रविवार, 6 सितंबर 2015

राग दरबार: मुलायम पर महागठबंधन का दांव

राग दरबार
ऐसे कठोर नहीं हुए मुलायम
बिहार में मोदी विरोधी महागठबंधन की गांठ खोलने वाले सपा मुखिया मुलायम सिंह यादव की नाराजगी सीटों के बंटवारे पर नहीं बल्कि उस समाजवादी विचाराधारा को सियासत पर लाने की वजह मानी जा रही है, जिसमें गैर भाजपा और गैर कांग्रेसी दलों वाले जनता परिवार को एकजुट करने का प्रयास किया जा रहा है। मसलन बिहार में मोदी विरोधी इस महागबंधन की पटना के गॉधी मैदान की रैली में जनता परिवार ने मंच पर कांग्रेस की प्रमुख सोनिया गांधी को भी मंच दिया। यहीं नहीं कांग्रेस को बिहार की सियासत में चुनाव के लिए 40 सीटे देना सपा प्रमुख के गले नहीं उतरा। सीटों के बंटवारे में जनता परिवार में मुखिया का दर्जा देने के बावजूद मुलायम सिंह यादव से कोई सलाह-मशिवरा भी नहीं लिया गया और बाद में मुलायम के तेवर ढीले करने के इरादे से सपा को पांच सीटे देकर कांग्रेस से भी नीचे का दर्जा देने का प्रयास किया गया। राजनीतिक जानकारों का मानना है कि भला ऐसे अपमान को समाजवादी नेता मुलायम सिंह यादव या उनकी पार्टी कैसे बर्दाश्त कर पाती। इसका पटाक्षेप करके सपा ने महागठबंधन को आखिर अलविदा करने का ऐलान कर दिया तो जनता परिवार में खलबली मचना तो स्वाभाविक ही था।
सवाल सीएम का
बिहार विधानसभा चुनाव में राजग गठबंधन से मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार कौन होगा, इस पर भले की शीर्ष नेतृत्व ने रणनीतिक चुप्पी साधी हुई हो। मगर, कयासों को कैसे हवा दी जाती है, इस नेता जी से सीखा जा सकता है। राज्य के हर विधानसभा क्षेत्र में चुनावी रथ तैयार किया गया। पोस्टर पर फोटो किसका हो, इस पर चर्चा हुई। प्रधानमंत्री और भाजपाअध्यक्ष के साथ ही गठबंधन दल के सभी नेताओं के साथ पार्टी के मुस्लिम चेहरा माने जाने वाले वरिष्ठ नेता का फोटो भी चस्पां किया गया। वह रथ खासकर उनके चुनावी क्षेत्र के लिए तैयार किया गया था। अब वे पूरे क्षेत्र में कहते फिर रहे हैं। देखिए, भाजपा के स्थानीय नेता के तौर पर केवल हमारा ही फोटो है। भाजपा गठबंधन दल की सरकार आई तो मेरा मुख्यमंत्री बनना तय है। इसीलिए, वोट वाले दिन थोड़ा जोर
लगाके हईसा..
फिर चूके राहुल
कांग्रेस पार्टी की सर्वोच्च निर्णायक कमेटी माने जाने वाली पार्टी की कार्यसमिति की बैठक मंगलवार को आहूत की जा रही है। उम्मीद की जा रही थी कि पार्टी उपाध्यक्ष राहुल गांधी को अध्यक्ष पद की ताजपोशी की जाएगी। सोनिया गांधी नेपथ्य में रह कर पार्टी की मार्गदर्शक मंडली में रहेंगी। मगर, सोनिया गांधी के सिपहसालार कुछ आड़ी तिरछी चाल चलते उससे पहले राहुल गांधी ने ही खुद पैर पीछे खींच लिए। वे थोड़ा और समय चाहते हैं, राजनीतिक रूप से पकने के लिए। हालांकि राहुल-1 की अपेक्षा राहुल-2 की कार्यशैली पर ज्यादातर नेता फिदा हैं। पर, उनमें ज्यादातर राहुल ब्रिगेड के ही सदस्य हैं। सोनिया गांधी के साथ काम करने वाले अग्रिम पंक्ति के बुजुर्ग हो रहे नेताओं का दिल अब भी नहीं जीत सके हैं राजकुमार। राहुल के पार्टी में पदों को लेकर किए गए राजनीतिक निर्णयों को वरिष्ठ नेता पचा नहीं पा रहे हैं। पंजाब में अब प्रताप सिंह बाजवा को पीसीसी अध्यक्ष से चलता कर अंबिका सोनी को बिठाने की कवायद को इसी संदर्भ में देखा जा रहा है।
छपास से डरे नेता
