सोमवार, 28 नवंबर 2022

साक्षात्कार: साहित्य जगत में नंदिनी बनी युवाओं की प्रेरणा स्रोत

पर्यावरण का जुनून से नवोदित रचनाकार ने बिखेरे रंग
-ओ.पी. पाल
व्यक्तिगत परिचय 
नाम: नंदिनी 
जन्म: 22 जून 2002 
जन्म स्थान: गांव एवं डाकघर पुंसिका, जिला रेवाड़ी(हरियाणा) 
शिक्षा :बीए (आनर्स अंग्रेजी) अध्यनरत, दिल्ली विश्वविद्यालय 
संप्रत्ति: कॉलेज की विद्यार्थी, कहानीकार के रूप में लेखन कार्य 
उपलब्धि: ब्रांड एम्बेसडर पर्यावरण, जिला रेवाड़ी, 
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रियाणा में शायद बहुमुखी प्रतिभा की धनी नवोदित कहानीकार नंदिनी सबसे कम उम्र की ऐसी परिपक्व रचनाकार है, जिसने साहित्य, कला एवं संस्कृति के क्षेत्र में उस समय मौलिक लेखन की दस्तक दी, जि उम्र में उसके खेलने कूदने के दिन होने चाहिए। यानी कक्षा सातवीं की पढ़ाई करते हुए मौलिक लेखन करने वाली प्रतिभाशाली बाल रचनाकार ने विभिन्न क्षेत्रों में अपनी बहुआयामी कलात्मक उपस्थिति दर्ज कराई। खासतौर से ‘बुलबुल पंख’ नामक एक बाल कहानी संग्रह की रचना करके साहित्य जगत में अपनी गहरी पैठ बनाई। वह हिंदी तथा अंग्रेजी दोनों भाषाओं में कविताएं भी लिखती हैं, लेकिन साहित्य के क्षेत्र में कहानी लिखने की विधा सबसे प्रिय है। उनके लिखित कहानी संग्रह ‘बुलबुल पंख’ के लिए हरियाणा साहित्य अकादमी ने नंदिनी को स्वामी विवेकानंद स्वर्ण जयंती युवा लेखक सम्मान से अलंकृत किया है। साहित्य क्षेत्र के साथ सामाजिक सरोकारों से जुड़े मुद्दों में पर्यावरण के प्रति संवेदनशील होने के साथ नृत्य, घुड़सवारी, पेंटिंग, गायन जैसे क्षेत्र में प्रतिभाओं का प्रदर्शन करने वाली रचनाकार नंदिनी ने हरिभूमि संवाददाता से बातचीत के दौरान अपने जिन अनुभवों को साझा किया है, उनसे यही साबित होता है कि समाजिक सरोकारों से जुड़े मुद्दों पर साहित्य लेखन करके नए आयाम गढ़ने में बुलंदियों पर होगी। 
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हिंदी साहित्य जगत में हिंदी संवर्धन कर रहे विद्वानों, साहित्यकारों और लेखकों में नवोदित रचनाकार के रूप में लोकप्रिय हुई नंदिनी का जन्म 22 जून 2002 को प्रदेश के रेवाड़ी जिले के गांव पुंसिका में रवि कुमार के परिवार में हुआ। वर्तमान में उनका परिवार दक्षिणी हरियाणा अहीरवाल क्षेत्र में रेवाड़ी शहर के विकास नगर (कंकरवाली) में रहता है। नंदिनी की माता डॉ. कमलेश कुमारी शहर के अहीर कॉलेज में हिंदी विभाग में सहायक प्रोफेसर हैं, जबकि पिता एक प्राइवेट कंपनी में कार्यरत है। फिलहाल नंदिनी दिल्ली विश्वविद्यालय से अंग्रेजी ऑनर्स की बीए द्वितीय वर्ष की छात्रा है, जिसका अभी से सिविल सेवा के प्रति गंभीर मकसद भी है। युवा महिला रचनाकार नंदिनी बचपन से ही कुशाग्र बुद्धि की घनी रही है। वह हिंदी तथा अंग्रेजी दोनों भाषाओं में कविताएं भी लिखती हैं, लेकिन साहित्य के क्षेत्र में कहानी लिखने की विधा सबसे प्रिय है। उनकी अधिकतर कहानियां सामाजिक कहानियां समाज की किसी बुराई, चुनौतियों अथवा घर परिवार के रिश्तों जैसे सामाजिक सरोकार के मुद्दों पर जुड़ी हैं। स्कूल के हिंदी और अंग्रेजी सिलेबस में कहानी लेखन विषय मिलता तो उसे कुछ सांकेतिक लाइनों को वह बेहतर तरीके से कहानी पूरा करने लगी। एक तरह से यहीं से उसके कहानी लेखन की शुरूआत हुई। या यूं भी कहा जा सकता है कि शायद नानी और माता से उसकी कहानियों की प्रशंसा ने उसे साहित्यकार के रूप में जन्म दिया। यानी उसे हिंदी साहित्य की विदुषी माता डा. कमलेश से भी बचपन में ही कला, साहित्य एवं संस्कृति का परिवेश एवं संस्कार मिले, बाकी नानी नरेशवती ने उसे परिपक्व करने में अहम भूमिका निभाई। 
ननिहाल में मिला साहित्यक माहौल 
