बुधवार, 30 सितंबर 2015

सड़कों पर इलेक्ट्रिक वाहन उतारने की तैयारी!

दो साल के भीतर शुरू होगी सरकार की परियोजना
ओ.पी. पाल. नई दिल्ली।
केंद्र सरकार ने वायु प्रदूषण की चुनौती से निपटने के लिए विदेशो की तर्ज पर अब पेट्रोल व डीजल से जैसे र्इंधनों से चलने वाले वाहनों को इलेक्ट्रिक वाहनों में बदलने की तैयारी शुरू कर दी है। इसके लिए केंद्र सरकार ने भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संस्थान यानि इसरों से हाथ मिलाया है, जो वाहनों के लिए लिथियम-आॅयन बैटरी विकसित करने को तैयार है।
सुप्रीम कोर्ट और नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) की वायु प्रदूषण को नियंत्रण करने के लिए बार-बार दी जा रही नसीहत के मद्देनजर केंद्र सरकार ने देश के विकास के एजेंडे में पर्यावरण के लिए वायु प्रदूषण की चुनौती का मुकाबला करने के लिए योजनाओं का खाका खींचना शुरू कर दिया है। इसी दिशा में केंद्रीय सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय ने इसरो के वैज्ञानिकों के साथ बैठक करके विचार विमर्श करते हुए लक्ष्य तय किया है कि दो साल के भीतर सबसे पहले बसों और स्कूटर व मोटरसाइकिलों को इलेक्ट्रिक प्रणाली के तहत सड़कों पर उतारने का लक्ष्य तय किया है। ऐसा दावा मंगलवार को स्वयं केंद्रीय सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्री नितिन गडकरी ने भी किया है। हालांकि गडकरी का दावा है कि केंद्र में सत्ता संभालते ही मोदी सरकार ने भारत को प्रदूषण मुक्त बनाने का संकल्प लिया है, जिसके तहत सबसे पहले ई-रिक्शाओं को प्रोत्साहन दिया गया है।
इसरो बनाएगा लिथियम बैटरी
मंत्रालय के अनुसार इसरो ने लिथियम-आॅयन बैटरी बनाकर केंद्र सरकार के इस अभियान में भागीदारी करने का फैसला कर लिया है। मंत्रालय के अनुसार फिलहाल एक पायलट प्रोजेक्ट के रूप में इसरों द्वारा तैयार बैटरियों दिल्ली की 15 बसों को चलाने का निर्णय लिया है और इसके बाद दो साल के भीतर सरकार ने देशभर में सभी बसों और दो पहिया वाहनों में इस बैटरी के प्रयोग को अनिवार्य करने का लक्ष्य तय किया है। इसरों ने ऐसी बैटरी अपने उपग्रहों के लिए विकसित की थी, जिन्हें दस साल पुराने डीजल के वाहनों में भी लगाकर वायु प्रदूषण को नियंत्रण करने में मदद मिलेगी।
ई-वाहन परियोजना के फायदे
सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्रालय ने दावा किया है कि यदि देश में चलने वाली करीब डेढ़ लाख डीजल की बसों को बैटरी से चलाना शुरू कर दिया जाए तो हर साल आठ लाख करोड़ रुपये की बचत होगी। मसलन 60 रुपये के डीजल के बजाए 12 रुपये की ही लागत आएगी। मंत्रालय के अनुसार ब्रिटेन में चलने वाली बसों की बैटरी की कीमत करीब 55 लाख है और इसरो उसी बैठरी को 5 से छह लाख रुपये की लागत पर विकसित कर रहा है। सरकार की इस योजना को अंजाम तक पहुंचाने के लिए की जा रही तैयारी में जहां प्रदूषण की समस्या निपटने में मदद मिलेगी, वहीं पेट्रोल व डीजल के आयात को भी कम किया जा सकेगा।
30Sep-2015

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