मंगलवार, 30 मई 2017

अनूठी तकनीक से बंजर जमीन उगलने लगी पानी

 राजस्थान से ग्राउंड रिपोर्ट
सिरे चढ़ने लगा मुख्यमंत्री जल स्वावलम्बन अभियान
-ओ.पी. पाल

दुनियाभर में जलवायु परिवर्तन और लगातार गिरते भूजल स्तर को लेकर ऐसी बहस छिड़ी हुई है कि यदि जल संरक्षण और जल प्रबंधन को बेहतर करने के प्रयासों में कोई चूक हुई तो अगला विश्वयुद्ध पानी को लेकर छिड़ सकता है। ऐसी आशंका वैज्ञानिक और विशेषज्ञ के साथ ही भविष्यविद् भी व्यक्त करने को मजबूर हैं। ऐसे में भारत जैसे देश के रेगिस्तान बाहुल्य सूबे राजस्थान में राज्य सरकार द्वारा शुरु किये गये मुख्यमंत्री जल स्वालम्बन अभियान (एमजेएसए) के तहत जिस तकनीक का इस्तेमाल किया गया है वह जल सरंक्षण और भूजल स्तर के सुधार में देशभर के लिए ही वरदान साबित हो सकती है। मसलन पायलट प्रोजेक्ट के रूप में राजस्थान के बांसवाड़ा जिले के विरान पड़े व्यापक आदिवासी इलाकों में जल संरक्षण हेतु इस अभियान का ऐसा असर दिखा कि यदि इस तकनीक को देश के बुंदेलखंड और मराठावाडा जैसे देश के उन तमाम इलाकों में अपनाया जा सकता है, जहां आजादी के बाद आज तक भी सरकारें अरबों-खरबों की रकम बहाकर भी सूखे, सिंचाई और पेयजल की कमी जैसे संकट की चुनौती से पार नहीं पा सकी है।
देशभर में बुंदेलखंड, मराठावाडा के पूर्वोत्तर समेत अनेक राज्यों के अनेक इलाकों में गिरते भूजल स्तर के कारण सूखे, पानी की कमी जैसे संकट की समस्या गर्मियों में तो लोगों के लिए मुसीबत के पहाड़ से कम नही है। राजस्थान में रेगिस्तानी इलाकों के अलावा बांसवाड़ा जिले के विरान पड़े व्यापक आदिवासी इलाकों की जमीन और लोगों की प्यास बुझाने के एक प्रयास में राज्य की मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे ने दो साल पहले जल संरक्षण हेतु मुख्यमंत्री जल स्वावलंबन अभियान को एक पायलट परियोजना के रूप में लागू किया था। राज्य सरकार नें पायलट परियोजना के रूप में लागू मुख्यमंत्री जल स्वावलम्बन अभियान की बागडौर राजस्थान बेसिन प्राधिकरण के चेयरमैन श्रीराम वेदिरे को को सौंपी। इस अभियान में गिरते भूजल स्तर सुधारने और जल सरंक्षण के लिए पहाड़ी और रेगिस्तानी इलाकों के सूखे को खत्म करने के लिए आरबीए चेयरमैन श्रीराम वेदिरे और उनकी तकनीकी टीम ने भारत मे इजाद की गई अमेरिकी तकनीक को अपनाया, जिसमें आदिवसी इलाकों के लोग प्यास बुझाने और उपजाउ होती जमीन में फसल लेने को उत्साहित हैं। वेदिरे की इस अनूठी जल सरंक्षण तकनीक से पानी उगलती बंजर और पहाड़ी जमीन की बदलती तस्वीर को राष्ट्रीय प्रेस प्रतिनिधिमंडल ने भी देखा, जहां जल संरक्षण के लिए वर्षा की एक-एक बंूद को पहाडी इलाकों से नीचे न आने की इस अनूठी तकनीक को धरातल पर उतारने की हकीकत साक्षात दिखी। यही नहीं नेशनल मीडिया आदिवासी ग्रामीणों से रूबरू हुई तो ग्रामीणों ने उम्मीद जताई है कि कुछ महीनों में जिस प्रकार से उन्हें पीने, सिंचाई और अन्य कार्यो के लिए उन्हें पानी मुहैया होने लगा है आगे जाकर वे एक के बजाए तीन-तीन फसले एक साल में ले सकते हैं।
राज्य की बदली तस्वीरः वेदिरे
