सोमवार, 16 मई 2022

मंडे स्पेशल: प्रदेश में नहीं थम रहा है बच्चों की तस्करी का सिलसिला

रोजाना पलक झपकते गायब हो जाते हैं एक दर्जन से ज्यादा बच्चें 
गलत कामों के लिए तस्करी के शिकार बच्चों में सर्वाधिक बालिकाएं 
ओ.पी. पाल.रोहतक। प्रदेश में बच्चे सुरक्षित नहीं है, यह बच्चों की तस्करी, लापता या अपहरण जैसे अपराधों का बढ़ता ग्राफ गवाही दे रहा है। प्रदेश में हर दिन कम से कम एक दर्जन बच्चे पलक झपकते ही गायब हो जाते हैं, जिन्हें गलत काम के लिए ऐसे अपराधों का शिकार बनाया जा रहा है। सबसे भयावह हालात ये हैं कि लापता या तस्करी के शिकार बच्चों में लड़कों से ज्यादा लड़कियां हैं। प्रदेश में पिछले तीन साल में बच्चों के गायब होने या अपहरण के दर्ज किये गये 14 हजार से ज्यादा मामले बच्चों की सुरक्षा को लेकर बनाए गये कानूनों के झोल की ओर इशारा करते हैं, इनमें 63 मामले बाल तस्करी के भी शामिल हैं। यह आलम तब है जब बच्चों की सुरक्षा के मद्देनजर पिछले दिनों संबन्धित कानूनों को सख्त बनाया जा चुका है। बच्चों के प्रति बढ़ते अपराधों के चौंकाने वाले आंकडों के बीच पांच माह पहले ही हरियाणा में बच्चों के संरक्षण के लिए काम करने वाली बाल कल्याण समिति, बचपन बचाओं आंदोलन जैसी संस्थाओं और पुलिस ने लापता या तस्करी के जाल में फंसे दस हजार से भी ज्यादा बच्चों को बरामद किया है। 
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रियाणा में सबसे चिंताजनक पहलू ये है कि प्रदेश में अपहरण की शिकार बालिकाएं हो रही है, जिसके लिए उन्हें बेचा जा रहा है। प्रदेश में बच्चों की तस्करी, अपहरण की घटनाओं के आंकड़े इस बात की भी गवाही दे रहे हैं कि बच्चों का अपहरण हत्या, फिरौती वसूलने, मानव तस्करी, वैश्यावृत्ति, यौन अपराध, भीख मंगवाने, जबरन नाबालिग लड़कियों से शादी करने जैसे गैर कानूनी कामों के लिए किये जा रहे हैं। हरियाणा में बाल तस्करी के मामलों की जांच में पुलिस भी पुष्टि कर चुकी है कि 23 नाबालिक लड़की और तीन बच्चों की मानव तस्करी ज्यादातर देह व्यापार में धकेलने इरादे से की गई। राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो की रिपोर्ट में अभी तक साल 2020 तक के ही आंकड़े सार्वजनिक किये गये हैं, जिनके अनुसार प्रदेश में बच्चों के अपहरण और लापता होने के 14,326 मामले दर्ज हुए हैं, जिनमें तस्करी के 14 मामले भी शामिल हैं। इनमें ज्यादातर बालिकाएं शामिल हैं। इसी प्रकार बाल कल्याण समिति और टीम ने पिछले दो साल में रोहतक के अलावा अन्य जिलों से दो साल के अंदर 50 से अधिक झारखंड के मासूमों को इस दलदल से निकाल चुका है। इनमें से करीब साठ प्रतिशत को पढ़ाई का झांसा देकर तस्करी करके लाया गया था। वहीं प्रदेश में आने वाले समय में बच्चों की सुरक्षा में सेंध के ऐसे आपराधिक आंकड़े चौंकाने वाले हो सकते हैं, क्योंकि अकेले पानीपत जिले में पिछले सवा दो सालों में 4 से 17 साल तक के तीन सौ से ज्यादा बच्चे लापता हो चुके हैं, जिनके अपहरण या तस्करी की आशंका है। यह मामला हरियाणा विधानसभा में भी उठाया जा चुका है। हालांकि हरियाणा पुलिस ने लापता या गुमशुदा हुए 10,868 बच्चों को साल 2021 के दौरान साल एक अभियान चलाकर तलाशा है। इनमें 3839 लड़के और 7029 लड़कियां शामिल हैं, जो लंबे समय से किसी न किसी कारण से लापता हो गये थे। इन बरामद हुए बच्चों में 1813 बाल भिखारी और 2021 बाल श्रमिकों के रूप में कार्य करते पाए गये। लेकिन पिछले तीन साल के दौरान प्रदेश में तस्करी, लापता या अपरहरण के शिकार बच्चों की सुरक्षा पर अभी भी सवालिया निशान लगा है, क्योंकि बसों, ट्रेनों में तस्करी के लिए एक प्रदेश से दूसरे प्रदेश में ले जाए जाने वाले बच्चों के मिलने का सिलसिला थमने का नाम नहीं ले रहा है। 
