सोमवार, 30 मई 2022

मंडे स्पेशल: प्रीमियम से ज्यदा क्लेम, फिर भी फसल बीमा से दूर भाग रहे किसान

योजना के स्वैच्छिक होते ही दो लाख किसान हो गए योजना से बाहर 
बीमा कंपनियों क्लेम के लिए कटवाती है चक्कर 
कृषि अधिकारी भी नहीं करते सुनवाई 
ओ.पी. पाल.रोहतक। 
प्रदेश में प्रीमियम से ज्यादा भुगतान होने के बावजूद किसानों का फसल बीमा योजना से मोह भंग हो रहा है। योजना को अनिवार्य से स्वैच्छिक करते ही एक चौथाई धरतीपुत्र इसके दायरे से बाहर निकल गए। कृषि अधिकारियों की लालफीताशाही और बीमा कंपनियों की चक्कर कटवाओं नीति जिम्मेदार नजर आ रहे हैं। फसल को नुकसान होने पर पहले तो कृषि अधिकारी इस पर संज्ञान लेने की जहमत नहीं उठाते। अगर वो क्लेम फाइल तैयार कर भी दें, तो बीमा कंपनियां चक्कर कटवा-कटवाकर बेचारे किसान के जूते घीसा देती हैं। जिसके चलते ग्रामीण स्तर पर बीमा योजना को लेकर रुचि कम होने लगी है। किसान फसल बीमा योजना को मोटा मुनाफा कमाने का साधन बता रहे हैं। जबकि सच्चाई ये हैं कि 2016-17 से लेकर 20-21 तक केंद्र, राज्य सारकर और किसानों द्वारा 4187.32 करोड रुपये को बीमा प्रीमियम भरा गया और बीमा कंपनियों ने अगल-अलग समय में किसानों को नुकसान होने पर 4192.70 करोड रुपये के क्लेम का भुगतान कर दिया। उधर इस योजना में क्लेम को लेकर किसानों की समस्याओं व शिकायतों का निस्तारण करने की दिशा में प्रदेश सरकार ने ऑनलाइन पोर्टल शुरू किया है, जिस पर किसान फसल बीमा योजना से जुड़ी अपनी कोई भी शिकायत इस पोर्टल पर दर्ज करा सकेंगे, जिनकी समस्याओं का शीघ्र समाधान किया जाएगा। 
संख्या में ऐसे आई गिरावट 
हरियाणा में मार्च 2022 तक की स्थिति के अनुसार फसल बीमा योजना के लिए रबी मौसम में गेंहू की फसल के लिए 5.38 लाख किसानों ने ही आवेदन किया है। जबकि रबी वर्ष 2021 में 7.34 लाख किसानों के आवेदनों में से 5.08 लाख किसानों का ही बीमा किया गया। रबी के साल 2020 में 7.69 लाख में से 5.60 लाख किसानों को योजना में शामिल किया गया। रबी 2019 सीजन की बात की जाए तो 9.02 लाख में से 6.89 लाख किसानों को योजना के दायरे में शामिल किया गया। इस सीजन की फसल के लिए साल 2018 में बीमा के लिए 7.75 लाख ने आवेदन किया था, लेकिन योजना से करीब छह लाख किसानों को जोड़ा गया। यही स्थिति योजना को स्वैच्छिक करने के बाद खरीफ मौसम की फसलों के बीमा को लेकर सामने आ रही है। मसलन जहां वर्ष 2019 में करीब सात लाख किसान बीमित हुए थे, तो वहीं साल 2020 में यह संख्या घटकर 6.39 लाख और साल 2021 में भारी गिरावट के साथ बीमित किसानों की संख्या 5.30 लाख रह गई है। 
एक चौथाई किसानों को भी नहीं मिला लाभ 
प्रदेश में प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना के तहत अब तक 85 लाख से भी ज्यादा किसान बीमा करा चुके हैं। राज्य सरकार भले ही इस योजना के तहब अब तक 20.80 लाख किसानों को 5139 करोड़ रुपए से ज्यादा की बीमा क्लेम राशि वितरण करने का दावा कर रही है। इसके विपरीत कृषि मंत्रालय के जारी आंकड़ो पर गौर की जाए तो प्रदेश में 2016-17 से 2020-21 तक योजना के तहत किसानों को 4203.7 करोड़ के दावे के विपरीत 4187.32 करोड़ रुपये की बीमा क्लेम राशि दी जा चुकी है। हालांकि किसानों को मिली यह राशि उनके द्वारा जमा कराए गयी प्रीमियम राशि 12349.6 करोड़ रुपये से लगभी चार गुना है। प्रीमियम की बाकी राशि का भुगतान केंद्र और राज्य सरकार ने जमा कराया है। आंकड़ो के मुताबिक इन पांच सालों में हरियाणा के किसानों ने योजना के पहले चार साल में करीब 59 लाख किसानों ने अपने करीब 83 लाख हेक्टर कृषि क्षेत्र के लिए 52,746.72 करोड़ रुपये का बीमा कराया था, जिसमें से करीब 16 लाख किसानों को महज 3076.2 करोड़ के दावे के विपरीत 3071.5 करोड़ रुपये की बीमा क्लेम की राशि का भुगतान किया गया है, जबकि बीमा कंपनियों में कुल 2878.12 करोड़ रुपये का प्रीमियम जमा किया गया। इसमें 911 करोड़ रुपये किसानों का हिस्सा था। दूसरी ओर राज्य सरकार का दावा है कि किसानों के हित में सरकार ने प्राकृतिक आपदा से खराब फसलों के लिए मुआवजा राशि 12 हजार रुपये से बढ़ाकर 15 हजार रुपये प्रति एकड़ कर दिया है। 
कम उत्पादन पर भी मिलता है मुआवजा 
केंद्र की इस बीमा योजना में किसानों को फसल खराब के साथ औसत उत्पादन के आधार पर भी मुआवजे का प्रावधान है, जिसके लिए गांव को इकाई मानते हुए एक फसल की चार जगह सैंपलिंग की जाती है। सैंपलिंग के लिए खेत का चयन कृषि विभाग के निदेशालय स्तर पर होता है। विभग के अनुसार गांव के चारों तरफ की भूमि का चयन किया जाता है। चारों सैंपल का औसत उत्पादन ही गांव का उत्पादन मानने की व्यवस्था के जरिये ही किसानों को किसी तरह की आपदा से ज्यादा मुआवजा दिया जाता है। 
जलमग्न फसलों पर मांगा मुआवजा 
हरियाणा कृषि विभाग के आंकड़ों के अनुसार इस साल राज्य के 16,617 ऐसे किसानों ने भी प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना के तहत मुआवजे के लिए आवेदन किया है, जिनकी बेमौसम बारिश के कारण 50 हजार एकड़ क्षेत्र में गेहूं, सरसों, जौ और चना की फसल को 50 से 100 प्रतिशत नुकसान का दावा किया है। ऐसे आवेदन करने वालों में सर्वाधिक 2538 रेवाड़ी, 2110 अंबाला, 1806 सोनीपत, 1770 रोहतक, 1435 नूंह, 1433 चरखी दादरी, कुरुक्षेत्र से 930 कुरुक्षेत्र, 910 भिवानी और 901 किसान जींद जिले के शामिल हैं। 
ये कंपनियां करती है बीमा 
हरियाणा में किसानों की फसलों का बीमा करने के लिए अधिकृत तीन बीमा कंपनियां एग्रीकल्चर इंश्योरेंस, रिलायंस जनरल इंश्योरेंश और बजाज कंपनी द्वारा बीमा क्लेम करने वाले किसानों को आपत्तियों के नाम से प्रीमियम से भी कम राशि का भुगतान करने में भी परेशानी पेश कर रही है। हालांकि प्रदेश सरकार किसानों की सुविधा के लिए बीमा संबन्धी समस्याओं के लिए ऑनलाइन पोर्टल भी शुरू कर चुकी है। सरकार भले ही किसानों की बीमा योजना को लेकर उनके हित में दावे कर रही हो, लेकिन बीमा क्लेम की राशि न मिलने के कारण प्रदेश के विभिन्न जिलों में किसानों को आंदोलन तक करने के लिए मजबूर होना पड़ रहा है। 
क्या है पीएम फसल बीमा योजना 
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 13 जनवरी 2016 को शुरू की गई पीएम फसल बीमा योजना के तहत किसान अपनी फसलों का बीमा कराते आ रहे हैं। बीमा के लिए किसानों को खरीफ फसलों के लिए केवल 2 प्रतिशत एवं रबी फसलों के लिए 1.5 प्रतिशत का एक समान प्रीमियम का भुगतान करना होता है। इसके अलावा वार्षिक वाणिज्यिक और बागवानी फसलों के मामले में 5 प्रतिशत प्रीमियम का भुगतान करने का प्रावधान है। बीमा के शेष प्रीमियम की राशि में केंद्र और राज्य सरकार का भुगतान कर रही है। जबकि किसी भी प्रकार की प्राकृतिक आपदाओं में फसल हानि के लिए किसानों को पूर्ण बीमित राशि प्रदान करने का प्रावधान है। 
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किसानों को राहत देने का प्रयास 
प्रदेश पीएम फसल बीमा योजना के तहत पांच हजार करोड़ से ज्यादा किसानों को उनकी फसलों के नुकसान के दावे की बीमा राशि वितरित की जा चुकी है। इस योजना के तहत देशभर में यह भी प्रावधान है कि यदि किसी बीमा कंपनी के पास 135 फीसदी से ज्यादा का बीमा दावा आता है, तो उसकी राशि में सरकार शेयर करेगी। वहीं योजना में बदलाव के बाद जलभराव वाले क्षेत्रों में खरीफ सीजन में बीमा नहीं होता। फिर भी राज्य में जांच रिपोर्ट के आधार पर राजस्व विभाग अपने नियमों के अनुसार मुआवजा देता है, ताकि किसानों को राहत दी जा सके। लेकिन पीएम फसल बीमा योजना का विकल्प चुनने वाले किसानों को मुआवजा नहीं दिया जाता। -जगराज दांडी, संयुक्त निदेशक-कृषि एवं किसान कल्याण विभाग हरियाणा 
30May-2022

चौपाल: हरियाणवी सिनेमा का सूखा खत्म करने को तैयार फिल्म ‘दादा लख्मी’

