शुक्रवार, 30 सितंबर 2016

कावेरी विवादः केंद्र के साथ बेनतीजा रही कर्नाटक व तमिलनाडु की बैठक

हल न निकला तो अनशन पर बैठ सकती हैं उमा भारती
ओ.पी. पाल. नई दिल्ली।
केंद्रीय जल संसाधन, नदी विकास एवं गंगा संरक्षण मंत्री सुश्री उमा भारती ने कर्नाटक एवं तमिलनाडु की जनता से कावेरी मुद्दे पर शांति एवं सद्भाव का माहौल बनाये रखने की भावुक अपील की है। उन्होंने कहा कि इस मुद्दे पर वह अनशन पर भी बैठने को तैयार है।
गुरुवार को यहां नई दिल्ली में इस मुद्दे पर उच्चतम न्यायालय के निर्देशानुसार कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्धारमैया और तमिलनाडु के लोक निर्माण मंत्री ई.के. पलनीस्वामी के साथ लगभग चार घण्टे तक चली मैराथन बैठक आयोजित की गई। इस बैठक में दोनों राज्यों को शांति बनाने की अपील करते हुए सुश्री उमा भारती ने कहा कि यदि इस मुद्दे का हल न निकला तो दोनों राज्यों में शांति बनाये रखने के लिए यदि जरूरत पड़ी, तो वहां उपवास पर भी बैठ सकती हैं। इससे पहले दोनांे राज्यों की बैठक में इस मुद्दे पर उमा भारती ने दोहराया कि हमारी संस्कृति में पानी को सदा से प्यार और मौहब्बत के लिए जाना जाता है। यहाँ तक कि हमारे यहाँ युद्ध के दौरान शत्रु पक्ष के घायल सैनिकों को पानी पिलाने की परम्परा रही है। दोनों राज्यों के बीच पानी को लेकर विवाद के संदर्भ में सुश्री भारती ने एक भारतीय संत का उल्लेख करते हुए कहा कि हमारे यहाँ कम-से-कम प्राप्त करने और अधिक-से-अधिक देने की परम्परा रही है। इसके अलावा बैठक में कर्नाटक की ओर से तमिलनाडु को तीन दिन तक 6000 क्यूसेक पानी देने के सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर अमल करने का फैसले पर अमल करने क अपील की गई। कर्नाट के मुख्यमंत्री ने कहा कि वह राज्य के जमीनी हालात और कावेरी बेसिन के चार जलाशयों में पानी की मौजूदा स्थिति से केंद्र को अवगत करा रहे हैं कि उसके पास इतना पानी नहीं है कि इतना पानी तमिलनाडु को दे सके। बैठक में दोनों राज्यों के मुख्य सचिव, केद्रीय जल संसाधन मंत्रालय के सचिव और विशेष कार्याधिकारी, केंद्रीय जल आयोग के अध्यक्ष और राष्ट्रीय जल विकास अभिकरण के महानिदेशक सहित कई वरिष्ठ अधिकारी मौजूद थे।
सुप्रीम कोर्ट को दी जाएगी जानकारी
दोनों राज्यों की बैठक के बाद केंद्रीय मंत्री उमा भारी ने पत्रकारों को बैठक की जानकारी देते हुए कहा कि दोनांे राज्यों के बीच बैठक बहुत ही सदभावनापूर्ण माहौल में हुई। कर्नाटक ने एक प्रस्ताव दिया कि दोनों राज्यों में कावेरी घाटी में जल उपलब्धता का समुचित अध्ययन करने के लिए केंद्र की तरफ से विशेषज्ञों की एक समिति भेजी जाए। लेकिन इस प्रस्ताव पर तमिलनाडु को कुछ आपत्तियाँ थी, इसलिए इस पर आम सहमति नहीं बन पाई। उन्होंने कहा कि न्यायालय ने दोनों पक्षों और केंद्र सरकार को एक अवसर दिया है कि वह इस मुद्दे का कोई सर्वसम्मत हल निकालें। बैठक के समापन पर दोनों पक्षों का धन्यवाद देते हुए मंत्री ने कहा कि उनका मंत्रालय की बैठक के निष्कर्षो को सर्वोच्च न्यायालय तक पहुँचा देगा। बैठक में दोनों राज्यों के मुख्य सचिव, केद्रीय जल संसाधन मंत्रालय के सचिव और विशेष कार्याधिकारी, केंद्रीय जल आयोग के अध्यक्ष और राष्ट्रीय जल विकास अभिकरण के महानिदेशक सहित कई वरिष्ठ अधिकारी मौजूद थे।
कर्नाटक पर लगातार दबाव
इससे पहले भाजपा, जद(एस) और रैयत संघ समेत राज्य के विपक्षी दलों ने सर्वदलीय बैठक में राज्य सरकार से कहा कि वह तमिलनाडु को सुप्रीम कोर्ट के निर्देशानुसार अतिरिक्त पानी न दे। सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को कर्नाटक सरकार को आदेश दिया था कि वह तमिलनाडु को अगले तीन दिन तक कावेरी का 6000 क्यूसेक पानी छोड़े। कोर्ट ने साथ ही मामले का राजनीतिक हल निकालने के लिए केंद्र सरकार को दो दिन के भीतर दोनों राज्यों के मुख्यमंत्रियों के साथ बैठक करने का निर्देश भी दिया था। कैबिनेट की बैठक के बाद बुधवार को सिद्धारमैया ने बताया था कि वह राज्य के जमीनी हालात और कावेरी बेसिन के चार जलाशयों में पानी की मौजूदा स्थिति से केंद्र को अवगत कराएंगे।
30Sep-2016

गुरुवार, 29 सितंबर 2016

यूपी मिशन: सड़क के जरिए सत्ता तक पहुंचने में जुटी भाजपा!

राज्य में ताबड़तोड़ सड़क परियोजनाएं शुरू करेगा केंद्र
ओ.पी. पाल. नई दिल्ली।
उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनावों की जंग जीतकर सत्ता तक पहुंचने में जुटे राजनीतिक दल एक-दूसरे की सियासी रणनीतियों को बौना साबित करने के प्रयास कर रहे हैं। वहीं भाजपा सपा को सत्ता से बेदखल करके यूपी के सिंहासन पर अपना कब्जा जमाने के लिए कोई कसर छोड़ना नहीं चाहती है। ऐसे में भाजपा ने यूपी में विकास के नारे को हवा देते हुए अपनी ठोस रणनीति के तहत ताबडतोड़ सड़क परियोजनाएं राजनीति की पटरी पर उतारने की शुरूआत पहले ही कर दी है।
दरअसल उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव की सियासी बिसात बिछाने में नई-नई रणनीतियों के सहारे सत्ता तक पहुंचने की जुगत में लगे हैं। ऐसे में भाजपा अपने चुनावी अभियान में सभी संसदीय क्षेत्रों में ताबड़तोड़ सड़क परियोजनाओं का ऐलान करके सियासी जमीन को इतना मजबूत करने में जुट गई है कि राज्य की जनता को लगे कि केंद्र सरकार विकास कर रही है। गौरतलब है कि चुनावी दृष्टि से उत्तर प्रदेश में यूपी की सत्ता तक पहुंचने के लिए भाजपा ने केंद्रीय सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्री नितिन गड़करी के करीब हर सप्ताह व्यापक दौरे कर रहे हैं जो चुनावों की घोषणा यानि चुनाव आचार संहिता लागू होने से पहले ज्यादा से जयादा संसदीय क्षेत्रों में जाकर ताबड़तोड़ सड़क परियोजनाओं के शिलान्यास करने में जुटे हैें। सूत्रों के अनुसार देशभर में मोदी सरकार सड़कों के निर्माण के लिए एक के बाद एक परियोजनाओं की शुरूआत करती आ रही है। लिहाजा यूपी मिशन में ऐसी परियोजनाओं को चुनावी रणनीति का हिस्सा बनाकर यूपी की जनता को यह भी संदेश दिया जा रहा है कि केंद्र में भाजपा ने सत्ता संभालने के बाद अकेले उत्तर प्रदेश में ही दो लाख करोड़ रुपये से भी ज्यादा सड़क परियोजनाएं पूरी करने का फैसला किया है। सूत्रों के अनुसार यही नहीं अन्य विभागों के मंत्रियों को भी संबन्धित परियोजनाओं के लिए यूपी में सक्रिय किया हुआ है। इसके पीछे सरकार और पार्टी का तर्क है कि इन योजनाओं में कोई राजनीति नहीं है, बल्कि केंद्र सरकार यूपी के विकास की जरूरतों को पूरा करके लोकसभा में इस राज्य से मिले जनमत की अपेक्षाओं को पूरा करने का दायित्व निभा रही है।
पटरी पर उतारी कई परियोजनाएं
सड़क परिवहन मंत्राल के सूत्रों के अनुसार केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी ने अपने यूपी दौरे के दौरान पिछले दिनों वाराणसी में 2500 करोड़ रुपये की लागत वाली परियोजनाओं की आधारशिला रखी है। इसके बाद गोरखपुर, बलिया, लालगंज में 2500 करोड़ रुपये लखनऊ में बाहरी रिंग रोड़ के लिए 5200 करोड़ रुपये की परियोजना शुरू की है। अब कल गुरुवार यानि 29 सितंबर को गडकरी यूपी के संभल, पीलीभीत, बुलंदशहर, बरेली, मेरठ, शाहजहांपुर को सड़क परियोजनाओं की आधारशिला रखकर विकास की सौगात देंगे। वहीं केंद्रीय सड़क मंत्रालय के एनएचएआई ने लखनऊ से सुल्तानपुर खंड पर 2845 करोड़ रुपये लागत वाली 127 किमी लंबे राष्ट्रीय राजमार्ग को चार लेन में तब्दील करने की योजना को पटरी पर उतार दिया है। जबकि पिछले दो माह से सड़क परियोजनाओं के शिलान्यास का सिलसिला जारी है।
चुनावी घोषणा तक चलेगा अभियान
सूत्रों के अनुसार केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी अक्तूबर के पहले सप्ताह में आगरा, इटावा, कानपुर, अलीगढ़, फिरोजाबाद में सड़क परियोजनाओं का शिलान्यास करेंगे, तो दूसरे सप्ताह में गाजीपुर, इलाहाबाद, महाराजगंज के इलाकों को जोड़ने वाली सड़क परियोजनाओं के काम की शुरूआत की जाएगी। इससे अगले सप्ताही झाँसी, चित्रकूट का दौरा करके सड़क परियोजनाओं की शुरूआत करेंगे। बताया जा रहा है कि भाजपा की इस रणनीति में सड़क परियोजनाओं का यह सिलसिला चुनाव आयोग द्वारा चुनावों की तिथियां घोषित करने तक जारी रहेगा। गौरतलब है कि इसके बाद यूपी में चुनाव आचार संहिता लागू हो जाएगी और कोई भी राजनीतिक दल किसी योजना की शुरूआत नहीं कर सकेगा। लेकिन भाजपा इन परियोजनाओं की आधारशिला रखने का बखान चुनावी प्रचार सभाओं में करके वोटरों को आकर्षित जरूर करने में सक्षम होगी।
29Sep-2016

अल्पसंख्यकों के द्वार चली मोदी सरकार

मेवात के बिछौर गांव में आज होगी पहली प्रगतिशील पंचायत
केंद्र सरकार की प्रगतिशील पंचायत अभियान की शुरूआत कल गुरुवार से हरियाणा के मेवात जिले में बिछौर गांव से हो रही है। केंद्रीय अल्पसंख्यक मामलों के मंत्री मुख्तार अब्बास नकवी ने इस अभियान की जानकारी देते हुए कहा कि इन प्रगतिशील पंचायतों के जरिए आम लोगों को अल्पसंख्यक मंत्रालय की योजनाओं की जानकारी देना और विकास के लिए धन के इस्तेमाल के लिए उनकी राय लेना है। वहीं अल्पसंख्यक समुदाय के बीच विकास और विश्वास को लेकर बनी गलत धारणा को दूर करना है। उन्होंने कहा कि सरकार के विकास एजेंडे में चलाई जा रही योजनाओं का लाभ समाज के सबसे निचले पायदान तक पहुंचाने का संकल्प लेते हुए अल्पसंख्यक मामलों के मंत्रालय कल से इस ‘प्रोग्रेस पंचायत’ अभियान शुरूआत कर रहा है। इसका मकसद लोगों को सामाजिक, आर्थिक, शैक्षणिक, स्वास्थ्य और आधारभूत संरचना के क्षेत्र में विकास योजनाओं एवं रोजगार के बारे में जानकारी देना है।
दरअसल उत्तर प्रदेश समेत केई राज्यों के आगामी विधानसभा चुनाव को लेकर सभी प्रमुख दलों ने नई रणनीतियों के सहारे सियासी जमीन मजबूत करने की मुहिम चलाई हुई है। मसलन उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनावों में कांग्रेस ने ग्रामीणों और किसानों को रिझाने के लिए खाट सभाएं करने का अभियान चला रखा है, तो वहीं सत्तापक्ष सपा ने स्मार्ट फोन देने का वायदा करके सत्ता बचाने की रणनीति बनाई है। ऐसे में इनके सियासी दांव का मुकाबला करने के लिए भाजपा ने भी अपनी ऐसी रणनीति बनाई है, जिसका यूपी में ही नहीं बल्कि पूरे देश में अल्पसंख्यकों के सशक्तिकरण करने की योजना का संदेश पहुंच सके। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा अल्पसंख्यकों की वकालत करने के बाद भाजपानीत केंद्र सरकार ने पूरे देश में अल्पसंख्यक वर्ग के लिए चलाई जा रही योजनाओं और उनके विकास का संदेश देने के लिए देशभर के सैकड़ो अल्पसंख्यक खासकर मुस्लिम बाहुल्य क्षेत्रों में ‘प्रगतिशील पंचायत’ अभियान शुरू किया है, जिसकी शुरूआत कल गुरुवार से हरियाणा के मेवात जिले में बिछौर गांव से की जा रही है। विपक्षी दल केंद्र सरकार की अल्पसंख्यक मंत्रालय के जरिए इस अभियान को सियासी रणनीति करार दे रहे हैं।
योजनाओं की शुरुआत
अल्पसंख्यक मामलों के मंत्री नकवी के अनुसार इस मेवात जिले में प्रगतिशील पंचायत के अलावा वे पलवल के हथनी में लड़कियों के लिए 100 बिस्तरों वाले हास्टल और नूह एवं नगीना के स्कूलों में स्टाफ क्वाटर का उद् घाटन भी करेंगे। वहीं चिलवाली में एक माडल स्कूल की आधारशिला रखी जाएगी। इसी प्रकार 3 अक्तूबर को राजस्थान के अलवर जिले में तिजारा में भी प्रगतिशील पंचायत का आयोजन होगा। सूत्रों के अनुसार सरकार देशभर के विभिन्न राज्यों में कम से कम ऐसी 100 पंचायत करने की योजना है। विपक्षी दलों द्वारा उठाए गये सवाल पर मुख्तार अब्बास नकवी का जवाब है कि राजनीतिक प्रतिद्वन्द्वियों के दुष्प्रचार अभियान के कारण अल्पसंख्यकों के बीच व्याप्त भ्रंति दूर करने के लिए ऐसी पंचायत की जा रही है, जिसमें मोदी सरकार और पिछली सरकार की अल्पसंख्यकों के लिए योजनाओं का अंतर से भी लोगों को अवगत कराया जाएगा।
देशभर में चलेगा अभियान
नकवी ने कहा कि इस अभियान की पहली शुरूआत हरियाणा के मेवात में हो रही है। इसके बाद दक्षिण भारत समेत देशभर में ‘प्रोग्रेस पंचायत’ लगाई जाएगी। उन्होंने कहा कि कें्रद की प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व वाली सरकार राज्य सरकारों के साथ मिलकर गरीबों, अल्पसंख्यकों, दलितों, पिछड़ों के सशक्तिकरण के संकल्प को जमीन पर उतारना चाहती है। इस काम में हमें काफी हद तक सफलता मिली है, लेकिन अभी काफी कुछ किया जाना बाकी है। इस पंचायत में नकवी के अलावा कुछ अन्य मंत्री भी हिस्सा लेंगे।
उपलब्धियों का होगा बखान
केंद्रीय मंत्री नकवी ने कहा कि केंद्र सरकार और उनक मंत्रालय राज्यों के साथ मिल कर आखिरी आदमी तक विकास और विश्वास पहुंचाने के लिए काम कर रहा है, जिसमें केंद्र सरकार द्वारा अल्पसंख्यक कल्याण और उनके विकास की योजनाओं को लागू किया गया है उनकी भी जानकारी दी जाएगी। सरकार की नई योजनाओं से अल्पसंख्यकों को विभिन्न क्षेत्रों में मिल रहे लाभ के प्रभाव की जानकारी जनता के बीच पहुंचना जरूरी है। नकवी ने कहा कि अल्पसंख्यक मंत्रालय अल्पसंख्यकों के विकास और शिक्षा के लिए प्रधानमंत्री जन विकास कार्यक्रम, उस्ताद, नई मंजिल, सीखो और कमाओ सहित कई महत्वपूर्ण योजनाएं चला रहा है। राज्य सरकारों को इन योजनाओं का अपने राज्य के जरूरत मंद लोगों के हितों में भरपूर लाभ लेना चाहिए। कें्रदीय मंत्री ने कहा कि कें्रद सरकार प्रधानमंत्री के 15-सूत्री कार्यक्रम की समीक्षा कर रही है, ताकि इसे और प्रभावी बनाया जा सके।
29Sep-2016

बुधवार, 28 सितंबर 2016

कॉमर्शियल वाहनों पर कसेगा शिकंजा!

