सोमवार, 30 मई 2022

चौपाल: हरियाणवी सिनेमा का सूखा खत्म करने को तैयार फिल्म ‘दादा लख्मी’

सांगी पं.लखमीचंद की बायोपिक को लेकर बनी हरियाणवी फिल्म 
-ओ.पी. पाल 
रियाणा की लोक संस्कृति में एक लंबा इतिहास रखने वाली लुप्त होती रागणियों की संस्कृति को जीवंत रखने के लिए सूबे के लोक कलाकर नए आयाम के साथ संजोने का प्रयास कर रहे हैं। इसी मकसद से बॉलीवुड के अभिनेता यशपाल शर्मा के निर्देशन में सांगों में रागणियों के जनक और लोककवि पंडित लख्मीचंद की बायोपिक को लेकर बनी हरियाणवी फिल्म ‘दादा लख्मी’ ने तो सिनेमा घरों आने से पहले ही चौतरफा अपने रंग बिखेरते नजर आ रही है। सही मायने में उम्मीद की जा रही है कि ‘हरियाणवी फिल्म ‘दादा लख्मी’ हरियाणवी सिनेमा को जीवंत करने का सबब बनेगी। हरियाणवी लोक संस्कृति की अपनी एक पहचान रही है और चन्द्रावल’ के बाद यही ऐसी हरियाणवी फिल्म बनाई गई है, जिसमें सूर्य कवि पंडित लख्मीचंद का रागिनी प्रेम, संघर्षगाथा, जीवनशैली और लोक कला पर आधारित हरियाणवी संस्कृति, सभ्यता, भाषा, रिति-रिवाज और तमाम सामाजिक तानाबाना समायोजित किया गया है। ‘पंडित लखमी चंद’ जिन्हें हरियाणा का सांग सम्राट, भविष्यवक्ता’ कबीरदास’ शेक्सपीयर और सूर्य कवि भी कहा गया है। हरियाणवी फिल्म ‘दादा लख्मी’ जल्द ही आने वाले दिनों में रिलीज होने की उम्मीद है। इस फिल्म की शूटिंग हरियाणा के विभिन्न हिस्सों के अलावा राजस्थान के इलाकों में भी हुई है। दो भागों में बन रही फिल्म के पहले भाग में पंडित लख्मी चंद के जीवन के तीन पड़ाव फिल्माये गये हैं। फिल्म में सांगी पं.लखमीचंद के बचपन की भूमिका योगेश वत्स ने चेहरे पर गंभीरता के साथ संवादों से बड़े अच्छे से निभाया है। जबकि युवा रूप में हितेश शर्मा ने अपनी अभिनय प्रतिभा का बखूबी प्रदर्शन किया है। फिल्म का यह प्रथम भाग इन्हीं दो पात्रों के ईर्दगिर्द है। जबकि परिपक्व लखमीचंद का अभिनय खुद यशपाल शर्मा ने निभाया है। फिल्म के पहले भाग में लख्मीचंद की पहले तीन पड़ाव पर फोकस है और यशपाल शर्मा का बहुत थोड़ा अभिनय आरंभ में दिखाया गया है, बाकी दूसरे भाग की फिल्म में उन्हीं की भूमिका होगी। जबकि लख्मी की मां का अभिनय फिल्म अभिनेत्री मेघना मलिक कर रही है। हरियाणवी लेखक राजू मान एवं रोशन शर्मा ने संपूर्ण अनुसंधान करने के बाद इस फिल्म की पटकथा लिखी है। फिल्म का संगीत प्रसिद्ध संगीतकार उत्तम सिंह ने दिया है। सेंसर बोर्ड ने ढाई घंटे की इस फिल्म के पहले भाग को मंजूरी दे दी है, जिसके बाद लोगों को इसके रिलीज होने का इंतजार है। फिल्म में सांगी पं. लखमीचंद के बचपन की भूमिका योगेश वत्स ने गंभीरता के साथ अपने संवादों से कहीं-कहीं गुदगुदाते हुए निभाई है। युवा रूप में हितेश शर्मा ने अपनी अभिनय प्रतिभा का बखूबी प्रदर्शन किया है। दरअसल फिल्म का यह प्रथम भाग इन्हीं दो पात्रों पर बुना गया है। परिपक्व लखमीचंद का अभिनय खुद यशपाल शर्मा ने निभाया है। ‘पंडित लखमी चंद’ जिन्हें हरियाणा का ‘सांग सम्राट’, ‘भविष्यवक्ता’, कबीरदास’, ‘शेक्सपीयर’,’सूर्य कवि’ भी कहा गया है।
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इन कलाकारों की भूमिका भी कम नहीं 
