बुधवार, 30 सितंबर 2015

सड़कों पर इलेक्ट्रिक वाहन उतारने की तैयारी!

दो साल के भीतर शुरू होगी सरकार की परियोजना
ओ.पी. पाल. नई दिल्ली।
केंद्र सरकार ने वायु प्रदूषण की चुनौती से निपटने के लिए विदेशो की तर्ज पर अब पेट्रोल व डीजल से जैसे र्इंधनों से चलने वाले वाहनों को इलेक्ट्रिक वाहनों में बदलने की तैयारी शुरू कर दी है। इसके लिए केंद्र सरकार ने भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संस्थान यानि इसरों से हाथ मिलाया है, जो वाहनों के लिए लिथियम-आॅयन बैटरी विकसित करने को तैयार है।
सुप्रीम कोर्ट और नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) की वायु प्रदूषण को नियंत्रण करने के लिए बार-बार दी जा रही नसीहत के मद्देनजर केंद्र सरकार ने देश के विकास के एजेंडे में पर्यावरण के लिए वायु प्रदूषण की चुनौती का मुकाबला करने के लिए योजनाओं का खाका खींचना शुरू कर दिया है। इसी दिशा में केंद्रीय सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय ने इसरो के वैज्ञानिकों के साथ बैठक करके विचार विमर्श करते हुए लक्ष्य तय किया है कि दो साल के भीतर सबसे पहले बसों और स्कूटर व मोटरसाइकिलों को इलेक्ट्रिक प्रणाली के तहत सड़कों पर उतारने का लक्ष्य तय किया है। ऐसा दावा मंगलवार को स्वयं केंद्रीय सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्री नितिन गडकरी ने भी किया है। हालांकि गडकरी का दावा है कि केंद्र में सत्ता संभालते ही मोदी सरकार ने भारत को प्रदूषण मुक्त बनाने का संकल्प लिया है, जिसके तहत सबसे पहले ई-रिक्शाओं को प्रोत्साहन दिया गया है।

मंगलवार, 29 सितंबर 2015

अब बेलगाम नहीं दौड़ सकेंगे कॉमर्शियल वाहन!

एक अक्टूबर से स्पीड गवर्नर डिवाइस लगाने के निर्देश
ओ.पी. पाल. नई दिल्ली।
केंद्र सरकार ने सड़क हादसों में होने वाली मौतों पर अंकुश लगाने के लिए देशभर में दौड़ने वाले कॉमर्शियल वाहनों में एक अक्टूबर से स्पीड गवर्नर लगाने के निर्देश दिये हैं। इसके लिए केंद्र और राज्य सरकारों ने अधिसूचना जारी करके बिना स्पीड गवर्नर डिवाइसवाहनों के रजिस्ट्रेशन निरस्त करने का निर्णय लिया है।
केंद्रीय सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्रालय ने मोटर वाहन नियमों में संशोधन करते हुए ट्रक, बस, डंपर, मिनी बसों की गति पर लगाम कसने की दिशा में उनमें स्पीड गवर्नर लगाना अनिवार्य करते हुए पहले ही अधिसूचना जारी कर दी थी, जिसमें एक अक्टूबर से इन संशोधन नियमों के तहत बिना स्पीड गवर्नर डिवाइस वाले कॉमर्शियल वाहनों के सड़कों पर दौडना सख्त मना होगा और उनके रजिस्ट्रेशन को निरस्त भी किया जा सकता है। इसके लिए राज्य सरकारों ने भी अधिसूचना जारी कर दी है। वहीं एक अक्टूबर के उन्हीं वाहनों का कॉमर्शियल श्रेणी में रजिस्ट्रेशन होगा, जिनमें स्पीड गवर्नर डिवाइस लगी होगी और नए वाहनों में स्पीड गवर्नर डिवाइस लगाने की जिम्मेदारी वाहन निमार्ताओं की होगी। जबकि एक अक्टूबर से पहले पंजीकृत वाहनों में उसके स्वामी को स्वयं हीस्पीड गवर्नर लगवाना होगा। नियमों के अनुसार टैंकर, डम्पर, स्कूल बसों, खतरनाक पदार्थ लेकर चलने वाले वाहनों पर तो यह नियम एक अक्टूबर से तत्काल लागू हो जाएगा और अन्य प्रकार के कॉमर्शियल वाहनों को एक अप्रैल 2016 तक स्पीड गवर्नर लगवाने की छूट दी गई है। गौरतलब है कि वर्ष 2012 में भी अदालतें भी कमर्शियल वाहनों में स्पीड गवर्नर अनिवार्य करने के निर्देश देती आ रही है। हालांकि ट्रांसपोर्टरों ने इसका जबर्दस्त विरोध किया था। इस विरोध के मद्देनजर केंद्र सरकार ने एक अधिसूचना जारी कर 2014 से लगभग सभी कॉमर्शियल वाहनों को इससे राहत दी, लेकिन अप्रैल 2015 में अचानक केंद्र सरकार ने एक नई अधिसूचना जारी कर बसों और ट्रकों के लिए भी स्पीड गवर्नर जरूरी कर दिया।

सोमवार, 28 सितंबर 2015

तीन माह से चक्रव्यूह में फंसी है मेगा योजना!

वाहन चालकों को सड़क किनारे सहूलियतें देने की तैयारी
ओ.पी. पाल. नई दिल्ली।
देशभर में राष्ट्रीय राजमार्गो पर सड़क के किनारे वाहन चालकों को केंद्र सरकार ने एक महत्वाकांक्षी योजना तैयार की है, लेकिन तीन माह से नाम की तलाश में यह मेगा योजना अधर में लटकी हुई है।
केंद्रीय सड़क एवं परिवहन मंत्रालय ने लंबा सफर तय करने वाले वाहनों के चालकों के लिए विश्राम ग्रह और शौचालयों की सुविधा देने की योजना को शुरू किया है। ऐसी योजना के समकक्ष वाहन चालकों के लिए खासकर राष्ट्रीय राजमार्गो पर सड़क के किनारे ऐसी
सहूलियतें मुहैया कराने वाली केंद्र सरकार की एक महत्वकांक्षी योजना पिछले तीन माह से प्रधानमंत्री कार्यालय में मंजूरी के लिए लंबित पड़ी हुई। इस योजना के अधर में लटकने का कारण है कि इस योजना को उपयुक्त नाम न मिलना। सूत्रों के अनुसार केंद्रीय सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्रालय ने इसके लिए जहां एक मुकाबला आयोजित किया और लोगों के मिले सुझाव में करीब 1500 नामों की छंटनी करके जून माह में 50 नाम पीएमओ को भेजे हैं, जहां योजना के नाम को लेकर जारी मंथन के बावजूद अभी तक किसी भी नाम को अंतिम रूप नहीं दिया गया और न ही मंजूरी मिल सकी है। सूत्रों के अनुसार प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी स्वयं चाहते हैं कि चालकों को मिलने वाली सुविधाएं पिज्जा हट और मैक्डॉनल्ड्स जैसे किसी ब्रांड नाम के तहत शुरू की जाये। सरकार की इस योजना के रोडमैप के अनुसार इस प्रकार की सहूलियतें हर 100 किलोमीटर के बाद होगी, जबकि अन डिवाइडेड हाइवेज पर हर 50 किलोमीटर के बाद इसे बनाया जाएगा। गौरतलब है कि इससे पहले वर्ष 2007 में यूपीए शासनकाल में भी नेशनल हाइवेज अथॉरिटी आॅफ इंडिया ने देश की आॅल कंपनीज आरआईएल, एचपीसीएल और एस्सर के साथ मिलकर हर 100 किलोमीटर के बाद वेसाइड एमिनिटीज देने का प्रयास किया था, जो कामयाब नहीं हो सकी।

रविवार, 27 सितंबर 2015

राग दरबार: ईमानदार पर प्‍याज की आंच

राग दरबार
युगपुरुष की बाजीगिरी का कमाल
यह तो वाकई हुआ कमाल! दिल्ली में ईमानदारी और पारदर्शिता की दुहाई देकर रविंद केजरीवाल जैसे युगपुरुष की सरकार में प्याज घोटाला उजागर हुआ है। मसलन नासिक से सस्ता प्याज खरीद कर केजरीवाल सरकार ने दिल्ली में आम लोगों को महंगे दामों मेंबेचकर लोगों को राहत देने और आम लोगों को एक किलोग्राम प्याज पर दस रुपये की सब्सिडी देने का भी अहसान करके आम आदमी की सरकार होने का दावा किया। केजरी सरकार और मुख्यमंत्री केजरीवाल की ईमानदारी और पारदर्शिता उस समय घेरे में आ गई, जब एक आरटीआई ने प्याज पर मुनाफाखोरी का खुलासा हो गया। दरअसल इस खुलासे में विरोधियों का दावा है कि सरकार ने नासिक से 24 रुपये किलो के हिसाब से प्याज खरीदी और तीस रुपये किलो बेचते हुए दावा किया कि नासिक से दिल्ली तक परिवहन खर्च के साथ सरकार को यह प्याज 40 रुपये किलो के भाव पड़ी है, इसलिए जनता को प्याज मुहैया कराने के लिए उन्हें दस रुपये प्रति किलो सब्सिडी देते हुए 30 रुपये किलो बेची गई है। प्याज की इस राजनीति में दिल्ली में सस्ते दामों पर लोगों को प्याज बेचने के बाद भी दिल्ली सरकार ने भारी मुनाफा कमा लिया। आरटीआई के खुलासे और दिल्ली सरकार की सफाई के बावजूद यह बड़ा सवाल है कि प्याज में घोटाला हुआ या नहीं? राजनीतिक गलियारों में चर्चा यही है कि यह तो युगपुरुष की बाजीगिरी का ही कमाल है जो ईमानदारी और पारदर्शिता की आड़ में प्याज पर भारी मुनाफा डकार लिया गया।
ऐसे बांटो काम
आमतौर पर आला अधिकारी अपने मातहत अधिकारियों को बहुत ज्यादा ताकत नहीं देते। या यूं कहें कि कुछ ठोस फैसला करने की बात हो तो वैसी फाइलों को नौकरशाही में नंबर-वन अधिकारी ही देखता है, ओके करता है। मगर, केंद्रीय गृह सचिव राजीव महर्षि अब ऐसे फैसले ले रहे हैं जिससे मंत्रालय के नंबर-दो अधिकारी खुद को फाइलों पर फैसला लेने वाला अधिकारी मान सकेंगे। मंत्रालय के खराब पड़े कार सहित कबाड़ को निपटाने का मामला हो या फिर, एलटीसी बिल एप्रूव करने का मसला, हउसकीपिंग स्टाफ रखने का कोई मसौदा हो- ऐसी दो दर्जन से अधिक फाइलें अब महर्षि के पास नहीं जाएंगी। मंत्रालय के वित्त वि•ााग के साथ मिलकर 5 करोड़ रुपए तक के टेंडर का काम अब सचिव, आंतरिक सुरक्षा और सचिव बॉर्डर मैनेजमेंट को दिया गया है। जाहिर है इससे मंत्रालय में काम की गति बढ़ेगी।
गुलदस्ता प्रेमी मंत्रीजी
सियासी जमात की एक खासियत है कि उसे कुछ और मिले न मिले लेकिन ताली और माला मिलती रहे तो बंदा चहकता रहता है। अब हाल ही का एक माजरा है। एक महत्वपूर्ण मंत्रालय में जूनियर मंत्री का ओहदा संभाल रहे एक नेताजी एक कार्यक्रम में शामिल होने पहुंचे। कार्यक्रम उनके मंत्रालय का ही था। जनाब तय समये से डेढ़ घंटा विलंब से पहुंचे, अधिकारी और मीडियाकर्मी इंतजार करते रहे। खैर, कार्यक्रम शुरु हुआ। मंत्रालय के सचिव ने मंत्रीजी को गुलदस्ता देकर स्वागत किया। इसके बाद कार्यक्रम के संचालक ने सचिव का स्वागत करने के लिए संयुक्त सचिव को पुकारा। संयुक्त सचिव गुलदस्ता लेकर आगे बढ़े, इतने में मंत्रीजी गुलदस्ता लेने के लिए उठ खड़े हुए। अब संयु्कत सचिव करे तो क्या करे... हड़बड़ा कर मंत्रीजी की ओर बढ़ गए। मंत्रीजी भी मुस्कुराते हुए गुलदस्ता थाम लिए। इस बीच कुछ लोग मुस्कुरा दिए। मंत्रीजी को भी बात समझ में आ गई।अपनी चूक को हंसी में तब्दील करने के लिए मंत्रीजी ने झट से बोला . .क्या करें राजनीति में इसकी आदत से पड़ गई है। माला और गुलदस्ता देख हम लोग खिंचे चले आते हैं। इतना सुनते ही सब ठठाकर हंस पड़े।

शनिवार, 26 सितंबर 2015

सड़क हादसों पर अंकुश लगाना बड़ी चुनौती!