सड़क हादसों पर अंकुश लगाने अनिवार्य बनाई जांच
ओ.पी. पाल. नई दिल्ली।
देश में बढ़ते सड़क हादसों पर कराए जा चुके अध्ययनों की रिपोर्ट में इसके लिए सबसे ज्यादा जिम्मेदार कॉमर्शियल वाहनों की बेलगाम रμतार उजागर हो चुकी है। सड़क हादसों के लिए दुनियाभर में कलंक बने भारत में सड़क दुर्घटनाओं पर अंकुश लगाने में लगातार योजनाओं को अंजाम दे रही केंद्र सरकार ने कॉमर्शियल वाहनों को बिना फिटनेस सर्टीफिकेट लिए सड़क पर उतरने पर रोक लगाने की योजना शुरू कर दी है।
केंद्रीय सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्रालय के अनुसार केंद्र सरकार ने राज्यों के परिवहन मंत्रियों के समूह की सिफारिशों के बाद देशभर में कॉमर्शियल वाहनों की फिटनेस जांच के लिए आॅटोमेटिक मशीन के जरिए जांच करने हेतु फिटनेस केंद्र खोलने का खाका तैयार किया है, जहां जांच के बाद ऐसे वाहनों को फिटनेस सर्टिफिकेट दिया जाएगा। सरकार ने माना है कि ऐसे अनफिट वाहनों की आॅटोमेटिक फिटनेस सेंटर में होने वाली जांच कॉमर्शियल वाहनों की रμतार पर अंकुश लगाएगी और देश में होने वाली दुर्घटनाओं को रोकने में मदद मिलेगी। सरकार ने नए मोटर वाहन अधिनियम में भी संशोधन करके कॉमर्शियल वाहनों की एक साल में जांच होना अनिवार्य कर दिया है। इन केंद्रोें पर आॅटोमेटिक मशीन के जरिए होने वाली जांच में वाहनों के ब्रेक, डीपर, लाइट, गियर सहित छोटी-छोटी चीजों को गहनता से परखा जाएगा और वाहनों के फिट होने के बाद ही उन्हें सर्टिफिकेट जारी होगा। मसलन सरकार ने यह पूरी तरह से अनिवार्य कर दिया है कि बिना फिटनेस प्रमाण-पत्र के ऐसे वाहन सड़क पर नहीं चल सकेंगे और नियमों का उल्लंघन करने पर वाहन को जब्त करने के साथ भारी जुर्माना और सजा का भी प्रावधान किया गया है। गौरतलब है कि देशभर की सड़क सुरक्षा एवं परिवहन प्रणाली को बेहतर, सुगम, सुरक्षित और आधुनिक बनाने के लिए कई महत्वपूर्ण सुझाव देने वाली 18 राज्यों के परिवहन मंत्रियों के समूह ने अपनी सिफारिशें केंद्रीय सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्री नितिन गडकरी को सौंप दी है।
सरकार को मिले ये सुझाव
केंद्र सरकार द्वारा अनफिट वाहनों को सड़क पर आने से पहले उनकी जांच करने के लिए देशभर में आॅटोमेटिक फिटनेस जांच केंद्र स्थापित करने का निर्णय राज्यों के मंत्री समूह के सुझाव पर लिया है। मंत्रियों की केंद्र सरकार को सौंपी गई सिफारिशों में कहा गया है कि नए मोटर वाहन एक्ट के अस्तित्व में आने से देशभर में वाहनों की जांच के लिए एक जैसी प्रणाली लागू की जाएगी। इसके लिए राष्ट्रीय सड़क सुरक्षा प्रबंधन बोर्ड की स्थापना करके देश भार में इसके क्षेत्रीय सेंटर स्थापित करना करेगा। समूह की सिफारिशों में लर्निंग लाइसेंस की प्रक्रिया को आनॅलाइन किया जाएगा। ओवर स्पीडिंग, ओवर लोडिंग, शराब पीकर गाड़ी चलाने पर लाइसेंस निलंबित करने, जुमार्ना राशि अधिक करने, ड्राइविंग ट्रैक स्थापित करने और नाबालिगों द्वारा वाहन चलाने अथवा दुर्घटना की स्थिति में परिजनों की भी जिम्मेदारी निर्धारित करने जैसे महत्वपूर्ण सुझाव शामिल किए गए हैं।
राज्यों के मंत्री समूह ने लिया निर्णय
मंत्रालय के अनुसार पिछले सप्ताह ही केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी ने सड़क सुरक्षा और नए मोटर वाहन अधिनियम को लेकर राजस्थान के परिवहन मंत्री यूनुस खान की अध्यक्षता में बनी राज्यों के परिवहन मंत्रियों के समूह की बैठक में कॉमर्शियल वाहनों की फिटनेस जांच के देशभर में आॅटोमेटिक फिटनेस जांच केंद्र खोलने के निर्णय को अंतिम रूप दिया है। इस बैठक में राज्यों की संशोधित मोटर वाहन अधिनियम को लेकर नया मोटर कानून आने के बाद यह प्रक्रिया पूरे देश में कानून के तहत लागू हो जाएगी। संसद में पेश किये गये मोटर वाहन अधिनियम (संशोधन) बिल-2016 की जांच कर रही संससदीय स्थायी समिति से भी आग्रह किया गया है कि वह जल्द सरकार को रिपोर्ट सौंपे ताकि संसद के शीतकालीन सत्र में इस विधेयक को पारित करा लिया जाएगा।
28Sep-2016

मंगलवार, 27 सितंबर 2016

ऐसे सुधरेगा पूर्वोत्तर राज्यों का बुनियादी ढांचा!

एनएचआईडीसीएल ने पटरी पर उतारी 136 सड़क परियोजनाएं
ओ.पी. पाल. नई दिल्ली।
देश में सड़कों का जाल बिछाकर ताबड़तोड़ चल रही सड़क परियोजनाओं के सहारे बुनियादी ढांचे को मजबूत करने में पूर्वात्तर और पहाड़ी राज्यों में राष्ट्रीय राजमार्गो के निर्माण के लिए पटरी पर उतारी गई परियोजनाओं को अंजाम तक पहुंचाने का जिम्मा एनएचआईडीसीएल को दिया गया है।
मोदी सरकार द्वारा केंद्र की सत्ता संभालने के बाद देश के विकास के एजेंडे में बुनियादी ढांचों को सुधारने की योजना में पूर्वोत्तर और पहाड़ी राज्यों व इलाकों में राष्ट्रीय राजमार्गो और अन्य सड़क मार्गो के निर्माण की चुनौती को स्वीकार किया। इसके लिए केंद्रीय सड़क परिवहन मंत्रालय के अधीन गठित राष्ट्रीय राजमार्ग एवं बुनियादी ढांचा विकास निगम लिमिटेड (एनएचआईडीसीएल) जुलाई 2014 में अपने अस्तित्व में आया। इस संगठन को पिछले साल जनवरी में पूर्वोत्तर और पहाड़ी राज्यों की सड़क परियोजनाएं सौंपी गई। इस संबन्ध में एनएचआईडीसीएल के भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारी एवं प्रबंध निदेशक आनंद कुमार ने हरिभूमि को बताया कि राष्ट्रीय राजमार्गो और सड़क निर्माण की दक्षता, पारदर्शिता एवं जवाबदेही के सिद्धांत पर पूर्वोत्तर के सात राज्यों, सिक्किम,पश्चिम बंगाल, अंडमान एवं निकोबार, जम्मू-कश्मीर, उत्तराखंड एवं हिमाचल प्रदेश में विश्वस्तरीय बुनियादी ढांचा सृजित करने की जिम्मेदारी पूरी करने का प्रयास जारी है। आनंद कुमार ने बताया कि उनकी कंपनी ने अपने करीब 22 माह के कार्यकाल में दस हजार करोड़ रुपये की लागत वाली करीब तीन दर्जन सड़क परियोजनाओं के तहत एक हजार किलोमीटर से भी ज्यादा राष्ट्रीय राजमार्ग का निर्माण अंतर्राष्ट्रीय मानकों के आधार पर पूरा किया जा चुका है। इन राज्यों में गत 15 सितंबर तक इन के अलावा 1.06 लाख करोड़ रुपये लागत वाली 136 सड़क परियोजनाओं के तहत 8321 किमी राष्ट्रीय राजमार्ग निर्माण का काम शुरू कर दिया गया है।
अरुणाचल में सर्वाधिक परियोजना
एनएचआईडीसीएल के प्रबन्ध निदेश आनंद कुमार ने शुरू की गई इन परियोजनाओं की जानकारी देते हुए बताया कि चीन से सटे अरुणाचल प्रदेश में बुनियादी ढांचे को मजबूत करने की दिशा में सबसे ज्यादा 29 सड़क परियोजनाएं शुरू की गई है, जिसके तहत 1055.35 किमी लंबे राष्ट्रीय राजमार्ग का निर्माण होना है। इसी प्रकार जम्मू-कश्मीर में 16270.42 करोड़ रुपये की लागत वाली आठ परियोजनाएं शुरू की जा रही है, जिसमें 581 किमी लंबा नया राष्ट्रीय राजमार्ग विकसित किया जाएगा। इसके अलावा हिमाचलन प्रदेश में 3200 करोड़ रुपये की चार परियोजनाओं के तहत 320 किमी लंबे नेशनल हाइवे का निर्माण शुरू कर दिया गया है। उत्त्तराखंड में भी 9221.49 करोड़ रुपये लागत से एक दर्जन परियोजनाओं के तहत 895.95 किमी लंबे राष्ट्रीय राजमार्ग बनाने का काम शुरू हो चुका है। सरकार ने पश्चिम बंगाल में 6290 करोड़ की तीन, असम में 15730.608 करोड़ रुपये की 19, मणिपुर में 12224 करोड़ रुपये की 18, मेघालय में 3841 करोड़ रुपये की 11, मिजोरम में 6104.01 करोड़ रुपये की चार, नागालैंड में 6971.35 करोड़ रुपये की 8, सिक्किम में 3366 करोड़ रुपये की 10,त्रिपुरा में 5534.34 करोड़ रुपये की लागत से छह तथा अंडमान निकोबार में 4080.14 करोड़ रुपये की लागत वाली चार सड़क परियोजनाओं पर काम शुरू किया गया है।
टिकाऊपन व सुरक्षा प्राथमिकता
मंत्रालय की कंपनी एनएचआईडीसीएल के एमडी आनंद कुमार का कहना है कि पहाड़ी इलाकों में सड़को के निर्माण की गुणवत्ता को अंतर्राष्ट्रीय मानकों के आधार पर अनिवार्य किया गया है, ताकि सुरक्षित सफर की प्राथमिकता में उनका टिकाऊपन सुनिश्चित किया जासके। पहाड़ी क्षेत्रों में परियोजनाओं के तहत सुरंगे, प्रमुख पुलों और पैदलपथ पार, छोटे पुल व पुलिया बनाने का काम मैदानी इलाकों के मुकाबले मुश्किल काम है। इसलिए पहाड़ी ढलानों के रख रखरखाव की दिशा में उचित प्रौद्योगिकी के इस्तेमाल के साथ पूर्वोत्तरराज्यों में उच्चस्तरीय सड़क अवसंरचना का निर्माण करने की केन्द्र सरकार की प्रतिबद्धता पर बल दिया। ऐसे इलाकों में हाइवे निर्माण में दक्षता एवं पारदर्शिता के लिए ई-आॅफिस, ई-एक्सेस, ई-पेस, व्हाट्सएप जैसे इलेक्ट्रॉनिक टूल्स का भी उपयोग किया जा रहा है।
27Sep-2016

सोमवार, 26 सितंबर 2016

आसान नहीं रेलवे की वित्तीय सेहत सुधारना!

रेल बजट का आम बजट में मर्ज का प्रभाव
संसदीय समिति करेगी वित्तीय सुधारों की समीक्षा
ओ.पी. पाल. नई दिल्ली।
केंद्र सरकार द्वारा 92 साल पुरानी अंगे्रजी हुकूमत की परंपरा को खत्म करते हुए रेल बजट को आम बजट में मर्ज करने का निणर्य रेलवे के लिए कितना कारगर साबित होगा, इस पर संशय बरकरार है कि क्या आर्थिक संकट से जूझ रहे रेलवे की आर्थिक सेहत में सुधार हो पाएगा? शायद इसीलिए ही अब खासकर रेलवे के वित्तीय मामलों पर इस निर्णय के प्रभाव का आकलन संसदीय समिति द्वारा किया जाएगा, जो वित्तीय सुधारों के मामलों की समीक्षा करेगी।
संसद में अगले वित्तीय वर्ष के लिए रेल बजट संसद में पेश नहीं होगा, इसके लिए केंद्रीय मंत्रिमंडल ने रेल बजट को आम बजट में विलय करने की पिछले सप्ताह हुई बैठक में मंजूरी दे दी है। सरकार के इस फैसले से रेल बजट इतिहास के पन्नों में तो सिमट गया है,लेकिन करीब 20 हजार करोड़ के घाटे की इस भारतीय रेल को मुनाफे में लाना सरकार के लिए आसान काम नजर नहीं आ रहा है। केंद्रीय मंत्रिमंडल की इस प्रस्ताव को मंजूरी मिलने के बाद ही लोकसभा द्वारा जारी किये गये बुलेटिन के अनुसार रेलवे के वित्त पर संसदीय समिति ने रेल बजट के विलय और बजटीय सुधारों तथा उसके बाद इसके प्रभावों का चयन किया है। मलसन कांग्रेस सांसद एम. वीरप्पा मोइली की अगुवाई वाली वित्त मामलों की संसदीय समिति सभी बजटीय सुधारों की समीक्षा करेगी। सूत्रों के अनुसार समिति रेलवे के वित्तीय हिसाब से इस मर्जन का क्या प्रभाव पड़ेगा का भी समिति आकलन करके एक रिपोर्ट तैयार करेगी। हालांकि रेल बजट के आम बजट में विलय के बाद केंद्र सरकार का दावा है कि इससे अब धनराशि की कमी से जूझ रही रेलवे को हर साल करीब 10 हजार करोड़ रुपए की बचत होगी। सरकार का तर्क है कि रेल मंत्रालय को यह रकम डिविडेंड यानी लाभांश के तौर पर अब नहीं देना पड़ेगी और इस फैसले के बाद रेल मंत्रालय को नई रेलगाड़ियों और परियोजनाओं के ऐलान की छूट मिलना शुरू हो जाएगी। सरकार के ऐसे ही तर्को का आकलन करने के लिए संसद की वित्तीय संबन्धी समिति अब इस निर्णय की समीक्षा करेगी। सरकार ने इस कदम को उठाते हुए यह भी तर्क दिया है कि रेलवे की अर्थव्यवस्था को रμतार देने की दिशा में रेलवे के वित्तीय अधिकारों और रेलवे की नीति की स्वायत्तता बरकरार रहेगी।
सातवें वेतन आयोग का बोझ
इस साल फरवरी में पेश किये गये रेल बजट के दौरान रेल मंत्री सुरेश प्रभु ने 15,744 करोड़ रुपये के घाटे में घोषित किया था। रलेवे के सूत्रों के अनुसार यह घाटा कम होने के बजाए लगातार बढ़ रहा है। वहीं सातवें वेतन आयोग की वजह से भी रेल मंत्रालय पर बड़ा आर्थिक बोझ पड़ा है हालांकि वित्त मंत्रालय ने इसे साझा करने का भरोसा दिहया है। मसलन दोनों बजट के मर्जर के बाद रेलवे के राजस्व घाटे और पूंजी लागत को अब वित्त मंत्रालय को ट्रांसफर कर दिया जाएगा। जबकि आर्थिक तंगी से जूझ रहे रेलवे को राजस्व जुटाने के लिए यात्रि व मालभाड़ों में बढ़ोतरी करने को मजबूर होना पड़ रहा है।
वित्त मंत्रालय ही तय करेगा रेल बजट
सरकार के इस फैसले के बाद आगामी वित्त वर्ष यानी 2017-18 के लिए साल 2017 में सिर्फ आम बजट ही संसद में पेश किया जाना है, जिसके अलावा अलावा एक विनियोजन विधेयक होगा। सरकार का दावा है कि इससे रेलवे की स्वायतत्ता पर कोई असर नहीं पड़ेगा। वित्त मंत्रालय ही अब रेल मंत्रालय का बजट तय करेगा, लेकिन अभी भी दोनों मंत्रालयों के अधिकारों का बटंवारे का लेकर स्थिति साफ होना बाकी है और इसके लिए क्या प्रक्रिया होगी इसको भी तय किया जाना बाकी है। रेलवे द्वारा प्रस्तावित रेल शुल्क प्राधिकरण (आरटीए) के मसौदे को अंतिम रूप देने की बात कही गई है, जिसे जल्द ही कैबिनेट के समक्ष रखा जाएगा।
ऐसे बदलेगी बजट प्रक्रिया
आमतौर पर अभी बजट पारित कराने की प्रक्रिया देर तक चलने के कारण विभागों को नए बजट की खर्च की मंजूरी मिलने में वित्त वर्ष के पहले दो तीन महीने बीत जाते हैं। हालांकि बजट प्रक्रिया में बदलाव करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में केंद्रीय मंत्रिमंडल ने खर्च के योजना और गैर योजना व्यय के भेद को भी समाप्त करने का फैसला किया है, जिससे प्रक्रिया को सुगम बनाया जा सके। शायद इसलिए सरकार ने बजट सत्र जनवरी के अंतिम सप्ताह में बुलाने का प्रस्ताव किया है, ताकि एक अप्रैल से बजट में लिए जाने वाले निर्णयों को लागू किया जा सके, जबकि आमतौर पर बजट फरवरी माह की अंतिम तारीख को पेश किया जाता है। इस बार बजट पहले पेश करने के लिए वित्त मंत्रालय ने संसद का बजट सत्र 25 जनवरी के आसपास बुलाने का प्रस्ताव किया है।
26Sep-2016

