मंगलवार, 27 फ़रवरी 2018

देश में सिरे चढ़ी इंटर मॉडल स्टेशन योजना!

वाराणसी व नागपुर में शुरू होने को तैयार पायलट परियोजना
ओ.पी. पाल. नई दिल्ली।
केंद्र सरकार की परिवहन व्यवस्था को असान बनाने की दिशा में देश के प्रमुख 15 शहरों में मल्टीलेबल इंटर मॉडल स्टेशन बनाने की योजना का खाका तैयार किया गया है, जिसमें पीएम मोदी के संसदीय क्षेत्र वाराणसी तथा केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी के गृह क्षेत्र नागपुर में इस परियोजना को जल्द ही शुरू किया जाएगा, जिसके लिए डीपीआर अंतिम चरणों में है।
केंद्रीय सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्रालय की देश के 15 शहरों में मल्टीलेबल इंटर मॉडल स्टेशन बनाने की इस योजना में भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण (एनएचएआई) ने सबसे पहले वाराणसी में काशी और नागपुर में अजनी सेटेलाइट स्टेशन को चुना है, जिसमें पायलट परियोजना के लिए विस्तृत अध्ययन करने के बाद  विस्तृत परियोजना रिपोर्ट (डीपीआर) तैयार की जा रही है जो अंतिम चरण में है। इस परियोजना में सड़क, रेल मंत्रालय तथा संबंधित राज्य सरकार के बीच एसपीवी से अंतरमॉडल परियोजनाएं लागू की जाएंगी। हालांकि मंत्रालय का कहना है कि चयनित सभी 15 शहरों में इस परियोजना को लागू करने की प्राथमिकता तय की गई है। मंत्रालय के एक अधिकारी के अनुसार इस योजना को आगामी 30 साल के लिए यात्रियों के आवागमन क्षमता को आंकते हुए पूरा किया जा रहा है। इसलिए इन स्टेशनों पर ट्रैवेलेटरों के साथ फुटओवर ब्रिज, सब-वे, साझा प्रतीक्षालय, स्वच्छ शौचालय और विश्राम गृह, एकीकृत सार्वजनिक सूचना प्रणाली, आधुनिक अग्निशमन सुविधा तथा आपातक्रिया सेवा, उपयोगी सामान भंडार, कॉनकोर्स तथा स्केलेटर, पर्याप्त सर्कुलेशन स्थान तथा वाणिज्यक प्रतिष्ठान भी होंगे। इस योजना को केंद्र सरकार व राज्य सरकारों के साथ मिलकर चलाया जाएगा।
दो शहरों में ऐसी होगी योजना
मंत्रालय के अनुसार इस परियोजना को शुरू करने के लिए तैयार की जा रही डीपीआर के तहत वाराणसी में काशी स्टेशन पर रेलवे की करीब 30.28 एकड़ जमीन पर मल्टीलेबल इंटर माडल स्टेशन बनाया जाएगा, जहां वर्ष 2050 की डेढ़ लाख लोगों के आवागमन क्षमता के आकलन के तहत पांच रेलवे प्लेटफार्म और 100 बसवे विकसित करने की योजना है। मसलन रेल, सड़क, मेट्रो के अलावा अंतर्देशीय जलमार्ग यात्री टर्मिनल भी होगा। इसी प्रकार नागपुर में 75 एकड़ जमीन पर बनाए जाने वाले इंटरमॉडल स्टेशन पर तीन लाख लोगों की आवागमन क्षमता को आंका गया है, जिसके तहत यहां सात रेलवे प्लेटफार्म और 200 बसों का बस-वे के अलावा रेल, सड़क और मेट्रो के टर्मिनल होंगे।   
क्या है परियोजना
मंत्रालय के अनुसार मल्टीलेबल इंटर मॉडल स्टेशन ऐसी एक टर्मिनल संरचना है, जिसमें इंटरमॉडल स्टेशन को विकसित करते हुए नई जोड़ने वाली सड़कों, पुलों तथा फ्लाइओवरों के जरिये सड़क नेटवर्क विकास के साथ-साथ एकीकृत रूप में बनाए जायेंगे।  मसलन इस स्टेशन पर एक ही स्थान पर रेल, सड़क, मास रैपिड ट्रांजिट प्रणाली, बस रैपिड ट्रांजिट प्रणाली, अंतर्देशीय जल मार्ग, ऑटोरिक्शा, टैक्सी और निजी वाहनों जैसी सभी सुविधा मुहैया हो सकेगी, ताकि लोग बिना किसी बाधा के ऑटोमोबाइल के न्यूनतम उपयोग के साथ एक से दूसरे साधन से आवाजाही कर सकेंगे। सरकार का मानना है इस परियोजना से परिवहन के विभिन्न साधनों को एक स्थान पर लाकर अंतरमॉडल स्टेशन सड़कों पर भीड़भाड़ कम हो सकेगी और वाहन प्रदूषण में भी कमी आएगी। अंतरमॉडल स्टेशन लोगों को सार्वजनिक परिवहन के इस्तेमाल को प्रोत्साहित कर तथा अंतर शहर बस यातायात के प्रवेश और निकास के लिए रिंगरोड़ और राष्ट्रीय राजमार्गों के कारगर इस्तेमाल करके भीड़भाड़ कम करने में मददगार साबित होंगे। अभी अधिकतर शहरों में बस अड्डे, रेलवे स्टेशन तथा अन्य पड़ाव एक दूसरे से अन्य स्थानों पर हैं। इसलिए पहले से भीड़भाड़ वाली सड़कों पर अंतरमॉडल आवाजाही से दबाव बनता है।