हरियाणवी सिनेमा के जाने-माने अभिनेता-लेखक राजू मान ने 'दादा लखमी' की कथा को बड़ी शालीनता से लिखा है। जिनके लिखे डायलॉग भी काफी दमदार बने हैं। संवाद कई जगह आंखें नम कर देते हैं तो कहीं-कहीं दर्शकों को तालियां बजाने के लिए भी विवश कर डालते हैं। इसके अलावा फिल्म में लख्मी के गुरु मानसिंह की भूमिका में बॉलीवुड स्टार राजेंद्र गुप्ता हैं। जबकि हर्षित राजावत, शाहरुख,शारदा, रमा बल्हारा, सैम, शौर्य गोयल, अदिति, सान्या, अमन जीत, राजेंद्र भाटिया, सतीश कश्यप, मुकेश मुसाफिर, प्रतिभा शर्मा, सुमित्रा हुड्डा पेढनेकर, जे.डी. बल्लू, सोनू सिलन, नवीन भिवानी, रवि चौहान, राजू मान, रामपाल बल्हारा, रोहित बच्ची, साहिल बाजवा, अंकित भारद्वाज, योगेश भारद्वाज, ऋषभ शर्मा, आशिमा शर्मा, तन्वी सुहासिनी, स्नेहा वर्मा, आकांक्षा भारद्वाज, अखिल चौधरी, अल्पना सुहासिनी, ऋतु सिंह, मीनू मालिक, सुदेश कुमारी, अर्चना सुहासिनी,चेतन कौशिक, वी एम बेचैन, रघुविंदर मालिक, राजेंद्र गौतम, महा सिंह पूनिया, युद्धवीर मालिक, मनीष जोशी, प्रेम देहाती,अशोक, इशू गौड़,हरीश कटारिया, दुष्यंत, गीतू परी, नवरतन, जानवी, दिनेश भारद्वाज,सोनू पांची आदि कलाकार भी अपनी अपनी भूमिका में खरे उतरे हैं। 
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डेढ़ दशक बाद खेला दांव 
फिल्म अभिनेता यशपाल शर्मा के निर्देशन में मूल रूप से राजस्थान निवासी निर्माता रविन्द्र राजावत ने अब तक के सबसे बजट वाली हरियाणवी फीचर फिल्म पर दांव खेला है। खास बात ये कि बॉलीवुड अभिनेता यशपाल शर्मा इस फिल्म से पहली बार निर्देशन करने का मौका मिला, जो फिल्म के को-प्रोड्यूसर होने के साथ मुख्य अभिनेता की भूमिका में भी हैं। फिल्म अपनी बेजोड़ कहानी, स्क्रीन प्ले, संवाद, अभिनय और रूहानी संगीत के सहारे सीधे दिल में उतरने को तैयार है। दरअसल इस फिल्म के पहले ही दृश्य में दादा लख्मी की भूमिका में अभिनेता यशपाल के अभिनय से ऐसे दर्शकों की रूह में उतरती नजर आई। मसलन जो भी दादा लख्मीचंद की रागनियों को अरसे से गाते सुनाते रहे हैं, उन्हें शायद ही ये इल्म होगा, कि लख्मी एक अत्यंत साधारण बालक से प्रसिद्ध लोककवि कैसे बने और वह सूर्य कवि के नाम से प्रसिद्ध हुए। फिल्म में उनके उस चरित्र को भी दर्शाया गया है जिसमें वह किस तरह गलियों में भटकते हैं और अपने जुनून के लिए किस तरह समाज और परिवार की उपेक्षा और ताने सहते हैं।
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रिलीज होने से पहले पुरस्कारों की बरसात 
हरियाणवी थिएटर पर आने से पहले ही 'दादा लखमी' की झोली में भी अवॉर्ड की बरसात होने लगी है। पिछले साल जोधपुर में आयोजित राजस्थान इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल में 'दादा लख्मी' को 'बेस्ट म्यूजिकल फिल्म' के सम्मान से नवाजा गया। जबकि अप्रैल, 2021 में ही दिल्ली के हंसराज कालेज में आयोजित काशी इंडियन इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल अवार्ड में इस फिल्म ने चार अवॉर्ड हासिल किए हैं। खास बात ये है कि इनमें बेस्ट बायोपिक फिल्म निर्माता-रविंद्र राजावत और यशपाल शर्मा), बेस्ट डायरेक्टर डेब्यू फिल्म (यशपाल शर्मा), बेस्ट एक्टर (हितेश शर्मा) और बेस्ट स्पोर्टिंग एक्टर (राजेंद्र गुप्ता) के नाम से अवॉर्ड मिले हैं। वहीं हाल ही में कुरुक्षेत्र में अंतरराष्ट्रीय फिल्म महोत्सव के दौरान बॉलीवुड के प्रसिद्ध अभिनेता एवं निर्देशक यशपाल शर्मा की फिल्म ‘दादा लखमी’ की स्क्रीनिंग का जादू बिखरता नजर आया, जिसमें लोककवि दादा लखमी का संपूर्ण व्यक्तिव छाया हुआ है। 
