सोमवार, 19 सितंबर 2016

राष्ट्रीय जल विज्ञान परियोजना की बढ़ी रफ्तार

जल सुधार की कई योजनाओं का समायोजन
ओ.पी. पाल. नई दिल्ली।
देश में जल संकट से निपटने के लिए केंद्र सरकार ने भूजल के महत्व को खत्म कर अंधाधुंध जल दोहन रोकने के लिए राष्ट्रीय जल विज्ञान परियोजना की गति को बढ़ा दी है, जिसके तहत विभिन्न योजनाओं का समायोजन करते हुए जल संबन्धी हरेक चुनौती से निपटने की दिशा में कई महत्वपूर्ण पहल शुरू की गई हैं।
केंद्रीय जल संसाधन मंत्रालय के अनुसार देश में जल की उपलब्धता 1869 अरब घन मीटर यानि बीसीएम है, जिमें 60 प्रतिशत यानि 1123 बीसीएम जल उपयोज्य है। इस उपयोज्य जल में 660 बीसीएम सतही जल और 433 बीसीएम भूजल शामिल है। लेकिन भूजल के गिरते स्तर और उसमें घुलते जहरीले तत्वों का कारण बने भूजल पर सिंचाई, ग्रामीण एवं शहरी पेयजल आवश्यकताओं के लिए भूजल के अंधाधुंध दोहन गंभीर चुनौती बनी हुई है। जल संकट और भूजल की इस चुनौती से निपटने के लिए राष्ट्रीय जल विज्ञान परियोजना को आगे बढ़ाने के साथ ही राष्ट्रीय भूजल सुधार कार्यक्रम, समग्र जल सुरक्षा को मनरेगा से जोड़ने, जल क्रांति और अन्य जल संबन्धी गतिविधियों मेें तेजी लाने का फैसेला किया है। जल संसाधन मंत्रालय की भूजल दोहन और प्रबंधन कार्य नीति के तहत जारी एक रिपोर्ट के मुताबिक देश में भूजल पर सिंचाई की आवश्यकता की 60 प्रतिशत, ग्रामीण पेयजल आवश्यकताओं की 85 प्रतिशत और शहरी जल आवश्यकताओं की 50 प्रतिशत निर्भरता है। पिछले चार दशकों में कुल सिंचाई क्षेत्र की वृद्धि में भूजल का योगदान 80 प्रतिशत से अधिक रहा है। यही नहीं जीडीपी में भी भूजल का करीब 9 प्रतिशत योगदान है। मंत्रालय के अनुसार वर्ष 1975 से खाद्य और फाइबर की पैदावार के लिए भारतीय कृषि विश्व में भूजल के सबसे बड़े उपभोक्ता के रूप सामने आई है। ऐसे में भूजल के स्थायित्व की स्थिाति भविष्य की बड़ी चुनौती है।
जल के पारंपरिक स्रोत लुप्त
मंत्रालय की रिपोर्ट में जल क्षेत्र से जुड़ी संस्था सहस्त्रधारा के एक अध्ययन का हवाला देते हुए कहा गया है कि भारत में हर साल 230 घन किलोलीटर पानी धरती से खींचा जाता है और इसका 60 प्रतिशत उपयोग खेती में सिंचाई के लिए और 40 प्रतिशत पेयजल के लिए होता है। एक तरफ जल के पारंपरिक स्रोत जैसे कुएं, पोखर आदि ग्रामीण इलाकों से खत्म होते जा रहे हैं और दूसरी ओर शहरों में कई सौ किलोमीटर दूर से पाइपलाइन से पानी पहुंचाया जा रहा है। नदियों के पानी के स्रोत खत्म हो रहे हैं, लेकिन उनका दोहन कम होने के बजाए बढ़ा है। यही नहीं इस रिपोर्ट में भूजल प्रबंधन की मुख्य चुनौतियों में तीव्र एवं अधिक भूजल की निकासी,कृषि के लिए जल का अकुशल उपयोग, विशेष रूप से कठोर चट्टानों में भूजल स्रोतों का स्थायित्व, अपर्याप्त विनियामक तंत्र, केंद्र एवं राज्य स्तर पर कर्मचारियों की कमी वाले भूजल संस्थान, भूजल के सामुदायिक प्रबंधन के लिए जल प्रयोक्ता संगठनों का न होना तथा भूजल गुणवत्ता में गिरावट का कारण का जिक्र किया गया है।
स्वच्छता मिशन का सहारा
रिपोर्ट में कहा गया है कि भूजल के नए और अब तक अप्रयुक्त स्रोतों का दोहन, भूजल स्रोतों के संवर्द्धन के लिए व्यापक पुनर्भरण,जल निकायों के स्थायित्व और पुनरूद्धार को सुनिश्चित करने के लिए जल निकायों के संरक्षण के माध्यम से वर्षा जल संचयन, चेक बांध, फार्म तालाब का निर्माण, प्राकृतिक वनों, पवित्र उपवनों, अक्षय खांचे का संरक्षण जैसे माध्यमों से जल का संचयन करना भी शामिल हैं। सरकार को राष्ट्रीय जल विज्ञान परियोयजना में तेजी लाने का मकसद भूजल के गिरते स्तर में सुधार और भूजल में घुलते जहर के कारण करोड़ो लोगों को जलजनित बीमारियों से राहत देना है। इसी लिए चौतरफा उढ़ती मांग के मद्देनजर सरकार स्वच्छ भारत अभियान के तहत फ्लोराइड, आर्सेनिक, नाईट्रेट व आयरन जैसे विषाक्त रसायन तत्वों से भूजल को मुक्त करके शुद्ध जल की योजना को बढ़ावा दे रही है।
19Sep-2016

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