सांगी पं.लखमीचंद की बायोपिक को लेकर बनी हरियाणवी फिल्म 
-ओ.पी. पाल 
रियाणा की लोक संस्कृति में एक लंबा इतिहास रखने वाली लुप्त होती रागणियों की संस्कृति को जीवंत रखने के लिए सूबे के लोक कलाकर नए आयाम के साथ संजोने का प्रयास कर रहे हैं। इसी मकसद से बॉलीवुड के अभिनेता यशपाल शर्मा के निर्देशन में सांगों में रागणियों के जनक और लोककवि पंडित लख्मीचंद की बायोपिक को लेकर बनी हरियाणवी फिल्म ‘दादा लख्मी’ ने तो सिनेमा घरों आने से पहले ही चौतरफा अपने रंग बिखेरते नजर आ रही है। सही मायने में उम्मीद की जा रही है कि ‘हरियाणवी फिल्म ‘दादा लख्मी’ हरियाणवी सिनेमा को जीवंत करने का सबब बनेगी। हरियाणवी लोक संस्कृति की अपनी एक पहचान रही है और चन्द्रावल’ के बाद यही ऐसी हरियाणवी फिल्म बनाई गई है, जिसमें सूर्य कवि पंडित लख्मीचंद का रागिनी प्रेम, संघर्षगाथा, जीवनशैली और लोक कला पर आधारित हरियाणवी संस्कृति, सभ्यता, भाषा, रिति-रिवाज और तमाम सामाजिक तानाबाना समायोजित किया गया है। ‘पंडित लखमी चंद’ जिन्हें हरियाणा का सांग सम्राट, भविष्यवक्ता’ कबीरदास’ शेक्सपीयर और सूर्य कवि भी कहा गया है। हरियाणवी फिल्म ‘दादा लख्मी’ जल्द ही आने वाले दिनों में रिलीज होने की उम्मीद है। इस फिल्म की शूटिंग हरियाणा के विभिन्न हिस्सों के अलावा राजस्थान के इलाकों में भी हुई है। दो भागों में बन रही फिल्म के पहले भाग में पंडित लख्मी चंद के जीवन के तीन पड़ाव फिल्माये गये हैं। फिल्म में सांगी पं.लखमीचंद के बचपन की भूमिका योगेश वत्स ने चेहरे पर गंभीरता के साथ संवादों से बड़े अच्छे से निभाया है। जबकि युवा रूप में हितेश शर्मा ने अपनी अभिनय प्रतिभा का बखूबी प्रदर्शन किया है। फिल्म का यह प्रथम भाग इन्हीं दो पात्रों के ईर्दगिर्द है। जबकि परिपक्व लखमीचंद का अभिनय खुद यशपाल शर्मा ने निभाया है। फिल्म के पहले भाग में लख्मीचंद की पहले तीन पड़ाव पर फोकस है और यशपाल शर्मा का बहुत थोड़ा अभिनय आरंभ में दिखाया गया है, बाकी दूसरे भाग की फिल्म में उन्हीं की भूमिका होगी। जबकि लख्मी की मां का अभिनय फिल्म अभिनेत्री मेघना मलिक कर रही है। हरियाणवी लेखक राजू मान एवं रोशन शर्मा ने संपूर्ण अनुसंधान करने के बाद इस फिल्म की पटकथा लिखी है। फिल्म का संगीत प्रसिद्ध संगीतकार उत्तम सिंह ने दिया है। सेंसर बोर्ड ने ढाई घंटे की इस फिल्म के पहले भाग को मंजूरी दे दी है, जिसके बाद लोगों को इसके रिलीज होने का इंतजार है। फिल्म में सांगी पं. लखमीचंद के बचपन की भूमिका योगेश वत्स ने गंभीरता के साथ अपने संवादों से कहीं-कहीं गुदगुदाते हुए निभाई है। युवा रूप में हितेश शर्मा ने अपनी अभिनय प्रतिभा का बखूबी प्रदर्शन किया है। दरअसल फिल्म का यह प्रथम भाग इन्हीं दो पात्रों पर बुना गया है। परिपक्व लखमीचंद का अभिनय खुद यशपाल शर्मा ने निभाया है। ‘पंडित लखमी चंद’ जिन्हें हरियाणा का ‘सांग सम्राट’, ‘भविष्यवक्ता’, कबीरदास’, ‘शेक्सपीयर’,’सूर्य कवि’ भी कहा गया है।
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इन कलाकारों की भूमिका भी कम नहीं 
हरियाणवी सिनेमा के जाने-माने अभिनेता-लेखक राजू मान ने 'दादा लखमी' की कथा को बड़ी शालीनता से लिखा है। जिनके लिखे डायलॉग भी काफी दमदार बने हैं। संवाद कई जगह आंखें नम कर देते हैं तो कहीं-कहीं दर्शकों को तालियां बजाने के लिए भी विवश कर डालते हैं। इसके अलावा फिल्म में लख्मी के गुरु मानसिंह की भूमिका में बॉलीवुड स्टार राजेंद्र गुप्ता हैं। जबकि हर्षित राजावत, शाहरुख,शारदा, रमा बल्हारा, सैम, शौर्य गोयल, अदिति, सान्या, अमन जीत, राजेंद्र भाटिया, सतीश कश्यप, मुकेश मुसाफिर, प्रतिभा शर्मा, सुमित्रा हुड्डा पेढनेकर, जे.डी. बल्लू, सोनू सिलन, नवीन भिवानी, रवि चौहान, राजू मान, रामपाल बल्हारा, रोहित बच्ची, साहिल बाजवा, अंकित भारद्वाज, योगेश भारद्वाज, ऋषभ शर्मा, आशिमा शर्मा, तन्वी सुहासिनी, स्नेहा वर्मा, आकांक्षा भारद्वाज, अखिल चौधरी, अल्पना सुहासिनी, ऋतु सिंह, मीनू मालिक, सुदेश कुमारी, अर्चना सुहासिनी,चेतन कौशिक, वी एम बेचैन, रघुविंदर मालिक, राजेंद्र गौतम, महा सिंह पूनिया, युद्धवीर मालिक, मनीष जोशी, प्रेम देहाती,अशोक, इशू गौड़,हरीश कटारिया, दुष्यंत, गीतू परी, नवरतन, जानवी, दिनेश भारद्वाज,सोनू पांची आदि कलाकार भी अपनी अपनी भूमिका में खरे उतरे हैं। 
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डेढ़ दशक बाद खेला दांव 
फिल्म अभिनेता यशपाल शर्मा के निर्देशन में मूल रूप से राजस्थान निवासी निर्माता रविन्द्र राजावत ने अब तक के सबसे बजट वाली हरियाणवी फीचर फिल्म पर दांव खेला है। खास बात ये कि बॉलीवुड अभिनेता यशपाल शर्मा इस फिल्म से पहली बार निर्देशन करने का मौका मिला, जो फिल्म के को-प्रोड्यूसर होने के साथ मुख्य अभिनेता की भूमिका में भी हैं। फिल्म अपनी बेजोड़ कहानी, स्क्रीन प्ले, संवाद, अभिनय और रूहानी संगीत के सहारे सीधे दिल में उतरने को तैयार है। दरअसल इस फिल्म के पहले ही दृश्य में दादा लख्मी की भूमिका में अभिनेता यशपाल के अभिनय से ऐसे दर्शकों की रूह में उतरती नजर आई। मसलन जो भी दादा लख्मीचंद की रागनियों को अरसे से गाते सुनाते रहे हैं, उन्हें शायद ही ये इल्म होगा, कि लख्मी एक अत्यंत साधारण बालक से प्रसिद्ध लोककवि कैसे बने और वह सूर्य कवि के नाम से प्रसिद्ध हुए। फिल्म में उनके उस चरित्र को भी दर्शाया गया है जिसमें वह किस तरह गलियों में भटकते हैं और अपने जुनून के लिए किस तरह समाज और परिवार की उपेक्षा और ताने सहते हैं।
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रिलीज होने से पहले पुरस्कारों की बरसात 
हरियाणवी थिएटर पर आने से पहले ही 'दादा लखमी' की झोली में भी अवॉर्ड की बरसात होने लगी है। पिछले साल जोधपुर में आयोजित राजस्थान इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल में 'दादा लख्मी' को 'बेस्ट म्यूजिकल फिल्म' के सम्मान से नवाजा गया। जबकि अप्रैल, 2021 में ही दिल्ली के हंसराज कालेज में आयोजित काशी इंडियन इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल अवार्ड में इस फिल्म ने चार अवॉर्ड हासिल किए हैं। खास बात ये है कि इनमें बेस्ट बायोपिक फिल्म निर्माता-रविंद्र राजावत और यशपाल शर्मा), बेस्ट डायरेक्टर डेब्यू फिल्म (यशपाल शर्मा), बेस्ट एक्टर (हितेश शर्मा) और बेस्ट स्पोर्टिंग एक्टर (राजेंद्र गुप्ता) के नाम से अवॉर्ड मिले हैं। वहीं हाल ही में कुरुक्षेत्र में अंतरराष्ट्रीय फिल्म महोत्सव के दौरान बॉलीवुड के प्रसिद्ध अभिनेता एवं निर्देशक यशपाल शर्मा की फिल्म ‘दादा लखमी’ की स्क्रीनिंग का जादू बिखरता नजर आया, जिसमें लोककवि दादा लखमी का संपूर्ण व्यक्तिव छाया हुआ है। 