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उम्मीदों पर खरी उतरेगी फिल्म ‘दादा लख्मी’: यशपाल शर्मा 
बहुप्रतिक्षित हरियाणवी फीचर फिल्म ‘दादा लखमी’ के निर्देशक और प्रसिद्ध फिल्म अभिनेता यशपाल शर्मा ने हरियाणवी सिनेमा को जीवंत करने के मकसद से एक ऐसा विषय चुना, जो लोगों के दिलो-दिमाग को छू रहा है। मूल रूप से हिसार निवासी फिल्म निर्देशक यशपाल शर्मा मानते हैं कि यह फिल्म हरियाणवी लोककला, संस्कृति और सामाजिक परंपराओं की तस्वीर उकेरने वाली है। उन्होंने कहा कि वे चाहे बॉलीवुड या अन्य कहीं भी हों ,लेकिन उनके लिए पहले अपनी मातृभूमि हरियाणा है। इसी हरियाणवी होने का कर्ज उतारने के लिए उन्होंने दादा लख्मीचंद फिल्म बनाने का निर्णय किया। चूंकि हरियाणवी लोक कवि पंडित लख्मीचंद उनके रग-रग में बसे हैं। उन्होंने इस हरियाणवी फिल्म के निर्माण से हरियाणवी सिनेमा की आशाएं पूरी करने का प्रयास किया है। हालांकि कोरोना काल के कारण बामुश्किल फिल्म की शूटिंग पूरी की गई, जिसे एडिटिंग के बाद ढाई घंटे की फिल्म को सेंसर बोर्ड ने भी मंजूरी दी। जब इसे सिनेमाओं के लिए रिलीज का समय आया तो फिर कोरोना का फन सामने आ गया। बातचीत के दौरान यशपाल शर्मा ने बताया कि हरियाणा दिवस यानि आगामी एक नवंबर को इस फिल्म के लिए सूबे सिनेमाघरों का इंतजार खत्म हो जाएगा। उन्होंने बताया कि इस फिल्म में पंडित लख्मीचंद के बचपन से अंत तक उनकी लोककला और रागणियों को जीवंत करने का प्रयास किया गया है, जिसमें सभी कलाकार हरियाणा के हैं, जिन्होंने हर किरदार ने अपना अभिनय बखूबी से निभाया है। खासकर फिल्म में दादा लख्मी की रागिणियों का सांगीतिक इस्तेमाल किया गया है। दादा लख्मी की भूमिका में उनके अलावा बचपन और युवा के रूप में दो अलग कलाकारों ने भूमिका निभाई है। जबकि परिपक्व दादा का अभिनय उन्होंने स्वयं किया है। यह फिल्म दो भागों में तैयार की गई है। इस फिल्म के लिए हरियाणवी संस्कृति, लोक कला और भाषा तथा सामाजिक जीवन जैसे पहलुओं को फिल्माया गया है। फिल्म में मनोरंजन, गंभीरता, संवेदनशीलता और परिवारिक परंपरा को भी उकेरा गया है। हरियाणवी जैसे देसी व ठेठ भाषी राज्य में ऐसी फिल्म के निर्माण में उनके सामने चुनौतियों भी कम नहीं थी, लेकिन जिस तरह से लोग और बुद्धिजीववर्ग उसके रिव्यू को देख रहा है, तो उनकी हरियाणवी फिल्म को लेकर काफी उम्मीदें और हौंसला बढ़ाती हैं। शर्मा को उम्मीद जताई है कि सूर्यकवि के रूप में विख्यात सांगी स्वर्गीय पं. लखमीचंद की बायोपिक 'दादा लखमी' की बॉक्स ऑफिस पर सफलता से संकेत हैं कि यह हरियाणवी सिनेमा की दिशा को भी तय करेगी। 
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हरियाणा के शेक्सपियर थे पंडित लख्मीचंद 
-दीपक वर्मा 
