सोमवार, 30 अक्तूबर 2023

चौपाल: संस्कृति के संवर्धन में जुटी लोक गायिका ईशा पांचाल

 ‘बता मेरे यार सुदामा रै..’जैसे भजन से छोटी उम्र में ही संगीत में मिली बड़ी पहचान
                  व्यक्तिगत परिचय 
नाम: ईशा पांचाल 
जन्मतिथि: 20 जून 2003 
जन्म स्थान: गांव रुखी, जिला सोनीपत(हरियाणा)
शिक्षा: स्नातक, संगीत गायन में मास्टर डिग्री           (अध्ययनरत) 
संप्रत्ति: लोक संस्कृति गायक कलाकार, छात्रा 
संपर्क: गांव रुखी, सोनीपत(हरियाणा), मोबा. 7082575925 
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BY-ओ.पी. पाल 
रियाणा के लोक कलाकार अपनी विभिन्न विधाओं से हरियाणवी लोक संस्कृति का संवर्धन एवं संरक्षण करने में जुटे हैं। ऐसे ही नवोदित लोक कलाकारों में लोक गायिका ईशा पांचाल ने छोटी सी उम्र में आध्यात्मिक गीत लेखन और गायन में जो लोकप्रियता हासिल की है, उसकी गूंज देश-विदेश में भी सुनाई देती है। लोक संगीत के क्षेत्र में भजन गायकी के साथ ही उसने देशभक्ति, सामाजिक, तीज त्यौहार और सरकारी योजनाओं के अभियानों में भी अपनी गायन शैली की ऐसी छाप छोड़ी है कि यूथ ट्यूब चैनलों पर उसके भजन गीतों को सुनकर हर कोई मंत्रमुग्ध हो जाता है। सामाजिक गतिविधियों में भी सक्रिय रहते हुए वह अपनी कला से समाज को अपनी संस्कृति से जोड़ने में जुटी हुई है। भारत गौरव अवार्ड से सम्मानित ईशा पांचाल ने हरिभूमि संवाददाता से हुई बातचीत में अपनी लोक गायन शैली को लेकर कई ऐसे पहलुओं को उजागर किया है, जिससे यह साबित होता है कि लोक कला संगीत एवं संस्कृति के बिना समाजिक तानाबाना अधूरा है। 
रियाणा की युवा गीतकार ईशा पांचाल का जन्म 20 जून 2003 को सोनीपत जिले के गांव रुखी में एक साधारण किसान चांद सिंह व लक्ष्मी देवी के घर में हुआ। इनका परिवार आध्यात्मिक है, लेकिन संगीत या किसी कला से कोई ताल्लुक नहीं रखता। परिवार में आध्यात्मिक माहौल के बीच ही उनकी माता भजन आदि गुनगुनाती रहती हैं तो उसका प्रभाव ईशा पर भी पड़ता नजर आया। इसी कारण आज अध्यात्मिक, सामाजिक व देशभक्ति गायन में ईशा जिस प्रकार आगे बढ़ रही है उसके पीछे उनकी माता व बहन अन्नू के प्रोत्साहन की अहम भूमिका हैं, जो कुछ भजन या गीत लिखती है, उन्हें संगीत देने का काम ईशा करती आ रही है। वह संगीत को सुर ताल देने के लिए हारमोनियम जैसे वाद्य यंत्र में भी निपुण है। बकौल ईशा जब वह छह साल की थी तो तब उसने गुरुकुल में भी गायन सीखा, लेकिन कक्षा नौ में वह डॉ. स्वरूप सिंह गवर्नमेंट मॉडल संस्कृति स्कूल सांघी में पढ़ने चली गई, जहां उनके संगीत गुरु सोमेश जांगड़ा ने एक भजन ‘बता मेरे यार सुदामा रै..’ सिखाया, जिसे संगीत देकर उसने गाना शुरु किया, तो यह भजन इतना लोकप्रिय हुआ कि उससे बेहद प्रसिद्धि मिली। जब वह दसवीं कक्षा में ही थी कि उनके आध्यात्मिक गायन पहला भजन ‘बता मेरे यार सुदामा रै..’ देश के तत्कालीन राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी को भी बेहद पसंद आया। इसके अलावा उनके अन्य भजन व गीत ऐसे हैं, जिन्होंने उसे देश ही नहीं विदेशों में भी लोक गीतकार के रुप में पहचान दी है। हरियाणा के अलावा देश के उत्तर प्रदेश, दिल्ली, राजस्थान, हिमाचल प्रदेश, चंडीगढ़, मुंबई, जम्मू कश्मीर जैसे राज्यों में धार्मिक आयोजन में उसके मंगल गीत सुनने की हमेश श्रोताओं से मांग आती रहती हैं। इसी कारण बढ़ते आत्मविश्वास और हौंसलों ने उसे आगे बढ़ते रहने की प्रेरणा मिल रही है। यही कारण है कि कला संस्कृति के क्षेत्र में गीतकार के रुप में अपने भजन गायकी के सफर को सुहाना बनाने के मकसद से वह स्नातक करने के बाद फिलहाल वह एमडीयू यूनिवर्सिटी रोहतक से संगीत गायन में ही एमडीयू यूनिवर्सिटी रोहतक में मास्टर डिग्री(एमए) कर रही हैं। जहां तक संगीत गायन के क्षेत्र में परेशानियों को लेकर ईशा का मानना है कि जब कोई भी व्यक्ति नया सीखने और करने की राह पर चलता है, तो अड़चने या उतार चढ़ाव हर किसी के सामने आना स्वाभाविक है, लेकिन उसने पीछे मुड़ने के बजाए ‘सूर्य की तरह चमकना है तो सूर्य की तरह जलना पड़ेगा, मुश्किल तो हर राह होती हैं मेरे दोस्त, गर मंजिल पानी हैं तो तुझे बिना रुके चलना पड़ेगा..जैसी पक्तियों को चरितार्थ करने का ही प्रयास किया। उनके भजन संगीत का मुख्य फोकस आध्यात्म के जरिए समाज को अपनी संस्कृति से जोड़ने पर रहा है, लेकिन उनका देशभक्ति, सामाजिक सरोकार से जुड़े मुद्दों पर भी गीत लेखन और गायन के जरिए समाज और लोगों को कला संस्कृति को विकसित करने के लिए आगे रहने का संदेश देना प्रमुख मकसद है। हालांकि आज की कला संस्कृति पहले से कहीं ज्यादा विकसित हैं और हर बच्चा, बूढ़ा, जवान अपनी कला को लोगो तक पहुंचाने में सक्षम हैं। ईशा की दृष्टि में आज का युग बेहद खूबसूरत और कलात्मक भी है। 
लोकप्रिय भजन व गीत 
लोक गीतकार ईशा पांचाल के प्रसिद्ध भजनों में ‘बता मेरे यार सुदामा रै..’ के अलावा उड़जा उड़जा काले काम, सुबह सवेरे लेकर तेरा नाम प्रभु, काला काकाल कहवै गुजरी और सुदामा कैसे आये आदि हैं। इसके अलावा वह देशभक्ति के गीत भी लिखकर जारी कर चुकी हैं, तो वह समाजिक जागरुकता के लिए भी भजन व गीतों को लांच करके खूब सुर्खियां बटोर रही है। ईशा के हरियाणवी संस्कृति पर आधारित अब तक 200-250 भजन अलग अलग कंपनियों के माध्यम से आ चुके हैं इन सभी भजनों में हरियाणा की संस्कृति, समाज में फैली कुरीतियों एवं देश की समस्याओं के अलावा देश भक्ति पर आधारित गीतों से यही प्रयास किया गया है कि अपनी संस्कृति को विकसित करने के लिए समाज सजग रहे। फिलहाल हरियाणवी संस्कृति पर संस्कार टीवी पर भी काम चल रहा है। साल 2020 में मुंबई में भजनों का एक प्रोजेक्ट भी किया गया है। 
धार्मिक कार्यो का हुआ विस्तार 
हरियाणा की प्रसिद्ध भजन गायक ईशा पांचाल का कहना है कि इस इस आधुनिक युग में भी लोक कला संस्कृति के क्षेत्र में अध्यात्मिक संगीत या धार्मिक कार्यों का प्रचलन का बेहद विस्तारित हो रहा है। इसमें आज की युवा पीढ़ी भी कहीं ज्यादा रुचि लेकर अध्यात्मिक गतिविधियों से जुड़ रही है। मगर एक बहुत गंभीर समस्या यह देखने में आ रही हैं, कि युवा वर्ग को सही दिशा निर्देश नहीं मिल रहा है। मसलन बच्चो को माता पिता का सानिध्य मिलना और अपने बच्चों को छूट देना अच्छी बात हैं, लेकिन अभिभावकों को यह भी ध्यान रखने की जरुरत है कि उनका बच्चा की किस माहौल में रह रहा है और उनका संग कैसे बच्चों से है। इसलिए माता पिता को बच्चों की रुचि के अनुसार सकारात्मक रुचि दिखानी चाहिए। 
पुरस्कार व सम्मान 
लोक संगीतकार सुश्री ईशा पांचाल को भारत गौरव अवॉर्ड के अलावा बेस्ट सिंगर अवॉर्ड, महिला सशक्तिकरण अवॉर्ड जैसे अनेक पुरस्कारों से नवाजा जा चुका है। एक बार राष्ट्रीय स्तर और बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ अभियान के तहत दो बार राज्य स्तर पर हरियाणा लोक गीत में प्रथम स्थान मिल चुका है। यूथ रेडक्रास कैंपों में सोलो संगीत में अव्वल स्थान पाने वाली ईशा और उसकी टीम की भजन गायन शैली इतनी प्रभावशाली है कि साल 2017 में एमडीयू रोहतक में आयोजित एक कार्यक्रम के दौरान तत्कालीन राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी भी ईशा व उसकी टीम को सम्मानित कर चुके हैं। इसके अलावा इस लोक गायिका को मुख्यमंत्री, शिक्षा मंत्री और स्वास्थ्य मंत्री के हाथो भी सम्मानित होने का सौभाग्य मिला है। 
30Oct-2023