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उम्मीदों पर खरी उतरेगी फिल्म ‘दादा लख्मी’: यशपाल शर्मा 
बहुप्रतिक्षित हरियाणवी फीचर फिल्म ‘दादा लखमी’ के निर्देशक और प्रसिद्ध फिल्म अभिनेता यशपाल शर्मा ने हरियाणवी सिनेमा को जीवंत करने के मकसद से एक ऐसा विषय चुना, जो लोगों के दिलो-दिमाग को छू रहा है। मूल रूप से हिसार निवासी फिल्म निर्देशक यशपाल शर्मा मानते हैं कि यह फिल्म हरियाणवी लोककला, संस्कृति और सामाजिक परंपराओं की तस्वीर उकेरने वाली है। उन्होंने कहा कि वे चाहे बॉलीवुड या अन्य कहीं भी हों ,लेकिन उनके लिए पहले अपनी मातृभूमि हरियाणा है। इसी हरियाणवी होने का कर्ज उतारने के लिए उन्होंने दादा लख्मीचंद फिल्म बनाने का निर्णय किया। चूंकि हरियाणवी लोक कवि पंडित लख्मीचंद उनके रग-रग में बसे हैं। उन्होंने इस हरियाणवी फिल्म के निर्माण से हरियाणवी सिनेमा की आशाएं पूरी करने का प्रयास किया है। हालांकि कोरोना काल के कारण बामुश्किल फिल्म की शूटिंग पूरी की गई, जिसे एडिटिंग के बाद ढाई घंटे की फिल्म को सेंसर बोर्ड ने भी मंजूरी दी। जब इसे सिनेमाओं के लिए रिलीज का समय आया तो फिर कोरोना का फन सामने आ गया। बातचीत के दौरान यशपाल शर्मा ने बताया कि हरियाणा दिवस यानि आगामी एक नवंबर को इस फिल्म के लिए सूबे सिनेमाघरों का इंतजार खत्म हो जाएगा। उन्होंने बताया कि इस फिल्म में पंडित लख्मीचंद के बचपन से अंत तक उनकी लोककला और रागणियों को जीवंत करने का प्रयास किया गया है, जिसमें सभी कलाकार हरियाणा के हैं, जिन्होंने हर किरदार ने अपना अभिनय बखूबी से निभाया है। खासकर फिल्म में दादा लख्मी की रागिणियों का सांगीतिक इस्तेमाल किया गया है। दादा लख्मी की भूमिका में उनके अलावा बचपन और युवा के रूप में दो अलग कलाकारों ने भूमिका निभाई है। जबकि परिपक्व दादा का अभिनय उन्होंने स्वयं किया है। यह फिल्म दो भागों में तैयार की गई है। इस फिल्म के लिए हरियाणवी संस्कृति, लोक कला और भाषा तथा सामाजिक जीवन जैसे पहलुओं को फिल्माया गया है। फिल्म में मनोरंजन, गंभीरता, संवेदनशीलता और परिवारिक परंपरा को भी उकेरा गया है। हरियाणवी जैसे देसी व ठेठ भाषी राज्य में ऐसी फिल्म के निर्माण में उनके सामने चुनौतियों भी कम नहीं थी, लेकिन जिस तरह से लोग और बुद्धिजीववर्ग उसके रिव्यू को देख रहा है, तो उनकी हरियाणवी फिल्म को लेकर काफी उम्मीदें और हौंसला बढ़ाती हैं। शर्मा को उम्मीद जताई है कि सूर्यकवि के रूप में विख्यात सांगी स्वर्गीय पं. लखमीचंद की बायोपिक 'दादा लखमी' की बॉक्स ऑफिस पर सफलता से संकेत हैं कि यह हरियाणवी सिनेमा की दिशा को भी तय करेगी। 
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हरियाणा के शेक्सपियर थे पंडित लख्मीचंद 
-दीपक वर्मा 
हरियाणा में रागणियों की कला की परंपरा देने वाले सूर्य कवि सूर्यकवि पंडित लख्मीचंद एक ऐसे जिन्हें गायन की मान्यता ही नहीं मिली, बल्कि राज्य सरकार ने उनके नाम से साहित्य और कला के क्षेत्र में पुरस्कार भी नामित किये हुए हैं। अब उनके जीवन पर फिल्म अभिनेता यशपाल शर्मा के निर्देशन में बनाई गई हरियाणवी फिल्म ‘दादा लख्मी’ हरियाणा के सिनेमाओं में हरियाणा वासियों को इंतजार करा रही है। सोनीपत के जाटी कलां गांव में एक निर्धन और सामान्य किसान उदमी राम के यहां 1903 को जन्में पं. लख्मीचंद बालकपन से ही कुछ पंक्तियां याद करके पशु चराते-चराते उनको गुनगुनाए करते थे। अंगूठा छाप यानि अनपढ़ होते हुए भी लख्मीचंद यह गायन धीरे धीरे ऐसे परवान चढ़ता गया कि वे अलग-अलग जगह पर जाकर अपनी ही धुन गुनगुनाने लगे और उनको गायन की मान्यता दी जाने लगी। धीरे धीरे कुछ भजनी और सांगी उनको रागणियां गाने के लिए अपने साथ ले जाने लगे। परिवार वालों की चिंता किये बिना लख्मीचंद अपने गायन में ही मगन रहते थे। परिवार के सूत्रों के अनुसार एक बार गांव में कोई शादी थी, वहां पर किसी प्रसिद्ध कवि और गायक मानसिंह को आना था, तो वहां पर पंडित लख्मीचंद भी चले गए और मानसिंह से प्रभावित होकर पंडित लख्मीचंद ने उनके सारे भजन सुने और उन्होंने जन्म से अंधे मानसिंह को अपना गुरु बना लिया। गुरु से औपचारिक शिक्षा लेने के बाद पं. लख्मीचंद ऐसे परिपक्व हुए कि वे मेहंदीपुर के श्रीचंद सांगी के सॉन्ग मंडली में सम्मिलित हुए औए अपनी प्रतिभा को और निखारने के लिए सोहनकुंड वाला के साथ काम करने लगे। सूबे में उस जमाने में अभिनय और सांग को अच्छा नहीं माना जाता था, जिसकी वजह से लख्मीचंद के सामने कई प्रकार की चुनौती भी आई थी। लख्मीचंद ने कई कलाकारों से अपने सानिध्य रखा। वे मान सिंह को अपना गुरु मानते थे, तो किसी समारोह में सोहनकुंड वाला ने मानसिंह के अपमान में कुछ शब्द कहे, तो लख्मीचंद ने नाराज होकर सोहनकुंड वाला से नाता तोड़ अलग से अपना सांग करने लगे। पंडित लख्मीचंद ने ऐसी रचनाएं की, जो आज के युग में सार्थक हो रही हैं। अनपढ़ होते हुए उन्हें चारों वेद का ज्ञान था।उन्हें हरियाणा का शेक्सपियर भी कहा जाता है। सूर्य कवि पंडित लख्मीचंद के पौत्र सांगी विष्णुदत्त कौशिक का अपने दादा के बारे में कहना है कि एक अनपढ़ व्यक्ति होते हुए भी उन्होंने अपने ज्ञान से 22 सांग काशी के शास्त्री टीकाराम से लिखवाए थे। पंडित लख्मीचंद सांग में रागणी बोलते थे और टीकाराम शास्त्री उन्हें लिखते थे। उनके आठ सांग तो यूपी के सूप गांव में चोरी हो गए थे। उन्होंने बताया कि दादा लख्मीचंद भैंस चराने के लिए जंगल में जाते थे। पंडित लख्मीचंद को पंडित मानसिंह को देखकर की संगीत का शोक हुआ। अब पंडित जी के 14 सांग का ही संग्रह है। मात्र 42 साल की उम्र में 17 अक्टूबर 1945 को उनका स्वर्गवास हो गया था। 
लख्मीचंद द्वारा लिखे गए सांग 
सूर्य कवि लख्मीचंद ने 22 सांगों की रचना की थी जिनमें नौटंकी, शाही लकडहारा, राजा भोज, चंद्रकिरण, हीर-रांझा, चाप सिंह, नल-दमयंती, सत्यवान सावित्री, मीराबाई और पद्मावत प्रमुख रूप से सुर्खियों में आज भी बने हुए हैं। हरियाणा साहित्य अकादमी ने लख्मीचंद ग्रंथावली प्रकाशित की है। 
30May-2022