हरियाणा में रागणियों की कला की परंपरा देने वाले सूर्य कवि सूर्यकवि पंडित लख्मीचंद एक ऐसे जिन्हें गायन की मान्यता ही नहीं मिली, बल्कि राज्य सरकार ने उनके नाम से साहित्य और कला के क्षेत्र में पुरस्कार भी नामित किये हुए हैं। अब उनके जीवन पर फिल्म अभिनेता यशपाल शर्मा के निर्देशन में बनाई गई हरियाणवी फिल्म ‘दादा लख्मी’ हरियाणा के सिनेमाओं में हरियाणा वासियों को इंतजार करा रही है। सोनीपत के जाटी कलां गांव में एक निर्धन और सामान्य किसान उदमी राम के यहां 1903 को जन्में पं. लख्मीचंद बालकपन से ही कुछ पंक्तियां याद करके पशु चराते-चराते उनको गुनगुनाए करते थे। अंगूठा छाप यानि अनपढ़ होते हुए भी लख्मीचंद यह गायन धीरे धीरे ऐसे परवान चढ़ता गया कि वे अलग-अलग जगह पर जाकर अपनी ही धुन गुनगुनाने लगे और उनको गायन की मान्यता दी जाने लगी। धीरे धीरे कुछ भजनी और सांगी उनको रागणियां गाने के लिए अपने साथ ले जाने लगे। परिवार वालों की चिंता किये बिना लख्मीचंद अपने गायन में ही मगन रहते थे। परिवार के सूत्रों के अनुसार एक बार गांव में कोई शादी थी, वहां पर किसी प्रसिद्ध कवि और गायक मानसिंह को आना था, तो वहां पर पंडित लख्मीचंद भी चले गए और मानसिंह से प्रभावित होकर पंडित लख्मीचंद ने उनके सारे भजन सुने और उन्होंने जन्म से अंधे मानसिंह को अपना गुरु बना लिया। गुरु से औपचारिक शिक्षा लेने के बाद पं. लख्मीचंद ऐसे परिपक्व हुए कि वे मेहंदीपुर के श्रीचंद सांगी के सॉन्ग मंडली में सम्मिलित हुए औए अपनी प्रतिभा को और निखारने के लिए सोहनकुंड वाला के साथ काम करने लगे। सूबे में उस जमाने में अभिनय और सांग को अच्छा नहीं माना जाता था, जिसकी वजह से लख्मीचंद के सामने कई प्रकार की चुनौती भी आई थी। लख्मीचंद ने कई कलाकारों से अपने सानिध्य रखा। वे मान सिंह को अपना गुरु मानते थे, तो किसी समारोह में सोहनकुंड वाला ने मानसिंह के अपमान में कुछ शब्द कहे, तो लख्मीचंद ने नाराज होकर सोहनकुंड वाला से नाता तोड़ अलग से अपना सांग करने लगे। पंडित लख्मीचंद ने ऐसी रचनाएं की, जो आज के युग में सार्थक हो रही हैं। अनपढ़ होते हुए उन्हें चारों वेद का ज्ञान था।उन्हें हरियाणा का शेक्सपियर भी कहा जाता है। सूर्य कवि पंडित लख्मीचंद के पौत्र सांगी विष्णुदत्त कौशिक का अपने दादा के बारे में कहना है कि एक अनपढ़ व्यक्ति होते हुए भी उन्होंने अपने ज्ञान से 22 सांग काशी के शास्त्री टीकाराम से लिखवाए थे। पंडित लख्मीचंद सांग में रागणी बोलते थे और टीकाराम शास्त्री उन्हें लिखते थे। उनके आठ सांग तो यूपी के सूप गांव में चोरी हो गए थे। उन्होंने बताया कि दादा लख्मीचंद भैंस चराने के लिए जंगल में जाते थे। पंडित लख्मीचंद को पंडित मानसिंह को देखकर की संगीत का शोक हुआ। अब पंडित जी के 14 सांग का ही संग्रह है। मात्र 42 साल की उम्र में 17 अक्टूबर 1945 को उनका स्वर्गवास हो गया था। 
लख्मीचंद द्वारा लिखे गए सांग 
सूर्य कवि लख्मीचंद ने 22 सांगों की रचना की थी जिनमें नौटंकी, शाही लकडहारा, राजा भोज, चंद्रकिरण, हीर-रांझा, चाप सिंह, नल-दमयंती, सत्यवान सावित्री, मीराबाई और पद्मावत प्रमुख रूप से सुर्खियों में आज भी बने हुए हैं। हरियाणा साहित्य अकादमी ने लख्मीचंद ग्रंथावली प्रकाशित की है। 
30May-2022

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