शुक्रवार, 23 सितंबर 2016

जीएसटी के दायरे में आ सकते हैं पेट्रोलियम उत्पाद !

जीएसटी परिषद की पहली बैठक में शुरू हुआ मंथन
ओ.पी. पाल. नई दिल्ली।
देश में जीएसटी कानून लागू करने की तैयारी में जुटी केंद्र सरकार द्वारा अधिसूचित जीएसटी परिषद की पहली बैठक में करों के निर्धारण पर मंथन शुरू हो चुका है। सरकार की ओर से ऐसे संकेत मिले हैं कि क्रूड समेत पेट्रोलियम और कुछ इंटरमीडिएट उत्पादों को भी जीएसटी के दायरे में लाया जा सकता है।
संसद सत्र के शीतकालीन सत्र से केेंद्र सरकार जीएसटी विधेयक को पारित कराने के प्रयास में है। इसके लिए गठित जीएसटी परिषद को 22 नवंबर तक जीएसटी कर की दर, छूट पाने वाली वस्तुओं और जीएसटी लागू होने की कारोबार सीमा तय करने जैसे अहम मुद्दों पर फैसला करना है। गुरुवार को केंद्रीय वित्त मंत्री अरुण जेटली की अध्यक्षता में यहां विज्ञान भवन में देर शाम शुरू हुई जीएसटी परिषद की दो दिवसीय बैठक में जीएसटी में कर संबन्धी सभी पहलुओं पर मंथन शुरू हो गया है। सूत्रों के अनुसार इस बैठक में परिषद द्वारा पेट्रोलियम उत्पादों को भी जीएसटी के दायरे में लाने के प्रस्ताव पर भी चर्चा हो सकती है। हालांकि सरकार पेट्रोलियम उत्पादों पर मामूली कर लगाने के ही प्रस्ताव पर ही विचार कर रही है। इसकी वजह में सरकार के सूत्रों का मानना है कि क्रूड समेत पेट्रोलियम और कुछ इंटरमीडिएट उत्पादों को भी जीएसटी के दायरे में लाने से जीएसटी की कमियों को दूर करने में मदद मिलेगी और करों का महंगाई पर असर कम किया जा सकेगा। इसके लिए परिषद की बैठक में सरकार को राज्यों को भी इस बात से आश्वस्त करने का प्रयास करेगी कि पेट्रोलियम उत्पादों पर मामूली कर लगाने के क्या-क्या फायदे होंगे। इसके लिए राज्यों को लोकल सेल टैक्स लगाने की छूट दी जा सकती है। पेट्रोलियम उत्पादों को जीएसटी के दायरे में लाया जाएगा या नहीं इसका अंतिम फैसला जीएसटी परिषद को ही करना है। सरकार का लक्ष्य जीएसटी कानून को आगामी एक अप्रैल 2017 से लागू करने का है।
राज्यों को राजस्व की चिंता
सूत्रों की माने तो राज्य पेट्रोलियम उत्पादों पर लगने वाले करों की प्रणाली में बदलाव के पक्ष में नहीं है। इसके लिए पहले भी राज्यों के वित्त मंत्री तर्क दे चुके हैं कि इन उत्पादों पर जीएसटी कर लगाने से राज्यों के लिए जरूरत पड़ने पर उनके लिए तेजी से राजस्व जुटाने का तरीका कठिन हो जाएगा। वहीं आर्थिक जानकार बिपिन सपरा का कहना है कि यदि पेट्रोलियम उत्पादों पर जीएसटी दर के हिसाब से कर लगाया जाता है तो उत्पादों के दामों में कमी आ सकती है, जबकि इन उत्पादों पर स्टेट जीएसटी का कर अतिरिक्त होगा। उनका मानना है कि इससे पावर, एयरलाइंस जैसे क्षेत्र को भी कुछ प्रोत्साहन मिलेगा, जिसके कारण ऐसी सेवाओं की कीमतों में कमी आ सकती है और उपभोक्ताओं को राहत मिल सकती है।
कर के आधार का तर्क
देश में जीएसटी कानून लागू करने के प्रयासों के बीच ही केंद्र सरकार से राज्य सरकारें मांग कर रही हैं कि उन्हें 1.5 करोड़ के टर्नओवर वाली कंपनियों के मामले में टैक्स लगाने का कानूनी और प्रशासनिक रुप से अधिकार दिया जाए। ऐसी मांग जीएसटी के लिए राज्य सरकारों की उच्चाधिकार समिति में राज्य के वित्त मंत्रियों द्वारा केंद्रीय वित्त मंत्री अरुण जेटली के समक्ष अपना रूख पहले ही साफ कर चुके हैं। जबकि केंद्र सरकार ने राज्य सरकारों के सामने प्रस्ताव रखा है कि केंद्र को ही जीएसटी कर लगाने का अधिकार होना चाहिए, जिसमें से केंद्र का हिस्सा राज्यों द्वारा दे दिया जाएगा। इसके विकल्प के लिए संविधान संशोधन विधेयक में प्रावधान किया गया है कि केंद्र सरकार इस कर से मिलने वाले राजस्व को बाद में राज्यों को बांट देंगे। बहरहाल जीएसटी संबन्धी इन सभी पहलुओं का अंतिम निर्णय अब जीएसटी परिषद को ही करना है।
जीएसटी पर जारी हुआ एफएक्यू
अगले साल अप्रैल से जीएसटी को लागू करने की तैयारियों के बीच ही जीएसटी परिषद की बैठक से पहले केंद्रीय वित्त मंत्री अरुण जेटली ने केंद्रीय उत्पाद एवं सीमा शुल्क बोर्ड के लगातार पूछे जा रहे सवालों के जवाब में एफएक्यू यानि अक्सर पूछे जाने वाले सवालों का जवाब जारी किया है, जिसमें ई-कामर्स कंपनियों तथा एप आधारित टैक्सी सेवा देने वाली कंपनियों पर कर का ब्योरा भी शामिल है। जेटली द्वारा जारी 268 पृष्ठ के इस एफएक्यू में 24 विषयों पर करीब 500 सवालों का जवाब दिया गया है। इसमें इनमें पंजीकरण, मूल्यांकन और भुगतान, दायरा और आपूर्ति का समय, रिफंड, जब्ती तथा गिरμतारी से संबंधित सवालों के जवाब दिये गये हैं।
23Sep-2016

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