बुधवार, 25 अक्तूबर 2023

साक्षात्कार: कालजयी कृतियों के रचनाकार हास्य कवि डा. तेजिन्द्र

साहित्यिक, सांस्कृतिक, शैक्षणिक और सामाजिक कार्यो में निरंतर सक्रिय 
                      व्यक्तिगत परिचय 
नाम: डॉ. तेजिंद्र (तेजिंद्र पाल सिंह) 
जन्मतिथि: 01 मई 1963 
जन्म स्थान: कैथल (हरियाणा)। 
शिक्षा: एमए( हिंदी, अंग्रेज़ी, इतिहास), बीएड.एमफ़िल (हिंदी), पीएचडी(हिंदी)। 
संप्रत्ति: स्वतंत्र लेखन, सेवानिवृत्त प्राध्यापक (इतिहास)। 
 संपर्क: म.न. 859, सेक्टर-19 भाग-2 हुडा, कैथल (हरियाणा)। मोबा. 94166 58454 
BY--ओ.पी. पाल 
रियाणा की संस्कृति, सभ्यता,सामाजिक रीति रिवाज तथा परंपराओं के संरक्षण देने वाले लेखकों में कवि डा. तेजिन्द्र ऐसे साहित्यकार है, जिन्होंने भूत, वर्तमान और भविष्य तीनों कालों की महत्वपूर्ण अनुभूतियों से प्रेरित होकर अपनी कालजयी कृतियों का रचना संसार रचा है। उन्होंने एक हास्य-व्यंग्य कवि के रुप में लोकप्रियता हासिल की, लेकिन साहित्यिक, सांस्कृतिक, शैक्षणिक और सामाजिक कार्यो में सक्रियता भी उनकी एक संवेदनशील व्यक्तित्व एवं कृतित्व के धनी के रुप को प्रकट करती है। कवि कर्म और काव्य में सामाजिक चेतना की दिशा में उनकी हंसिकाओं की ऐसी बानगी रही, कि उन्होंने राजनीति, समाज को अपनी रचित हास्य व्यंग्य कविताओं से बेबाक कटाक्ष करने में कभी संकोच नहीं किया। वहीं बाल मनोहार के लिए बाल कविता संग्रह में उनकी काव्य रचनाओं में ऐसी सलरता, सहजता, बोगम्यता एव ध्वन्यात्मकता जैसे विशेष गुण विद्यमान हैं, जिन्हें बच्चे सरलता से कंठस्थ कर सकते हैं। इतिहास के प्राध्यापक पद से सेवानिवृत्त साहित्यकार, कवि एवं लेखक डा. तेजिन्द्र ने हरिभूमि संवाददाता से हुई बातचीत में अपने साहित्यिक सफर को लेकर कई ऐसे अनुछुए पहलुओं को भी उजागर किया है, जिससे में रचना संसार में विचरण करने वाला कोई भी व्यक्ति साहित्यिक साधना कर सकता है। 
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रियाणा के प्रसिद्ध साहित्यकार एवं हास्य कवि डा. तेजिन्द्र का जन्म 01 मई 1963 को कैथल(ननिहाल) में जगदीश राम व मामो देवी के यहां हुआ था, जो हिंदी, अंग्रेजी और इतिहास यानी तीन विषयों में स्नातकोत्तर और बीएड के अलावा हिंदी में पीएचडी की उपाधि हासिल कर चुके हैं। राजकीय कन्या वरिष्ठ माध्यमिक विद्यालय राजौंद, ज़िला कैथल में प्राध्यापक (इतिहास) से 30 अप्रैल 2021 को सेवानिवृत्त डा. तेजिन्द्र मूल रूप से कुरुक्षेत्र जिले के गांव दूधला के रहने वाले हैं। जब उनके दादा रामजीलाल का देहांत हुआ तो उनके पिता के सौतेले मामा बासोराम दादी और पिता, ताऊ व चाचा को लेकर अपने कैथल जिले के गाँव क्योड़क आ गये। फिर मामा के देहांत के बाद दादी ने सिलाई का काम करके पिता समेत अपने तीनों पुत्रों का पालन-पोषण किया। सख्त स्वभाव की दादी सनातन धर्म में विश्वास रखने के साथ्ज्ञ अनुशासन प्रिय थीं। बकौल तेजिन्द्र दादी निर्मला बचपन में उन्हें कहानियां सुनाती थी, वहीं घर में अखबार और पत्रिकायें भी आतीं थीं, तो उनमें प्रकाशित कवितायें और कहानियाँ पढ़ने में उनकी रुचि रही और घर में ट्रांजिस्टर पर प्रसारित होने वाले भजन, धार्मिक गीत और रामायण की चौपाइयाँ भी दादी उन्हें सुनतीं थीं। हर रविवार को रेडियो पर बच्चों के कार्यक्रम में कविता, गीत और कहानी भी सुनने को मिलती रही। इससे उन्हें बचपन में ही घर के भीतर आध्यात्मिक और साहित्यिक माहौल मिला। यही कारण था कि स्कूली शिक्षा के दौरान ही उनकी साहित्य के प्रति अभिरुचि हो गई थी। वे पाठ्यक्रम में साहित्यिक सामग्री पढ़ते थे। कालेज में पुस्तकालय में अख़बार और पत्रिकायें पढ़ता रहता था। हरियाणा के प्रसिद्ध कवि ओम प्रकाश आदित्य की कवितायें मुझे अच्छी लगतीं थीं और उनकी कवितायें पढ़ते-पढ़ते मन में आया कि वह भी कुछ लिख सकते हैं। तेजिन्द्र के पिता स्वयं उर्दू शायरी के शौकीन थे। जब वह कैथल जिले के राजकीय उच्च विद्यालय क्योड़क, ज़िला कैथल में पढ़ते थे, जहां उनके पिता क्लर्क थे। डा. तेजिन्द्र ने बताया कि स्कूल में होने वाली बाल सभाओं में भी वे कवितायें सुनाते थे और कॉलेज में शिक्षा ग्रहण करते हुए उन्होंने लेखन कार्य भी शुरू कर दिया। वह प्रतिदिन गाँव क्योड़क से कैथल के आरकेएसडी कालेज में पढ़ने के लिये आते थे और उस समय बसों के आवागमन में बड़ी परेशानी होने लगी तो इन्हीं परिस्थितियों पर उन्होंने कुछ पंक्तियां लिखकर महससू किया कि उनकी कविता तैयार हो गई। वे पंक्तियाँ अपनी बड़ी बहन को दिखाईं, तो वह आश्चर्यचकित लहजे में बोली ये कविता आपने लिखी? कालेज के मित्रों ने भी उनकी कविता देखकर खुश हुए। इसके बाद उन्होंने अपनी लेखन यात्रा आरम्भ कर दी और यहीं से उनकी कविताओं का जन्म हुआ और उनकी पहली रचना सार्वजनिक हुई। उनके द्वारा कविताएं लिखने का धीरे-धीरे कालेज में उनके प्राध्यापकों डा. भगवान दास निर्मोही, डा. राणा प्रताप गन्नौरी, प्रोफ़ेसर अमृत लाल मदान, प्रो विजय दत्त शर्मा, प्रो. जेसी शर्मा, डा. एस.डी. मिश्रा आदि को भी पता चला। सभी ने उन्हें निरंतर लेखन करने के लिए प्रेरित किया। प्रो. अमृत लाल मदान तो आज भी उनके मार्गदर्शक हैं। 
सामयिक घटनाओं पर फोकस 
डा. तेजिन्द्र की रचनाओं का फोकस किसी विशेष मुद्दे पर नहीं, बल्कि घटनाओं को देखकर उनकी कलम चलती आ रही है। हालाकि वे समाज और देश में हर किसी को प्रभावित करने वाली घटनाओं पर भी उनकी कलम चली है और उन्होंने आतंकवाद के दौर में पंजाब के आतंकवाद पर कवितायें लिखीं। बच्चों के लिए बाल कविताओं के फोकस और हास्य और व्यंग्य में क्षणिकाओं के लेखन ने उन्हें हास्य कवि के रुप में एक विशेष पहचान दी है। डा. तेजिन्द्र साहित्य सभा कैथल में वर्ष 1987 से सदस्य और वर्ष 2002 से प्रेस सचिव पद की जिम्मेदारी संभाल रहे हैं। जबकि 2017 से अखिल भारतीय साहित्य परिषद् हरियाणा की कैथल ईकाई के ज़िला संयोजक एवं जिलाध्यक्ष का पदभार भी संभाल रहे हैं। वे अखिल भारतीय इतिहास संकलन समिति हरियाणा के जिला कैथल के सदस्य भी हैं। 
हाशिए पर जा रहा है साहित्य 
आधुनिक युग में प्रचुर मात्रा में साहित्य लिखा जा रहा है और प्रकाशित भी हो रहा है। कविता, कहानी और उपन्यास विधा के साहित्य का प्रकाशन अधिक मात्रा में हो रहा है। आज जिस तेजी से पुस्तकें लिखी और प्रकाशित हो रहीं हैं, उतना पढ़ा नहीं जा रहा है। इसी प्रकार काव्य-गोष्ठियों में भी प्राय: वे लोग अधिक होते हैं जो खुद कवि और श्रोता की भूमिका में होते हैं। इसका कारण यही है कि आज इलेक्ट्रोनिक मीडिया और सोशल मीडिया की चकाचौंध में साहित्य हाशिये पर आ गया है और सोशल मीडिया ने तो कवियों की बाढ़ ला दी है। इसलिए साहित्य में मात्रात्मक वृद्धि तो हुई है, लेकिन गुणात्मक विस्तार देखने को नहीं मिलता। साहित्य के पाठकों की कमी होने का भी प्रमुख कारण टेलिविज़न और सोशल मीडिया का अधिक प्रसार होना है। वहीं छात्र भी पुस्तकालयों में जाकर अपनी प्रतियोगितात्मक परीक्षाओं की तैयारी में जुटे रहते हैं और साहित्य पढ़ने का उन्हें समय तक नहीं है। आज के युवाओं को साहित्य के प्रति प्रेरित करने के लिए साहित्यकारों को उनकी रुचि के साहित्य का सृजन करने की जरुरत है। युवाओं को साहित्य से जोड़ने से ही सामाजिक विचारधारा को भी सकारात्मक ऊर्जा दी जा सकेगी। 
प्रकाशित पुस्तकें 
साहित्यकार डा. तेजिन्द्र पाल सिंह की अब तक प्रकाशित पुस्तकों में प्रमुख रुप से काव्य संग्रह तिनका-तिनका, आतंक के दायरे में, भावना, बाल कविता संग्रह, मोबाइल बाँग लगाता है, लघु शोध प्रबंध ग़ज़ल के आईने में:गुलशन मदान, शोध-प्रबंध हिंदी ग़ज़ल एवं अन्य काव्य-विधायें, एकल नाटक अमर शहीद सरदार भगत सिंह शामिल हैं। कविता के अलावा वे लघुकथा आलेख, भूमिका, समीक्षा, शोध-आलेख भी लिखते आ रहे हैं। 
पुरस्कार व सम्मान 
साहित्य सेवा में उत्कृष्ट योगदान के लिए डा. तेजिन्द्र को हरियाणा के अलावा राजस्थान, उत्तर प्रदेश,उत्तराखंड, दिल्ली व कर्नाटक आदि राज्यो की विभिन्न सरकारी और ग़ैर सरकारी संस्थाओं से दो दर्जन से भी ज्यादा पुरस्कारों से सम्मानित किया जा चुका है। इन पुरस्करों में प्रमुख रुप से साहित्य गौरव सम्मान, बीसवीं शताब्दी रत्न सम्मान, वरिष्ठ प्रतिभा सम्मान, शांतिदेवी स्मृति साहित्य-रत्न सम्मान, ज्ञानोदय साहित्य सेवा सम्मान, शब्द सेतु नवल सम्मान, अभ्युदय श्री सम्मान, एक्सीलेंस अवार्ड शामिल हैं। इसके अलावा उन्हें हरियाणा प्रदूषण बोर्ड की सलोगन प्रतियोगिता में भी सम्मान मिला है। 
  23Oct-2023