रिपोर्ट: तेरह राज्यों में ज्यादा बेकाबू रहे सड़क हादसे
ओ.पी. पाल. नई दिल्ली।
दुनियाभर में भारत उन देशों में शुमार है,जहां लोगों की सबसे ज्यादा जीवन लीला सड़क हादसों में दफन हो जाती है। केंद्र सरकार लगातार सड़क हादसों में हो रही मौतों पर अंकुश लगाने के लिए सड़क और वाहनों के लिए बेहतर से बेहतर परियोजनाएं लागू कर रही है, लेकिन सड़क हादसों में होने वाली मौतों पर अंकुश लगाना एक बड़ी चुनौती बना हुआ है।
केंद्रीय सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्रालय की हाल ही में जारी हुई एक रिपोर्ट में सड़क हादसों और उनमें मौत की संख्या को लेकर चिंताजनक और चौंकाने वाले तथ्य सामने आए हैं। हालांकि इस रिपोर्ट में वर्ष 2014 तक के सड़क हादसों के आंकड़े पेश किये गये हैं, लेकिन इन आंकड़ों को देखते हुए भारत दुनिया के विकासशील देशों में इस मामले में दो दशक से भी ज्यादा पीछे खड़ा नजर आ रहा है। मंत्रालय की रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2014 में हर घंटे औसतन 56 सड़क दुर्घटनाएं हुई, जिनमें औसतन डेढ़ दर्जन लोगों को अपनी जान गंवाने के लिए मजबूर होना पड़ रहा है। इस साल हुए करीब 4.90 लाख सड़क हादसों में देश में करीब 1.40 लाख लोग मौत के शिकार हुए हैं। रिपोर्ट के अनुसार किये गये अध्ययन 50 शहर देश के ऐसे हैं जहां पर 22.7 प्रतिशत सड़क हादसे होते हैं और हादसों के शिकार 11.9 प्रतिशत लोग अपनी जान गंवाने को मजबूर हैं। जबकि 16.8 प्रतिशत लोगों को गंभीर घायल होते देखे गये हैं। केंद्र सरकार ने भारत में कॉमर्शियल वाहनों के लिए एक अप्रैल 2015 से एबीएस जरूरी कर दिया गया है। वहीं वाहन निर्माण कंपनियों के लिए भी अंतर्राष्‍ट्रीय मानको का अनिवार्य किया गया है। वहीं सड़क सुरक्षा कानून लाने की तैयारी भी की जा रही है। मोटरसाइकिलों और कारों के लिए भी यह जरूरी करने जा रही है। हादसों का दूसरा बड़ा कारण भारतीय ड्राइवरों की अनुशासनहीनता है। कार चलाते समय सीट बेल्ट न पहनना, हेलमेट न पहनना आदि भी हादसों के कारण हैं।

शुक्रवार, 25 सितंबर 2015

बंदरगाहों की आर्थिक सेहत सुधारने की कवायद!

तटीय व अंतदेर्शीय जलमार्ग को प्रोत्साहित करेगी सरकार
ओ.पी. पाल. नई दिल्ली।
केंद्र सरकार ने देश के प्रमुख बंदरगाहों के बढ़ते घाटे को पाटने के लिए उनकी क्षमताओं में सुधार के लिए उनका आधुनिक विकास करने की योजना तैयार की है। सरकार की इस योजना में तटीय और अंतर्देशीय जलमार्गो को प्रोत्साहित करने का फैसला भी शामिल है।
केंद्रीय जहाजरानी मंत्रालय के अनुसार देश में प्रमुख बंदरगाहों की क्षमता में सुधार करने की योजना के तहत उनके अधिकार का दायरा बढ़ाने के अलावा बंदरगाहों के अंतिम छोर तक संपर्क के मकसद से सरकार ने नई योजना तैयार की है। इस योजना के तहत देश में एक नई कंपनी इंडियन पोर्ट रेल कॉरपोरेशन और बाहर की परियोजनाएं के लिए इंडिया पोर्ट्स ग्लोबल नामक नई कंपनी की स्थापना की गई है। बंदरगाहों के आधुनिक सुधार की दिशा में उनके विकास को बढ़ावा देने के लिए सागरमाला परियोजना के साथ ही उपकरण और तकनीकी उन्नयन, मशीनीकरण तथा बड़े जहाजों के लिए मेगा योजना तैयार की गई है। इस योजना में बंदगाहों पर तटीय बर्थ, यात्री जेट्टी स्थापना करने का भी निर्णय लिया गया है। मंत्रालय के अनुसार सरकार की इस नई योजना के तहत प्रमुख बंदरगाहों पर 200 मेगावाट हरित ऊर्जा का उत्पादन हो सकेगा, जिनमें 150 मेगावाट सौर ऊर्जा तथा 50 मेगावाट पवन ऊर्जा शामिल होगी। सरकार की प्राथमिकताओं में बंदरगाहों पर अपशिष्ट जल शोधन, वायु प्रदूषण में कमी के लिए जैव डीजल उपयोग तथा बंदरगाहों पर सुपर स्पेशियलिटी अस्पताल तथा चिकित्सा सुविधाएं प्रारंभ करना भी शामिल है। मंत्रालय के अनुसार इस योजना को लागू करने का मकसद तटीय तथा अंतदेर्शीय जलमार्ग को प्रोत्साहित करना है, ताकि पोत परिवहन लागत पर बंदरगाहों की क्षमता को बढ़ाया जा सके।

गुरुवार, 24 सितंबर 2015

अब हो सकेगी हादसों में घायलों की मदद!

केंद्र सरकार ने जारी किये दिशा निर्देश
मदद करने वालों को तंग नहीं कर सकेगी पुलिस
ओ.पी. पाल. नई दिल्ली।
देश में सड़क सुरक्षा की मेगा योजना के तहत केंद्र सरकार ने दुर्घटनाओं में हो रही मौतों पर अंकुश लगाने की दिशा में मानवीय व सामाजिक दृष्टिकोण अपनाते हुए एक ऐसी अधिसूचना जारी की है, जिसमें सड़क दुर्घटना में घायलों को अस्पताल तक पहुंचाने वाले लोगों में पनपे डर को दूर किया गया है। मसलन मानवीय आधार पर मददगारों को पुलिस की प्रताड़ना का शिकार नहीं होना पड़ेगा।
दरअसल सड़क दुर्घटनाओं के दौरान घायलों को चाहते हुए भी कोई भी व्यक्ति उन्हें अस्पताल ले जाने या उनकी मदद करने से कतराता रहा है, जिसके कारण सड़क दुर्घटनाओं में मरने वालों की संख्या में इजाफा होता देखा गया है। इसका कारण यही था कि ऐसे नेक लोगों को पुलिस पूछताछ के नाम पर प्रताड़ित करने की प्रणाली ज्यादा अपनाती आई है। इसी मानवीय और सामाजिक दृष्टिकोण के मद्देनजर केंद्रीय सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्रालय ने दुर्घटना पीड़ितों को मौके से अस्पताल ले जाने वाले लोगों को प्रताड़ना से बचाने के लिए दिशा-निर्देश जारी किए हैं। इसके लिए राज्य सरकारों, अस्पताल, पुलिस तथा अन्य सभी संबंधित अधिकारियों को इन दिशानिर्देशों का अनुपालन कराने हेतु एक अधिसूचना जारी की गई है। केंद्र सरकार ने यह अधिसूचना सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिये गये निर्देशों के आधार पर जारी की है। सरकार का मकसद है कि दुर्घटना में घायल लोगों की मदद करने से मदद करने वाले लोगों में जागरूता को बढ़ाकर सड़कों पर गंवाई जा रही इंसानोें की जान को बचाया जा सके। केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय सभी पंजीकृत सार्वजनिक एवं निजी अस्पतालों को दिशा-निर्देश जारी करेगा, कि सहायता करने वाले व्यक्ति से अस्पताल में घायल व्यक्ति के पंजीकरण और दाखिले या इलाज के लिए किसी प्रकार के शुल्क की मांग नहीं की जाएगी। अधिसूचना में यह भी प्रावधान होगा कि घायल की सहायता करने वाला व्यक्ति उसके पारिवारिक सदस्य अथवा रिश्तेदार है तो भी घायल व्यक्ति को तुरंत इलाज शुरू किया जाएगा, भले ही उनसे बाद में शुल्क जमा कराया जाए।

मंगलवार, 22 सितंबर 2015

एयर इंडिया भरेगी सबसे लंबी नॉनस्टाप उड़ान!

नया विश्व कीर्तिमान बनाने की तैयारी में सरकार
ओ.पी. पाल. नई दिल्ली।
देश की प्रमुख विमानन कंपनी एयर इंडिया को आर्थिक संकट से बाहर निकालने की तमाम योजनाओं के साथ केंद्र सरकार दुनिया में एक नया कीर्तिमान बनाने की तैयारी में है। विश्वस्तरीय विमानन कंपनियों में शुमार एयर इंडिया ने दुनिया की सबसे लंबी नॉनस्टाप हवाई उड़ान भरने की योजना अंतिम रूप दे दिया है। संभावना है कि ऐसी पहली उड़ान इसी सप्ताह शुरू कर दी जाएगी।
नागर विमानन मंत्रालय के अनुसार भारतीय विमानन कंपनी एयर इंडिया बहुत जल्द ही नया कीर्तिमान रचने वाली है। एयर इंडिया के हवाले से मंत्रालय ने एयर इंडिया की इस योजना के बारे में बताया कि जल्द ही एयर इंडिया की कॉमर्शियल हवाई सेवा शुरू होने जा रही है, जिसमें 14 हजार किमी का नॉनस्टाप सफर तय किया जाएगा। यह उड़ान दुनिया की सबसे लंबी दूरी तय करने वाली योजना है, जिसमें एयर इंडिया का नया कीर्तिमान बनना तय है। एयर इंडिया के चेयरमैन अश्विनी लोहानी ने इस योजना का रोडमैप तैयार करके नागर विमानन मंत्रालय के सामने पेश कर दी है। एयर इंडिया को नए शिखर पर ले जाने वाली दुनिया की संबसे लंबी पहली उड़ान बंगलुरु से अमेरिका के सेन फ्रांसिस्को तक 14 हजार किमी का सफर तय करेगी। अभी तक दुनिया में सबसे लंबी नॉनस्टाप कार्मिशियल विमानन उड़ान का रिकार्ड आस्ट्रेलियाई विमान क्वांटास के नाम है, जिसने अमेरिका के डेलस फोर्ट वर्थ से सिड़नी तक 13,730 किमी तक का सफर तय किया है। नागर विमानन मंत्रालय का मानना है कि एयर इंडिया की इस योजना से विमानन कंपनी को आर्थिक रूप से भी मजबूती मिलने की उम्मीद है। सरकार का प्रयास है कि देश की विमानन सेवाओं को विश्व स्तरीय बनाने के लिए एयर इंडिया समेत अन्य निजी कंपनियों को भी आर्थिक संकट से उबारा जाए, जिसके लिए सरकार ने कई महत्वपूर्ण योजनाओं का खाका तैयार कर लिया है और ऐसी योजनाओं को चरणबद्ध तरीके से लागू किया जा रहा है।

सोमवार, 21 सितंबर 2015

किसानों की पगड़ियों पर चला वर्चस्व का खेल!