तस्करी के ज्यादा मामले लंबित
विशेषज्ञों का मानना है कि बाल तस्करी के शिकार बच्चों को भिक्षावृत्ति, मानव अंगों के कारोबार तथा यौन शोषण के लिए उनकी गैरकानूनी खरीद-फरोख्त होती आई है। इसके लिए गरीब परिवारों के बच्चों को चाइल्ड पोर्नोग्राफी के शौकीन लोग यौनाचार का शिकार बनाते हैं। प्रदेश में पिछले तीन साल में बाल तस्करी के 63 मामलों में से पुलिस ने 40 मामलों में 141 आरोपियों के खिलाफ आरोप पत्र दाखिल किये और 16 मामलों में साक्ष्यों के अभाव में फाइनल रिपोर्ट लगाकर उन्हें बंद कर दिया। हालांकि 141 आरोपियों में से साक्ष्य के अभाव में 87 को अदालत से दोषमुक्त कर दिया गया। इन मामलों में से 27 मामलों में ट्रायल्स चल रहा है। मसलन इन तीन सालों में अदालत से अभी तक केवल एक आरोपी पर ही दोषसिद्ध हो पाया है। जबकि इन तीन सालों में मुक्त कराए गये 39 बच्चों को मुक्त कराया जा चुका है, जिनमें 32 नाबालिग लड़कियां शामिल हैं। वैसे भी हरियाणा देश के उन राज्यों में हरियाणा भी शामिल है, जहां पॉक्सो के 51 प्रतिशत मामले हैं और सजा की दर केवल 30 से 64 फीसदी के बीच है। मसलन पुलिस और अदालत में दर्ज मामलों की तुलना में निपटान बेहद कम है। इनमें सर्वाधिक पॉक्सो के 40 फीसदी मामले पर्याप्ते साक्ष्य या सुराग के अभाव में आरोपपत्र दाखिल किए बिना ही पुलिस द्वारा बंद कर दिये गये। सबसे चिंताजनक पहलू ये है कि प्रदेश में अपहरण की शिकार बालिकाएं हो रही है और वह भी बचने के मकसद से। इसके अलावा आंकड़े बताते हैं कि बच्चों का अपहरण हत्या, फिरौती वसूलने, मानव तस्करी, वैश्यावृत्ति, यौन अपराध, भीख मंगवाने, जबरन नाबालिग लड़कियों से शादी करने जैसे गैर कानूनी कामों के लिए किये जा रहे हैं। 
अधर में तस्करी प्रकोष्ठ 
सरकार बच्चों की सुरक्षा के मद्देनजर पिछले दिनों संबन्धित कानूनों को सख्त बना चुकी है, लेकिन इसके बावजूद यौन शोषण पर अंकुश नहीं लग पा रहा है। केंद्र सरकार राज्यों कमो एंटी ह्यूमन ट्रैफिकिंग सेल की स्थापना करने के भी निर्देश दे चुकी है, लेकिन हरियाणा में अभी तक इस सेल की स्थापना होने की सरकार की ओर से कोई पुष्टि नहीं की गई है। इस कानून के अनुसार इस प्रकोष्ठ के जरिए यौन संबन्धी मामलों में जांच की निगरानी और उसे ट्रैक करने के लिए यौन अपराध जांच ट्रैकिंग प्रणाली नामक एक ऑनलाइन विश्लेषणात्मक टूल शुरू किया जाना है। हालांकि प्रदेश में राज्य अपराध शाखा की विशेष एंटी-ह्यूमन ट्रैफिकिंग यूनिट ने बच्चों की सुरक्षा के लिए समर्पण अभियान चला रही है। विशेषज्ञों के अनुसार पढ़ाई और नौकरी का झांसा देकर झारखंड जैसे राज्यों के मासूमों को तस्कर गिरोह पहले दिल्ली लाता है और उसके बाद इन मासूमों को पांच से बीस हजार में हरियाणा के रोहतक, पानीपत, सोनीपत, कैथल, फतेहाबाद, भिवानी, झज्जर के अलावा अन्य राज्यों के विभिन्न स्थानों पर बेच दिया जाता है। 
बेलगाम हुआ बाल शोषण 
