शुक्रवार, 16 सितंबर 2016

दाना मांझी वही रहेगा, पर सूरत बदलने को आतुर बहरीन

बहरीन ने दी आर्थिक मदद, ओड़ीशा हाथ मलता रही
ओ.पी. पाल. नई दिल्ली।
पिछले महीने ही आडिशा के आदिवासी दाना मांझी द्वारा अस्तपताल में एंबुलैंस की व्यवस्था न मिलने पर अपनी पत्नी के शव को कंधे पर लादकर दस किमी तक पैदल चलने की कहानी सात संमदर पार तक पहुंची। शायद तभी तो ओडिशा की सरकार के कानों में एक आदिवासी की बेबसी का किस्सा कोई रहम न कर पाया हो, लेकिन दूसरे मुल्क यानि बहरीन के सुल्तान का दिल ऐसे पसीजा कि उसने मांझी की आर्थिक मदद के लिए नौ लाख रुपये का चैक उसके हाथों में थमा दिया।
दरअसल बहरीन के भारत स्थित उच्चायुक्त तारिक मुबारक बिन-देन ने बहरीन के प्रधानमंत्री प्रिंस खलीफा बिन सलमान अल के निर्देश पर गुरुवार को ही एक विशेष विमान से ओडिशा राज्य के कालाहांडी जिले में आदिवासी दाना मांझी को नई दिल्ली के पांच सितारा होटल अशोक में बुलाकर करीब नौ लाख रुपये का चैक दाना मांझी के हाथों में थमाया। जिंदगी में पहली बार देश की राजधानी पहुंचे और वो भी हवाई जहाज में। इस बारे में हरिभूमि संवाददाता के एक सवाल पर मांझी ने कहा कि इससे पहले उसे यह भी मालूम नहीं था कि ओडिशा में कोई भुवनेश्वर शहर वाली राजधानी या नई दिल्ली का इतना बड़ा शहर होगा। इस बातचीत के दौरान दाना मांझी ने अपनी बेबसी और लाचारी की जो दास्तां सुनाई उसे सुनकर हर काई देश की व्यवस्थाओं खासकार आदिवासी समुदाय के उत्थान की योजनाओं पर सवालिया निशान लगाने को मजबूर हो जाएगा। दाना मांझी को अस्पताल की प्रशासनिक व्यवस्थाओं पर गुस्सा किये बिना जिस प्रकार से अपनी पत्नी के शव को कंधे पर लेकर दस किमी से ज्यादा पैदल चलने की कहानी देश में ही नहीं, बल्कि दुनियाभर की सुर्खियों में रही। मांझी ने कहा कि जब वह पत्नी के शव को लेकर चला तो रास्ते में मोबाइल फोन से फोटो खींचने वालों की कमी नहीं थी, लेकिन कोई भी उसकी लाचारी को समझने के बजाए तमाशबीन ही नजर आए। उन्होंने कहा कि दस किमी जाने के बाद उन्हें मीडियाकर्मियों ने रोक लिया और उससे इस बेबसी व लाचारी को ही नहीं समझा, बल्कि मीडियाकर्मियों ने पैसा इकठ्ठा करके उसके लिए एक निजी एंबुलैंस कराकर मदद की। हां कंधे पर पत्नी को लादकर पैदल चलने की लाचारी जब मीडिया में उजागर हुई तो स्थानीय दो विधायकों ने दस-दस हजार रुपये की मदद जरूर की और एक बाहरी संस्था ने चालीस हजार रुपये उसके परिवार को दिये। एक सवाल के जवाब में मांझी का कहना था कि ओडिशा सरकार की ओर से उसे कोई पैसा नहीं मिला और न ही उसे इस व्यवस्था के बारे में कुछ पता है।
बच्चों का बदलेंगे भविष्य
दाना मांझी का कहना है कि उसे जो आर्थिक मदद दी जा रही है, यदि यह उसकी पत्नी की मौत से पहले मिलती तो शायद तस्वीर कुछ और ही होती, लेकिन ईश्वर को ऐसा ही मंजूर था। इस घटना से सुर्खियों में आने पर बदलाव के एक सवाल पर मांझी ने कहा कि वह तो दाना मांझी ही रहेंगे, लेकिन उसकी तीन बेटियों की शिक्षा मिलने से जिंदगी जरूरत बदल सकती है, जिन्हें वह डाक्टर, इंजीनियर या अन्य सम्मानित पेशेवर बनाने का प्रयास करेंगे। मांझी ने कहा कि जो भी उसे या परिवार को आर्थिक मदद के रूप में पैसा मिल रहा है उसे वे फिक्स डिपोजिट करके बच्चों का भविष्य बनाने के लिए इस्तेमाल करना चाहते हैं।
दशा भी सुधारेगा बहरीन
बहरीन के भारत में उच्चायुक्त तारिक मुबारक बिन देन ने कहा कि उनके प्रधानमंत्री के निर्देश हैं कि दाना मांझी के परिवार की सूरत बदलनी चाहिए। यही नहीं बहरीन सरकार की योजना के तहत एक प्रतिनिधिमंडल जल्द ही कालाहांडी जाएगा और आदिवासियों के रहन सहन और उनके उत्थान करने की योजना तैयार करेगा। ऐसे में यह भी सहज-सामान्य नहीं कि यह घटना न केवल भारत के कल्याणकारी राज्य होने पर सवाल खड़ा करता है बल्कि इंसान में इंसानियत होने का शक भी पैदा करता है। यह सिर्फ दाना मांझी की पत्नी की मौत नहीं है बल्कि समूचे तंत्र बेशर्मी की पराकाष्ठा भी है।
16Sep-2016

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