बंदरगाहों, जलमार्ग और तटों को मिलेगी तकनीकी मदद


गडकरी ने चेन्नई में रखी राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी केंद्र की आधारशिला
हरिभूमि ब्यूरो. नई दिल्ली।
देश के बंदरगाहों के अलावा जलमार्ग और तटों के अत्याधुनिक विकास में तकनीक के इस्तेमाल को बढ़ावा देने के लिए केंद्रीय जहाजरानी मंत्री नितिन गडकरी ने आईआईटी चेन्नई में राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी केंद्र की आधारशिला रखी।
केंद्रीय जहाजरानी मंत्रालय के प्रवक्ता ने यह जानकारी देते हुए बताया कि एनटीसीपीडब्ल्यू द्वारा इस राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी केंद्र का निर्माण करने के लिए 70.53 करोड़ रुपये की लागत आएगी, जिसमें बंदरगाहों व शिपिंग क्षेत्र को तकनीकी सहयोग मिलेगा। गडकरी की मौजूदगी में इस समारोह में आईआईटी चेन्नई और जहाजरानी मंत्रालय ने एक समझौता ज्ञापन पत्र पर हस्ताक्षर भी किए। मंत्रालय ने बताया कि इस केंद्र की स्थापना सरकार के प्रमुख कार्यक्रम सागरमाला के तहत किया जा रहा है। यह बंदरगाहों, भारतीय अंतर्देशीय जलमार्ग प्राधिकरण और अन्य संस्थानों के लिए इंजीनियरिंग व तकनीकी जानकारी तथा सहायता प्रदान करने के लिए मंत्रालय की एक तकनीकी शाखा के रूप में कार्य करेगी। मंत्रालय के अनुसार स्वदेशी सॉफ्टवेयर और प्रौद्योगिकी सेवा प्रदान करने वाला यह केंद्र सागर, तटीय और एस्ट्रिन फ्लो, तलछट परिवहन और मोर्फोडायनमिक्स,नेविगेशन और क्रियान्वयन, ड्रेजिंग और गाद, बंदरगाह और तटीय इंजीनियरिंग संरचनाओं और ब्रेकवाटर, स्वायत्त प्लेटफार्मों और वाहनों के प्रायोगिक, 2डी और 3डी मॉडलिंग के क्षेत्रों में व्यावहारिक अनुसंधान को जारी रखेगा। वहीं यह प्रवाह, सीएफडी मॉडलिंग, पतवार संबंधी कामों और महासागर नवीकरणीय ऊर्जा के हाइड्रोडायनामिक्स को लेकर पारस्परिक संवाद का काम करेगा।
मेक इन इंडिया की पहल
इस मौके पर केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी ने कहा कि यह केंद्र सरकार की ‘मेक इन इंडिया’कार्यक्रम के लिए एक बड़ी कामयाबी होगी और इससे सागरमाला कार्यक्रम को बढ़ावा देने में मदद मिलेगी। इसमें विश्व स्तर के अत्याधुनिक केंद्र के रूप में तैयार की गई, एनटीसीपीडब्ल्यूसी नवीनतम प्रौद्योगिकी उपकरणों का केंद्र होगा और यह विदेशी संस्थानों पर हमारी निर्भरता को कम करेगा। इससे अनुसंधान की लागत बहुत कम हो जाएगी। साथ ही इससे पोर्ट और समुद्री क्षेत्र में काम करने के लिए लागत और समय की बचत होगी। यह तकनीकी दिशानिर्देशों, मानदंडों और पोर्ट संबंधी समस्याओं व समुद्री मसलों को मॉडल और सिमुलेशन के साथ रेखांकित करेगा। यह केंद्र न केवल नई तकनीक और नवाचारों को आगे बढ़ाने में मदद करेगा, बल्कि अपने सफल व्यावसायीकरण के लिए भी काम करेगा। यह जहाजरानी मंत्रालय में काम कर रहे लोगों के लिए सीखने के अवसर भी मुहैया कराएगा। उन्होने कहा कि भारतीय, वैश्विक बंदरगाह और समुद्री क्षेत्र के लिए उद्योग परामर्श परियोजनाओं के माध्यम से यह केंद्र तीन वर्षों में आत्मनिर्भर हो जाएगा। 
27Feb-2018