कांग्रेस सम्मान रैली में हावी रही हरियाणा की गुटबाजी
हुड्डा व तंवर समर्थकों में खुलकर चले पानी की थैली
ओ.पी. पाल. नई दिल्ली।
किसान सम्मान रैली में भले ही कांग्रेस मोदी सरकार के भूमि अधिग्रहण विधेयक को रोकने का जश्न मनाकर अपने हाथ और किसान के हल की एकजुटता का प्रदर्शन कर रही हो, लेकिन इस मौके पर हरियाणा में कांग्रेस की गुटबाजी में बंटे कांग्रेस दिग्गजों ने किसानो, मजदूरों और समर्थकों के गुटों का भी अलग-अलग प्रदर्शन करने में कोई कसर नहीं छोड़ी।
दरअसल मोदी सरकार के नए भूमि अधिग्रहण विधेयक को संसद में पारित होने से रोकने को कांग्रेस अपनी बड़ी जीत मानकर चल रही है। इसी जीत का जश्न मनाने के लिए रविवार को यहां ऐतिहासिक रामलीला मैदान पर कांग्रेस ने किसान सम्मान रैली आयोजित की। इस रैली की तैयारी में हरियाणा के कांग्रेस दिग्गज भी हाईकमान के सामने अपनी अपनी ताकत दिखाने के लिए रैली में भीड़ जुटाने के लिए तैयारियों में लगे हुए थे। अमूमन हरियाणा में कांग्रेस पूर्व मुख्यमंत्री भूपेन्द्र सिंह हुड्डा, हरियाणा कांग्रेस के प्रदेशाध्यक्ष अशोक तंवर और पूर्व केंद्रीय मंत्री कुमारी सैलजा के गुटों में बंटी मानी जाती है। हरियाणा कांग्रेस की यह गुटबाजी कांग्रेस और किसानों की एकजुटता के लिए बुलाई गई रैली में साफतौर से नजर आई। इस रैली में हरियाणा के पूर्व मंख्यमंत्री भूपिंदर सिंह हुड्डा के समर्थक गुलाबी पगड़ी पहनकर आये, तो अशोक तंवर के समर्थकों ने लाल पगड़ी पहन रखी थी। हालांकि रैली में उमड़ी किसानों की भीड़ में टोपी और खास किस्म का साफा डाले नजर आ रहे थे।

रविवार, 20 सितंबर 2015

सड़क हादसों पर काबू करने की कवायद।

ट्रक चालकों को विश्राम घर व ई-शौचालय की सुविधा
ओ.पी. पाल. नई दिल्ली।
केंद्र सरकार ने सड़कों पर होने वाले हादसों को काबू करने के मकसद से सड़क सुरक्षा योजना के लिए कई कदम उठाए है। सरकार के इन्हीं कदमों में देशभर में भीड़भाड़ वाले ट्रांसपोर्ट नगरों में ट्रक चालकों को विश्राम घर और ई-शौचालयों की सुविधा देने की योजना को तेज कर दिया है।
सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय के अनुसार केंद्र सरकार सड़क परिवहन और सुरक्षा विधेयक, राष्ट्रीय सड़क सुरक्षा नीति, राष्ट्रीय सडक सुरक्षा कार्ययोजना तथा सड़क दुर्घटना के पीड़ित के उपचार के लिए चुनिंदा शहरों एवं राजमार्गों पर कैशलेस इलाज की व्यवस्था लागू करने जा रही है। भारत दुनिया में उन देशों में शुमार है जहां सबसे ज्यादा मौते सड़क दुर्घटनाओं के कारण हो रही हैं और एक अध्ययन में पाया गया है कि सड़कों पर भारी वाहनों खासकर ट्रकों से भयावह दुर्घटनाएं होती हैं। ऐसे सड़क हादसों को काबू करने की दिशा में मंत्रालय ने ट्रक चालकों की मनो स्थिति का भी अध्ययन कराया है। केंद्र सरकार ने ट्रक चालकों को सतर्क और सजग बनाने की योजना तैयार करते हुए उन्हें भी सुविधाएं मुहैया कराने का निर्णय लिया है। लंबे सफर पर ट्रक चलाने वाले चालकों के लिए सरकार ने देश के भीड़भाड़ वाले ट्रांसपोर्ट नगरों में ई-शौचालय व पोर्टा केबिन स्थापित करने का खाका तैयार कर लिया है, ताकि ट्रक चालकों को विश्राम घर और शौचालयों जैसी सुविधाएं मुहैया हो सकें। एक अध्ययन के अनुसार एक ट्रक चालक औसत एक माह में चार से आठ हजार किलोमीटर की यात्रा अपने ट्रकों से तय करते हैं और लगातार सफर में रहने, रास्ते में खराब खानपान अव्यवस्थित जीवन की वजह से होने वाली बीमारियों के साथ ऊबड़-खाबड़ असुरक्षित सड़कों पर इनका सफर जानलेवा मौत के कुओं से गुजरता है। ट्रक चालकों के लिए इस लंबे रास्ते में एक भी जगह इस तरह की सुविधा नहीं मिलती, जहां से सुकून से नहा और फ्रेश हो सके। मंत्रालय के सूत्रों के अनुसार सरकार इस योजना को धीरे-धीरे पूरे देश में उन सभी राष्टÑीय राजमार्गो पर लागू करेगी, जहां ट्रकों की आवाजाही ज्यादा रहती है। इसके लिए जो बजट का प्रावधान किया गया, जिसे स्वच्छ भारत मिशन से जुटाया जा रहा है।

राग दरबार-आखिर असली शिखंडी कौन?

जनता परिवार में बदजुबानी
देश की राजनीति भी अजब है, जिसमें दोस्त या दुश्मनी का पैमाना तय करना बेहद मुश्किल है। मसलन बिहार चुनाव से पहले भाजपा का सफाया करने के इरादे से जनता परिवार के नाम की दुहाई देकर जो राजनीतिक दल एकजुट होने का दम भर रहे थे, उन्हीं दलों के बीच बिहार के चुनावी संग्राम में आपस में बदजुबानी तेज होने लगी। हो भी क्यों न, जब इस जनता परिवार से अलग होकर सपा ने बिहार चुनाव में जनता परिवार के महागठबंधन का मुकाबला अपने दम पर करने का ऐलान कर दिया हो। ऐसे में जनता परिवार के बाकी दलों को अपनी सियासी जमीन खिसकने का डर सताना लाजिमी है। यह डर ऐसे में ज्यादा बढ़ा जब सपा के नेतृत्व में महागठबंधन से अलग हुए दलों ने तीसरे मोर्चा बनाकर बिहार विधानसभा चुनाव में जंग का ऐलान कर दिया। इससे महागठबंधन में जदयू-राजद-कांग्रेस का सियासी खेल बिगड़ना तय माना जा रहा है। शायद यही कारण है कि अपने कुनबे से अलग होकर सियासत करने वाले दलों के इस मोर्चे को जदयू के प्रमुख शरद यादव ने शिखंडी, जयचंद और मीर जाफर की जमात करार दे दिया। ऐसे में राजनीतिक गलियारे में यह चर्चा होना लाजिमी था कि तीसरे मोर्चा के दल यदि महागठबंधन में रहते तो कोई शिखंडी नहीं था, लेकिन उनसे अलग हुए दलों ने मोर्चा बनाया तो वे अब शिखंड या जयचंदों की फौज हो गई। जब बिहार चुनाव की सरगर्मी चरम पर है तो राजनीति गलियारों में इन दिनों असली शिखंडी और जयचंदों की तलाश शुरू हो गई है, लोग एक-दूसरे से पूछते नजर आते हैं कि भाई यह तो बताओ सचमुच का असली शिखंडी कौन है?
कमाल का लोकतंत्र
लोकतंत्र और धर्मनिरपेक्षता की बात-बात पर दुहाई देने वाली देश की सबसे बूढ़ी राजनीतिक पार्टी कांग्रेस के अंदर संगठनात्मक स्तर पर कमाल का लोकतंत्र है। पिछले दिनों दिल्ली में हुई कांग्रेस कार्यसमिति की बैठक में सर्वसम्मति से श्रीमती सोनिया गांधी का कांग्रेस अध्यक्ष पद पर कार्यकाल एक वर्ष के लिए बढ़ा दिया गया। गौरतलब तथ्य है कि जिस कार्यसमिति ने श्रीमती गांधी का कार्यकाल बढ़ाने का प्रस्ताव पास किया गया, तो उसकेे पारित होने पर उन्होंने स्वयं ही अपने आपको मनोनीत किया। दिलचस्प पहलू यह है कि जिस समय सोनिया ने अपने आपको मनोनीत किया तो प्रस्ताव पारित होने पर उनका कार्यकाल समाप्त हो चुका था। राजनीतिक गलियारों में चर्चा की बात की जाए तो है ना कमाल का कांग्रेसी लोकतंत्र।
सलाहकार बनाम अधिकारी
मंत्रालय का चेहरा चमकाने का जिम्म संभाल रहे एक अधिकारी व संबंधित मंत्रालय के मंत्री के मीडिया सलाहकार  के रिश्ते कुछ इस कदर हैं कि दोनों ही एक दूसरे को छोटा दिखाने का मौका तलाशते रहते हैं। अधिकारी से जब मंत्री से संबंधित कोई सूचना मागी जाती है तो  वो मीडिया सलाहकार द्वारा जानकारी न दिए जाने का हवाला दे अपना पल्ला झाड़ लेते हैं। इसके उलट जब मंत्री के मीडिया सलाहकार से संपर्क किया जाता है तो उनका कहना होता है कि, मीडिया से जुड़ा सारा काम उनके जिम्मे है। इतना ही नही वह अधिकारी को सुस्त बताने लगते हैं। संयोग से ये झगड़ा मंत्री के कार्यालय तक पहुंच गया। फिर क्या, नंबर बढ़ाने के चक्कर में मीडिया सलाहकार ने अधिकारी के खिलाफ मंत्री का कान भर दिया था। किंतु, अधिकारी ने जब मंत्री से उनके मीडिया सलाहकार का व्यवहार बताया तो बाजी ही पलट गई। सुना जा रहा कि, मीडिया सलाहकार अब बता रहे है कि अधिकारी बहुत कोआपरेटिव हैं। 
20Sep-2015

शुक्रवार, 18 सितंबर 2015

बिहार विधान चुनाव: अब मुलायम बिगाड़ेंगे नीतीश-लालू का खेल!

महागबंधन से नराज दलो के साथ बनाया तीसरा मोर्चा
ओ.पी. पाल. नई दिल्ली।
जनता परिवार के महागठबंधन तोड़कर अलग हुए मुलायम सिंह यादव ने अब बिहार विधानसभा के संग्राम में नीतीश-लालू का सियासी खेल बिगाड़ने की सियासी रणनीति तैयार कर दी है। मसलन बिहार की सियासी जंग में समाजवादी पार्टी ने राकांपा और सजद(डी) को साथ लेकर तीसरे मोर्चे के रूप में कूदने का ऐलान कर दिया है।
बिहार में विधानसभा चुनाव में मोदी के खिलाफ सियासी गठजोड़ से जनता परिवार के सहारे बने महागठबंधन को सीटों के बंटवारे से खफा सपा प्रमुख मुलायम सिंह यादव ने ऐनवक्त पर अलग होकर अकेले दम पर चुनाव लड़ने का ऐलान कर दिया था। हालांकि महागठबंधन के सूत्राधारों राजद प्रमुख लालू यादव और जदयू प्रमुख शरद यादव ने मुलायम को मनाने के बेहद प्रयास किये, लेकिन सपा अपनी रणनीति पर कायम रही। जदयू-राजद-कांग्रेस महागठबंधन अभी इस झटके से उबर भी नहीं पाया था कि समाजवादी पार्टी ने गुरुवार को अपने साथ राकांपा और समाजवादी जनता दल(डेमोक्रेटिक) के अलावा पीए संगमा की नेशनल पीपुल्स पार्टी के साथ तीसरे मोर्चे का ऐलान कर नीतीश-लालू का सिरदर्द और बढ़ा दिया। तीसरे मोर्चे का ऐलान गुरुवार को लखनऊ मेंं सपा के महासचिव प्रो. राम गोपाल यादव ने सपा प्रमुख मुलायम सिंह यादव की मौजूदगी में किया है। मसलन तीसरे मोर्चा के रूप में ये दल सपा के साथ बिहार विधानसभा चुनाव में सियासी दम भरेंगे। गौरतलब है कि राजद से अलग हुए डा. रघुनाथ ने सपा और देवेन्द्र यादव ने जीतनराम मांझी की पार्टी हिंदुस्तान आवाम मोर्चा से नाता तोड़कर अलग से समाजवादी जनता दल डेमोक्रेटिक बनाया था।

गुरुवार, 17 सितंबर 2015

लोकसभा चुनाव के खर्च में हुआ गड़बड़झाला!

