शुक्रवार, 26 मई 2017

चीन का सिरदर्द बना रहेगा ब्रह्मपुत्र महासेतु

इंजीनियरिंग की बेजोड़ मिसाल देश का सबसे लंबा पुल
ओ.पी. पाल.
नई दिल्ली।
मोदी सरकार द्वारा चीन की जद में ब्रह्मपुत्र की सहायक नदी लोहित पर बनाए गये देश के सबसे बड़े दो लेन वाले पुल को राष्ट्र को समर्पित कर अपनी सीमाओं की मजबूती शुरू कर दी है। असम और अरुणाचल जैसे दो पूर्वोत्तर के राज्यों के सड़क संपर्क को आसान बनाने वाले ढ़ोला-सादिया महासेतु चीन के लिए बड़ा सिरदर्द बना रहने की संभावना है, क्योें कि पूर्वाेत्तर के बुनियादी ढांचे को मजबूत करने वाले इस पुल को भारत सैन्य सामानों की सीमा तक पहुंच बनाने में भी इस्तेमाल करेगा।
असम राज्य के तिनसुकिया जिले में ब्रह्मपुत्र नदी पर चीन सीमा से महज 100 किमी हवाई दूरी पर बनाए गये 9.15 किमी लंबे महासेतु की उपलब्धि भी चीन को खटक रही है। दरअसल सामरिक तौर से चीन द्वारा लगातार भारत को घेरने के प्रयास का करारा जवाब माना जा रहा है। क्योंकि चीन लगातार सीमा से सटे अपने इलाकों में तेजी से सड़कें और अन्य निर्माण कर भारत को चुनौती देता आ रहा है। पिछले साल ही पाकिस्तान से नजदीकी बढ़ाते चीन ने अपने सबसे महंगे हाइड्रो प्रोजेक्ट के लिए तिब्बत के पास ब्रह्मपुत्र की सहायक नदी को रोककर भारत की चिंता बढ़ाई थी। चीन को उसी की भाषा में जवाब देने के लिए भारत ने भी चीन की सीमा पर पूर्वोत्तर राज्यों में बुनियादी ढांचे को मजबूत करने में ऐसी परियोजनाओं को पटरी पर उतारा है। केंद्रीय सड़क मंत्रालय का कहना है कि शुक्रवार को देश को समर्पित किये गये एशिया के दूसरे सबसे लंबे पुल ने जहां अरुणाचल और असम के नागरिकों के लिए विकास और आर्थिक द्वार खोले हैं, वहीं इसका सबसे ज्यादा फायदा देश की सीमा को सुरक्षित रखने के तौर पर किया जा सकेगा और असम से सैन्य सामान इस पुल के जरिए चीन की सीमा से सटे अरुणाचल प्रदेश की सीमाओं तक पहुंच सकेगा। इस पुल को ऐसी तकनीक से तैयार किया गया है कि 60 टन वजनी टी-72 जैसे युद्धक टैंकों को लाने-लेजाने में इस पुल की क्षमता कायम रहेगी। यानि भारत अब चीन की किसी भी चुनौती से लड़ने के लिए उत्तर की सीमाओं तक पहुंचने के लिए सरल और आसान रास्ते बनाने पर काम कर रहा है।
इसलिए भी खफा चीन
मोदी सरकार की सड़क परियोजनाओं में भारत माला कार्यक्रम में चीन की सीमा भी शामिल है। सीमाओं के बुनियादी ढांचे को मजबूत करने की दिशा में भारत की ऐसी सड़क परियोजनाओं के पूरा होने तक सैन्य सामानों की आवाजाही को आसान बनाया जा सकेगा। विशेषज्ञ कहते रहे हैं कि चीन की अरुणाचल में दखलंदाजी पहले से ही रही है और जहां चीन भारत में अपनी सामरिक महत्व बनाने में जुटा हुआ है, भारत ने भी चीन को जवाब देने के लिए आगे बढ़ने की रणनीति के तहत इस पुल की परियोजना को पूरा करके संकेत दे दिये हैं कि वह चीन सीमा के पास लगातार सामिरक महत्व के निर्माण करता रहेगा। ब्रह्मपुत्र नदी पर बने 9.15 किमी लंबे पुल को इसी लिहाज से महत्वपूर्ण माना जा रहा है। वहीं भारत ने हिंद महासागर क्षेत्र में अपने सभी करीबी देशों को साधने की नीति के तहत इंडोनेशिया से लेकर मॉरिशस तक बुनियादी ढांचों और ऊर्जा संबंधों को मजबूत बनाने की राह पकड़ ली है, तो चीन की बेचैनी बढ़ने बढ़ना स्वाभाविक है। वैसे भी कई मोर्चाे पर भारत की अपने इलाकें की योजनाओं का चीन विरोध करता नजर आता रहा है।
कम नहीं थी चुनौतियां
केंद्रीय सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्रालय के अनुसार चीन सीमा के नजदीक ब्रह्मपुत्र नदी पर पुल का निर्माण किसी चुनौती से कम नहीं था, लेकिन ब्रह्मपुत्र की लोहित नदी के ऊपर सबसे लंबे पुल का निर्माण करने में अत्याधुनिक तकनीक और इंजीनियरों की सूझबूझ के साथ इस्तेमाल की की बेहद तकनीकी और मजबूती के लिहाज से काम किया और बेजोड़ इंजीनियरिंग ने बड़ी मिसाल कायम की है। मंत्रालय के अनुसार पुल की बेजोड इंजीनियरिंग लोहित के नाम से ब्रह्मपुत्र नदी को सालों साल बांधे रखेगी। यह पुल रिएक्टर स्केल पर 8.0 की तीव्रता को झेलने में भी सक्षम है। इस शक्तिशाली पुल के निर्माण में स्टील अथॉरिटी आॅफ इंडिया (सेल) ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है, जिसमें टीएमटी, स्ट्रक्चरल और प्लेट्स समेत 30 हजार टन यानि 90 फीसदी इस्पात का इस्तेमाल किया गया है। दरअसल ब्रह्मपुत्र नदी पर पुल का निर्माण किसी चुनौती से कम नहीं था, जहां लगातार बदलते जलस्तर के चलते ब्रह्मपुत्र में पुल के लिए पीलरों को खड़ा करना इंजीनियरों के लिए चुनौती के रूप में सामने आता रहा। निर्माण के दौरान पानी में डूबी दो क्रैने तक धंस गई, लेकिन कुछ दिन काम ठप होने के बावजूद इंजीनियरों ने हिम्मत नहीं हारी और इस परियोजना को पूरा करके ही दम लिया।
27May-2017

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