बुधवार, 31 मई 2017

सड़क निर्माण के पिछले रिकार्ड ध्वस्त!

2019 तक 25 लाख करोड़ की परियोजना का लक्ष्य
ओ.पी. पाल.
नई दिल्ली।
देश के बुनियादी ढांचें को मजबूत करने में लगी केंद्र सरकार ने सड़क परियोजनाओं को लागू करने में पिछले सभी रिकार्ड ध्वस्त कर दिये हैं। सरकार का लक्ष्य 2019 तक 25 लाख करोड़ रुपये की सड़क परियोजनाओं को पूरा करने का है।
मोदी सरकार के विकास के एजेंडे के तहत देश में सड़कों का जाल बिछाने की परियोजनओं को पटरी पर उतारने का यह दावा केंद्रीय सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्रालय ने किया है। इसके अनुसार इस मंत्रालय का मोदी सरकार के मौजूदा पांच साल के कार्यकाल में देशभर में 25 लाख करोड़ रुपये की सड़क परियोजनाओं को पूरा करने का लक्ष्य है, जिसमें वर्ष 2019 तक राष्टÑीय राजमार्ग की लंबाई को दो लाख किमी करने करने की योजना का रोडमैप भी शामिल है। नेशनल हाइवे विस्तार के तहत वर्ष 2014-15 में 97991 किमी लंबे हाइवे में 16167 किमी का विस्तार पूरा किया जा चुका है और 15948 किमी का निर्माण कार्य चल रहा है। मंत्रालय का दावा है कि प्रतिदिन फिलहाल सड़क परियोजनाओं में तेजी से निर्माण काम करने के लिए इन तीन सालों में औसतन 17 किमी सड़क का प्रतिदिन निर्माण किया गया है, जिसे जल्द ही 30 किमी प्रतिदिन आने की उम्मीद है। हालांकि केंद्रीय मंत्री कई बार दोहरा चुके हैं कि हाइवे निर्माण के काम को प्रतिदिन 41 किमी करने का लक्ष्य है। मंत्रालय का यह भी दावा है कि पूर्ववर्ती यूपीए सरकार के कार्यकाल में यह निर्माण कार्य 12 या 13 किमी प्रतिदिन से आगे नहीं बढ़ सका है। मंत्रालय के अनुसार पूर्ववर्ती यूपीए सरकार ने अपने अंतिम तीन साल में जहां करीब पांच हजार किमी हाईवे का निर्माण किया था, वहीं राजग सरकार ने उसके मुकाबले पिछले तीन सालों में औसतन 11 हजार किमी ज्यादा निर्माण किया है।
पीपीपी मॉडल पर जोर
मंत्रालय के अनुसार मौजूदा वित्त्तीय वर्ष में सरकार ने राष्टÑीय राजर्माग परियोजनाओं के निर्माण का 30 प्रतिशत कार्य पीपीपी मॉडल के जरिए कराने का लक्ष्य रखा है, जो पिछले वित्तीय वर्ष में 17 प्रतिशत था। मंत्रालय के अनुसार पिछले वित्तीय वर्ष में देशभर में 16,800 किलोमीटर सड़क परियोजनाओं को मंजूरी दी गई थी, जो देश में अभी तक रिकार्ड है। उत्तराखंड में चार धाम यात्रा के लिए मंजूरी की गई 12 हजार करोड़ रुपये के करीब 900 किमी हाइवे के लिए 6.5 लाख करोड़ रुपये की परियोजना को मंजूरी दी जा चुकी है, जिसके निर्माण भी पीपीपी मॉडल के जरिए कराने की योजना है।
पूर्वोत्तर का विकास
देश के पूर्वोत्तर और पहाड़ी जैसे 13 राज्यों व इलाकों में राष्ट्रीय राजमार्गो और अन्य सड़क मार्गो के निर्माण की चुनौती से निपटने के लिए बुनियादी ढांचों को सुधारने की योजना में केंद्रीय सड़क परिवहन मंत्रालय के अधीन गठित राष्ट्रीय राजमार्ग एवं बुनियादी ढांचा विकास निगम लिमिटेड (एनएचआईडीसीएल) का गठन किया और जुलाई 2014 में अस्तित्व में आए इस संगठन को जनवरी 2015 में इन राज्यों के लिए 1.06 लाख करोड़ की 136 परियोजनाएं सौंप दी गई, जिनके करीब छह दर्जन परियोजनाओं को पूरा करने का दावा किया गया है। इन राज्यों में पूर्वोत्तर के आठ राज्यों के अलावा पश्चिम बंगाल, अंडमान एवं निकोबार, जम्मू-कश्मीर, उत्तराखंड एवं हिमाचल प्रदेश में विश्वस्तरीय बुनियादी ढांचा सृजित करने का प्रयास है।

