सोमवार, 12 सितंबर 2016

पीएफ की ब्याज दरों पर चलेगी कैंची!

सीबीटी के फैसले पर सहमत नहीं सरकार
ओ.पी. पाल. नई दिल्ली।
केंद्र सरकार जहां कर्मचारियों को सातवें वेतनमान का तोहफा दे चुकी है, वहीं पिछले साल पीएफ की रकम पर दी गई ब्याज दरों में भी कटौती करने पर विचार कर रही है। इसका कारण माना जा रहा है कि केंद्र सरकार ईपीएफओ के केंद्रीय न्यासी बोर्ड (सीबीटी) के पीएफ ब्याज दर बढ़ाने के फैसले से सहमत नहीं है।
सूत्रों के अनुसार कर्मचारी भविष्य निधि संगठन (ईपीएफओ) ने वित्त मंत्रालय द्वारा 8.7 प्रतिशत ब्याजदर की पुष्टि करने के बावजूद पिछले साल यानि 2015-16 में ईपीएफ पर 8.8 फीसदी के हिसाब से ब्याज दिया है। सरकार का कहना है कि ईपीएफओ ने मौजूदा वित्त वर्ष में होने वाली आय का अब तक कोई अनुमान नहीं लगाया है। शायद इसलिए सरकार अब मौजूदा वित्तीय वर्ष में पीएफ की इन ब्याज दरों पर कैंची चलाने की तैयारी में है। बताया जा रहा है कि वित्त मंत्रालय और श्रम मंत्रालय दोनों ही पीएफ की रकम पर दी गई 8.8 प्रतिशत के बजाए 8.6 प्रतिशत की दर रखने पर सहमति बना चुके हैं। यानि अब ईपीएफओ के चार करोड़ से भी ज्यादा भविष्य निधि के अंशधारकों की पीएफ जमाओं पर 8.6 प्रतिशत की दर का ब्याज लागू किया जा सकता है।
वित्त एवं श्रम मंत्रालय में बनी सहमति
सूत्रों की माने तो वित्त मंत्रालय की ओर से श्रम मंत्रालय से कहा गया है कि वह ईपीएफ की ब्याज दर को उसके द्वारा संचालित अन्य बचत योजनाओं के समकक्ष ही रखे। दोनों मंत्रालयों के बीच इस साल पीएफ की ब्याज दर को कम करते हुए 8.6 प्रतिशत रखने पर सहमति बनी है। वित्त मंत्रालय चाहता है कि श्रम मंत्रालय ईपीएफ पर ब्याज दर को अपने अधीन आने वाली अन्य लघु बचत योजनाओं के हिसाब से रखे। सूत्रों के अनुसार ईपीएफओ का केंद्रीय न्यासी बोर्ड (सीबीटी) आय अनुमान के आधार पर ही ब्याज दर के बारे में फैसला करता है, जिसे बोर्ड की वित्त, आॅडिट व निवेश समिति की मंजूरी होना जरूरी है। सीबीटी द्वारा तय ब्याज दर पर ही वित्त मंत्रालय अपनी स्वीकृति देकर एक अधिसूचना जारी करता है।
श्रमिक संगठनों का विरोध
सूत्रों के अनुसार वित्त मंत्रालय चाहता है कि पीपीएफ जैसी उसकी लघु बचत योजनाओं के लिए ब्याज दर को घटाकर 8.6 प्रतिशत पर लाया जाए, क्योंकि सरकारी प्रतिभूतियों व अन्य बचत पत्रों पर आय घट रही है। दूसरी ओर श्रमिक संगठनों की राय है कि वित्त मंत्रालय को सीबीटी के फैसले का अतिक्रमण नहीं करना चाहिए, क्योंकि ईपीएफ कमर्चारियों का पैसा है और उन्हें अपने कोष के निवेश से अर्जित आय से ही ब्याज मिलता है।
सरकार का तर्क
केंद्रीय वित्त मंत्रालय के सूत्रों का कहना है कि वित्त मंत्रालय की इस बात पर सहमति है कि यह ब्याज दर ईपीएफओ की आय से अधिक नहीं होनी चाहिए। ईपीएफओ को यह ब्याज अपने ही संसाधनों से अदा करने में सक्षम होना चाहिए। ब्याज दर में कमी करने का फैसला कर्मचारी संगठनों को एक बार फिर से नाराज कर सकता है।
अब तक ऐसी रही ईपीएफ पर ब्याज दरें
वर्ष 2015-16 में 8.8 प्रतिशत।
वर्ष 2014-15 में 8.75 प्रतिशत।
वर्ष 2013-14 में 8.75 प्रतिशत।
वर्ष 2012-13 में 8.5 प्रतिशत।
वर्ष 2011-12 में 8.25प्रतिशत।
@12Sep-2016

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