सोमवार, 16 अक्तूबर 2023

चौपाल: कला और सांस्कृतिक संवर्धन का पर्याय है फल्गु उत्सव

पुरखों के पिंडदान करने की परंपरा का केंद्र बना है फल्गु तीर्थ 
By-ओ.पी. पाल 
रियाणा में कुरुक्षेत्र के प्रमुख तीर्थ स्थलों में शुमार फल्गु तीर्थ का फल्गु उत्सव आज हरियाणवी लोक कला एवं संस्कृति के संवर्धन के केंद्र के रुप में पहचाना जाने लगा है। मसलन कैथल जिले के गांव फरल स्थित फल्गु तीर्थ की महत्ता इतनी बढ़ गई है कि वार्षिक फल्गु उत्सव से हरियाणा कला परिषद् के माध्यम से सीधे हरियाणा सरकार भी जुड़ गई और इस वर्ष के उत्सव में हरियाणा साहित्य एवं संस्कृति अकादमी ने भागीदारी की है। फल्गु तीर्थ स्थल पर वर्ष 2011 में शुरु हुए फल्गु उत्सव में एक दशक से ज्यादा समय लगातार हरियाणा एवं आसपास के राज्यों के साहित्यकार एवं लोक कलाकार सामाजिक सरोकार से जुड़े संदेशों के साथ अपनी प्रस्तुतियां देकर परंपरागत कलाओं और संस्कृति के प्रति समाज को दिशा देने का प्रयास करते आ रहे हैं। हरिभूमि संवाददाता ने फल्गु उत्सव में प्रस्तुति देने आए लोक कलाकारों, साहित्यकारों एवं कवियों ने बताया कि आज फल्गु उत्सव परंपरा कला और संस्कृति को जीवंत रखने की दिशा में एक बड़ा प्रयास साबित हुई। 
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रियाणा के कुरुक्षेत्र का नाम दुनियाभर में उन स्थानों में अग्रगण्य है, जहां सबसे पहले मानव सभ्यता का विकास होना माना गया है। कुरुक्षेत्र यानी कुरुओ का क्षेत्र। कुरूक्षेत्र की 48 कोस पवित्र भूमि हरियाणा के कुरूक्षेत्र, कैथल, करनाल, जीन्द एवं पानीपत जिलों में फैली हुई है। वामन पुराण के अनुसार घने वनों से आच्छादित कुरूक्षेत्र भूमि में काम्यक वन, अदिति वन, व्यास वन, फल्कीवन, सूर्यवन वन, मधुवन तथा शीतवन यानी सात वन थे। पावन नदियों सरस्वती और दृषद्वती के जल से पोषित फल्कीवन, जो महर्षि श्री फल्क की तपोभूमि होने के कारण वन प्रदेश फल्कीवन कहलाया। कालांतर में फल्कीवन से फल्गु तीर्थ के कारण ही फल्कीवन का नाम फरल गांव पड़ा, जो वर्तमान में गाँव फरल जिला कैथल में स्थित है। कुरुक्षेत्र के प्रसिद्ध तीर्थ स्थानों में से एक फल्गु तीर्थ का यह तीर्थ स्थान पितृकर्म के लिए विश्वभर में विख्यात है। जिसका वर्णन महाभारत, वामन पुराण मत्स्य पुराण तथा नारद पुराण में उपलब्ध होता है। फल्गु उत्सव के संयोजक के रुप में साहित्यकार और संस्कृति साधक दिनेश शर्मा ने बताया कि इस तीर्थ स्थल पर फल्गु मंदिर सुधार समिति द्वारा परिकल्पित 'फल्गु उत्सव' का उद्देश्य इस उत्सव को वार्षिक फल्गु मेले का स्थान देना है, जिससे कला और संस्कृति के संरक्षण और संवर्धन के साथ फल्गु तीर्थ को एक पर्यटन स्थल के रूप में विकसित किया जा सकेगा। हरियाणा सरकार के प्रबंधन में फल्कीवन अर्थात फल्गु तीर्थ पर पितृपक्ष में सोमवती अमावस्या पर विशाल मेले का आयोजन होता आ रहा है, जहां अपने पूर्वजों के निमित पिंड दान करने के लिए देश–विदेश से लाखों श्रद्धालु यहां पहुंचते हैं। लेकिन विड़ंबना यह है कि राज्य सरकार सोमवती अमावस्या पर मेले को अभी तक साल 1991 से 2018 तक सात मेले ही आयोजित कर पाई है और अगला मेला साल 2028 में प्रस्तावित है। सनातन परंपराओं के जानकारों के अनुसार मेलों के बीच आने वाला वर्षो का अंतर भावी पीढ़ी तक संस्कार और संस्कृति के पूर्ण प्रेषण में बाधक है। इस मेले के लंबे अंतराल के मद्देनजर पिछले करीब छह दशक से प्राचीन श्री फल्क ऋषि मंदिर की देखरेख करते आ रहे मंदिर के उपासक जयगोपाल शर्मा और उनके परिवार के मार्गदर्शन में फल्गु मंदिर सुधार समिति के माध्यम से वर्ष 2011 से हर वर्ष पितृपक्ष में फल्गु उत्सव आयोजित करता आ रहा है। इसमें समाजसेवी सुभाष गर्ग, दिल्ली के समाजसेवी विजय सिंगला, कुरूक्षेत्र के समाजसेवी जयभगवान सिंगला, उत्सव प्रबंधक मुकेश शर्मा प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष रूप से सहयोग कर रहे हैं। इस उत्सव संयोजन समिति सचिव दिनेश शर्मा का कहना है कि कला और संस्कृति संवर्धन के इस प्रयास की सार्थकता और प्रामाणिकता यही है कि हरियाणा में विभिन्न सरकारी नौकरियों के लिए ली जाने वाली परीक्षाओं में भी ‘फल्गु उत्सव कब और कहाँ आयोजित होता है? जैसे सवाल पूछे जाते हैं। 
लोक कला और संस्कृति का संगम 
फल्गु मंदिर सुधार समिति द्वारा हर साल निरंतर आयोजित किये जाए रहे फल्गु उत्सव में अलग अलग विधाओं की कलाओं से जुड़े साहित्यकर्मी और लोक कलाकार हरियाणवी रागनी, लोकनृत्य, लोककला, सांग, भजन, कवि सम्मेलन, नाटक, कहानी मंचन जैसी सांस्कृतिक प्रस्तुतियों के जरिए समाज को अपनी परंपराओं और संस्कृति से जुड़े रहने का सकारात्मक संदेश देते आ रहे हैं। इस उत्सव में देश के शिक्षा, कला और संस्कृति जगत की विशिष्ट विभूतियां अतिथि के रूप में उपस्थित रहती हैं। उत्सव में सारा गाँव पारिवारिक आयोजनों की तरह ही भागीदारी करता है। ऐसे कलाकारों में अब तक साहित्य एवं लोक कलाओं से जुड़े सैकड़ो विभूतियां उत्सव में हिस्सा लेकर अपनी कलाओं की छटाएं बिखेरते रहे हैं। हाल में 30 सितंबर से 2 अक्टूबर तक हुए तीन दिवसीय फल्गु उत्सव में लोकगायन संध्या, लोककला संध्या और लोककाव्य संध्या में सुविख्यात कवियों और कलाकारों ने कलाओं और संस्कृतियों के संगम की धाराएं प्रवाहित की। इस दौरान लोककला से जुड़े कलाकारों सांरगी वादक इंदर लांबा, बीन वादक हरपाल नाथ, हरियाणवी रागनी गायको विकास हरियाणवी, सुरेश भाणा, अमित मलिक, अमित बरोदा के अलावा राष्ट्रीय कवियों महेंद्र अजनबी, चरणजीत चरण, विनीत पाण्डेय, कृष्ण गोपाल सोलंकी आदि ने हिस्सेदारी की। 
लोककला व साहित्य की दृष्टि में उत्सव 
फल्गु उत्सव को मार्गदर्शन प्रदान करने वाले महानुभावों का चिंतन भी इस फल्गु तीर्थ को लेकर संदर्भ में महत्वपूर्ण है। वरिष्ठ साहित्यकार डॉ चंद्र त्रिखा के कहते हैं कि एक सांस्कृतिक चेतना का नाम फल्गु उत्सव है, जिससे जुडकर और तीर्थ के दर्शन करना एक सुखद अनुभूति से कम नहीं है। देश में हिन्दी मंच संचालन के शिखर पुरुष जैनेन्द्र सिंह की माने तो फल्गु उत्सव अपनी कला, संस्कृति और परंपराओं को समर्पित एक सकारात्मक सफल प्रयास है, जो समाज के लिए प्रेरणा का कार्य करता है। विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के संयुक्त सचिव डॉ जी एस चौहान का मानना है कि शिक्षा और सांस्कृतिक चेतना का नाम फल्गु उत्सव है, जो युवाओं को भारतीय परंपराओं, संस्कार तथा संस्कृति के गौरव से परिचित करवाता है। वरिष्ठ नाट्यकर्मी एवं संगीत नाटक अकादमी चंडीगढ़ के अध्यक्ष सुदेश शर्मा का कहना है कि हरियाणा कला परिषद् के उपाध्यक्ष रहते हुए 2016 में इस उत्सव से जुड़ना संस्कृति को बढ़ावा देने के प्रयासों में स्वयं का सार्थक योगदान प्रतीत होता है। उनका सपना है कि ये उत्सव अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी अपनी पहचान बनाए। लोककलाओं से जुड़े कलाकारों इंदर लांबा, हरपाल नाथ, राजकुमार जंगम आदि ने माना कि फल्गु उत्सव लोककलाओं के प्रचार- प्रसार का बेहतरीन कार्य करता है। लुप्त होती लोककलाओं का सरंक्षण करता है और कलाकारों के लिए रोजगार का अवसर पैदा करता है। हरियाणवी रागनी गायकों विकास हरियाणवी, सुरेश भाणा, अमित मलिक, अमित बरोदा के अनुसार यह हरियाणा का श्रेष्ठ और मर्यादित सांस्कृतिक आयोजन है, जो पारिवारिक वातावरण में संस्कृति के प्रसार का सच्चा प्रयत्न है। वहीं राष्ट्रीय कवियों महेंद्र अजनबी, चरणजीत चरण, विनीत पाण्डेय की बात मानें तो ऐसे पावन स्थान पर संस्कृति के साथ हिन्दी के प्रसार के लिए कवि सम्मेलन अपने आप में ही विशेष हो जाता है क्योंकि तीर्थ स्थान स्वयमेव जागृत संस्कृति होते हैं और समाज में संस्कार बनाए रखते हैं। इंद्रप्रस्थ अध्ययन केंद्र दिल्ली के अध्यक्ष विनोद शर्मा विवेक, कुरुक्षेत्र विकास बोर्ड के मानद सचिव उपेन्द्र सिंहल, लंदन में बसे रोहतक निवासी विश्व प्रसिद्ध रेडियो कलाकार रवि शर्मा, राष्ट्रपति सम्मान से सम्मानित अंतरराष्ट्रीय लोक कलाकार तथा हरियाणा कला परिषद् हिसार मण्डल के अतिरिक्त निदेशक महाबीर गुड्डू ने भी ने भी हरियाणा सरकार और समिति को ऐसे अद्भुत के लिए हरियाणा सरकार, हरियाणा कला परिषद् और उत्सव आयोजन समिति को साधुवाद दिया। 
महाभारत में फल्गु तीर्थ का उल्लेख 
इस पावन तीर्थ पर श्री फल्क ऋषि के मन्दिर के साथ-साथ अनेक सुन्दर मन्दिर हैं। यहां सरोवर के घाट के पास अष्टकोण आधार पर निर्मित 17वीं शताब्दी की मुगल शैली में बना शिव मन्दिर है, जो लगभग 30 फुट ऊंचा है। यहां स्थित सरोवर की लम्बाई 800 फुट और चैडाई 300 फुट है। मुगल शैली में एक और शिव मन्दिर है जो लगभग 20 फुट ऊंचा है तथा आकार में वर्गाकार है। वर्ग की एक भुजा 9 फुट 6 इंच है। यहीं एक अन्य मन्दिर जो राधा-कृष्ण का भी है जो नागर शैली में बना हुआ है। जिसका शिखर शंकु आकार का है। इन सभी उपरोक्त वर्णित मन्दिरों में निर्माण के दौरान लाखौरी ईटों से किया गया है एवं परवर्ती काल में इनका जीर्णोद्धार आधुनिक ईटों के द्वारा किया गया है। घाट के पास ही एक अत्यन्त प्राचीन वट वृक्ष है। जिसे लोग श्रद्धा की दृष्टि से देखते हैं। इसी क्षेत्र में पणिश्वर तीर्थ स्थित है। जिसका उल्लेख महाभारत के अनुशासन पर्व के दसवें अध्याय में पाणिखात के नाम से प्राप्त होता है। 
16Oct-2023