रेलवे स्टेशनों के निकट बनेंगे आवास


रेलवे बोर्ड ने दी स्टेशन पुनर्विकास कार्यक्रम को मंजूरी
हरिभूमि ब्यूरो. नई दिल्ली। 
देशभर में रेलवे स्टेशनों के आसपास की खाली रेलवे की जमीन का इस्तेमाल अब आवासीय परिसर बनाने में किया जाएगा। रेलवे बोर्ड ने रेलवे के ‘स्टेशन पुनर्विकास तथा एकीकृत स्टेशन प्रबंधन योजना’ को अनुमति दी है, जिसके तहत इस आवासीय परिसर बनाने का प्रस्ताव है।
रेल मंत्रालय के सूत्रों के अनुसार रेलवे बोर्ड रेलवे के ‘स्टेशन पुनर्विकास तथा एकीकृत स्टेशन प्रबंधन योजना’ के तहत आवासीय परिसर बनाने का प्रस्ताव है, जिसकी रेलवे बोर्ड अनुमति दे चुका है और इसमें वाणिज्यक कांप्लेक्स के अलावा आवासीय परिसर बनाने की योजना को भी मंजूर किया जा चुका है। इस योजना के तहत रेलवे स्टेशनों के आसपास खाली पड़ी रेलवे की जमीन का इस्तेमाल किया जाएगा सूत्रों के अनुसार देशभर में रेलवे की खाली जमीन पर अवैध रूप से कब्जे किये हुए हैं, जिन्हें हटाने के लिए रेलवे कार्यवाही करता आ रहा है।
इस योजना की पुष्टि करते हुए रेलवे की नोडल एजेंसी एवं रेलवे की संयुक्त उद्यम कंपनी इंडियन रेलवे स्टेशंस डेवलमेंट कारपोरेशन (आईआरएसडीसी) के प्रबंध निदेशक संजीव कुमार लोहिया ने कहा है कि रेलवे बोर्ड ने रेलवे स्टेशनों की पुर्निवकास योजना के तहत वाणिज्यिक विकास के अलावा आवासीय विकास की अनुमति दी गई है, ताकि इस तरह की परियोजनाओं को वाणिज्यिक रूप से व्यावहारिक बनाया जा सके। उन्होंने कहा कि रेलवे बोर्ड ने आवासीय विकास को मंजूरी दी है। इस नीति का मकसद है कि कुल यात्रा प्रभाव आकलन कम रहे। यदि आवासीय व वाणिज्यिक सुविधाएं एक ही जगह होंगी, तो वहां काम करने वाले लोग वहां रह भी सकते हैं। उन्होंने कहा कि रेलवे स्टेशनों के आसपास रेलवे की जमीन पर इस तरह के आवासीय भवन बनाने का मकसद यह भी है कि रेलवे की खाली पड़ी जमीन पर अवैध कब्जों की समस्या से भी निपटा जा सकेगा और वहां रहने वाले लोगों की जरूरतों को भी आसानी से पूरा किया जा सकेगा।
छह सौ रेलवे स्टेशन की बदलेगी सूरत
आईआरएसडीसी के प्रबंध निदेशक लोहिया के अनुसार रेलवे ने देशभर में ऐसे छह सौ प्रमुख रेलवे स्टेशनों को निजी क्षेत्र की मदद से नया रूप देने की योजना बनाई है, जहां निजी डेवलपरों को वाणिज्यिक-सह-आवासीय कांप्लेक्स बनाने की अनुमति होगी। इसके लिए उन्हें 99 वर्ष की लीज पर स्टेशन की जमीन मुहैया कराई जाएगी। ये निजी कंपनियां इन स्टेशनों के पुनर्विकास के अलावा इनका प्रबंधन भी संभालेंगी। इसमें साफ-सफाई, डिस्प्ले बोर्डो व सार्वजनिक उद्घोषणा प्रणाली की स्थापना व रखरखाव, प्लेटफार्म टिकटों की बिक्री के अलावा होटल, रेस्त्रां अस्पताल, दुकानों, दफ्तरों तथा फ्लैट्स आदि का निर्माण व रखरखाव शामिल हैं। लोहिया के अनुसार 600 स्टेशनों में रोजाना डेढ़ करोड़ से ज्यादा यात्रियों की आवाजाही और इसमें हर साल 7 फीसदी की दर से बढ़ोतरी के हिसाब से पुनर्विकास के इस संपूर्ण कार्यक्रम में लगभग एक लाख करोड़ रुपये का निवेश होने की संभावना है। इसमें रेलवे को लगभग 67 हजार करोड़ रुपये का अधिशेष हासिल होने की उम्मीद है।
25Feb-2018