पार्टियों व सांसदों के ब्यौरे में मिला भारी अंतर
ओ.पी. पाल. नई दिल्ली।
पिछले साल लोकसभा चुनाव के दौरान राजनीतिक दलों और निर्वाचित सांसदों के चुनावी खर्च में भारी घपलेबाजी उजागर हुई है। मसलन दलों और उनके सांसदों द्वारा चुनाव आयोग में प्रस्तुत किये गये चुनाव खर्च की एक मुश्त राशि के ब्यौरे में करोड़ो रुपये की धनराशि का अंतर सामने आया।
देश में चुनाव सुधार के लिए निर्वाचन आयोग के साथ काम कर रहे गैर सरकारी संगठन एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफार्म्स यानि एडीआर ने लोकसभा 2014 में निर्वाचित 543 में से 539 सांसदों और उन्हें उनकी पार्टी द्वारा एक मुश्त राशि के रूप में दिये गये अनुदान की राशि का विश्लेषण करके रोचक तथ्य जारी किये हैं। यदि चार राष्टÑीय दलों द्वारा 175 सांसदों को चुनाव खर्च के लिए दी गई करीब 54.74 करोड़ रुपये के अनुदान देने का दावा किया गया है। जबकि इसके विपरीत इन्ही दलों के 263 सांसदों द्वारा आयोग को सौंपी गई चुनाव खर्च के ब्यौरे में अपनी पार्टियों से करीब 75.59 करोड़ रुपये की सहायता मिलने का दावा किया है। मसलन पार्टी और उनके सांसदों के एकमुश्त मिले अनुदान की इस राशि में 20.85 करोड़ रुपये का गड़बड़झाला सामने आया है। दिलचस्प तथ्य इस विश्लेषण में चुनाव आयोग को सौंपी गई रिर्पोट के मुताबिक लोकसभा में बहुमत हासिल करने वाली भाजपा ने अपने 159 सांसदों को 48.25 करोड़ रुपये, कांग्रेस ने सात सांसदों को 2.70 करोड़ रुपये, राकांपा ने पांच सांसदों को 2.50 करोड़ रुपये, सीपीएम ने चार सांसदों को 1.28 करोड़ रुपये देने का दावा किया है। जबकि भाजपा के 229 सांसदों ने 65.88 करोड़, कांगे्रस के 18 सांसदों ने 4.04 करोड़, राकांपा के सभी छह सांसदों ने 2.80 करोड़, सीपीएम के सभी नौ सांसदों ने 2.65 करोड़ से ज्यादा तथा सीपीआई के मात्र एक सांसद ने 21.83 लाख रुपये पार्टी से चुनाव में सहायता राशि मिलने का अपनी रिपोर्ट में दावा किया है। इसके विपरीत सीपीआई ने अपने सांसद को कोई अनुदान राशि देने से इंकार किया है। इसके अलावा 25 मान्यता प्राप्त दलोें ने अपने-अपने 188 सांसदों को चुनाव खर्च के लिए एकमुश्त राशि का अनुदान देने का दावा किया है। इसमें भाजपा ने अपने 17 सासंदों को दस-दस लाख या उससे कम राशि दी है, तो कांग्रेस, राकांपा और सीपीएम ने अपने सांसदों दस लाख या उससे ज्यादा की धनराशि देने का दावा आयोग के समक्ष किया है।

बुधवार, 16 सितंबर 2015

नदियों को जोड़ने पर आगे बढ़ी सरकार!

केन-बेतवा से शुरू होगी राष्ट्रीय मॉडल लिंक परियोजना
ओ.पी. पाल. नई दिल्ली।
पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहार वाजपेयी की महत्वाकांक्षी नदियों को आपस में जोड़ने की योजना को मोदी सरकार ने दिशा देना शुरू कर दिया है। केंद्र सरकार ने केन-बेतवा नदियों को आपस में जोड़ने की संवैधानिक मंजूरी मिलते ही देश में नदियों को आपस में जोड़ने की मुहिम को मॉडल लिंक परियोजना के रूप में राष्ट्रीय परियोजना को लागू करने का कार्य शुरू करेगी।
केंद्रीय जल संसाधन, नदी विकास और गंगा संरक्षण मंत्री सुश्री उमा भारती ने  नदियें को आपस में जोडने वाली राज्‍यों की विशेष समिति की बैठक में कहा कि उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश के बीच बनी सहमति के बाद केन-बेतवा लिंक परियोजना के लिए विभिन्न मंजूरी प्रक्रिया के अंतिम चरण में हैं और संवैधानिक मंजूरी मिलने के बाद देश में नदियों को आपस में जोड़ने का काम मॉडल लिंक परियोजना के रूप में राष्ट्रीय परियोजना को लागू करने का कार्य शुरू कर दिया जाएगा। उन्होंने कहा कि देश में जल की वृद्धि और खाद्य सुरक्षा के लिए नदियों को आपस में जोड़ने का कार्यक्रम बहुत महत्वपूर्ण है और जल की कमी वाले, सूखा ग्रस्त और वर्षा पर आधारित क्षेत्रों को पानी उपलब्ध कराने के लिए यह बहुत लाभदायक सिद्ध होगा। उन्होंने कहा कि सरकार संबंधित राज्य सरकारों की सहमति और सहयोग से नदियों को आपस में जोड़ने के कार्यक्रम को लागू करने के लिए प्रतिबद्ध है। इस बैठक में पश्‍चिम बंगाल, हरियाणा, पंजाब, तमिलनाडु, गुजरात, मध्‍य प्रदेश, उत्‍तर प्रदेश, आंध्र प्रदेश, ओडिशा, छत्‍तीसगढ़ और असम से विभिन्‍न राज्‍यों के वरिष्‍ठ अधिकारियों ने भी इस बैठक में भाग लिया।
दमनगंगा-पिंजाल पर विवाद
उमा भारती ने बैठक में यह भी जानकारी दी कि पार-तापी-नर्मदा लिंक परियोजना की विस्तृत परियोजना रिपोर्ट का कार्य राष्ट्रीय जल विकास एजेंसी ने पूरा करके गत 25 अगस्त को गुजरात और महाराष्ट्र सरकारों को अपनी रिपोर्ट सौंप दी है। उन्होंने कहा कि केन-बेतवा और दमनगंगा-पिंजाल के बाद यह तीसरी लिंक परियोजना है, जिसके लिए डीपीआर पूरी की जा चुकी है। सुश्री भारती ने कहा दमनगंगा-पिंजाल के संबंध में गुजरात और महाराष्ट्र में पानी बंटवारे का मुद्दा और पार-तापी-नर्मदा लिंक परियोजना के बारे में अब प्राथमिकता के आधार पर विचार किए जाने की जरूरत है। इसलिए वह गुजरात और महाराष्ट्र दोनों की सरकारों से जल बंटवारे के मुद्दे को निपटाने का अनुरोध कर रही हैं, ताकि जल्दी से जल्दी इन दोनों परियोजनाओं पर कार्य शुरू किया जा सके। उन्होंने कहा कि उनके मंत्रालय द्वारा नदियों को आपस में जोड़ने के लिए गठित कार्य बलों ने अपना कार्य शुरू कर दिया है, जिससे नदियों को आपस में जोड़ने की परियोजनाओं के बारे में राज्यों में तेजी से सहमति कायम करने में मदद मिलेगी।

मंगलवार, 15 सितंबर 2015

जल्द बदलेंगे एसटी में समुदायों के मानक!

सामाजिक-आर्थिक और शैक्षिक पिछड़ापन भी होगा शामिल
ओ.पी. पाल. नई दिल्ली।
केंद्र सरकार अनुसूचित जाति के दायरे में समुदायों को रखने के लिए अपनाये जा रहे मानकों में बदलाव करने की तैयारी में है, जिनमें सरकार सामाजिक-आर्थिक, शैक्षणिक पिछड़ापन तथा स्वायत्त धार्मिक परमम्पराओं को भी शामिल करने का निर्णय ले चुकी है। इसके लिए जारी प्रक्रिया को आगे बढ़ाने के फैसले को जल्द ही कैबिनेट में मंजूरी मिलने की संभावना है।
मोदी सरकार अनुसूचित जाति के दायरे में समुदाय को रखने के मानकों में बदलाव करने की कवायद को तेज कर दिया है, जिसकी प्रक्रिया में तेजी लाने के लिए एक कैबिनोट तैयार किया जा रहा है। आदिवासी मामलों के मंत्रालय की माने तो इस प्रक्रिया को आगे बढ़ाने के लिए सरकार द्वारा लिये गये फैसले को जल्द ही केंद्रीय कैबिनेट की मंजूरी मिल सकती है। अनुसूचित जनजाति वर्ग में अन्य समुदायों को शामिल करने के लिए अभी तक पांच मानकों यानि आदिम विशेषताओं, विशेष संस्कृति, दूसरो के संपर्क में हाने से हिचक, भौगोलिक अलगाव और पिछड़ापन का आधार बनाया जाता था। अब सरकार इन मानकों में सामाजिक-आर्थिक और शैक्षिक पिछड़ापन और स्वायत्त धार्मिक परंपराओं को भी शामिल करने पर निर्णय ले चुकी है। हालांकि सरकार पहले से बने आदिम विशेषता के मानक में भी बदलाव करना चाहती है, ताकि अपमानजनक न लगे। वहीं भौगोलिक अलगाव के मानक में भी संशोधन करके इसमें दूसरे आदिवासी समुदायों खासतौर पर एसटी समुदाय के साथ संपर्क को शामिल करने का निर्णय लिया गया है। मंत्रालय के सूत्रों ने बताया कि अभी तक एसटी वर्ग में समुदाय को शामिल करने के राज्यों के प्रस्ताव कई-कई सालों तक अटके रहते थे, लेकिन अब सरकार ने इस प्रक्रिया को छह माह में पूरा करने की समयसीमा तय करने का निर्णय लिया है। इस प्रक्रिया पर साल बाद विचार आदिवासी मामलों के मंत्रालय में सचिव की अध्यक्षता वाली एक सचिवों की समिति निगरानी रखेगी।

सोमवार, 14 सितंबर 2015

ट्रांसपोर्टरों ने बढ़ाई ट्रांसपोर्ट मिनिस्टर की टेंशन

मांगे न मानी तो एक अक्टूबर को देश में होगा चक्का जाम
 नई दिल्ली

देश में परिवहन व्यवस्था में सुधार लाने के लिए जहां केंद्र सरकार नया मोटर अधिनियम और सुड़क सुरक्षा कानून को अमलीजामा पहनाने का प्रयास कर रही है। केंद्रीय सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्री नितिन गडकरी की चिंताओं को बढ़ाते हुए देश के ट्रांसपोर्टरो ने कुछ फैसलो पर सवाल उठाते हुए आगामी एक अक्टूबर को देशव्यापी हड़ताल करने का ऐलान कर दिया है।
आॅल इंडिया मोटर ट्रांसपोर्ट कांग्रेस (एआईएमटीसी) के अध्यक्ष भीम वाधवा ने रविवार को हरिभूमि से बात करते हुए सरकार के टोल और टीडीएस जैसे निर्णयों को देशभर के ट्रांसपोर्टरों के लिए सबसे बड़ी चुनौती करार दिया है। अपने लिए इस चुनौती से निपटने के लिए आॅल इंडिया मोटर ट्रांसपोर्ट कांग्रेस ने भी एक अक्टूबर को देशव्यापी हड़ताल का निर्णय लेकर सरकार को चुनौती देने की तैयारी कर ली है। वाधवा का कहना है कि संगठन ने इन दोनों ही मुद्दों पर फैसले के लिए सरकार को 25 अगस्त तक का समय दिया था, लेकिन सरकार ने उनसे बात करने तक का भी प्रयास नहीं किया।

डेडिकेटेट फ्रेट कॉरिडोर परियोजना को मिली रफ़्तार!

सरकार का अगले चार में पूरा करने का लक्ष्य
ओ.पी. पाल. नई दिल्ली।
देश में माल ढुलाई के लिए जहां राष्ट्रीय राजमार्गो के निर्माण में तेजी लाने की परियोजनाओं को दिशा दी है, वहीं यूपीए सरकार की अधर में लटकी रेलवे की महत्वाकांक्षी ईस्टर्न और वेस्टर्न डेडिकेटेड फ्रेट कॉरिडोर परियोजना को अगले चार सालों में पूरा करने के इरादे से कामकाज को गति देने का दावा किया है।
केंद्र की मोदी सरकार देश की अर्थव्यवस्था में तेजी लाने की दिशा में परिवहन व्यवस्था को मजबूत करने वाली सड़क, जल और रेल मार्ग को दुरस्त करने की कई परियोजनाओं को मंजूरी दे चुकी है। इनमें यूपीए सरकार द्वारा शुरू की गई रेलवे की ईस्टर्न और वेस्टर्न डेडिकेटेड फ्रेट कॉरिडोर परियोजना भी एक है। सड़कों पर माल ढुलाई के बोझ को कम करने के लिए इस महत्वाकांक्षी परियोजना के तहत मौजूदा केंद्र सरकार ने ईस्टर्न और वेस्टर्न डेडिकेटेड फ्रेट कॉरिडोर परियोजना के काम को गति देना शुरू कर दिया है। रेलवे के सूत्रों ने बताया कि सरकार ने गत जून माह में ही परियोजना के क्रियान्वयन को आगे बढ़ाने के लिए संशोधित लागत अनुमान के रूप में 81,459 करोड़ की मंजूरी देते हुए इस परियोजना को पूरा करने के लिए 2019 तक यानि अगले चार साल में पूरा करने का लक्ष्य तय किया है। इससे पहले मार्च 2008 में यूपीए सरकार ने 28,181 करोड़ रुपये के खर्च से पूर्वी एवं पश्चिमी डीएफसी परियोजनाओं के क्रियान्वयन के लिए मंजूरी दी थी, जिसमें अभी तक 13,000 करोड़ रुपए की राशि खर्च की जा चुकी है। परियोजना के लिए भूमि अधिग्रहण लागत 8,067 करोड़ रुपये तय की गई है। इसमें 534 किलोमीटर सोननगर-दनकुनी खंड की लागत शामिल नहीं है, जिसे पीपीपी मॉडल से क्रियान्वित किया जाना प्रस्तावित है। यह परियोजना पूरा होने से रेलमार्ग से होने वाली माल ढुलाई की रफ़्तार बढ़ जाएगी और रेलवे के मुख्य मार्ग पर माल गाड़ियों के बजाए यात्री रेलों की संख्या बढ़ जाएगी। रेलवे के अनुसार इस परियोजना के पूरा होने से इन गलियारों पर मालगाड़ियों की मौजूदा गति 30 किमी प्रतिघंटा के बजाए 100 किमी प्रति घंटा हो जाएगी।

रविवार, 13 सितंबर 2015

जीएसटी लागू करने की कवायद में सरकार!