रविवार, 15 अक्तूबर 2023

पी-20 शिखर सम्मेलन: संसदीय अध्यक्षों ने की वैश्विक मुद्दों पर सार्थक चर्चा

मानव केंद्रित विकास में सामूहिक लक्ष्य हासिल पर प्रतिबद्धता: ओम बिरला 
ओ.पी. पाल. नई दिल्ली। भारत की अध्यक्षता में जी-20 शिखर सम्मेलन के बाद सभी सदस्य देशों की संसदों के पीठासीन अधिकारियों ने राष्ट्रीय राजधानी नई दिल्ली में दो दिन तक चले पी-20 शिखर सम्मेलन में चार सत्रों के दौरान एसडीजी, हरित ऊर्जा, महिला नेतृत्व वाले विकास और डिजिटल सार्वजनिक इन्फ्रस्ट्रक्चर जैसे वैश्विक मुद्दों पर सार्थक चर्चा की गई। 
नई दिल्ली में द्वारका स्थित ‘यशोभूमि’ इंडिया इंटरनेशनल कन्वेंशन एंड एक्सपो सेंटर (आईआईसीसी) में 13-14 अक्टूब यानी दो दिन तक चले पी-20 शिखर सम्मेलन में के दौरान जी-20 देशों की संसदों के पीठासीन अधिकारियों समेत करीब 30 देशों के प्रतिनिधियों ने हिस्सा लिया और सार्थक चर्चा की। भारत की जी-20 अध्यक्षता के तहत पी-20 शिखर सम्मेलन के समापन भाषण में लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला ने कहा कि पी-20 शिखर सम्मेलन की सफलता में योगदान देने के लिए जी20 देशों की संसदों और आमंत्रित देशों के पीठासीन अधिकारियों देशों द्वारा संयुक्त वक्तव्य को सर्वसम्मति से स्वीकार करने से पी-20 प्रक्रिया और मजबूत हुई है। बिरला ने ‘एक पृथ्वी, एक परिवार और एक भविष्य के लिए संसद’ विषय पर पी-20 शिखर सम्मेलन की सफलता में योगदान देने के लिए सभी देशों और उनके प्रतिनिधिमंडल के सदस्यों को धन्यवाद दिया। उन्होंने पिछले दो दिनों के दौरान हुए विचार-विमर्श ने जी-20 के संसदीय आयाम के महत्व को स्पष्ट रूप से रेखांकित किया है और यह भी स्थापित किया है कि किस प्रकार हमारी संसदें एक पृथ्वी, एक परिवार और एक भविष्य के सामूहिक लक्ष्यों को प्राप्त करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है। भारत की पी-20 अध्यक्षता के समापन पर लोक सभा अध्यक्ष ओम बिरला ने पी-20 की अध्यक्षता ब्राजील की संसद को सौंप दी है और ब्राजील को उनकी आगामी जी-20 अध्यक्षता के लिए बधाई भी दी है। 
वैश्विक चुनौतियों पर गंभीर 
लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला ने कहा कि सम्मेलन में कई सदस्यों ने विचार-विमर्श के लिए चयनित विकास एजेंडा से अलग हटकर कीजियो-पोलिटिकल घटनाएं और आर्थिक जैसे मुद्दे और वैश्विक चुनौतियों का भी उल्लेख किया। वहीं कुछ अन्य सदस्यों के बहु-पक्षवाद को मजबूत करने, अंतर्राष्ट्रीय व्यापार को बढ़ावा देने और सप्लाइ चेन के रेजि-लीएन्स जैसे मुद्दों पर बिरला ने कहा कि हम संघर्षों और विवादों के शांतिपूर्ण समाधान का समर्थन करते हुए अंतरराष्ट्रीय शांति, समृद्धि और सद्भाव को बढ़ावा देने के लिए उत्प्रेरक के रूप में प्रासंगिक मंचों पर संसदीय राजनय और परस्पर संवाद जारी रखेंगे। संसद अध्यक्षों ने भविषय में अपने पूर्ण एजेंडा और अपनी साझा प्रतिबद्धताओं के पी-20, जी-20 और उससे आगे बढ़ाने का संकल्प दोहराया। 
बिरला की द्विपक्षीय मुलाकात 
पी-20 शिखर सम्मेलन के दौरान लोक सभा अध्यक्ष ओम बिरला ने अंतर-संसदीय संघ (आईपीयू) के प्रेसिडेंट दुआर्ते पचेको, रूसी संघ की फेडरल असेंबली की फेडरेशन काउंसिल की स्पीकर, श्रीमती वेलेंटीना मतवियेंको, यूरोपीय संसद की वाइस प्रेजिडेंट सुश्री निकोला बीयर, तुर्की की ग्रैंड नेशनल असेंबली के स्पीकर श्री कुर्तुलमस, सिंगापुर की संसद के स्पीकर, महामहिम श्री सियाह कियन पेंग, नीदरलैंड की सीनेट के प्रेसिडेंट, श्री जान एंथोनी ब्रुइजन, दक्षिण अफ्रीका की अपने समकक्ष पीठासीन अधिकारी, महामहिम सुश्री नोसिविवे नोलुथांडो मापिसा-नकाकुला और मेक्सिको के चैंबर ऑफ डेप्युटीज़ की प्रेसिडेंट सुश्री मार्सेला गुएरा कैस्टिलो आदि के साथ अलग-अलग मुलाकात कर द्विपक्षीय बैठकें भी की हैं। 
ब्राजील को बधाई दी 
आपकी मेजबानी करना मेरे और मेरी टीम के लिए प्रसन्नता का विषय है। मुझे आशा है कि भारत में आपका प्रवास सुखद रहा होगा। उन्होंने सभी सदस्य देशों से आग्रह किया कि आप अपने प्रवास के दौरान भारत के समृद्ध इतिहास और बहुरंगी संस्कृति का पूर्ण आनंद लें। वह आपके पुनः भारत आगमन पर आपका स्वागत करने और जनकल्याण के विषयों पर अपनी चर्चा को आगे जारी रखने के लिए उत्सुक हैं। उन्होंने इस अवसर पर ब्राजील को उनकी आगामी जी-20 अध्यक्षता के लिए बधाई देते हुए उनकी सफलता की कामना भी की। 
15Oct-2023

