रविवार, 14 मई 2017

क्या सरसों के बाद मिलेगी बीटी कपास को मंजूरी!

देश में विकसित किस्मों की बिक्री करने प्रस्ताव
ओ.पी. पाल. नई दिल्ली।
देशभर में जीएम सरसों की औपचारिक मंजूरी के बाद अब केंद्र सरकार भारत में विकसित बीटी कपास की उन तीन किस्मों को केंद्र सरकार जल्द ही मंजूरी दे सकती है, जिनका हाल ही में पेटेंट खत्म हुआ है।
भारत के जीएम फसलों के नियामक ने द्वारा पर्यावरण मंत्रालय को दी गई एक प्रस्तुति में जीन संवर्धित सरसों के वाणिज्यिक उपयोग की सिफारिश की है, जिसे केंद्र सरकार औपचारिक मंजूरी दे चुकी है। इसी तर्ज पर देश में ‘व्हाइट गोल्ड’ यानि सफेद सोने के नाम से पहचानी जाने वाली कपास को किसानों की आमदनी बढ़ाने का जरिया बनाने की तैयारी है। मसलन भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) ने केंद्र सरकार को पीएयू-1, आर.एस-2013 और एफ-1861 प्रजाति वाले बीजों की वाणिज्यिक बिक्री शुरू करने का सुझाव दिया है। इन किस्मों को घरेलू स्तर पर बॉलगार्ड तकनीक से विकसित किया गया है और इनका पेटेंट भी खत्म हो चुका है। कपास की इन किस्मों में पीएयू-1 और एफ-1861 पंजाब कृषि विश्वविद्यालय (पीएयू) द्वारा विकसित की गई हैं, जबकि आरएस-2013 राजस्थान कृषि विश्वविद्यालय (आरएयू) बीकानेर ने विकसित की है। कृषि मंत्रालय के अनुसार इन जीन संवर्धित किस्मों की औसत कपास उत्पादकता करीब 500 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर है, जो उपलब्ध परंपरागत कपास की किस्मों से ज्यादा है और कपास की वर्तमान किस्मों की औसत उत्पादकता के काफी नजदीक है। भारतीय कपास निगम (सीसीआई) के मुताबिक भारत में फसल वर्ष 2016-17 में कपास की औसत उत्पादकता करीब 568 किलोग्राम रही है। सूत्रों के अुनसार घरेलू स्तर पर विकसित बीटी कपास की किस्में पत्ता मुरड़ रोग की थोड़ी प्रतिरोधी हैं और इसकी गुणवत्ता परंपरागत किस्मों के समान है। हालांकि बाजार में बाजार में बीटी कपास की उपलब्ध ज्यादातर किस्मों के लाइसेंस अमेरिकी कंपनी मोनसैंटो देती है।
इसलिए लिया गया फैसला
सरकार ने बीटी कपास की भारतीय किस्मों की वाणिज्यिक बिक्री शुरू करने का फैसला ऐसे समय लिया है, जब बहुराष्ट्रीय कंपनी मोनसैंटो ने भारत में नई बीज तकनीक लाने में अपनी रμतार कम करने का फैसला किया है। उसने यह कदम लाइसेंस फीस को लेकर कुछ लाइसेंसधारकों से विवाद के बाद यह कदम उठाया है। इस विवाद के कारण ही केंद्र सरकार को कपास के बीजों की कीमतों पर सिफारिश देने के लिए उच्च स्तरीय समिति गठित करनी पड़ी, जिसने बीटी कपास के बीजों के खुदरा दाम घटाने के साथ मोनसैंटो द्वारा वसूली जाने वाली लाइसेंस फीस में भी 74 फीसदी कमी कर दिया। वहीं समिति द्वारा कपास के बीजों के दाम घटा दिये और वर्ष 2017-18 में भी घटाई गई कीमत रखी गई। इस कदम से किसानों को आर्थिक फायदा मिलेगा।
नीति आयोग का भी समर्थन
नीति आयोग के संचालन परिषद में जारी तीन वर्षीय (2017-18 से 2019-20) प्रारूप कार्रवाई एजेंडा में घरेलू
संस्थानों और कंपनियों द्वारा विकसित जीन संवर्धित बीजों का समर्थन किया है। कपास की इन तीन किस्मों में पीएयू-1 और एफ-1861 पंजाब कृषि विश्वविद्यालय (पीएयू) द्वारा विकसित की गई हैं, जबकि आरएस-2013 राजस्थान कृषि विश्वविद्यालय (आरएयू) बीकानेर ने विकसित की है। हालांकि कर्नाटक, आंध्र प्रदेश, महाराष्ट्र और गुजरात जैसे प्रमुख कपास उत्पादक क्षेत्रों में खतरनाक पिंक बॉलवॉर्म एक बड़ी समस्या है।

क्या है बीटी कपास?
देश में घरेलू स्तर पर मिट्टी में पाए जाने वाले बैक्टीरिया बेसिलस थुरिनजेनिसस से जीन निकालकर तैयार की जाने बीटी कपास की नई किस्मों की विशेषता यह है कि इन बीजों का फिर से उपयोग किया जा सकता है। इस वजह से उनके दाम बीटी कपास की वर्तमान किस्मों से काफी कम रखे गए हैं। माना जा रहा है कि यदि नए बीजों के दाम वर्तमान बीजों से काफी कम रखे गए तो इनकी ओर उन क्षेत्रों के किसान आकर्षित हो सकते हैं, जहां पिंक बॉलवॉर्म एक बड़ी समस्या नहीं है। देश में फिलहाल कर्नाटक, आंध्र प्रदेश, महाराष्ट्र और गुजरात जैसे प्रमुख कपास उत्पादक क्षेत्रों में खतरनाक पिंक बॉलवॉर्म एक बड़ी समस्या से निपटने की तैयारी की जा रही है।
जीएम सरसों का विरोध
भारत सरकार के वन एंव पर्यावरण मंत्रालय के अंतगर्त आने वाली जेनेटिक इंजीनियरिंग अप्रेजल कमेटी (जीईएसी) ने जेनेटिकली मोडिफाइड सरसों के व्यवसायिक इस्तेमाल की सिफारिशों को सरकार की औपचारिक मंजूरी के विरोध में आरएसएस से जुडे़ स्वदेशी जागरण मंच ने ही सवाल उठाते हुए कहा कि जीएम सरसों के वाणिज्यिक उपयोग को मंजूरी देने का असर कृषि से जुड़ी गतिविधियों पर पड़ेगा। इसका नागरिकों के स्वस्थ्य पर कुप्रभाव पड़ेगा। वहीं भाकियू प्रवक्ता और कृषि मामलों के जानकर धर्मेन्द्र मलिक का मानना है कि जीएम फसलें देश के किसानों और कृषि को बर्बाद कर देंगी।
15May-2017

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