सोमवार, 23 मई 2022

मंडे स्पेशल: हरियाणा में नहरों ने तीन साल में उगली हजारों लाशें

भाखड़ा और इंदिरागांधी नहर तो मौतों का कुंड बनी हरियाणा, पंजाब व राजस्थान राज्यों में पनपा सीमा विवाद
ओ.पी. पाल.रोहतक। हरियाणा में जीवनदायिनी कही जाने वाली नहरें और नदियां अमूमन हर रोज लाशें उगल रही है। नहरों में मिलने वाले शवों की पृष्ठभूमि में कई तरह के रहस्य छुपे होते हैं। ज्यादातर लोगों की लाशें ऐसे होती है, जिन्हें अपराधी पहचान मिटाने और अपनी गुनाहगारी पर पर्दा डालने के इरादे से उनके शवों को खुर्दबुर्द करके नहरों में फेंक देते हैं। वहीं कुछ लाशें ऐसी मिलती हैं तो किसी कलहवश नहरों में कूदकर आत्महत्या कर लेते हैं, तो कुछ लाशे ऐसी पाई जा रही है, जिनकी नहरों में नहाते समय या किसी दुर्घटनावश डूबने मौत हो जाती हैं। सर्च ऑपरेशन निगम और पुलिस के लिए नहरों से मिलने वाले शव इसलिए भी सिरदर्द बने होते हैं कि नहरों में मिलने वाली ज्यादातर लाशें वे होती हैं जो पीछे से अन्य प्रदेश या शहरों से बहकर आ जाती है। यही कारण है कि पुलिस के लाख प्रयासों के बावूद नहरों से मिलने वाले ज्यादातर शवों की पहचान तक नहीं हो पाती, जिसके लिए सामाजिक संस्थाओं के जरिए लावारिश शवों का अंतिम संस्कार कर दिया जाता है। हरियाणा में नहरों और माइनरों में मिलने वाले शवों में ज्यादातर पानी के बहाव के कारण एक जगह से लंबी दूरी तय करके दूसरी जगह पहुंच जाते हैं। सबसे ज्यादा ऐसे बहने वाले ज्यादातर शव नहरों या राजवाहों में चुनिंदा स्थानों पर लगाए गये जालों या फिर पुलिया में अटके मिलते हैं। नहरों में मिलने वाले ज्यादातर शवों की पहचान न होना यही बड़ा कारण है। हालांकि सरकार और जिला प्रशासन संबन्धित विभागीय स्तर पर सर्च अभियान भी चला रहे हैं। यह भी देखने में आया है, कि जब पानी कम करके नहरों या माइनरों की सफाई कराई जाती है तो ज्यादातर लाशे कहीं न कहीं अटकी हुई मिल जाती है। प्रदेश में इस साल भी नहर से मिले शवों के पीछे कुछ अपराधिक घटनाएं भी अजीबो गरीब है, किसी ने बच्चों को नहर में फेंकने के बाद जहर खाकर मौत को गले लगा लिया। इसी सप्ताह यमुनानगर में कुछ बाइक सवारों के हमले से बचने के लिए नहर में कूदे पांच युवकों की मौत सामने आई। वहीं सिरसा में पिछले महीने कार के भाखड़ा नहर में गिरने से दो की मौत हुई। पानीपत के पास भी एक कार के नहर में गिरने तीन रिफाइनरी कर्मियों की लाशें निकाली गई। इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता कि नहरों से बरामद ज्यादातर शवों को अपराधिक घटनाओं का शिकार बनाकर फेंका गया है। प्रदेश में करीब 14 किमी तक फैले नहरों के जाल में 75 फीसदी शव मिलने के मामले ऐसे होते हैं जो दूरदराज इलाकों में हत्या करके फेंके जाते हैं, ताकि सबूत न मिल सके। इसलिए भी पुलिस की कार्रवाई झोल से भी इंकार नहीं किया जा सकता। नहरों से मिलने वाले शव इतना गले होते हैं कि फॉरेंसिक जांच में भी मौत का कारण का पता नहीं चल पाता। इसलिए ऐसे शवों का पोस्टमॉर्टम क्या, पुलिस के लिए फॉरेंसिक जांच भी मुश्किल हो जाती है। 
सिरसा की नहरों से मिले सर्वाधिक शव 
हरियाणा में नहरों और माइनरों से औसतन हर साल 500 से ज्यादा शव बरामद किये जाते हैं, जिनमें अधिकाशं शिनाख्त न होने के कारण गुमनाम ही रह जाते हैं। हरिभूमि के जिला ब्यूरों द्वारा जुटाई गई जानकारी के मुताबिक इस दौरान सबसे ज्यादा 178 शव सिरसा जिले की नहरों से मिले हैं, जिसके बाद रोहतक जिले में 153 और कुरुक्षेत्र में 102 शवों को नहरों से निकाला गया है। इसके बाद कैथल, हिसार, फतेहाबाद, झज्जर, जींद, यमुनानगर, रेवाड़ी व सोनीपत जिले की नहरों से शव बरामद हुए हैं। प्रदेश में पुलिस के आंकड़े के मुताबिक इससे पहले सबसे ज्यादा 670 शवों को साल 2016 में नहरों से बरामद किया गया था। जबकि साल 2014 में पहली बार नहरों से मिले शवों की संख्या 500 से ज्यादा के आंकड़े को पार कर चुकी थी। जबकि इससे पहले प्रदेश में यह औसत 200 से कुछ ज्यादा शवों की बरामदगी का रहा है। गर्मी के दिनों में नहरों व माइनरों में डूबने की घटनाएं ज्यादा होती हैं। हरियाणा के ज़ींद के नरवाना की सिरसा ब्रांच नहर (भाखड़ा) ऐसी है जहां का पानी कम होते ही पानी पर तैरती लोगों की लाशों से मौत का मंजर नजर आने लगता है, जो बढ़ते अपराधों का बोध कराता है। यहीं कारण है कि यहां मिलने वाले शवों की पहचान के लिए राजस्थान, पंजाब, उत्तराखंड, हिमाचल व हरियाणा जैसे राज्यों से लोग यहां आते हैं, ताकि उनके परिवार से लापता को ढ़ूंढ सके। 
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सीमा विवाद में उलझी सबसे लंबी नहर 
हरियाणा से होकर गुजर रही सबसे लंबी इंदिरा गांधी नहर पंजाब से राजस्थान तक जाती है। पंजाब के हरिक बैराज से निकलते हुए यह मुख्य नहर हरियाणा से होकर राजस्थान तक 445 किमी लंबा सफर करती है। इस नहर के 204 किमी लंबे फीडर कैनाल में 170 किमी हिस्सा पंजाब व हरियाणा में है। साल 2010 से 2019 के बीच राजस्थान स्थित इस नहर में मिले 1822 शवों का मामला अदालत तक जा पहुंचा, जिनमें से 260 की पहचान के अलावा शिनाख्त से महरूम 1562 शवों का कुछ पता नहीं चल सका। पिछले साल ही राजस्थान की अदालत में दायर याचिका में राजस्थान में नहर से बरामद शवों का ठींकरा पंजाब व हरियाणा के सिर फोड़ते हुए याचिकाकर्ता ने राजस्थान व हरियाणा की सीमा पर नहर में जाल लगाने की मांग की थी। नहर में सूचना मिलने पर यदि पुलिस त्वरित कार्रवाही अमल में लाए तो अज्ञात शवों के मामले अनसुलझे नहीं रहेंगे। एक स्थान से दूसरे स्थान तक नहरों में बहने वाले शवों ज्यादातर अपराधिक कृत्य के साथ फेंका जाता है और ऐसे में कार्रवाई से बचने की नीयत से पुलिस की सांठ-गांठ से कई नहरी कर्मचारी शव डंडे से सरका देते हैं और शव सैकड़ो किमी आगे तक बहकर अन्य शहरों या राज्यों तक पहुंच जाते हैं। 
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ऐसे करती है पुलिस कार्रवाई 
पुलिस अधिकारियों के मुताबिक नहर से मिलने वाले अज्ञात शवों के मामले में पुलिस आईपीसी की धारा 174 के तहत कार्रवाई करती है, और दो तीन दिन तक पहचान के लिए उनके परिजनों के आने का इंतजार करती है। शिनाख्त न होने पर पुलिस सामाजिक संस्थाओं की मदद से उनका अंतिम संस्कार करा देती है। पुलिस का दावा है कि उसके बाद भी शिनाख्त के प्रयास में जुटी पुलिस पोस्टमार्टम रिपोर्ट, शवों के फोटो, कपड़े और अन्य बरामद सामान को संभालकर रखती है। कई मामलों में पहचाने के गये शवों में हत्या या आत्महत्या के मामले भी दर्ज किये जाते हैं। शिनाख्त के लिए जिला पुलिस के पास रिकार्ड होता है, जिसमें अवशेषों का डीएनए रिकार्ड तक होता है। जबकि संबन्धित क्षेत्रों की पुलिस द्वारा शवों शिनाख्त न होने पर उसके इस्तहार तथा पोस्टर सार्वजनिक स्थानों पर लगाने के अलावा पुलिस के पोर्टल पर व्यक्ति का हुलिया या पहचान डालीजाती है।
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राेहतक की नहरें उगल रही लाशें, पुलिस नहीं करवा पाती 70 प्रतिशत मामलों की शिनाख्त 
तीन साल में मिली 153 लाश, मात्र 37 की हुई शिनाख्त
विजय अहलावत. रोहतक।
जेएलएन और भालौठ सब ब्रांच नहरें हर साल लाशें उगल रही हैं। आए दिन किसी न किसी की लाश नहर में पानी में बहते हुए आती हैं। पिछले तीन साल में नहरों से 153 लाश बरामद हो चुकी हैं। सबसे ज्यादा लाशें 2021 में मिली हैं। पुलिस इनमें से मात्र 37 मामले ही ट्रेस कर पाई है। जबकि 116 मामलों को सुलझाने के लिए पुलिस आज भी प्रयास कर रही है। 70 प्रतिशत लोगों को आखिरी वक्त में भी अपनों का कंधा नसीब नहीं हो पाता। इसके अलावा 18 मामले हत्या के पाए गए हैं। जिनकी जांच की जा रही है। पुलिस रिकार्ड के मुताबिक, 2020 में नहरों में 64 लाशें बरामद हुई। जिनमें से केवल 14 की ही शिनाख्त हो पाई। इन शवों को पोस्टमार्टम के बाद परिजनों को सौंपा गया। इनमें पोस्टमार्टम रिपोर्ट आने के बाद 10 मामले हत्या के पाए गए। इसके अलावा 50 लाशों का नगर निगम से अंतिम संस्कार करवाया गया। 2021 में पुलिस ने नहरों से 69 लाशें बरामद की। इनमें से केवल 18 की शिनाख्त ही हो पाई। इसके अलावा 7 मामलों में हत्या का केस दर्ज कर जांच शुरू की गई। 2022 में अब तक नहरों में 20 शव बरामद हुए। जिनमें से पांच की शिनाख्त करवाई गई। लेकिन एक केस हत्या का पाया गया। जबकि 15 शवों को पहचान नहीं होने पर अंतिम संस्कार के लिए भेजा गया।
वर्जन- 
नहर में मिलने वाली लाश की शिनाख्त कराने के लिए भरपूर प्रयास किए जाते हैं। आसपास के जिलों की पुलिस को भी सूचना दी जाती है। अगर तीन दिन में शिनाख्त नहीं होती तो शव को अंतिम संस्कार के लिए सौंप दिया जाता है। उदय सिंह मीना, एसपी रोहतक 
लाश को खा जाते हैं जीव जंतु- 
नहर में मिलने वाली लाश पानी में कई दिन होने की वजह से गल सड़ जाती हैं। चेहरे, हाथ और पैरों को मछलियां और जीव जंतु भी खा जाते हैं। इस वजह से पुलिस को इन लाशों की शिनाख्त करवाने में काफी मशक्कत का सामना करना पड़ता है। परिजन भी कई बार पक्का सबूत मिले बिना लाश की शिनाख्त नहीं कर पाते। लाशों पर मिले कपड़ों, जूतों को सबूत के तौर पर रख लिया जाता है। लाशों को 72 घंटे बाद शिनाख्त नहीं होने पर अंतिम संस्कार के लिए नगर निगम को सौंप दिया जाता है। इसका सारा खर्च निगम द्वारा वहन किया जाता है। बॉक्स- हत्या कर फेंकी जाते हैं ज्यादातर लाशें- 
बदमाशों के लिए हत्या कर लाश फेंकने के लिए सबसे उपयुक्त जगह नहरें ही हैं। कभी महिलाओं से दुष्कर्म कर लाश नहर में फेंकी गई तो कभी राहगीरों से लूटपाट कर हत्या कर लाश नहर में फेंकी गई। नहर में मिलने वाली लाश के अधिकतर मामले हत्या के ही होते हैं। लेकिन मृतक की पहचान नहीं होने पर कोई शिकायत दर्ज करवाने नहीं आता। इस वजह से ज्यादातर मामलों में पुलिस तह तक नहीं पहुंच पाती। इसके अलावा 15 से 20 प्रतिशत मामले हादसे के होते हैं। जिसमें किसी का पैर फिसलने या आत्महत्या करने जैसे मामले शामिल होते हैं। 23May-2022