शनिवार, 14 अक्तूबर 2023

P-20 शिखर सम्मेलन: महिलाओं की भागीदारी बढ़ने से संसदीय परंपरा भी समृद्ध होगी: मोदी

संयुक्त संसदीय प्रयासों से निकलेगा चुनौतियों का समाधान: ओम बिरला 
प्रधानमंत्री ने किया पी20 शिखर सम्मेलन का उद्घाटन
ओ.पी. पाल. नई दिल्ली। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने नौवें जी20 देशों के संसदीय अध्यक्षों के पी20 शिखर सम्मेलन में कहा कि नारी शक्ति वंदन अधिनियम विधायी क्षेत्र में संतुलित नीति निर्माण के लिए आदर्श परिस्थिति सृजित कर महिलाओं के सम्मान को समग्र रूप में बल प्रदान करेगा। वहीं भारत जैसी लोकतांत्रिक देश की संसदीय परंपरा को कहीं ज्यादा समृद्ध की जा सकेगी। यहां नई दिल्ली में शुक्रवार को शुक्रवार को नौवें जी20 देशों के संसदीय अध्यक्ष सम्मेलन (पी20) के उद्घाटन करते हुए पीएम मोदी ने कहा कि भारत हर क्षेत्र में महिलाओं की सहभागिता को बढ़ावा दे रहा है। संसद के विशेष सत्र में पारित किए गये नारी शक्ति वंदन कानून में महिलाओं को लोकसभा और राज्य विधानसभाओं में एक तिहाई हिस्सेदारी देने के प्रावधान है, जिससे महिलाओं के सशक्त होने के साथ संसदीय परंपरा को और भी समृद्ध करने में मदद मिलेगी। उन्होंने काह कि भारत की स्थानीय स्व-शासी संस्थाओं में लगभग 50 प्रतिशत निर्वाचित प्रतिनिधि महिलाएं हैं। मोदी ने कहा कि सहभागिता वाले लोकतंत्र में महिलाओं की अधिक संख्या होना महत्वपूर्ण है। 
आतंकवाद दुनिया के लिए एक चुनौती 
पीएम मोदी ने कहा कि आतंकवाद जहां भी होता, किसी भी कारण, किसी भी रूप में होता वह मानवता के खिलाफ होता है। ऐसे में आतंकवाद को लेकर हम सभी को सख्ती बरतनी होगी। आतंकवाद की परिभाषा को लेकर आम सहमति ना बन पाना बहुत दुखद है और आज भी यूएन भी इसका इंतजार कर रहा है। दुनिया के इसी रवैया का फायदा मानवता के दुश्मन उठा रहे हैं। दुनिया भर के प्रतिनिधियों को सोचना होगा की आतंकवाद के खिलाफ हम कैसे काम कर सकते हैं। आतंकवाद को लेकर हम सभी को लगातार सख्ती बरतने की अपील करते हुए कहा कि भारत कई वर्षों से सीमा पार आतंकवाद का सामना कर रहा है और करीब दो दशक पहले आतंकवादियों ने हमारी संसद को उस समय निशाना बनाया था, जब संसद का सत्र चल रहा था। आज भी आतंकवाद दुनिया के लिए एक बड़ी चुनौती है। इसलिए दुनिया की संसदों और उनके प्रतिनिधियों को आतंकवाद के खिलाफ साथ मिलकर लड़ाई लड़ने के लिए काम करने पर विचार करना होगा। 
आम चुनाव देखने का दिया निमंत्रण 
पीएम मोदी ने कहा भारत में हम लोग आम चुनाव को सबसे बड़ा पर्व मानते हैं। 1947 में आज़ादी मिलने के बाद से अब तक भारत में 17 आम चुनाव और 300 से अधिक विधानसभा चुनाव हो चुके हैं। भारत दुनिया का सबसे बड़ा चुनाव ही नहीं कराता, बल्कि इसमें लोगों की भागीदारी भी बढ़ रही है। उन्होंने कहा कि 2019 का आम चुनाव मनाव इतिहास की सबसे बड़ी मानव कसरत थी। इसमें 60 करोड़ वोटर ने हिस्सा लिया। तब भारत में 91 करोड़ पंजीकृत मतदाता थे, जो पूरे यूरोप की कुल आबादी से अधिक है। भारत की यह लोकतंत्र प्रक्रिया यह दिखाती है कि भारत में लोगों का संसदीय प्रक्रियाओं में कितना भरोसा है। प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि भारत चुनावों के दौरान पारदर्शिता और दक्षता बढ़ाने के लिए 25 वर्षों से अधिक समय से ईवीएम का उपयोग कर रहा है। 2024 में, आम चुनावों के दौरान लगभग 100 करोड़ या एक बिलियन मतदाता अपना वोट डालने जा रहे हैं। वह सभी प्रतिनिधियों को अगले आम चुनाव देखने के लिए भारत आने के लिए आमंत्रित करते हैं। 
समकालीन चुनौतियों के समाधान पर मंथन का मंच 
पी20 शिखर सम्मेलन में लोक सभा अध्यक्ष ओम बिरला ने कहा कि बिरला ने कहा कि यह सम्मेलन लोकतांत्रिक मूल्यों, अंतर्राष्ट्रीय सहयोग और वैश्विक महत्व के विषयों और समकालीन चुनौतियों के समाधान के लिए संयुक्त संसदीय प्रयासों के प्रति भारत की प्रतिबद्धता को दर्शाता है। इसका यह भी कारण है कि भारत की अध्यक्षता में हाल ही में संपन्न हुए जी20 शिखर सम्मेलन में नई दिल्ली लीडर्स डेक्लरैशन को सर्वसम्मति से स्वीकार किया गया, जो प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी के वैश्विक दृष्टिकोण और सम्मेलन में भाग लेने वाले देशों की वैश्विक मुद्दों पर प्रतिबद्धता और एकजुटता को दर्शाता है। बिरला ने कहा कि भारत की जी-20 की अध्यक्षता समावेशी, आकांक्षी, कार्य-उन्मुख, निर्णायक और जन-केंद्रित रही है। 
कोरिया की स्पीकर के साथ द्विपक्षीय भेंट 
लोक सभा अध्यक्ष ओम बिरला ने पी20 शिखर सम्मेलन के अवसर पर कोरिया गणराज्य की नेशनल असेंबली के स्पीकर किम जिन-प्यो से भेंट की। बिरला ने उन्हें बताया कि वर्ष 2023 भारत और कोरिया दोनों के लिए महत्वपूर्ण है क्योंकि इस वर्ष दोनों देशों के बीच राजनयिक संबंधों के 50 वर्ष पूरे हुए हैं। उन्होंने आगे कहा कि भारत और कोरिया गणराज्य के बीच बहुआयामी रणनीतिक साझेदारी है। राजनीति, व्यापार, निवेश, रक्षा, संस्कृति, विज्ञान और प्रौद्योगिकी और दोनों देशों के लोगों के बीच संपर्क जैसे विभिन्न क्षेत्रों में हमारे संबंध मजबूत हुए हैं। बिरला ने इस बात का उल्लेख भी किया कि बौद्ध भिक्षुओं की यात्राओं और ज्ञान और विचारों के आदान-प्रदान के माध्यम से बौद्ध धर्म ने दोनों देशों के बीच संबंधों को मजबूत करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। उन्होंने भारत और कोरिया गणराज्य के बीच संसदीय सहयोग को और बढ़ाए जाने पर जोर दिया। 
14Oct-2023

