आर्सेनिक जैसे धीमे जहर से जलजनित बीमारियों का प्रकोप इंसान के शरीर को खोकला कर रहा है। वैज्ञानिकों के मुताबिक गंगा के पानी के सेवन से आर्सेनिक से दांतों का पीला होना, दृष्टि कमजोर पड़ना, बाल जल्दी पकने लगना, कमर टेड़ी होना, त्वचा संबंधी बीमारियां प्रमुख हैं। आर्सेनिक पर हुए शोध इसे कैंसर, मधुमेह, फेफड़ों जैसे भयानक बीमारियों का कारण भी बता रहे हैं। हालांकि गंगा उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड, पश्चिम बंगाल से होकर गुजरती है, लेकिन ताजा अध्ययन रिपोर्ट के मुताबिक इनके अलावा हिमाचल प्रदेश, पंजाब, हरियाणा, दिल्ली, कर्नाटक, असम और मणिपुर राज्यों के भूजल में आर्सेनिक की मात्रा पाई गई है।
क्या कहती हैं रिपोर्ट
कृषि मंत्रालय से संबन्धित संसदीय स्थायी समिति ने तो जल प्रदूषण और जलप्रबंधन पर अपनी रिपोर्ट में अंतर्राष्टÑीय रिपोर्टो को भी पीछे छोड़ दिया है। मसलन शीतकालीन सत्र में पेश की गई डा. मुरली मनोहर जोशी की अध्यक्षता में गंगा किनारे ही नहीं, बल्कि देश के सात राज्यों बिहार, कर्नाटक, पंजाब, हिमाचल प्रदेश, उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल, असम और मणिपुर की 1991 बस्तियों के भूजल को पूरी तरह से आर्सेनिक की गिरμत में बता दिया। इनमें सबसे अधिक 1124 बस्तियां पश्चिम बंगाल, 424 असम और 357 बस्तियां बिहार की शामिल है। इसके साथ ही रिपोर्ट में देश के 13 राज्यों के 98 जिलों के भूजल में आर्सेनिक की अत्यधिक मात्रा होने का जिक्र किया गया है, जिसमें दस राज्यों के 86 जिले तो ऐसे हैं जहां आर्सेनिक की मात्रा निर्धारित मानकों की सीमा लांघ चुकी है। समिति की रिपोर्ट में आर्सेनिक जल पीने से सफेद दाग, रक्त की कमी, पैर में सूजन, यकृत, फेफडे और नस संबंधी बीमारियां, गैंगरीन और कैंसर जैसी घातक बीमारियों का जिक्र है। उत्तर प्रदेश, बिहार तथा पश्चिम बंगाल में गंगा के किनार बसे लोगों में भारी संख्या में आर्सेनिक से जुड़ी बीमारियां हो रही हैं।
हरियाणा व छत्तीसगढ़ में भी असर
हरियाणा राज्य के अंबाला, भिवानी, फरीदाबाद, फतेहाबाद, हिसार, झज्जर, जींद, करनाल, पानीपत, रोहतक, सिरसा, सोनीपत व यमुनानगर के भूजल में आर्सेनिक की मात्रा भी मानकता से कहीं अधिक है। जबकि इन जिलों में गुडगांव, कैथल, कुरूक्षेत्र, महेन्द्रगढ़ के अलावा आर्सेनिक की मात्रा के साथ इन जिलों में लौह की सांद्रता भी अधिक पाई गई है। दूसरी और छत्तीसगढ़ का राजनन्दगांव मात्र एक ऐसा जिला है जिसके भूजल में निर्धारित 0.01 मिग्रा/लीटर की मानकता से अधिक भूजल में आर्सेनिक की मात्रा मौजूद है।
05Apr-2015

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