सोमवार, 26 सितंबर 2016

आसान नहीं रेलवे की वित्तीय सेहत सुधारना!

रेल बजट का आम बजट में मर्ज का प्रभाव
संसदीय समिति करेगी वित्तीय सुधारों की समीक्षा
ओ.पी. पाल. नई दिल्ली।
केंद्र सरकार द्वारा 92 साल पुरानी अंगे्रजी हुकूमत की परंपरा को खत्म करते हुए रेल बजट को आम बजट में मर्ज करने का निणर्य रेलवे के लिए कितना कारगर साबित होगा, इस पर संशय बरकरार है कि क्या आर्थिक संकट से जूझ रहे रेलवे की आर्थिक सेहत में सुधार हो पाएगा? शायद इसीलिए ही अब खासकर रेलवे के वित्तीय मामलों पर इस निर्णय के प्रभाव का आकलन संसदीय समिति द्वारा किया जाएगा, जो वित्तीय सुधारों के मामलों की समीक्षा करेगी।
संसद में अगले वित्तीय वर्ष के लिए रेल बजट संसद में पेश नहीं होगा, इसके लिए केंद्रीय मंत्रिमंडल ने रेल बजट को आम बजट में विलय करने की पिछले सप्ताह हुई बैठक में मंजूरी दे दी है। सरकार के इस फैसले से रेल बजट इतिहास के पन्नों में तो सिमट गया है,लेकिन करीब 20 हजार करोड़ के घाटे की इस भारतीय रेल को मुनाफे में लाना सरकार के लिए आसान काम नजर नहीं आ रहा है। केंद्रीय मंत्रिमंडल की इस प्रस्ताव को मंजूरी मिलने के बाद ही लोकसभा द्वारा जारी किये गये बुलेटिन के अनुसार रेलवे के वित्त पर संसदीय समिति ने रेल बजट के विलय और बजटीय सुधारों तथा उसके बाद इसके प्रभावों का चयन किया है। मलसन कांग्रेस सांसद एम. वीरप्पा मोइली की अगुवाई वाली वित्त मामलों की संसदीय समिति सभी बजटीय सुधारों की समीक्षा करेगी। सूत्रों के अनुसार समिति रेलवे के वित्तीय हिसाब से इस मर्जन का क्या प्रभाव पड़ेगा का भी समिति आकलन करके एक रिपोर्ट तैयार करेगी। हालांकि रेल बजट के आम बजट में विलय के बाद केंद्र सरकार का दावा है कि इससे अब धनराशि की कमी से जूझ रही रेलवे को हर साल करीब 10 हजार करोड़ रुपए की बचत होगी। सरकार का तर्क है कि रेल मंत्रालय को यह रकम डिविडेंड यानी लाभांश के तौर पर अब नहीं देना पड़ेगी और इस फैसले के बाद रेल मंत्रालय को नई रेलगाड़ियों और परियोजनाओं के ऐलान की छूट मिलना शुरू हो जाएगी। सरकार के ऐसे ही तर्को का आकलन करने के लिए संसद की वित्तीय संबन्धी समिति अब इस निर्णय की समीक्षा करेगी। सरकार ने इस कदम को उठाते हुए यह भी तर्क दिया है कि रेलवे की अर्थव्यवस्था को रμतार देने की दिशा में रेलवे के वित्तीय अधिकारों और रेलवे की नीति की स्वायत्तता बरकरार रहेगी।
सातवें वेतन आयोग का बोझ
इस साल फरवरी में पेश किये गये रेल बजट के दौरान रेल मंत्री सुरेश प्रभु ने 15,744 करोड़ रुपये के घाटे में घोषित किया था। रलेवे के सूत्रों के अनुसार यह घाटा कम होने के बजाए लगातार बढ़ रहा है। वहीं सातवें वेतन आयोग की वजह से भी रेल मंत्रालय पर बड़ा आर्थिक बोझ पड़ा है हालांकि वित्त मंत्रालय ने इसे साझा करने का भरोसा दिहया है। मसलन दोनों बजट के मर्जर के बाद रेलवे के राजस्व घाटे और पूंजी लागत को अब वित्त मंत्रालय को ट्रांसफर कर दिया जाएगा। जबकि आर्थिक तंगी से जूझ रहे रेलवे को राजस्व जुटाने के लिए यात्रि व मालभाड़ों में बढ़ोतरी करने को मजबूर होना पड़ रहा है।
वित्त मंत्रालय ही तय करेगा रेल बजट
सरकार के इस फैसले के बाद आगामी वित्त वर्ष यानी 2017-18 के लिए साल 2017 में सिर्फ आम बजट ही संसद में पेश किया जाना है, जिसके अलावा अलावा एक विनियोजन विधेयक होगा। सरकार का दावा है कि इससे रेलवे की स्वायतत्ता पर कोई असर नहीं पड़ेगा। वित्त मंत्रालय ही अब रेल मंत्रालय का बजट तय करेगा, लेकिन अभी भी दोनों मंत्रालयों के अधिकारों का बटंवारे का लेकर स्थिति साफ होना बाकी है और इसके लिए क्या प्रक्रिया होगी इसको भी तय किया जाना बाकी है। रेलवे द्वारा प्रस्तावित रेल शुल्क प्राधिकरण (आरटीए) के मसौदे को अंतिम रूप देने की बात कही गई है, जिसे जल्द ही कैबिनेट के समक्ष रखा जाएगा।
ऐसे बदलेगी बजट प्रक्रिया
आमतौर पर अभी बजट पारित कराने की प्रक्रिया देर तक चलने के कारण विभागों को नए बजट की खर्च की मंजूरी मिलने में वित्त वर्ष के पहले दो तीन महीने बीत जाते हैं। हालांकि बजट प्रक्रिया में बदलाव करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में केंद्रीय मंत्रिमंडल ने खर्च के योजना और गैर योजना व्यय के भेद को भी समाप्त करने का फैसला किया है, जिससे प्रक्रिया को सुगम बनाया जा सके। शायद इसलिए सरकार ने बजट सत्र जनवरी के अंतिम सप्ताह में बुलाने का प्रस्ताव किया है, ताकि एक अप्रैल से बजट में लिए जाने वाले निर्णयों को लागू किया जा सके, जबकि आमतौर पर बजट फरवरी माह की अंतिम तारीख को पेश किया जाता है। इस बार बजट पहले पेश करने के लिए वित्त मंत्रालय ने संसद का बजट सत्र 25 जनवरी के आसपास बुलाने का प्रस्ताव किया है।
26Sep-2016

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