मंगलवार, 30 मई 2017

मोदी सरकार के तीन साल-देश की बदलती तस्वीर में बेमिसाल


कई मोर्चों पर बहुत अच्छा-कुछ का खराब
-ओ.पी. पाल

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व वाली राजग सरकार इसी माह अपने तीन साल पूरे करने जा रही है। इन बेमिसाल तीन साल में केंद्र सरकार की क्या-क्या उपलब्धियां रही है उनका सभी मंत्रालय साल 2014 से 2017 के बीच महत्वपूर्ण कार्यक्रमों एवं योजनाओं के कार्यान्वयन का तुलनात्मक ब्यौरा पीएमओ को भेज चुके हैं। मोदी सरकार के बेमिसाल तीन साल की उपलब्धियों में पहली कैबिनेट में कालेधन पर बनाई गई एसआईटी से लेकर अब तक देश के बुनियादी विकास, जनहित की योजनाओं के कार्यान्वयन के अलावा पडोसी देशों के लिए जीसैट-9 की लांचिंग और अन्य सभी पहल के साथ दुनिया के सामने भारत की बनी बेमिसाल तस्वीर को भी सार्वजनिक करने की तैयारी है कि क्या वास्तव में देश बदल रहा है! हालांकि भारत जैसे लोकतांत्रिक देश में क्रिकेट और राजनीति पर बोलना सबसे आसान काम है जिसने कभी क्रिकेट न खेला हो वो भी बता देता है कि कैसे बॉलिंग करनी चाहिये और कैसे बैटिंग यही हाल राजनीति का भी है चाय की दुकान से लेकर पान के खोखे पर लगी भीड़ बता देती है कौन सा नेता कैसा काम कर रहा है, अगली बार किसकी सरकार बनेगी या गिरेगी, अगर मोदी सरकार के तीन साल के काम को देखा जाए तो कई मोर्चों पर प्रदर्शन बहुत अच्छा रहा है तो कुछ का औसत और कुछ का खराब भी कहा जा सकता है।
देश में तीन साल पहले सत्ता संभालते ही प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने खुद को आम लोगों से अपना सीधा संवाद और मजबूत करने की मंशा के साथ अपने मंत्रिमंडल के सदस्यों को भी ऐसे ही संदेश दिया था। यही नहीं केंद्र सरकार का नेतृत्व कर रही भाजपा के सभी सांसदों को जनता से सीधे संवाद रखने की नसीहत दी थी, जिसमें वह सीधे किसी भी समय आम लोगों से चल रही सरकारी योजनाओं के बारे में सीधे उनका फीडबैक ले सकते हैं। हालांकि शायद इसका स्वरूप क्या होगा अभी यह तय नहीं हुआ है कि लोग किस तरह सोच रहे हैं और वे किस तरह की योजना और बदलाव की अपेक्षा रखते हैं, इस बारे में फीडबैक(लोगों की राय) लेने के काम को खुद पीएम मोदी ही नेतृत्व कर रहे हैं। दरअसल मोदी ने इससे पहले भी कई मौकों पर जनता से संवाद कर उनसे मिले सुझावों को सरकार में जगह दी है। चाहे बजट में नये प्रस्ताव की बात हो या फिर नई योजनाओं को नाम देने का मामला ही क्यों न हो, पीएम ने सभी मुद्दों पर जनता की राय मांगने की परंपरा की पहल की है। माना जा रहा है कि तीन साल पूरा होने के मौके पर पीएमओ तमाम मंत्रियों के कामकाज को सार्वजनिक क्षेत्रों में डालेगी, जिसमें बताया जाएगा कि किनके मंत्रालय में कितनी योजनाएं स्वीकृत र्हुइं और उन्हें कहां तक पूरा किया गया और क्या प्रयास किये जा तहे हैं। ऐसेे संकेत प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने दिये है कि वह इस धारणा को बदलना चाहते हैं कि मंत्रियों के कामकाज को आंका नहीं जा रहा है। माना जा रहा है कि मंत्रियों से प्रक्रिया, नीति, कामकाज, कार्यक्रमों समेत मंत्रालय की ओर से पेश महत्वपूर्ण सुधारों की जानकारी देने के साथ एक पैराग्राफ में दो प्रमुख सफलता की कहानी की जानकारी देने को भी कहा गया है कि लोगों के जीवन में क्या सकारात्मक बदलाव आए हैं। दरअसल पीएम मोदी और भाजपा स्पष्टतौर से देश और जनता के मिजाज को पहचाना चाहती है कि देश के विकास और जनता की सामाजिक, आर्थिक और बुनियादी सुरक्षा को लेकर क्या बदलाव महसूस किये जा रहे हैं।
ये शानदार रिकार्ड और अपवाद
अगर हम देश की मानसिकता को देखे तो एक बात तो समझ में आती है कि भ्रष्टाचार के मामले मे इस सरकार का रिकार्ड बहुत शानदार है अभी तक किसी मंत्री या मंत्रालय पर कोई उंगली नही उठी। सरकार के कुछ मंत्रालयों का प्रदर्शन बहुत सराहनीय रहा है चाहे वो सुषमा स्वराज का विदेश मंत्रालय हो या नितिन गडकरी का सड़क अथवा सुरेश प्रभु का रेल मंत्रालय। इन जैसे कर्द अन्य मंत्रालयों में पहली बार जनता से जुड़े हुये काम करते देखा गया तो रेलवे में आम आदमी की परेशानी पर उसके ट्वीट पर एक्शन होते देखा गया ,प्रधानमंत्री जी की अपील पर आम जनता को स्वच्छता के लिये जागरूक होते हुये देखा गया। उज्जवला योजना के अंतर्गत गरीब महिलाओं के गैस के चूल्हे मिले जिससे उन्हें रोज उठने वाली धुएं की तकलीफों से निजात मिली। मसलन पहली बार कोई सरकार समाज के हर तबके तक पहुंचती हुई दिखी है। संसद में भी ज्यादातर कानूनों में विपक्ष के विरोध के वावजूद ऐसे अनेक ऐतिहासिक बदलाव किये हैं जिनसे देश की तस्वीर बदल सकती है। इसके विपरीत कुछ चीजें ऐसी भी रहीं जहां इस सरकार से सबसे ज्यादा उमीदें थीं, लेकिन अभी तक कुछ अच्छा होता हुआ दिखा नहीं। ऐसे मामलों में से एक है देश की आंतरिक सुरक्षा ,वो चाहे नक्सल से सम्बंधित हो या कश्मीर से जो उम्मीदें इस सरकार से थीं वो अभी तक धुंधली ही रहीं और दूसरी रोजगार के बारे में ,जहां सरकार बनने के समय बहुत उमीदें थीं वो अभी तक परवान चढ़ती नहीं दिख रहीं।
सरकार के प्रमुख कार्यक्रम एवं योजनाएं
मोदी सरकार ने इन तीन सालों के कार्यकाल के दौरान देश में विकास के एजेंडे के अलावा नोटबंदी जैसे कई महत्वपूर्ण और कठिन फैसले भी लिये हैं, जिनके कारण मोदी सरकार विपक्षी दलों के निशाने पर रही है। सरकार चाहती है कि खासकर सामाजिक सुरक्षा वाली तीन बड़ी योजनाओं प्रधानमंत्री सुरक्षा बीमा योजना, प्रधानमंत्री जीवन ज्योति बीमा योजना और अटल पेंशन योजना ने जनता के जीवन मेें किस प्रकार के बदलाव महसूस किये हैं।
प्रधानमंत्री सुरक्षा बीमा योजना
प्रधानमंत्री सुरक्षा बीमा योजना के तहत जनता को सिर्फ 12 रुपए का सलाना प्रीमियम देना है, जिसमें मृत्यु पर दो लाख का दुर्घटना कवर दिया जाएगा। दुर्घटना के दौरान विकलांग होने पर एक लाख का कवर दिया जाएगा। दुर्घटना पर आंखों की रोशनी जाने पर पीड़ित को 2 लाख रुपए मिलेंगे। योजना का फायदा लेने के लिए बैंक में बचत खाता अनिवार्य है। इस योजना के लिए उम्र सीमा 18 से 70 साल तक तय की गई।
प्रधानमंत्री जीवन ज्योति बीमा योजना
दुर्घटना बीमा के साथ-साथ सरकार ने देश की गरीब जनता के लिए जीवन बीमा योजना की भी शुरुआत की यानी प्रधानमंत्री जीवन ज्योति बीमा योजना। देश के 18 से 50 साल की उम्र के नागरिकों को सालाना 330 रुपए का प्रीमियम देना होगा। योजना के तहत मृत्यु के बाद 2 लाख का बीमा कवर तय हुआ है। इस योजना के लिए हर साल नवीनीकरण कराना होगा। लेकिन कोई शख्स एक से ज्यादा बैंक खातों पर इस योजना का लाभ नहीं उठा सकता।
अटल पेंशन योजना
इस योजना के तहत 60 साल की उम्र के बाद पेंशन का प्रावधान है। 18 से 40 साल की उम्र के नागरिक इस योजना के लिए रजिस्ट्रेशन करा सकते हैं। इसके तहत आपको 20 साल या उससे ज्यादा योगदान देना होगा। और रिटायरमेंट के बाद आप न्यूनतम 1000, 2000, 3000, 4000 या 5000 रुपये के बीच पेंशन का लाभ उठा सकेंगे। यही नहीं इस स्कीम में मृत्यु के बाद पेंशन की रकम आश्रित के खाते में भी जाएगी।
किसानों के हितों की योजनाएं
देश में हर साल करीब 12000 किसान आत्महत्या कर लेते हैं। नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो के मुताबिक पिछले तीन साल में 3313 किसानों ने आत्महत्या की थी। इस साल तो ये आंकड़ा और भी दर्दनाक था। बेमौसम बरसात और मौसम की मार ने देश में गेंहू की करीब 40 फीसदी फसलों को बर्बाद कर दिया और ऐसे मुश्किल वक्त में मोदी सरकार का एक बड़ा फैसला कर्ज में डूबे किसानों के लिए नई संजीवनी के रूप में किसानों को डेढ़ गुना ज्यादा मुआवजे देने के लिए हुआ। पिछले साल तक किसानों को 50 फीसदी फसल की बर्बादी पर ही मुआवजा दिया जाता था, लेकिन मोदी सरकार ने इस आंकड़े को घटाकर 33 फीसदी तक कर दिया। सिर्फ यही नहीं सरकार ने मुआवजे की रकम को भी डेढ गुना बढ़ाया यानी फैसले के बाद बिना सिंचाई वाली फसलों के लिए मुआवजा 4500 रुपए प्रति हेक्टेयर से बढ़कर 6765 रुपए किया गया। जबकि सिंचाई वाली फसलों के लिए 9000 से बढ़कर 13500 रुपए कर दिया गया। इतना ही नहीं सरकार ने किसानों के लिए मुआवजा की प्रक्रिया को भी आसान बनाया, ताकि कर्ज की मार से परेशान किसानों को सरकार दफ्तरों के चक्कर न लगाने पड़ें।
स्वर्ण मौद्रीकरण योजना
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने 5 नवंबर 2015 को तीन स्वर्ण संबंधी योजनाओं की शुरुआत की। इन योजनाओं में स्वर्ण मौद्रीकरण योजना, सार्वभौम गोल्ड बांड योजना और भारतीय स्वर्ण सिक्का। स्वर्ण मौद्रीकरण योजना बैंक में सोना अल्पावधि (1-3 वर्ष), मध्यमावधि (5-7 वर्ष) और दीर्घावधि (12-15 साल) के लिए रखने का अवसर प्रदान करती है। डिपाजिट रखे गए सोने पर ब्याज प्राप्त होगा, और वह पूंजी लाभ सहित कई अन्य करों से मुक्त होगा। 24 कैरेट का सोने का सिक्का निकालने की देश में इस तरह की यह पहली योजना है। प्रधानमंत्री चाहते हैं कि भारत को गरीब देश न कहा जाए,क्योंकि उसके पास 20,000 टन सोना है।
डिजिटल इंडिया
पीएम नरेंद्र मोदी ने एक जुलाई 2015 को अपने सबसे महत्वाकांक्षी योजना डिजिटल इंडिया के साथ ही  ई-लॉकर सर्विस को भी लॉन्च किया। प्रधानमंत्री के डिजिटल इंडिया कैंपेन से अब ई-गवर्नेंस नहीं बल्कि एम-गवर्नेंस यानी मोबाइल गवर्नेंस का रास्ता आसान होगा। डिजिटल इंडिया कैंपेन में कॉरपोरेट सेक्टर 4.5 लाख करोड़ रुपए का निवेश करेगा। वही इससे 18 लाख लोगों को नौकरियां मिलेंगी। मोदी सरकार इस स्कीम के जरिए सभी ग्राम पंचायतों को ब्रॉडबैंड से जोड़ना चाहती है। इसके अलावा ई-गर्वनेंस को बढ़ावा देना और पूरे भारत को इंटरनेट से कनेक्ट करना इस मुहिम का मुख्य लक्ष्य है।
स्मार्ट सिटी योजना
देश के हर परिवार को अपना घर और बेहतरीन जीवनशैली मुहैया करवाने के इरादे से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 25 जून 2015 को स्मार्ट सिटी समेत तीन बड़ी योजनाओं को लॉन्च किया। मोदी ने पुनरोद्धार एवं शहरी परिवर्तन के लिए अटल मिशन, स्मार्ट सिटी मिशन और सभी के लिए आवास मिशन की शुरूआत की। स्मार्ट सिटी परियोजना के तहत देशभर में 100 स्मार्ट शहर बसाने की योजना है। वहीं एएमआरयूटी योजना के तहत देश के 500 शहरों का कायाकल्प किया जाएगा। आवास योजना के तहत 2022 तक देश के तमाम परिवारों को घर मुहैया करवाया जाएगा। स्मार्ट सिटी परियोजना में सबसे ज्यादा फायदा उत्तर प्रदेश को होगा। इस योजना के तहत यूपी में सबसे ज्यादा 13 स्मार्ट सिटी विकसित किये जाएंगे। इसके बाद तमिलनाडु में 12 और महाराष्ट्र में 10 स्मार्ट सिटी बनाए जाएंगे। 100 स्मार्ट सिटी पांच साल के भीतर विकसित किये जाएंगे और सभी के लिए आवास योजना के तहत अगले 7 साल में दो करोड़ मकानों का शहरी क्षेत्रों में निर्माण कराना है।
प्रधानमंत्री मुद्रा बैंक योजना
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 8 अप्रैल 2015 को देश में छोटे कारोबारियों के लिए प्रधानमंत्री मुद्रा बैंक योजना की शुरुआत की। मुद्रा बैंक फिलहाल एनबीएफसी के तौर पर काम करेगा। मुद्रा बैंक यानी माइक्रो यूनिट्स डेवलपमेंट फंड रिफाइनेंस एजेंसी है। प्रधानमंत्री मुद्रा योजना में 10 लाख रुपये तक के सस्ते लोन दिए जाएंगे। प्रधानमंत्री मुद्रा योजना के तहत 3 तरह के लोन मिलेंगे। इनके नाम होंगे शिशु, किशोर और तरुण। शिशु योजना के तहत 50 हजार रुपये तक, किशोर योजना के तहत 50 हजार रुपये से 5 लाख रुपये तक और तरुण योजना के तहत 5 लाख रुपये से 10 लाख रुपये तक के लोन दिए जाएंगे। मुद्रा बैंक से देश के करीब 5 करोड़ 77 लाख छोटे कारोबारियों को फायदा मिलेगा। छोटी विनिर्माण ईकाई और दुकानदारों को इससे लोन मिलेगा। खस बात है कि सब्जी वालों, सैलून, खोमचे वालों को भी इस योजना के तहत लोन मिल सकेगा।
एफडीआई नियमों में सुधार
मोदी सरकार ने 10 नवंबर 2015 को एफडीआई नियमों को आसान करने वाले फैसले में एफडीआई प्रस्ताव की लिमिट को 3,000 करोड़ रुपये से बढ़ाकर 5,000 करोड़ रुपये कर दिया गया यानि अब 5,000 करोड़ रुपये तक के एफडीआई प्रस्तावों को एफआईपीबी की मंजूरी लेना जरूरी नहीं होगा। सरकार ने डिफेंस, ब्रॉडकास्टिंग, प्राइवेट बैंकिंग, एग्रीकल्चर, प्लांटेशन, माइनिंग, सिविल एविएशन, कंस्ट्रक्शन डेवलपमेंट, सिंगल ब्रांड रिटेल, कैश एंड कैरी होलसेल और मैन्युफैक्चरिंग समेत 15 सेक्टरों में विदेशी निवेश की सीमा बढ़ाई है। सरकार ने कंस्ट्रक्शन सेक्टर में 5 साल के भीतर एफडीआई लाने की शर्त हटा ली गई है। कंस्ट्रक्शन सेक्टर में 5 साल के बाद भी एफडीआई लाना मुमकिन होगा। डिफेंस सेक्टर में ऑटोमैटिक रूट के जरिए 49 फीसदी के एफडीआई निवेश की छूट का ऐलान किया गया है। ब्रॉडकास्टिंग सेक्टर के तहत गैर-खबरिया चैनल में ऑटोमैटिक रूट के जरिए 100 फीसदी एफडीआई निवेश की छूट का ऐलान किया गया है। डीटीएच और केबल नेटवर्क में 100 फीसदी एफडीआई को मंजूरी दी गई है। रबर और कॉफी सेक्टर में 100 फीसदी एफडीआई निवेश की छूट का ऐलान किया गया है। एयरलाइंस ग्राउंड हैंडलिंग में 100 फीसदी एफआईडी को मंजूरी दी गई है। रीजनल एयरलाइंस में 49 फीसदी एफडीआई को मंजूरी दी गई है।
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मोदी का न्यू इंडिया प्लान
पिछले महीने ही संचालन परिषद की मीटिंग में नीति आयोग ने तीन साल का ड्राफ्ट ऐक्शन प्लान पेश किया, जो दशकों तक चली पंचवर्षीय योजना की जगह लेगा। इससे प्लानिंग के नए युग की शुरुआत होगी। नीति आयोग के वाइस चेयरमैन अरविंद पनगढ़िया ने 15 साल के लॉन्ग टर्म विजन की भी शुरुआत की, जिसमें 7 साल की स्ट्रैटिजी दी गई और 3 साल का ऐक्शन एजेंडा पेश कर स्पष्ट किया गया है कि सरकार अगले 15 सालों में देश व जनता को क्या-क्या देना चाहती है। इसमें देश के विकास का जो खाका खींचा गया है उसका लक्ष्य पर नजर डाली जाए तो वर्ष 2031-32 तक भारत को समृद्ध, अति शिक्षित, स्वस्थ, सुरक्षित और भ्रष्टाचार मुक्त देश में तब्दील करना, जहां बिजली की प्रचूरता हो, जहां का पर्यावरण बिल्कुल स्वच्छ हो और जो दुनिया को प्रभावित करने वाला हो। इसके लिए तीन स्तर पर रणनीति तैयार करने का संकेत है, जिसके तहत पंद्रह वर्षीय विजन डॉक्युमेंट-2017-18 से 2031-32 तक, सात वर्षीय रणनीति- 2017-18 से 2023-24 तक और त्रिवर्षीय कार्ययोजना- 2017-18 से 2019-20 तक का खाका है।
आम जनता का फायदा?
न्यू इंडिया के तहत देश में सभी को शौचलाययुक्त घर, एलपीजी, बिजली और डिजिटल कनेक्शन के अलावा करीब-करीब सभी व्यक्ति की इतनी आर्थिक क्षमता पैदा करने का प्रयास रहेगा कि वह दोपहिया वाहन या कार, एयर कंडिशन और आराम की दूसरी वस्तुएं खरीदने सक्षम हो। इसी प्रकार शत-प्रतिशत साक्षरता के साथ सभी को स्वास्थ्य सुविधा देने के अलावा स्वच्छ भारत बनाकर साफ हवा और पानी, साफ-सुथरे शहर और गांव का माहौल तैयार करना है। वहीं बुनियादी ढांचें की मजबूती में सड़क, रेलवे, समुद्र और हवाई मार्ग का और विस्तृत जाल फैलाकर एकीकृत परिवहन एवं लाॅजिस्टिक्स क्षेत्र को बढ़ावा देने का प्रयास होगा। इस अनुमान में साल 2000-2015 तक भारत की प्रति व्यक्ति आय 60,909 रुपये बढ़ी। वर्ष 2015-2031 तक भारत की प्रति व्यक्ति आय 2,08,087 रुपये बढ़ाने का लक्ष्य होगा, जबकि अनुमान लगाया जा रहा है कि वर्ष 2031-32 में देश का प्रति व्यक्ति बढ़कर 3,14,667 रुपये हो जाएगी। फिलहाल देश की प्रति व्यक्ति आय 1,06,589 रुपये है।
जीडीपी वृद्धि
साल 2000 से 2015 के बीच चीन की जीडीपी 532 लाख करोड़ रुपये बढ़ी, जिसके विपरीत इस दौरान भारत की जीडीपी 91 लाख करोड़ रुपये बढ सकी है। अगले 15 सालों में भारत की जीडीपी 332 लाख करोड़ रुपये बढ़कर 469 करोड़ रुपये होने की उम्मीद जताई जा रही है। फिलहाल देश की जीडीपी 137 लाख करोड़ रुपये है। वर्ष 2000-15 के बीच चीन की शहरी आबादी 31 करोड़ बढ़ी। वर्ष 1991-2011 के बीच भारत की आबादी 16 करोड़ बढ़ी, जबकि वर्ष 2011-31 के बीच भारत की आबादी 22.3 करोड़ बढ़ेगी।
क्षेत्रीय विकास पर जोर
संपर्क सूत्रों का जाल बिछाकर विकास को बढ़ावा देनेवाली ताकतों की मजबूती, सरकार एवं शासन एवं कानून का राज सुनिश्चित करना, स्वास्थ्य, शिक्षा, कौशल विकास, समावेशी समाज का निर्माण कर सामाजिक क्षेत्र में बदलाव लाना, पर्यावरण तथा जल संसाधन का समुचित प्रबंधन कर टिकाऊ विकास की नींव मजबूत करना ही पीएम मोदी का विजन है।
इसलिए जनवरी-दिसंबर वित्तीय वर्ष चाहते हैं मोदी?
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी एक 150 साल पुरानी परंपरा को तोड़ने की योजना बना रहे हैं। वह अप्रैल से मार्च के वित्तीय वर्ष को खत्म कर उसे कैलेंडर इयर की तरह जनवरी से दिसंबर करना चाहते हैं। भारत में अप्रैल से मार्च का वित्तीय वर्ष चलाने की शुरुआत 1867 में अंग्रेजी हुकूमत के दौरान की गई थी। आखिर क्यों कैलेंडर इयर को ही फाइनैंशल इयर बनाना चाहते हैं पीएम? इसका सीधा जवाब भारत की जीडीपी में कृषि के 15 प्रतिशत से ज्यादा योगदान के कारण किसानों को पफायदा देना भी हैै। वहींै अकाउंटिंग पीरियड में बदलाव से जून और सितंबर में पड़ने वाले सूखे को देखते हुए कृषि क्षेत्र के लिए बेहतर आवंटन हो सकेगा। हालांकि बजट की तारीख में बदलाव के साथ-साथ भारत को टैक्स असेसमेंट इयर पर भी फिर से काम करना होगा। इसके अलावा टैक्स इन्फ्रस्ट्रक्चर को फिर से संगठित करना होगा जिसमें संभवतः संसद सत्र की टाइमिंग में भी बदलाव करना शामिल हो। हालांकि इससे टैक्स पेमेंट शेड्यूल पर असर नहीं पड़ेगा।
जीएसटी भी बड़ी चुनौती
अगर मोदी सरकार फाइनैंशल इयर को बदलती है तो जीएसटी की वजह से जटिलताएं भी बढ़ जाएंगी। इस साल जीएसटी को लागू करने की योजना है। फर्म्स और सरकारी विभाग अभी जीएसटी के लिए खुद को तैयार करने में जुटे हैं। फाइनैंशल इयर बदलने से उसके मुताबिक जरूरी बदलावों को अपनाना और ज्यादा मुश्किल हो सकता है। इस बदलाव का कुछ राज्य यह तर्क देकर विरोध भी कर तहे हैं कि इससे प्रशासन और जनसंसाधन का बहुत ज्यादा समय इस कसरत के नाम पर जाय होगा, वह भी उस समय जब जीएसटी लागू होने वाली है और योजनागत और गैर योजनागत खर्चों का विलय हो चुका है।
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अनूठी तकनीक से बंजर जमीन उगलने लगी पानी

 राजस्थान से ग्राउंड रिपोर्ट
सिरे चढ़ने लगा मुख्यमंत्री जल स्वावलम्बन अभियान
-ओ.पी. पाल