शुक्रवार, 13 अक्तूबर 2023

भारत के ‘लाइफ’ मिशन की जी20 देशों की संसदों के पीठासीन अधिकारियों ने की सराहना

P-20 शिखर सम्मेलन: पर्यावरण संरक्षण का व्यापक दृष्टिकोण है मिशन 'लाइफ': ओम बिरला 
पर्यावरण अनुकूल जीवन शैली की हमारी लंबी यात्रा में मिशन लाइफ एक बहुत ही महत्वपूर्ण कदम है: हरिवंश 
ओ.पी. पाल. नई दिल्ली। पीएम मोदी की पहल पर ‘लाइफ: पर्यावरण के लिए जीवनशैली' विषय पर पी-20 के संसदीय मंच की बैठक में जी20 देशों की संसदों के पीठासीन अधिकारियों भारत के ‘लाइफ’ मिशन की सराहना की। पी-20 शिखर सम्मेलन का शुक्रवार को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी विधिवत उद्घाटन करेंगे। इस शिखर सम्मेलन में वैश्विक मुद्दों और उनके समाधान को लेकर चर्चा की जाएगी। जी-20 देशों की संसदों के पीठासीन अधिकारियों का पी20 शिखर सम्मेलन से पहले गुरुवार को नई दिल्ली में यशोभूमि, द्वारका में ‘लाइफ: पर्यावरण के लिए जीवनशैली' विषय पर संसदीय मंच की बैठक हुई। 
जी-20 की अध्यक्षता कर रहे भारत की मेजबानी में पिछले महीने हुए जी-20 शिखर सम्मेलन के बाद जी20 सदस्य देशों की संसद के पीठासीन अधिकारियों का पी20 शिखर सम्मेलन आयोजित किया जा रहा है। इस सम्मेलन से पहले गुरुवार को भारत के पीएम मोदी की पहल पर ‘लाइफ: पर्यावरण के लिए जीवनशैली' विषय पर पी-20 के संसदीय मंच की बैठक हुई। इस बैठक में जी20 देशों की संसदों के पीठासीन अधिकारियों भारत के ‘लाइफ’ मिशन की सराहना की। इससे पहले बैठक शुरु होने पर लोक सभा अध्यक्ष ओम बिरला ने बैठक शुरु होने पर जी20 देशों की संसदों के पीठासीन अधिकारियों का ‘लोकतंत्र की जननी’ भारत में स्वागत किया और शिखर सम्मेलन-पूर्व कार्यक्रम ‘लाइफ’ में उनकी भागीदारी के लिए आभार व्यक्त किया। बिरला ने कहा कि वर्तमान समय में जलवायु परिवर्तन और इसका प्रभाव सम्पूर्ण विश्व के साझे भविष्य के साथ गहराई से जुड़ा हुआ है। उन्होंने कहा कि यह स्वाभाविक है कि भारत की पहल पर पी-20 सम्मेलन के दौरान पर्यावरण संबंधी मुद्दों को सर्वसम्मति से चर्चा के केंद्र में रखा गया है। 
दुनिया को चुनौतियों से निपटने के प्रयास जरुरी 
ओम बिरला ने जलवायु परिवर्तन के हानिकारक प्रभावों की ओर ध्यान आकर्षित करते हुए कहा कि आज के समय में कोई भी देश जलवायु परिवर्तन के दुष्प्रभावों से अछूता नहीं है। दुनिया के सामने मौजूद चुनौतियों से निपटने के लिए ठोस प्रयास के साथ जलवायु परिवर्तन का डटकर मुकाबला करना समय की मांग है। पर्यावरण संरक्षण के उद्देश्य से प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा प्रस्तुत लाइफ (पर्यावरण के लिए जीवन शैली) की अवधारणा के बारे में बिरला ने कहा कि मिशन लाइफ स्टाइल पर्यावरण संरक्षण का एक व्यापक दृष्टिकोण है जो प्रत्येक व्यक्ति को रिड्यूस, रीयूज और रीसाइक्लिंग करने की प्रेरणा देता है। इस मिशन ने दुनिया को जलवायु परिवर्तन, सतत विकास, स्वास्थ्य सुरक्षा, खाद्य सुरक्षा और ऊर्जा सुरक्षा आदि जैसी समकालीन चुनौतियों से निपटने का एक नया मार्ग दिया है, जो अब एक वैश्विक आंदोलन बन गया है। 
विश्व के पथ प्रदर्शक बनने पर बल बैठक में राज्य सभा के उपसभापति हरिवंश ने कहा कि मिशन लाइफ पर्यावरण अनुकूल जीवन की हमारी लंबी यात्रा में बहुत महत्वपूर्ण कदम है। उन्होंने सांसदों से आग्रह किया कि वे पर्यावरण के संरक्षक और पर्यावरण अनुकूल विश्व के पथ प्रदर्शक बनें। हरिवंश ने कहा कि सामूहिक प्रयासों से एक ऐसे विश्व का निर्माण होगा जहां जनजीवन और हमारी पृथ्वी फले फूलेगी। इस मौके पर भारत की जी-20 प्रेसीडेंसी के शेरपा अमिताभ कांत के अलावा जी 20 देशों की संसदों के पीठासीन अधिकारियों ने भी चर्चा के दौरान अपने विचार व्यक्त किये। 
ये होगा पी-20 सम्मेलन का एजेंडा 
इस दो दिवसीय शिखर सम्मेलन में ‘एक पृथ्वी, एक परिवार, एक भविष्य के लिए संसद’ के दर्शन के अनुरूप समकालीन महत्व के जिन विषयों पर जी-20 देशों की संसदों के अध्यक्ष विचार-विमर्श करेंगे, उनमें सतत विकास लक्ष्यों के लिए एजेंडा 2030:उपलब्धियां दर्शाना, प्रगति में तेजी लाना,हरित भविष्य के लिए सतत ऊर्जा परिवर्तन, महिला-पुरुष समानता को मुख्यधारा में लाना-महिला विकास से महिलाओं के नेतृत्व में विकास तक और और सार्वजनिक डिजिटल प्लेटफ़ॉर्म के माध्यम से लोगों के जीवन में परिवर्तन जैसे विषय प्रमुख हैं। 
13Oct-2023