सहमति बनते ही बुलाया जाएगा संसद का शीत सत्र
ओ.पी. पाल. नई दिल्ली।
केंद्र सरकार का देश में आगामी एक अप्रैल को जीएसटी लागू करने का इरादा है। गुड्स एंड सर्विसेज टैक्स (जीएसटी) विधेयक के मुद्दे पर जहां सरकार ने प्रशासनिक तैयारिया तेज कर दी है, वहीं सरकार के कुछ वरिष्ठ मंत्री विपक्षी दलों के साथ बातचीत करके आम सहमति बनाने में जुटे हैं। ऐसी भी संभावना है कि यदि आम सहमति बन जाती है तो संसद का शीतकालीन सत्र निर्धारत समय से पहले बुलाकर जीएसटी को अंजाम तक पहुंचाया जा सकता है।
संसद के मानसून सत्र के दौरान प्रवर समिति की जांच से गुजकर राज्यसभा में आने के बावजूद जीएसटी विधेयक को भले ही विपक्षी दलों ने रोक दिया हो, लेकिन सरकार आगामी वित्तीय वर्ष में एक अप्रैल को जीएसटी लागू करने के लिए प्रतिबद्धता की बात बार-बार दोहरा रही ही है। शायद इसी इरादे के तहत वित्त मंत्रालय और संबन्धित विभागों में जीएसटी को लेकर प्रशासनिक तैयारियां तेजी से चल रही है। सूत्रों के अनुसार जीएसटी विधेयक लागू करने की परिकल्पना पूर्ववर्ती यूपीए सरकार की है, लेकिन सत्ता बदलने के बाद यूपीए का नेतृत्व कर रही कांग्रेस पार्टी ही इस विधेयक के विरोध में आकर रोड़ा बनी हुई है। इस विधेयक को अंजाम तक पहुंचाने के लिए मोदी सरकार कितनी गंभीर है इसका अंदाजा इसी बात से लगता है कि कुछ वरिष्ठ केंद्रीय मंत्री लगातार विपक्षी दलों के साथ इस मुद्दे पर बातचीत करने में जुटे हुए हैं। इस बात के संकेत शनिवार को स्वयं संसदीय कार्य मंत्री एम. वेंकैया नायडू ने देते हुए कहा कि कि कांग्रेस के नेताओं से हुई बातचीत से संभावना है कि इस मुद्दे पर सभी राजनीतिक दलों की सहमति बन जाएगी। उन्होंने यह भी कहा कि यदि आम सहमति बन जाती है तो जीएसटी को पारित कराने के लिए समय से पहले ही संसद का शीतकालीन सत्र बुलाया जा सकता है। उनकी उम्मीद का तर्क था कि विपक्षी दलों ने कोयला विधेयक और खनन विधेयक का भी विरोध किया था, लेकिन
जब सरकार ने उनसे बातचीत की तो उन्होंने समर्थन करके इन विधेयकों को पारित कराया। गौरतलब है कि तृणमूल कांग्रेस जीएसटी के समर्थन का पहले ही ऐलान कर चुकी है।

राग दरबार: खुला डरे हुए लोगों का रहस्‍य।

सबसे डरे हुए व्यक्ति
भारत जैसे लोकतांत्रिक देश में सबसे डरा हुआ व्यक्ति कौन है? इस रहस्य का पर्दा शायद पहली बार उन्हीं लोगों के सामने सार्वजनिक हो गया, जिन्हें देश का सबसे डरे हुए व्यक्तियों में शुमार माना जा रहा है। इस रहस्य से हटे पर्दे को संसदीय रिकार्ड के हिस्से में दर्ज कर लिया गया है। जब यह रहत्य खुला तो संबन्धित लोग एक बारगी तो हक्के-बक्के नजर आए, लेकिन जब इसकी पृष्ठभूमि के तर्क दिये गये तो सभी ने अपने को डरे हुए व्यक्तियों के रूप में स्वीकार भी किया। करें भी क्यूं ना भला, एक और सरकार का डर तो दूसरी ओर जनता और राष्टÑ के राजस्व को चूना लगा रहे जिम्मेदार लोगों का। मसलन हाल ही में संसदीय सौंध में संसद और राज्य विधानमंडलों की लोक लेखा समितियों के अध्यक्षों का एक सम्मेलन आयोजित हुआ, जिसमें समितियों को सुदृढ़ बनाने पर दो दिन तक मैराथन मंथन हुआ। सम्मेलन में पीएसी अध्यक्षों ने जिन मुद्दों को उठाया वह उन्हीं डरे हुए व्यक्तियों की पुष्टि कर रही थी, जिस रहस्य से पूर्व लोकसभा अध्यक्ष पीए संगमा ने पर्दा उठाते हुए सभी तरह के तर्क दिये। संगमा के तर्को में वजन था, तभी तो लोक लेखा समितियों जैसी वित्तीय जांच समितियों और उनके सदस्यों को सक्रिय करने पर बल दिया गया। वैसे भी भारतीय संविधान में संसद की लोक लेखा समिति सर्वोपरि मानी जाती है, जो भारत नियंत्रक और महालेखा परीक्षक की आॅडिट रिपोर्ट की भी जांच करके अंतिम निष्कर्ष सरकार को सौंपती है। मसलन इस रहस्य का निष्कर्ष यही रहा कि इन समितियों के अधिकारों के दायरों को बढ़ाने के साथ पीएसी की सार्थकता को बनाने के लिए नियमों में बदलाव किये जाएं। अन्यथा इस डर के रहस्य को लुप्त करना बहुत मुश्किल भरा होगा।

शनिवार, 12 सितंबर 2015

बिहार में सिर मुंडाते ही पड़े ओले!

10 लाख रुपये से ज्यादा के जाली नोटों पकड़े
आचार संहिता का उल्लंघन के 75 केस दर्ज
ओ.पी. पाल. नई दिल्ली।
केंद्रीय चुनाव आयोग ने बिहार विधानसभा के चुनाव निष्पक्ष और शांतिपूर्ण कराने के लिए नई व्यवस्था को लागू किया है, जिसका नतीजा आयोग की चुनावी गतिविधियों पर पैनी नजर के रूप में राज्य में आचार संहिता लागू होने के बाद ही सामने आने लगा। मसलन चुनाव आयोग की निगरानी के लिए तैनात की गई एजेंसियों ने आचार संहिता का उल्लंघन करने के दो दिन में ही 75 मामले दर्ज करा दिये हैं, जबकि दस लाख रुपये की जाली मुद्रा भी बरामद करने का दावा किया गया है।
केंद्रीय चुनाव आयोग के प्रवक्ता ने दावा किया कि सुप्रीम कोर्ट के दिशा निर्देशों के अनुपालन में चुनाव सुधार की दिशा में उठाए गये कदम के तहत बिहार में पहली बार शांतिपूर्ण और निष्पक्ष चुनाव कराने के लिए नई व्यवस्था लागू की जा रही है। इस नई व्यवस्था में सभी राजनीतिक दलों और नेताओं की गतिविधियों पर पैनी नजर रखने के लिए राज्य में पर्याप्त केंद्रीय जांच एजेंसियों के दलों को सक्रिय कर दिया गया है, जिसका नतीजा चुनाव की घोषणा होने के दूसरे दिन ही सामने आने लगा है। आयोग ने बताया कि बिहार चुनाव आयोग को चुनावी गतिविधियों में किसी भी प्रकार की गड़बड़ी या चुनाव आचार संहिता के उल्लंघन के मामलों पर कुछ निजी एजेंसियों का सहारा लेने के भी निर्देश दिये गये हैं, वहीं राज्य की खुफिया और पुलिस विभाग को भी सक्रिय किया गया है। वहीं निर्वाचन आयोग ने संबंधित अधिकारियों को चुनाव खर्च की निगरानी करने का निर्देश दिया हैं। चुनाव आयोग ने बिहार में लागू आचार संहिता का उल्लंघन करने के अभी तक 75 मामले दर्ज करने का दावा किया गया है। आयोग ने जानकारी दी है कि राज्य में सक्रिय नजर आ रही पुलिस ने बेतिया में गुलनिशां नामक पश्चिम बंगाल की महिला को दस लाख रुपये के जाली नोटों के साथ गिरμतार कर लिया हैं। आयोग के अनुसार महिला की निशानदेही पर नोट रिसीव करने वाले मझौलिया थाना क्षेत्र के करमवा निवासी राजाराम प्रसाद के पुत्र रमेश कुमार को भी गिरμतार किया गया है।
कालेधन पर पैनी नजर
केंद्रीय चुनाव आयोग ने राज्य चुनाव आयोग के जरिए बिहार में लोगों से अपील की है कि वे बड़ी राशि लेकर सफर न करें। चुनाव आयोग द्वारा चुनाव में नकली मुद्रा और कालेधन पर शिकंजा कसने के इरादे से जो मानका तय किये हैं, उनके मुताबिक पचास हजार से अधिक राशि पाये जाने पर संबंधित व्यक्ति को वैध कागजात उपलब्ध कराना होगा अन्यथा उनके खिलाफ कानूनी कार्रवाई की जायेगी। आयोग के मुताबिक अगर किसी बैंक खाते में अचानक बड़ी राशि जमा की जाती है या निकाली जाती है तो इसकी सूचना देनी होगी। चुनाव के दौरान ट्रेनों के कोच, पैंट्री कार, लगेज वैन की जांच करने का भी निर्देश दिया गया है। आयोग के अनुसार गुरुवार को भी सीमा सुरक्षा बल के जवानों ने दो तस्करों को पकड़कर उनके कब्जे से 1.15 लाख रुपये के नकली नोटों के साथ पकड़ा है।
12Sep-2015

शुक्रवार, 11 सितंबर 2015

वैकल्पिक र्इंधन को बढ़ावा देगी सरकार!

वायु प्रदूषण पर अंकुश लगाने की योजना
ओ.पी. पाल. नई दिल्ली।
केंद्र सरकार वायु प्रदूषण पर अंकुश लगाने की दिशा में वैकल्पिक र्इंधन को बढ़ावा देने की योजनाओं पर काम कर रही है। देश में वाहनों के उपयोग के लिए बायो-डीजल और एथनॉल मिश्रित ईंधन को बढ़ावा देने के लिए सरकार ने खाका तैयार किया है।
केंद्रीय सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय के अनुसार केंद्र सरकार ने देश में वाहन निर्माताओं को भी वाहन का निर्माण अंतर्राष्ट्रीय मानकों को लागू करने के दिशा निर्देश भी जारी किये गये हैं। सरकार राष्ट्रीय स्तर पर सम्मेलनों के जरिए सभी हितधारकों को संदेश दे रही है। ऐसे ही यहां आयोजित ‘परिवहन के लिए ग्रीन फ्यूल वाहन’ सम्मेलन में भी केंद्रीय सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्री नितिन गडकरी ने वायु प्रदूषण कम करने की दिशा में ग्रीन र्इंधन के इस्तेमाल पर जोर दिया। उन्होंने कहा कि सरकार ने वैकल्पिक वाहन र्इंधन को बढ़ावा देने के लिए कई प्रकार की योजनाओं का खाका भी तैयार कर लिया है। सरकार ने बायो-डीजल, एथनॉल और एथनॉल मिश्रित ईंधन के उपयोग को बढ़ावा देने के लिए ठोस कदम उठाने शुरू कर दिये हैं। गडकरी के अनुसार वैकल्पिक ईंधन के क्षेत्र में सरकार का अनुसंधान और आर्थिक व्यवहार्यता के साथ लागत में कमी लाने पर भी जोर रहेगा। गौरतलब है कि सरकार ने पहले ही यूरो-4 उत्सर्जन मानकों को पूरा करने वाले निम्न स्तर के सल्फर युक्त पेट्रोल व डीजल की बिक्री को देश के प्रमुख शहरों में शुरू करा दिया है और इसके लिए अधिसूचना भी जारी की गई है। सरकार का लक्ष्य है कि इस साल के अंत तक देश में एक दर्जन से अधिक राज्यों के 50 से ज्यादा प्रमुख शहरों में सरकार प्रमुख शहरों में वाहनों के प्रदूषण में कमी लाने के लिए यूरो-4 मानक के पेट्रोल व डीजल की आपूर्ति शुरू हो जाएगी। हालांकि यूरो-4 या भारत-4 मानक के पेट्रोल व डीजल की आपूर्ति दिल्ली, मुंबई, चेन्नई, अहमदाबाद और लखनऊ जैसे 26 शहरों में शुरू भी करा दी गई है।

गुरुवार, 10 सितंबर 2015

बिहार में बजी चुनावी रणभेरी!

