मंगलवार, 21 अप्रैल 2015

भूमि अधिग्रहण: हर चुनौती से निपटने को तैयार सरकार!

-आमसहमति से और संशोधन पर भी हो रहा है विचार

-विपक्ष अड़ा रहा तो संयुक्त अधिवेशन होगा अंतिम विकल्प
ओ.पी. पाल. नई दिल्ली।
संसद में बजट सत्र के दूसरे चरण में भूमि अधिग्रहण मुद्दे पर विरोध करने के लिए पहले ज्यादा आक्रमक नजर आ रहे विपक्षी दलों के मूड़ को केंद्र सरकार शायद भांप चुकी है। यही कारण है कि भूमि अधिग्रहण विधेयक को हर हालत में संसद में पारित कराने के इरादे से सरकार हर तरह की चुनौतियों से निपटने को तैयार है। विपक्ष के विरोध करने की नीति के आधार पर विधेयक में कुछ ओर संशोधन लाने के लिए आम सहमति बनाने का प्रयास भी केंद्र सरकार के रणनीतिक फार्मूले में शामिल है। यदि विपक्ष इस मुद्दे पर विरोध की जिद पर अड़िग रहा तो सरकार संयुक्त अधिवेशन बुलाकर भूमि अधिग्रहण विधेयक को अंजाम तक पहुंचाने के लिए अंतिम विकल्प की राह पर होगी।
संसद में बजट के दूसरे चरण में ही भूमि अधिग्रहण विधेयक को खासकर उच्च सदन में पारित कराने के लिए स्वयं प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने जिस तरह से विभिन्न दलों के सहयोग के साथ ही बेहतर फैसले करने की बात कही है, उससे संकेत हैं कि भूमि अधिग्रहण विधेयक पर विपक्षी दलों के साथ आम सहमति बनाने का भी प्रयास किया जाएगा। सूत्रों के अनुसार सरकार इसमें कुछ और संशोधन ला सकती है। इन संशोधनों में सरकार सहमति के प्रावधान को वापस ला सकती है, भले ही सहमति को 70-80 फीसदी से घटाकर 50-60 फीसदी पर सहमति बना सकती है। वहीं भूमि अधिग्रहण की निगरानी और किसानों के हितों में सांसदों-विधायकों की समितियां बनाने का प्रस्ताव शामिल किये जाने के भी संकेत हैं। इसी प्रकार नगरीय निकायों की सीमाओं का दायरा बढ़ाते हुए शहरी इलाकों से सटे किसानों की अधिग्रहित भूमि पर ज्यादा मुआवजा देने का प्रावधान शामिल किया जा सकता है। लोकसभा में सरकार को किसी भी मुद्दे को अंजाम तक ले जाने में कोई दिक्कत नहीं है, लेकिन राज्यसभा में विपक्ष के बहुमत और उसके इस मुद्दे पर ज्यादा आक्रमकता सरकार के लिए चिंता का कारण बनी हुई है। इसी चुनौती से निपटने की रणनीति पर सरकार आगे बढ़ने का प्रयास कर रही है।
मजबूरी में होगा अंतिम रास्ता
राज्यसभा में बजट सत्र के पहले चरण में सरकार लोकसभा में पारित होने के बावजूद भूमि अधिग्रहण विधेयक को पेश तक भी नहीं कर पाई थी। इस दूसरे चरण में विपक्षी की आक्रमकता कुछ ज्यादा ही विरोध करने की नजर आ रही है। सूत्रों के अुनसार यदि सरकार कुछ और संशोधन करने जैसे मुद्दों पर भी विपक्षी दलों के साथ आम सहमति बनाने में सफल नहीं होती तो उसके पास अंतिम संवैधानिक विकल्प संयुक्त सत्र बुलाने के अलावा कोई नहीं है। सरकार को भूमि अधिग्रहण विधेयक को पारित कराने के लिए इस राह पर आने के लिए मजबूर होना पड़ सकता है। यदि ऐसी नौबत आई तो भारत के इस लोकतांत्रिक इतिहास में यह चौथा मौका होगा, जब कोई कानून संयुक्त सत्र में पारित कराया जाएगा। इससे पहले दहेज निरोधक कानून, बैंकिंग सर्विस कमीशन रिपील कानून तथा पोटा कानून बनाने के विधेयक को संयुक्त सत्र में पारित कराया जा चुका है। गौरतलब है कि बजट सत्र के पहले चरण में लोकसभा में नौ संशोधनों के साथा पारित भूमि अधिग्रहण विधेयक के राज्यसभा में अटकने के कारण सरकार को फिर से दूसरा अध्यादेश लाने के लिए गत 3 अप्रैल को पहले अध्यादेश की मियाद खत्म होने की स्थिति में दूसरा अध्यादेश लाना पड़ा।
सरकार के सामने बड़ी चुनौती
राज्यसभा में संख्याबल कम होने की मजबूरी में ही शायद एक दिन पहले संसदीय कार्य मंत्री वेंकैया नायडू ने सभी भाजपा सांसदों से पूरे समय सदन में मौजूद रहने को कहा है। इसका कारण साफ है कि समूचा विपक्ष भूमि मुद्दे पर लामबंद होने के साथ आक्रमक भी है। भूमि अधिग्रहण मुद्दे पर किसानों के सहारे रिलांच होती कांग्रेस की आंदोलनात्मक रण्नीति, जनता परिवार का विलय, बेमौसम बारिश से दुखी किसानों की खुदकशी भी सरकार के खिलाफ विपक्षी दलों को ताकत दे रही है, जो किसी चुनौती से कम नहीं है। ऐसे में विपक्ष सरकार के सामने भूमि के अलावा अन्य लंबित विधेयकों में भी रोड़ा बन सकता है। सूत्रों के अनुसार ऐसी ही चुनौतियों से निपटने के लिए सरकार सकारात्मक और सकर्तकता के आधार पर अपनी रणनीति बनाने का प्रयास कर रही है।
21Apr-2015

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