दुनियाभर में जलवायु परिवर्तन और लगातार गिरते भूजल स्तर को लेकर ऐसी बहस छिड़ी हुई है कि यदि जल संरक्षण और जल प्रबंधन को बेहतर करने के प्रयासों में कोई चूक हुई तो अगला विश्वयुद्ध पानी को लेकर छिड़ सकता है। ऐसी आशंका वैज्ञानिक और विशेषज्ञ के साथ ही भविष्यविद् भी व्यक्त करने को मजबूर हैं। ऐसे में भारत जैसे देश के रेगिस्तान बाहुल्य सूबे राजस्थान में राज्य सरकार द्वारा शुरु किये गये मुख्यमंत्री जल स्वालम्बन अभियान (एमजेएसए) के तहत जिस तकनीक का इस्तेमाल किया गया है वह जल सरंक्षण और भूजल स्तर के सुधार में देशभर के लिए ही वरदान साबित हो सकती है। मसलन पायलट प्रोजेक्ट के रूप में राजस्थान के बांसवाड़ा जिले के विरान पड़े व्यापक आदिवासी इलाकों में जल संरक्षण हेतु इस अभियान का ऐसा असर दिखा कि यदि इस तकनीक को देश के बुंदेलखंड और मराठावाडा जैसे देश के उन तमाम इलाकों में अपनाया जा सकता है, जहां आजादी के बाद आज तक भी सरकारें अरबों-खरबों की रकम बहाकर भी सूखे, सिंचाई और पेयजल की कमी जैसे संकट की चुनौती से पार नहीं पा सकी है।
देशभर में बुंदेलखंड, मराठावाडा के पूर्वोत्तर समेत अनेक राज्यों के अनेक इलाकों में गिरते भूजल स्तर के कारण सूखे, पानी की कमी जैसे संकट की समस्या गर्मियों में तो लोगों के लिए मुसीबत के पहाड़ से कम नही है। राजस्थान में रेगिस्तानी इलाकों के अलावा बांसवाड़ा जिले के विरान पड़े व्यापक आदिवासी इलाकों की जमीन और लोगों की प्यास बुझाने के एक प्रयास में राज्य की मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे ने दो साल पहले जल संरक्षण हेतु मुख्यमंत्री जल स्वावलंबन अभियान को एक पायलट परियोजना के रूप में लागू किया था। राज्य सरकार नें पायलट परियोजना के रूप में लागू मुख्यमंत्री जल स्वावलम्बन अभियान की बागडौर राजस्थान बेसिन प्राधिकरण के चेयरमैन श्रीराम वेदिरे को को सौंपी। इस अभियान में गिरते भूजल स्तर सुधारने और जल सरंक्षण के लिए पहाड़ी और रेगिस्तानी इलाकों के सूखे को खत्म करने के लिए आरबीए चेयरमैन श्रीराम वेदिरे और उनकी तकनीकी टीम ने भारत मे इजाद की गई अमेरिकी तकनीक को अपनाया, जिसमें आदिवसी इलाकों के लोग प्यास बुझाने और उपजाउ होती जमीन में फसल लेने को उत्साहित हैं। वेदिरे की इस अनूठी जल सरंक्षण तकनीक से पानी उगलती बंजर और पहाड़ी जमीन की बदलती तस्वीर को राष्ट्रीय प्रेस प्रतिनिधिमंडल ने भी देखा, जहां जल संरक्षण के लिए वर्षा की एक-एक बंूद को पहाडी इलाकों से नीचे न आने की इस अनूठी तकनीक को धरातल पर उतारने की हकीकत साक्षात दिखी। यही नहीं नेशनल मीडिया आदिवासी ग्रामीणों से रूबरू हुई तो ग्रामीणों ने उम्मीद जताई है कि कुछ महीनों में जिस प्रकार से उन्हें पीने, सिंचाई और अन्य कार्यो के लिए उन्हें पानी मुहैया होने लगा है आगे जाकर वे एक के बजाए तीन-तीन फसले एक साल में ले सकते हैं।
राज्य की बदली तस्वीरः वेदिरे
राजस्थान में मुख्यमंत्री जल स्वावलंबन योजना का नेतृत्व कर रहे राजस्थान नदी बेसिन एवं जल संसाधन योजना प्राधिकरण के चेयरमैन श्रीराम वेदिरे ने बताया कि इस योजना के पहले चरण में ही बांसवाड़ा के गांवों में सकारात्मक नतीजे सामने आए हैं, जिसका प्रयोग करने से बुंदेलखंड से लेकर असम तक पहाड़ी और पूर्वोत्तर तक जल संकट की समस्या का समाधान संभव है। वेदिरे का कहना है कि राजस्थान में जल संरक्षण के इस अनूठे अभियान के लिए वर्ष 2015 से कवायद की जा रही थी, जिसका नतीजा नई तकनीक के बाद अब इस अभियान के धरातल पर उतरने से राजस्थान की तस्वीर बदलने लगी है। भूजल स्तर के मामले में पूरे देश की हालत खराब है और भू-जल स्तर को बढ़ाने के लिए सभी तरह से प्रयास किए जा रहे हैं, लेकिन मुख्यमंत्री जल स्वावलंबन अभियान के तहत हुए कार्यों से भू-जल स्तर में अभूतपूर्व वृद्धि देखी गई है। बुंदेलखंड और अन्य सुखाड़ इलाकों में जल सरंक्षण के लिए केंद्रीय जल संसाधन मंत्री सुश्री उमा भारती भी इस तकनीक पर उनके साथ चर्चा कर चुकी हैं। विदरे के अनुसार भूजल स्तर बढाने की इस योजना के पहले चरण पर 1400 करोड रुपए खर्च हुए है, जिसमें तीन हजार से ज्यादा गांवों को लाभ मिला है। अब दूसरे चरण की योजना पर 1800 करोड़ रुपए खर्च होने का अनुमान है। इससे 60 लाख हेक्टेयर भूमि की सिंचाई हो सकेगी।
तीन फिट पर निकलेगी जलधारा
राजस्थानी पहाड़ों में वाटर हार्वेस्टिंग स्ट्रक्चर्स के निर्माण के बाद भूजल स्तर में हुई बढ़ोत्तरी का दावा करते हुए वेदिरे ने अपनी तकनीकी दल को श्रेय देते हुए कहा कि जल्द ही तीन फीट की खुदाई करते ही पानी की धारा निकलना शुरू हो जाएगी। ऐसा इस आदिवासी इलाके में ग्रामीणों की मुस्कान परियोजना के तहत बनाए गए वाटर हार्वेस्टिंग स्ट्रक्चर्स के कारण हो पाया है। परियोजना के तकनीकी अधिकारी राकेश रेड्डी ने बताया गया कि 8.80 एमसीएफटी भराव क्षमता के इस टेंक का निर्माण 80 लाख रुपयों की लागत से किया गया है और इससे 50 हेक्टर क्षेत्र में सिंचाई सुविधा प्राप्त हो रही है।
परियोजना के दूसरे चरण का गणित
राजस्थान के बांसवाड़ा जिले के घोड़ी तेजपुर गांव में इस परियोजना के सकारात्मक परिणाम को लेकर वेदिरे ने कहा कि प्रदेश में प्रथम चरण में 3 हजार 529 गांवों में एक लाख वाटर हार्वेस्टिंग स्ट्रक्चर्स का निर्माण कराया गया और 28 लाख पौधरोपण किया। इस चरण में 55 करोड़ रुपये के जनसहयोग से 41 लाख लोगों और 45 लाख पशुओं को जल से राहत मिली है। वेदिरे ने बताया कि इसके दूसरे चरण के तहत 4 हजार 214 गांवों में 1843 करोड़ के प्रस्तावित एक लाख 37 हजार 753 कार्यों में से 8 हजार 726 कार्यों को भी पूरा किया जा चुका है। राज्य के पंचायत राज और ग्रामीण विकास राज्यमंत्री धनसिंह रावत ने कहा कि जल संरक्षण के उद्देश्य से मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे द्वारा चलाया गया मुख्यमंत्री जल स्वावलंबन अभियान हिन्दुस्तान का पहला अभियान है और इस अभियान को राजस्थान में ही नहीं अपितु पूरे देश में सराहा गया है।

सोमवार, 29 मई 2017

नए श्रम कानूनों ने बदली श्रमिकों की तस्वीर

उपलब्धियों पर मंत्रालय ने ठोकी अपनी पीठ
हरिभूमि ब्यूरो.
नई दिल्ली।
मोदी सरकार के तीन साल के कार्यकाल में केंद्रीय श्रम एवं रोजगार मंत्रालय की उपलब्धियों पर पीठ ठोकते हुए कहा कि इस दौरान श्रम कानूनों में किये गये व्यापक बदलाव के कारण देश में श्रमिकों के जीवन की तस्वीर बदलने लगी है, जिसमें सरकार ने उनकी सामाजिक सुरक्षा को सुनिश्चित किया है।
केंद्रीय श्रम एवं रोजगार मंत्रालय ने सोमवार को यहां अपने अधीन ईपीएफओ और ईसीआई जैसे संगठनों के उच्चाधिकारियों के साथ मिलकर पिछले तीन साल की उपलब्धियों का बखान किया। केंद्रीय श्रम एवं रोजगार राज्य मंत्री (आईसी) बंडारू दत्तात्रेय ने कहा कि देश के इतिहास में इस मंत्रालय की भी महत्ता बढ़ी है, जिसने असंगठित क्षेत्र के 40 करोड़ श्रमिकों को ईएसआईसी और ईपीएफओ जैसे सामाजिक सुरक्षा योजनाओं के दायरे में शामिल किया है। उन्होंने कहा कि सरकार असंगठित क्षेत्र सहित सभी कर्मचारियों के लिए मजदूरी, रोजगार और सामाजिक सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए प्रतिबद्ध है, जिसकी बदौलत रोजगार सृजन में सुधारों और नए तरीके और साधनों का क्रियान्वयन किया जा सका है। उन्होेंने जानकारी दी कि देश में पहली बार प्रभावी व्यापार को असान बनाने के लिए श्रमसुविधा पोर्टल की शुरूआत की गई है।
नए कानूनों ने दी मजबूती
उन्होंने कहा कि पिछले तीन साल में मोदी सरकार ने बाल श्रम (निषेध और नियमन) संशोधन अधिनियम लागू करके14 साल से कम उम्र के बच्चों से काम कराने पर पाबंदी ही नहीं लगाई, बल्कि सरकार की योजनाओं के तहत उन्हें स्कूल भेजा जाने लगा है। उन्होंने मातृत्व लाभ (संशोधन) अधिनियम को भी महिलाओं की सामाजिक सुरक्षा का हथियार बताया और कहा कि इसके तहत महिलाओं को मातृत्व लाभ 12 सप्ताह से 26 सप्ताह कर दिया गया है। जबकि कर्मचारियों ओर श्रमिकों के न्यूनतम वेतन तय करने के लिए वेतन का भुगतान (संशोधन) अधिनियम लागू किया गया, जिसमें नियोक्ताओं को अपने कर्मचारियों को मजदूरी का नकद भुगतान या उनके बैंक खाते में जमा करने का सख्त प्रावधान शामिल है। इसी प्रकार कर्मचारी मुआवजा (संशोधन) अधिनियम का उल्लंघन करने के लिए मौजूदा 5000 रूपये से बढ़ाकर जुर्माने की राशि 50 हजार रुपये की गई है। वहीं बोनस संशोधन अधिनियम के भुगतान की सीमा दस हजार से 21 हजार करने की जानकारी दी। श्रम मंत्री ने कर्मचारियों के हित में औद्योगिक रोजगार (स्थायी आदेश) अधिनियम के जरिए कर्मचारियों के लिए नियत अवधि रोजगार को बढ़ावा दिया है।
60 लाख के खोले बैंक खाते
केंद्रीय मंत्री दत्तात्रे ने कहा कि मजदूरों के हित में मंत्रालय ने एक अभियान के तहत देशभर में 1.50 लाख शिविरों का आयोजन करके 60 लाख श्रमिकों के बैंक खाते खुलवाए गये। इस अभियान से श्रमिकों की अर्थव्यवस्था पर बेहतर असर हुआ है। इसी प्रकार कर्मचारी बीमा स्कीम में भी 2.03 करोड़ से बढ़कर 3.10 करोड़ श्रमिकों को लाभ मिल रहा है, तो ईपीएफओ की पीएफ स्कीम में भी देशभर में कर्मचारियों और पेंशनधारकों की संख्या बढ़कर 4.5 करोड़ पहुंच गई है।

रविवार, 28 मई 2017

अगले तीन सालों में 24 जलमार्गो का होगा विकास!

पीपीपी मॉडल पर तेज होगी राष्ट्रीय जलमार्ग परियोजना
ओ.पी. पाल.
नई दिल्ली।
देश में सड़क ओर रेल मार्ग के यातायात के बोझ को कम करने के लिए मोदी सरकार की राष्ट्रीय जलमार्ग परियोजना के तहत अगले तीन साल में 24 जलमार्गो को विकसित करने का लक्ष्य रखा गया है। सरकार इस महत्वाकांक्षी परियोजना को पीपीपी मॉडल पर लाकर तेजी लाने का प्रयास कर रही है।
केंद्रीय जहाजरानी मंत्रालय के अनुसार केंद्र सरकार द्वारा देश की 101 नदियों को जलमार्ग में तब्दील करने के लिए शुरू की गई राष्ट्रीय जलमार्ग परियोजना को विकसित करके तेजी से काम करने का निर्णय लिया है। इनके अलावा पहले से संचालित पांच राष्ट्रीय राजमार्गों का आधुनिकीकरण भी किया जा रहा है। मंत्रालय के अधीन भारतीय अंतर्देशीय जलमार्ग प्राधिकरण ने अगले तीन वर्षों में 24 जलमार्गो को विकसित करने की योजना बनाई है। मंत्रालय के अनुसार प्राधिकरण ने वर्ष 2022-23 तक राष्ट्रीय जलमार्ग परियोजनाओं का विकास करने के लिए 25 हजार करोड़ रुपये की लागत आने का अनुमान लगाया है। इस परियोजना में जलमार्ग से जुड़े बहु मॉडल टर्मिनलों के निर्माण, नई नेविगेशन लॉक, नदी सूचना प्रणाली, फेयरवे आदि के विकास और निर्माण करने का काम भी शामिल है। गौरतलब है कि पिछले साल अगस्त में ही प्रथम चरण में यूपी के वाराणसी से पश्चिम बंगाल के हल्दिया तक 1390 किलोमीटर जलमार्ग विकास परियोजना के तहत 5369 करोड़ रुपये की लागत से गंगा नदी को जलमार्ग के रूप में विकसित कर रही है।
इस प्रस्ताव से आएगी तेजी
मंत्रालय के अनुसार जलमार्गों के विकास और रखरखाव के लिए केंद्रीय सड़क निधि के 2.5 प्रतिशत के आवंटन में बढ़ोतरी वाले प्रस्ताव किया गया है, जिसके लिए केंद्र सरकार द्वारा हाल ही में केन्द्रीय सड़क निधि अधिनियम-2000 में संशोधन करने वाले प्रस्ताव को मंजूरी दी है, जिसे केंद्रीय सड़क निधि (संशोधन) विधेयक के रूप में आगामी मानसून सत्र में संसद में पारित कराया जाएगा। इस अधिनियम संशोधन की संसद से मंजूरी मिलने के बाद इस परियोजना के साथ ही सड़क परियोजनाओं के आवंटन में वृद्धि होने का रास्ता साफ होगा और परियोजनाओं के कार्यान्वयन में तेजी आएगी। केंद्रीय मंत्रिमंडल ने इस प्रस्ताव की मंजूरी देते हुए राष्ट्रीय जलमार्ग परियोजनाओं को पीपीपी मॉडल के आधार पर करने की संभावनाओं का पता लगाने को कहा है। हालांकि मंत्रालय इन परियोजनाओं के लिए विश्वबैंक की मदद भी ले रहा है।
पूर्वाेत्तर में 13 जलमार्ग
जहाजरानी मंत्रालय ने बताया हे कि पूर्वोत्तर क्षेत्र में भी आंतरिक जलमार्गों के विकास की योजना के लिए केंद्र सरकार जल्द ही अलग से एक विधेयक जाने की योजना बना चुकी है। इस विधेयक में पूर्वोत्तर क्षेत्र की13 नदियों का चयन किया जा चुका है, जिन्हें राष्ट्रीय जलमार्ग के रूप में विकसित करने के प्रावधान शामिल किया जा रहा है। इन नदियों में पूर्वोत्तर की बराक, लोहित, सुवर्णसिरी, गंगाधर, आई, बेकी, पुतिमारी, दिहिंग, धरसिरी, दिखोव, दोयांग और त्लावंग नदी के खंड शामिल हैं। मंत्रालय के अनुसार पहले से ही मंजूर योजना के तहत 50 करोड़ रुपये की लागत से गुवाहाटी के पांडू में पोतों के मरम्मत वाले कारखने का निर्माण आगामी अक्टूबर से शुरू कर दिया जाएगा।
ये हैं पांच जलमार्ग
देश में अभी तक केवल पांच राष्ट्रीय जलमार्ग संचालित हैं। इनमें गंगा नदी पर इलाहाबाद-हल्दिया जल मार्ग (1,620 किलोमीटर), ब्रह्मपुत्र नदी का धुबरी-साडिया जलमार्ग (891 किलोमीटर), वेस्ट कोस्ट केनाल कोट्टापुरम-कोल्लम (205 किलोमीटर), काकीनाडा-पुड्डुचेरी केनाल्स (1,078 किलोमीटर) ब्राह्मणी व महानदी डेल्टा नदी से जुड़ी ईस्ट कोस्ट केनाल (588 किलोमीटर) शामिल हैं। अब देश की बाकी नदियों को जलमार्ग में बदलने की इस परियोजना को पटरी पर उतारा गया है, जिसके लिए संसद में पहले ही सरकार राष्ट्रीय जलमार्ग विधेयक पारित करा चुकी है। इसके अलावा सरकार की मंजूरी के बाद सागरमाला परियोजना के कंसेप्ट और इंस्टीट्यूशनल फ्रेमवर्क को सैद्धान्तिक मंजूरी दे चुकी है, जिसके तहत देश के तटीय राज्यों में बन्दरगाहों का आधुनिक विकास करना है।
तकनीकी प्रणाली लागू
मंत्रालय के अनुसार मोदी सरकार की यह परियोजना भारत में पहली बार राष्ट्रीय जलमार्ग-1 पर गंगा सूचना सेवा प्रणाली को स्थापित करने के लिए आईडब्ल्यूए को सक्षम करेगी। मसलन नदी सूचना प्रणाली (आरआईएस) उपकरण, हार्डवेयर और सॉफ्टवेयर आधारित सूचना प्रौद्योगिकी (आईटी) संबंधित सेवाएं हैं, जिसे अंतदेर्शीय नेविगेशन में यातायात और परिवहन प्रक्रियाओं को अनुकूलित करने के लिए डिजाइन किया गया है।
29May-2017

