सोमवार, 22 मई 2017

साक्षात्कार: विकास के रास्ते होगा नक्सलियों का अंत!

देश के विकास के लिए आदिवासी इलाकों का विकास जरूरी: ओराम
ओ.पी. पाल. नई दिल्ली।
मोदी सरकार देश के गरीबों और आदिवासियों के कल्याण और आदिवासी इलाकों के विकास के लिए प्रतिबद्ध है। तीन साल के कार्यकाल के दौरान आदिवासी खासकर नक्सल प्रभावित इलाकों में सरकार की योजनाओं को लेकर केंद्रीय आदिवासी मामलों के मंत्री जुएल ओराम से हरिभूमि संवाददाता की खास बातचीत हुई, जिसके अंश इस प्रकार हैं:-
* आदिवासी जमीन पर औद्योगिक घराने बड़ा लाभ उठा रहे हैं जिनकी जमीन है उन्हें कुछ नहीं मिल पा रहा, क्या ये नक्सल समस्या बढ़ने का कारण तो नहीं है?
-भारत सरकार की इन तीन सालों में जमीन के बारे में कोई विशेष पॉलिसी नहीं आई है और खासकर आदिवासी में किसी प्रकार के दखल या ऐसी पॉलिसी लाने का इरादा भी नहीं है। स्वाभाविक है आदिसासी क्षेत्रों में इंडस्ट्री, माइनिंग, जल, जंगल और अन्य संसाधन होने के कारण देश के विकास के लिए आदिवासी क्षेत्रों का विकास जरूरी है। ऐसा भी नहीं है कि ये नक्सलवाद की समस्या का कारण है।
* आदिवासी जमीन पर उद्योग लगाने से पहले ग्राम सभा की अनुमति को भी लागू नहीं होने दिया जा रहा, क्यों?
-नहीं.. ये तो पूरे देश में लागू है कि ग्राम सभा की अनुमति के बिना कोई भी प्रोजेक्ट नहीं आएगा। ओडिशा सरकार के प्रस्ताव पर वेदांता कंपनी का प्रोजेक्ट इसी नियम के तहत रद्द हो चुका है। इसमें किसी प्रकार की ढ़िलाई नहीं है।
* आदिवासी जमीन पर उद्योग की बात हो या फिर पर्यावरण सहमति की, क्या इस मसले पर आदिवासी मंत्रालय को भी नोडल मंत्रालय में शामिल करने की योजना पर आपकी पीएम से बात हुई ?
-देखिए, इसमें पर्यावरण मंत्रालय अपने हिसाब से अपना मत देता है और जनजाति मंत्रालय जनजाति हितों की रक्षा करता है। भारत सरकार के दोंनों मंत्रालयों के अपने-अपने क्षेत्राधिकार के तहत अपने-अपने दायित्व निभा रहे हैं, इसलिए ऐसा कोई प्रस्ताव नहीं है।
* क्या वनाधिकार कानून पूरी तरह देश में लागू हो पाया? क्या सभी को वनभूमि पट्टे मिल गए?
-हां, पूरी तरह लागू है केवल तमिलनाडु को छोड़कर, जहां मामला अदालत में विचाराधीन है। कानून के तहत देशभर में करीब 55.09 लाख हेक्टेयर वनभूमि के पट्टे आवंटित करके 17.20 लाख से ज्यादा लोगों को लाभांन्वित किया गया है। वनभूमि पट्टा यह योजना बिना किसी ढ़िलाई के बढ़िया चल रही है।
* क्या कारण है कि पीएम मोदी की वन बंधु कल्याण योजना को बंद करना पड़ा?
-नहीं ऐसा नहीं है ये बढ़िया से चल रही है। सरकार की ये दस ब्लॉकों के लिए एक सीमित योजना है और इसके लिए केंद्र को 10-10 करोड़ रुपये की राशि अतिरिक्त रूप से देनी पड़ी है। इस योजना का मकसद आदिवासी लोगों की शिक्षा, स्वास्थ्य, जल, कृषि एवं सिंचाई, बिजली, स्वच्छता, कौशल विकास, खेल, हाउसिंग और आजीविका जैसे महत्वपूर्ण क्षेत्र का विकास करना है।
* नक्सली इलाकों में आदिवासियों तक सरकारी योजनाएं नहीं पहुंच पा रही है, इसका क्या कारण है?
-नहीं इसका कारण नक्सल भी है, जो विकास के खिलाफ काम कर रहा है। ऐसे इलाकों में विकास योजनाओं को लागू करना बेहद मुश्किल काम है, लेकिन फिर भी सरकार आदिवासियों के बुनियादी विकास के लिए कटिबद्ध है।
* सरकार के स्तर पर नक्सलग्रस्त इलाकों तक विकास योजनाओं की पहुंच कैसे होगी?