राजस्थान में मुख्यमंत्री जल स्वावलंबन योजना का नेतृत्व कर रहे राजस्थान नदी बेसिन एवं जल संसाधन योजना प्राधिकरण के चेयरमैन श्रीराम वेदिरे ने बताया कि इस योजना के पहले चरण में ही बांसवाड़ा के गांवों में सकारात्मक नतीजे सामने आए हैं, जिसका प्रयोग करने से बुंदेलखंड से लेकर असम तक पहाड़ी और पूर्वोत्तर तक जल संकट की समस्या का समाधान संभव है। वेदिरे का कहना है कि राजस्थान में जल संरक्षण के इस अनूठे अभियान के लिए वर्ष 2015 से कवायद की जा रही थी, जिसका नतीजा नई तकनीक के बाद अब इस अभियान के धरातल पर उतरने से राजस्थान की तस्वीर बदलने लगी है। भूजल स्तर के मामले में पूरे देश की हालत खराब है और भू-जल स्तर को बढ़ाने के लिए सभी तरह से प्रयास किए जा रहे हैं, लेकिन मुख्यमंत्री जल स्वावलंबन अभियान के तहत हुए कार्यों से भू-जल स्तर में अभूतपूर्व वृद्धि देखी गई है। बुंदेलखंड और अन्य सुखाड़ इलाकों में जल सरंक्षण के लिए केंद्रीय जल संसाधन मंत्री सुश्री उमा भारती भी इस तकनीक पर उनके साथ चर्चा कर चुकी हैं। विदरे के अनुसार भूजल स्तर बढाने की इस योजना के पहले चरण पर 1400 करोड रुपए खर्च हुए है, जिसमें तीन हजार से ज्यादा गांवों को लाभ मिला है। अब दूसरे चरण की योजना पर 1800 करोड़ रुपए खर्च होने का अनुमान है। इससे 60 लाख हेक्टेयर भूमि की सिंचाई हो सकेगी।
तीन फिट पर निकलेगी जलधारा
राजस्थानी पहाड़ों में वाटर हार्वेस्टिंग स्ट्रक्चर्स के निर्माण के बाद भूजल स्तर में हुई बढ़ोत्तरी का दावा करते हुए वेदिरे ने अपनी तकनीकी दल को श्रेय देते हुए कहा कि जल्द ही तीन फीट की खुदाई करते ही पानी की धारा निकलना शुरू हो जाएगी। ऐसा इस आदिवासी इलाके में ग्रामीणों की मुस्कान परियोजना के तहत बनाए गए वाटर हार्वेस्टिंग स्ट्रक्चर्स के कारण हो पाया है। परियोजना के तकनीकी अधिकारी राकेश रेड्डी ने बताया गया कि 8.80 एमसीएफटी भराव क्षमता के इस टेंक का निर्माण 80 लाख रुपयों की लागत से किया गया है और इससे 50 हेक्टर क्षेत्र में सिंचाई सुविधा प्राप्त हो रही है।
परियोजना के दूसरे चरण का गणित
राजस्थान के बांसवाड़ा जिले के घोड़ी तेजपुर गांव में इस परियोजना के सकारात्मक परिणाम को लेकर वेदिरे ने कहा कि प्रदेश में प्रथम चरण में 3 हजार 529 गांवों में एक लाख वाटर हार्वेस्टिंग स्ट्रक्चर्स का निर्माण कराया गया और 28 लाख पौधरोपण किया। इस चरण में 55 करोड़ रुपये के जनसहयोग से 41 लाख लोगों और 45 लाख पशुओं को जल से राहत मिली है। वेदिरे ने बताया कि इसके दूसरे चरण के तहत 4 हजार 214 गांवों में 1843 करोड़ के प्रस्तावित एक लाख 37 हजार 753 कार्यों में से 8 हजार 726 कार्यों को भी पूरा किया जा चुका है। राज्य के पंचायत राज और ग्रामीण विकास राज्यमंत्री धनसिंह रावत ने कहा कि जल संरक्षण के उद्देश्य से मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे द्वारा चलाया गया मुख्यमंत्री जल स्वावलंबन अभियान हिन्दुस्तान का पहला अभियान है और इस अभियान को राजस्थान में ही नहीं अपितु पूरे देश में सराहा गया है।