शुक्रवार, 26 मई 2017

चीन का सिरदर्द बना रहेगा ब्रह्मपुत्र महासेतु

इंजीनियरिंग की बेजोड़ मिसाल देश का सबसे लंबा पुल
ओ.पी. पाल.
नई दिल्ली।
मोदी सरकार द्वारा चीन की जद में ब्रह्मपुत्र की सहायक नदी लोहित पर बनाए गये देश के सबसे बड़े दो लेन वाले पुल को राष्ट्र को समर्पित कर अपनी सीमाओं की मजबूती शुरू कर दी है। असम और अरुणाचल जैसे दो पूर्वोत्तर के राज्यों के सड़क संपर्क को आसान बनाने वाले ढ़ोला-सादिया महासेतु चीन के लिए बड़ा सिरदर्द बना रहने की संभावना है, क्योें कि पूर्वाेत्तर के बुनियादी ढांचे को मजबूत करने वाले इस पुल को भारत सैन्य सामानों की सीमा तक पहुंच बनाने में भी इस्तेमाल करेगा।
असम राज्य के तिनसुकिया जिले में ब्रह्मपुत्र नदी पर चीन सीमा से महज 100 किमी हवाई दूरी पर बनाए गये 9.15 किमी लंबे महासेतु की उपलब्धि भी चीन को खटक रही है। दरअसल सामरिक तौर से चीन द्वारा लगातार भारत को घेरने के प्रयास का करारा जवाब माना जा रहा है। क्योंकि चीन लगातार सीमा से सटे अपने इलाकों में तेजी से सड़कें और अन्य निर्माण कर भारत को चुनौती देता आ रहा है। पिछले साल ही पाकिस्तान से नजदीकी बढ़ाते चीन ने अपने सबसे महंगे हाइड्रो प्रोजेक्ट के लिए तिब्बत के पास ब्रह्मपुत्र की सहायक नदी को रोककर भारत की चिंता बढ़ाई थी। चीन को उसी की भाषा में जवाब देने के लिए भारत ने भी चीन की सीमा पर पूर्वोत्तर राज्यों में बुनियादी ढांचे को मजबूत करने में ऐसी परियोजनाओं को पटरी पर उतारा है। केंद्रीय सड़क मंत्रालय का कहना है कि शुक्रवार को देश को समर्पित किये गये एशिया के दूसरे सबसे लंबे पुल ने जहां अरुणाचल और असम के नागरिकों के लिए विकास और आर्थिक द्वार खोले हैं, वहीं इसका सबसे ज्यादा फायदा देश की सीमा को सुरक्षित रखने के तौर पर किया जा सकेगा और असम से सैन्य सामान इस पुल के जरिए चीन की सीमा से सटे अरुणाचल प्रदेश की सीमाओं तक पहुंच सकेगा। इस पुल को ऐसी तकनीक से तैयार किया गया है कि 60 टन वजनी टी-72 जैसे युद्धक टैंकों को लाने-लेजाने में इस पुल की क्षमता कायम रहेगी। यानि भारत अब चीन की किसी भी चुनौती से लड़ने के लिए उत्तर की सीमाओं तक पहुंचने के लिए सरल और आसान रास्ते बनाने पर काम कर रहा है।
इसलिए भी खफा चीन
मोदी सरकार की सड़क परियोजनाओं में भारत माला कार्यक्रम में चीन की सीमा भी शामिल है। सीमाओं के बुनियादी ढांचे को मजबूत करने की दिशा में भारत की ऐसी सड़क परियोजनाओं के पूरा होने तक सैन्य सामानों की आवाजाही को आसान बनाया जा सकेगा। विशेषज्ञ कहते रहे हैं कि चीन की अरुणाचल में दखलंदाजी पहले से ही रही है और जहां चीन भारत में अपनी सामरिक महत्व बनाने में जुटा हुआ है, भारत ने भी चीन को जवाब देने के लिए आगे बढ़ने की रणनीति के तहत इस पुल की परियोजना को पूरा करके संकेत दे दिये हैं कि वह चीन सीमा के पास लगातार सामिरक महत्व के निर्माण करता रहेगा। ब्रह्मपुत्र नदी पर बने 9.15 किमी लंबे पुल को इसी लिहाज से महत्वपूर्ण माना जा रहा है। वहीं भारत ने हिंद महासागर क्षेत्र में अपने सभी करीबी देशों को साधने की नीति के तहत इंडोनेशिया से लेकर मॉरिशस तक बुनियादी ढांचों और ऊर्जा संबंधों को मजबूत बनाने की राह पकड़ ली है, तो चीन की बेचैनी बढ़ने बढ़ना स्वाभाविक है। वैसे भी कई मोर्चाे पर भारत की अपने इलाकें की योजनाओं का चीन विरोध करता नजर आता रहा है।
कम नहीं थी चुनौतियां
केंद्रीय सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्रालय के अनुसार चीन सीमा के नजदीक ब्रह्मपुत्र नदी पर पुल का निर्माण किसी चुनौती से कम नहीं था, लेकिन ब्रह्मपुत्र की लोहित नदी के ऊपर सबसे लंबे पुल का निर्माण करने में अत्याधुनिक तकनीक और इंजीनियरों की सूझबूझ के साथ इस्तेमाल की की बेहद तकनीकी और मजबूती के लिहाज से काम किया और बेजोड़ इंजीनियरिंग ने बड़ी मिसाल कायम की है। मंत्रालय के अनुसार पुल की बेजोड इंजीनियरिंग लोहित के नाम से ब्रह्मपुत्र नदी को सालों साल बांधे रखेगी। यह पुल रिएक्टर स्केल पर 8.0 की तीव्रता को झेलने में भी सक्षम है। इस शक्तिशाली पुल के निर्माण में स्टील अथॉरिटी आॅफ इंडिया (सेल) ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है, जिसमें टीएमटी, स्ट्रक्चरल और प्लेट्स समेत 30 हजार टन यानि 90 फीसदी इस्पात का इस्तेमाल किया गया है। दरअसल ब्रह्मपुत्र नदी पर पुल का निर्माण किसी चुनौती से कम नहीं था, जहां लगातार बदलते जलस्तर के चलते ब्रह्मपुत्र में पुल के लिए पीलरों को खड़ा करना इंजीनियरों के लिए चुनौती के रूप में सामने आता रहा। निर्माण के दौरान पानी में डूबी दो क्रैने तक धंस गई, लेकिन कुछ दिन काम ठप होने के बावजूद इंजीनियरों ने हिम्मत नहीं हारी और इस परियोजना को पूरा करके ही दम लिया।
27May-2017

गुरुवार, 25 मई 2017

‘नमामि गंगे’ कितनी पास-कितनी फेल!

स्थलीय निरीक्षण करने निकली उमा भारती
ओ.पी. पाल.
नई दिल्ली।
मोदी सरकार की महत्वाकांक्षी परियोजना ‘नमामि गंगे’ मिशन के लिए पिछले साल तीन सौ से ज्यादा परियोजनाएं पटरी पर उतारी थी, लेकिन अभी ये परियोजनाएं पूरी तरह से सिरे चढ़ती नजर नहीं आ रही है। नमामि गंगे परियोजना कितनी सफल और कितनी फेल चल रही है इसका जायजा लेने के लिए खुद केंद्रीय जल संसाधन मंत्री सुश्री उमा भारती 15 दिनों के निरीक्षण के लिए गंगा सागर जा चुकी हैं।
केंद्रीय जल संसाधन, नदी विकास एवं गंगा संरक्षण मंत्रालय के प्रवक्ता ने सुश्री उमा भारती के नमामि गंगे की पिछले साल शुरू की गई करीब दो हजार करोड़ की करीब 309 परियोजनाओं की प्रगति का निरीक्षण करने का निर्णय लिया है, जिसके लिए वह गुरुवार को कोलकाता में गंगा सागर के लिए रवाना हो गई हैं। इस गंगा निरीक्षण अभियान में उमा भारती 15 दिनों तक गंगोत्री तक गंगा नदी के तटीय क्षेत्रों का जायजा लेंगी। मंत्रालय के अनुसार गंगा सागर से गंगोत्री तक गंगा किनारे स्थिति विभिन्न स्थानों पर स्वयं पहुंचकर नमामि गंगे परियोजना की प्रगति की समीक्षा भी करेंगी। इस ढाई हजार किमी लंबी गंगा तटीय यात्रा के दौरान वे काकाद्वीपी, गंगा सागर, कपिलमुनि आश्रम, बैरकपुर, नवद्वीप, मुर्शीदाबाद, फरक्का ,सुल्तानगंज (भागलपुर), मुंगेर, पटना, आरा, बक्सर के बाद उत्तर प्रदेश के वाराणसी पहुंचेंगी। उत्तर प्रदेश में उनके निरीक्षण अभियान की यह यात्रा इलाहाबाद, श्रंगवेरपुर, फतेहपुर, कानपुर, फतेहगढ़, कासगंज, नरोरा, भृगु आश्रम, ब्रजघाट, विदुरकुटी होते हुए उत्तराखंड में प्रेवश करेंगी, जहां हरिद्वार, उत्तरकाशी, होते हुए गंगोत्री में इस अभियान का समापन करेंगी। गौरतलब है कि गत वर्ष सात जुलाई को इन परियोजनाओं को उत्तरााखंड, उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड, पश्चिम बंगाल, हरियाणा और दिल्ली में शुरू किया गया था। इन परियोजनाओं में निहित राष्ट्रीय गंगा स्वच्छता अभियान के तहत नदी घाटों का नवीनीकरण, सीवेज ट्रीटमेंट संयंत्रों का पुनर्वास-विकास, वृक्षारोपण एवं जैव विविधता संरक्षण जैसे कार्य शामिल किये गये हैं।
गंगा चौपालों में होगी चर्चा
मंत्रालय के प्रवक्ता ने बताया कि इस गंगा निरीक्षण अभियान के दौरान सुश्री उमा भारती पश्चिम बंगाल में बैरकपुर स्थित केंद्रीय मत्स्य पालन अनुसंधान संस्थान भी जाएंगी, जहां गंगा में मत्स्य पालन को लेकर होने वाले विशेष अनुसंधान की जानकारी लेंगी। इस यात्रा के दौरान उमा भारती कम से कम तीन दर्जन स्थानों पर गंगा चौपाल भी आयोजित करेंगी, जिसमें नमामि गंगे परियोजना से जुड़े विभिन्न हितधारकों के साथ परियोजना को तेजी से आगे बढ़ाने पर विभिन्न उपायों पर चर्चा की जाएगी। वहीं इस परियोजना में शामिल किये गये सरकारी, गैर सरकारी संगठन, स्वयं सेवी संस्थाओं और स्थानी लोगों के साथ भी चर्चा करके इस अभियान को जनांदोलन बनाने का आव्हान करेंगी।

डिजिटल प्रणाली से जुड़ेंगे दो लाख किसान

को-ब्रांडेड कार्ड देने की योजना की हुई शुरूआत
हरिभूमि ब्यूरो.
नई दिल्ली।
मोदी सरकार के ‘डिजिटल इण्डिया’ कार्यक्रम के तहत देश के किसानों में नगदीरहित लेनदेन प्रणाली विकसित करने की दिशा में पहले चरण में दो लाख किसानों को जोड़ा जाएगा। इसके लिए इफको ने बैंक आॅफ बड़ौदा के साथ मिलकर एक ‘को-ब्रांडेड’ कार्ड बनाकर किसानों को वितरण करना शुरू कर दिया है।
इस योजना के पहले चरण में देश के दो लाख किसानों को इफको-बैंक आॅफ बड़ौदा को-ब्रांडेड कार्ड वितरण के कार्यक्रम को बुधवार को यहां शुरू कर दिया गया है। दिल्ली स्थित इफको सदन में आयोजित एक कार्यक्रम में मेरठ मण्डल के 51 किसानों को इफको के मानव संसाधन एवं विधि निदेशक राजेन्द्र प्रसाद सिंह एवं बैंक आॅफ बड़ौदा के प्रबंध निदेशक पी.एस. जयकुमार ने ‘को-ब्रांडेड’ कार्ड प्रदान किये। किसानों की सहकारी संस्था इफको निदेशक राजेन्द्र प्रसाद सिंह ने किसानों से अधिक से अधिक संख्या में इफको से जुड़कर को-ब्रांडेड कार्ड ग्रहण कर एक माह में ब्याज मुक्त नगदीरहित लेनदेन प्रणाली का लाभ उठाने की अपील की। उन्होंने इस प्रणाली से जुड़ने के फायदों का जिक्र करते हुए कहा कि इफको किसानों को उनकी जरूरत के अनुसार सभी प्रकार के कृषि निवेशों की व्यवस्था में रासायनिक खादों के अलावा सभी प्रकार के जैव उर्वरक, जल विलेय उर्वरक, कृषि रसायन, सूक्ष्म पोषक तत्व, सागरिका(ग्रोथ प्रमोटर) आदि उचित कीमत पर मुहैया करा रहा है, जिसमें जल्द ही अनेक प्रकृतिक उत्पाद इस श्रंखला में शामिल किए जाएंगे।
चार राज्यों में योजना शुरू
इफको निदेशक सिंह ने बताया कि किसानों को फायदा पहुंचाने के लिए शुरूआत में इस योजना को चार राज्यों उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, राजस्थान एवं बिहार में की गई है, जिसे आने वाले समय में अन्य राज्यों में भी लागू कर दिया जाएगा। यह कार्ड इफको के किसान सेवा केंद्र, सहकारी समितियां, इफको ई-बाजार,आईएफएफडीसी केंद्र से उर्वरक क्रय करने वाले किसानों को इन संस्थाओं की संस्तुति पर मिल सकेगा। इस व्यवस्था के तहत प्रथम लेनदेन के समय 100 रुपये मात्र से बैंक आॅफ बड़ौदा में खाता उसी केंद्र पर आधार कार्ड द्वारा खोला जाएगा।