पांच चरणों में होंगे विधानसभा के चुनाव, आठ नवंबर को नतीजे
पांच चरणों में नई व्यवस्था के दायरे में होंगे चुनाव
हरिभूमि ब्यूरो. नई दिल्ली।
आखिरकार बिहार में विधानसभा के चुनाव की रणभेरी बज ही गई। चुनाव आयोग ने बिहार में पांच चरणों में चुनाव कराने और दीवाली से पहले चुनावी नतीजे देने का ऐलान कर दिया है। मसलन पहले चरण में 12 अक्टूबर, दूसरे चरण में 16 अक्टूबर, तीसरे चरण में 28 अक्टूबर, चौथे चरण में एक नवंबर तथा पांचवे और अंतिम चरण में पांच नवंबर को वोट डाले जाएंगे, जबकि आठ नवंबर को सभी चरणों के मतदान की गिनती होते ही नतीजे सामने आ जाएंगे।
केंद्रीय चुनाव आयोग ने बुधवार को बिहार की 243 विधानसभा सीटों पर चुनाव कराने की तारीखों का ऐलान कर दिया है। मुख्य निर्वाचन आयुक्त डा. नसीम जैदी ने चुनावों का ऐलान करते हुए कहा कि बिहार में शांतिपूर्ण और निष्पक्ष चुनाव कराने के मद्देनजर पांच चरणों में चुनाव कराने का फैसला किया गया है। चुनाव के ऐलान के साथ ही चुनाव तारीख की घोषणा के साथ बिहार में आचार संहिता लागू हो गई है। पहले चरण में पहले चरण में आठ जिलों की 49 सीटों, दूसरे चरण में छह जिलों की 32 सीटों, तीसरे चरण में छह जिलों की 50 सीटों, चौथे चरण में सात जिलों की 55 सीटों और पांचवें व अंतिम चरण में नौ जिलों की 57 सीटों पर मतदान होगा। जैदी ने कहा कि बिहार विधानसभा का कार्यकाल 29 नवंबर को समाप्त हो रहा है, जिसे देखते हुए सभी पांचों चरणों के चुनाव में डाले गये वोटों की गिनती आठ नवंबर को कराई जाएगी यानि दीपावली से पहले बिहार में चुनाव के नतीजे सामने आ जाएंगे। जैदी ने बताया कि वोटिंग के पहले चरण से लेकर आखिरी चरण के मतदान के आधे घंटे बाद तक एक्जिट पोल की इजाजत नहीं होगी।
बैलेट पेपर होगा प्रत्याशी का फोटो 
मुख्य चुनाव आयुक्त डा. जैदी ने बताया कि चुनाव में किसी गड़बड़ी की संभावना को खत्म करने के लिए चुनाव आयोग ने पहली बार बिहार में इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (बैलेट पेपर) पर प्रत्याशी का फोटों भी नजर आएगा। अभी तक प्रत्याशी का नाम व चुनाव चिन्ह ही अंकित होता था। इस प्रकार के दिशा निर्देश सुप्रीम कोर्ट ने भी जारी किये थे। चुनाव आयोग ने बिहार में चुनाव सुधार की दिशा में नई व्यवस्था को लागू किया है, जहां चुनावी इतिहास में पहली बार कई नई व्यवस्था लागू की जा रही हैं। आयोग ने बाहुबल और धनबल की प्रथा को खत्म करने की दिशा में कानून व्यवस्था को मजबूत बनाने के लिए सुरक्षा के कड़े प्रबंध करने पर बल दिया है। जहां राज्य में सभी लाइसेंसी हथियारों को जमा कराने के निर्देश दिये गये हैं, वहीं चुनाव के दौरान सुरक्षा के मद्देनजर खासकर नक्सल प्रभावित इलाकों और अंतरराष्ट्रीय सीमा पर खास नजर रहेगी और ऐहतियातन सभी मतदान केंद्रों की वीडियोग्राफी की जाएगी। इस दिशा में हर स्थिति पर नजर रखने के लिए सुरक्षा बलों को हैलीकाप्टरों, मोटर बोट, घुड़सवार, मोटर साइकिल और अन्य वाहनों के सतर्क रहने की व्यवस्था रहेगीे। किसी भी आपात स्थिति से निपटने के लिए सिंगल विंडो प्रणाली अपनाई जाएगी। मतदाताओं को धमकाने या लालच देने वालों पर नजर रखने के लिए नौ एजेंसियां तैनात रहेंगी। बिहार चुनावों में सिंगल विंडो सिस्टम चालू किया गया है, ताकि चुनाव प्रचार के दौरान 36 घंटे के अंदर इजाजत दी जा सके। चार जिले के 36 विधानसभाओं में नया आॅडिट सिस्टम लागू किया जाएगा।

ऐसे दूर नहीं होगी लोक लेखा समितियों की चुनौतियां!

छत्तीसगढ़ विस की पीएसी का काम बेहतर 
ओ.पी. पाल. नई दिल्ली।
संसद या राज्य विधानसभा की लोक लेखा समितियों के सामने समीक्षा के लिए आने वाली कैग रिपोर्टो की समीक्षा में आने वाली चुनौतियों को दूर करने के लिए संसद को बदलाव करने की जरूरत है। यह बात छत्तीसगढ़ विधानसभा की लोक लेखा समिति के अध्यक्ष सत्य नाराण शर्मा ने हरिभूमि से बातचीत के दौरान कही।
यहां संसदी सौंध में आयोजित संसद और राज्य विधानमंडलों की पीएसी अध्यक्षों के सम्मेलन में हिस्सा ले रहे छत्तीसगढ़ विधानसभा की लोक लेखा समिति अध्यक्ष सत्य नारायण शर्मा ने बेबाक कहा कि पीएसी के लिए संसद या विधानसभा के दायरे में अलग से सचिवालय होना जरूरी है, जहां पर्याप्त संसाधन और स्टॉफ दिया जाना चाहिए। उनका कहना था कि पीएसी के नियमों में आमूल चूल परिवर्तन करने के लिए संसद को राज्यों को भी दिशा निर्देश जारी करके ऐसी व्यवस्था कायम करने की जरूरत है जिससे लोक लेखा समितियों की भूमिका को सार्थक बनाया जा सके। मसलन पीएसी को सौंपी जाने वाली कैग रिपोर्ट की समीक्षा के लिए लंबित पड़े मामलों के निपटान के लिए उप समितियों का गठन करने का भी अधिकार दिया जाना चाहिए। हालांकि मौजूदा केंद्र सरकार ने संसद की पीएसी की सिफारिश पर नई प्रणाली शुरू करने का ऐलान किया है यह अच्छी बात है। शर्मा ने कहा कि जैसा कि सम्मेलन में पीएसी के आधारभूत ढांचे को मजबूत बनाने के लिए सरकारों को बजट का प्रावधान भी रखना चाहिए। उनका मानना है कि पीएसी में विभिन्न दलों द्वारा भेजे जाने वाले सदस्यों को सक्रिय रखने की हिदायद दी जानी चाहिए।
छत्तीसगढ़ अव्वल
लोक लेखा समिति के अध्यक्ष सत्य नारायण शर्मा ने दावा कि शायद देशभर में छत्तीसगढ़ ही ऐसा राज्य है जहां विधानसभा की लोक लेखा समिति सहजता के साथ चुनौतियों का सामना करने में सक्षम है। इस बारे में पूछे गये सवाल पर उन्होंने कहा कि उनकी अध्यक्षता वाली लोक लेखा समिति का कार्य सबसे बेहतर इसलिए कहा जा सकता है कि उसकी हर बैठक में सदस्यों की संख्या शत प्रतिशत रही है और समिति में दलगत राजनीति से अलग कैग की रिपोर्ट के महत्वपूर्ण पैरों का चयन करके उन पर सार्थक चर्चा की जाती है। अन्य चुनौतियों के बारे में शर्मा ने कहा कि सरकारों की ओर से प्रतिवेदनों में की जाने वाली सिफारिशों पर इतना विलंब होता आ रहा है कि जिम्मेदार अधिकारी या दोषी व्यक्ति संबन्धित विभाग में नहीं होता या फिर वह सेवानिवृत्त हो जाता है। इसलिए जरूरी है कि समय सीमा का निर्धारण करना जरूरी है, ताकि जिम्मेदार व्यक्ति के खिलाफ समुचित कार्रवाही अमल में लाई जा सके।

लोक लेखा समितियों के अधिकारों में होगा इजाफा!

राज्य पीएसी के अध्यक्षों ने सुदृढ़ता का लिया संकल्प
ओ.पी. पाल. नई दिल्ली।
देश में विभिन्न विभागों की आॅडिट रिपोर्ट की समीक्षा करने वाले नियंत्रक और महा लेखा परीक्षक की रिपोर्ट की जांच प्रक्रिया को सार्थक बनाने की दिशा में राज्य विधानमंडलों की लोक लेखा समितियों के अधिकारों के दायरे को बढ़ाने पर संसद की लोक लेखा समिति गौर करेगी। इसके लिए संसद में पीएसी को अधिक प्रभावशाली बनाने के लिए केंद्र सरकार से सिफारिश भी की जाएगी।
संसद और राज्य विधानमंडलों की लोक लेखा समितियों के दो दिन तक चले विचार विमर्श के बाद कैग रिपोर्ट के पैरों की जांच करने वाली पीएसी को ऐसे अधिकार देने की बात सामने आई है, जिसका समर्थन संसद की लोक लेखा समिति ने भी किया है। मसलन पीएसी की जांच के बाद सरकार के समक्ष की जाने वाली सिफारिशों और टिप्पणियों पर समयसीमा में संबन्धित विभागों के जिम्मेदार लोगों के खिलाफ समुचित कार्रवाही हो सके, इसलिए लिए मानदंड बनाने पर बल दिया गया। संसद की लोक लेखा समिति के अध्यक्ष प्रो. केवी थॉमस और पीएसी की उप समिति के पैनल में लोकसभा सदस्य निशीकांत दूबे, भृर्तहरि महताब और भुवनेश्वर कालिता ने भी पीएसी के अधिकारों और कार्यकरण में बदलाव की बात कही। लोक लेखा समितियों के कार्यकरण को बेहतर बनाने के लिए कई महत्वपूर्ण मुद्दो पर भी सहमति बनी ,जिसमें समितियों के अधिकारों में इजाफा करना भी शामिल रहा।
नौकरशाहों पर उठाए सवाल
यहां संपन्न हुए दो दिवसीय संसद और राज्य विधानमंडलों की लोक लेखा समितियों के अध्यक्षों के अखिल भारतीय सम्मेलन में ज्यादातर राज्य विधानमंडलों की लोक लेखा समितियों के अध्यक्षों ने समितियों के आधारभूत ढांचे को मजबूत बनाने के लिए जहां अधिकारों के दायरे को बढ़ाने की वकालत की है, वहीं समितियों को संसाधनों से भी मजबूत करने के लिए उसे आधारभूत ढांचे को बढ़ाने पर बल दिया। समितियों के सामने आने वाली चुनौतियों पर ज्यादातर राज्यों का दर्द था कि कैग की रिपोर्ट के महत्वपूर्ण पैरो की जांच के लिए संबन्धित विभाग के अधिकारी संतोषजनक जवाब नहीं देते, बल्कि दोषियों को बचाने के लिए टालमटोल की नीति अपनाकर विलंब करते देखे गये हैं। यही कारण है कि पीएसी अपने काम को समय से निष्पादन करने में पीछे हैं। वहीं पीएसी अध्यक्षों ने सरकारों पर भी सवाल उठाए कि जिन सिफारिशों व टिप्पणियों को सरकार को भेजा जाता है उन पर कार्यवाही करने में इतना विलंब हो जाता है कि दोषियों के खिलाफ कोई भी दंडात्मक कार्रवाही नहीं हो पाती। विचार विमर्श के बाद इस बात पर सहमति बनी कि जांच में सहयोग न करने और समिति को गुमराह करने का प्रयास करने वाले सचिवालय या संबन्धित मंत्रालयों या विभागों के अधिकारियों के खिलाफ भी दंडात्मक कार्रवाही अमल में लाई जाए। सम्मेलन के विचार विमर्श के निष्कर्ष में समितियों के कार्य में पारदर्शिता बनाये रखने के लिए सदन के पटल पर रखी जाने वाली रिपोर्टो को सार्वजनिक करने की पहल होनी चाहिए।

मंगलवार, 8 सितंबर 2015

केंद्र ने बिहार में उतारी सड़क परियोजनाएं!