शनिवार, 24 फ़रवरी 2018

रेलवे के बेड़े में शामिल हुए दो पावरफुल इंजन


मेक इन इंडिया के तहत विकसित हुआ डिजाइन

हरिभूमि ब्यूरो. नई दिल्ली।
पीएम मोदी के महत्वपूर्ण ‘मेक इन इंडिया’ मिशन के तहत डिजाइन और विकसित किये गये अत्याधुनिक उच्च शक्ति वाले दो रेल इंजनों को भारतीय रेल के बेड़े में शामिल कर लिया गया है।
रेल मंत्रालय के अनुसार ज्यादा भरोसेमंद, आसान रखरखाव और उपलब्धता के साथ पहला डिजिटल के रूप से पूर्ण सक्षम इन दोनों उच्च अश्वशक्ति के रेल इंजनों को मैसर्स जनरल इलेक्ट्रिक के सहयोग से सार्वजनिक-निजी साझेदारी समझौते के अंतर्गत ‘मेक इन इंडिया’ कार्यक्रम के तहत विकसित किया है। ये इंजन अत्याधुनिक इन्सुलेटेड-गेट बायपोलर ट्रांजिस्टर (आईजीबीटी) प्रौद्योगिकी से लैस हैं, जिनके कारण इंजन की कुशलता बढ़ गई है। उच्च अश्वशक्ति के इन दो रेल इंजनों को भारतीय रेल प्रणाली से जोड़ने की दिशा में लखनऊ में उत्तर रेलवे के डीजल लोको शेड में एक समारोह के दौरान प्रतीकात्मक रूप से इंजनों की चाबी रेलवे बोर्ड के अध्यक्ष अश्वनी लोहानी को सौंपी है। इस मौके पर उत्तर रेलवे के महाप्रबंधक विश्वेश चौबे, प्रमुख मुख्य इलेक्ट्रिकल इंजीनियर अजीत  सिंह जांघू, एग्जीक्यूटिव इंजीनियर मेकेनिकल इंजीनियरिंग ट्रैक्शन रेलवे बोर्ड अनुपम शर्मा के अलावा जीई कम्पनी के अनेक वरिष्ठ अधिकारी भी मौजूद रहे।
ये रेल इंजन की खासियतें
भारतीय रेलवे के मेक इन इंडिया के तहत जीई कंपनी के सहयोग 13 हजारा करोड़ के कुल निवेश में विकसित कराये गये उच्च अश्वशक्ति क्षमता वाले रेल इंजनों में 4 स्ट्रोक इंजन, 12 सिलेंडर, 06 ट्रेक्शन मोटर, एसी डुअल कैब लोकोमोटिव, लदान के लिए सुरक्षा उपाय, शौचालय सुविधा, उन्नत कम्प्यूटर द्वारा नियंत्रित ब्रेक प्रणाली, इलेक्ट्रानिक फुइल इंजेक्शन प्रणाली, कम खर्चीला इंजन, आईजीबीटी आधारित ट्रेक्शन तकनीक शामिल हैं। ये इंजन भारत के यूआईसी उत्सर्जन नियम के अनुरूप हैं। वही ये आपदा के समय बचाव उपकरण से भी लैस हैं। अधिक भरोसे और सुरक्षा के मद्देनजर भारतीय रेल अपने इंजनों के रखरखाव के लिए उच्च मानकों का पालन करती है, जिसके संबंध में उसने उत्तर प्रदेश के रोजा और गुजरात के गांधीधाम में रखरखाव सुविधाएं स्थापित की हैं।
एक हजार इंजन की होगी आपूर्ति
रेल मंत्रालय के अनुसार भारतीय रेलवे को जीई कम्पनी लोकोमोटिव प्रौद्योगिकी प्रदान करती आ रही है, जो भारतीय रेलवे के बीच एक संयुक्त उद्यम कंपनी के रूप में वर्ष 2025 तक 1,000 ईधन-कुशल विकास श्रृंखला लोकोमोटिव (100 प्रतिवर्ष) की आपूर्ति करेगा। इन इंजनों का इस्तेमाल ज्यादातर माल ढुलाई में किया जाएगा। इनमें 700 लोकोमोटिव 4500 अश्व शक्ति डब्लूडीजी4जी और शेष 300 लोकोमोटिव 6000 हार्स पॉवर के होंगे। शुरूआत में 40 डीजल लोकोमोटिव को निर्माण जीई ईरी, पेन्सिलवेनिया संयुक्त राज्य अमेरिका में किया जा रहा है जबकि शेष 960 डीजल लोकोमोटिव बिहार में सारण जिले के मरहौरा में एक नये संयुक्त उद्यम के तहत निर्मित किये जायेंगे। गौरतलब है जीई द्वारा निर्मित पहला डीजल रेल इंजन नम्बर 49001 भारतीय रेल के लिए अमेरिका से भेजा गया था। वह भारत में 11 अक्टूबर, 2017 को पहुंचा था और उसके बाद से उसका गहन परीक्षण शुरू हुआ।
24Feb-2018

तो बदल जाएगा राज्यसभा का समीकरण