बुधवार, 24 मई 2017

मोदी सरकार की गन्ना किसानों को सौगात

लाभकारी गन्ना मूल्य में 10.87 फीसदी वृद्धि को मंजूरी
हरिभूमि ब्यूरो.
नई दिल्ली।
केंद्र सरकार ने गन्ना किसानों के हित और चीनी उद्योग के महत्व को देखते हुए मौजूदा चीनी मौसम के लिए गन्ने का उचित और लाभकारी 255 रुपये प्रति कुंतल इस शर्त पर निर्धारित करने की मंजूरी दी है कि यह 9.5 प्रतिशत की मूल रिकवरी दर से संबद्ध होगा और इस स्तर से अधिक की रिकवरी में प्रत्येक 0.1 प्रतिशत की वृद्धि के लिए 2.68 रुपये प्रति कुंतल का प्रीमियम देय होगा।
केंद्रीय कृषि मंत्रालय के अनुसार बुधवार को केंद्रीय कैनिनेट की बैठक में आर्थिक समिति द्वारा चीनी मौसम 2017-18 के लिए गन्ने का उचित और लाभकारी 255 रुपये प्रति कुंतल मूल्य की सशर्त मंजूरी दी है। गन्ना किसानों के लिए इस अनुमोदित उचित और लाभकारी मूल्य में चीनी मौसम 2016-17 के उचित और लाभकारी मूल्य से 10.87 प्रतिशत की वृद्धि प्रदर्शित होती है। गन्ने के उचित और लाभकारी मूल्य का निर्धारण कृषि लागत और मूल्य आयोग की सिफारिशों के आधार तथा राज्य सरकारों और अन्य हितधारकों से परामर्श करने के बाद लिया गया है। मसलन उचित और लाभकारी मूल्य उत्पादन लागत, मांग-आपूर्ति की समग्र स्थिति, घरेलू और अंतर्राष्ट्रीय मूल्य, अंतर-फसल मूल्य समानता, प्राथमिक सह-उत्पादों के व्यापार मूल्य जैसे विभिन्न कारकों की शर्तो के तहत लिया गया है। इस प्रकार मंजूर किये गये उचित और लाभकारी मूल्य चीनी मिलों द्वारा चीनी मौसम 2017-18 के दौरान किसानों से गन्ने की खरीद के लिए लागू होगा।
किसानों के हित में कदम
मंत्रालय के अनुसार पिछले तीन सालों के दौरान किसानों को सहायता करने और यह सुनिश्चित करने के लिए कई महत्वपूर्ण कदम उठाए गये, ताकि चीनी मिलों द्वारा उनके गन्ना बकाया का भुगतान कर दिया जाए। केंद्र सरकार ने सेफासु, सरल ऋण, रॉ शुगर के निर्यात हेतु प्रोत्साहन तथा उत्पादन सब्सिडी जैसी स्कीमें लागू की थी। ऐसे हस्तक्षेपों के माध्यम से चीनी मिलों को उपलब्ध कराई गई निधियों का उपयोग किसानों के गन्ना बकाया के भुगतान हेतु किया गया था। किसानों को देय राशि उनके बैंक खातों में जमा कराने का आदेश भी दिया गया था। मंत्रालय के अनुसार चीनी उद्योग एक कृषि आधारित महत्वमपूर्ण उद्योग है जिससे लगभग 50 मिलियन गन्नो किसानों और चीनी मिलों में सीधे रोजगाररत लगभग 5 लाख कामगारों और इसके अलावा खेतिहर मजदूरों तथा परिवहन सहित अन्य गतिविधियों में लोगों की जीविका पर प्रभाव पड़ता है।

भूमि अधिग्रहण में एनएचएआई की भूमिका नही!

उत्तराखंड में विवाद के कारण कई सड़क परियोजनाएं ठप
ओ.पी. पाल.
नई दिल्ली।
केंद्र सरकार की सड़क परियोजनाओं के लिए अधिग्रहित की जाने वाली भूमि के मुद्दे पर घिरे भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण (एनएचएआई) ने साफ किया है कि इस मामले में एनएचएआई की कोई भूमिका नहीं है। ऐसे विवादों के कारण फिलहाल उत्तराखंड में कई परियोजनाएं पूरी तरह से बंद हैं।
दरअसल उत्तराखंड में नगीना-काशीपुर राष्ट्रीय राजमार्ग परियोजना के लिए काशीपुर में भूमि अधिग्रहण के मामले में अनियमितताओं की जांच सीबीआई द्वारा की जा रही है। जांच के कारण यह सड़क परियोजना लंबित पड़ी हुई है। ऐसे ही इस राज्य में कई परियोजनाएं लटकी हुई हैं, जिन्हें लेकर एनएचएआई की भूमिका पर भी सवाल खड़े किये जा रहे हैं। इसलिए एनएचएआई ने सफाई देते हुए कहा कि यह मामला राष्ट्रीय राजमार्ग परियोजनाओं के लिए भूमि अधिग्रहण की प्रक्रिया में राजस्व अधिकारियों द्वारा जमींदारी उन्मूलन अधिनियम की धारा 143 के तहत भूमि उपयोग में कथित परिवर्तन से संबंधित है और भूमि अधिग्रहण की प्रक्रिया को आगे बढ़ाना राज्य सरकार के क्षेत्राधिकार में है। इसलिए एनएचएआई के अधिकारियों की भूमि अधिग्रहण प्रक्रिया में किसी प्रकार की कोई भूमिका नहीं है। एनएचएआई का कहना है कि उत्तराखंड में चार धाम परियोजना यानि केदारनाथ, बद्रीनाथ, यमुनोत्री और गंगोत्री भी भारतमाला परियोजना के तहत भी पटरी पर उतारी जा चुकी है, लेकिन इस मामले का उस पर कोई असर नहीं है।
मुआवजा देने तक सीमित
एनएचएआई के मुख्य महाप्रबंधक विष्णु दरबारी ने इस संबन्ध में कहा कि एनएचएआई ने इस मामले में कभी भी एजेंसी द्वारा किसी भी जांच या जांच के लिए कोई आपत्ति नहीं जताई है, क्योंकि एनएचएआई ने राज्य सरकार के अधिकारियों और भूमि अधिग्रहण मामलों में एनएचएआई के अधिकारियों की भूमिका और जिम्मेदारियां स्पष्ट हैं। राजमार्गो के लिए भूमि अधिग्रहण के मामले में मुआवजे की राशि तय करने में भी एचएचएआई की कोई भूमिका नहीं है और केवल वह राशि जमा करने और भुगतान करने तक ही समित है। दरबारी का कहना है कि भूमि अधिग्रहण के लिए मुआवजा राशि संबन्धित राज्यों के राजस्व अधिकारियों और विवाद की स्थिति में न्यायालयों द्वारा तय की जाती है। एनएचएआई ने यह भी आशंका जताई है कि यदि ऐसे मामले विवादों में रहे और उनका समय से निपटना नहीं किया गया तो तो इसका असर अन्य राज्यों में चल रही परियोजनाओं पर भी पड़ सकता है, जिसके कारण देश में चल रही राष्ट्रीय राजमार्ग विकास परियोजनाओं के प्रभावित होने से इंकार नहीं किया जा सकता।

शहरी परिवहन क्षेत्र में मदद करेगा ब्रिटेन

जल्द होगा भारत और ब्रिटेन में समझौता
हरिभूमि ब्यूरो.
नई दिल्ली।
देश की परिवहन व्यवस्था में बदलाव की जारी कवायद में केंद्र सरकार ई-वाहनों को सड़कों पर उतारने की तैयारी में जुटी हुई है। इस संबन्ध में भारत और ब्रिटेन में शहरी परिवहन क्षेत्र में प्रौद्योगिकी हस्तांतरण, नीति योजना और संस्थागत संगठन के क्षेत्र में सहयोग पर सहमति बन चुकी है, जिसके लिए दोनों देशों के बीच जल्द ही एक द्विपक्षीय समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किये जाएंगे।
केंद्रीय सड़क परिवहन एवं राजामार्ग मंत्रालय के अनुसार भारत इलेक्ट्रिक वाहनों को सड़कों पर उतारने की योजनाएं बना रहा है, जिसके लिए ब्रिटेन में चल रही डबल डेकर बसों की तर्ज पर भारतीय इलेक्ट्रिक वाहनों के मॉडल लाना चाहता है। मंत्रालय के अनुसार पिछले सप्ताह ब्रिटेन की यात्रा पर गये केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी ने लंदन में चल रही इलेक्ट्रिक डबल डेकर बसों का जायजा भी लिया और वहां के ट्रांसपोर्ट फॉर लंदन (टीएफएल) के साथ विचार विमर्श करके इस बात की सहमति बनाई कि ब्रिटेन भारत में भी इलेक्ट्रिक वाहनों के परिचालन के लिए खासकर शहरी परिवहन क्षेत्र में सहयोग करेगा। मंत्रालय ने बताया कि इसके लिए जल्द ही दोनों देशों के बीच इस दिशा में सहयोग के लिए भारत के सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्रालय तथा ब्रिटेन के ट्रांसपोर्ट फॉर लंदन (टीएफएल) के बीच एक समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए जाएंगे। मंत्रालय के अनुसार यह प्रस्तावित समझौता शहरी परिवहन क्षेत्र में नीतिगत योजना, प्रौद्योगिकी हस्तांतरण और संस्थागत संगठनों के क्षेत्र में सहयोग के लिए किया जाएगा। हालांकि दोनों देशों में इस परिवहन व्यवस्था को लेकर सहमति को अंतिम रूप दिया जा चुका है, लेकिन समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर की प्रक्रिया राजनयिक चैनल के तहत ही जल्द ही पूरी करने का प्रयास किया जा रहा है।

सिंगापुर ने खोले हरियाणा में निवेश के रास्ते

हरियाणा सरकार के सिंगापुर के साथ हुए पांच समझौते
राज्य में 18 हजार करोड़ की परियोजनाओं को मिलेगा बल
हरिभूमि ब्यूरो.
नई दिल्ली।
हरियाणा सरकार ने राज्य में औद्योगिक क्षेत्र को सिंगापुर की तर्ज पर विकसित करने की दिशा में सिंगापुर में 18 हजार करोड़ रुपये की परियोजनाओं के लिए पांच समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किये गये हैं। इस मौ
यहां हरियाणा सरकार के प्रवक्ता ने यह जानकारी देते हुए बताया कि हरियाणा सरकार ने प्रगतिशील हरियाणा राज्य की निवेश संभावनाओं और अवसरों का प्रदर्शन करने के लिए मंगलवार को सिंगापुर में एक रोड शो आयोजित किया, जिसमें सिंगापुर की 100 से अधिक शीर्ष कंपनियों के प्रतिनिधियों ने भागीदारी की। इस दौरान सिंगापुर और हरियाणा सरकार के बीच हरियाणा में 18 हजार करोड़ रुपये की परियोजनाओं के लिए पांच समझौता ज्ञापनों पर हस्ताक्षर किए गये। ये करार राज्य में टाउनशिपस, लॉजिस्टिक्स पार्क, वेलनेस परियोजनाएं, बिजली सम्प्रेषण एवं वितरण, सस्ते आवास, हरित बिजली उत्पादन, अनाज सुखाने के यार्ड्स, विमानन हब, औद्योगिक आधारभूत संरचना और स्मार्ट सिटीज जैसी परियोजनाओं के लिए किये गये हैं, जिनमें सिंगापुर की शीर्ष कंपनियां निवेश करेंगी।
हरियाणा उद्यम के लिए अनुकूल: मनोहर
सिंगापुर के दौरे पर गये हरियाणा सरकार के प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व कर रहे हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल ने इस रोड़ शो के दौरान सिंगापुर के निवेशकों को संबोधित करते हुए उन्हें राज्य में निवेश के लिए आकर्षित करने की दिशा में कहा कि हरियाणा में अपार निवेश अवसर हैं और हरियाणा उद्यमों के विकास के लिए एक बहुत अनुकूल इको-सिस्टम प्रदान करता है। वहीं उन्होंने सिंगापुर के उद्यमियों को राज्य में निवेश करने के लिए आमंत्रित भी किया। हरियाणा के लिए अपने दृष्टिकोण को सांझा करते हुए मुख्यमंत्री ने कहा कि उनकी सरकार हरियाणा को एक जीवंत और अंतर्राष्ट्रीय  स्तर पर प्रतिस्पर्धी गंतव्य स्थल के रूप में बढ़ावा देने के लक्ष्य पर योजनाएं बना रही है। सरकार विनिर्माण, सेवा और ज्ञान क्षेत्रों में बढ़त हासिल करते हुए राज्य को एक कॉरपोरेट कैपिटल, औद्योगिक केंद्र और आवासीय और मनोरंजन केंद्र बनाना चाहते हैं।

सोमवार, 22 मई 2017

साक्षात्कार: विकास के रास्ते होगा नक्सलियों का अंत!

देश के विकास के लिए आदिवासी इलाकों का विकास जरूरी: ओराम
ओ.पी. पाल. नई दिल्ली।
मोदी सरकार देश के गरीबों और आदिवासियों के कल्याण और आदिवासी इलाकों के विकास के लिए प्रतिबद्ध है। तीन साल के कार्यकाल के दौरान आदिवासी खासकर नक्सल प्रभावित इलाकों में सरकार की योजनाओं को लेकर केंद्रीय आदिवासी मामलों के मंत्री जुएल ओराम से हरिभूमि संवाददाता की खास बातचीत हुई, जिसके अंश इस प्रकार हैं:-
* आदिवासी जमीन पर औद्योगिक घराने बड़ा लाभ उठा रहे हैं जिनकी जमीन है उन्हें कुछ नहीं मिल पा रहा, क्या ये नक्सल समस्या बढ़ने का कारण तो नहीं है?
-भारत सरकार की इन तीन सालों में जमीन के बारे में कोई विशेष पॉलिसी नहीं आई है और खासकर आदिवासी में किसी प्रकार के दखल या ऐसी पॉलिसी लाने का इरादा भी नहीं है। स्वाभाविक है आदिसासी क्षेत्रों में इंडस्ट्री, माइनिंग, जल, जंगल और अन्य संसाधन होने के कारण देश के विकास के लिए आदिवासी क्षेत्रों का विकास जरूरी है। ऐसा भी नहीं है कि ये नक्सलवाद की समस्या का कारण है।
* आदिवासी जमीन पर उद्योग लगाने से पहले ग्राम सभा की अनुमति को भी लागू नहीं होने दिया जा रहा, क्यों?
-नहीं.. ये तो पूरे देश में लागू है कि ग्राम सभा की अनुमति के बिना कोई भी प्रोजेक्ट नहीं आएगा। ओडिशा सरकार के प्रस्ताव पर वेदांता कंपनी का प्रोजेक्ट इसी नियम के तहत रद्द हो चुका है। इसमें किसी प्रकार की ढ़िलाई नहीं है।
* आदिवासी जमीन पर उद्योग की बात हो या फिर पर्यावरण सहमति की, क्या इस मसले पर आदिवासी मंत्रालय को भी नोडल मंत्रालय में शामिल करने की योजना पर आपकी पीएम से बात हुई ?
-देखिए, इसमें पर्यावरण मंत्रालय अपने हिसाब से अपना मत देता है और जनजाति मंत्रालय जनजाति हितों की रक्षा करता है। भारत सरकार के दोंनों मंत्रालयों के अपने-अपने क्षेत्राधिकार के तहत अपने-अपने दायित्व निभा रहे हैं, इसलिए ऐसा कोई प्रस्ताव नहीं है।
* क्या वनाधिकार कानून पूरी तरह देश में लागू हो पाया? क्या सभी को वनभूमि पट्टे मिल गए?
-हां, पूरी तरह लागू है केवल तमिलनाडु को छोड़कर, जहां मामला अदालत में विचाराधीन है। कानून के तहत देशभर में करीब 55.09 लाख हेक्टेयर वनभूमि के पट्टे आवंटित करके 17.20 लाख से ज्यादा लोगों को लाभांन्वित किया गया है। वनभूमि पट्टा यह योजना बिना किसी ढ़िलाई के बढ़िया चल रही है।
* क्या कारण है कि पीएम मोदी की वन बंधु कल्याण योजना को बंद करना पड़ा?
-नहीं ऐसा नहीं है ये बढ़िया से चल रही है। सरकार की ये दस ब्लॉकों के लिए एक सीमित योजना है और इसके लिए केंद्र को 10-10 करोड़ रुपये की राशि अतिरिक्त रूप से देनी पड़ी है। इस योजना का मकसद आदिवासी लोगों की शिक्षा, स्वास्थ्य, जल, कृषि एवं सिंचाई, बिजली, स्वच्छता, कौशल विकास, खेल, हाउसिंग और आजीविका जैसे महत्वपूर्ण क्षेत्र का विकास करना है।
* नक्सली इलाकों में आदिवासियों तक सरकारी योजनाएं नहीं पहुंच पा रही है, इसका क्या कारण है?
-नहीं इसका कारण नक्सल भी है, जो विकास के खिलाफ काम कर रहा है। ऐसे इलाकों में विकास योजनाओं को लागू करना बेहद मुश्किल काम है, लेकिन फिर भी सरकार आदिवासियों के बुनियादी विकास के लिए कटिबद्ध है।
* सरकार के स्तर पर नक्सलग्रस्त इलाकों तक विकास योजनाओं की पहुंच कैसे होगी?