रविवार, 25 सितंबर 2016

राग दरबार: हवा में उड़ता पाकिस्तान..

आतंकवाद की हिमायत
भारत के खिलाफ आतंकवाद का खेल खेलते आ रहे पाकिस्तान के लिए वह कहावत सटीक बैठती है कि एक झूठ को छिपाने के लिए सौ झूठ बोलने पड़ते हैं। पर यहां तो कहीं ज्यादा ही हो रहा है। मसलन पाकिस्तान है कि मानता नहीं? यह भी पाक जानता है कि वह भारत के मुकाबले कहीं भी टिकने की औकात नहीं रखता। फिर भी पाकिस्तान उरी अटैक के बाद जिस प्रकार हवा में उड़ने का प्रोपगंडा करके झूठ पर झूठ बोलता जा रहा है, उसमे वह यूएन के मंच पर आतंकवाद की हिमायत करके फंसता नजर आ रहा है। उरी के आतंकी हमले के बाद सीनाजोरी करते पाक के प्रति अब भारत पूरी तरह सख्त हुआ और 56 इंच का सीना सामने कर पीएम मोदी की सरकार ने जैसे ही 56 साल पहले हुई जल संधि रद्द करने पर विचार किया तो पाक जल संधि टूटने के डर से ऐसा घबराया। आतंकवाद पर पानी जब सिर से ऊपर बहने लगे तो भारत के सब्र के बांध का टूटना स्वाभाविक है। विशेषज्ञों के सुर भी भारतीयों की भवनाओं में सख्त हो गये और चौतरफा पाक को कड़ा सबक सिखाने की आवाज उठ तही है तो भी पाक सीनाजोरी का्ररता नजर आ रहा है। अपने लडाकू विमानों की उडानों में भारत को युद्ध की तैयारी का प्रदर्शन करके भारत पर दबाव बनाने और कश्मीर का राग अलापकर आतंकवाद के मुद्दे से भटकाने का प्रयास भी कर रहा है। भारत इन सबके बावजूद भारत सिंधु जल संधि के सहारे पाकिस्तान पर दबाव बनाने की निर्णायक कार्रवाई के लिए तैयारी में जुट गया है। राजनीतिक गलियारे में चर्चा की बात की जाए तो पानी की आपूर्ति और अन्य खाद्दानों जैसे व्यापारिक समझौते निरस्त करने की कार्यवाही से ही पाक बिना युद्ध के पराजित हो। यही तो है बिना औकात के हवा में उड़ना....।
अमर की जय-जयकार
समाजवादी पार्टी में कुछ दिन से चल रहे दंगल में ठाकुर अमर सिंह बड़ा हाथ मारने में कामयाब रहे। मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने तो अपने चाचा शिवपाल यादव के साथ चले झगड़े को इशारों ही इशारों में अमर सिंह की लगाई हुई आग करार दे दिया था। उनको बाहरी करार देने के बाद अखिलेश ने कहा था कि वे आगे से कभी भी ‘उनको’ अंकल नहीं कहेंगे। फिर ऐसा क्या हुआ कि सपा सुप्रीमो मुलायम सिंह यादव ने अमर सिंह को पार्टी का महासचिव बना दिया। इतना ही नहीं मुलायम ने नियुक्ति पत्र खुद जारी किया वो भी अपनी लिखावट में। अमर की ताजपोशी का ऐलान होते ही साबित हो गया कि अखिलेश यादव की सुनने की बजाय मुलायम अपने छोटे भाई शिवपाल यादव की सलाह को ज्यादा अहमियत दे रहे हैं। रामगोपाल वर्मा और अखिलेश से अमर सिंह की पुरानी अदावत है। इन दोनों के कड़े विरोध के चलते ही सपा से उनका नाता टूटा था। यादव परिवार के भीतर अमर का कोई जिगरी यार है तो वो शिवपाल ही है। आजम खान के तगड़े विरोध के बावजूद शिवपाल यादव अपने मित्र को सपा से राज्यसभा में भिजवाने में सफल रहे और अब महासचिव भी बनवा दिया। अगले साल यूपी में चुनाव होना है। अब देखना ये है कि शिवपाल-अमर की जोड़ी अखिलेश-रामगोपाल पर भारी पड़ती है या नहीं।
संजीवनी की तलाश
जैसे-जैसे उत्तर प्रदेश में चुनाव नजदीक आ रहे है। वैसे-वैसै राज्य का सियासी पारा गर्माने लगा है। सपा,बसपा और बीजेपी को पीछे छोडते हुए कांग्रेस ने खाट पर चर्चा और राहुल गांधी की रैलियों से यूपी में सत्ता पर काबिज होने के लिए प्रचार शुरू कर दिया है,लेकिन अकबर रोड़ पर बैठे कांग्रेसी इससे कुछ अलग की राय रखते है। पार्टी के नेता प्रशांत किशोर की रणनीति को देखकर यह अंदाजा लगा रहे है कि इन सबसे से राज्य में हाशिए पर पर पड़ी पार्टी एकदम से सत्ता में तो नही आएगी,लेकिन राहुल के प्रचार से चुनाव में अच्छी स्थिति में जरूर पहुंच सकेंगे। राज्य में 65 से 70 सीटे हासिल भी कर लेंगे। इससे पार्टी में दूसरे राज्यों में मायूस बैठे कांग्रेस कार्यकर्ताओ में जोश जरूर देखने को मिलेगा। यूपी के चुनावी परिणाम पार्टी के अनुकूल आते है तो पार्टी जल्द ही दूसरे राज्यों में सियासी जमीन को मजबूत करने का काम शुरू कर देंगी,ताकि वहां के चुनाव में सफलता हासिल हो सके।
25Sep-2016

शनिवार, 24 सितंबर 2016

फास्ट ट्रैक पर होगा नमामि गंगे मिशन!

प्राधिकरण के रूप में बनेगा नया संस्थागत ढांचा
ओ.पी. पाल. नई दिल्ली।
देश में गंगा व सहायक नदियों के पानी की धारा को निर्मल और अविरल बनाने की योजना के तहत चलाए जा रहे ‘नमामि गंगे मिशन’को फास्ट ट्रैक पर लाने के लिए एक नया संस्थागत ढांचा तैयार किया जा रहा है। इस ढांचे को बनाने का रास्ता दो दिन पहले ही केंद्र सरकार द्वारा राष्ट्रीय परिषद के गठन को मंजूरी देने से आसान हुआ है।
केंद्र सरकार की इस महत्वाकांक्षी परियोजना को निरंतर चलाया जा रहा है, जिसमें गंगा नदी के तटों को सुधारने और घाटो तथा अन्य तटीय विकास के लिए जुलाई में सौ से भी ज्यादा योजनाएं एक साथ शुरू की जा चुकी हैं। गंगा स्वच्छता अभियान में तेजी लाने के लिए कुछ कानूनी अड़चने थी, जिन्हें दूर करने के लिए केंद्रीय जल संसाधन, नदी विकास एवं संरक्षण मंत्रालय ने ‘गंगा नदी (कायाकल्प, संरक्षण और प्रबंधन) के प्राधिकार के आदेश’ का एक कैबिनेट नोट केंद्रीय मंत्रिमंडल के समक्ष पेश किया, जिसे दो दिन पहले प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की अध्यक्षता में हुई केंद्रीय मंत्रिमंडल की बैठक में मंजूरी मिल गई है। इसके तहत जल्द ही राष्ट्रीय परिषद का गठन होगा। मंत्रालय के अनुसार नमामि गंगे परियोजना को फास्ट ट्रैक पर लाने के लिए एक नया संस्थागत ढांचा तैयार किया जा रहा है, जो राष्ट्रीय मिशन की सशक्त बनाएगा, वहीं इससे परियोजना का संचालन निर्विघ्न और स्वतंत्र एवं दायित्वपूर्ण तरीके से आगे बढ़ाने में मदद मिलेगी। मंत्रालय ने इस प्राधिकरण को मिशन का दर्जा देने का फैसला किया है। मसलन इसके पास पर्यावरण (संरक्षण) अधिनियम-1986 के तहत आने वाली शक्तियां मिल जाएंगी। इसके तहत वित्तीय और प्रशासनिक प्रतिनिधिमंडल का गठन किया जा रहा है जिसकी इन कार्यों के प्रति जवाबदेही तय हो सकेगी। केंद्रीय जल संसाधन मंत्री सुश्री उमा भारती ने राष्ट्रीय परिषद के गठन के लिए मिली इस मंजूरी को नमामि गंगे मिशन को अंजाम तक पहुंचाने की दिशा में बड़ा कदम करार दिया है। मंत्रालय के अनुसार इस प्राधिकार के आदेश के लागू होने से मंत्रालय को स्वच्छ गंगा के लिए एक ठोस नीति तैयार करने में मदद मिलेगी। मसलन नमामि गंगे मिशन फास्ट ट्रैक पर आ जाएगा और इसके आसानी से क्रियान्वयित किया जा सकेगा।
राष्ट्रीय परिषद संभालेगा जिम्मेदारी
जल संसाधन मंत्रालय के अनुसार प्राधिकरण आदेश की मंजूरी मिलने के साथ ही गंगा नदी कायाकल्प, संरक्षण और प्रबंधन के लिए राष्ट्रीय परिषद का गठन किया गया है। इस परिषद की जम्मेदारी प्रदूषण की रोकथाम के अधीक्षण और गंगा नदी बेसिन के कायाकल्प करने की होगी। वहीं केंद्रीय मंत्री सुश्री उमा भारती की अध्यक्षता में एक उच्चाधिकार प्राप्त समिति का गठन किया जा रहा है जिसमें अन्य मंत्रालयों और विभागों के अलावा राज्यों के संबन्धित प्रतिनिधि भी शामिल किये जा रहे है। राष्ट्रीय परिषद के गठन से नमामि गंगे संबन्धी सभी गतिविधियों, गंगा नदी के कायाकल्प और गंगा नदी के संरक्षण का काम समय-सीमा के दायरे में काम करेगा,जिसकी एक कार्य योजना तैयार की गई है। इस कार्य योजना के कार्यान्वयन की निगरानी के लिए एक तंत्र विकसित किया गया है। मसलन समय सीमा के भीतर कार्य योजना का कार्यान्वयन सुनिश्चित करने के लिए इससे मंत्रालयों, विभागों और राज्य सरकारों के बीच समन्वय स्थापित हो सकेगा।
राष्ट्रीय मिशन का बदला ढांचा
मंत्रालय के अनुसार स्वच्छ गंगा के लिए राष्ट्रीय मिशन(एनएमसीजी) को यह प्राधिकरण लागू होने से पर्यावरण (संरक्षण)अधिनियम के तहत ज्यादा शक्तियां बढ़ गई है। इसलिए अब एनएमसीजी के ढांचे को दो स्तरों पर तैयार किया गया है, जिसमें पहले स्तर पर गवर्निंग काउंसिल(जीसी) होगी, जिसकी अध्यक्षता एनएमसीजी के डीजी करेंगे। इसके बाद एक कार्यकारी कमेटी(ईसी) होगी, जिसके अध्यक्ष एनएमसीजी के डीजी होंगे। एनएमसीजी राष्ट्रीय गंगा परिषद के निदेर्शों के अनुरूप गंगा बेसिन प्रबंधन योजना को लागू करेगी। इस
राज्यों व जिला स्तर पर जिम्मेदारी
इस प्राधिकरण आदेश के तहत राज्य के स्तर पर प्रत्येक राज्य में प्राधिकरण के तौर पर राज्य गंगा समितियां गठित करने का प्रस्ताव है। यह समितियां अधीक्षण, निर्देशन और अपने अधिकार क्षेत्र के अंतर्गत जिला गंगा संरक्षण समितियों पर नियंत्रण रखेंगी। इसी तरह जिला गंगा समिति गंगा नदी के किनारे बसे जिलों में एक प्राधिकरण के तौर गंगा संरक्षण की जिम्मेदारी संभालेगी। मसलन गंगा नदी के जल की गुणवत्ता की निगरानी के लिए चलाई जा रही विभिन्न परियोजनाओं की निगरानी करने की जिम्मेदारी भी जिला समितियों को सौंपी जा रही हैं।
24Sep-2016

शुक्रवार, 23 सितंबर 2016

जीएसटी के दायरे में आ सकते हैं पेट्रोलियम उत्पाद !