सोमवार, 9 अक्तूबर 2023

साक्षात्कार: समीक्षात्मक लेखन से साहित्य सृजन करती डा. रेनु भाटिया

कहानी, कविताएं एवं निबंध जैसी विधाओं में रचनाओं को दिया विस्तार 
             व्यक्तिगत परिचय 
नाम: डा. रेनु भाटिया 
जन्मतिथि: 01 अक्टूबर 1964 
जन्म स्थान: यमुनानगर(हरियाणा) 
शिक्षा: बीए (हिन्दी ऑनर्स), एमए(हिन्दी), एमफिल, पीएचडी.। 
संप्रत्ति:कार्यवाहक प्राचार्या, जीवीएम कन्या महा विद्यालय, सोनीपत। 
संपर्क: 946671648 
By-ओ.पी. पाल 
साहित्य के क्षेत्र में लेखक एवं साहित्यकार गद्य एवं पद्य के रुप में साहित्य सृजन करते हुए सामाजिक सरोकारों और संस्कृति के संवर्धन करते आ रहे हैं। हरियाणा की संस्कृति एवं परंपराओं को लेकर भी लेखकों ने अपनी विभिन्न विधाओं में अपनी रचनाओं के जरिए समाज को सकारात्मक विचाराधारा के लिए प्रेरित करने का प्रयास किया है। ऐसे ही लेखकों में शिक्षाविद् एवं महिला लेखक डा. रेनु भाटिया सामाजिक एवं शिक्षा के क्षेत्र में सृजनात्मक गतिविधियों के साथ ही साहित्यिक सेवा करने में जुटी हुई है। डा. रेनु कहानी, कविताएं एवं निबंध जैसी विधाओं में साहित्य सृजन करते हुए महान साहित्यकारों एवं कवियों की रचनाओं का समीक्षात्म्क विश्लेषण करके साहित्य के क्षेत्र को नया आयाम देने का प्रयास कर ही है। अपने शिक्षा एवं साहित्यिक सफर को लेकर महिला साहित्यकार डा. रेनु भाटिया ने हरिभूमि संवाददाता से हुई बातचीत में कई ऐसे पहलुओं को उजागर किया है, जिसमें आज के युग में साहित्य के बदलते स्वरुप में भी साहित्य के संवर्धन एवं संरक्षण के लिए लेखक देश व समाज को नई दिशा दे सकते हैं। 
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रियाणा की महिला साहित्यकार, समीक्षक और आलोचक डा. रेनु भाटिया का जन्म यमुनानगर में 01 अक्टूबर 1964 को मध्यवर्गीय पंजाबी परिवार के कुलदीप राय कपूर व श्रीमती गीता कपूर के घर में हुआ। उनके दादा रेलवे में पाकिस्तान के लायलपुर और चनूमोट में स्टेशन मास्टर थे। जब देश का विभाजन हुआ, तो रेलवे से सेवानिवृत्ति होने पर उनका परिवार हरियाणा के यमुनानगर में स्थायी रुप से बस गया। पिता कुलदीप राय कपूर भी रेलवे में नौकरी करते थे और माता ग्रहणी थी। माता व पिता दोनों को साहित्यिक पुस्तकें एवं पत्र पत्रिकाएं पढ़ने का शौक था। पिता शेरो शायरी करते थे पर न कभी संकलित किया न छपवाया। बकौल रेनु भाटिया, बचपन से ही राजन इकबाल, लोट पोट, नंदन, चंपक जैसी पत्रिकाएं पढ़ने की आदत उन्हें भी पड़ गई थी। जब वह कक्षा नौ में थी, तो जगाधरी में रेलवे की लाइब्रेरी से पिता ने प्रेमचंद साहित्य लाकर दिया, जिसे उन्होंने कहानी की तरह पढ़ा और उसके बाद उसे साहित्य में ऐसी अभिरुचि हुई कि फिर कभी रुकना नहीं हुआ। शिक्षा के दौरान परीक्षाओं के बाद छुट्टियां होती थी, तो पिता प्रेमचंद और यशपाल भिवानी का साहित्य लाकर देते और उन्होंने उसे कहानी की तरह पढ़कर साहित्य को समझना शुरु किया। स्कूली शिक्षा के बाद जब वह बीए हिंदी ऑनर्स में कर रही थी, तो उसका साहित्य से नाता जुड़ गया और लेखन का कार्य भी शुरु कर दिया। इसी लेखन का परिणाम रहा कि महाविद्यालय में उन्होंने लेखन प्रतियोगिताओं में हिस्सा लेकर खूब पुरस्कार बटोरे। हिन्दी प्राध्यापिकाएं वीना आजमानी, डा. आशा कपूर एवं डा. साल्वान आदि ने लेखन के लिए प्रेरित किया तथा माता पिता एवं मित्रगणों का भी उन्हें ऐसा प्रोत्साहन मिला कि वह लेखन को विस्तार देने में जुट गई। उनकी पहली रचना ‘मॉं’ निबंध के रुप में महाविद्यालय की पत्रिका में प्रकाशित हुई और उसे इसके लिए पुरस्कृत भी किया गया। इससे लेखन के प्रति उनके आत्मविश्वास का बढ़ना स्वाभाविक था। इसके बाद वह कहानी, कविता लेखन भी करने लगी। उनकी रचनाओं के लेखन का फोकस सामाजिक सरोकार और हिंदी साहित्य के संवर्धन पर रहा है। साहित्यिक पुस्तकों के पठन पाठन को उन्होंने अपने जीवन का हिस्सा मानते हुए अपने रचना संसार को विस्तार दिया है। उन्होंने साल 1987 में वे सोनीपत के जीवीएम कन्या महाविद्यालय में हिंदी विभाग की अध्यक्ष के रुप प्रध्यापन का कार्यभार संभाला और साल 2021 से वे महाविद्यालय की कार्यवाहक प्रचार्या के पद कार्यरत हैं। एक शिक्षिका के रुप में उन्होंने केवल अपनी श्रेष्ठता से ख्याति अर्जित नहीं की, बल्कि महाविद्यालय की विविध गतिविधियों खासतौर से युवा समारोह, वूमैन सैल, जनसंपर्क अधिकारी, एंटी रैंगिंग सेल, ची फ सुपरिटेंडन, एकेडमिक अफेयर, लिटरेरी सोसायटी, रिसर्च जैसे क्षेत्र के प्रभारी की जिम्मेदारी भी संभाली है। वहीं महाविद्यालय की छात्राओं को साहित्यिक लेखर एवं साहित्यिक प्रतियोगिताओं का निर्देशन भी किया। वह महाविद्यालय की पत्रिका ‘आलोक स्तम्भिका’ की सौलह वर्षो तक मुख्य संपादिका भी रही हैं। डा. रेनु भाटिया 21वीं सदी का कथा साहित्य स्नातक स्तर अध्ययन समिति व स्नातकोत्तर स्तर अध्ययन समिति, हिंदी विभाग महर्षि दयानंद विश्वविद्यालय रोहतक की सदस्या भी रहीं हैं। उनके निर्देशन में तीन छात्राओं ने एमफिल डिग्री के लिए शोध कार्य भी किया है। महाविद्यालय के हिन्दी विभाग में डीजीएचई के सौजन्य से दो नेशनल स्तर के आयोजन भी कराया है। वहीं इतिहास, पर्यावरण, हिंदी साहित्य ,मनोविज्ञान, भक्ति साहित्य आदि विविध संगोष्ठियों और कार्यशालाओं में प्रतिभागिता के साथ शोध पत्र की प्रस्तुति भी की। उनके आलेख, कहानी, कविताएं राष्ट्रीय पत्र पत्रिकाओं में प्रकाशित होती रही हैं। वहीं आकाशवाणी रोहतक से उनकी वार्ताएं भी प्रसारित हो चुकी हैं। 
युवाओं की रुचि का साहित्य जरुरी
आज के आधुनिक युग में साहित्य की स्थिति को लेकर डा. रेनु भाटिया का मानना है कि आज भी साहित्य अपनी उन्नत विकसित अवस्था में है और हिंदी साहित्य तो राष्ट्रीय ही नहीं, बल्कि अंतर्राष्ट्रीयस्तर पर लिखा और पढ़ा जा रहा है, केवल इसका समय के मुताबिक स्वरुप बदला है। ऐसा भी नहीं है कि साहित्य के पाठकों में कमी आई हो, इसके पाठक इंटरनेट युग में सोशल मीडिया पर उपलब्ध साहित्य पढ़ रहा है। साहित्य में युवा वर्ग भी अभिरूचि ले रहा है, लेकिन युवाओं की रुचि के केंद्र बदला है, जिसमें वह गंभीर एवं संस्कृतनिष्ठ भाषा में रचित साहित्य को पढ़ने की अपेक्षा आम बोल चाल की भाषा को ज्यादा पसंद करता है। युवा पीढ़ी के इस सहज साहित्य सृजन को स्वीकृति करने की आवश्यकता है, जिसके बाद युवा वर्ग को साहित्य से प्रत्यक्ष रुप से जोड़ना संभव है। इसके लिए शिक्षण संस्थाओं की भी अहम भूमिका हो सकती है। वहीं साहित्यकारों और लेखकों को भी ऐसी रचनाओं का विस्तार करने की जरुरत है, जिसमें समाज व युवाओं को एक सकारात्मक दिशा मिल सके। इसके लिए भूमंडलीकरण के युग में अपने मापदंडों को बदलने की भी आवश्यकता है। 
प्रकाशित पुस्तकें 
महिला साहित्यकार डा. रेनु भाटिया की सभी पुस्तकें समीक्षा पर आधारित हैं, जिनमें अज्ञेय: विवेचन, रसखान: काव्य में प्रेमा भक्ति, तरूण: काव्य में सौन्दर्य चेतना, कुरुक्षेत्र: समीक्षा वातायन, कामायनी: दिग्दर्शन एवं आधुनिक कबीर: बाबा नागार्जुन तथा निराला काव्य विमर्श शामिल हैं। उनकी एक पुस्तक ‘सलीब’ नाटक के रुप में प्रकाशित हुई है। कविताएं लिखती हैं लेकिन अभी तक काव्य संग्रह प्रकाशित नहीं हो पाया है। 
पुरस्कार व सम्मान 
हरियाणा विद्यालय शिक्षा बोर्ड द्वारा शिक्षा के क्षेत्र में उत्कृष्ट योगदान के लिए प्रशस्ति पत्र से सम्मानित डा. रेनु भाटिया को राष्ट्रीय स्तरीय कला संस्था अवन्तिका द्वारा राष्ट्रीय गौरव सम्मान से भी नवाजा जा चुका है। भारत सरकार के गृह मंत्रालय के जनगणना कार्य निदेशालय हरियाणा से भी उन्हें प्रशस्ति पत्र देकर सम्मानित किया जा चुका है। उन्हें मानव अधिकार संरक्षण संघ सोनीपत से राष्ट्रीय निर्माता अवार्ड, सारथी जनसेवा चैरीटिबल ट्रस्ट सोनीपत के ग्रेट वोमेन अवार्ड के अलावा विभिन्न साहित्यिक एवं सामाजिक संस्थाओं से अनेक सम्मान मिल चुके हैं। 
09Oct-2023