23 मार्च को होंगे 58 सीटों पर कराए जांएगे चुनाव
हरिभूमि ब्यूरो. नई दिल्ली।
राज्यसभा में आगामी अप्रैल में भाजपा को ताकत बढ़ने की उम्मीदें नजर आ रही हैं। मसलन चुनाव आयोग ने अप्रैल माह में कार्यकाल पूरा करने के कारण रिक्त होने 16 राज्यों की 57 सीटों पर चुनाव तथा केरल की एक सीट पर उप चुनाव 23 मार्च को कराने का ऐलान कर दिया है।
केंद्रीय चुनाव आयोग के अपर सचिव पवन दीवान ने राज्यसभा में 16 राज्यों की अप्रैल व मई में रिक्त होने वाली 57 सीटों के अलावा केरल में सांसद वीरेन्द्र कुमार के 20 दिसंबर को इस्तीफा देने के कारण खाली हुई एक सीट पर उप चुनाव के लिए 23 मार्च की तिथि तय की गई है। चुनाव आयोग द्वारा राज्यसभा की सीटों के लिए घोषित कार्यक्रम के अनुसार पांच मार्च को अधिसूचना जारी होते ही नामांकन प्रक्रिया शुरू हो जाएगी और 12 मार्च तक नामांकन दाखिल किये जा सकेंगे। 13 मार्च को नामांकन पत्रों की जांच के बाद 15 मार्च तक नामांकन वापस लिये जा सकते हैं। आयोग के अनुसार आवश्यकता पड़ने पर मतदान 23 मार्च को सुबह नौ बजे से सायं चार बजे तक कराया जाएगा और इसी दिन पांच बजे मतगणना शुरू कराई जाएगी। इस चुनाव प्रक्रिया को 26 मार्च तक पूरा कर लिया जाएगा।
किस राज्य में कितनी सीट
चुनाव आयोग के अनुसार जिन 16 राज्यों की उच्च सदन में मौजूदा सांसदों के कार्यकाल पूरा होने के कारण खाली होने के कारण 23 मार्च को होने वाले चुनाव के लिए 57 सीटों में सबसे ज्यादा दस सीटें उत्तर प्रदेश की हैं। इसके अलावा बिहार व महाराष्ट्र की छह-छह, मध्य प्रदेश व पश्चिम बंगाल की पांच-पांच, गुजरात व व कर्नाटक की चार-चार, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, राजस्थान व ओडिशा की तीन-तीन, झारखंड की दो, छत्तीसगढ़, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड की एक सीट खाली होंगी, जिनके लिए चुनाव कराने का ऐलान किया गया है। 
भाजपा की बढ़ेगी ताकत
उच्च सदन में अप्रैल-मई में कार्यकाल पूरा करने वाले 57 सदस्यों में प्रमुख रूप से केंद्रीय मंत्री अरुण जेटली, जेपी नड्डा, रविशंकर प्रसाद, प्रकाश जावड़ेकर, सपा के नरेश अग्रवाल, जया बच्चन, किरणमय नंदा, बसपा के मुनकाद अली, कांग्रेस के शादीलाल बत्रा, सत्यव्रत चतुर्वेदी, डॉ. के चिरंजीवी, रेणुका चौधरी, रहमान खान, रजनी पाटिल, राजीव शुक्ला, प्रमोद तिवारी, नरेन्द्र बुढ़ानिया और अभिषेक मनु सिंघवी के अलावा मनोनीत सदस्य अनु आगा, रेखा व सचिन तेंदुलकर प्रमुख रूप से शामिल हैं। इनमें दलवार देखा जाए तो अप्रैल में भाजपा के 17, कांग्रेस के 12, सपा के छह, बसपा, शिवसेना, माकपा के एक-एक, जदयू, तृणमूल कांग्रेस के 3-3, तेदेपा, राकांपा, बीजद के 2-2 निर्दलीय और मनोनीत तीन सदस्यों से के कार्यकाल पूरे होने जा रहे हैं। जबकि मई में झारखंड के भाजपा के प्रदीप कुमार बालमूचू और संजीव कुमार का कार्यकाल पूरा हो रहा है। माना जा रहा है कि भाजपा इस बार उत्तर प्रदेश से अपनी सीटों की संख्या में बढ़ोतरी करेगी, जबकि कांग्रेस को गुजरात और महाराष्ट्र से ही सीट मिलेंगी। गुजरात से रिटायर को रहे चार में से दो कांग्रेस को मिलने की उम्मीद है जबकि महाराष्ट्र से उसके रिटायर हो रहे दो सदस्यों में से एक को वह वापस ला पाएगी। 
24Feb-2018