जीएसटी परिषद की पहली बैठक में शुरू हुआ मंथन
ओ.पी. पाल. नई दिल्ली।
देश में जीएसटी कानून लागू करने की तैयारी में जुटी केंद्र सरकार द्वारा अधिसूचित जीएसटी परिषद की पहली बैठक में करों के निर्धारण पर मंथन शुरू हो चुका है। सरकार की ओर से ऐसे संकेत मिले हैं कि क्रूड समेत पेट्रोलियम और कुछ इंटरमीडिएट उत्पादों को भी जीएसटी के दायरे में लाया जा सकता है।
संसद सत्र के शीतकालीन सत्र से केेंद्र सरकार जीएसटी विधेयक को पारित कराने के प्रयास में है। इसके लिए गठित जीएसटी परिषद को 22 नवंबर तक जीएसटी कर की दर, छूट पाने वाली वस्तुओं और जीएसटी लागू होने की कारोबार सीमा तय करने जैसे अहम मुद्दों पर फैसला करना है। गुरुवार को केंद्रीय वित्त मंत्री अरुण जेटली की अध्यक्षता में यहां विज्ञान भवन में देर शाम शुरू हुई जीएसटी परिषद की दो दिवसीय बैठक में जीएसटी में कर संबन्धी सभी पहलुओं पर मंथन शुरू हो गया है। सूत्रों के अनुसार इस बैठक में परिषद द्वारा पेट्रोलियम उत्पादों को भी जीएसटी के दायरे में लाने के प्रस्ताव पर भी चर्चा हो सकती है। हालांकि सरकार पेट्रोलियम उत्पादों पर मामूली कर लगाने के ही प्रस्ताव पर ही विचार कर रही है। इसकी वजह में सरकार के सूत्रों का मानना है कि क्रूड समेत पेट्रोलियम और कुछ इंटरमीडिएट उत्पादों को भी जीएसटी के दायरे में लाने से जीएसटी की कमियों को दूर करने में मदद मिलेगी और करों का महंगाई पर असर कम किया जा सकेगा। इसके लिए परिषद की बैठक में सरकार को राज्यों को भी इस बात से आश्वस्त करने का प्रयास करेगी कि पेट्रोलियम उत्पादों पर मामूली कर लगाने के क्या-क्या फायदे होंगे। इसके लिए राज्यों को लोकल सेल टैक्स लगाने की छूट दी जा सकती है। पेट्रोलियम उत्पादों को जीएसटी के दायरे में लाया जाएगा या नहीं इसका अंतिम फैसला जीएसटी परिषद को ही करना है। सरकार का लक्ष्य जीएसटी कानून को आगामी एक अप्रैल 2017 से लागू करने का है।
राज्यों को राजस्व की चिंता
सूत्रों की माने तो राज्य पेट्रोलियम उत्पादों पर लगने वाले करों की प्रणाली में बदलाव के पक्ष में नहीं है। इसके लिए पहले भी राज्यों के वित्त मंत्री तर्क दे चुके हैं कि इन उत्पादों पर जीएसटी कर लगाने से राज्यों के लिए जरूरत पड़ने पर उनके लिए तेजी से राजस्व जुटाने का तरीका कठिन हो जाएगा। वहीं आर्थिक जानकार बिपिन सपरा का कहना है कि यदि पेट्रोलियम उत्पादों पर जीएसटी दर के हिसाब से कर लगाया जाता है तो उत्पादों के दामों में कमी आ सकती है, जबकि इन उत्पादों पर स्टेट जीएसटी का कर अतिरिक्त होगा। उनका मानना है कि इससे पावर, एयरलाइंस जैसे क्षेत्र को भी कुछ प्रोत्साहन मिलेगा, जिसके कारण ऐसी सेवाओं की कीमतों में कमी आ सकती है और उपभोक्ताओं को राहत मिल सकती है।
कर के आधार का तर्क
देश में जीएसटी कानून लागू करने के प्रयासों के बीच ही केंद्र सरकार से राज्य सरकारें मांग कर रही हैं कि उन्हें 1.5 करोड़ के टर्नओवर वाली कंपनियों के मामले में टैक्स लगाने का कानूनी और प्रशासनिक रुप से अधिकार दिया जाए। ऐसी मांग जीएसटी के लिए राज्य सरकारों की उच्चाधिकार समिति में राज्य के वित्त मंत्रियों द्वारा केंद्रीय वित्त मंत्री अरुण जेटली के समक्ष अपना रूख पहले ही साफ कर चुके हैं। जबकि केंद्र सरकार ने राज्य सरकारों के सामने प्रस्ताव रखा है कि केंद्र को ही जीएसटी कर लगाने का अधिकार होना चाहिए, जिसमें से केंद्र का हिस्सा राज्यों द्वारा दे दिया जाएगा। इसके विकल्प के लिए संविधान संशोधन विधेयक में प्रावधान किया गया है कि केंद्र सरकार इस कर से मिलने वाले राजस्व को बाद में राज्यों को बांट देंगे। बहरहाल जीएसटी संबन्धी इन सभी पहलुओं का अंतिम निर्णय अब जीएसटी परिषद को ही करना है।
जीएसटी पर जारी हुआ एफएक्यू
अगले साल अप्रैल से जीएसटी को लागू करने की तैयारियों के बीच ही जीएसटी परिषद की बैठक से पहले केंद्रीय वित्त मंत्री अरुण जेटली ने केंद्रीय उत्पाद एवं सीमा शुल्क बोर्ड के लगातार पूछे जा रहे सवालों के जवाब में एफएक्यू यानि अक्सर पूछे जाने वाले सवालों का जवाब जारी किया है, जिसमें ई-कामर्स कंपनियों तथा एप आधारित टैक्सी सेवा देने वाली कंपनियों पर कर का ब्योरा भी शामिल है। जेटली द्वारा जारी 268 पृष्ठ के इस एफएक्यू में 24 विषयों पर करीब 500 सवालों का जवाब दिया गया है। इसमें इनमें पंजीकरण, मूल्यांकन और भुगतान, दायरा और आपूर्ति का समय, रिफंड, जब्ती तथा गिरμतारी से संबंधित सवालों के जवाब दिये गये हैं।
23Sep-2016

गुरुवार, 22 सितंबर 2016

आम बजट में मर्ज हुआ रेल बजट

मार्च तक पूरी होंगी बजट सत्र की प्रक्रिया
इतिहास में सिमट गई अंगे्रजी हकूमत की परंपरा
हरिभूमि ब्यूरो. नई दिल्ली।
आखिर मोदी सरकार ने अंगे्रजी हकूमत की 92 साल पुरानी परंपरा को खत्म करते हुए रेल बजट को आम बजट में मर्ज करने की सैद्धांतिक मंजूरी दे दी है। मसलन अब रेल बजट इतिहास बनकर रह जाएगा और रेल बजट पेश नहीं होगा, बल्कि आम बजट में रेल संबन्धी फैसले लिए जाएंगे।
केंद्रीय कैबिनेट की बैठक में बुधवार को सरकार द्वारा एक ऐतिहासिक फैसला लेते हुए रेल बजट को आम बजट में शामिल करने के लिए दी गई सैद्धांतिक मंजूरी के बाद रेल बजट अब इतिहास के पन्नों में सिमट गया है। मसलन अब रेल बजट अलग से पेश नहीं होगा और आम बजट में ही रेलवे संबन्धी योजनाओं की घोषणाएं होंगी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में बुधवार को यहां हुई केन्द्रीय मंत्रिमंडल की बैठक में लिए गये फैसलों की जानकारी देते हुए केंद्रीय वित्त मंत्री अरुण जेटली ने एक संवााददाता सम्मेलन में कहा कि सरकार का जैसा राजकोषीय अनुशासन और दिशा है, रेल बजट भी उसी का अंग होना चाहिए। इसलिए आने वाले वर्ष से रेल बजट आम बजट में समाहित हो जाएगा। रेल बजट को आम बजट में विलय करके पेश किये जाने के फैसले की पुष्टि करते हुए जेटली ने कहा कि अंग्रेजी हकूमत में वर्ष 1924 से रेल बजट और आम बजट को अलग-अलग पेश करने की परंपरा शुरू हुई थी,जिसे अब खत्म कर दिया गया है।
रेलवे की नीति पहले जैसी रहेगी
रेलवे की नीतियों एवं योजनाओं पर मंत्रालय का नियंत्रण यथावत रहेगा। रेल यात्री किराये और माल भाड़ा दरों के बारे में निर्णय लेने का अधिकार रेलवे के पास ही रहेगा, लेकिन रेलवे के आय-व्यय के ब्योरे को संसद में वित्त मंत्रालय प्रस्तुत करेगा। इस निर्णय से अलबत्ता उसके सिर से कई बोझ कम हो जाएंगे। कर्मचारियों के वेतन और पेंशन भत्ते आदि के लिए केंद्रीय कर्मियों के लिए एकीकृत व्यवस्था होगी और रेलवे की आय पर इसका बोझ नहीं होगा। सकल बजटीय सहायता और लाभांश के भुगतान का मुद्दा समाप्त हो जाएगा। रेल मंत्रालय गाड़यिों के यात्री किरायों एवं मालभाड़ों के निर्धारण के लिये एक स्वायत्त प्राधिकरण की स्थापना की प्रक्रिया पहले ही शुरू कर चुका है। जेटली ने कहा कि आम बजट का अंग होने के बावजूद रेलवे से जुड़े प्रस्तावों को एक अलग विनियोग विधेयक में पेश किया जाएगा। इससे रेलवे की एक अलग पहचान बनी है, उसे पूरी तरह से बरकरार रखा जाएगा। सरकार सुनिश्चित करेगी कि रेलवे के व्यय की स्वायत्तता बनी रहे। उन्होंने कहा कि इस निर्णय से अब रेलवे को पूंजीगत व्यय 2.27 लाख करोड़ रुपए पर जो लाभांश देना होता था, वह अब नहीं देना होगा।
बजट सत्र जल्द बुलाने की तैयारी
कैबिनेट में इस प्रस्ताव को दी गई मंजूरी के साथ ही केंद्र सरकार परंपरा से हटते हुए आम बजट को भी एक फरवरी को पेश करने पर विचार कर रही है। वित्त मंत्री अरूण जेटली ने कहा कि सरकार सैद्धांतिक रूप से इस बात के पक्ष में है कि अगले वित्त वर्ष से बजट की पूरी प्रक्रिया मई के बजाय 31 मार्च से पहले पूरी कर ली जाए, ताकि बजट प्रावधानों को एक अप्रैल से लागू किया जा सके। हालांकि वित्त मंत्री अरूण जेटली ने कहा कि सरकार कुछ राज्यों के विधानसभा चुनावों को ध्यान में रखते हुए 2017-18 के बजट सत्र की तारीख के बारे में फैसला अलग से करेगी। मंत्रिमंडल ने 2017-18 के बजट में योजना और गैर-योजना व्यय में अंतर को समाप्त करने का फैसला किया है। मौजूदा प्रक्रिया में बजट मई में पारित हो पाता है और इसके प्रावधान प्रभावी रूप से सितंबर के महीने से ही लागू हो पाते हैं।
लालू के नाम है रेल बजट का खिताब
भारत में आजादी के बाद नवंबर 1947 में जॉन मिथाई देश के पहले रेल मंत्री बने और आजाद भारत का रेल बजट पेश किया। जहां तक संसद में सबसे ज्यादा बार रेल बजट पेश करने का सवाल है उसका खिताब 2004 से 2009 के बीच यूपीए सरकार में रेल मंत्री रहे लालू प्रसाद यादव के नाम है, जिन्होंने सबसे ज्यादा 6 बार रेल बजट पेश किया। वहीं उनके बाद टीएमसी प्रमुख ममता बनर्जी भारत की पहली महिला रेल मंत्री बनी थीं। देश में रेल बजट का लाइव प्रसारण पहली बार 24 मार्च 1994 को किया गया था।
बनेगी रेल टैरिफ अथॉरिटी
रेलवे सूत्रों के मुताबिक आम बजट में रेल बजट के विलय के साथ भारतीय रेलवे को वित्तीय तौर पर आजादी मिल जाएगी, लेकिन ऐसा माना जा रहा है कि भारतीय रेलवे को डिवीडेंड देने से मुक्ति मिल जाएगी। इसके अलावा रेल मंत्रालय को अब वित्त मंत्रालय के सामने ग्रॉस बजटरी सपोर्ट के लिए गिड़गिड़ाना नहीं पड़ेगा। माना जा रहा है कि वित्त मंत्रालय सातवें वेतन आयोग की वजह से रेल मंत्रालय पर पड़ रहे भारी भरकम बोझ को साझा करने में भी सहयोग करेगा।
बजट की तैयारी ऐसे होगी
इस मौके पर आर्थिक मामलों के सचिव शक्तिकांत दास ने कहा कि केंद्रीय सांख्यिकी कार्यालय राष्ट्रीय आय या जीडीपी का अस्थायी अग्रिम अनुमान सात जनवरी तक देगा, ताकि आंकड़े को बजट तैयारी में शामिल किया जा सके। उन्होंने कहा कि अस्थायी अग्रिम अनुमान सामान्य तौर पर सात फरवरी को पेश किये जाने अनुमान के अनुरूप होंगे। दास ने कहा कि सरकार एक या दो दिन में बजट परिपत्र जारी करेगी। वहीं रेल मंत्री सुरेश प्रभु ने कहा कि रेल और आम बजट रेलवे के कामकाज में स्वयत्तता को प्रभावित नहीं करेगा बल्कि रेलवे के पूंजी व्यय को बढ़ाने में मदद करेगा। शक्तिकांत दास ने कहा कि रेलवे वेतन और पेंशन समेत अपना व्यय, आय से पूरा करता है और बजट को आम बजट में मिलाये जाने से कोई बदलाव नहीं होगा। केंद्र सब्सिडी देना जारी रखेगा जो वह रेलवे को दे रहा है। आर्थिक मामलों के सचिव ने कहा कि रेलवे का राजस्व अब भारत की संचित निधि में आएगा और व्यय को इस कोष से पूरा किया जाएगा। इसीलिए यह आम बजट के वित्त को प्रभावित नहीं करेगा। रेलवे अपनी आय से कर्मचारियों को वेतन देता है।
22Sep-2016

नमामि गंगे: टर्निंग प्वाइंट होगी राष्ट्रीय परिषद

कृष्णा नदी पर आंध्र व तेलंगाना के बीच जल्द होगा समाधान
ओ.पी. पाल. नई दिल्ली।
केंद्र सरकार द्वारा गंगा नदी के लिए राष्ट्रीय परिषद के गठन को मंजूरी देने से नमामि गंगे मिशन को बल मिलेगा, जिसमें यह परिषद गंगा स्वच्छता अभियान का एक महत्वपूर्ण मोड़ साबित होने की उम्मीद है।
दरअसल बुधवार को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की अध्यक्षता में आयोजित केंद्रीय कैबिनेट की बैठक में गंगा नदी के लिए राष्ट्रीय परिषद के गठन करने के प्रस्ताव को मंजूरी दे दी गई है। कैबिनेट से मिली मंजूरी मिलने पर केंद्रीय जल संसाधन मंत्री सुश्री उमा भारती ने कहा कि गंगा नदी के लिए राष्ट्रीय परिषद का गठन करना मोदी सरकार के गंगा संरक्षण कार्यक्रम में एक महत्वपूर्ण मोड़ होगा। सुश्री भारती ने कहा कि इस निर्णय से गंगा नदी के पर्यावरणीय संरक्षण के लिए एनएमसीजी को और ज्यादा अधिकार मिलेंगे। उन्होंने कहा कि पारदर्शिता एवं किफायत सुनिश्चित करने के लिए समवर्ती आॅडिट एवं सुरक्षा आॅडिट के लिए प्रावधान किया गया है। उन्होंन कहा कि इस कदम से गंगा नदी के प्रदूषण में प्रभावशाली ढंग से कमी सुनिश्चित होगी और इससे नदी में पारिस्थितिक प्रवाह को बनाए रखने में मदद मिलेगी। सुश्री भारती ने यह जानकारी दी कि 11 शहरों के 22 प्रमुख नालों के लिए निविदाएं अगले सप्ताह तक जारी की जाएंगी। हाइब्रिड वार्षिकी मोड पर गंगा में होने वाले सीवर प्रवाह में 90 फीसदी हिस्सा इन्हीं 22 प्रमुख नालों का रहता है।
टेलीमेटरी प्रणाली स्थापित होगी
नई दिल्ली में बुधवार को आंध्र प्रदेश व तेलंगाना के बीच कृष्णा नदी के जल बंटवारे को लेकर टेलीमेटरी प्रणाली स्थापित करने तथा नदी बेसिन का अध्ययन कराने का निर्णय लिया गया। केन्द्रीय जल संसाधन, नदी विकास एवं गंगा संरक्षण मंत्री सुश्री उमा भारती की अध्यक्षता में आयोजित सर्वोच्च परिषद की बैठक में दोनों ही राज्यों के मुख्यमंत्रियों की सहमति से नदी बेसिन के अध्ययन के लिए दोनों राज्यों की संयुक्त टीम गठित करने का निर्णय लिया गया। इसके लिए टेलीमेटरी प्रणाली स्थापित की जाएगी। बैठक में जहां संयुक्त टीम द्वारा कृष्णा नदी बेसिन का अध्ययन किया जाएगा, वहीं इस नदी के जल प्रवास के नवीनतम आंकडे हासिल करने तथा इस नदी में जल को मापने के लिए टेलीमेटरी प्रणालियां स्थापित करने का निर्णय लिया गया। जल संसाधन मंत्रालय के अनुसार इन संयुक्त टीमों में दोनों ही राज्यों और केन्द्र के विशेषज्ञ होंगे। ये टीमें जल बंटवारे पर अपनी रिपोर्ट देंगी, जिन्हें त्वरित निर्णय के लिए कृष्णा ट्रिब्यूनल को भेज दिया जाएगा। इस मामले में सुश्री भारती का कहना है कि इस बैठक में कृष्णा नदी के जल बंटवारे को लेकर बेहद सौहार्दपूर्ण माहौल चर्चा की गई, जिसमें आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री श्री एन चन्द्रबाबू नायडू और तेलंगाना के मुख्यमंत्री के चन्द्रशेखर राव ने भी भाग लिया।
22Sep-2016