साक्षात्कार: साहित्य में मानवीय जीवन बदलने की क्षमता: सविता चड्ढा

साहित्यिक कृतियों और पत्रकारिता पर अमूल्य और दुर्लभ साहित्य 
साक्षात्कार: ओ.पी. पाल 
व्यक्तिगत परिचय 
नाम: सविता चड्ढा 
जन्म: 28 अगस्त 1953 
जन्म स्थान: पानीपत (हरियाणा) 
शिक्षा: एमए (हिंदी), एमए(अंग्रेजी), विज्ञापन जनसंपर्क और पत्रकारिता में डिप्लोमा, 2 वर्षीय कमर्शियल प्रैक्टिस डिप्लोमा। 
संप्रत्ति: पूर्व वरिष्ठ प्रबंधक, पंजाब नेशनल बैंक(राजभाषा विभाग)। 
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साहित्य सृजन के लिए समर्पित वरिष्ठ लेखकों में शुमार प्रसिद्ध महिला साहित्यकार श्रीमती सविता चड्ढा ने विभिन्न विधाओं में अपनी कृतियों से देश में ही नहीं, वरन् विदेशों में हिंदी साहित्य और भारतीय संस्कृति को नये आयाम के साथ पहचान दी है। उन्होंने समाज को नई दिशा देने और बाल मन तक मोहने की दिशा में एक लेखक, साहित्यकार, कहानीकार, उपन्यासकार, कवित्रि के रूप में अपनी साहित्यिक कृतियों को विस्तार ही नहीं दिया, बल्कि पत्रकारिता और संपादन के क्षेत्र में भी सशक्त मन से अपनी लेखनी चलाई है। शिक्षा के साथ खेलों में भी अपनी उत्कृष्ट प्रतिभा का प्रदर्शन करने वाली महिला रचनाकार ने सरकारी सेवा में भी हिंदी और साहित्य सृजन को सर्वोपरि रखा है। एक साधारण और प्रतिभा की धनी सविता चड्ढा ने हरिभूमि संवाददाता के साथ हुई खासबात बातचीत के दौरान उन्होंने अपने साहित्यिक सफर को लेकर कई ऐसे अनछुए पहलुओं को सार्वजनिक किया है, जिससे हिंदी और संस्कृति प्रेम उनमें साफतौर से झलकता है। 
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साहित्य जगत में एक साधारण और संवेदनशील व्यक्तित्व की धनी प्रसिद्ध रचनाकार सविता चड्ढा साहित्य सृजन के साथ सामाजिक सेवा में भी उत्कृष्ट काम कर रही है। अनेक साहित्यकारों ने विभिन्न विधाओं में साहित्यिक कृतियों और पत्रकारिता पर लिखी किताबों को अमूल्य और दुर्लभ साहित्य कहा है। खासकर बच्चों को लेखन और पाठन में प्रोत्साहित करने के लिए पुस्तकालय और उनके लिए प्रतियोगिताएं, कार्यशाला आयोजित करती हैं। यही नहीं बच्चों को दिल्लीो के सभी ऐतिहासिक स्थऔलों पर भ्रमण कराकर उन्हें इतिहास का ज्ञान देने की गतिविधियों में भी हिस्सा ले रही हैं। उन्होंने देश में ही नहीं, बल्कि न्यूयॉर्क, न्यू जर्सी, अमेरिका, पेरिस, दुबई, नीदरलैंड, ऑस्ट्रेलिया, जर्मनी, ताशकंद, हॉलैंड और नेपाल जैसे कई देशों की साहित्यिक यात्रा कर विदेशों में भी अपनी साहित्यिक छाप छोड़ी है। समाज को दिशा देने के लिए साहित्य लिखने की पक्षधर महिला साहित्यकार सविता चड्ढा का कहना है कि आज के वैज्ञानिक और आधुनिक युग में साहित्य का स्वरूप और स्थिति दोनों बदल गयी है। उनका मानना है कि साहित्यिक पुस्तकों के पाठक कम जरुर होते जा रहे हैं, लेकिन कोई भी साधारण व्यक्ति पुस्तकों को सच्चा मित्र बना कर, श्रेष्ठता के सोपान और सुनहरा भविष्य प्राप्त कर सकता है, क्योंकि आज भी अच्छे साहित्य में मनुष्य के वर्तमान और भविष्य को बदलने की क्षमता है। खासकर युवाओं को अच्छा साहित्य पढ़ने के लिए प्रेरित किया जाना चाहिए। युवा वर्ग को साहित्य के प्रति प्रेरित करने के लिए स्कूलों में एक पीरियड कम से कम लाइब्रेरी के लिए होना चाहिए। आज कुछ लेखक रातो रात प्रसिद्धि पाने के लिए मर्यादाविहीन साहित्य समाज के सामने परोसने का प्रयास साहित्य में गिरावट का कारण है। इसलिए साहित्य समाज को दिशा देने के लिए लिखा जाना चाहिए। 
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हरियाणा साहित्य अकादमी द्वारा साल 2020 के लिए ‘हरियाणा गौरव सम्मान’ से पुरस्कृत महिला साहित्यकार सविता चड्ढा का जन्म पानीपत में दिल्ली पुलिस सब इंस्पेक्टर मुल्ख राज के घर में 28 अगस्त 1953 को हुआ। सविता चड्ढा भी अगस्त 2013 में पंजाब नेशनल बैंक में हिन्दी अधिकारी के पद से सेवानिवृत्त हुई हैं। यही नहीं उनके के तीन छोटे भाई भी दिल्ली पुलिस के बड़े पदों पर तैनात हैं, जबकि छोटी बहन भी दिल्ली प्रशासन में निदेशक के पद पर सेवा दे चुकी हैं। सविता चड्ढा स्कूली शिक्षा से होशियार रही और प्रथम श्रेणी के कई पुरस्कार ले चुकी है और खेलकूद और एनसीसी जैसी गतिविधियों में भी अपनी प्रतिभा के बल पर पुरस्कार लिये। हायर सेकंडरी के बाद उन्होंने दो वर्षीय कमर्शियल प्रेक्टिस डिप्लोमा 16 विषयों के साथ प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण किया। दो वर्षीया डिप्लोमा पास करते ही साढ़े 19 वर्ष की आयु में ही उन्हें पर्यटन विभाग दिल्ली में अंग्रेजी स्टेनोग्राफर के पद पर सरकारी नौकरी मिल गई। विभाग का कार्यालय रेल भवन की पांचवी मंजिल पर था, जहां से संसद भवन और अन्य सरकारी इमारते साफ दिखाई देती थी, बकौल सविता चड्ढा, यहीं से उनकी कविताओं ने जन्म लिया या यू माने कि यहीं से उनके भीतर साहित्य सृजन का बीजारोपण हो गया। शादी के बाद उन्होंने पदोन्नति की खातिर मेरठ विश्वविद्यालय से हिन्दी और अंग्रेजी में डबल एमए की। जिसके बाद उनका वित्त मंत्रालय में वरिष्ठ हिन्दी अनुवादक के लिए चयन हो गया। पाँच वर्ष तक इस पद पर रहने क बाद बैंकिंग भर्ती बोर्ड में आवेदन के आधार पर फ़रवरी 1985 को पंजाब नेशनल बैंक में हिन्दी अधिकारी के पद पर नियुक्ति हो गई, जहां से 28 साल से ज्यादा की सेवा देकर वे अगस्त 2013 में सेवानिवृत्त हुई। इसके बाद वह मरते दम तक साहित्य सृजन के लिए लेखन कार्य करने का मन बना चुकी हैं। उन्होंने बताया कि उनकी कहानियां अंग्रेजी, पंजाबी, उर्दू भाषा में अनुवादित है। जबकि पत्रकारिता की तीन पुस्तकें दिल्ली विश्वविद्यालय, पंजाब विश्वविद्यालय और देश के कई पत्रकारिता विश्वविद्यालयों में सहायक ग्रंथों के रूप में शामिल हैं। उनकी कहानियों पर विश्वविद्यालयों में शोध करने का सिलसिला जारी है।
प्रकाशित पुस्तकें 
साहित्यकार सविता चड्ढा की चाद दर्जन से ज्यादा पुस्तकें विभिन्न विषयों पर प्रकाशित हो चुकी है। इनमें 12 कहानी संग्रह में आज का जहर, घटनाचक्र, एक और भगवान, सफरनामा औरत का, नारी अस्मिता व अंतर्वेदना की कहानियां, आकाश कुसुम, गांधी लौट आओ, खुशनसीब औरतें, 18 दिन 14 रातें, मेरी प्रतिनिधि कहानियां और मेरी लोकप्रिय कहानियां शामिल हैं। उनके तीन बाल संग्रह में ‘छूना है आकाश’, काली परी तथा अन्यख कहानियां और चुन्नू मुन्नू की लोकप्रिय कहानियां, नौ काव्यह संग्रह में योग वियोग, वह दिन कब आयेगा, उदास मत होना, उस पार तो जाना है, अखरता चुप रहना, जो है बस इधर ही है, मैं और रिश्ते, जो चला गया और मेरी प्रिय कविताएँ सुर्खियों में हैं। आठ लेख संग्रह-शब्द बोलते हैं, मुस्कान की डायरी, मुस्कान के लिए, कहाँ गए ये लोग, पाँव जमीन पर निगाह आसमान पर, यात्रा सुख, समय समय की बात और मैं और मेरे साक्षात्कार हैं। जबकि दो उपन्यासों में 18 दिन के बाद और क्रांति की अग्निशिखा ’भगतसिंह’ शामिल है। पत्रकारिता पर भी लिखी गई 11 पुस्तकों में नई पत्रकारिता और समाचार लेखन, हिंदी पत्रकारिता सिदांत और स्वयरूप, आजादी के 50 वर्ष और हिंदी पत्रकारिता, हिंदी पत्रकारिता दूरदर्शन और टेलीफिल्मेंय, हिंदी पत्रकारिता, दूरदर्शन का इतिहास और टेलीफिल्मेंज, इतिहास और पत्रकारिता, पत्रों की दुनिया, हिदी पत्रकारिता अध्य्ायोन और आयाम तथा मॉडर्न जर्नलिज़्म एंड न्यूज़ राइटिंग के अलावा उनकी नामी उर्दू पत्रकार, बेटियाँ और व लघु कथा का वृहद् संसार संपादित पुस्तके भी पाठको के बीच हैं। उनकी लिखित तीन कहानियों पर टेलीफिल्म निर्माण हो चुका है और कई कहानियों पर नाटक मंचन हो चुका है। उनकी 60 से अधिक कहानियां आकाशवाणी पर पढ़ी जा चुकी है। यही नहीं कक्षा 6,7,8 के पाठ्यक्रम में भी उनकी तीन बाल कहानियां शामिल हैं। 
पुरस्कार व सम्मान: 
हरियाणा सरकार ने इसी साल फरवरी में सविता चड्ढा को प्रदेश से बाहर रहकर भी हरियाणा को गौरवान्वित करने के लिए हरियाणा साहित्य अकादमी के वर्ष 2020 के हरियाणा गौरव सम्मान से नवाजा है। इससे पहले भी वे राष्ट्रीय व अंतर्राष्ट्रीय सम्मान पाने वाली महिला साहित्यकारों में शामिल हैं। इसी साल उन्हें कर्नाटक में तुलसी सम्मान मिला है। राष्ट्रीय स्तर की साहित्य संस्थाओं द्वारा अस्सी के दशक से अब तक उन्हें सैकड़ो सम्मान और पुरस्कारों में प्रमुख रूप से भारत गौरव सम्मान, दिल्ली गौरव सम्मान, राष्ट्र रत्न सम्मान, राष्ट्रभाषा गौरव सम्मान, नारी गौरव सम्मान, मातृश्री सम्मान, नारी उज्जागरण सम्मान, सरस्वती आदर्श महिला सम्मान, महादेवी वर्मा सम्मान, साहित्य सृजन शिल्पी सम्मान, साहित्यिक कृति पुरस्कार, हिंदी सेवा सम्मान, आराधकश्री सम्मान, ज्ञानी जैल सिंह सम्मान, साहित्यकार सम्मान, साहित्यश्री कथाकार सम्मान, साहित्य गंगा सम्मान, संस्कृति सम्मान, प्रचंडीदेवी सम्मान(आस्ट्रिया),स्त्री विमर्श सम्मान (ताशकंद), वुमेन महिला केसरी अवार्ड, लाइफ टाइम अचीवमेंट अवार्ड, गार्गी अवॉर्ड, ट्रू मीडिया साहित्य सम्मान, साहित्य सुधाकर उपाधि तथा चिल्ड्रन लिटरेचर के लिए पुरस्कार जैसे अनेक सम्मानों से नवाजा जा चुका है।
संपर्क : सविता चडढा899,रानी बाग, दिल्ली-110034
23May-2022