युवा रचनाकार नंदिनी के बचपन का पालन पोषण ननिहाल में हुआ। दरअसल नंदिनी के जन्म के समय उनकी माता बीए द्वितीय वर्ष में पढ़ रही थी, जिसके बाद उन्होंने एम.ए. हिंदी और फिर एम.फिल. पीएच. डी. और डी. लिट. की उपाधि प्राप्त की। नंदिनी का कहना है कि नानी की देखरेख में पालन-पोषण के दौरान ही उसे बचपन में नानी की कहानियों और माता की साहित्यिक रुचि ने साहित्य के प्रति आकर्षित किया होगा। उसके भीतर बचपन में साहित्यिक गुणों का संचार करने की सूत्राधार नानी ही रही, जो प्रेमचंद की कहानियों जैसी साहित्यिक किताबों को सुनाती रहती थी। नंदिनी ने बताया कि जब वह कक्षा तीन में थी तो उसका कहानियों के प्रति उसका रुझान बढ़ता गया और चौथी क्लास में पढ़ने के दौरान उन्हें एक शिक्षक के घर से बच्चों के लिए सचित्र छपी 'पंचतंत्र की कहानियां' नामक किताब ने उसके साहित्य जीवन रंग भरने शुरू कर दिये। 
पर्यावरण के प्रति संवेदनशील 
साहित्य का सामाजिक सरोकारों से जुड़ाव और समाज से जुड़े मुद्दे भी नंदिनी की रचनाओं का आधार है। वहीं पर्यावरण की पक्षधर पोषक और सजग प्रहरी के रूप में नंदिनी को समाज को सजग करने में भी नंदिनी की भूमिका सामने है। पर्यावारण के प्रति संवेदशील नंदिनी की शैली नहीं, थैला पॉलिथीन मुक्त अभियान में एक प्रेरक की भूमिका को देखते हुए समाज ही नहीं, बल्कि जिला प्रशासन भी उसकी इस रचनात्मक कार्य का कायल नजर आया। इसलिए रेवाड़ी जिला प्रशासन नंदिनी को रेवाड़ी जिले के पॉलिथीन मुक्त अभियान का ब्रांड अंबेसडर मनोनीत करने में कोई देर नहीं की। नंदिनी ने बताया कि इस कार्य की प्रेरणा उन्हें अपनी नानी नरेशवती से ही मिली। पर्यावरण के प्रति जुनून को लेकर वह इतनी संवेदनशील है कि समय बचता उस समय कपड़े से थैले बनाकर उनका निशुल्क वितरण आज तक भी कर रही है। इसमें उसका परिवार भी उसे पूरा सहयोग कर रहे हैं। उसके कहानी संग्रह बुलबुल पंछी के अलावा हरियाणा साहित्य अकादमी की पत्रिका हरिगंधा के अनेक अंकों में उसकी कहानियां प्रकाशित हुई हैं। 
युवाओं को साहित्य से जोड़ना जरुरी 
आज के आधुनिक युग में साहित्य जगत को लेकर नंदिनी का कहना है कि साहित्य लिखा तो जा रहा है, लेकिन सोशल मीडिया पर लिखी जाने वाली पोस्ट के माध्यम से आज साहित्य का एक नया बदलता स्वरूप सामने आ रहा है। आज के साहित्यकार के समक्ष बड़ी चुनौतियां हैं। आज बाजारीकरण के बढ़ते प्रभाव में साहित्य स्वातःसुखाय साहित्य जनहिताय का दर्जा नहीं ले पा रहा है। साहित्य के पाठक भी कम होने का कारण इंटरनेट व मोबाइल में व्यस्तता बढ़ना है। यह भी सच है कि मोबाइल को जिंदगी समझने वाले आज के युवाओं की साहित्य में रुचि नहीं है। साहित्य से दूर होने के कारण संवेदनहीन होते युवाओं की सोचने समझने की शक्ति प्रभावित हुई है। ऐसे में युवाओं को साहित्य से जोड़ने की ज्यादा जरुरत है, जिन्हें प्रेरित करने के लिए अच्छे साहित्य की रचना करना आवश्यक है। 
सम्मान व पुरस्कार 
हरियाणा में नवोदित साहित्यकार नंदिनी अहीरवाल क्षेत्र से सबसे कम उम्र में हरियाणा साहित्य अकादमी के वर्ष 2020 के लिए स्वामी विवेकानंद स्वर्ण जयंती युवा लेखक सम्मान से सम्मानित हासिल करने वाली शायद पहली रचनाकार है। इस पुरस्कार में मुख्यमंत्री मनोहर लाल ने नंदिनी को 50 हजार रुपये नकद, शॉल, स्मृति चिह्न और प्रशस्ति पत्र भेंट कर प्रोत्साहित किया। इसके अलावा नंदिनी ने हरियाणवी लोक नृत्य, पेंटिंग तथा घुड़सवारी में राज्यस्तर तक विभिन्न प्रतियोगिताओं में विजेता होकर सम्मान हासिल किया है। अपनी उपलब्धि पर नंदिनी ने अपनी नानी नरेशवती, मां डा. कमलेश, पिता रवि कुमार और अपने भाई हर्ष को अपना प्रेरणा स्रोत बताया।
28Nov-2022