पांच राज्यों में जल्द बनेंगे 415 किमी लंबे हाईवे

परियोजना की लागत 2600.31 करोड़ रुपये होगी
हरिभूमि ब्यूरो. नई दिल्ली।
केंद्र सरकार ने पांच राज्यों में नौ राष्ट्रीय राजमार्ग के 414.401 किमी लंबे निर्माण की नौ परियोजनाओं को अंतिम रूप दिया है, जिस पर 2600.31 करोड़ रुपये की लागत का अनुमान लगाया गया है।
केंद्रीय सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय के अनुसार उत्तर प्रदेश, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, कर्नाटक और नागालैंड में राष्ट्रीय राजमार्ग की तैयार की गई नौ परियोजनाओं को इन राज्यों के वित्तीय निगम ने अंतिम रूप दे दिया है। मंत्रालय के अनुसार उत्तर प्रदेश 137.627 किमी लंबे राजमार्ग की तीन परियोजनाओं के लिए 637.25 करोड़ रुपये की लागत तय की गई है। इसमे यूपी के इलाहाबाद-मिर्जापुर खंड पर ईपीसी मोड़ पर 241.37 करोड़ की लागत से 49.272 किमी राजमार्ग के निर्माण होगा, जबकि पीलीभीत-पूरनपुर के बीच 34.80 किमी सड़क निर्माण के लिए 176.94 करोड़ रुपये की लागत तय की गई है। इसी प्रकार यूपी में बांदा से इलाहाबाद खंड पर राष्ट्रीय राजमार्ग में 53.555 किमी सड़क निर्माण का विस्तार करने के लिए 218.94 करोड़ रुपये की राशि रखी गई है। राज्य वित्तीय निगम की बैठक में आंध्र प्रदेश राष्ट्रीय राजमार्ग के पुनरूद्धार के लिए 63.013 किमी लंबी सड़क परियोजना को मंजूरी दी गई है जिस पर 378.24 करोड़ रुपये की लागत आएगी।
तेलंगाना में तीन परियोजना
मंत्रालय के अनुसार तेलंगाना में 88.32 किमी राजमार्ग की तीन सड़क परियोजनाओं के लिए 547.15 करोड़ रुपये की लागत को अंतिम रूप दिया गया है, जिसमें निजामाबाद-जगदलपुर मार्ग पर 42.4 किमी सड़क निर्माण पर 248.83 करोड़ रुपये तथा हग्गारी-जदचेरिया मार्ग पर 298.32 करोड़ रुपये की लागत से 45.92 किमी सड़क का निर्माण किया जाएगा। इसी प्रकार कर्नाटक राज्य में भी 91.27 किमी लंबी दो सड़क परियोजनाओं के लिए 711.86 करोड़ रुपये की लागत का प्रावधान तय किया गया है। इसमें राज्य यादगिर बाईपास से 36.9 किमी निर्माण के लिए 314.90 करोड़ तथा महाराष्ट्र सीमा से बीदर तक 54.37 किमी सड़क निर्माण के लिए 396.96 करोड़ रुपये की लागत को अंतिम रूप दिया गया है। निमग की बैठक में नागालैंड में दीमापुर से कोहिमा तक 34.171 किमी लंबे मार्ग के निर्माण के लिए अंडर इंटर स्टेट स्कीम के तहत 325.81 करोड़ रुपये खर्च करने का निर्णय लिया गया है। मंत्रालय के अनुसार इन सभी नौ सड़क परियोजनाओं को जल्द शुरू कर दिया जाएगा, ताकि सड़कों को एक-दूसरे राष्ट्रीय राजमार्ग से जोड़कर सड़क परिवहन को आसान बनाया जा सके।
22Sep-2016

बुधवार, 21 सितंबर 2016

देश में कम हुई 1.26 लाख बच्चों की मौत!

सरकार का बाल मृत्यु पर काबू पाने का दावा
ओ.पी. पाल. नई दिल्ली।
मोदी सरकार द्वारा देश में मातृ और शिशु मत्यु दर को काबू करने के लिए कई प्रभावी योजनाओं को तेजी से लागू किया गया है। सरकार वर्ष 2014-15 के दौरान पांच साल से कम आयु वाले 1.26 लाख बच्चों की कम हुई मृत्यु को ऐसे ही तय लक्ष्यों की योजनाओं का नतीजा करार दे रही है।
केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने एक ताजा सर्वेक्षण के जारी 2014-15 का सैंपल रजिस्ट्रेशन सर्वे (एसआरएस) का आरजीआई डेटा का हवाला देते हुए जानकारी दी है कि यह आंकड़े इस बात को दर्शाते हैं कि सरकार द्वारा किए गये प्रयास, प्रतिबद्धता और तय लक्ष्यों के परिणामस्वरूप ही वर्ष 2014 में शिशु जन्मदर के सकारात्मक परिणाम सामने आए हैं, जिसमें वर्ष 2014-15 के दौरान पांच वर्ष से कम आयु वाले बच्चों की मृत्यु दर में चार अंकों की महत्वपूर्ण गिरावट दर्ज की गयी। इस बात की पुष्टि स्वयं केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्री जेपी नड्डा ने भी की है। नड्डा ने दावा किया कि सैंपल रजिस्ट्रेशन सर्वे में हुए खुलासा इस बात की ओर इशारा करता है कि वर्ष 2012-13 की तुलना में 2013-14 में पांच वर्ष से कम आयु के बच्चों की मृत्यु दर में 8.16 फीसद की कमी हुई है। जबकि वर्ष 2012-13 में इसमें 5.79 फीसद की कमी दर्ज की गयी थी। मंत्रालय के अनुसार अंडर-5 वर्ष 2013 में 49 था, जो वर्ष 2014 में 45 आंका गया है यानि यह चार अंक कम रहा है। मसलन वर्ष 2014 के दौरान पांच वर्ष से कम आयु के 1.26 लाख और बच्चों को मृत्यु के मुहं में जाने से बचाया गया है। स्वास्थ्य मंत्रालय के अनुसार वर्ष 2014 की महत्वपूर्ण प्रगति के आधार पर उम्मीद है कि आने वाले वर्ष 2015-16 में सरकार भारत में एमडीजी-4 के लक्ष्य को हासिल कर लेगा, जो अभी 5 वर्ष से कम आयु के 1000 बच्चों के जन्म पर 42 शिशुओं की मृत्यु दर है।
असम व यूपी अव्वल
इस सर्वेक्षण में 15 राज्यों के आंकडों के मुताबिक असम और यूपी में पांच साल से कम आयु वाले बच्चों की मृत्युदर में सात-सात अंक की गिरावट दर्ज की गई है। जबकि राजस्थान व ओडिशा में 6-6, हरियाणा, दिल्ली, हिमाचल प्रदेश, जम्मू-कश्मीर व पश्चिम बंगाल में पांच-पांच, छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश, झारखंड, कर्नाटक, गुजरात व पंजाब में चार-चार अंक की गिरावट रही। इसके अलावा 16 राज्यों में बाल मृत्यु दर में तीन या इससे ज्यादा की गिरावट आने का खुलासा किया गया है। इसके अलावा पांच वर्ष से कम आयु के बच्चों में ग्रामीण शहरी अंतर में 2013 के 26 अंकों की तुलना में 23 अंक की गिरावट दर्ज की गई, जो ग्रामीण क्षेत्रों में बेहतर सुधार होने के संकेत हैं।
खूब संभला मध्य प्रदेश
राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण के मुताबिक राष्ट्रीय स्तर के विभिन्न स्तर के अध्ययन और सर्वेक्षणों में इन सभी सूचकांकों में गिरावट का रूख है, तो उसमें मध्य प्रदेश में वर्ष 2013-14 के मुकाबले वर्ष 2014-15 में भले ही चार अंक की गिरावट दर्ज की गई हो, लेकिन पिछले एक दशक यानि 2005-06 के मुकाबले 26 प्रतिशत की कमी लाकर संभलने वाला राज्य साबित हुआ, जो कुपोषण के मामले में हमेशा चर्चित रहा है। एक दशक पहले प्रति हजार पर यह बाल मृत्यु दर 69 थी जो अब 51 पर आ गई है।
21Sep-2016

मंगलवार, 20 सितंबर 2016

नमामि गंगे मिशन: गंगा किनारे वाले गांवों में होगी जैविक खेती

पूर्वोत्तर क्षेत्र में जैविक मूल्य श्रृंखला विकास मिशन शुरू
ओ.पी. पाल. नई दिल्ली।
केंद्र सरकार के महत्वाकांक्षी नमामि गंगे मिशन को तेजी से आगे बढ़ाने की दिशा में गंगा नदी के किनारे गांवों में जैविक खेती को प्रोत्साहन देने और कृषि संबन्धी समस्याओं को दूर करने के लिए सरकार ने पूर्वाेत्तर क्षेत्र में ‘जैविक मूल्य श्रंखला विकास मिशन’नामक योजना शुरू कर दी है।
केंद्रीय जल संसाधन मंत्रालय के अनुसार कृषि और किसान कल्याण मंत्रालय के बीच गंगा नदी के किनारे वाले गांवों में जैविक खेती को बढ़ावा देने और गंगा स्वच्छता के तहत कृषि एव किसानों संबन्धी मुद्दों के समाधान की दिशा में यह करार हुआ है। इस समझौता ज्ञापन का तेजी से असर उस समय हुआ जब सरकार ने सोमवार को देश के पूर्वोत्तर क्षेत्र में जैविक खेती की संभावनाओं के मद्देनजर ‘पूर्वोत्तर क्षेत्र हेतु जैविक मूल्य श्रृंखला विकास मिशन’ नामक कें्रदीय क्षेत्र की योजना शुरू कर दी। इस योजना के तहत वित्तीय वर्ष 2015-16 से 2017-18 के दौरान अरूणाचल प्रदेश, असम, मणिपुर, मेघालय, मिजोरम, नगालैंड, सिक्किम और त्रिपुरा जैसे पूर्वोत्तर राज्यों में इस योजना को तेजी से क्रियान्वयन किया जा सके। इस करार के तहत गंगा किनारे के गांवों में जैविक कृषि का विकास किया जाएगा। प्रत्येक ग्राम पंचायत एक क्लस्टर का प्रतिनिधित्व करेगी और जागरूकता कार्यक्रमों, स्वयं सहायता समूहों तथा मोबाइल एप के माध्यम से जैविक खेती को प्रोत्साहित करेंगी। वहीं मंत्रालय रसायन, उर्वरक और कीटनाशकों के संतुलित उपयोग के लिए जागरूकता पैदा करेगा, ताकि गंगा बेसिन में जल संरक्षण के लिए सूक्ष्म सिंचाई को बढ़ावा मिले। इसके साथ गंगा किनारे आजीविका के अवसर तथा पशुपालन आधारित प्राकृतिक खेती को भी बढ़ावा देगा।
पूर्वोत्तर क्षेत्र में 527 कलस्टर की योजना
मंत्रालय के अनुसार सात पूर्वोत्तर राज्यों में 527 क्लस्टर तैयार करने के लिए 3487 लाख रुपए के परिव्यय वाली वार्षिक कार्य योजना का अनुमोदन किया गया है। सूत्रों के अनुसार पूर्वोत्तर राज्यों में जैविक कृषि को बढ़ावा देने की योजना के तहत 31 जनवरी 2016 तक 1275 लाख रुपए जारी किये गए। इसी प्रकार देश में खासतौर पर पूर्वोत्तर हिमालयी क्षेत्र में जैविक खेती के लिए अनुसंधान एवं प्रौद्योगिकी सहायता प्रदान करने के लिए आईसीएआर ने सिक्किम के गंगटोक में राष्ट्रीय जैविक कृषि अनुसंधान संस्थान की स्थापना रतीय कृषि अनुसंधान परिषद अपनी योजना ‘जैविक कृषि नेटवर्क परियोजना’ तथा मृदा जैव विविधता जैव उवर्रक के माध्यम से देश में जैविक खेती को प्रौद्योगिकी सहायता प्रदान करने के लिए अनुसंधान कर रहा है।
इन राज्यों में हो रही है जैविक खेती
मंत्रालय के अनुसार मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र, राजस्थान, ओडिशा तथा सिक्किम जैसे राज्यों में पहले से ही राष्ट्रीय जैविक उत्पादन कार्यक्रम (एनपीओपी) के तहत बड़े पैमाने पर जैविक खेती की जा रही है। पीकेवीवाई के तहत लगभग 26350 किसान जैविक खेती कर रहे हैं। सरकार ने इसके दायरे में अब पूर्वोत्तर राज्यों को भी शामिल कर लिया है। इसके साथ ही कृषि मंत्रालय की राष्ट्रीय सतत् कृषि मिशन, परंपरागत कृषि विकास योजना तथा अब पूर्वोत्तर क्षेत्र हेतु जैविक मूल्य श्रृंखला विकास मिशन के तहत जैविक खेती को ज्यादा से ज्यादा बढ़ावा देने की रμतार बढ़ा दी गई है। सरकार ने ‘जैविक मूल्य श्रंखला विकास मिशन’ योजना को गंगा किनारे वाले गांवों में भी जैविक खेती को बढ़ावा देने के लिए जल संसाधन और कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय के बीच तीन साल के लिए एक सहमति पत्र पर हस्ताक्षर कराए हैं, ताकि गंगा स्वच्छता अभियान यानि नमामि गंगे परियोजना में तेजी लाई जा सके।
20Sep-2016

तमिलनाडु को रोजाना तीन हजार क्यूसेक पानी देगा कर्नाटक

कावेरी निगरानी समिति की बैठक में हुआ निर्णय
ओ.पी. पाल. नई दिल्ली।
तमिलनाडु और कर्नाटक के बीच कावेरी नदी के जल बंटवारे को लेकर चल रहे विवाद के बीच कावेरी निगरानी समिति ने कर्नाटक को निर्देश दिया है कि वह 21 से 30 सितंबर यानि दस दिन तक प्रतिदिन तमिलनाडु को तीन हजार क्यूसेक पानी देगा।
केंद्रीय जल संसाधन सचिव शशि शेखर की अध्यक्षता में सोमवार को देर शाम श्रमशक्ति भवन में हुई कावेरी निगरानी समिति की सातवीं बैठक में यह निर्णय कर्नाटक, तमिलनाडु, पुडुचेरी के मुख्य सचिवों और केरल के प्रतिनिधियों की मौजूदगी में लिया गया। सोमवार को साढ़े चार बजे शुरू होने के बाद करीब दो घंटा चली इस बैठक में तर्क-वितर्क के साथ हुई चर्चा के बाद भी कर्नाटक और तमिलनाडु छोड़े जाने वाले पानी की मात्रा को लेकर ऐसे किसी नतीजे पर नहीं पहुंच सके, जिस पर कोई सहमति बनाई जा सके। इसके बाद केंद्रीय जल संसाधन सचिव और समिति के अध्यक्ष शशि शेखर को अपने अधिकारों का इस्तेमाल करना पड़ा और तमिलनाडु और कर्नाटक के बीच मतभेदों को खारिज करते हुए कर्नाटक को आदेश दिया कि वह तमिलनाडु को 21 से 30 सितंबर तक रोजाना 3000 क्यूसेक पानी देगा। दरअसल कावेरी निगरानी समिति पर सुप्रीम कोर्ट के जारी आदेश का भी दबाव है कि वह तमिलनाडु व कर्नाटक के जल संबन्धी आंकड़ों को तय करे जिसका अध्यक्ष शीर्ष अदालत करेगी। दोनों राज्यों के जल संबन्धी इन आंकड़ो का विश्लेषण केंद्रीय जल आयोग के अधिकारियों द्वारा किया जा रहा है, जिन्हें सोमवार को समिति की बैठक में प्रस्तुत किया गया। अब निगरानी समिति की अगली बैठक अक्तूबर में किसी भी दिन करने का निर्णय लिया गया। मसलन 30 सितंबर के बाद जरूरत पड़ने पर तमिलनाडु को पानी छोड़ने के बारे में अगला निर्णय लिया जा सकता है।
इन मामलों पर बनी सहमति
बैठक के दौरान दोनों राज्य छोड़े जाने वाले पानी की मात्रा पर सहमति पर नहीं पहुंच सके। वहीं बैठक में कर्नाटक ने जहां थोड़ा भी पानी छोड़ने का जोरदार विरोध किया, वहीं तमिलनाडु ने कावेरी जल विवाद न्यायाधिकरण के आदेश के अनुसार पानी प्रवाहित करने का अनुरोध किया। इसके बावजूद इस बैठक में इस बात पर रजामंदी जताई कि कावेरी प्रबंधन बोर्ड के प्रभाव में आने तक फरवरी 2017 से हालात का जायजा लेने के लिए समिति की बैठक हर महीने होनी चाहिए। गौरतलब है कि प्रस्तावित बोर्ड से संबंधित मामला शीर्ष अदालत में लंबित है। वहीं समिति ने नदी के जल प्रवाह के आंकड़े उसी समय (रीयल टाइम में) समिति सचिवालय नयी दिल्ली, तमिलनाडु, कर्नाटक, केरल और पुडुचेरी के बीच प्रसारित करने के प्रस्ताव पर एक करार करने पर भी सहमति जताई गई। केंद्रीय जल आयोग ऐसे उपकरणों पर काम कर रहा है जिन्हें रीयल-टाइम में आंकड़े मुहैया कराने के लिहाज से विभिन्न स्थानों पर लगाया जाएगा। कारण है कि प्रामाणिक आंकड़ों की कमी के कारण विभिन्न पक्षों के बीच आम-सहमति बनने में कठिनाई होती है।
आदेश को चुनौती देने में स्वतंत्रता
जल संसाधन सचिव शशि शेखर ने बैठक में विचार विमर्श के बावजूद वे सहमत नहीं हुए हैं। कल जब मामला उच्चतम न्यायालय में आएगा तो दोनों राज्य इस आदेश को चुनौती देने के लिए स्वतंत्र हैं या वे अदालत के समक्ष आदेश पर सहमति जता सकते हैं। गौरतलब है कि निगरानी समिति गत 12 सितंबर को अपनी पहली बैठक में पर्याप्त सूचना के अभाव में कर्नाटक द्वारा छोड़े जाने वाले पानी की मात्रा पर किसी फैसले पर नहीं पहुंच सकी थी। इसलिए समिति ने इन राज्यों से 15 सितंबर तक जल संबन्धी आंकड़ो की सूचना देने को कहा था। शेखर ने कहा कि उन्होंने कई चीजों को ध्यान में रखकर फैसला लिया, जिनमें कर्नाटक में पेयजल और सिंचाई के लिए पानी की जरूरत तथा तमिलनाडु में गर्मियों की फसलों के लिए पानी की आवश्यकता कोे भी ध्यान में रखा गया हेै।
क्या था सुप्रीम कोर्ट का आदेश
उच्चतम न्यायालय ने पांच सितंबर को कर्नाटक से तमिलनाडु के किसानों की दुर्दशा को ध्यान में रखते हुए कर्नाटक को 10 दिन तक रोजाना 15000 क्यूसेक पानी छोड़ने को कहा था। सुप्रीम कोर्ट के इन अंतरिम आदेश के बाद कर्नाटक में विरोध प्रदर्शन शुरू हो गये थे।
20Sep-2016