-देखिए इसके लिए केंद्र और राज्य सरकारें मिलकर काम कर रही हैं। बल्कि नक्सल प्रभावित इलाकों में सरकारें भी अकेले योजनाओं की पहुंच नहीं बना सकती, इसलिए के जन भागीदारी और समर्थन को सुश्चित करने के लिए राज्य सरकारों के जरिए जागरूकता कार्यक्रम चलाए जा रहे हैं
* छत्तीसगढ़, झारखंड और ओड़िशा सहित अन्य राज्यों में लुप्त हो रहे आदिम आदिवासियों और उनकी भाषा को संरक्षित करने के क्या उपाय किए जा रहे हैं?
-हां ये थोडा कम हुआ है, इसका कारण आदिवासियों के बाहर निकलने से लुप्त होती भाषा को पुनर्जीवित करने के लिए केंद्र सरकार ने अपने कोशिशों को तेज कर दिया है, ताकि आदिवासियों की संस्कृति और भाषाओं का संरक्षित रखा जा सके।
* प्रधानमंत्री ने आदिवासियों में स्किल डेवलपमेंट की जरूरत पर बल दिया है, उस दिशा में क्या हो रहा है?
-हां बोल दिया है प्रधानमंत्री जी ने लोगों को टेÑनिंग देने के लिये। अलग से कौशल विकास मंत्रालय बनने से इस दिशा में ज्यादा लाभ हुआ है और पीआईओ को कम से कम 70 प्रतिशत प्रशिक्षित युवाओं को रोजगार मुहैया कराने के निर्देश भी दिये गये हैं।
* मन की बात में प्रधानमंत्री ने सभी आदिवासी समाज को मिलाकर अलग-अलग राज्यों में आदिवासी उत्सव मनाने का फार्मूला दिया था, उस दिशा में क्या हो रहा है?
-बिल्कुल सही, इसके लिए मंत्रालय ने राष्ट्रीय स्तर का ट्राइबल कर्निवल दिल्ली में किया और अन्य राज्य भी इस प्रकार के उत्सवों में अपनी-अपनी संस्कृतियों को उकेर रहे हैं। कुछ राज्य जो ऐसा नहीं कर रहे हैं उन्हें इसके लिए समझाया जा रहा है।
* आप 1999 में पहली बार आदिवासी मंत्रालय के आकार लेने के बाद मंत्री बने थे आज भी हैं क्या अंतर पाते हैं, तब और अब में?
-बहुत ज्यादा अंतर! आदिवासी मंत्रालय का बजट जहां 800 करोड था अब 8500 करोड़ हो गया है और मंत्रालय में आदिवासी कल्याण योजनाओं का नई तकनीकों के साथ विस्तार के अलावा कई गुणा गतिविधियां भी बढ़ने से कहीं ज्यादा प्रभावी मंत्रालय का रूप ले चुका है।
* देश में आदिवासियों के कल्याण के लिए और क्या योजनाएं हैं?
-आदिवासी कल्याण और विकास तहत बच्चों को शिक्षा के प्रति जागरूक करने की दिशा मेें मंत्रालय द्वारा स्वीकृत 259 एकलव्य मॉडल स्कूलों में से अब तक 161 शुरू हो चुके है। वहीं 50 फीसदी से ज्यादा की जनसंख्या वाले 662 ऐसे ब्लॉक चिन्हित किये, जहां एकलव्य स्कूलों की तर्ज पर अगले 5 साल में आवासीय स्कूल खोलने की योजना है।
* देश में आदिवासियों के साथ दुर्व्यव्यहार और यातनाएं देने की शिकायते हैं, ऐसे आरोप वर्षा डोंगरे ने लगाए हैं। इसमें क्या सच्चाई है?
-यह सही नहीं है, अपराधी का काई धर्म नहीं होता, वह अपराधी होता है चाहे आदिवासी हो या अन्य कोई। हालांकि ऐसी कोई शिकायतें मंत्रालय को नहीं मिली है।
22May-2017

शुक्रवार, 19 मई 2017

जीएसटी के दायरे में नहीं शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाएं

वित्तीय सेवाओं में नजर आएगी महंगाई
अनाज व दूध जैसी घरेलू वस्तुएं होंगी करमुक्त
हरिभूमि ब्यूरो.
नई दिल्ली।
देश में ऐतिहासिक कर सुधार की दिशा में आगामी एक जुलाई को लागू होने वाले प्रस्तावित जीएसटी कानून को लेकर माथापच्ची कर रही जीएसटी परिषद ने सोने सोने समेत कुछ जींसों को छोड़कर ज्यादातर सेवाओं के लिए कर दरों को अंतिम रूप दिया है। इसमें जहां शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं को जीएसटी के दायरे से बाहर रखने का फैसला किया गया, वहीं अनाज व दूध जैसी घरेलू वस्तुएं करमुक्त रहेंगी।
देश के इतिहास में सबसे बड़ा टैक्स सुधार की दिशा में एक जुलाई से वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) कानून लागू करने के प्रयास में जम्मू-कश्मीर के श्रीनगर में दो दिन तक चली जीएसटी परिषद की बैठक में सोने जैसी कुछ जींसों को छोड़कर बाकी 90 फीसदी से ज्यादा सेवाओं के कर निर्धारण पर सहमति बन चुकी है। अब तीन जून को फिर होने वाली परिषद की बैठक में सोने आदि के कर निर्धारण को भी अंतिम रूप दे दिया जाएगा। 14वीं बैठक में जीएसटी परिषद ने प्रस्तावित जीएसटी कानून से जुड़े 9 अहम नियमों को मंजूरी दे दी गई है। सूत्रों के अुनसार इस बैठक में जीएसटी को आम जनता की राहत का हथियार बनाने के प्रयास में परिषद ने शिक्षा और स्वास्थ्य देखभाल जैसी सेवाओं को जीएसटी से छूट देने का फैसला किया। अन्य सेवाओं पर चार अलग अलग दरों 5,12,18 व 28 प्रतिशत जीएसटी लगाने का फैसला पहले ही किया जा चुका है। इस बैठक में केन्द्र और राज्यों के बीच अहितकर और लक्जरी सामानों पर 28 प्रतिशत की शीर्ष दर के ऊपर उपकर लगाने पर सहमति बनी है।
अनाज व दूध करमुक्त
जीएसटी के तहत अनाज, दूध व पूजा सामग्री करमुक्त करने का फैसला किया गया है। इसी प्रकार लाटरी पर कोई कर नहीं लगाया जाएगा। वहीं चीनी, चाय और खाद्य तेल 5 फीसद टैक्स स्लैब के दायरे में होंगे। इसके अलावा घीं और ड्रॉई फ्रुट्स, फ्रीज किए हुए मांस उत्पाद, पैकिंग में आने वाले बटर, चीज, एनिमल फैट सॉसेज, फ्रूट जूस, भूटिया, नमकीन, आयुर्वेदिक दवाएं, टूथ पावडर, कलरिंग बुक्स, पिक्चर बुक्स, छाते, सिलाई मशीन और मोबाइल फोन 12 प्रतिशत टैक्स के दायरे में आ जाएंगे। इस कर के दायरे में आईस्क्रीम, रिफाइंड शक्कर, पास्ता, कॉर्नμलैक्स, पैस्ट्री और केक, प्रीजर्व की हुई सब्जियां, मिनरल वाटर, जैम, सॉस, सूप, इंस्टेंट फूड मिक्स, टिशू, लिफाफे, नोट बुक, स्टील के बर्तन, प्रिंटेज सर्किट, स्पीकर्स और मॉनिटर्स के अलावा कैमरों पर 18 प्रतिशत टैक्स लगने वाला है।
राहत के साथ हल्की होंगी जेबें
जीएसटी के लिए परिषद द्वारा तय किये गये नए नियमों के तहत रजिस्ट्रेशन, रिटर्न, रिफंड, कंपोजीशन, ट्रांजिशन, इनवॉइस, पेमेंट, वैल्युएशन और इनपुट टैक्स क्रेडिट शामिल है। दूरसंचार, वित्तीय सेवाओं पर 18 प्रतिशत की दर से जीएसटी लगेगा, तो सिनेमा हॉल, जुआघरों और घुड़ दौड़ पर 28 प्रतिशत की दर से जीएसटी लगाया जायेगा। बैठक के बाद केंद्रीय वित्त मंत्री जेटली ने कहा कि एसी सुविधा वाले और शराब परोसने का लाइसेंसयुकत रेस्त्रां पर 18 प्रतिशत, पांच सितारा होटलों पर 28 प्रतिशत और 1,000 से 2,500 रुपये की दर वाले होटलों और नॉन एसी रेस्टोरेंट पर 12 फीसद की दर से सेवा कर लगाया जाएगा। जबकि 5000 रुपए प्रति रात से ऊपर के किराए वाले होटल्स पर 28 फीसद की दर से जीएसटी लागू होगा।

गुरुवार, 18 मई 2017

‘फास्टैग’ जल्द बन सकता है विश्व ब्रांड!

सरकार ने ई-टोलिंग प्रणाली से कमाया 1051 करोड़
ओ.पी. पाल.
नई दिल्ली।
केंद्र सरकार की देश में ई-परिवहन प्रणाली लागू करने की कवायद में देशभर के सभी टोल प्लाजाओं पर ई-संग्रहण व्यवस्था लागू कर दी गई है, जिसके तहत केंद्र सरकार दो साल में 4.79 लाख फास्टैग की बिक्री करके 1051 करोड़ रुपये का राजस्व कमा चुकी है। सरकार को उम्मीद है कि ईटीसी व्यवस्था में जल्द ही भारत का फास्टैग विश्व ब्रांड बन सकता है।
देश की परिवहन व्यवस्था में बदलाव करने में जुटी केंद्र सरकार द्वारा राष्ट्रीय राजमार्गो पर टोल प्लाजाओं पर इलेक्ट्रॉनिक टोल कलेक्शन (ईटीसी) प्रणाली लागू की गई है। इस व्यवस्था के तहत निजी वाहन मालिक अपनी गाड़ी पर 'फास्टैग' नामक स्मार्ट टैग लगाकर बिना रूके और भुगतान किये राष्ट्रीय राजमार्गो पर सरपट दौड़ा सकते हैंं। मसलन फास्टैग वाले वाहनों का स्वत: ही निर्धारित कैशलेस भुगतान हो जाएगा। केंद्रीय सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्रालय के सूत्रों के अनुसार भारतीय राष्टÑीय राजमार्ग प्राधिकरण के देशभर में 350 टोल प्लाजाओं में से 275 टोल प्लाजाओं पर इलेक्ट्रॉनिक्स संग्रह प्रणाली शुरू हो गई है। अन्य टोल प्लाजा भी जल्द ही यह प्रणाली से जोड़ दिये जाएंगे। सभी सरकार द्वारा वर्ष 2015 में लागू की गई रेडियो फ्रीक्वेंसी टैग की ई-टोलिंग व्यवस्था के तहत अब तक यानि गत 15 मार्च 2017 तक देशभर में 4.79 लाख फास्टैग वाहन मालिकों खरीद चुके हैं और फास्टैग के बदले सरकार को 1051 करोड़ रुपये का राजस्व प्राप्त हुआ है। इसका मकसद राष्ट्रीय राजमार्गो पर निजी वाहनों के सफर को सुगम बनाने और टोल प्लाजाओं पर लगने वाले वाहनों के जमघट को कम करना है।
'शैडो टॉलिंग' स्कीम
मंत्रालय के सूत्रों के अनुसार निजी वाहन मालिकों को फास्टैग में ठीक उसी तरह टोल टैक्स में छूट देने की दिशा में 'शैडो टॉलिंग' स्कीम शुरू की है, जिस प्रकार मेट्रो टेÑन में स्मार्ट कार्ड खरीदने वाले यात्री को किराए में छूट मिल रही है। 'शैडो टॉलिंग' स्कीम की नीति को सरकार ने ऐसे निजी वाहनों को टोल में छूट देने के इरादे से तैयार किया है, जो अपने वाहनों में 'फास्टैग' स्मार्ट टैग लगवाएंगे। फास्टैग यह एक तरह से सालाना टोल पास है, जिसमें वाहन चालकों को साल में एक बार ही भुगतान करना होगा। सूत्रों ने बताया कि इस स्कीम के तहत मासिक भुगतान करने की भी व्यवस्था लागू की गई है। एनएचएआई के अनुसार इस कैशलेस सिस्टम को 'फास्टैग' नाम दिया गया है। इस प्रणाली को प्रोत्साहन देने के लिए 10 फीसदी कैशबैक का भी आॅफर दिया जा रहा है, जिसके तहत टोल प्लाजा पर जितनी राशि कटेगी, उसका दस फीसदी राशि उसी वाहन मालिक के खाते में क्रेडिट हो जाएगी।
विश्व ब्रांड बनेगा टैग
सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्रालय का दावा है कि राजमार्गों पर इलेक्ट्रॉनिक टोलिंग व्यवस्था के तहत निजी वाहनों के आरएफआईडी टैग यानि ‘फास्टैग’ लगने के बाद भारत उन विकसित देशों में शामिल होने की राह पर है, जहां फास्टैग जैसे हाईवे टैग ब्रांड में शुमार हैं। विश्व में पहले से ही अमेरिका में ईजी पास और सन पास, आॅस्ट्रेलिया में ई-पास तथा दुबई में सालिक नाम से आरएफआईडी टैग जारी किए जाते हैं।
टोल प्लाजा पर फास्टैग लेन 
मंत्रालय के अनुसार इलेक्ट्रॉनिक टोल वसूलने के लिए देशभर में राष्टÑीय राजमार्गो के प्रत्येक टोल प्लाजा पर एक विशिष्ट ‘फास्टैग’ लेन बनाना अनिवार्य किया जा चुका है, जहां से केवल इलेक्ट्रॉनिक टोलिंग के लिए स्मार्ट टैग ‘फास्टैग’ लगे वाहनों को ही आने-जाने की अनुमति होगी। टोल प्लाजा की इन्हीं लेन पर ऐसे वाहनों के फास्टैग कार्ड को भुगतान के लिए सर्च करने के लिए इलेक्ट्रॉनिक टोलिंग सिस्टम होगा। ऐसे वाहनों के लेन से गुजरते ही उनके खाते से टोल की राशि का स्वत: ही भुगतान होकर पहले टोल संचालक और बाद में रोड डेवलपर के खाते में चली जाएगी।

अब आप केवल 10 दिन में निकाल सकते हैं पीएफ का पैसा

ओ.पी पाल/नई दिल्ली
केंद्र सरकार द्वारा कर्मचारियों को राहत देने की दिशा में उठाए गये कदमों के तहत कर्मचारी भविष्य निधि संगठन यानि ईपीएफओ ने पीएफ निकासी, पेंशन और बीमा जैसे विभिन्न दावों के निपटान की समयसीमा को घटाकर 20 दिन के बजाए 10 दिन कर दिया है।
ईपीएफ के धन का भुगतान दस दिन में मिल सकेगा। वहीं ई-कोर्ट प्रणाली में विवादों का निपटान 15 दिन में किया जाएगा। केंद्रीय श्रम और रोजगार मंत्रालय के अनुसार केंद्रीय मंत्री बंडारू दत्तात्रे ने ईपीएफओ के नागरिक चार्टर 2017 और ई-कोर्ट प्रबंधन प्रणाली का शुभारंभ किया है।
ऑनलाइन क्लेम सुविधा
मंत्रालय के अनुसार ईपीएफओं के करीब 4 करोड़ से अधिक अंशधारकों को बेहतर सेवा उपलब्ध कराने के लिए संगठन ने गत एक मई 2017 को ऑनलाइन क्लेम सेटलमेंट सुविधा भी शुरू की है। संगठन की योजना है कि आधार और बैंक एकाउंट से जुड़े सभी ईपीएफ खातों के दावों का निराकरण आवेदन मिलने के तीन घंटे के भीतर ही कर दिया जाए। ईपीएफओ ने एक बयान में कहा है कि क्लेम निपटान की समयावधि 10 दिन और शिकायत निवारण प्रबंधन के लिए 15 दिन कर दिया गया है। ईपीएफओ के अनुसार पीएफ अंशधारक अपने पीएफ की रकम निकालने की पूरी प्रक्रिया को ऑनलाइन पूरा कर सकते हैं। इसके लिए उन्हें एम्पलॉयर और ईपीएफओ के फील्ड ऑफिस में जाने की जरूरत नहीं होगी। पीएफ की प्रक्रिया ऑनलाइन पूरी होने के बाद पैसा अपने आप बैंक खाते में आ जाएगा। गौरतलब है कि जुलाई 2015 में कर्मचारी भविष्य निधि संगठन ने विभिन्न दावों को निपटाने की समयावधि को घटाकर 20 दिन किया था। 
नागरिक चार्टर का प्रावधान
केंद्रीय श्रम मंत्री दत्तात्रे द्वारा जारी ईपीएफओ के नागरिक चार्टर- 2017 के लिए यह नए प्रावधान के तहत ईपीएफओ में सेवा आपूर्ति तंत्र और शिकायत निवारण तंत्र को और अधिक सक्षम बनाने में सहायक होगा। जबकि ईपीएफओ की शुरू की गई ई-कोर्ट प्रबंधन प्रणाली प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के डिजिटल इंडिया अभिन्न के अनुरूप है। इस परियोजना का मकसद एक पारदर्शी और इलेक्ट्रॉनिक कैश मैनेजमेंट सिस्टम बनाना है, जो सभी प्रतिभागियों की आकांक्षाओं को पूरा करेगा। यह पेपरलेस कोर्ट सिस्टम की ओर बढ़ाया गया एक कदम है, जहां ईपीएफ और एमपी एक्ट 1952 और ईपीएफएटी (ट्रिब्यूनल) की कोर्ट प्रक्रिया डिजिटल तरीके में तब्दील होगी।
18May-2017

बुधवार, 17 मई 2017

‘सागरमाला’ कार्यक्रम को अब लगेंगे पंख!