सियासत में शायद ऐसा कभी होता है, जब कोई नेता मीडिया से बचने का प्रयास करता हो। लेकिन यहां भाजपा-आरएसएस समन्वय समिति की चली मैराथन बैठक में भाजपा प्रमुख ने छपासी परंपरा से किनारा करने का प्रयास किया, लेकिन पार्टी के एक प्रवक्ता ने पार्टी प्रमुख के भाषण की प्रति को लीक करके आफत मोल ले ली। दरअसल इस बैठक में भाजपा प्रमुख के भाषण की प्रति यह कहते हुए पार्टी के सभी पदाधिकारियों को इस शर्त पर दी गई थी कि यह मीडिया तक कतई नहीं पहुंचनी चाहिए। इसका कारण भी था इस भाषण की प्रति में संघ के दिशानिर्देशों और पार्टी को दी गई नसीहतों का भी उल्लेख था। लिहाजा इसे मीडिया से दूर रखने का फैसला पार्टी हाईकमान का था। जब मीडिया को लीक हुए इस भाषण की जांच पड़ताल की गई तो खुलासा भी हो गया और लीक करने वाले पार्टी प्रवक्ता एमजे अकबर का जवाब तलब भी किया, लेकिन भाजपा प्रमुख की प्रवक्ता के प्रति नाराजगी का शरूर अभी खत्म नहीं हुआ है। मसलन अब वह पार्टी प्रवक्ता भाषण के अंशो को प्रकाशित करने का ठींकरा मीडिया पर फोड़ने का प्रयास करते नजर आ रहे हैं।
बिहार से केजरीवाल की तौबा
दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने बिहार विधानसभा चुनाव प्रचार से दूरी बनाने का इरादा कर लिया है। नीतीश कुमार से गाढी होती जा रही उनकी दोस्ती को देखकर कयास लग रहे थे कि वे चुनाव प्रचार की जंग में कूदेंगे ताकि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और भाजपा से अपनी अदावत निभा सकें लेकिन वे समझ गये। दरअसल भ्रष्टाचार के खिलाफ आंदोलन के जरिये सत्ता की कुर्सी तक पहुंचे अरविंद केजरीवाल और उनके करीबियों के पास इस सवाल का जवाब नहीं था कि चारा घोटाले में सजा पाये लालू यादव को लेकर वे क्या कहेंगे। अगर केजरीवाल बिहार जाते हैं तो लालू यादव के भ्रष्टाचार को लेकर उनके पर तंज कसे जायेंगे। भले ही वे कहें कि उनका प्रचार जदयू के लिए है पर जदयू और राजद में तो गठबंधन है। नीतीश के साथ लालू खड़े हैं। केजरीवाल समझ गये या उनको समझा दिया गया कि बिहार नहीं जाने से आम आदमी पार्टी का कुछ नहीं बिगडेगा लेकिन अगर वे गये तो भ्रष्टाचारी लालू यादव का साथ देने का ठप्पा हमेशा के लिए लग जायेगा। आखिर उन्होंने दिल्ली में ही रहना बेहतर समझा।
कांग्रेस को दिखया आइना
बिहार में चुनावी रणनीति में जुटे राजनीति दलों में मोदी बनाम नीतिश के मुकाबले को देखते हुए जदयू-राजद गठबंधन ने शक्ति प्रदर्शन करने के लिए पटना में जो स्वाभिमान रैली की। इस रैली को इस मायने में ऐतिहासिक कहा जा सकता है कि पहली बार सार्वजनिक रूप से कांग्रेस जैसी देश की सबसे पुरानी राष्ट्रीय पार्टी की आलाकमान सोनिया गॉधी को नितीश कुमार, शरद यादव और लालू प्रसाद यादव जैसे राज्यस्तरीय नेताओं से कमतर हैसियत के रूप में आइना दिखा दिया। मसलन सभी जानते हैं कि सियासी जलसों में भाषण की शुरूआत सबसे जूनियर नेता से कराई जाती है और सबसे महतवपूर्ण वरिष्ठ नेता अंत में बोलते है। इस रैली में सोनिया गॉधी का सबसे पहले भाषण करा कर शायद यही जताने की कोशिश हुई कि बिहार में उनकी हैसियत सबसे अदना है। एक बात और साफ हुई कि भले ही चुनाव का चेहरा नितीश हों पर महागठबंधन के सबसे वरिष्ठ नेता लालू ही हैं। नितीश कुमार का पूरा जोर चुनाव को मोदी बनाम बिहारी स्वाभिमान की लड़ाई बनाने पर रहा तो लालू ने पिछड़ा बनाम अगड़ा की जंग पर फोकस किया। यह भी साफ नजर आया कि नितीश और लालू की राजनीतिक रणनीति अलग-अलग ही है।
06Sep-2015

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