सोमवार, 19 सितंबर 2016

राष्ट्रीय जल विज्ञान परियोजना की बढ़ी रफ्तार

जल सुधार की कई योजनाओं का समायोजन
ओ.पी. पाल. नई दिल्ली।
देश में जल संकट से निपटने के लिए केंद्र सरकार ने भूजल के महत्व को खत्म कर अंधाधुंध जल दोहन रोकने के लिए राष्ट्रीय जल विज्ञान परियोजना की गति को बढ़ा दी है, जिसके तहत विभिन्न योजनाओं का समायोजन करते हुए जल संबन्धी हरेक चुनौती से निपटने की दिशा में कई महत्वपूर्ण पहल शुरू की गई हैं।
केंद्रीय जल संसाधन मंत्रालय के अनुसार देश में जल की उपलब्धता 1869 अरब घन मीटर यानि बीसीएम है, जिमें 60 प्रतिशत यानि 1123 बीसीएम जल उपयोज्य है। इस उपयोज्य जल में 660 बीसीएम सतही जल और 433 बीसीएम भूजल शामिल है। लेकिन भूजल के गिरते स्तर और उसमें घुलते जहरीले तत्वों का कारण बने भूजल पर सिंचाई, ग्रामीण एवं शहरी पेयजल आवश्यकताओं के लिए भूजल के अंधाधुंध दोहन गंभीर चुनौती बनी हुई है। जल संकट और भूजल की इस चुनौती से निपटने के लिए राष्ट्रीय जल विज्ञान परियोजना को आगे बढ़ाने के साथ ही राष्ट्रीय भूजल सुधार कार्यक्रम, समग्र जल सुरक्षा को मनरेगा से जोड़ने, जल क्रांति और अन्य जल संबन्धी गतिविधियों मेें तेजी लाने का फैसेला किया है। जल संसाधन मंत्रालय की भूजल दोहन और प्रबंधन कार्य नीति के तहत जारी एक रिपोर्ट के मुताबिक देश में भूजल पर सिंचाई की आवश्यकता की 60 प्रतिशत, ग्रामीण पेयजल आवश्यकताओं की 85 प्रतिशत और शहरी जल आवश्यकताओं की 50 प्रतिशत निर्भरता है। पिछले चार दशकों में कुल सिंचाई क्षेत्र की वृद्धि में भूजल का योगदान 80 प्रतिशत से अधिक रहा है। यही नहीं जीडीपी में भी भूजल का करीब 9 प्रतिशत योगदान है। मंत्रालय के अनुसार वर्ष 1975 से खाद्य और फाइबर की पैदावार के लिए भारतीय कृषि विश्व में भूजल के सबसे बड़े उपभोक्ता के रूप सामने आई है। ऐसे में भूजल के स्थायित्व की स्थिाति भविष्य की बड़ी चुनौती है।
जल के पारंपरिक स्रोत लुप्त
मंत्रालय की रिपोर्ट में जल क्षेत्र से जुड़ी संस्था सहस्त्रधारा के एक अध्ययन का हवाला देते हुए कहा गया है कि भारत में हर साल 230 घन किलोलीटर पानी धरती से खींचा जाता है और इसका 60 प्रतिशत उपयोग खेती में सिंचाई के लिए और 40 प्रतिशत पेयजल के लिए होता है। एक तरफ जल के पारंपरिक स्रोत जैसे कुएं, पोखर आदि ग्रामीण इलाकों से खत्म होते जा रहे हैं और दूसरी ओर शहरों में कई सौ किलोमीटर दूर से पाइपलाइन से पानी पहुंचाया जा रहा है। नदियों के पानी के स्रोत खत्म हो रहे हैं, लेकिन उनका दोहन कम होने के बजाए बढ़ा है। यही नहीं इस रिपोर्ट में भूजल प्रबंधन की मुख्य चुनौतियों में तीव्र एवं अधिक भूजल की निकासी,कृषि के लिए जल का अकुशल उपयोग, विशेष रूप से कठोर चट्टानों में भूजल स्रोतों का स्थायित्व, अपर्याप्त विनियामक तंत्र, केंद्र एवं राज्य स्तर पर कर्मचारियों की कमी वाले भूजल संस्थान, भूजल के सामुदायिक प्रबंधन के लिए जल प्रयोक्ता संगठनों का न होना तथा भूजल गुणवत्ता में गिरावट का कारण का जिक्र किया गया है।
स्वच्छता मिशन का सहारा
रिपोर्ट में कहा गया है कि भूजल के नए और अब तक अप्रयुक्त स्रोतों का दोहन, भूजल स्रोतों के संवर्द्धन के लिए व्यापक पुनर्भरण,जल निकायों के स्थायित्व और पुनरूद्धार को सुनिश्चित करने के लिए जल निकायों के संरक्षण के माध्यम से वर्षा जल संचयन, चेक बांध, फार्म तालाब का निर्माण, प्राकृतिक वनों, पवित्र उपवनों, अक्षय खांचे का संरक्षण जैसे माध्यमों से जल का संचयन करना भी शामिल हैं। सरकार को राष्ट्रीय जल विज्ञान परियोयजना में तेजी लाने का मकसद भूजल के गिरते स्तर में सुधार और भूजल में घुलते जहर के कारण करोड़ो लोगों को जलजनित बीमारियों से राहत देना है। इसी लिए चौतरफा उढ़ती मांग के मद्देनजर सरकार स्वच्छ भारत अभियान के तहत फ्लोराइड, आर्सेनिक, नाईट्रेट व आयरन जैसे विषाक्त रसायन तत्वों से भूजल को मुक्त करके शुद्ध जल की योजना को बढ़ावा दे रही है।
19Sep-2016

सुप्रीम कोर्ट जाने की तैयारी में ओडिशा सरकार

महानदी जल विवाद:
पटनायक सरकार चाहती है न्यायाधिकरण का गठन
ओ.पी. पाल. नई दिल्ली।
छत्तीसगढ़ और ओडिशा के बीच महानदी के जल बंटवारे को सुलझाने के लिए केंद्र सरकार द्वारा लगातार किये जा रहे प्रयासों के बीच ओडिशा सरकार का रवैया नकारात्मक दिशा में नजर आ रहा है। एक दिन पहले ही केंद्र सरकार के साथ दोनों राज्यों के मुख्यमंत्री स्तर की हुई बैठक में आपसी सहमति से लिए गये कुछ निर्णय के बावजूद ओडिशा सरकार अब इस मुद्दे को सुप्रीम कोर्ट में ले जाने की तैयारी में है।
केंद्रीय जल संसाधन, नदी विकास एवं गंगा सरंक्षण मंत्री सुश्री उमा भारती की अध्यक्षता में शनिवार को महानदी मुद्दे का सुलझाने के लिए एक त्रिस्तरीय बैठक हुई थी, जिसमें छत्तीसगढ के मुख्यमंत्री डा. रमन सिंह ओर ओडिशा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक के अलावा केंद्र और दोनों राज्यों के संबन्धित अधिकारियों की आपसी सहमति से कई महत्वपूर्ण निर्णय लिये गये। हालांकि इस मुद्दे पर पहले से ओडिशा के अडियल रवैये की झलक इस बैठक में देखने को मिली। फिर भी सहमति के तहत केंद्रीय जल संसाधन मंत्री सुश्री उमा भारती ने महानदी पर दोनों राज्यों की निर्मित परियोजनाओं की जांच के लिए एक विशेषज्ञ समिति गठित करने का ऐलान किया, लेकिन ओडिशा सरकार इस मामले पर अंतर्राज्यीय जल विवाद अधिनियम-1956 के तहत एक न्यायाधिकरण के गठन पर जोर दे रहा है। दरअसल ओडिशा सरकार किन्ही राजनीतिक कारणों से छत्तीसगढ़ सरकार की महानदी पर चल रही परियोजनाओं पर आपत्तियां जताकर उन्हें बंद कराने पर अड़ा हुआ है। सूत्रों के अनुसार केंद्रीय हस्तक्षेप के तहत इस विवाद को सुलझाने के प्रयासों के विपरीत अब ओडिशा सरकार ने अंतर्राज्यीय जल विवाद अधिनियम का सहारा लेकर न्यायाधिकरण के गठन के लिए सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाने का फैसला किया है। सुप्रीम कोर्ट जाने के कारण में ओडिशा सरकार के सूत्रों की माने तो बैठक में नवीन पटनायक को छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री डा. रमन सिंह ने यह आश्वासन नहीं दिया कि छत्तीसगढ़ सरकार की महानदी पर चल रही निर्माण प्रक्रिया को बंद कर दिया जाएगा।
लगातार रोड़ा बना है ओडिशा
केंद्र के साथ बैठक के दौरान दोनों राज्यों की सहमति से लिए गये निर्णयों के बावजूद ओडिशा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक का इसी बात पर तो जोर रहा कि छत्तीसगढ़ सरकार को महानदी पर किसी भी निर्माण प्रक्रिया को बंद कर देना चाहिए। लेकिन छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री रमन सिंह के इस मुद्दे को सुलझाने के लिए संयुक्त नियंत्रण बोर्ड (जेसीबी) गठित करने पर सहमति जताने का प्रयास नहीं किया। ओडिशा सरकार ने राज्यों के हितों की रक्षा करने में जेसीबी के असक्षम करार देते हुए इस मुद्दे पर कानूनी विकल्प के तहत एक न्यायाधिकरण के गठन पर ज्यादा जोर दिया। जहां तक महानदी पर निर्मित परियोजनाओं की जांच का सवाल है के लिए गठित की जा रही विशेषज्ञ समिति पर पटनायक ने सहमति तो जताई लेकिन यहां तक कहा कि वह अपना रूख भुवनेश्वर जाने के बाद कैबिनेट की बैठक बुलाकर उसमें होने वाले फैसले के बाद बताएंगे।
असमंजस में है ओडिशा सरकार
महानदी मुद्दे को लेकर शायद ओडिशा सरकार असमंजस में है, जिसका कारण राजनीतिक माना जा रहा है। तभी तो ओडिशा सरकार का कहना है कि छत्तीसगढ़ सरकार चिल्का झील, भितरकणिका, सतकोसिया और गहिरमाता अभयारण्य जैसे अनोखे जैव विविधता वाले पर्यटक स्थलों के पर्यावरणीय दृष्टिकोण को नजरअंदाज करते हुए महानदी पर जल परियोजनाओं का निर्माण कर रही है। ऐसा आरोप नवीन पटनायक ने केंद्रीय मंत्री उमा भारती के साथ हुई त्रिपक्षीय बैठक में भी मंढा था। गौरतलब है कि दोनों राज्यों के मुख्य सचिव स्तर की जुलाई में केंद्रीय जल आयोग के अध्यक्ष की मौजूदगी में हुई बैठक में लिए गये निर्णय के मुताबिक दोनों राज्यों को एक-दूसरे राज्यों के साथ महानदी पर चल रही परियोजनाओं की जानकारी साझा करने पर सहमति बनने के बावजूद ओडिशा ने अभी तक एक भी जानकारी छत्त्तीसगढ़ सरकार को नहीं दी, जबकि छत्तीसगढ़ सरकार अब तक पूरी हुई परियोजनाओं की पूरी जानकारी ओडिशा राज्य के साथ साझा कर चुका है।
19Sep-2016