तटीय क्षेत्रों में युवाओं का होगा कौशल विकास
कार्यक्रम को मिला ग्रामीण कौशल्या योजना का साथ
ओ.पी. पाल.
नई दिल्ली।
देश के बंदरगाहों और सभी तटवर्ती शहरो को बेहतर सड़क, रेल, हवाई और समुद्री मार्ग से जोड़ने के लिए केंद्र सरकार की महत्वाकांक्षी परियोजना ‘सागरमाला’ कार्यक्रम से देश की आर्थिक तस्वीर बदलने के प्रयास किये जा रहे हैं। पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के सपनों से जुड़े इस कार्यक्रम को अंजाम देने की दिशा में रेल व कौशल विकास के बाद ग्रामीण मंत्रालय भी अपनी दीनदयाल उपाध्याय कौशल्या योजना के साथ आगे आ गया है।
मोदी सरकार का इस सागरमाला कार्यक्रम के जरिए देश के प्रमुख बंदरगाहों के तटीय आर्थिक क्षेत्रों की आबादी का आधुनिक विकास करना प्रमुख मकसद है। समुद्री कारोबार को प्रोत्साहन देने के लिए बंदरगाहों तक माल के तीव्र, दक्षतापूर्ण और किफायती ढंग से आवाजाही को आसान बनाना इस योजना का मकसद है। सरकार देश की 7500 किमी लंबी तटीय रेखा से जुडेÞ शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों में बुनियादी ढांचा मजबूत करने में जुटी है। इस कार्यक्रम में रेल संपर्क मार्गो की पहुंच को बंदरगाहों तक बनाने के लिए रेलवे की 21 परियोजनाएं पटरी पर आ चुकी हैं। अब एक दिन पहले ही केंद्रीय सड़क परिवहन एवं जहाजरानी मंत्रालय ने ग्रामीण विकास मंत्रालय के साथ एक करार किया है। इस करार के तहत ग्रामीण विकास मंत्रालय अपनी दीन दयाल ग्रामीण कौशल्या योजना के तहत तटीय क्षेत्रों के युवाओं का कौशल विकास करने में सहयोग देगा। इस करार का मकसद ‘दीन दयाल उपाध्याय ग्रामीण कौशल्या योजना’ के सहारे स्थानीय युवाओं को इस महत्वाकांक्षी परियोजना ‘सागरमाला’ कार्यक्रम के तहत रोजगार मुहैया कराया जा सके। इस समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर दोनों मंत्रालयों के केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी और नरेन्द्र सिंह तोमर की मौजूदगी में किये गये।
परियोजना में युवाओं का योगदान
केंद्रीय जहाजरानी मंत्री नितिन गडकरी का कहना है कि यह समझौता बंदरगाह और समुद्री क्षेत्र में उद्योगों की सटीक कौशल जरूरतों को पूरा करेगा। युवाओं के कौशल विकास के साथ सागरमला में तटीय समुदायों की निकट सहभागिता होने से तटीय क्षेत्र के समेकित व आर्थिक विकास को बल मिलेगा। गडकरी का कहना है कि सागरमाला कार्यक्रम में तटीय समुदाय प्रमुख हितधारकों में है, इसलिए सरकार ने इस परियोजना के तहत 100 करोड़ रुपये का बजट तटीय सामुदायिक विकास संबन्धी गतिविधियों के लिए आवंटित किया गया है।
मछुआरों को मिलेगी सुविधा
केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी ने इस परियोजना के तहत मछुआरों को मशीनीकृत ट्रॉलरों की सुविधाजनक देने की योजना का खाका तैयार करने की भी जानकारी दी। इस योजना से मछुआरों को अंतर्राष्ट्रीय समुद्र में 30-40 समुद्री मील तक मछली तक पहुंचाने की अनुमति दी जाएगी, जिसका मकसद भी तटवर्ती इलाकों में युवाओं के लिए रोजगार सृजन करना है, जहां मछली पकड़ने और उसका व्यापार एक बड़ा उद्योग के दायरे में है। सरकार की इस योजना में मछली और अन्य समुद्री उपजों की प्रोसेसिंग, पैकेजिंग और निर्यात भी शामिल है। वहीं तटीय इलाकों में दीपगृहों के आसपास पर्यटन विकसित करके ग्रामीण क्षेत्रों में ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार मुहैया कराने का लक्ष्य है।

मंगलवार, 16 मई 2017

कानूनों में बदलाव से बढ़ी श्रमिकों की सुरक्षा

तीन साल में हुई श्रमिकों के हित में अनेक पहल
हरिभूमि ब्यूरो.
नई दिल्ली।
केंद्र सरकार ने इन तीन सालों में 44 श्रम कानूनों को एकीकृत करके श्रमिकों की सुरक्षा को पुख्ता करने का दावा किया है। मोदी सरकार ने इन तीन सालों में श्रमिकों की न्यूनतम मजदूरी तय करने के अलावा अन्य सुविधाएं देने के साथ सामाजिक सुरक्षा के दायरे को भी बढ़ाया है।
केंद्रीय श्रम एवं रोजगार मंत्री बंडारू दत्तात्रेय ने मोदी सरकार के तीन साल के कार्यकाल में अपने मंत्रालय की
उपलब्धियों का बखान करते हुए कहा कि सरकार की प्राथमिकता रोजगार की सुरक्षा, मजदूरी सुरक्षा और समाजिक सुरक्षा सहित समावेशी विकास करना है। मंत्रालय ने देश में सभी क्षेत्रों के कामगारों के कल्याण के लिए जनधन योजना योजना के तहत 15 करोड़ से भी अधिक बैंक खाते खोले गये हैं और जीवन छत्र, पेंशन सहित समेत करीब 10 करोड़ से अधिक रुपे डेबिट कार्ड भी जारी किए गए। उनका कहना है कि श्रमिकों को रसोई गैस में सब्सिडी और उज्जवला योजना के तहत श्रमिकों की महिलाओं को गैस सिलेंडर भी दिये गये हैं।
प्राथमिकता में रोजगार सृजन 
श्रम एवं रोजगार मंत्रालय ने रोजगार सृजन को प्राथमिकता में रखते हुए लगभग 3.78 करोड़ उम्मीदवारों, 14.8 लाख स्थापनाओं से अधिक एनसीएस पोर्टल पर पंजीकृत कराए है, जिसके जरिए 4.65 लाख रिक्तियां भी भरी गई हैं। रोजगार सृजन की दिशा में केंद्र सरकार ने हाल ही में सरकारी रिक्तियों का एनसीएस पोर्टल पर डाला जाना अनिवार्य किया है। इस परियोजना में स्तरीय रोजगार मुहैया कराने हेतु 100 मॉडल कैरियर केन्द्रों तक गठन का प्रावधान है और ये केन्द्र राज्यों और संस्थानों के सहयोग से गठित किए जा रह हैं। वहीं पिछले वर्ष के दौरान देशभर में 540 रोजगार मेलों का आयोजन किया गया।

सोमवार, 15 मई 2017

पैकटबंद खाद्य पदार्थो पर होगा स्पष्ट ब्यौरा!


पेय पदार्थो की बोतलों से लेबल हटाने की तैयारी
ओ.पी. पाल.
नई दिल्ली।
केंद्र सरकार ने ऐलान किया कि पेय पदार्थो की बोतलों खासकर प्लास्टिक बोतल से लेबल हटाए जाएंगे और बोतलों पर ही आईएसआई मार्का, एमआरपी, एक्सपायरी तिथि जैसे विवरण गोदने की योजना है। वहीं खाद्य पदार्थो के बंद पैकेटों पर इस प्रकार के ब्यौरे बड़े-बड़े अक्षरों में प्रकाशित करने के दिशा निर्देश जारी कर दिये गये हैं।
केंद्रीय खाद्य एवं उपभोक्ता मामले मंत्री राम विलास पासवान ने सोमवार को यहां मोदी सरकार के तीन साल में अपने मंत्रालय की उपलब्धियों का बखान करते हुए इस ऐलान करने की वजह भी बताई। उनका कहना है कि खाद्य पदार्थो के पैकेटों पर शुद्धता की पहचान आईएसआई, उसकी कीमत, मात्रा, एक्सपायरी तिथि जैसे सभी विवरण बड़े-बड़े अक्षरों में छापने के दिशा निर्देश दिये जा चुके हैं, क्योंकि बहुत ही महीन अक्षरों में उपभोक्ता उन्हें पढ़ नहीं सकता है। जहां तक शीतल पेय पदार्थो या पानी की प्लास्टिक की बोतलों से लेबल हटाने की योजना का सवाल है उसमें लेबल बदलने की आशंका को खत्म करना है, क्योंकि प्लास्टिक की बोतल एक ही बार उपयोग होनी है। उन्होंने कहा कि सरकार ने पिछले साल 230 लाख टन गेंहू की खरीद की थी और मौजूदा सीजन में अब तक 270 लाख टन की खरीद की जा चुकी है, जिसका लक्ष्य 300 लाख टन गेंहू खरीद करने का है। उन्होंने कहा कि छत्तसीगढ़ और उड़ीसा में खरीद व्यवस्था पहले से ही पुख्ता हैं।
नियंत्रण में हैं खाद्य पदार्थों की कीमतें
केंद्रीय मंत्री पासवान ने संवाददाता सम्मेलन में एक सवाल के जवाब में दावा किया है कि खाद्य पदार्थों की कीमतें बिल्कुल नियंत्रण लगातार नियंत्रण में हैं और पिछले साल की तुलना में करीब 22 जरूरी खाद्य पदार्थ सस्ते हुए हैं। उन्होंने कहा कि इसके अलावा गेहूं, चावल और तेलों के दाम भी नियंत्रण में हैं। चीनी मिलों का अस्तित्व बचाए रखने के लिए चीनी की कीमत जरूर घटती-बढ़ती रही है। कीमतों के बारे में उन्होंने एक मई 2014 से तुलना करते हुए खाद्य पदार्थो के दामों की कीमतों को जिक्र करते हुए दावा किया कि केंद्र सरकार ने खाद्य पदार्थो पर लगतार नियंत्रण बनाए रखा है।
गन्ना बकाया का भुगतान
सरकार का दावा है कि पिछले पांच चीनी मौसमों के दौरान चीनी की घरेलू खपत की तुलना में निरंतर सरप्लस उत्पादन के कारण चीनी की कीमतें कम रहीं, जिसके चलते पूरे देश में चीनी उद्योग में वित्तीय प्रवाह कम रहा और गन्ना बकाया बढ़ गया। इसकी वजह से चीनी मौसम 2014-15 में अखिल भारतीय स्तर पर गन्ना मूल्य बकाया 15 अप्रैल 2015 की स्थिति के अनुसार सर्वाधिक 21,837 करोड़ रुपए तक पहुंच गया था। इस स्थिति पर काबू पाने के उद्देश्य से सरकार ने कई उपाय किए। इन उपायों के फलस्वरूप चीनी मौसम 2014-15 के लिए किसानों को देय बकाया का 99.33 फीसदी और चीनी मौसम 2015-16 के लिए 98.21 फीसदी भुगतान किया जा चुका है।
भारतीय खाद्य निगम में सुधार
उन्होंने कहा कि गेहूं और चावल के भंडारण के लिए भारतीय खाद्य निगम और राज्य सरकारों सहित अन्य एजेंसियों द्वारा जन-निजी-भागीदारी पद्धति पर स्टील साइलो के रूप में 100 लाख टन भंडारण क्षमता बनाने की योजना शुरू की है। यह निर्माण 2019-20 तक तीन चरणों में किए जाने की योजना है। उन्होंने कहा कि वर्ष 2016-17 में 36.25 लाख टन अनाज के भंडारण के लिए साइलो आॅपरेटरों के चयन के लक्ष्य के सापेक्ष 37.50 लाख टन अनाज के लिए आॅपरेटरों को चिह्नित किया गया है।
आॅनलाइन हुए एफसीआई डिपो
भारतीय खाद्य निगम के गोदामों के सभी प्रचालनों को आॅनलाइन करने तथा डिपो स्तर पर लीकेज को रोकने और कार्यों को स्वचलित करने के उद्देश्य से मार्च 2016 में 27 राज्यों में पायलट आधार पर 31 डिपुओं में डिपो
आॅनलाइन प्रणाली शुरू की गई थी। वर्तमान में भारतीय खाद्य निगम के 510 डिपुओं में आॅनलाइन प्रणाली लागू कर दी गई है।