एनसीआरबी की रिपोर्ट के मुताबिक देश में हर घंटे 3 बच्चों के साथ बलात्कार और 5 बच्चों का यौन उत्पींड़न होता है। बाल यौन शोषण में 99 प्रतिशत लड़कियां सामने आ रही हैं। हरियाणा में पिछले तीन साल में अपहरण या तस्करी के शिकार बच्चों में सबसे ज्यादा 2482 नाबालिगों बालिकाओं को बेचने के इरादे से अपराध को अंजाम दिया गया। इनमें साल 2020 में उठाई गई 787 लड़कियों के अपरहण के मामले दर्ज हैं, जबकि इससे पहले दो सालों में यहं संख्या 800 से ज्यादा रही। प्रदेश में साल 2020 में 545 बच्चों का अपरहण केवल यौन अपराध के मकसद से किया गया, जिनमें 11 बालक भी शामिल हैं। साल 2020 के दौरान 1032 बालिकाओं को दुष्कर्म और 69 बालकों को कुकर्म का शिकार बनाया गया। सबसे ज्यादा 12 से 18 साल तक के 943 नाबालिगों को दुष्कर्म और कुकर्म का शिकार बनाया गया, जबकि 12 साल से कम आयु के 160 बच्चे पीड़ित रहे। उधर हरियाणा राज्य बाल अधिकार संरक्षण आयोग के अनुसार प्रदेश में वर्ष 2021 के दौरान बाल शोषण के 2176 मामले दर्ज किए गए, जो वर्ष 2020 में 1827, वर्ष 2019 में 2074, वर्ष 2018 में 2109, वर्ष 2017 में 1471, वर्ष 2016 में 1297 मामलों से कहीं अधिक हैं। लड़कियों को ही नहीं, आरोपी मासूम लड़कों को भी दुष्कर्म का शिकार बना रहे हैं। वर्ष 2021 के दौरान प्रदेश में गुरुग्राम, फरीदाबाद, करनाल, पानीपत, हिसार, रोहतक और सोनीपत जिले से बाल शोषण की सर्वाधिक शिकायते आयोग को मिली। 
आयोग में न्याय की गुहार 
प्रदेश में राज्य बाल अधिकार संरक्षण आयोग भी बच्चों को न्याय दिलाने में सतर्कता बरत रहा है। आयोग के आंकड़ो के मुताबिक पिछले पांच साल में पहुंची 1663 शिकायतों में आधे से ज्यादा 833 शिकायतों का निपटारा किया जा चुका है। इन शिकायतों में सबसे ज्यादा 762 शिकायतें वर्ष 2019-21 के दौरान आयोग को मिली, जिनमें से इन दो सालों में 412 शिकायतों का निपटान किया गया। 
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बच्चों की सुरक्षा महत्वपूर्ण 
हरियाणा में लापता बच्चों को रिकिवर करने का आंकड़ा ठीक है। पुलिस के लिए एक-एक बच्चा महत्वपूर्ण है, जिसकी सुरक्षा के लिए पुलिस की टीमें निर्धारित की जाती हैं, जो बच्चों के संरक्षण के लिए काम करने वाली एजेंसियों के साथ मिलकर काम करती हैं। पुलिस को बच्चों के खिलाफ अपराध के मामलों में बच्चों को सुरक्षित बरामद करने में सफलता भी मिल रही और अपराधियों की भी धरपकड़ हो रही है। फिर भी यदि एक भी बच्चा गायब होता है तो उसे बरामद करने के लिए पुलिस कोई भी कोर कसर नहीं छोडेंगी। -संदीप खिरवार, एडीजी(कानून व्यवस्था), हरियाणा 
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पुलिस को त्वरित कार्रवाई की जरुरत 
हरियाणा राज्य बाल अधिकार संरक्षण आयोग बच्चों को न्याय दिलाने के लिए जिस प्रकार से कार्य कर रहा है, उसके लिए उसे देश का प्रथम पुरस्कार भी मिल चुका है। आयोग का कार्य तस्करी, अपहरण या लापता हुए बच्चों के अलावा बच्चों के खिलाफ अपराधों को लेकर पुलिस या अन्य एजेंसी द्वारा की जाने वाली कार्यवाही की सतर्कता के साथ निगरानी करता है। लेकिन यदि तस्करी या अपहरण या अन्य तरीके से लापता किसी बच्चें या लड़की का पता लगता है तो पुलिस उस मामले को गुमशुदगी में दर्ज कर लेती है जो गलत है। वहीं सुराग मिलने पर बच्चों को बरामद करने के लिए त्वरित संसाधनों का इस्तेमाल नहीं करती, जिसकी वजह से बच्चों की सुरक्षा खतरे में पड़ जाती है। बच्चों के संरक्षण के लिए पुलिस और एजेंसियों को त्वरित कार्यवाही के लिए और भी काम करने की जरुरत है। -ज्योति बैंदा, चेयरमैन, राज्य बाल अधिकारी संरक्षण आयोग, हरियाणा 
16May-2022

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