क्या हुआ तकनीक का असर
आरबीए के चेयरमैन वेदिरे का कहना है कि राजस्थान सरकार द्वारा मुख्यमंत्री जल स्वावलम्बन अभियान के तहत ग्रामीण इलाके जल क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनते नजर आने लगे। इस तकनीक एक सरकारी आंकड़े के अनुसार राजस्थान में 61 प्रतिशत भूमि रेतीली है। भूजल स्तर बढ़ने से अब लोगों को पीने के लिए 90 प्रतिशत पानी मिलना शुरू हो गया है। वहीं 60 फीसदी सिंचाई इसी जल से की जा रही है। दरअसल इस सूबे में भूजल का सालाना 137 फीसदी दोहन हो रहा है जिससे राज्य में भूजल का स्तर तेजी से गिर रहा है। अभियान के तहत इस तकनीक के जरिए गड्ढों से निकली मिट्टी को उसके बगल में ही ढेर बनाकर रखा गया है। गड्ढे के बाहर जमा इस मिट्टी में जेटरोफा के पौधे लगाए गए हैं जिससे क्षेत्र हराभरा हो गया है। घोड़ी तेजपुर इलाके के वीरान और विशाल जंगल में पेड़ पौधे कहीं नहीं हैं लेकिन इस विधि को अपनाए जाने के बाद अब वह जलभराव के गड्ढे और जेटरोफा के हरे पौधे नजर आ रहे हैं। इन गड्ढों के आसपास हरियाली फैली हुई है और क्षेत्र की जमीन में नमी आयी है जिसने आदिवासियों के जीवन में सुकून भर दिया है।
खुशहाल होंगे 22 हजार गांव
आरबीए के अनुसार राज्य सरकार द्वारा एमजेएसए के जरिए भूजल स्तर बढ़ाने की दिशा में चल रहे इस अभियान के तहत अब तक साढ़े तीन हजार गांवों के जल स्तर में बेहतर सुधार देखा गया है। वर्ष 2015 में शुरु हुए इस अभियान के तय लक्ष्य में 2019 तक 22 हजार गांवों में भूजल स्तर में सुधार लाने का प्रयास होगा। अभियान के निदेशक अरुण जोशी का कहना है कि इस वैज्ञानिक तकनीक का एक सकारात्मक परिणाम यह है कि परियोजना के पहले चरण में साल में पानी के अभाव में सिर्फ एक फसल उगाने वाले कई गांवों के किसान अब दो फसलें लगा रहे हैं। उनका दावा है कि योजना के दूसरे चरण ग्रामीण तीन-तीन फसल ले सकेंगे। अरुण जोशी का कहना है कि इस योजना को जन अभियान के रूप में चलाया जा रहा है और ग्रामीणों से इसके लिए श्रमदान करने का आह्वान किया गया है। शुरू में ग्रामीणों ने उनका साथ नहीं दिया लेकिन जब उन्हें बताया गया कि इसके जरिए उन्हें पानी उलब्ध कराया जाएगा तो ग्रामीण इससे जुड़ने लगे।
क्या है तकनीक
राजस्थान के बांसवाडा के घोडी तेजपुर, लोढाखोडा और खोरापाडा जैसे आदिवासी गांवों में भूजल स्तर बढ़ाने की इस तकनीक को नेशनल मीडियाकर्मियों ने खुद भी देखा, जहां भूजल स्तर बढ़ाने के लिए वर्षा जल के एक-एक बूंद का संचयन स्ट्रेगर्ड ट्रेन्चेज विधि के जरिए हुआ है। स्ट्रेगर्ड ट्रेन्चेज का तात्पर्य ऐसे पूरे इलाके में एक निश्चित दूरी पर और अलग अलग लम्बाई में एक नाप की ऊंचाई तथा चैड़ाई में खोदे गए, जिनमें इस तकनीक के जरिए वर्षा जल को भरकर बहने के बजाए जमीन में जाकर भूजल स्तर को बढ़ाएगा। यदि यह गड्ढे भर जाएं तो पानी फिर अगले गड्ढे और फिर खोदे गये तालाब में जमा हो जाता है। सबसे महत्वपूर्ण है कि बरसात का अतिरिक्त पानी से भरे ये तालाब लंबे समय तक ग्रामीणों को पानी मुहैया करा रहे हैं।
मिशन में जुटे कई विभाग
राजस्थान में चलाई जा रही जल स्वावलंबन अभियान के तहत इस परियोजना के अवलोकन के समय से पहले भी जल सरंक्षण के प्रति जागरूकता के कार्यक्रमों कार्यशालाओं बांसवाडा के जिलाधिकारी भगवतीप्रसाद, जिला परिषद के मुख्य कार्यकारी अधिकारी परशुराम धानका, अधीक्षण अभियंता दीपक श्रीवास्तव, मुख्यमंत्री जल स्वावलंबन अभियान के उपनिदेशक (जनसंपर्क) अरूण जोशी, उप वन संरक्षक अमरसिंह गोठवाल, अधीक्षण अभियंता एचएस पठान के अलावा संबंधित कई विभागों के अधिकारी आपसी समन्वय बनाकर अभियान में जुटे हुए हैं, ताकि पानी की एक-एक बेसकीमती बूंद सरंक्षित की जा सके।
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अफ्रीकी देशों ने अपनाई तकनीक
राजस्थान के आदिवासी इलाकों में जल संकट से निपटने के लिए भूजल स्तर को बढ़ाने की दिशा में राज्य सरकार द्वारा चलाई जा रही मुख्यमंत्री जल स्वावलम्बन अभियान में पानी की बूंद-बूंद को संचित करने के लिए इस अनोखी तकनीक के जरिए सकारात्मक परिणाम सामने आ रहे हैं। दरअसल राजस्थान सरकार ने एमजेएसए जैसी योजना का नेतृत्व कर रहे राजस्थान बेसिन प्राधिकरण का चेयरमैन श्रीराम वेदिरे की इस तकनीक को देखने के लिए कई अफ्रीकी देशों के प्रतिनिधि भी आदिवासी इलाकों का दौरा करने के बाद उन्होंने ऐसी रूचि दिखाई कि अफ्रीकी देशों ने भी इस तकनीक से भूजल स्तर की योजना को तेजी से लागू करना शुरू कर दिया है। दो साल में ही इसके अच्छे परिणाम दिखने लगे और उनके काम को देश ही नहीं विदेशों में भी सराहा जा रहा है। अभियान के तहत भूजल संरक्षण करने के साथ ही क्षेत्र को हरा भरा बनाना है और वर्षा जल का पूरा इस्तेमाल करके राज्य के भूजल स्तर में सुधार लाना है।
01May-2017

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