रविवार, 18 सितंबर 2016

महानदी मुद्दे पर छत्तीसगढ़ व ओडिशा का तकरार

परियोजनाओं की जांच करेगी विशेषज्ञ समिति
बैठक में फिर दिखा ओडिशा का अडियल रवैया
ओ.पी. पाल. नई दिल्ली।
छत्तीसगढ़ और ओडिशा के बीच महानदी विवाद का समाधान निकालने के लिए केंद्र सरकार के प्रयास में अभी भी ओडिशा सरकार का अडियल रवैया बाधक बनता नजर आ रहा है। यही कारण है कि केंद्र सरकार द्वारा दोनों राज्यों की बैठक में कोई ठोस नतीजा तो नहीं निकल सका। हालांकि दोनों राज्यों ने महानदी पर अभी तक पूरी हुई दोनों राज्यों की परियोजनाओं की जांच के लिए एक विशेषज्ञ समिति के गठन पर सहमति जरूर बनी है।
केंद्र सरकार पर महानदी के मुद्दे को लेकर छत्तीसगढ़ और ओडिशा के बीच बने तकरार को खत्म करने का दबाव बना हुआ है, तो केंद्रीय जल संसाधन, नदी विकास एवं गंगा सरंक्षण मंत्री सुश्री उमा भारती ने इसकी गंभीरता को देखते हुए दोनों राज्यों के मुख्यमंत्रियों की बैठक में मध्यस्थता की भूमिका निभाई। इस बैठक में खास बात यह नजर आई कि छत्तीसगढ़ सरकार केंद्र सरकार के हर सुझाव के लिए तैयार रहा, लेकिन ओडिशा सरकार ने छत्तीसगढ़ की महानदी पर परियोजनाओं पर आपत्तियां उठाने का राग अलापना बंद नहीं किया। दरअसल महानदी पर निर्मित छत्तीसगढ़ की परियोजनाओं पर ओडिशा सरकार आपत्ति जताते हुए इन्हें बंद करने की मांग कर रही है। जबकि छत्त्तीसगढ़ सरकार ने दावा किया है कि उसकी नयमित मानदंडो और नियमों पर आधारित 95 प्रतिशत से भी ज्यादा परियोजनाएं पूरी हो चुकी हैं और ज्यादातर हाइड्रो प्रोजेक्ट होने के कारण उन्हें बंद करने से बहुत बड़ा नुकसान सहन करना पड़ेगा। छत्तीसगढ़ ने इस मुद्दे पर संयुक्त निगरानी बोर्ड के गठन का प्रस्ताव दिया था, जिसमें पर्यावरणविद्, पूर्व न्यायाधीश व जल विज्ञान से जुडे विशेषज्ञ शामिल किए जाएंगे, लेकिन ओडिशा सहमत नहीं हुआ।
एक सप्ताह में रिपोर्ट देगी समिति
शनिवार को यहां नई दिल्ली में छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री डा. रमन सिंह ओर ओडिशा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक समेत दोनों राज्यों के संबन्धित मंत्रियों और अधिकारियों की बैठक में तर्क-वितर्क के बाद भी कोई नतीजा निकलता नजर नहीं आया। ऐसे में दोनों राज्यों की सहमति से केंद्रीय जल संसाधन मंत्री सुश्री उमा भारती ने महानदी पर दोनों राज्यों की परियोजनाओं की जांच करने के लिए केन्द्रीय जल संसाधन मंत्रालय के विशेष कार्यधिकारी डा. अमरजीत सिंह की अध्यक्षता में एक विशेषज्ञ समिति का गठन करने का निर्णय लिया। यह समिति एक सप्ताह में अपनी रिपोर्ट देगी। समिति इस बात की जांच करेगी कि महानदी पर छत्तीसगढ़ और ओडिशा की पूरी की गई परियोजनाएं मानदंडो व नियमानुसार हैं या नहीं। यह समिति इस बात का भी पता लगाएगी कि छत्तीसगढ़ व ओडिशा में किन किन परियोजनाओं के लिए विशेषज्ञ सलाहकार समिति का अनुमोदन नहीं था। इस काम के लिए दोनों राज्यों में दो अलग-अलग दल भेजे जाएंगे। इस रिपोर्ट आने के बाद केंद्र सरकार एक और समिति का गठन करेगी, जिसमें केंद्र के साथ दोनों राज्यों के प्रतिनिधि शामिल होंगे। इस प्रस्ताव के तहत सरकार का मकसद है कि महानदी के इस विवाद का सकारात्मक समाधान सामने लाया जा सके।
‘पानी प्यार के लिए है, तकरार के लिए नहीं’
बैठक के दौरान सुश्री उमा भारती ने छत्तीसगढ़ व ओडिशा के मुख्यमंत्रियों से आग्रह किया है कि वे पूरे देश के हित को ध्यान में रखते हुए एक दूसरे के राज्य की आवश्यकताओं का ध्यान रखें और उसके प्रति संवेदनशील हों। सुश्री उमा भारती ने कहा ‘पानी प्यार के लिए होता है, तकरार के लिए नहीं’। सुश्री उमा भारती ने छत्तीसगढ़ से आग्रह किया है कि वह एक सप्ताह के लिए अपने छह बैराजों का निर्माण कार्य रोक दे। उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि केन्द्रीय जल आयोग के पास छत्तीसगढ़ से सिंचाई योजनाओं का कोई भी मास्टर प्लान विचाराधीन नहीं है। उन्होंने यह भी बताया कि छत्तीसगढ़ में निमार्णाधीन बैराजों पर कार्य पिछले 10 वर्षों से चल रहा था, किन्तु ओडिशा ने इस पर इस वर्ष जून में आपत्ति दर्ज की।
बैठक में लिए गये महत्वपूर्ण निर्णय
महानदी के मुद्दे पर त्रिस्तरीय बैठक में लिए गये निर्णय के अनुसार केन्द्र सरकार एक नए गेज स्टेशन के निर्माण के जरिए यह सुनिश्चित करेगी कि हीराकुंड में एक बूंद भी पानी कम न हो, ताकि किसी भी राज्य खासकर ओडिशा के साथ कोई भी अन्याय न हो सके। छत्तीसगढ़ के अनुरोध और ओडिशा की सहमति पर छत्तीसगढ और ओडिशा की सीमा पर महानदी पर नया गेज स्टेशन स्थापित करने के लिए केन्द्रीय जल आयोग को निर्देश जारी किया गया है। केन्द्रीय जल विज्ञान संस्थान रूड़की को पूरी महानदी घाटी के विस्तृत अध्ययन का जिम्मा सौपा गया है। इस संस्थान की रिपोर्ट पर मंत्रालय द्वारा भविष्य में गठित की जाने वाली समिति या बोर्ड विस्तृत विचार करेगा। इस मुद्दे पर एक विशेषज्ञ समिति के गठन का उड़ीसा का सुझाव छत्तीसगढ़ ने मान लिया है।
ओडिशा ने नहीं दी जानकारी
इस विवाद की खास बात है कि दोनों राज्यों के मुख्य सचिव स्तर की जुलाई में केंद्रीय जल आयोग के अध्यक्ष की मौजूदगी में हुई बैठक में लिए गये निर्णय के मुताबिक दोनों राज्यों को एक-दूसरे राज्यों के साथ महानदी पर चल रही परियोजनाओं की जानकारी साझा करने पर सहमति बनने के बावजूद ओडिशा ने अभी तक एक भी जानकारी छत्त्तीसगढ़ सरकार को नहीं दी, जबकि छत्तीसगढ़ सरकार अब तक पूरी हुई परियोजनाओं की पूरी जानकारी ओडिशा राज्य के साथ साझा कर चुका है।
18Sep-2016

राग दरबार: टीपू की लोकप्रियता पर रार?

मुलायम सिंह को अखिलेश के ऐसे फैसले रास नहीं
देश की सियासत में वैसे तो दोस्ती या दुश्मनी कोई मायने नहीं रखती, लेकिन जब वंशवाद और परिवारवाद की परंपरा में दरार पैदा होने लगे तो उसे भरने के लिए घर में दीवारे खड़ी होना स्वाभाविक है। दरअसल मिशन-2017 को लेकर उत्तर प्रदेश में चल रही सियासी रणनीतियों के बीच सत्तासीन समाजवादी पार्टी और मुख्यमंत्री अखिलेश यादव की रणनीतियों की विचारधाराएं जब विपरीत दिशा में बढ़ने लगी तो पार्टी के मुखिया मुलायम सिंह यादव को कड़े फैसले लेने के लिए मजबूर तो होना पड़ा, वहीं अखिलेश सरकार के फैसलों में दखल देकर पार्टी में डेमेज कंट्रोल की सियासत को आगे बढ़ाने का प्रयास किया। भले ही मुलायम यह कहे कि उनके होते हुए पार्टी या परिवार में कोई फूट होने का सवाल ही पैदा नहीं हो सकता, लेकिन इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता कि सपा के परिवार के इस विवाद का फायदा यूपी चुनावी मिशन में जुटी भाजपा, कांग्रेस और बसपा जैसे दलों को मिलने की उम्मीद जरूर लगने लगी? सियासी गलियारों की चर्चा में सपा सरकार में चाचा-भतीजे के बीच खींचती इस दरार में डेमेज कंट्रोल करने के प्रयास में अखिलेश यादव को हटाकर भाई शिवपाल को पार्टी में यूपी की कमान देना मुलायम सिंह को शायद परिवारिक परिस्थियों को लेकर भारी पड़ता नजर आ रहा है। हालांकि यूपी के मामले में अध्यक्ष शिवपाल कोई बड़ा फैसला स्वतंत्र रूप से नहीं कर पाएंगे। चुनाव में संगठन से भी अधिक प्रभावी व निर्णायक कारक जनधारणा होता है और इस लिहाज से अखिलेश की छवि अपनी पार्टी के दूसरे बडे नेताओं पर कहीं भारी है। यह भी हकीकत हो सकती है कि लोग अखिलेश को सरल, शालीन व बेदाग छवि वाला नेता मानते हैं। राजनीतिकार मानते हैं कि एक मुख्यमंत्री के नाते टीपू सुल्तान के नाम से चर्चित अखिलेश यादव की बढ़ती लोकप्रियता चाचा शिवपाल यादव को पच नहीं पा रही थी, क्योंकि चुनावी दृष्टि से उन्होंने कड़े फैसले लेना शुरू कर चाचा को हलकान तो किया, लेकिन पिता मुलायम सिंह को अखिलेश के ऐसे फैसले रास नहीं आए, तभी तो पार्टी मुखिया होने के नाते उन्होंने अखिलेश के फैसले बदलने का ऐलान तक कर दिया। जबकि सपा के नजदीकी मानते हैं कि कौमी एकता दल के विलय का विरोध और दागी मंत्रियों की बरखास्तगी जैसे निर्णय, अखिलेश की लोकप्रियता बढाने वाले हैं। यदि लोकसभा चुनाव के बाद ही अखिलेश स्वतंत्र रूप से सरकार चलाने लगते और कुछ कड़े फैसले ले लेते तो फिर 2017 में उनकी सत्ता में वापसी की संभावना प्रबल होती।
जी का जंजाल बने सिद्धू
कुछ दिन पहले तक कांग्रेस और आप के नेता ये सोचकर खुश हो रहे थे कि पंजाब में नवजोत सिंह सिद्धू बीजेपी-अकाली गठबंधन को हराने के लिये तुरुफ का इक्का साबित होंगे पर अब तलवार का वार उल्टा पड़ता दिख रहा है। सिद्धू अब अकेले ही बीजेपी-अकाली, कांग्रेस और आप को चित करने का ऐलान कर रहे हैं। ये बात ठीक है कि अभी कोई उनको गम्भीरता से नहीं ले रहा। लगता भी यही है कि वे कोई बड़ा तीर अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव में नहीं मार पायेंगे, पर आप और कांग्रेस नेताओं को ये बात बखूबी पता है कि सिद्धू विपक्ष की वोटों में सेंध लगाकर सत्तापक्ष को फायदा पहुंचा सकते हैं। चर्चा है की सिद्धू को लेकर अभी आप के दरवाजे बंद नहीं हुए हैं। पता नवजोत सिंह सिद्धू को भी चुनाव में नई पार्टी बनाकर लड़ना आसान नहीं है। धनबल सिद्धू की सबसे बड़ी दिक्कत है, उनको कोई बड़ा फण्ड मिले तो बात बने पर कोई सेठ अपनी तिजौरी ऐसे नेता के लिए क्यों खोलेगा जो जीतने का माद्दा नहीं रखता हो। कहा जा रहा है कि ये पूर्व क्रिकेटर पूरी ताकत झोंकने के बाद भी मुश्किल से 3-4 सीट ही जीत जाए तो बड़ी बात होगी। फिलहाल तो सिद्धू अपने नए पैतरे से बीजेपी-अकाली गठबंधन को ही फायदा पहुंचाते दिख रहे हैं।
गोवा में बढ़ने लगी पर्रिकर की हाजिरी
गोवा में कुछ महीनों बाद होने वाले विधानसभा चुनाव को लेकर सभी राजनीतिक दलों ने कमर कस ली है। ऐसे में देश के रक्षा मंत्री भी कहां पीछे रहने वाले हैं। चुनावों से पहले ग्रासरूट लेवल पर पार्टी को जनादेश दिलाने के लिए वो अथक प्रयास करने में जुट गए हैं। हो भी क्यों न गोवा तीन दशक तक उनकी कर्मभूमि जो रही है। यहीं मुख्यमंत्री रहते हुए उनका केंद्र की राजनीति यानि राजधानी दिल्ली में आगमन हुआ और उन्हें रक्षा मंत्री की महत्वपूर्ण जिम्मेदारी संभालने का मौका मिला। उनकी गोवा यात्राओं को लेकर पहले जहां ये चर्चाएं होती थीं कि पर्रिकर प्रत्येक सप्ताहांत गोवा चले जाते हैं। वहीं अब यह कहा जाता है कि वो सप्ताहभर के दौरे पर गोवा कूच रहे हैं। ऐसे तो उनकी गोवा में हाजिरी बढ़ना लाजिमी है।
-ओ.पी. पाल, आनंद राणा व कविता जोशी
18Sep-2016

शनिवार, 17 सितंबर 2016

‘नामामि गंगे’ मिशन पर बढ़ा एक ओर कदम!

कृषि मंत्रालय कृषि व सिंचाई योजनाओं से करेगा मदद
ओ.पी. पाल. नई दिल्ली।
‘नमामि गंगे’ मिशन को तेजी से लागू करने के प्रयास में जुटी केंद्र सरकार ने एक और कदम आगे बढ़ाया, जिसमें कृषि सिंचाई और किसानों से संबन्धित योजनाओं के जरिए कृषि मंत्रालय मदद के लिए आगे आया है। इसमें गंगा किनारे जल सरंक्षण के लिए सूक्ष्म सिंचाई को बढ़ावा मिल सकेगा।
नई दिल्ली में शुक्रवार को केंद्रीय जल संसाधन, नदी विकास तथा गंगा संरक्षण मंत्रालय ने कृषि तथा किसान कल्याण मंत्रालय के साथ एक सहमति ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए गये हैं। इसके तहत ‘नमामि गंगे’ कार्यक्रम को तेजी से लागू करने में आ रही कृषि संबन्धी अड़चने दूर करने का प्रयास है। दरअसल कृषि मंत्रालय से सहमति ज्ञापन के तहत गंगा किनारे के गांवों में जैविक कृषि का विकास करने की योजना को बल देने के लिए परियोजना में प्रत्येक ग्राम पंचायत एक क्लस्टर का प्रतिनिधित्व करने का प्रस्ताव है। वहीं गंगा स्वच्छता के प्रति जागरूकता कार्यक्रमों, स्वयं सहायता समूहों तथा मोबाइल एप के माध्यम से जैविक खेती को प्रोत्साहन दिया जा सकेगा। इस करार के तहत कृषि मंत्रालय रसायन, उर्वरक और कीटनाशकों के संतुलित उपयोग के लिए जागरूकता पैदा करेगा, ताकि गंगा बेसिन में जल संरक्षण के लिए सूक्ष्म सिंचाई को बढ़ावा मिले और किसानों को लाभान्वित किया जा सके। यही नहीं कृषि मंत्रालय गंगा किनारे आजीविका से जुड़े पशुपालन आधारित प्राकृतिक खेती को भी बढ़ावा देगा। जल संसाधन मंत्रालय राज्य सरकारों तथा राज्य स्तरीय क्रियान्वयन एजेंसियों के बीच कृषि तथा किसान कल्याण मंत्रालय की विभिन्न गतिविधियों में जरूरी तालमेल सुनिश्चित करेगा। इस सहमति ज्ञापन की उपलब्धि और क्रियान्वयन की प्रगति की निगरानी प्रत्येक मंत्रालय के नोडल अधिकारियों की संचालन समिति द्वारा की जाएगी। तीन महीने में एक बार या आवश्यकता अनुसार समिति की बैठक होगी, जिसमें सहमति ज्ञापन की प्रगति की समीक्षा की जाएगी।
कई मंत्रालयों का समावेश
मोदी सरकार ने एकीकृत गंगा संरक्षण मिशन के रूप में ‘नमामि गंगे’ कार्यक्रम शुरू किया है, जिस पर 12,728 करोड़ रुपये की लागत आने का अनुमान है। वहीं इस कार्यक्रम के तहत 7272 करोड़ रुपये की लागत वाली कई परियोजनाएं शुरू कर दी गई है, इस करार के तहत उन्हें भी कवर किया जाएगा। इसका मकसद कार्य कुशलता बढ़ाकर सम्मिलित रूप से बेहतर तालमेल के माध्यम से पुराने और नये प्रयास एकीकृत करना है। गौरतलब है कि इससे पहले जल संसाधन मंत्रालय ने पहला समझौता ज्ञापन गत तीन दिसंबर 2015 को रेल मंत्रालय के साथ किया था, जिसके बाद ‘नमामि गंगे’ कार्यक्रम में भाग लेने वाले सात मंत्रालयों-शिपिंग, मानव संसाधन और विकास, ग्रामीण विकास, पर्यटन, आयुष, युवा मामले और खेल तथा पेय जल और स्वच्छता के साथ भी सहमति ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए गये और इस परियोजना को तेजी से लागू करने की कवायद जारी है।
कृषि मंत्रालय की ये होगी भूमिका
केंद्रीय जल संसाधन मंत्री सुश्री भारती ने कहा कि इस सहमति ज्ञापन पर हस्ताक्षर से कृषि और किसान कल्याण मंत्रालय से तालमेल के साथ ‘नमामि गंगे’ की विभिन्न परियोजनाओं का कारगर तरीके से कार्यान्वयन सुनिश्चित हो सकेगा। उन्होंने कहा कि ‘नमामि गंगे’ बहुविषयी कार्यक्रम होने के नाते इस परियोजना को अंजाम देने के लिए अन्य मंत्रालयों, राज्य सरकारों तथा स्थानीय समुदायों की भागीदारी अति आवश्यक है। सुश्री भारती ने उम्मीद जताई कि कृषि मंत्रालय ‘नमामि गंगे’ कार्यक्रम की सफलता में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा। कृषि और किसान कल्याण मंत्री राधा मोहन सिंह ने ‘नमामि गंगे’ कार्यक्रम को सफलतापूर्वक लागू करने में जल संसाधन मंत्रालय को सभी आवश्यक सहायता देने का भरोसा दिया। उन्होंने कहा कि ‘नमामि गंगे’ कार्यक्रम मोदी सरकार का प्रमुख कार्यक्रम है और उन्हें आशा है कि इस सहमति से इस परियोजना में तेजी लाने में मदद मिलेगी। इस समझौता ज्ञापन पर जल संसाधन मंत्रालय, नदी विकास तथा गंगा संरक्षण मंत्रलाय के राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन (एनएमसीजी) के अपर मिशन निदेशक हरी हर मिश्रा और कृषि तथा किसान कल्याण मंत्रालय के अपर आयुक्त डा. एस.एस. तोमर, ने केंद्रीय मंत्रियों सुश्री उमा भारती तथा राधा मोहन सिंह की मौजूदगी में हस्ताक्षर किए। यह सहमति ज्ञापन तीन वर्षों के लिए किया गया है और दोनों पक्षों की सहमति से इसकी अवधि बढ़ाई जा सकती है।
17Sep-2016