शुक्रवार, 23 फ़रवरी 2018

एक अप्रैल से लागू कर दी जाएगी बीएस-6 र्इंधन योजना



केंद्र की दिल्ली में प्रदूषण से निपटने की तैयारी!        
ओ.पी. पाल. नई दिल्ली।
राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में प्रदूषण की समस्या को लेकर सुप्रीम कोर्ट और एनजीटी के केंद्र सरकार और राज्य सरकारों को जारी आदेशों के तहत केंद्र सरकार ने बीएस-4 से सीधे बीएस-6 ईंधन की योजना को इसी साल एक अप्रैल से लागू करने का निर्णय लिया है। जबकि एनसीआर में अगले साल यह प्रणाली लागू करने की योजना है।
दरअसल केंद्रीय सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्रालय ने देश में वायु प्रदूषण से निपटने की दिशा में वाहनों के लिए कई वैकल्पिक ईंधन की योजनाओं पर काम करना शुरू किया है, जिसमें सरकार ने देश में बीएस-4 श्रेणी के ईंधन के बाद बीएस-5 और तथा 2020 तक बीएस-6 श्रेणी के ईंधन की योजना को लागू करने का खाका तैयार कर लिया था, लेकिन खासकर राष्ट्रीय राजधानी में लगातार तेजी से बढ़ रहे प्रदूषण से निपटने के लिए सुप्रीम कोर्ट और एनजीटी के समय-समय पर जारी आदेशों को देखते हुए केंद्र सरकार ने पिछले साल नवंबर में सुप्रीम कोर्ट को एक शपथपत्र देकर अपने निर्णय में संशोधन करने की जानकारी दी, जिसमें केंद्र सरकार ने सबसे पहले राजधानी दिल्ली में एक अप्रैल 2018 से सीधे बीएस-4 के मुकाबले बीएस-6 ईंधन योजना को लागू करने का निर्णय लिया है, जबकि एनसीआर क्षेत्र में इस योजना को वर्ष 2019 में लागू कर दिया जाएगा। मसलन अप्रैल से दिल्ली में बीएस-6 श्रेणी का वाहन ईंधन बिकने लगेगा। मंत्रालय के अनुसार बीएस-6 फ्यूल के तहत पेट्रोल और डीजल में सल्फर की मात्रा को प्रति मिलियन के दसवें हिस्से तक ही सीमित कर दिया जाता है। हालांकि बीएस-6 गाड़ियां 2020 से बाजारों में आ सकेंगी।
कड़े होंगे उत्सर्जन मानक
केंद्रीय सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्रालय के एक अधिकारी के अनुसार बीएस-6 योजना को सबसे पहले राजधानी दिल्ली में लागू करने का मकसद है कि इस ईंधन प्रदूषण फैलाने वाले खतरनाक पदार्थो की मात्रा करीब 75 फीसदी तक कम होगी। उन्होंने बताया कि परिवहन मंत्रालय ने आगामी एक अप्रैल से बीएस-6 ईंधन को अनिवार्य करने का फैसला लिया है। खुद केंद्रीय परिवहन मंत्री नितिन गडकरी भी पहले ही कह चुके हैं कि बीएस-4 से सीधे बीएस-6 ईंधन की योजना को लागू करने का मकसद राजधानी दिल्ली में तेजी से बढ़ती प्रदूषण की समस्या से निपटना है। अधिकारी की माने तो इस योजना के लागू होने पर प्रदूषण नियंत्रण के मानक कड़े हो जाएंगे। बीएस-6 ईंधन वाले वाहनों को नाइट्रोजन ऑक्साइड उत्सर्जन में 68 फीसदी की कमी करनी होगी, जिन्हें पर्टिकुलेट मैटर के उत्सर्जन को भी मौजूदा मानक से 5 गुना ज्यादा कम करना जरूरी होगा। गौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट ने पिछले साल 5 फरवरी को प्रदूषण को मौजूदा और आने वाली पीढ़ी के लिए बहुत खतरनाक बताया था। कोर्ट ने सरकार को हलफनामा दायर कर इससे निबटने के लिए उठाए जाने वाले कदमों और बीएस-6 ईंधन की उपलब्धता के बारे में बताने के निर्देश भी दिए थे। कोर्ट ने मार्च 2017 में बीएस-4 मानकों के अनुरुप नहीं बिकने वाले वाहनों पर बैन लगा दिया था।
जल्द जारी होंगे यह नियम
मंत्रालय के अनुसार केंद्र सरकार पहले ही दिशानिर्देश जारी कर चुकी है। यानि परिवहन मंत्रालय ने सभी कार कंपनियों के लिए यह अनिवार्य कर दिया कि एक जुलाई, 2019 के बाद जिन भी कारों का निर्माण होगा, उनका सुरक्षा मानकों पर खरा उतरना अनिवार्य होगा। मसलन सरकार के जारी दिशानिर्देशों के अनुसार एक जुलाई 2019 के बाद बनने वाली कारों में एयरबैग्स, सीट बेल्ट रिमाइंडर्स, 80 किलोमीटर से ज्यादा की स्पीड के लिए अलर्ट सिस्टम, रिवर्स पार्किंग सेंसर्स और मैनुअल ऑवरड्राइव जैसे सेफ्टी फीचर का होना जरूरी होगा। वहीं वाहन निर्माताओं कंपनियों को वाहनों के निर्माण भी ईंधन की लागू होने वाली योजनाओं के तहत करना होगा, जिसमें प्रदूषण नियंत्रण के लिए तय मानकों को सख्त किया जा रहा है। 
क्या है बीएस-6 योजना
केंद्र की इस योजना को लागू करने के फैसले के तहत भारतीय ऑटो मोबाइल मैन्युफैक्चरर्स सोसायटी (एसआईएम) भी अपने वाहनों को बीएस-6 ईंधन में अपग्रेड करने के लिए कमर कस चुकी है, जिसमें इस मानक तक पहुंचने के लिए तय सुरक्षा मानक अपनाए जाने हैं। दरअसल भारत स्टेज एमिशन स्टैंडंर्ड (बीएस-6) को भारत स्टेज (बीएस) के नाम से भी जाना जाता है। ये उत्सर्जन मानक होते हैं, जिनके जरिये इंजन और मोटर व्हीकल्स से निकलने वाले वायु प्रदूषण को नियंत्रित करने के लिए इस्तेमाल किया जाता है। 
23Feb-2018