-देखिए इसके लिए केंद्र और राज्य सरकारें मिलकर काम कर रही हैं। बल्कि नक्सल प्रभावित इलाकों में सरकारें भी अकेले योजनाओं की पहुंच नहीं बना सकती, इसलिए के जन भागीदारी और समर्थन को सुश्चित करने के लिए राज्य सरकारों के जरिए जागरूकता कार्यक्रम चलाए जा रहे हैं
* छत्तीसगढ़, झारखंड और ओड़िशा सहित अन्य राज्यों में लुप्त हो रहे आदिम आदिवासियों और उनकी भाषा को संरक्षित करने के क्या उपाय किए जा रहे हैं?
-हां ये थोडा कम हुआ है, इसका कारण आदिवासियों के बाहर निकलने से लुप्त होती भाषा को पुनर्जीवित करने के लिए केंद्र सरकार ने अपने कोशिशों को तेज कर दिया है, ताकि आदिवासियों की संस्कृति और भाषाओं का संरक्षित रखा जा सके।
* प्रधानमंत्री ने आदिवासियों में स्किल डेवलपमेंट की जरूरत पर बल दिया है, उस दिशा में क्या हो रहा है?
-हां बोल दिया है प्रधानमंत्री जी ने लोगों को टेÑनिंग देने के लिये। अलग से कौशल विकास मंत्रालय बनने से इस दिशा में ज्यादा लाभ हुआ है और पीआईओ को कम से कम 70 प्रतिशत प्रशिक्षित युवाओं को रोजगार मुहैया कराने के निर्देश भी दिये गये हैं।
* मन की बात में प्रधानमंत्री ने सभी आदिवासी समाज को मिलाकर अलग-अलग राज्यों में आदिवासी उत्सव मनाने का फार्मूला दिया था, उस दिशा में क्या हो रहा है?
-बिल्कुल सही, इसके लिए मंत्रालय ने राष्ट्रीय स्तर का ट्राइबल कर्निवल दिल्ली में किया और अन्य राज्य भी इस प्रकार के उत्सवों में अपनी-अपनी संस्कृतियों को उकेर रहे हैं। कुछ राज्य जो ऐसा नहीं कर रहे हैं उन्हें इसके लिए समझाया जा रहा है।
* आप 1999 में पहली बार आदिवासी मंत्रालय के आकार लेने के बाद मंत्री बने थे आज भी हैं क्या अंतर पाते हैं, तब और अब में?
-बहुत ज्यादा अंतर! आदिवासी मंत्रालय का बजट जहां 800 करोड था अब 8500 करोड़ हो गया है और मंत्रालय में आदिवासी कल्याण योजनाओं का नई तकनीकों के साथ विस्तार के अलावा कई गुणा गतिविधियां भी बढ़ने से कहीं ज्यादा प्रभावी मंत्रालय का रूप ले चुका है।
* देश में आदिवासियों के कल्याण के लिए और क्या योजनाएं हैं?
-आदिवासी कल्याण और विकास तहत बच्चों को शिक्षा के प्रति जागरूक करने की दिशा मेें मंत्रालय द्वारा स्वीकृत 259 एकलव्य मॉडल स्कूलों में से अब तक 161 शुरू हो चुके है। वहीं 50 फीसदी से ज्यादा की जनसंख्या वाले 662 ऐसे ब्लॉक चिन्हित किये, जहां एकलव्य स्कूलों की तर्ज पर अगले 5 साल में आवासीय स्कूल खोलने की योजना है।
* देश में आदिवासियों के साथ दुर्व्यव्यहार और यातनाएं देने की शिकायते हैं, ऐसे आरोप वर्षा डोंगरे ने लगाए हैं। इसमें क्या सच्चाई है?
-यह सही नहीं है, अपराधी का काई धर्म नहीं होता, वह अपराधी होता है चाहे आदिवासी हो या अन्य कोई। हालांकि ऐसी कोई शिकायतें मंत्रालय को नहीं मिली है।
22May-2017

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