जारी पैकेज के जरिए सड़कों की हालत सुधारने की कवायद
ओ.पी. पाल.
नई दिल्ली।
बिहार में भाजपा की सियासी जमीन मजबूत करने की दिशा में केंद्र सरकार ने योजनाओं को पटरी पर उतारना शुरू कर दिया है। राज्य में राष्ट्रीय राजमार्ग, प्रमुख ब्रिज तथा रेलवे ओवरब्रिज के लिए केन्द्रीय सड़क परिवहन मंत्रालय ने 54.713 हजार करोड़ रूपए का पैकेज जारी कर दिया है।
 राजग सरकार में प्रधानमंत्री ने बिहार के विकास के लिए सवा लाख सौ करोड़ रुपये के पैकेज देने की घोषणा के साथ केंद्रीय मंत्रालयों ने अपनी योजनाओं को पटरी पर उतारते हुए कोष का भी पिटारा खोलना शुरू कर दिया। जल संसाधन मंत्रालय और पर्यटन मंत्रालय के बाद केंद्रीय सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्रालय ने भी 54.713 हजार करोड़ रुपये का पैकेज दिया है। इस पैकेज की यह धनराशि बिहार के राष्ट्रीय राजमार्गों के विकास, महत्वपूर्ण नदियों पर पुल का काम तथा रेलवे ओवरब्रिज के निर्माण और उन सड़को की हालत सुधारने में खर्च की जाएगी, जिससे बिहार के विकास की रμतार बढ़ाई जा सके। केंद्रीय सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्रालय के सूत्रों के अनुसार मंत्रालय द्वारा बिहार में सड़क निर्माण की ऐसी योजनाएं बनाई है। सड़क परियोजनाओं के तहत प्रमुख रूप से महात्मा गांधी सेतु के समानांतर गंगा नदी पर एक नए पुल का निर्माण, कोसी ओर सोन नदी के ऊपर पुल का निर्माण, धार्मिक पर्यटन से जुड़े क्षेत्रों में सड़कों का निर्माण और रेलवे ओवरब्रिज का निर्माण शामिल है। वहीं ग्रामीण सड़क के विकास के लिए प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना के अंतर्गत 22,500 किलोमीटर सड़क के निर्माण हेतु 13,820 करोड़ रुपये का प्रावधान किया गया है।

अब एयर इंडिया के पायलटों ने मांगी ओआरओपी

पायलटों की जायज मांगे पूरी करने को तैयार कंपनी
नई दिल्ली

मोदी सरकार के हाल ही में पूर्व सैनिकों के लिए ‘वन रैंक-वन पेंशन’ की योजना का ऐलान किया है, तो अब प्रमुख भारतीय विमानन कपंनी एयर इंडिया के पायलटों ने भी केंद्र सरकार के सामने ओआरओपी की मांग रख दी है। इस मांग के साथ अन्य मांगों के साथ एयर इंडिया के पायलट हड़ताल पर जाने की भी धमकी दे रहे हैं।
देश की प्रमुख विमानन कंपनी एयर इंडिया की आर्थिक स्थिति में सुधार लाने के लिए केंद्र सरकार कुछ खर्चो में कटौती करते हुए कुछ खास योजनाओं पर काम कर रही है, जिसमें विमानन कंपनी ने ज्यादातर पायलटों को ठेके पर रखने की योजना को भी लागू कर दिया है। एयर इंडिया प्रबंधन की नीतियों से खफा कुछ पायलटों ने इस्तीफे भी दे दिये हैं और एयर इंडिया के अन्य कर्मचारियों में भी अपनी मांगों को लेकर रोष बना हुआ है। एयर इंडिया के सामने जहां अभी आर्थिक संकट से निपटने की चुनौती बनी हुई है, वहीं पायलटों के इस्तीफे के बाद अब पूर्व सैनिकों की तर्ज पर एयर इंडिया के पायलटों ने भी ‘वन रैंक-वन पेंशन’ की मांग सामने लाकर विमानन कंपनी की मुश्किलें बढ़ा दी हैं, जिसके लिए एयर इंडिया के कर्मचारियों ने हड़ताल पर जाने के भी संकेत दे दिये हैं।

सोमवार, 7 सितंबर 2015

जल्द होगा बिहार चुनाव के ऐलान!

नई व्यवस्था के तहत होंगे पांच चरणों में हो सकते हैं चुनाव
ओ.पी. पाल.
नई दिल्ली।
बिहार विधानसभा चुनाव के लिए सियासी गतिविधियों में जुटे राजनीतिक दलों का इंतजार जल्द ही खत्म होने वाला है। मसलन अगले दो-तीन दिन के भीतर चुनाव आयोग बिहार चुनाव की तारीखों का ऐलान कर सकता है, जिसमें नई व्यवस्था में कराए जाने की तैयारियों के साथ राज्य में पांच चरणों में चुनाव कराने की संभावना है।
केंद्रीय निर्वाचन आयोग के सूत्रों के अनुसार बिहार में 243 विधानसभा सीटों के लिए पहली बार नई व्यवस्था के तहत चुनाव कराने के लिए सभी तैयारियां पूरी कर ली गई है। चुनाव के दौरान सुरक्षा व्यवस्था के बंदोबस्त के लिए हाल ही में चुनाव आयोग की गृहमंत्रालय के साथ हुई वार्ता में केंद्र सरकार पूरा सहयोग देने को तैयार है। आयोग के अनुसार चुनाव आयोग की कई टीमें पिछले एक साल से लगातार बिहार का दौरा करके जाली मतदाता सूची का शुद्धिकरण भी नई तकनीक के जरिए कर चुकी है। आयोग को केवल अब चुनाव की तारीखों का ऐलान करना है जिसकी घोषणा दो-तीन दिनों में करने की संभावना है। चुनाव आयोग के अनुसार बिहार में संवेदनशील और अति संवेदशन शील मतदान केंद्रों की पहचान करने का काम भी पूरा हो गया है, जहां कड़े सुरक्षा बंदोबस्त के साथ चुनाव कराने का फैसला किया गया है।

रविवार, 6 सितंबर 2015

राग दरबार: मुलायम पर महागठबंधन का दांव

राग दरबार
ऐसे कठोर नहीं हुए मुलायम
बिहार में मोदी विरोधी महागठबंधन की गांठ खोलने वाले सपा मुखिया मुलायम सिंह यादव की नाराजगी सीटों के बंटवारे पर नहीं बल्कि उस समाजवादी विचाराधारा को सियासत पर लाने की वजह मानी जा रही है, जिसमें गैर भाजपा और गैर कांग्रेसी दलों वाले जनता परिवार को एकजुट करने का प्रयास किया जा रहा है। मसलन बिहार में मोदी विरोधी इस महागबंधन की पटना के गॉधी मैदान की रैली में जनता परिवार ने मंच पर कांग्रेस की प्रमुख सोनिया गांधी को भी मंच दिया। यहीं नहीं कांग्रेस को बिहार की सियासत में चुनाव के लिए 40 सीटे देना सपा प्रमुख के गले नहीं उतरा। सीटों के बंटवारे में जनता परिवार में मुखिया का दर्जा देने के बावजूद मुलायम सिंह यादव से कोई सलाह-मशिवरा भी नहीं लिया गया और बाद में मुलायम के तेवर ढीले करने के इरादे से सपा को पांच सीटे देकर कांग्रेस से भी नीचे का दर्जा देने का प्रयास किया गया। राजनीतिक जानकारों का मानना है कि भला ऐसे अपमान को समाजवादी नेता मुलायम सिंह यादव या उनकी पार्टी कैसे बर्दाश्त कर पाती। इसका पटाक्षेप करके सपा ने महागठबंधन को आखिर अलविदा करने का ऐलान कर दिया तो जनता परिवार में खलबली मचना तो स्वाभाविक ही था।
सवाल सीएम का
बिहार विधानसभा चुनाव में राजग गठबंधन से मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार कौन होगा, इस पर भले की शीर्ष नेतृत्व ने रणनीतिक चुप्पी साधी हुई हो। मगर, कयासों को कैसे हवा दी जाती है, इस नेता जी से सीखा जा सकता है। राज्य के हर विधानसभा क्षेत्र में चुनावी रथ तैयार किया गया। पोस्टर पर फोटो किसका हो, इस पर चर्चा हुई। प्रधानमंत्री और भाजपाअध्यक्ष के साथ ही गठबंधन दल के सभी नेताओं के साथ पार्टी के मुस्लिम चेहरा माने जाने वाले वरिष्ठ नेता का फोटो भी चस्पां किया गया। वह रथ खासकर उनके चुनावी क्षेत्र के लिए तैयार किया गया था। अब वे पूरे क्षेत्र में कहते फिर रहे हैं। देखिए, भाजपा के स्थानीय नेता के तौर पर केवल हमारा ही फोटो है। भाजपा गठबंधन दल की सरकार आई तो मेरा मुख्यमंत्री बनना तय है। इसीलिए, वोट वाले दिन थोड़ा जोर
लगाके हईसा..
फिर चूके राहुल
कांग्रेस पार्टी की सर्वोच्च निर्णायक कमेटी माने जाने वाली पार्टी की कार्यसमिति की बैठक मंगलवार को आहूत की जा रही है। उम्मीद की जा रही थी कि पार्टी उपाध्यक्ष राहुल गांधी को अध्यक्ष पद की ताजपोशी की जाएगी। सोनिया गांधी नेपथ्य में रह कर पार्टी की मार्गदर्शक मंडली में रहेंगी। मगर, सोनिया गांधी के सिपहसालार कुछ आड़ी तिरछी चाल चलते उससे पहले राहुल गांधी ने ही खुद पैर पीछे खींच लिए। वे थोड़ा और समय चाहते हैं, राजनीतिक रूप से पकने के लिए। हालांकि राहुल-1 की अपेक्षा राहुल-2 की कार्यशैली पर ज्यादातर नेता फिदा हैं। पर, उनमें ज्यादातर राहुल ब्रिगेड के ही सदस्य हैं। सोनिया गांधी के साथ काम करने वाले अग्रिम पंक्ति के बुजुर्ग हो रहे नेताओं का दिल अब भी नहीं जीत सके हैं राजकुमार। राहुल के पार्टी में पदों को लेकर किए गए राजनीतिक निर्णयों को वरिष्ठ नेता पचा नहीं पा रहे हैं। पंजाब में अब प्रताप सिंह बाजवा को पीसीसी अध्यक्ष से चलता कर अंबिका सोनी को बिठाने की कवायद को इसी संदर्भ में देखा जा रहा है।
छपास से डरे नेता
सियासत में शायद ऐसा कभी होता है, जब कोई नेता मीडिया से बचने का प्रयास करता हो। लेकिन यहां भाजपा-आरएसएस समन्वय समिति की चली मैराथन बैठक में भाजपा प्रमुख ने छपासी परंपरा से किनारा करने का प्रयास किया, लेकिन पार्टी के एक प्रवक्ता ने पार्टी प्रमुख के भाषण की प्रति को लीक करके आफत मोल ले ली। दरअसल इस बैठक में भाजपा प्रमुख के भाषण की प्रति यह कहते हुए पार्टी के सभी पदाधिकारियों को इस शर्त पर दी गई थी कि यह मीडिया तक कतई नहीं पहुंचनी चाहिए। इसका कारण भी था इस भाषण की प्रति में संघ के दिशानिर्देशों और पार्टी को दी गई नसीहतों का भी उल्लेख था। लिहाजा इसे मीडिया से दूर रखने का फैसला पार्टी हाईकमान का था। जब मीडिया को लीक हुए इस भाषण की जांच पड़ताल की गई तो खुलासा भी हो गया और लीक करने वाले पार्टी प्रवक्ता एमजे अकबर का जवाब तलब भी किया, लेकिन भाजपा प्रमुख की प्रवक्ता के प्रति नाराजगी का शरूर अभी खत्म नहीं हुआ है। मसलन अब वह पार्टी प्रवक्ता भाषण के अंशो को प्रकाशित करने का ठींकरा मीडिया पर फोड़ने का प्रयास करते नजर आ रहे हैं।
बिहार से केजरीवाल की तौबा
दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने बिहार विधानसभा चुनाव प्रचार से दूरी बनाने का इरादा कर लिया है। नीतीश कुमार से गाढी होती जा रही उनकी दोस्ती को देखकर कयास लग रहे थे कि वे चुनाव प्रचार की जंग में कूदेंगे ताकि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और भाजपा से अपनी अदावत निभा सकें लेकिन वे समझ गये। दरअसल भ्रष्टाचार के खिलाफ आंदोलन के जरिये सत्ता की कुर्सी तक पहुंचे अरविंद केजरीवाल और उनके करीबियों के पास इस सवाल का जवाब नहीं था कि चारा घोटाले में सजा पाये लालू यादव को लेकर वे क्या कहेंगे। अगर केजरीवाल बिहार जाते हैं तो लालू यादव के भ्रष्टाचार को लेकर उनके पर तंज कसे जायेंगे। भले ही वे कहें कि उनका प्रचार जदयू के लिए है पर जदयू और राजद में तो गठबंधन है। नीतीश के साथ लालू खड़े हैं। केजरीवाल समझ गये या उनको समझा दिया गया कि बिहार नहीं जाने से आम आदमी पार्टी का कुछ नहीं बिगडेगा लेकिन अगर वे गये तो भ्रष्टाचारी लालू यादव का साथ देने का ठप्पा हमेशा के लिए लग जायेगा। आखिर उन्होंने दिल्ली में ही रहना बेहतर समझा।
कांग्रेस को दिखया आइना
बिहार में चुनावी रणनीति में जुटे राजनीति दलों में मोदी बनाम नीतिश के मुकाबले को देखते हुए जदयू-राजद गठबंधन ने शक्ति प्रदर्शन करने के लिए पटना में जो स्वाभिमान रैली की। इस रैली को इस मायने में ऐतिहासिक कहा जा सकता है कि पहली बार सार्वजनिक रूप से कांग्रेस जैसी देश की सबसे पुरानी राष्ट्रीय पार्टी की आलाकमान सोनिया गॉधी को नितीश कुमार, शरद यादव और लालू प्रसाद यादव जैसे राज्यस्तरीय नेताओं से कमतर हैसियत के रूप में आइना दिखा दिया। मसलन सभी जानते हैं कि सियासी जलसों में भाषण की शुरूआत सबसे जूनियर नेता से कराई जाती है और सबसे महतवपूर्ण वरिष्ठ नेता अंत में बोलते है। इस रैली में सोनिया गॉधी का सबसे पहले भाषण करा कर शायद यही जताने की कोशिश हुई कि बिहार में उनकी हैसियत सबसे अदना है। एक बात और साफ हुई कि भले ही चुनाव का चेहरा नितीश हों पर महागठबंधन के सबसे वरिष्ठ नेता लालू ही हैं। नितीश कुमार का पूरा जोर चुनाव को मोदी बनाम बिहारी स्वाभिमान की लड़ाई बनाने पर रहा तो लालू ने पिछड़ा बनाम अगड़ा की जंग पर फोकस किया। यह भी साफ नजर आया कि नितीश और लालू की राजनीतिक रणनीति अलग-अलग ही है।
06Sep-2015