सोमवार, 16 मई 2022

मंडे स्पेशल: प्रदेश में नहीं थम रहा है बच्चों की तस्करी का सिलसिला

रोजाना पलक झपकते गायब हो जाते हैं एक दर्जन से ज्यादा बच्चें 
गलत कामों के लिए तस्करी के शिकार बच्चों में सर्वाधिक बालिकाएं 
ओ.पी. पाल.रोहतक। प्रदेश में बच्चे सुरक्षित नहीं है, यह बच्चों की तस्करी, लापता या अपहरण जैसे अपराधों का बढ़ता ग्राफ गवाही दे रहा है। प्रदेश में हर दिन कम से कम एक दर्जन बच्चे पलक झपकते ही गायब हो जाते हैं, जिन्हें गलत काम के लिए ऐसे अपराधों का शिकार बनाया जा रहा है। सबसे भयावह हालात ये हैं कि लापता या तस्करी के शिकार बच्चों में लड़कों से ज्यादा लड़कियां हैं। प्रदेश में पिछले तीन साल में बच्चों के गायब होने या अपहरण के दर्ज किये गये 14 हजार से ज्यादा मामले बच्चों की सुरक्षा को लेकर बनाए गये कानूनों के झोल की ओर इशारा करते हैं, इनमें 63 मामले बाल तस्करी के भी शामिल हैं। यह आलम तब है जब बच्चों की सुरक्षा के मद्देनजर पिछले दिनों संबन्धित कानूनों को सख्त बनाया जा चुका है। बच्चों के प्रति बढ़ते अपराधों के चौंकाने वाले आंकडों के बीच पांच माह पहले ही हरियाणा में बच्चों के संरक्षण के लिए काम करने वाली बाल कल्याण समिति, बचपन बचाओं आंदोलन जैसी संस्थाओं और पुलिस ने लापता या तस्करी के जाल में फंसे दस हजार से भी ज्यादा बच्चों को बरामद किया है। 
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रियाणा में सबसे चिंताजनक पहलू ये है कि प्रदेश में अपहरण की शिकार बालिकाएं हो रही है, जिसके लिए उन्हें बेचा जा रहा है। प्रदेश में बच्चों की तस्करी, अपहरण की घटनाओं के आंकड़े इस बात की भी गवाही दे रहे हैं कि बच्चों का अपहरण हत्या, फिरौती वसूलने, मानव तस्करी, वैश्यावृत्ति, यौन अपराध, भीख मंगवाने, जबरन नाबालिग लड़कियों से शादी करने जैसे गैर कानूनी कामों के लिए किये जा रहे हैं। हरियाणा में बाल तस्करी के मामलों की जांच में पुलिस भी पुष्टि कर चुकी है कि 23 नाबालिक लड़की और तीन बच्चों की मानव तस्करी ज्यादातर देह व्यापार में धकेलने इरादे से की गई। राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो की रिपोर्ट में अभी तक साल 2020 तक के ही आंकड़े सार्वजनिक किये गये हैं, जिनके अनुसार प्रदेश में बच्चों के अपहरण और लापता होने के 14,326 मामले दर्ज हुए हैं, जिनमें तस्करी के 14 मामले भी शामिल हैं। इनमें ज्यादातर बालिकाएं शामिल हैं। इसी प्रकार बाल कल्याण समिति और टीम ने पिछले दो साल में रोहतक के अलावा अन्य जिलों से दो साल के अंदर 50 से अधिक झारखंड के मासूमों को इस दलदल से निकाल चुका है। इनमें से करीब साठ प्रतिशत को पढ़ाई का झांसा देकर तस्करी करके लाया गया था। वहीं प्रदेश में आने वाले समय में बच्चों की सुरक्षा में सेंध के ऐसे आपराधिक आंकड़े चौंकाने वाले हो सकते हैं, क्योंकि अकेले पानीपत जिले में पिछले सवा दो सालों में 4 से 17 साल तक के तीन सौ से ज्यादा बच्चे लापता हो चुके हैं, जिनके अपहरण या तस्करी की आशंका है। यह मामला हरियाणा विधानसभा में भी उठाया जा चुका है। हालांकि हरियाणा पुलिस ने लापता या गुमशुदा हुए 10,868 बच्चों को साल 2021 के दौरान साल एक अभियान चलाकर तलाशा है। इनमें 3839 लड़के और 7029 लड़कियां शामिल हैं, जो लंबे समय से किसी न किसी कारण से लापता हो गये थे। इन बरामद हुए बच्चों में 1813 बाल भिखारी और 2021 बाल श्रमिकों के रूप में कार्य करते पाए गये। लेकिन पिछले तीन साल के दौरान प्रदेश में तस्करी, लापता या अपरहरण के शिकार बच्चों की सुरक्षा पर अभी भी सवालिया निशान लगा है, क्योंकि बसों, ट्रेनों में तस्करी के लिए एक प्रदेश से दूसरे प्रदेश में ले जाए जाने वाले बच्चों के मिलने का सिलसिला थमने का नाम नहीं ले रहा है। 
तस्करी के ज्यादा मामले लंबित
विशेषज्ञों का मानना है कि बाल तस्करी के शिकार बच्चों को भिक्षावृत्ति, मानव अंगों के कारोबार तथा यौन शोषण के लिए उनकी गैरकानूनी खरीद-फरोख्त होती आई है। इसके लिए गरीब परिवारों के बच्चों को चाइल्ड पोर्नोग्राफी के शौकीन लोग यौनाचार का शिकार बनाते हैं। प्रदेश में पिछले तीन साल में बाल तस्करी के 63 मामलों में से पुलिस ने 40 मामलों में 141 आरोपियों के खिलाफ आरोप पत्र दाखिल किये और 16 मामलों में साक्ष्यों के अभाव में फाइनल रिपोर्ट लगाकर उन्हें बंद कर दिया। हालांकि 141 आरोपियों में से साक्ष्य के अभाव में 87 को अदालत से दोषमुक्त कर दिया गया। इन मामलों में से 27 मामलों में ट्रायल्स चल रहा है। मसलन इन तीन सालों में अदालत से अभी तक केवल एक आरोपी पर ही दोषसिद्ध हो पाया है। जबकि इन तीन सालों में मुक्त कराए गये 39 बच्चों को मुक्त कराया जा चुका है, जिनमें 32 नाबालिग लड़कियां शामिल हैं। वैसे भी हरियाणा देश के उन राज्यों में हरियाणा भी शामिल है, जहां पॉक्सो के 51 प्रतिशत मामले हैं और सजा की दर केवल 30 से 64 फीसदी के बीच है। मसलन पुलिस और अदालत में दर्ज मामलों की तुलना में निपटान बेहद कम है। इनमें सर्वाधिक पॉक्सो के 40 फीसदी मामले पर्याप्ते साक्ष्य या सुराग के अभाव में आरोपपत्र दाखिल किए बिना ही पुलिस द्वारा बंद कर दिये गये। सबसे चिंताजनक पहलू ये है कि प्रदेश में अपहरण की शिकार बालिकाएं हो रही है और वह भी बचने के मकसद से। इसके अलावा आंकड़े बताते हैं कि बच्चों का अपहरण हत्या, फिरौती वसूलने, मानव तस्करी, वैश्यावृत्ति, यौन अपराध, भीख मंगवाने, जबरन नाबालिग लड़कियों से शादी करने जैसे गैर कानूनी कामों के लिए किये जा रहे हैं। 
अधर में तस्करी प्रकोष्ठ 
सरकार बच्चों की सुरक्षा के मद्देनजर पिछले दिनों संबन्धित कानूनों को सख्त बना चुकी है, लेकिन इसके बावजूद यौन शोषण पर अंकुश नहीं लग पा रहा है। केंद्र सरकार राज्यों कमो एंटी ह्यूमन ट्रैफिकिंग सेल की स्थापना करने के भी निर्देश दे चुकी है, लेकिन हरियाणा में अभी तक इस सेल की स्थापना होने की सरकार की ओर से कोई पुष्टि नहीं की गई है। इस कानून के अनुसार इस प्रकोष्ठ के जरिए यौन संबन्धी मामलों में जांच की निगरानी और उसे ट्रैक करने के लिए यौन अपराध जांच ट्रैकिंग प्रणाली नामक एक ऑनलाइन विश्लेषणात्मक टूल शुरू किया जाना है। हालांकि प्रदेश में राज्य अपराध शाखा की विशेष एंटी-ह्यूमन ट्रैफिकिंग यूनिट ने बच्चों की सुरक्षा के लिए समर्पण अभियान चला रही है। विशेषज्ञों के अनुसार पढ़ाई और नौकरी का झांसा देकर झारखंड जैसे राज्यों के मासूमों को तस्कर गिरोह पहले दिल्ली लाता है और उसके बाद इन मासूमों को पांच से बीस हजार में हरियाणा के रोहतक, पानीपत, सोनीपत, कैथल, फतेहाबाद, भिवानी, झज्जर के अलावा अन्य राज्यों के विभिन्न स्थानों पर बेच दिया जाता है। 
बेलगाम हुआ बाल शोषण 
एनसीआरबी की रिपोर्ट के मुताबिक देश में हर घंटे 3 बच्चों के साथ बलात्कार और 5 बच्चों का यौन उत्पींड़न होता है। बाल यौन शोषण में 99 प्रतिशत लड़कियां सामने आ रही हैं। हरियाणा में पिछले तीन साल में अपहरण या तस्करी के शिकार बच्चों में सबसे ज्यादा 2482 नाबालिगों बालिकाओं को बेचने के इरादे से अपराध को अंजाम दिया गया। इनमें साल 2020 में उठाई गई 787 लड़कियों के अपरहण के मामले दर्ज हैं, जबकि इससे पहले दो सालों में यहं संख्या 800 से ज्यादा रही। प्रदेश में साल 2020 में 545 बच्चों का अपरहण केवल यौन अपराध के मकसद से किया गया, जिनमें 11 बालक भी शामिल हैं। साल 2020 के दौरान 1032 बालिकाओं को दुष्कर्म और 69 बालकों को कुकर्म का शिकार बनाया गया। सबसे ज्यादा 12 से 18 साल तक के 943 नाबालिगों को दुष्कर्म और कुकर्म का शिकार बनाया गया, जबकि 12 साल से कम आयु के 160 बच्चे पीड़ित रहे। उधर हरियाणा राज्य बाल अधिकार संरक्षण आयोग के अनुसार प्रदेश में वर्ष 2021 के दौरान बाल शोषण के 2176 मामले दर्ज किए गए, जो वर्ष 2020 में 1827, वर्ष 2019 में 2074, वर्ष 2018 में 2109, वर्ष 2017 में 1471, वर्ष 2016 में 1297 मामलों से कहीं अधिक हैं। लड़कियों को ही नहीं, आरोपी मासूम लड़कों को भी दुष्कर्म का शिकार बना रहे हैं। वर्ष 2021 के दौरान प्रदेश में गुरुग्राम, फरीदाबाद, करनाल, पानीपत, हिसार, रोहतक और सोनीपत जिले से बाल शोषण की सर्वाधिक शिकायते आयोग को मिली। 
आयोग में न्याय की गुहार 
प्रदेश में राज्य बाल अधिकार संरक्षण आयोग भी बच्चों को न्याय दिलाने में सतर्कता बरत रहा है। आयोग के आंकड़ो के मुताबिक पिछले पांच साल में पहुंची 1663 शिकायतों में आधे से ज्यादा 833 शिकायतों का निपटारा किया जा चुका है। इन शिकायतों में सबसे ज्यादा 762 शिकायतें वर्ष 2019-21 के दौरान आयोग को मिली, जिनमें से इन दो सालों में 412 शिकायतों का निपटान किया गया। 
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बच्चों की सुरक्षा महत्वपूर्ण 
हरियाणा में लापता बच्चों को रिकिवर करने का आंकड़ा ठीक है। पुलिस के लिए एक-एक बच्चा महत्वपूर्ण है, जिसकी सुरक्षा के लिए पुलिस की टीमें निर्धारित की जाती हैं, जो बच्चों के संरक्षण के लिए काम करने वाली एजेंसियों के साथ मिलकर काम करती हैं। पुलिस को बच्चों के खिलाफ अपराध के मामलों में बच्चों को सुरक्षित बरामद करने में सफलता भी मिल रही और अपराधियों की भी धरपकड़ हो रही है। फिर भी यदि एक भी बच्चा गायब होता है तो उसे बरामद करने के लिए पुलिस कोई भी कोर कसर नहीं छोडेंगी। -संदीप खिरवार, एडीजी(कानून व्यवस्था), हरियाणा 
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पुलिस को त्वरित कार्रवाई की जरुरत 
हरियाणा राज्य बाल अधिकार संरक्षण आयोग बच्चों को न्याय दिलाने के लिए जिस प्रकार से कार्य कर रहा है, उसके लिए उसे देश का प्रथम पुरस्कार भी मिल चुका है। आयोग का कार्य तस्करी, अपहरण या लापता हुए बच्चों के अलावा बच्चों के खिलाफ अपराधों को लेकर पुलिस या अन्य एजेंसी द्वारा की जाने वाली कार्यवाही की सतर्कता के साथ निगरानी करता है। लेकिन यदि तस्करी या अपहरण या अन्य तरीके से लापता किसी बच्चें या लड़की का पता लगता है तो पुलिस उस मामले को गुमशुदगी में दर्ज कर लेती है जो गलत है। वहीं सुराग मिलने पर बच्चों को बरामद करने के लिए त्वरित संसाधनों का इस्तेमाल नहीं करती, जिसकी वजह से बच्चों की सुरक्षा खतरे में पड़ जाती है। बच्चों के संरक्षण के लिए पुलिस और एजेंसियों को त्वरित कार्यवाही के लिए और भी काम करने की जरुरत है। -ज्योति बैंदा, चेयरमैन, राज्य बाल अधिकारी संरक्षण आयोग, हरियाणा 
16May-2022

