रविवार, 11 सितंबर 2016

राग दरबार: कांग्रेस को रास नहीं आई खाट...

कांग्रेस के पहले ही मजमे में खड़ी हो गयी खाट
देश की सियासत में पीके का आइडिया कांग्रेस के सिर चढ़कर बोल रहा है, जिसके आइडिया ने नरेन्द्र मोदी को पीएम की कुर्सी पर बैठा दिया। अब उत्तर प्रदेश में खोई हुई सियासी जमीन को पाने के लिए कांग्रेस पीके के आइडिया पर सवार है। लेकिन किसी ने सच ही कहा है कि नकल करने के लिए अकल की ज्यादा जरूरत होती है। यह कहावत पीके के आडिया पर मोदी की लोकसभा चुनाव में चाय पर चर्चा का जवाब देने के लिए राहुल की खाट पंचायत पर सटीक बैठती है। लेकिन यह कया पीके? ऐसा आइडिया कि कांग्रेस के पहले ही मजमे में खाट खड़ी हो गयी और देखते-देखते यह खाट आदमी के सिर पर ही सवार नहीं हुई, बल्कि कांग्रेस युवराज के साथ खटिया लूट सोशल मीडिया और खबरिया चैनलो के बुद्धू बक्से पर छा गई। दरअसल पीके के इस आइडिया की स्क्रिप्ट के मुताबिक पदयात्रा पर निकले कांगे्रस युवराज राहुल के पॉव में छाले पड़ने और मुखमंडल पर श्रमबिंदु झलकने की भावुक कथा का जिक्र होना था, लेकिन ऐसा हो न पाया और राहुल की पहली ही खाट पंचायत में खाट की किस्मत कांग्रेस पर भारी पड़ती नजर आई। वैसे खाट होती ही है हरजाई। दुनियाभर की यही दास्तां यही है कि विधाता भी नहीं जान पाते कि कब किसकी खाट खडी हो जाए। क्योंकि राजनीति से हट कर भी खाट कथा अनंत है। राजनीतिक गलियारों में इस खटिया लूट को लेकर चर्चाओं का सामना करें तो किसी बड़े नेता के खाट पर खडे होकर भाषण देते देखना बहुतों की जिंदगी में नया अनुभव हो सकता है, लेकिन गांव की चौपालों व पंचायतों में खाटों पर बैठकर बौद्धिक और न्याय के फैसले होते रहे हैं। ग्रामीण परंपरा के इतर राहुल मजबूर नहीं थे और न ही खाट की आदत है। फिर भी अभी वक्त का इंतजार है कि किसकी खाट सरकेगी और किसका खटोला कहां बिछेगा..?
बदली दाता-पाता की परिभाषा
मोदी सरकार ने देश की व्यवस्था में ऐसा बदलाव करने के इरादे से योजनाओं को अमलीजामा पहनाने का इरादा किया हुआ है,जिससे भारत विश्वगुरु के रूप में विकसित हो और दुनिया की नजरे इस लोकतांत्रिक देश की ओर आकर्षित हो। देश में कई योजनाओं से दुनिया मोदी की नीतियों की कायल होती भी नजर आ रही है। ऐसी ही योजनाओं में नमामि गंगे मिशन और देश में जल संकट को दूर करके खासकर किसानों के हितों को साधने वाली सिंचाई परियोजनाओं को तेजी से आगे बढ़ाने में दिलचस्पी रख रही केंद्रीय जल संसाधन मंत्री सुश्री उमा भारती ने हाल ही में नाबार्ड के साथ महत्वपूर्ण करार किया है, जिसके सहारे प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना समेत तमाम सिंचाई योजनाओं को अमलीजामा पहनाया जाना शुरू हो गया है। इस मौके पर सुश्री उमा भारती ने मीडिया से रूबरू होते हुए कहा कि वे उनसे ऐसा सवाल न पूछे कि इन परियोजनाओं के लिए पैसा कहां से आ रहा है, क्योंकि मोदी सरकार ने पुराने जमाने में राजा तथा प्रजा की परिभाषा बदलना शुरू कर दिया है, जिसमें राजा को दाता और प्रजा को पाता के रूप में जाना जाता था। उन्होंने कहा कि इस बदलते देश में सरकार पाता और जनता दाता बनने लगी है, जिसमें सरकार जनता के साथ हाथ फैलाकर मदद मांग रही है और जनांदोलन के साथ ही योजनाओं को आगे बढ़ाया जा रहा है। उमा का मत है कि देश बदल रहा है,जिसमें बदला है दाता-पाता...?
सुचिता की परिभाषा माने कौन...
राजनीति और इसमें उतरने वाले राजनेता शुरूआत में इसमें शामिल होने पर जनता के सामने ईमानदारी, नैतिकता, ऊंचे आदर्शों और सुचिता का किसी भी कीमत पर पालन करने की दुहाई देते हुए नजर आते हैं। लेकिन एक बार राजनैतिक पद पर पहुंचने के बाद वो कभी उनके द्वारा बेशकीमती कहे जाने वाले इन्हीं शब्दों को भूल जाते हैं या यूं कहें कि उसे जानबूझकर भुला देना चाहते हैं। लेकिन जैसे ही इन्हें मौका मिलता है, सुचिता के नाम पर दूसरे को घेरने में देर नहीं लगाते। ऐसे महानुभावकेंद्र व राज्य स्तर पर चारों ओर देखने को मिल जाते हैं। लेकिन इसमें बड़ा सवाल यही है कि जिस सुचिता की इतनी चर्चा-परिचर्चा होती है, उसे हकीकत में मानने वाला कोई नहीं है।
-ओ.पी. पाल व कविता जोशी
11Sep-2016

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