आपदा खतरे की जद में देश की आधी आबादी


राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण की बैठक में बोले राजनाथ
ओ.पी. पाल.
नई दिल्ली।
भारत आपदा के खतरे के लिहाज से दुनिया में सर्वाधिक संवेदनशील देशों में शामिल है, जिसके कारण देश की करीब आधी आबादी आपदा के खतरों से घिरे इलाकों में रहती है।
यह बात सोमवार को यहां ‘सतत विकास के लिए आपदा जोखिम न्यूनीकरण: 2030 तक भारत को सुदृढ़ बनाना’ विषय पर आयोजित राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण की बैठक का उद्घाटन करते हुए कही। उन्होंने कहा कि सरकार ने देश भर में आपदा के खतरे को कम करने के लिये राष्ट्रीय स्तर पर साझा मंच के रूप में आपदा जोखिम न्यूनीकरण (एनपीडीआरआर) का गठन किया है। एनपीडीआरआर आपदा प्रबंधन से जुड़े अनुभवों को साझा करने और आपदा जोखिम में कमी लाने के लिए सामूहिक प्रयास करने वाला राष्ट्रीय प्लेटफॉर्म है। इसके लिए उन्होंने देश के विभिन्न इलाकों में आपदा के खतरे को कम करने के लिये केन्द्र और राज्य सरकारों के समन्वय से साझा रणनीति बनाना है। जिसके लिए उन्होंने आपदा जोखिम से जुड़े नुकसान को कम करने में रोकथाम और न्यूनीकरण की भूमिका पर विशेष बल दिया। राजनाथ सिंह ने क्षेत्रीय सहयोग बढ़ाने के लिए भारत सरकार द्वारा हाल ही में किए गए अनेक पहलों को भी साझा किया, जिनमें दक्षिण एशियाई देशों के लिए समर्पित उपग्रह का प्रक्षेपण, आपदा जोखिम न्यूनीकरण पर एशियाई मंत्रिस्तरीय सम्मेलन-2016 और सार्क आपदा प्रबंधन केंद्र की स्थापना प्रमुख हैं। उन्होंने आपदा जोखिम में कमी के लिए सेंडाई फ्रेमवर्क, सतत विकास लक्ष्य और जलवायु परिवर्तन पर पेरिस समझौते (सीओपी21) जैसे वैश्विक समझौतों को स्मरण किया। उन्होंने आपदा जोखिम में कमी के लिए सरकारों द्वारा किए जा रहे विभिन्न प्रयासों जैसे कि आपदा प्रबंधन योजना और नीति तैयार करने, प्रारंभिक चेतावनी प्रणालियों का विकास करने, चक्रवात से बचाव के लिए आश्रयों एवं उपयुक्त तटबंधों का निर्माण किए जाने, राष्ट्रीय एवं राज्य स्तरों पर आपदा राहत बलों का गठन करने और सतत प्रशिक्षण एवं जागरूकता कार्यक्रम के जरिए समुदायों का क्षमता निर्माण करने पर प्रकाश डाला।
कैसी-कैसी आपदा
केंद्रीय गृह मंत्री राजनाथ ने कहा कि प्राकृतिक एवं अन्य प्रकार की आपदाओं के लिहाज से भारत दुनिया में सर्वाधिक खतरों से घिरा देश इसलिए कहा जा सकता है कि देश की लगभग 50 प्रतिशत आबादी भूकंप, बाढ़, चक्रवाती तूफान, सूखा और सुनामी जैसी प्राकृतिक आपदाओं के खतरों से घिरे इलाकों में रहती है और बड़ी-बड़ी आपदाओं का सामना भी करना पड़ा है। उन्होंने देश में कई आपदाओं का जिक्र भी किया। वहीं उन्होंने देश के दूसरे स्वरूप का भी जिक्र करते हुए कहा कि भारत दुनिया का पहला देश है जिसने आपदा के दौरान खाद्यान्न के भंडारण और इसके संरक्षण का प्रबंधन किया है। इसके अलावा भारत ने आपदा के खतरे को कम करने के लिये दक्षिण एशियाई देशों के साथ भी आपसी सहयोग को बढ़ावा दिया है। उन्होंने बताया कि आपदा से निपटने की तैयारी और न्यूनीकरण पर एक अतिरिक्त रुपया खर्च करने से आपदा हानि में 10 रुपये की बचत की जा सकती है।

रविवार, 14 मई 2017

चीन की जद में तैयार हुआ देश का सबसे लंबा पुल

26 मई को पीएम मोदी करेंगे उद्घाटन
ओ.पी. पाल.
नई दिल्ली।
चीन की सीमा को लगभग छूते हुए भारत में ब्रह्मपुत्र नदी पर बनाए गये सबसे लंबे पुल अरुणाचल और असम के सड़क संपर्क मार्ग को आसान बनाने को तैयार है। इस पुल का उद्घाटन 26 मई को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी करेंगे।
असम में चीन की सीमा के बेहद नजदीक ब्रह्मपुत्र नदी पर देश का सबसे लंगा 9.15 किमी पुल बनकर तैयार हो चुका है, जो अरुणाचल प्रदेश और असम के सड़क संपर्क मार्ग के सफर को आसान करेगा। ब्रह्मपुत्र नदी पर 950 करोड़ रुपये लागत से तैयार सबसे लंबे ढोला-सादिया पुल को आवागमन के लिए 26 मई को शुरू कर दिया जाएगा, जिसका उद्घाटन करके प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी अपनी केंद्र सरकार के तीन साल के जश्न की शुरूआत भी करेंगे। खास बात यह है कि यह पुल सामरिक रूप से भी इसलिए भी महत्वपूर्ण होगा कि इस पुल के निर्माण को चीन की सीमा पर भारत की ओर से अपनी रक्षा तैयारियों की मजबूती के तौर पर भी देखा जा रहा है। यानि सैन्य साजो-सामान की सीमा तक पहुंच को आसान बनाने के लिए भी केंद्र सरकार के प्रयासों में से यह एक बड़ी उपलब्धि के रूप में देखा जा रहा है। इसके अलावा यह पुल अरुणाचल प्रदेश और असम के लोगों के लिए सड़क संपर्क को भी आसान बनाएगा।
पुल से होगा ये फायदा
चीन की सीमा के नजदीक असम में ढोला-सदिया पुल बनने से असम और अरुणाचल प्रदेश के बीच की दूरी 4 घंटे कम हो जाएगी। यह पुल गुवाहाटी से 540 किमी दूर सदिया में स्थित है, जिसका दूसरा छोर धोला में है। धोला से अरुणाचल के ईटानगर की दूरी 300 किमी दूर है। वहीं चीनी सीमा से हवाई दूरी 100 किलोमीटर से कम रह गई है। फिलहाल दोनों राज्यों के बीच सड़क संपर्क सीमित है, जिसे अधिकांश लोग नावों के जरिए आवागमन करके पूरा करते आ रहे है और 8 से दस घंटे तक लग जाते हैं, लेकिन ब्रह्मपुत्र के पल-पल बदलते स्तर के चलते खतरे से भरे सफर से अब दोनों राज्यों के लोगों को बड़ी राहत मिलने जा रही है।
सेना की आसान पहुंच
इस पुल के बन जाने से सेना अरुणाचल प्रदेश तक जाने में सक्षम होगी, जिसकी सीमा चीन से लगती है। पुल को इस तरह बनाया गया है कि इस पुल से 60 टन वजन वाले टी-72 टैंक जैसे युद्ध टैंक भी गुजर सकते है। आमतौर पर अरुणाचल प्रदेश में सेना तिनसुखिया से प्रवेश करती है, जो असम में गुवाहाटी से 186 किमी दूर है। अब तक यहां कोई ऐसा पुल नहीं था, जिससे टैंक भी गुजर सकें। ऐसे में सेना को तेजपुर से सीमा पर पहुंचने में दो दिन लगते थे।लेकिन अब यह राह आसान होगी।
अभी तक ये था सबसे लंबा पुल
देश में अब तक मुंबई में बने बांद्रा-वर्ली सी-लिंक देश का सबसे बडा पुल था। चीन सीमा पर असम में बनाया गया यह पुल बांद्रा-वर्ली सी-लिंक से 3.55 किमी यानि 30 फीसदी ज्यादा लंबा होगा। इससे पहले बिहार के पटना में गंगा नदी पर बने 5.57 किमी लंबे महात्मा गांधी सेतु को देश के सबसे लंबे ब्रिज का दर्जा हासिल था। पुल का काम दिसंबर 2015 में पूरा हो जाना था, लेकिन समय बढ़ने से इसकी लागत भी बढ गई। पहले इसे 876 करो़ड़ में बन जाना था, लेकिन देरी के कारण इसकी लागत बढ़कर करीब 938 करोड़ रुपए हो गई।

क्या सरसों के बाद मिलेगी बीटी कपास को मंजूरी!

देश में विकसित किस्मों की बिक्री करने प्रस्ताव
ओ.पी. पाल. नई दिल्ली।
देशभर में जीएम सरसों की औपचारिक मंजूरी के बाद अब केंद्र सरकार भारत में विकसित बीटी कपास की उन तीन किस्मों को केंद्र सरकार जल्द ही मंजूरी दे सकती है, जिनका हाल ही में पेटेंट खत्म हुआ है।
भारत के जीएम फसलों के नियामक ने द्वारा पर्यावरण मंत्रालय को दी गई एक प्रस्तुति में जीन संवर्धित सरसों के वाणिज्यिक उपयोग की सिफारिश की है, जिसे केंद्र सरकार औपचारिक मंजूरी दे चुकी है। इसी तर्ज पर देश में ‘व्हाइट गोल्ड’ यानि सफेद सोने के नाम से पहचानी जाने वाली कपास को किसानों की आमदनी बढ़ाने का जरिया बनाने की तैयारी है। मसलन भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) ने केंद्र सरकार को पीएयू-1, आर.एस-2013 और एफ-1861 प्रजाति वाले बीजों की वाणिज्यिक बिक्री शुरू करने का सुझाव दिया है। इन किस्मों को घरेलू स्तर पर बॉलगार्ड तकनीक से विकसित किया गया है और इनका पेटेंट भी खत्म हो चुका है। कपास की इन किस्मों में पीएयू-1 और एफ-1861 पंजाब कृषि विश्वविद्यालय (पीएयू) द्वारा विकसित की गई हैं, जबकि आरएस-2013 राजस्थान कृषि विश्वविद्यालय (आरएयू) बीकानेर ने विकसित की है। कृषि मंत्रालय के अनुसार इन जीन संवर्धित किस्मों की औसत कपास उत्पादकता करीब 500 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर है, जो उपलब्ध परंपरागत कपास की किस्मों से ज्यादा है और कपास की वर्तमान किस्मों की औसत उत्पादकता के काफी नजदीक है। भारतीय कपास निगम (सीसीआई) के मुताबिक भारत में फसल वर्ष 2016-17 में कपास की औसत उत्पादकता करीब 568 किलोग्राम रही है। सूत्रों के अुनसार घरेलू स्तर पर विकसित बीटी कपास की किस्में पत्ता मुरड़ रोग की थोड़ी प्रतिरोधी हैं और इसकी गुणवत्ता परंपरागत किस्मों के समान है। हालांकि बाजार में बाजार में बीटी कपास की उपलब्ध ज्यादातर किस्मों के लाइसेंस अमेरिकी कंपनी मोनसैंटो देती है।
इसलिए लिया गया फैसला
सरकार ने बीटी कपास की भारतीय किस्मों की वाणिज्यिक बिक्री शुरू करने का फैसला ऐसे समय लिया है, जब बहुराष्ट्रीय कंपनी मोनसैंटो ने भारत में नई बीज तकनीक लाने में अपनी रμतार कम करने का फैसला किया है। उसने यह कदम लाइसेंस फीस को लेकर कुछ लाइसेंसधारकों से विवाद के बाद यह कदम उठाया है। इस विवाद के कारण ही केंद्र सरकार को कपास के बीजों की कीमतों पर सिफारिश देने के लिए उच्च स्तरीय समिति गठित करनी पड़ी, जिसने बीटी कपास के बीजों के खुदरा दाम घटाने के साथ मोनसैंटो द्वारा वसूली जाने वाली लाइसेंस फीस में भी 74 फीसदी कमी कर दिया। वहीं समिति द्वारा कपास के बीजों के दाम घटा दिये और वर्ष 2017-18 में भी घटाई गई कीमत रखी गई। इस कदम से किसानों को आर्थिक फायदा मिलेगा।
नीति आयोग का भी समर्थन
नीति आयोग के संचालन परिषद में जारी तीन वर्षीय (2017-18 से 2019-20) प्रारूप कार्रवाई एजेंडा में घरेलू
संस्थानों और कंपनियों द्वारा विकसित जीन संवर्धित बीजों का समर्थन किया है। कपास की इन तीन किस्मों में पीएयू-1 और एफ-1861 पंजाब कृषि विश्वविद्यालय (पीएयू) द्वारा विकसित की गई हैं, जबकि आरएस-2013 राजस्थान कृषि विश्वविद्यालय (आरएयू) बीकानेर ने विकसित की है। हालांकि कर्नाटक, आंध्र प्रदेश, महाराष्ट्र और गुजरात जैसे प्रमुख कपास उत्पादक क्षेत्रों में खतरनाक पिंक बॉलवॉर्म एक बड़ी समस्या है।

शुक्रवार, 12 मई 2017

दुनिया के छह नदी क्रूजों में शामिल हुई गंगा!

वाराणसी से कोलकाता जलमार्ग से मिली जगह
ओ.पी. पाल.
नई दिल्ली।
देश में चल रहे गंगा और सहायक नदियों के लिए स्वच्छता अभियान और राष्ट्रीय जलमार्ग परियोजना में वाराणसी से कोलकाता के हल्दिया तक शुरू किये गये अंतर्देशीय जलमार्ग का निर्माण किया जा रहा है। इस परियोजना के कारण गंगा नदी को दुनिया के छह नदी क्रूजों में शामिल कर लिया गया है।
दरअसल केंद्र सरकार की महत्वाकांक्षी राष्ट्रीय जलमार्ग परियोजना के पहले चरण में यूपी के वाराणसी से पश्चिम बंगाल के हल्दिया तक 1390 किलोमीटर जलमार्ग विकास परियोजना के तहत 5369 करोड़ रुपये की लागत से गंगा नदी को जलमार्ग के रूप में विकसित कर रही है। इसे विकसित करने की दिशा में हाल ही में वश्वबैंक द्वारा हाल ही में 375 मिलियन डॉलर की धनराशि को मंजूरी मिली है। अंतर्राष्ट्रीय नदी कू्रज में शामिल किये गये इस जलमार्ग वाली गंगा नदी के बारे में केंद्रीय जहारानी मंत्रालय के सूत्रों ने बातया कि अमरीका के एक प्रतिष्ठित संस्था ने अपने प्रकाशन ‘कोंडे नैस्ट ट्रैवलर’ में गंगा पदी पर तैयार किए जा रहे गंगा क्रूज (पोत विहार) को वर्ष 2017 में बन कर तैयार होने वाले छह नदी क्रूजों की सूची में शामिल किया है। इस संस्था ने लग्जरी क्रूज पोत गंगा वॉयजर-2 को इस सूची में रखा है, जो वाराणसी और हल्दिया (कोलकाता) के बीच गंगा में राष्ट्रीय जलमार्ग के पहले चरण को विकसित करने कर काम तेजी से चल रहा है। इस अंतर्राष्ट्रीय नदी क्रूज में गंगा नदी के अलावा अन्य पोत विहारों में चीन में मेकांग और यांग्त्जे नदियों पर संचालित लीग आफ क्रूज शामिल है। जबकि दक्षिण अफ्रीका में अमेजन, रूस में वोल्गा और म्यामांर में इरावड्डी नदी इस क्रूज यानि पोत विहार भी पहले से शुमार हैं। मंत्रालय का मानना है कि ‘कोंडे नैस्ट ट्रैवलर’ द्वारा गंगा नदी को क्रूज मार्गों की सूची में रखने से भारत में नदी पर्यटन को किये जा रहे प्रयासों को भी बल मिलेगा।
जारी है वाटर-वे का निर्माण
इस जलमार्ग का ट्रायल केंद्र सरकार पिछले साल अगस्त में दो मालवाहक जहाजों को वाराणसी से रवाना करके हल्दिया तक के सफर में पूरा कर चुकी है। वहीं भारतीय अंतदेर्शीय जलमार्ग प्राधिकरण यानि की पहले चरण के जल मार्ग (गंगा नदी) पर प्राइवेट क्रूज आपरेटरों के सहयोग से वाराणसी से कोलकाता तक क्रूज के प्रचालन की सुविधाएं प्रदान की जा रही है। प्राधिकरण द्वारा प्रदान की जाने वाली सुविधाओं में रात्रि नौवहन सुविधा भी शामिल है। इस जल मार्ग विकास परियोजना के तहत वाराणसी से हल्दिया तक जारी योजना के तहत भारत में गंगा नदी पर प्रमुख माल ढुलाई मार्गों में से एक प्रमुख जलमार्ग तैयार किया जा रहा है।