सोमवार, 9 मई 2022

साक्षात्कार: सर्वजन हिताय की अवधारणा में सार्थक है साहित्य: रोहित यादव

ग्रामीण तथा आंचलिक पत्रकारिता के बाद साहित्य को दिया नया आयाम 
व्यक्तिगत परिचय 
नाम: रोहित यादव 
जन्म: 8 जनवरी 1955 
जन्म स्थान: गांव सैदपुर, जिला महेन्द्रगढ़(हरियाणा)।
शिक्षा: एम.ए. (राजनीति शास्त्र), पत्रकारिता एवं जनसंचार में स्नातकोत्तर डिप्लोमा। 
संप्रत्ति:सदस्य-हरियाणा लाइव पब्लिकेशन एडवाइजरी बोर्ड तथा 35 वर्ष का पत्रकारिता में अनुभव।
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-ओ.पी. पाल 
हिन्दी साहित्य की विभिन्न विद्याओं में जनहित एवं जन कल्याण की दिशा में समग्र लेखन करते आ रहे राष्ट्रीय स्तर के प्रख्यात वरिष्ठ साहित्यकार रोहित यादव ने समाज को प्रकृति से प्रेम करने की प्रेरणा दी है। उन्होंने मानव जगत में बच्चों से लेकर बुजुर्गो तक को नई दिशा देने के अलावा समाज में जीव-जंतु तथा वनस्पति यानि जीव-जन्तुओं तथा पेड़ पौधों के संरक्षण के प्रति जनचेतना जागृत करने के लिए भी अपने साहित्य में रचना संसार का विस्तार किया है। सर्वजन हिताय में साहित्य की सार्थकता को चरितार्थ करने वाले हरियाणा के साहित्यकारों में उन्होंने कुछ अलग नया करने का प्रयास किया है। साहित्य के क्षेत्र में समाज को दिशा देने के लिए लेखन करने वाले रोहित यादव ने अपने पत्रकारिता और साहित्यिक सफर को लेकर हरिभूमि संवाददाता से बातचीत करते हुए कई ऐसे पहलुओं को भी उजागर किया है, जो कार्य एक साहित्यकार या लेखक के लिए आसान नहीं है।
राष्ट्रीय स्तर के प्रसिद्ध साहित्यकार रोहित यादव ने महेन्द्रगढ़ जिले के गांव सैदपुर में आठ जनवरी 1955 एक साधारण किसान परिवार प्रभुदयाल के यहां जन्म लिया। अपने आठ भाईयों में चौथे स्थान के रोहित की पत्नी शीला भी गृहणी होने के साथ एक कुशल साहित्यकार हैं। उनके चार भाई राष्ट्रीय स्तर के पहलवान रह चुके हैं। रोहित यादव ने कहा कि उन्होंने पत्रकारिता के क्षेत्र में भी सामाजिक प्रतिबद्धता का निर्वहन करते हुए सामाजिक विकृतियों, गिरते भूजल स्तर,बढ़ते प्रदूषण और भ्रष्टाचार के अलावा विलुप्त होती संस्कृति, विलुप्त होते पारंपरिक खेल, वनस्पति, जीव जंतु आदि महत्वपूर्ण विषयों पर लेखन किया। समाज से जुड़ी चीजों पर लिखने की रुचि उन्हें ग्रामीण तथा आंचलिक पत्रकारिता को नई ऊंचाई प्रदान करने के साथ साहित्यकार की बुलंदियों तक लेकर आई, जिसमें साहित्य को हर विधा में एक से बढ़कर एक नई कृतियां देने का प्रयास है कि उनकी कविताओं में जमीनी सच कविताओं एवं लघु कथाओं में चासनी का काम करती देखी जाती है। उनका कहना है कि साहित्य के क्षेत्र में भी उनका कुछ नया करने का प्रयास रहा। उन्होंने लोक साहित्य के अलावा काव्य के क्षेत्र में कुंडली विद्या को पुनर्जीवित करने के प्रयास में ही तिक्का तथा द्विपदी विद्या को जन्म दिया। इसी प्रयास का परिणाम रहा कि उनकी बोल मितवा बोल को हरियाणा प्रदेश का प्रथम कुंडली संग्रह होने का गौरव प्राप्त है। उनकी कालचक्र नामक पुस्तक में कुंडली को जीवित कर दिया है। उनकी 160 कुंडलियों में 2018 का इतिहास जाना जाता है। कुंडली का ऐसा रिश्ता पहली बार हुआ है। कुंडली और देश एक हो गये हैं। इसके अलावा उन्होंने एक कवि के रूप में इस बदले हुए परिवेश में शराब के दोषों को गिनाया है तथा जनमानस को इससे दूर रहने का संदेश दिया है। रोहित यादव के साहित्य पर एमफिल और पीएचडी के लिए एक दर्जन से ज्यादा शोध कार्य भी संपन्न किये गये हैं। इनमें हरियाणा के कुरुक्षेत्र विश्विविद्यालय, महर्षि दयानंद विश्वविद्यालय रोहतक, विनायक मिशन्स विश्वविद्यालय सेलम (तमिलनाडु), सिंघानिया विश्वविद्यालय पचेरी बड़ी (राज.), सीएमजे विश्विद्यालय शिलांग व वीर कुँवर सिंह विश्वविद्यालय बिहार समेत कई विश्वविद्यालयों द्वारा एमफिल तथा पीएचडी उपाधि के लिए एक दर्जन से ज्यादा शोध कार्य करवाया जा चुका है। आज के इस आधुनिक वैज्ञानिक युग में साहित्य को प्रभावित तो किया है, लेकिन युवा पीढ़ियों को साहित्य के प्रति प्रेरित करने के लिए बदलते परिवेश के अनुसार मौलिक और अच्छे साहित्य को बढ़ावा देने की आवश्यकता है। 
प्रकाशित पुस्तकें 
हरियाणा के ग्रामीण परिवेश में रहते हुए 56 पुस्तकों के रचयिता प्रतिष्ठित साहित्यकार एवं पत्रकार रोहित यादव की का अष्टपदी-संग्रह ‘मधुशाला’ सद्य: प्रकाशित कृति है। उनकी प्रकाशित पुस्तकों में प्रमुख रूप से हरियाणा की लोक विरासत, हरियाणा में प्रचलित लोक कथाएँ, हरियाणा में प्रचलित दंत कथाएँ, अहीरवाल के लोकगीत, माई शॉर्ट स्टोरिज, जीव-जंतुओं के दोहे, दोहों में जीव-जंतु, फल-सब्जियों के दोहे, वनस्पति-जगत के दोहे, जड़ी-बूटियों के दोहे, जीव-जगत के दोहे, दोहा-दोहा वनस्पति, नंगा सच तथा अन्य लघुकथाएँ, सैनिकों की कहानियाँ, छूत-अछूत तथा अन्य कहानियाँ, टपका का डर तथा अन्य बाल कहानियाँ, लोमड़ी का न्याय तथा अन्य बाल कहानियाँ सुर्खियों में हैं। उन्होंने लघुकथा संग्रह ‘सब चुप हैं’ के अलावा दो उपन्यास- पुनर्जन्म व लाजवंती, 11 निबंध संग्रह-विलुप्त होती हमारी सांस्कृतिक धरोहर, ग्रामीण खेल, कितने बदल गए गाँव, परम्परागत वनस्पतियों का अर्थशास्त्र, हमारी सामाजिक विकृतियाँ, चलें गाँव की ओर, हमारी औषधीय एवं मसालेदार वनस्पतियाँ, अजब-गजब जीवों का संसार, हमारे लोक मेले, हमारे वाद्य यंत्र तथा हमारे परम्परागत आभूषण भी लिखे हैं। रोहित यादव के प्रकाशित रचना संसार में दो दोहा सतसई- उमर गुजारी आस में व चला चाक कुम्हार का, दो तिक्का-संग्रह-ढूंढ़ते रह जाओगे और तिक्का कलश, दो दोहा संग्रह-जलता हुआ चिराग व जीवों का संसार, चार कुंडली संग्रह-बोल मितवा बोल, कालचक्र, कालदर्शन व कालदंश शामिल हैं। इसके अलावा उनकी अब हल्ला बोल (कविता-संग्रह), नारे कितने प्यारे (नारा-संग्रह), देते हैं अवशेष गवाही (द्विपदी संग्रह) तथा मधुशाला (अष्टपदी संग्रह) प्रकाशित हुए हैं। इनके अलावा रोहित यादव की दस संपादित कृतियां भी हैं, जिनमें मानव अभिनन्दन स्मारिका, यदुस्मृति, स्मृति अशेष बाबू बालमुकुंद गुप्त, नारी तेरे नाम (शीला काकस की काव्य रचनाएँ), कालबोध (आकाश यादव की क्षणिकाएँ), शहर के बीचों-बीच (डॉ. मानव की प्रतिनिधि कविताएँ), नाथ पंथ के गौरव बाबा खेतानाथ, नारी शक्ति की प्रतीक शांति चौहान, डॉ मानव की प्रतिनिधि लघुकथाएँ और साक्षात् देवी: पुष्पा परमार (स्मृति ग्रंथ) शामिल हैं। देश की प्रथम श्रेणी की सोलह दर्जन पत्र-पत्रिकाओं में विविध रचनाओं का वर्ष 1980 से निरन्तर प्रकाशन तथा आकाशवाणी से प्रसारण हुआ है। वहीं उ नकी कुछ रचनाएँ अन्य भाषाओं में भी अनुवादित हो चुकी हैं। 
सम्मान व पुरस्कार 
साहित्य के क्षेत्र में विभिन्न विधाओं में साहित्यिक सेवा में जुटे साहित्यकार रोहित यादव को हरियाणा सरकार ने इसी साल फरवरी में हरियाणा साहित्य अकादमी के वर्ष 2021 के लिए महाकवि सूरदास आजीवन साहित्य साधना सम्मान देने के लिए चयनित किया है। इससे पहले हरियाणा साहित्य अकादमी उन्हें वर्ष 2014 के 'महाकवि सूरदास सम्मान' से भी नवाज चुकी है। जबकि वर्ष 2006-07 में हिन्दी पत्रकारिता के लिए उन्हें बाबू बालमुकन्द गुप्त सम्मान प्रदान किया गया था। वहीं वर्ष हरियाणा ग्रंथ अकादमी द्वारा वर्ष 2012 में ‘लघुकथा सम्राट' की मानद उपाधि भी दी गई है। अखिल भारतीय मानवाधिकार संघ नई दिल्ली द्वारा 'इंटरनेशनल ह्यूमन राइट्स अवार्ड'–2004 दे चुकी है। इसके अलावा रोहित यादव8 को देश भर की 150 से अधिक जानी-मानी संस्थाओं से पुरस्कृत करके सम्मानित कर चुकी हैं। देश विदेश की एक दर्जन संस्थाओं के 'हूजहू' में जीवन परिचय प्रकाशित होना उनकी उपलब्धियों से कम नहीं है। लिम्का बुक ऑफ रिकाउर में भी रोहित यादव अपना नाम दर्ज करा चुके हैं। 
सम्पर्क सूत्र :-गाँव-सैदपुर, मंडी अटेली-123021 जिला–महेन्द्रगढ़ (हरियाणा) मो.नं.–8814012907, 9416331110 
09May-2022