शुक्रवार, 16 सितंबर 2016

दाना मांझी वही रहेगा, पर सूरत बदलने को आतुर बहरीन

बहरीन ने दी आर्थिक मदद, ओड़ीशा हाथ मलता रही
ओ.पी. पाल. नई दिल्ली।
पिछले महीने ही आडिशा के आदिवासी दाना मांझी द्वारा अस्तपताल में एंबुलैंस की व्यवस्था न मिलने पर अपनी पत्नी के शव को कंधे पर लादकर दस किमी तक पैदल चलने की कहानी सात संमदर पार तक पहुंची। शायद तभी तो ओडिशा की सरकार के कानों में एक आदिवासी की बेबसी का किस्सा कोई रहम न कर पाया हो, लेकिन दूसरे मुल्क यानि बहरीन के सुल्तान का दिल ऐसे पसीजा कि उसने मांझी की आर्थिक मदद के लिए नौ लाख रुपये का चैक उसके हाथों में थमा दिया।
दरअसल बहरीन के भारत स्थित उच्चायुक्त तारिक मुबारक बिन-देन ने बहरीन के प्रधानमंत्री प्रिंस खलीफा बिन सलमान अल के निर्देश पर गुरुवार को ही एक विशेष विमान से ओडिशा राज्य के कालाहांडी जिले में आदिवासी दाना मांझी को नई दिल्ली के पांच सितारा होटल अशोक में बुलाकर करीब नौ लाख रुपये का चैक दाना मांझी के हाथों में थमाया। जिंदगी में पहली बार देश की राजधानी पहुंचे और वो भी हवाई जहाज में। इस बारे में हरिभूमि संवाददाता के एक सवाल पर मांझी ने कहा कि इससे पहले उसे यह भी मालूम नहीं था कि ओडिशा में कोई भुवनेश्वर शहर वाली राजधानी या नई दिल्ली का इतना बड़ा शहर होगा। इस बातचीत के दौरान दाना मांझी ने अपनी बेबसी और लाचारी की जो दास्तां सुनाई उसे सुनकर हर काई देश की व्यवस्थाओं खासकार आदिवासी समुदाय के उत्थान की योजनाओं पर सवालिया निशान लगाने को मजबूर हो जाएगा। दाना मांझी को अस्पताल की प्रशासनिक व्यवस्थाओं पर गुस्सा किये बिना जिस प्रकार से अपनी पत्नी के शव को कंधे पर लेकर दस किमी से ज्यादा पैदल चलने की कहानी देश में ही नहीं, बल्कि दुनियाभर की सुर्खियों में रही। मांझी ने कहा कि जब वह पत्नी के शव को लेकर चला तो रास्ते में मोबाइल फोन से फोटो खींचने वालों की कमी नहीं थी, लेकिन कोई भी उसकी लाचारी को समझने के बजाए तमाशबीन ही नजर आए। उन्होंने कहा कि दस किमी जाने के बाद उन्हें मीडियाकर्मियों ने रोक लिया और उससे इस बेबसी व लाचारी को ही नहीं समझा, बल्कि मीडियाकर्मियों ने पैसा इकठ्ठा करके उसके लिए एक निजी एंबुलैंस कराकर मदद की। हां कंधे पर पत्नी को लादकर पैदल चलने की लाचारी जब मीडिया में उजागर हुई तो स्थानीय दो विधायकों ने दस-दस हजार रुपये की मदद जरूर की और एक बाहरी संस्था ने चालीस हजार रुपये उसके परिवार को दिये। एक सवाल के जवाब में मांझी का कहना था कि ओडिशा सरकार की ओर से उसे कोई पैसा नहीं मिला और न ही उसे इस व्यवस्था के बारे में कुछ पता है।
बच्चों का बदलेंगे भविष्य
दाना मांझी का कहना है कि उसे जो आर्थिक मदद दी जा रही है, यदि यह उसकी पत्नी की मौत से पहले मिलती तो शायद तस्वीर कुछ और ही होती, लेकिन ईश्वर को ऐसा ही मंजूर था। इस घटना से सुर्खियों में आने पर बदलाव के एक सवाल पर मांझी ने कहा कि वह तो दाना मांझी ही रहेंगे, लेकिन उसकी तीन बेटियों की शिक्षा मिलने से जिंदगी जरूरत बदल सकती है, जिन्हें वह डाक्टर, इंजीनियर या अन्य सम्मानित पेशेवर बनाने का प्रयास करेंगे। मांझी ने कहा कि जो भी उसे या परिवार को आर्थिक मदद के रूप में पैसा मिल रहा है उसे वे फिक्स डिपोजिट करके बच्चों का भविष्य बनाने के लिए इस्तेमाल करना चाहते हैं।
दशा भी सुधारेगा बहरीन
बहरीन के भारत में उच्चायुक्त तारिक मुबारक बिन देन ने कहा कि उनके प्रधानमंत्री के निर्देश हैं कि दाना मांझी के परिवार की सूरत बदलनी चाहिए। यही नहीं बहरीन सरकार की योजना के तहत एक प्रतिनिधिमंडल जल्द ही कालाहांडी जाएगा और आदिवासियों के रहन सहन और उनके उत्थान करने की योजना तैयार करेगा। ऐसे में यह भी सहज-सामान्य नहीं कि यह घटना न केवल भारत के कल्याणकारी राज्य होने पर सवाल खड़ा करता है बल्कि इंसान में इंसानियत होने का शक भी पैदा करता है। यह सिर्फ दाना मांझी की पत्नी की मौत नहीं है बल्कि समूचे तंत्र बेशर्मी की पराकाष्ठा भी है।
16Sep-2016

तकनीक से होगा पहाड़ी सड़कों का रख-रखाव

अरुणाचल में राजमार्गो के क्षतिग्रस्त पर चिंता
हरिभूमि ब्यूरो. नई दिल्ली।
सड़क परियोजनाओं के तहत अरुणाचल प्रदेश में सैकड़ो किमी लंबी सड़कें और राजमार्ग का निर्माण पूरा होने के बावजूद भारी बारिश में भूस्खलनों के कारण 30-35 जगहों से क्षतिग्रस्त होने का मामला सामने आया है। ऐसे में केंद्र सरकार पहाड़ी इलाकों में राष्टÑीय राजमार्ग या अन्य सड़क निर्माण में बेहतर तकनीक का इस्तेमाल करने की योजना तैयार कर रही है।
केंद्रीय सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्रालय के अनुसार ऐसी योजनाओं अरुणाचल प्रदेश में जायजा लेन् गये मंत्रालय में राज्यमंत्री
मनसुख लाल मांडविया ने राष्ट्रीय राजमार्ग परियोजनाओं का निरीक्षण किया, तो राष्ट्रीय राजमार्ग 713 ए के पाप्पू-युपिआ-होज-पोतिन खंड और एनएच 13 के पोतिन-जिरो खंड के क्षतिग्रस्त होने के मामले पर विभाग के वरिष्ठ अधिकारियों के साथ चर्चा की। बताया गया कि राष्ट्रीय राजमार्ग 713 ए का 50 किलोमीटर लंबा पाप्पू-युपिआ-होज-पोतिन खंड अप्रैल के बाद से भारी बारिश और उसके परिणामस्वरूप होने वाले भूस्खलनों के कारण 30-35 जगहों से क्षतिग्रस्त हो गया है। राज्य के लोक निर्माण विभाग द्वारा सड़क को दो लेन का बनाने का कार्य इस साल मार्च में पूरा कर लिया गया और अब इसे रख-रखाव के उद्देश्य से मंत्रालय द्वारा अपने हाथ में लेने की आवश्यकता है। मांडविया ने कई क्षतिग्रस्त जगहों का निरीक्षण किया और राजमार्ग की हालत पर गंभीर चिंता व्यक्त की। उन्होंने संबंधित अधिकारियों को इन स्थलों पर तत्काल सुधारात्मक कदम उठाने के निर्देश दिए। उन्होंने यह भी भरोसा दिया कि मंत्रालय ऐसे इलाकों में शुरू होने वाली सड़क परियोजनाओं में बेहतर तकनीक के इस्तेमाल की योजना तैयार कर रहा है।
राज्य में बनी 653 किमी सड़के
केंद्रीय सड़क परिवहन राज्य मंत्री मनसुख लाल मांडविया ने देश के पूर्वोत्तर राज्यों में उच्चस्तरीय सड़क अवसंरचना का निर्माण करने की केन्द्र सरकार की प्रतिबद्धता पर बल दिया। उन्होंने कहा कि राज्य के लिए कुल अनुमोदित 2570 किलोमीटर सड़कों में से 653 किलोमीटर बनकर तैयार हो चुकी हैं और 1917 किलोमीटर निमार्णाधीन है। मंत्रालय के अनुसार सड़क के कुल लंबाई में से सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय 710 किलोमीटर हिस्से का निर्माण करेगा, राज्य पीडब्ल्यूडी 420 किलोमीटर, एनएचआईडीसीएल 722 किलोमीटर और सीमा सड़क संगठन 718 किलोमीटर हिस्से का निर्माण करेगा। राज्य में चालू परियोजनाएं के तहत 1985 करोड़ रुपये की लागत में 250 किलोमीटर नेचिपू-होज, 860 करोड़ रुपये की 20 किलोमीटर दिबांग-अलुबारी नदी पुल प्रणाली, 500 करोड़ रुपये की 75 किलोमीटर पासीघाट-पानगिन और 250 करोड़ रुपये लागत से 12 किलोमीटर ईटानगर-नाहरलगुन 4 लेन बनाने की परियोजना प्रस्तावित है।
16Sep-2016

बुधवार, 14 सितंबर 2016

एलएनजी जल्द बनेगा नौकाओं का ईंधन

पहले एलएनजी भंडारण हेतु 10 एकड़ भूमि देगा केंद्र
ओ.पी. पाल. नई दिल्ली।
देश में गंगा समेत 111 नदियों को राष्ट्रीय जलमार्ग में तब्दील करके जल परिवहन परियोजना से क्रांतिकारी बदलाव में जुटी केंद्र सरकार वाराणसी से हल्दिया तक गंगा में मालवाहकों जहाजों का ट्रायल पूरा कर चुकी है। इस परियोजना में एक और कदम आगे बढ़ाते हुए अब सरकार ने एलएनजी को नदियों में दौड़ने वाले जल वाहनों यानि नौकाओं का र्इंधन बनाने की तैयारी शुरू कर दी है, जिसके लिए कोलकाता पोर्ट ट्रस्ट के तहत हल्दिया गोदी परिसर के निकट एलएनजी के भंडारण के लिए 10 एकड़ भूमि मुहैया कराई जाएगी।
केंद्रीय जहाजरानी मंत्रालय के अनुसार सरकार ने माल लागत घटाने और नौकाओं के लिए ईंधन के रूप में एलएनजी का उपयोग करके प्रदूषण को कम करने के लिए एक रोडमैप तैयार किया है। जहाजरानी मंत्री नितिन गडकरी ने एनएनजी के भंडारण एवं अन्य सुविधाओं के लिए हल्दिया गोदी परिसर को एक सकारात्मक और सुरक्षित रूप में देखते हुए इस योजना को मंजूरी दी है। केंद्र सरकार ने कोलकाता पोर्ट ट्रस्ट के तहत हल्दिया गोदी परिसर में, हल्दिया तेल घाट नंबर-1 के आसपास स्थित क्षेत्र में 30 वर्ष की अवधि के लिए एलएनजी भंडारण सुविधाओं की स्थापना हेतु 10 एकड़ भूमि का निर्धारण किया है। इसमें निविदा एवं नीलामी के जरिए पाइपलाइन बिछाने और माल उतारने की सुविधा की अनुमति होगी। इस परियोजना को दिसंबर 2016 तक भूमि को पट्टे पर देने की अनुमति देकर भूमि लीज मॉडल के तहत शुरू किया जाएगा। एलएनजी सुविधाएं भूमि के आवंटन की तारीख से 24 महीने के अंदर विकसित हो जाने का अनुमान है। मंत्रालय का दावा है कि जल परिवहन में विकसित की गई इस महत्वपूर्ण योजना के तहत सरकार एलएनजी की सुविधा और ढुलाई अंतर्देशीय जलमार्ग के साथ-साथ उचित स्थानों पर स्थापित करने के लिए कदम उठा रही है। दुनिया के कुछ विकसित देशों में एलएनजी र्इंधन से संचालित नौकाओं का बेहतर परिणाम को देखते हुए भारत में भी एलएनजी को नौकाओं का र्इंधन बनाने का फैसला किया है। सरकार का मानना है कि एलएनजी भंडारण केन्द्र गंगा नदी के साथ-साथ बनाए जा सकते हैं,जिससे संभावित गैस उपभोक्ताओं को भी सुविधा होगी। सरकार एलएनजी ईंधन का इस्तेमाल सड़क परिवहन क्षेत्र में भी करने पर विचार कर रही है।
जल परिवहन को मिलेगा बढ़ावा
मंत्रालय के अनुसार जल परिवहन में एलएनजी के इस्तेमाल से 20 प्रतिशत र्इंधन की बचत होने का अनुमान लगाया गया है। वहीं इससे कार्बन डाइआॅक्साइड के उत्सर्जन में 20-25 प्रतिशत तथा नाइट्रोजन, सल्फर आॅक्साइड के उत्सर्जन में 90 प्रतिशत की कमी आने की संभावना है। मसलन एलएनजी को नौका ईंधन के रूप में पेश करने का प्रयास अंतर्देशीय जलमार्गों और तटीय शिपिंग को बढ़ावा देने के समग्र प्रयासों का हिस्सा है। सरकार का मानना है कि अंतर्देशीय जल परिवहन एक लागत प्रभावी और पर्यावरण के अनुकूल प्रणाली है, जिसे प्रोत्साहन देने के लिए पिछले दो सालों से महत्व दे रही सरकार ने जल मार्ग विकास के अधीन गंगा नदी में नौकायन की सुविधा के लिए टर्मिनलों और अन्य सुविधाओं का निर्माण पहले से ही कराना शुरू कर दिया है।
डीपीआर का इंतजार
जहाजरानी मंत्रालय इस योजना को सिरे चढ़ाने के लिए पेट्रोनेट एलएनजी लिमिटेड (पीएलएल) और भारतीय अंतर्देशीय जलमार्ग प्राधिकरण (आईडब्ल्यूएआई) के बीच मंथन कर रहा है। यही नहीं इसके लिए पीएलएल हल्दिया, साहिबगंज, पटना और गाजीपुर में एलएनजी सुविधाएं स्थापित करने के लिए विस्तृत व्यवहार्य रिपोर्ट (डीपीआर)तैयार करने की प्रक्रिया में जुटा है। मंत्रालय ने डीपीआर में पीएलएल से नौकाओं के ईंधन के लिए एलएनजी की ढुलाई के लिए आवश्यक बुनियादी ढांचा सहायता का ब्यौरा तैयार करने का भी अनुरोध किया था, ताकि अपेक्षित गतिविधियां अर्जित करने के लिए लक्ष्य निर्दिष्ट करने में आसानी हो सके। इस रिपोर्ट में गोवा और महाराष्ट्र के जलमार्ग में एलएनजी नौकाओं की शुरूआत करने की संभावनाओं को तलाशने का भी अनुरोध सरकार कर चुकी है। यह रिपोर्ट इस वर्ष गत अप्रैल में मुम्बई के समुद्रीय भारत सम्मेलन के दौरान आईडब्ल्यूएआई के साथ किये गये एक करार के अनुसार तैयार की जा रही है, जिसका मंत्रालय को इंतजार है।
14Sep-2016