सोमवार, 2 अक्तूबर 2023

चौपाल: सिनेमा के माध्यम से हरियाणवी संस्कृति को दिशा देते रामपाल

हरियाणवी फिल्म जगत के स्वप्नदृष्टा बनकर लोकप्रिय हुए बल्हारा 
                व्यक्तिगत परिचय 
नाम: रामपाल बल्हारा 
जन्मतिथि: 2 मार्च, 1954 
जन्म स्थान बहुअकबर पुर, जिला रोहतक 
शिक्षा:एमडी यूनिवर्सिटी से पोस्ट ग्रेजुएट, ग्रेजुएशन जाट कॉलेज रोहतक। 
संप्रत्ति:सेवानिवृत्त] फिल्म समारोह निदेशालय(I&B), नई दिल्ली 
BY-ओ.पी. पाल 
रियाणवी लोक कलाकारों ने संस्कृति को विभिन्न मंचों के माध्यम से देश विदेश तक पहचान दी है। लेकिन रामपाल बल्हारा फिल्म जगत के उन लोकप्रिय चेहरों में शुमार है, जिन्होंने हरियाणवी सिनेमा को स्थापित करके हरियाणवी फिल्मों के सूखे को खत्म किया और सिनेमा के माध्यम से हरियाणवी संस्कृति के प्रचार और विकास प्रोत्साहित करने की दिशा में हरियाणवी फिल्म विकास निगम की स्थापना करने में अहम भूमिका निभाई है, जो हरियाणा सरकार के एक निकाय के रुप में कर रहा है। इसी का नतीजा है कि आज हरियाणवी फिल्मों में अपनी कला का प्रदर्शन करके बॉलीवुड तक हरियाणवी संस्कृति की अलख जगा रहे हैं। रामपाल बल्हारा के हरियाणवी फिल्म जगत को मिल रहे अहम योगदान में उनकी किस्मत को लेकर एक ऐसी दिलचस्प कहानी भी है, जिसमें परिवार की इच्छा और हिदायतों के बाद उनकी किस्मत का चक्र फिल्म क्षेत्र में चलता आ रहा है और उनकी लोकप्रियता बुलंदिया छू रही हैं। एक फिल्म निर्देशक और अभिनेता के रुप में रामपाल बल्हारा ने हरिभूमि संवाददाता से बातचीत में अपने बचपन से लेकर सिनेमा तक के सफर में कई ऐसे अनुछुए पहलुओ को उजागर किया है, जिसमें फिल्मों के माध्यम से समाज को सकारात्मक ऊर्जा भी मिलती है। 
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रियाणवी फिल्मों को प्रोत्साहन देने वाले रामपाल बल्हारा का जन्म जन्म रोहतक के गांव बहु अकबरपुर में 2 मार्च 1954 को एक सामान्य कृषक परिवार ईश्वर सिंह और हुकमो देवी के यहां हुआ। उनके परिवार में किसी भी तरह का साहित्यिक या लोक संस्कृति का माहौल नहीं रहा। हां उनका परिवार आर्य समाजी होने के कारण उन्हें बचपन में अच्छे संस्कार मिले। आर्य समाज मंदिर में जाने स उन पर इसी संस्कृति का असर रहा। परिवार में नाचना, गाना, या किसी प्रकार के संगीत कतई स्वीकार्य नहीं था। इसलिए उनका स्कूल जाना और वहां से खेतों में जाकर काम करना। गांव में पढ़ते समय आर्य समाज मंदिर का पुनर्निर्माण हु और सुधार समिति बनी। जब रामपाल कालेज में एमए कर रहे थे, तो वहां सांस्कृतिक कार्यक्रमों में नाटक व गायन में हिस्सा लेकर अभिनय करने लगे। उस समय प्रदेश के मुख्यमंत्री बनारसीदास गुप्ता जैसी हस्तियों के समक्ष उन्होंने नाटकों में अपने अभिनय किया, तो उन्हें इस कला के लिए आत्मबल मिला और ऐसे में अभिनय को जब बेहतर माना जाने लगे तो छात्रों, शिक्षकों और प्रबन्धनों में सम्मान के साथ एक पहचान बनना स्वाभाविक ही है। उन्होंने महर्षि दयानंद विश्वविद्यालय रोहतक से अंग्रेजी विषय में स्नातकोत्तर की शिक्षा ग्रहण की। बीएड और एमए के दौरान गुडगांव में उनका अभिनय पहली बार सार्वजनिक हुआ। बकौल रामपाल बल्हारा, उन्होंने एक दिलस्प पहलू का जिक्र करते हुए कहा कि जब वह स्कूल से कॉलेज जाने लगा, तो पिता कहा कि कालेज में जाकर फिल्मे देखकर बच्चे बिगड़ जाते हैं और उन्होंने इस वादे के साथ ही कालेज में दाखिले की हामी भरी कि वह फिल्में नहीं देखेगा, क्योंकि गांव का एक लड़का इसी प्रकार बिगड़ने से बदनाम हुआ था। इसका कारण यह भी था कि गांवों में फिल्मों को देखना बुरा माना जाता है। लेकिन जब परीक्षा पास करने के बाद साल 1978 में उन्हें केंद्र सरकार के सूचना एवं प्रसारण विभाग में नौकरी मिली तो उन्हें फिल्म समारोह निदेशालय, विज्ञान भवन नई दिल्ली में नियुक्त किया गया। उनका काम फिल्मे देखना और कलाकारों व दर्शकों से बातचीत करना था। लेकिन वह सोचने लगा कि एक गांव का कृषक को ऐसे नौकरी मिली, जिसके लिए पिता जी और परिवार को नफरत थी और फिल्मों से हमेशा उसे बचने को कहते रहे। फिर भी उन्होंने इस माहौल में अपने को बदलते हुए अपने आपको तैयार किया, जहां फिल्में भी देखने को मिल रही थी और पैसा भी। फिल्म समारोह निदेशालय के तहत रामपाल बल्हारा 1978 से 1993 तक फिल्म अवॉर्ड और जूरी समन्वयक रहे और 1995 में उन्हें राष्ट्रीय फिल्म विकास निगम (एनएफडीसी) में निर्माण प्रबंधक नियुक्त कर दिया गया। इस दौरान उन्होंने नेशनल फिल्म फेस्टिवल तथा इंडियन पेनोरमा (इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल ऑफ इंडिया) में अपनी जिम्मेदारियों का बखूबी निर्वहन किया। लेकिन उन्हें इस बात पर हैरानी थी कि उनके समक्ष अलग अलग भाषाओं की फिल्में आती थी, लेकिन हरियाणा की कोई फिल्म उनके स्क्रीनिंग के लिए नहीं आई। इस दौरान उन्हें आर्मी फिल्म डिवजन में जाने का मौका मिला, जहां प्रोजेक्टर हरियाणा का ही जयंत प्रभाकर था उनसे मिला और यह बात उन्होंने उनसे कही, तो उन्होंने बल्हारा को बताया कि उनके पिता ने एक कहानी तो लिखी हुई है, लेकिन वह मुंबई जाने से डर रहे हैं। जयंत प्रभाकर से मिले और हरियाणवी फिल्म चन्द्रावल के निर्माण के लिए सभी औपचारिकताएं पूरी कराई। जयंत प्रभाकर निर्देशित चन्द्रावल में रामपाल बल्हारा ने मुख्य सहायक निर्देशक और निर्माण नियंत्रक (प्रोडक्शन कंट्रोलर) का कार्यभार संभाला, जिसके बाद प्रभाकर की कई हरियाणवी फिल्मों में वे निर्देशक के मुख्य सहायक रहे और इन फिल्मों में अभिनय भी किया। एनएफडीसी से प्रबंधक (फिल्म निर्माण) के पद से साल 2014 में सेवानिवृत्त होने के बाद भी वे हरियाणवी फिल्मों के निर्माण और उनमें अभिनय के रुप में सक्रीय हैं। उन्होंने हरियावी फिल्म विकास परिषद (एचएफडीसी) की स्थापना कराई। वे हरियाणवी इनोवेटिव फिल्म एसोसिएशन (हाइफा) के ये जनरल सेक्रेट्री हैं। सेवानिवृत्ति के बाद वे मैराथन में भी हिस्सा लेकर कई पुरस्कार अर्जित कर चुके हैं। 
फिल्म क्षेत्र में चमकी किस्मत 
प्रसिद्ध कलाकार कलाकार रामपाल बल्हारा 1978 में सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय के तहत फिल्म महोत्सव निदेशालय 1995 तक रहे, जहां उनका कार्य प्रोफ़ाइल राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कारों के लिए राष्ट्रीय फिल्म जूरी का गठन करना, राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कारों के लिए फिल्म प्रविष्टियों को आमंत्रित करना, जूरी स्क्रीनिंग की व्यवस्था करना और संचालन करना, वार्षिक राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार ब्रोच की छपाई कराना था। राष्ट्रपति द्वारा पुरस्कार प्रस्तुति के लिए पुरस्कार प्रस्तुति समारोह आयोजित करना भी उनके जिम्मे था। इस अवधि के दौरान उन्होंने भारत के वार्षिक अंतर्राष्ट्रीय फिल्म महोत्सव यानी आईएफएफआई के लिए फिल्म महोत्सव निदेशालय में अलग-अलग प्रोफाइल, भारतीय पैनोरमा के लिए फिल्मों का चयन और विभिन्न सांस्कृतिक आदान-प्रदान कार्यक्रमों में भागीदारी के लिए विदेशों में भारतीय फिल्मों के नामांकन करने भी भूमिका भी संभाली। ये किस्मत का ही खेल है कि जिनके पिता और परिवार उन्हें फिल्मों से दूर रहने की हिदायत देते रहे, उन्होंने फिल्म क्षेत्र में ही बड़ी पहचान बनाई, जिससे परिजन भी हैरान तो रहे लेकिन बेटे की लोकप्रियता से उससे कहीं ज्यादा खुश हैं। 
एनएफडीसी में किया फिल्मों का निर्माण 
उन्होंने बताया कि जब 1995 में उन्हें राष्ट्रीय फिल्म विकास निगम (एनएफडीसी) में निर्माण प्रबंधक के पद नियुक्त किया गया, तो निगम तत्वावधान में उन्होंने हिन्दी फिल्म ट्रेन टू पाकिस्तान (1998), हरियाणवी फिल्म लाडो (2000), कश्मीरी फिल्म बब (2001), उड़िया फिल्म मगुनिरा शगडा (2001) में निर्माण नियंत्रक के रूप में अपने कार्य को अंजाम दिया। एनएफडीसी के तहत ही रामपाल ने इग्नू ज्ञानदर्शन, डीडी स्पोर्ट्स, डीडी न्यूज, डीडी मेट्रो, डीडी-3 के लिए जारी कार्यक्रमों की सुपरविजिंग की तथा विभिन्न सरकारी मंत्रालयों के रेडियो-टीवी पर सामाजिक जागरुकता के कार्यक्रमों में निर्माण समन्वयक के तौर पर कार्य संभाला। मसलन फीचर फिल्म के निर्माण के अलावा केंद्र सरकार के लिए कई प्रचार टीवी विज्ञापन भी तैयार किए हैं। इनमें जागो ग्राहक जागो, सूचना का अधिकार, शिक्षा का अधिकार, एमजी नेर्गा, एमएसएमई, आधार, वयस्क शिक्षा, सर्व शिक्षा अभियान, पीएनडीटी, सड़क सुरक्षा और पानी बचाएं जैसे अनेक प्रोजक्ट शामिल हैं। इसी दौरान उन्होंने 1987 में हरियावी फिल्म विकास परिषद (एचएफडीसी) की स्थापना की और एचएफडीसी के बैनर तले प्रथम हरियाणवी फिल्म महोत्सव का आयोजन किया, जिसमें लगभग 30 फिल्मों ने प्रतियोगिता में भाग लिया। 
यहां से मिली मंजिल 
श्री बल्हारा ने बताया कि फिल्म फेस्टिवल में काम करने के दौरान उनकी मुलाकात रक्षा मंत्रालय के आर्मी फिल्म और फोटो डिवीजन में प्रोजेक्टर के रुप में काम करने वाले जयंत प्रभाकर से हुई और उन्होंने एक हरियाणवी फिल्म बनाने की योजना बनाई और चंद्रावल के निर्माण का विचार हमारे दिमाग में आया और जयंत प्रभाकर ने फिल्म का निर्देशन किया और उन्होंने उनके साथ इस फिल्म में सहायक निर्देशक, कलाकार और प्रोडक्शन कंट्रोलर के रुप में कार्य किया। चंद्रावल की शानदार सफलता के बाद रामपाल बल्हारा हरियाणवी फिल्म लाडो बसंती, गुलाबो, छोटी साली, जर जोरु और जमीन में भी मुख्य सहायक, निर्देशक और प्रोडक्शन कंट्रोलर के साथ अभिनय के रुप में कई किरदार निभाए। उन्होंने हरियाणवी फिल्म ‘दादा लखमी’ और पंजाबी-हरियाणवी में निर्मित फीचर फिल्म ‘सैल्यूट’ में भी निर्माण समन्वयक के साथ एक अभिनेता के रुप में भी अहम भूमिका निभाई। उन्होंने सेवानिवृत्ति के बाद एक हिंदी फीचर फिल्म एसपी चौहान में एक छोटी सी चरित्र भूमिका निभाई है। जबकि उन्होंने एक अन्य स्टेज ऐप वेब श्रृंखला के तहत कॉलेज कांड, ओपरी पराई व बवाल में प्रोडक्शन हेड और चरित्र के रूप में भी काम किया है। 
02Oct-2023