नमामि गंगे: चार हजार करोड़ की परियोनाएं मंजूर



आधी से ज्यादा रकम कानपुर में चमड़ा जल शोधन पर होगी खर्च
हरिभूमि ब्यूरो. नई दिल्ली।
राष्ट्रीय गंगा स्वच्छ अभियान ‘नमामि गंगे’ परियोनाओं में बाधक बने कानपुर के चमड़ा उद्योग से निकलने वाले गंदे और जहरील जल शोधन पर 2068.23 करोड़ रुपये खर्च किये जाएंगे। यूपी के अलावा बिहार व पश्चिम बंगाल में नमामि गंगे परियोजनाओं के लिए मिशन ने चार हजार करोड़ रुपये की मंजूरी दी है।
केंद्रीय जल संसाधन मंत्रालय के अनुसार राष्‍ट्रीय गंगा सफाई मिशन की कार्यकारी समिति की गुरुवार को हुई नौवीं बैठक में नमामि गंगे मिशन के तहत करीब 4,000 करोड़ रुपए की परियोजनाओं को मंजूरी दी गई है। इसमें उत्तर प्रदेश में कानपुर के जाजमऊ स्थित चमड़ा शोधन कारखानों के लिए 20 एमएलडी सार्वजनिक अपशिष्ट जल शोधन संयंत्र शामिल है। इसके लिए तीन चरणों में 629 करोड़ रुपए की अनुमानित लागत वाली इस परियोजना में 380 अलग-अलग चमड़ा शोधन इकाइयों में पूर्व शोधन इकाई एक 20 सीईटीपी होगा, जिसमें प्राकृतिक, जैविक और उन्नत शोधन की व्‍यवस्‍था की जाएगी। इसके अलावा परियोजना के तहत जीरो लिक्विड डिस्‍चार्ज (जेडएलडी) आधारित 200 केएलडी क्षमता का प्रमुख संयंत्र स्थापित करने के लिए केंद्र सरकार इस परियोजना में केन्‍द्र की हिस्‍सेदारी 472 करोड़ रुपए है। कानपुर औद्योगिक शहर से गंगा में होने वाले प्रदूषण को खत्म करने के लिए यह एक प्रमुख कदम है। इस परियोजना को विशेष उद्देश्य वाहन (एसपीवी)जाजमऊ चमड़ा शोधन एसोसिएशन द्वारा अमल में लाया जाएगा। कानपुर के जाजमऊ, बिनगवां, साजरी में सीवेज शोधन बुनियादी ढांचे के पुनर्वास और समेकन के लिए हाईब्रिड एन्‍युईटी-पीपीपी मोड के अंतर्गत 967.23 करोड़ रुपए की अनुमानित लागत वाली एक अन्य परियोजना को भी मंजूरी दी गई है। इस परियोजना में पंखा में 30 एमएलडी एसटीपी का निर्माण शामिल है।
इलाहाबाद में 904 करोड़ करेगी सरकार
मंत्रालय के अनुसार मिशन की कार्यसमिति ने इलाहाबाद में नैनी, सलारी, नुमायादही, राजापुर, पोनघाट, पोडरा सीवरेज क्षेत्रों में सीवेज शोधन बुनियादी ढांचे के पुनर्वास और समेकन के लिए हाईब्रिड एन्‍युईटी-पीपीपी मोड के अंतर्गत 904 करोड़ रुपए की एक परियोजना को मंजूरी दी है। उपयुक्त कार्यान्वयन के लिए सभी एसटीपी और एसपीएस के लिए एक ऑन लाइन निगरानी प्रणाली को भी मंजूरी दी गई है।
बिहार में सीवेज परियोजनाओं में संशोधन
बिहार में बेगुसराय, हाजीपुर और मुंगेर में तीन सीवेज बुनियादी ढांचा परियोजनाओं को क्रमश: 230.06 करोड़ रुपए, 305.18 करोड़ रुपए और 294.02 करोड़ रुपए की अनुमानित लागत की संशोधित मंजूरी दी गई है। इन परियोजनाओं में केन्‍द्र की हिस्‍सेदारी क्रमश: 161.04 करोड़ रुपए, 213.63 करोड़ रुपए और 205.81 करोड़ रुपए होगी।
बंगाल में पुनर्वास परियोजना मंजूर
पश्चिम बंगाल में हाईब्रिड एन्‍युईटी मोड के अंतर्गत गार्डन रीच एसटीपी (57 एमएलडी) और केवड़ापुकुर एसटीपी (50 एमएलडी) के लिए 15 वर्ष के संचालन और रख-रखाव के साथ पुनर्वास की एक परियोजना को भी मंजूरी दी गई है। इस पर 165.16 करोड़ रुपए की अनुमानित लागत आएगी। केंद्र सरकार पूंजीगत निवेश और 15 वर्ष संचालन तथा रख-रखाव करेगी।