शुक्रवार, 6 मई 2022

मंडे स्पेशल: हरियाणा में रिकार्ड बनाने के मुहाने पर बिजली संकट

बिजली आपूर्ति और मांग का अंतर पांच हजार मेगावाट के पार 
प्रदेश के पावर प्लांटों में क्षमता से 50 फीसदी बिजली का उत्पादन 
अन्य राज्यों से बिजली खरीदने के बावजूद मांग बरकरार 
अडाणी व टाटा से करार को बहाल होने से मिल सकती है निजात 
 ओ.पी. पाल.रोहतक। केवल हरियाणा ही नहीं, पूरे उत्तर भारत में बिजली की किल्लत नए रिकॉर्ड बना रही है। राज्य के बिजली अधिकारियों को समझ में ही नहीं आ रहा कि आपूर्ति और मांग के बीच पांच हजार मेगावाट से ज्यादा के अंतर को कैसे पाटा जाए। इसके लिए बकायदा बिजली कट शैड्यूड भी जारी किया गया, लेकिन इसके बावजूद भी बिजली की आपूर्ति की नहीं हो पा रही। एक तरफ तो सूर्यदेव अंगारे बरसा रहे हैं वहीं दूसरी तरफ बिजली के अघोषित कट ने न केवल आम जनमानस का हाल बेहाल कर रखा है, बल्कि उद्योगों की चिमनियों को भी ठंडा कर दिया है। प्रदेश में बिजली सरप्लस होने का दावा करने वाले नेताओं को भी समझ में ही नहीं आ रहा कि इस संकट से कैसे बाहर निकला जाए। वहीं राज्य में जो बिजली उत्पादन करने वाले पावर प्लांट महज आधी क्षमता से ही काम कर रहे हैं। अडाणी और टाटा ग्रुप से बिजली आपूर्ति करार विवादों में उलझे पडे हैं। न तो विवाद सुलझ रहे हैं और न ही उत्पादन बढ़ पा रहा है। ऐसे में अब सरकार की उम्मीद भी मौसम पर टिकी है। अगर अगले कुछ दिनों में सूर्यदेव ने कुछ नरमी न दिखाई तो हालात और भी विकराल होने तय है।
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प्रदेश में पिछले सालों की अपेक्षा गर्मी के मौसम की दस्तक आते ही सूर्य देवता ने मई से पहले ही अपनी तपिस के तेवर दिखाने शुरू कर दिये तो बिजली की खपत बढ़ना स्वाभाविक है। इसलिए अप्रैल महीने में बिजली संकट जिस हाहाकारी मोड़ पर पहुंचा है।इस कारण प्रदेशभर में चौतरफा बिजली के अघोषित कटों ने शहरी व ग्रामीण दोनों क्षेत्रों में आमजन के जनजीवन को हाल बेहाल कर दिया। इस बिजली संकट से निपटने के लिए हरियाणा सरकार के तमाम दावे कर रही है, लेकिन इसके बावजूद समूचे प्रदेश में बिजली आपूर्ति और मांग का अंतर लगातार बढ़ता ही जा रहा है। हरियाणा सरकार ने इस बिजली के संकट के दौर में बिजली कट के लिए जो शेडयूल जारी किया, उस पर बिजली निगम खरा नहीं उतर पा रहा है। बिजली की कटौती से परेशान प्रदेशभर के विभिन्न हिस्सों में कुछ संगठन और लोग सड़कों पर भी है। सरकार इस संकट से समाधान के लिए हर जिले में बिजली घरों की क्षमता बढ़ाने की योजना शुरू करने की बात भी कह रही है और मौजूदा संकट से राहत देने को 350 मेगावाट अतिरिक्त बिजली छत्तीसगढ़ और 150 मेगावाट मध्य प्रदेश तथा अन्य स्रोतों से बिजली की आपूर्ति लेने का भरोसा दे रही है। सरकार का यह भी दावा है कि गुजरात स्थित अडाणी पावर प्लांट से 1200-1400 मेगावाट बिजली करार के विवाद को निपटाने का प्रयास कर रही है। प्रदेश में फिलहाल गहराते बिजली संकट की बात करें तो मांग और आपूर्ति में समन्वय स्थापित करने के लिए प्रदेश सरकार द्वारा केंद्रीय पुल से 12 रुपये प्रति यूनिट के हिसाब से बिजली खरीद रही है, लेकिन यह अंतर कम होने के बजाए लगातार बढ़ता जा रहा है। ऐसे ही हालात रहे तो आने वाले कुछ दिनों में बिजली की आपूर्ति और मांग के अंतर का यह आंकड़ा रिकार्ड कायम कर सकता है, जो इस समय करीब 5500 मेगावाट से भी ज्यादा हो चुका है। 
पावर प्लांटों में क्षमता से कम उत्पादन 
यमुनानगर के 600 मेगावाट क्षमता वाले दीनबंधु छोटूराम थर्मल पावर प्लांट की दो ईकाई से 555 मेगावाट बिजली का ही उत्पादन हो पा रहा है। हालांकि सरकार यहां 750 मेगावाट का नया पावर प्लांट लगाने की प्रक्रिया पूरी करने में लगी हुई है। जबकि पानीपत थर्मल पावर प्लांट की 710 मेगावाट क्षमता वाली तीन ईकाई से महज 635 मेगावाट बिजली पैदा की जा रही है। हिसार खेदड़ थर्मल पॉवर प्लांट की एक ईकाई तो तकनीकी दिक्कत के कारण पहले से ही बंद है,जबकि 600 मेगावाट क्षमता की एक ईकाई से 580 मेगावाट बिजली का उत्पादन हो रहा है, लेकिन वह भी नियमित नहीं है। मसलन पानीपत, यमुनानगर और खेदड़ में 1770 मेगावाट बिजली उत्पादन हो रहा है। अब यदि झज्जर जिले में इंदिरा गांधी थर्मल पॉवर स्टेशन झाड़ली की 500-500 मेगावाट यानी 1500 मेगावाट क्षमता की तीनों यूनिट में बिजली उत्पादन और आपूर्ति की बात की जाए तो उनमें 1390 मेगावाट बिजली का उत्पादन हो रहा है, जिसमें 50 फीसदी हिस्सेदारी दिल्ली की होने के कारण उत्पादन का 43 फीसदी हिस्सा दिल्ली को आपूर्ति हो जाता है। मसलन इस संकट की घड़ी में इन तीनों ईकाई से हरियाणा को करीब 653 मेगावाट बिजली आपूर्ति हो पा रही है। इसके अलावा हरियाणा में भाखड़ा डैम से 419 मेगावाट व देहर डैम से 646 मेगावाट बिजली उत्पादन में से 105 मेगावाट बिजली आपूर्ति हो रही है। यानी हरियाणा को इस समय 3529 मेगावाट बिजली की आपूर्ति पर निर्भर रहना पड़ रहा है, जबकि इस समय प्रदेश में नौ हजार मेगावाट से ज्यादा बिजली की मांग बढ़ चुकी है, जो सर्दियों के दिनों में 6500 मेगावाट रहती है। इस बार गर्मी के आने वाले दिनों में संकट बढ़ने पर इस मांग के 15 हजार मेगावाट पहुंचने से इंकार नहीं किया जा सकता, जो पिछले साल 12 हजार मेगावाट तक पहुंच गई थी। 
आमजन पर दोहरी मार 
बिजली की आपूर्ति में कमी के कारण आमजन को दोहरी समस्या से दो चार होना पड़ रहा है। मसलन बिजली कटौती का सीधा असर जलापूर्ति पर भी पड़ रहा है। ऐसी गर्मी के मौसम में बिजली न होने की वजह से मोटर के जरिए घरों में होने वाली जलापूति भी प्रभावित है। जलापूर्ति के लिए दिन में ज्यादा से ज्यादा तीन बार समय निर्धारित है और उसी समय बिजली का घंटों के लिए कट होने से आमजन को पानी की किल्लत का भी सामना करने के लिए मजबूर होना पड़ रहा है। हालात यहां तक पहुंच गये हैं कि दिनभर लाइट डिम आने व लोड बढ़ने पर लगाए जा रहे कटों के चलते एसी, कूलर तो क्या इंवेर्टर भी जवाब दे रहे हैं। 
बिजली आपूर्ति की व्यवस्था 
प्रदेश में हरियाणा बिजली प्रसारण निगम बिजली की आपूर्ति, उत्तरी हरियाणा बिजली वितरण निगम और दक्षिणी हरियाणा बिजली वितरण निगम का दायित्व बिजली का संप्रेषण करने का है। प्रसारण निगम से मिलने वाली बिजली को उत्तरी हरियाणा बिजली वितरण निगम अपने तहत आने वाले करनाल, पानीपत, सोनीपत, जींद, रोहतक, कुरुक्षेत्र, यमुनानगर व अंबाला सर्कल में औद्योगिक, ग्रामीण, शहरी, कृषि क्षेत्रों में बिजली की आपूर्ति करती है। इसी तरह दक्षिणी हरियाणा बिजली वितरण निगम अपने हिसार, भिवानी, गुड़गांव, सिरसा, नारनौल, फरीदाबाद सर्कलों में कृषि, ग्रामीण, शहरी व औद्योगिक क्षेत्रों में बिजली की आपूर्ति करता है 
क्यों आया बिजली संकट
प्रदेश में इस बार बिजली की मांग पिछले साल के मुकाबले 40 प्रतिशत तक अधिक है। सरकार के प्रयासों के बीच अदाणी कंपनी से 1421 मेगावाट और टाटा से 500 मेगावाट का करार के बावजूद बिजली आपूर्ति बंद है। एक साल से अधिक समय से अडाणी 1421 और टाटा 500 मेगावाट बिजली आपूर्ति मोलभाव में उलझी हुई है। पूरा अप्रैल माह विभाग इन कंपनियों से विवाद सुलझा रहा है। यूपी के मेरठ संक्रोनाइजेशन केंद्र भी हरियाणा के करार के अनुसार बिजली की मांग पूरी नहीं कर पा रहा है। वहीं प्रदेश के पावर प्लांट भी क्षमता के मुताबिक बिजली उत्पादन नहीं कर पा रहे हैं। वहीं खेदड थर्मल पावर प्लांट की एक इकाई को तकनीकी दिक्कतों के चलते बंद कर दिया गया है। विभाग के अनुसार पावर प्लांट का राउटर बदलना है जो चीन से आना है, जहां अभी लॉकडाउन के कारण इसे बदलने का काम अभी अधर में हैं। इसी प्रकार प्रदेश के फरीदाबाद में गैस प्लांट में बनने वाली बिजली गैस का रॉ मैटेरियल न होने की वजह बंद बिजली उत्पादन बंद हैं, तो ऐसे में मांग की अपेक्षा आधे से भी कम बिजली आपूर्ति की वजह से प्रदेशभर में यह संकट आया है। 
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वर्जन 
प्रदेश में अचानक बढ़ी मांग के कारण आए बिजली संकट से जल्द ही निजात मिलने की उम्मीद है। सरकार प्रदेश को बिजली संकट से मुक्त करने की दिशा में जहां छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश जैसे राज्यों और अन्य स्रोतों से खपत को पूरा करने की योजना पर काम कर रही है। वहीं अडाणी और टाटा कंपनियों के अधिकारियों के साथ कई दौर की बैठकें हो चुकी हैं। सकारात्मक बातचीत को देखते हुए उम्मीद है कि जल्द ही अडाणी ग्रुप से बिजली मिलनी शुरू हो जाएगी। दूसरी ओर प्रदेश के एक दो पावर प्लांटों में आ रही तकनीकी खराबी को भी दूर कर लिया जाएगा और उनमें क्षमता के अनुरूप बिजली का उत्पादन शुरू हो जाएगा। पावर प्लाटों में कोयले की कमी नहीं आने दी जाएगी। प्रदेश में अगले सात-आठ दिन में लगभग 1500 मेगावाट अतिरिक्त बिजली की व्यवस्था करने का प्रयास किया जा रहा है।
 -रणजीत सिंह, बिजली मंत्री, हरियाणा 
02May-2022