शनिवार, 5 सितंबर 2015

मुलायम को मनाने की कवायद

महागठबंधन की खुली गांठ बांधने के प्रयास तेज
ओ.पी. पाल. नई दिल्ली।
सपा प्रमुख मुलायम सिंह यादव के जनता परिवार से अलग होकर बिहार में चुनाव लड़ने के ऐलान से खुली महागठबंधन की गांठ को फिर से बांधने के लिए जदयू-राजद सियासी दावं-पेंच के साथ जुटे हुए हैं। सपा प्रमुख मुलायम सिंह को मनाने के लिए दोनों नेताओं ने मुलायम के साथ बातचीत करके महागठबंधन को बचाने की रणनीति पर माथापच्ची की। हालांकि अभी तक मुलायम अपनी पार्टी के निर्णय पर कठोर बने हुए हैं।
बिहार में होने वाले विधानसभा चुनाव के लिए जनता परिवार के प्रमुख घटक दल समाजवादी पार्टी ने एक दिन पहले महागठबंधन से अलग होकर अपने बलबूते पर चुनाव लड़ने का ऐलान किया है। छह दलों के गठजोड़ वाले जनता परिवार के मुखिया मुलायम सिंह यादव की पार्टी के इस ऐलान से टूटे महागठबंधन को बचाने की चुनौती का सामना कर रहे जदयू अध्यक्ष शरद यादव और राजद प्रमुख लालू यादव शुक्रवार को यहां दिल्ली में सपा प्रमुख मुलायम सिंह को मनाने के लिए उनके सरकारी आवास पर पहुंचे। सूत्रों के अनुसार जदयू व राजद नेता ने सपा प्रमुख मुलायम सिंह यादव को महागठबंधन को बचाए रखने के लिए कई सियासी रणनीतियों की भी दुहाई दी। सूत्रों की माने तो लालू यादव ने बिहार चुनाव में सपा को और भी ज्यादा सीटे देने की पेशकश पर विचार किया, लेकिन फिलहाल मुलायम सिंह की कठोरता वाले तेवर बरकरार हैं। गौरतलब है कि सपा ने महागठबंधन से अलग होने और अकेले दम पर बिहार में चुनाव लड़ने का निर्णय सपा संसदीय दल ने लिया था, जिसमें महागठबंधन में सपा को पांच सीटे देने के फैसले को पार्टी का अपमान भी करार दे दिया गया था।

शुक्रवार, 4 सितंबर 2015

मुलायम ने तोड़ नाता-बिखर गया जनता परिवार!

महागबंधन को झटका: 
बिहार में अपने बलबूत पर चुनाव लड़ेगी सपा
ओ.पी. पाल. नई दिल्ली।
बिहार विधानसभा चुनाव की हुंकार भरते जनता परिवार के महागबंधन को मुलायम सिंह यादव ने अपने आपको अलग करते हुए तगड़ा झटका दिया है। समाजवादी पार्टी के महागबंधन से नाता तोड़ने को पिछले महीने सपा प्रमुख मुलायम सिंह यादव की पीएम नरेन्द्र मोदी और हाल ही में महासचिव प्रो. रामगोपाल यादव की भाजपा प्रमुख अमित शाह से हुई मुलाकात की रणनीति का हिस्सा भी माना जा रहा है।
सूत्रों के अनुसार जनता परिवार के महागठबंधन ने बिहार की 243 विधानसभा सीटों के बंटवारे को लेकर समाजवादी पार्टी ने 49 सीटों पर दावा ठोका था, लेकिन बाद में 17 और फिर 12 सीटों पर सपा सहमति भी हो गई थी। इसके बावजूद बिहार में महागबंधन में जदयू तथा राजद ने 100-100 सीटों पर चुनाव लड़ने का फैसला किया, जबकि 40 सीटें कांग्रेस और बाकी तीन सीटे राकांपा को देने पर सहमति बनाई। बाकी तीन सीटें राकांपा को देने का फैसला किया गया, लेकिन राकांपा ने इंकार कर दिया। महागबंधन में सीटों के बंटवारे को लेकर जब जनता परिवार में सबसे बड़े घटक सपा के मुखिया मुलायम सिंह यादव ने अपने तेवर दिखाने शुरू किये तो राकांपा के हिस्से में दी जा रही तीन सीटों के अलावा राजद प्रमुख लालू यादव ने अपने हिस्से से दो सीटे मिलाकर कुल पांच सीटे सपा को देने का ऐलान कर दिया। इससे सपा के तेवर और तीखे हो गये। बिहार में पांच सीटे मिलने से नाराज आखिर सपा ने महागबंधन से अलग अपने बलबूते पर चुनाव लड़ने का ऐलान कर दिया। सपा के इस फैसले ने बिहार चुनाव से पहले लालू-नीतीश के साथ हुए महागठबंधन को तगड़ा झटका माना जा रहा है।

गुरुवार, 3 सितंबर 2015

तेल की धार तेज करने की तैयारी में सरकार

तेल व गैस के क्षेत्र में निजी क्षेत्र का विस्तार
ओ.पी. पाल. नई दिल्ली।
देश में पहली बार तेल क्षेत्र में रेवेन्यू शेयरिंग मॉडल लागू करके केंद्र सरकार तेल कंपनियों की आर्थिक सेहत को सुधारने के लिए आगे बढ़ती नजर आ रही है। सरकार ने गैस और तेल में निजी क्षेत्रों का व्यापक विस्तार करने के मकसद से हाइड्रोकार्बन खोजों के विकास हेतु सीमांत क्षेत्र नीति को मंजूरी दी है।
केंद्रीय पेट्रोलियम एवं प्राकृतिक गैस मंत्रालय के अनुसार देश में सरकार ने पहली बार रेवेन्यू शेयरिंग मॉडल लागू करने का निर्णय लिया है, जिसके तहत तेल और गैस के विकास हेतु ऐसे क्षेत्रों की खोज की जा सकेगी। बुधवार को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की अध्यक्षता में केंद्रीय मंत्रिमंडल की बैठक में मंजूरी दी गई सीमांत क्षेत्र नीति के तहत अब तेल तथा प्राकृतिक गैस निगम लिमिटेड (ओएनजीसी) तथा आॅयल इंडिया लिमिटेड (ओआईएल) जैसी राष्ट्रीय तेल कंपनियों द्वारा तैयार हाइड्रोकार्बन खोजों के विकास किया जा सकेगा। इस नीति के तहत 69 छोटी व मझोली तेल फील्ड्स के लिए नीलामी में हाइड्रोकार्बन का उत्पादन करने के संबंध में आपरेटरों के लिए एकीकृत लाइसेंसिंग शुरू की जाएगी। नई नीति के तहत ओएनजीसी तथा ओआईएल के अंतर्गत 69 तेल क्षेत्र ऐसे हैं जिनका कभी दोहन या विकास नहीं किया गया। इस नीति के अंतर्गत खनन कंपनियां इन तेल क्षेत्रों के दोहन के लिए बोलियां दाखिल कर सकेंगी। बैठक के बाद पेट्रोलियम मंत्री धर्मेन्द्र प्रधान ने कहा कि सरकार के ‘न्यूनतम सरकार-अधिकतम शासन’ के सिद्धांत के अनुरूप प्रस्तावित अनुबंधों की संरचना में महत्वपूर्ण परिवर्तन किए गए हैं। इस निर्णय से निवेश के साथ-साथ उच्च घरेलू तेल तथा गैस उत्पादन को प्रोत्साहित किए जाने की उम्मीद है।

बुधवार, 2 सितंबर 2015

ट्रेड यूनियनों की हड़ताल से डरी सरकार!

12 में से नौ मांगों पर सरकार का सकारात्मक रूख
ओ.पी. पाल.
नई दिल्ली।
सरकार द्वारा किये जा रहे प्रस्तावित श्रम कानूनों में प्रस्तावित संशोधनों के विरोध में कल बुधवार को 12 में से दस केंद्रीय ट्रेड यूनियन के 15 हजार कर्मचारियों की हड़ताल से बेचैन सरकार ने यूनियनों की 12 में से नौ मांगों को मान लिया है। हालांकि इस प्रस्तावित हड़ताल को वापस लेने का अभी तक ट्रेड यूनियनों की ओर से कोई ऐलान नहीं किया गया।
केंद्र सरकार द्वारा श्रम कानूनों में संशोधन करने की हो रही कवायद के विरोध में देश में 12 केंद्रीय ट्रेड यूनियनों ने दो सितंबर यानि बुधवार का देश व्यापी हड़ताल का ऐलान कर रखा है, जिसमें बैंक और बीमा कंपनियों के कर्मचारियों समेत 15 हजार से ज्यादा कर्मचारियों के हिस्सा लेने की संभावना है। इस हड़ताल में भाजपा समर्थिक भारतीय मजदूर संघ और नेशनल फ्रंट और इंडियन ट्रेड यूनियन ने हड़ताल से अलग रहने का ऐलान किया है। इस प्रस्तावित हड़ताल से बेचैन केंद्र सरकार ने यूनियनों की 12 में से नौ मांगों को मान लेने का दावा किया है और यूनियनों से हड़ताल वापस लेने की मांग की है।