गुरुवार, 22 फ़रवरी 2018

महानदी विवाद: ट्रिब्यूनल के गठन को मिली मंजूरी



छत्तीसगढ़ व ओडिशा के बीच है महानदी जल विवाद
हरिभूमि ब्यूरो. नई दिल्ली।
आखिर केंद्र सरकार ने छत्‍तीसगढ़ और के बीच चल रहे महानदी जल विवाद को निपटाने के लिए ट्रिब्‍यूनल गठित करने की मंजूरी दे दी है। इस विवाद के निपटारे के लिए पिछले माह ही ओडिशा सरकार की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को एक माह के भीतर ट्रिब्यूनल का गठन करने का आदेश दिया था।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में मंगलवार को हुई केंद्रीय मंत्रिमंडल की बैठक में छत्तीसगढ़ और ओडिशा के बीच महानदी जल विवाद के समाधान के लिए सुप्रीम कोर्ट के बाद केंद्रीय जल संसाधन मंत्रालय के न्यायाधिकरण (ट्रिब्यूनल) गठित करने के प्रस्ताव को मंजूरी दी गई दे दी। कैबिनेट की मंजूरी के अनुसार गठित किये जाने वाला यह ‘ट्रिब्यूनल’ महानदी बेसिन में पानी की संपूर्ण उपलब्धता, प्रत्येक राज्यों के योगदान और राज्यों में जल संसाधन के मौजूदा उपयोग के साथ ही भविष्य के विकास की संभावनाओं के आधार पर दोनों राज्यों में जल बंटवारे पर निर्धारण करेगा। गौरतलब है कि दोनों राज्यों के बीच महानदी विवाद को निपटाने के लिए ओडिशा सरकार केंद्र सरकार से ट्रिब्यूनल का गठन करन की मांग करती आ रही थी, जिसने इसके लिए सुप्रीम कोर्ट में भी याचिका दायर की थी। ओडिशा सरकार की दिसंबर 2016 में दायर इस याचिाका पर सुप्रीम कोर्ट ने गत 23 जनवरी को केंद्र सरकार को एक माह के भीतर इस विवाद के निपटान के लिए ट्रिब्यूनल का गठन करने का आदेश दिया था। इसी आदेश के अनुपालन में केंद्र सरकार ने इस प्रस्ताव को मंजूरी दी। गौरतलब है कि पिछले साल 28 जनवरी को उन्होंने प्रधानमंत्री को पत्र लिखकर महानदी मुद्दे के समाधान करने का आग्रह किया था। दरअसल इस विवाद में ओडिशा का तर्क है कि डीपीआर के अनुसार महानदी के हीराकुंड बांध से 12.28 मिलियन एकड़ फीट का पानी के अलावा 3.67 मिलियन एकड़ का अतिरिक्त पानी उपयोग के लिए मिलना चाहिए। इससे पहले ओडिशा सरकार ने छत्तीसगढ़ सरकार का भी पत्र लिखा था, लेकिन छत्तीसगढ़ सरकार के महानदी पर निर्माण कार्य रोकने से इनकार कर दिया था, जिसके बाद पीएम से हस्तक्षेप करने का अनुरोध किया गया था। हालांकि उससे पहले ही ओडिशा सरकार सुप्रीम कोर्ट में ट्रिब्यूनल के गठन की मांग के लिए याचिका दायर कर चुकी थी।
तीन वर्ष में देनी होगी रिपोर्ट
जल संसाधन मंत्रालय के अनुसार गठित किये जा रहे ट्रिब्यूनल (न्यायाधिकरण) को अपनी रिपोर्ट और फैसले तीन वर्ष की अवधि के भीतर देने होंगे, जिसे अपरिहार्य कारणों से दो वर्ष के लिए बढ़ाया जा सकता है। इस ट्रिब्यूनल का गठन अंतर्राज्यीय नदी जल विवाद कानून-1956 के प्रावधानों के तहत किया जा रहा है, जिसमें एक अध्यक्ष और दो अन्य सदस्य होंगे, जिसमें अध्यक्ष औद दोनों सदस्यों को सुप्रीम कोर्ट में भारत के मुख्य न्यायाधीश मनोनीत करेंगे। इसके अलावा न्यायाधिकरण की कार्यवाही में सलाह देने के लिए दो अनुभवी जल संसाधन विशेषज्ञ आकलनकर्ताओं के रूप में शामिल किये जाएंगे। उम्मीद है कि न्यायाधिकरण द्वारा विवाद के न्यायिक निपटारे के साथ ही महानदी नदी पर ओडिशा और छत्तीसगढ़ राज्यों के बीच लंबित विवाद का अंतिम निपटारा हो सकेगा।
साढ़े तीन दशक पुराना है विवाद
दोनों राज्यों के बीच महानदी के जल बंटवारे के विवाद में करीब 35 साल पहले अविभाजित मध्य प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री अुर्जन सिंह और ओडिशा के तत्काली मुख्यमंत्री जेबी पटनायक के बीच 28 अप्रैल 1983 को एक समझौता हुआ था। सूत्रों के अनुसार इस समझौते में महानदी पर बांध और अन्य निर्माण संबन्धी विवादों का निराकरण अंतर्राज्य परिषद में निपटाने पर सहमति बनी थी ,लेकिन विभाजन के बाद पृथक राज्य बने छत्तीसगढ़ के साथ यह विवाद गहराता चला गया, जिसे केंद्र सरकार ने सुलझाने के लिए केई विशेषज्ञ समितियां भी गठित की, लेकिन ओडिशा की इस विवाद को ट्रिब्यूनल में लाने की रही है। पिछले साल 19 जनवरी को केंद्र सरकार द्वारा इस विवाद निपटाने और दोनों राज्यों के बीच समझौता कराने की दिशा में केंद्रीय जल आयोग के आयुक्त की अध्यक्षता में गठित एक समाधान समिति को कानून का उल्लंघन करार देते हुए इंकार तक कर दिया था। 
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कर्नाटक में छह लेन का बनेगा नीदागट्टा-मैसूर हाइवे
केंद्रीय मंत्रिमंडल ने परियोजना के प्रस्ताव को मंजूरी
हरिभूमि ब्यूरो. नई दिल्ली।
केंद्र सरकार ने कर्नाटक में नेशनल हाइवे-275 नीदागट्टा-मैसूर सेक्शन पर हाईब्रिड एन्यूइटी मोड के करीब 61 किलोमीटर को छह लेन का बनाने के लिए मंजूरी दी है।
पीएम नरेन्द्र मोदी की अध्यक्षता में केंद्रीय कैबिनेट की बैठक में केंद्रीय सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्रालय के प्रस्ताव को मंजूरी दी है जिसमें 74.200 किलोमीटर से 135.304 किलोमीटर तक राष्ट्रीय राजमार्ग-275 के नीदागट्टा-मैसूर सेक्शन को छह लेन का बनाया जाएगा। इस परियोजना में करीब 61 किलोमीटर को छह लेन बनाने पर 2919.81 करोड़ रुपये खर्च आने का अनुमान है। इसमें भूमि अधिग्रहण का खर्च और निर्माण गतिविधियां शामिल है। इसके निर्माण पर 2028.93 करोड़ रुपये खर्च आने का अनुमान है। इस परियोजना के निर्माण राजमार्ग को चौड़ा करने और उसमें सुधार किया जाएगा। मंत्रालय के अनुसार यह परियोजना सड़क राष्ट्रीय राजमार्ग-275 का एक हिस्सा है, जो कर्नाटक के दो प्रमुख शहरों व्यावसायिक राजधानी बैंगलुरु और सांस्कृतिक राजधानी मैसूर को जोड़ेगी। वहीं यह महत्वपूर्ण स्थलों मेंगलोर, कोडागू, केरल के कुछ हिस्सों आदि को बैंगलुरु से जोड़ेगी।
सुधरेगी सार्वजिन परिवहन व्यवस्था
मंत्रायल के अनुसार इस परियोजना में दोनों तरफ करीब 60.35 किलोमीटर सर्विस रोड़ का निर्माण होगा, जिससे बसे हुए शहरी इलाकों में स्थानीय यातायात का आवागमन सरल हो सकेगा। बसों के शैल्टर 21 स्थानों पर बनाए जा रहे हैं, जिससे सार्वजनिक परिवहन की सुविधा में सुधार होगा। इस क्षेत्र में यातायात वर्तमान में 41433 से 52163 यात्री कार यूनिट है और निकट भविष्य में यातायात में वृद्धि को ध्यान में रखते हुए सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय ने बड़े अच्छे समय पर छह लेन के विस्तार का कदम उठाया है। वर्तमान चार लेन वाली सड़क से क्षमता से अधिक वाहन गुजरते हैं जिसके कारण ट्रैफिक जैम और दुर्घटनाएं होती हैं। यह सड़क भीड़-भाड़ वाले और घनी आबादी वाले शहरों और बस्तियों जैसे मद्दूर, मांडया और श्रीरंगपटना आदि से गुजरती है। इस परियोजना के पूरा होने पर दोनों तरफ सात मीटर की सर्विस रोड़ पर छह लेन के उन्नयन और मद्दूर, मांडया और श्रीरंगपटना पर बाईपास के निर्माण और राष्ट्रीय राजमार्ग के इस हिस्से को अलग करने के ढांचे के तैयार हो जाने पर यात्रा के समय और खर्च की बचत होगी।