सोमवार, 21 नवंबर 2022

चौपाल: ‘दादा लखमी’ के बालरूप में सात समंदर तक छाया योगेश वत्स

अमेरिका से मिला ‘बेस्ट चाइल्ड एक्टर्स’ का खिताब
 -साक्षात्कार:ओ.पी. पाल 
रियाणवी फिल्म ‘दादा लखमी’ में सूर्य कवि पंडित लखमीचंद की मुख्य भूमिका भले ही खुद फिल्म निर्देशक यशपाल शर्मा ने निभा रहे हों, लेकिन फिल्म में दादा लखमी के बचपन का किरदार निभाकर रोहतक के बाल कलाकार योगेश वत्स ने देश में ही नहीं, बल्कि सात समंदर तक धूम मचा लोकप्रियता हासिल की। पंडित लखमी चंद के बचपन में हूबहू बाल्य रूप के प्रदर्शन से आमजन के दिलों में जगह बनाने वाले योगेश वत्स को अमेरिका के न्यूयार्क से हरियाणवी फिल्म दादा लखमी के लिए उनके किरदार पर ‘बेस्ट चाइल्ड एक्टर’ का सम्मान भी मिल चुका है। फिल्म में करीब एक घंटे के अपने शानदार अभिनय से योगेश वत्स ने दर्शकों को अपनी रागनी गायकी से भी अपनी तरफ ज्यादा आकर्षित किया है। हरियाणवी संस्कृति और और लोककला पर आधारित किसी फिल्म में पहली बार के अभिनय में अपनी एक्टिंग और गायकी की छाप छोड़ने वाले योगाश वत्स से हरिभूमि संवाददादा की हुई खास बातचीत हुई। इस फिल्म में अपनी भूमिका से मिली लोकप्रियता से प्रफुल्लित योगेश वत्स अब अभिनय और गायकी को ही अपना कैरियर बनाना चाहता है। हरियाणा के सूर्यकवि पंडित लखमी चंद की जीवनी पर आधारित फिल्म ‘दादा लखमी’ को देखने के लिए सिनेमा घरों में उमड़ती दर्शकों की भीड़ इस फिल्म की कामयाबी की इबारत लिखती नजर आ रही है। खास बात तो ये है कि हरियाणवी संस्कृति को जीवंत करती इस फिल्म के सभी किरदारों ने रागनी के शेक्सपीयर के नाम से पहचाने जा रहे पंडित लखमी चंद के जीवन को बखूबी से अपने अपने किरदारों से लोगों को आकर्षित किया है। इन्हीं में पंडित लखमीचंद के बचपन का अभिनय कर रहे रोहतक के बाल कलाकार योगेश वत्स का किरदार लोगों के दिलों में कुछ ज्यादा ही गहरी पैठ बनाता नजर आ रहा है। इस फिल्म में अपनी दोहरी भूमिका को लेकर योगेश वत्स ने कहा कि वह इस बात से पूरी तरह से अनभिज्ञ था कि उसे फिल्म दादा लखमी में किसी भूमिका के लिए चुन लिया जाएगा। इसका कारण ऑडिशन में एक से बढ़कर एक के बीच कड़ा मुकाबला था। लेकिन जब उसे फिल्म निर्देशक यशपाल शर्मा का फोन आया कि उसका इस फिल्म में चयन कर लिया गया है, तो उसके परिवार में खुशी का कोई ठिकाना नहीं था। योगेश रागनी गायक के साथ हारमोनियम से भी सुर ताल निकालने में माहिर है। 
पहली ही एक्टिंग में बजा डंका 
बाल कलाकार योगेश वत्स ने अभिनय के बारे में बताया कि वर्ष 2017 में रोहतक में हुए गायकी के ओडिशन के लिए भी मुकाबले में अनेक गायकी प्रतिभाएं शामिल हुई, लेकिन उसे रागनी गायकी में तो महारथ हासिल थी और कभी एक्टिंग नहीं की। योगेश ने 2018 में अभिनय के लिए हुए ऑडिशन में भी हिस्सा लिया, जिसमें फिल्म निर्देशक को योगेश में दादा लखमी के बचपन की भूमिका को लेकर प्रतिभा के साथ पूरे लक्षण नजर आए। इसलिए योगेश को बिना बताए इस भूमिका के लिए भी चयन कर लिया। गायकी के बाद एक्टिंग के लिए चयन ने खुद योगेश भी आश्चर्य चकित कर दिया, क्योंकि इससे पहले उसने कभी भी एक्टिंग नहीं की थी। योगेश का कहना है कि हालांकि शूटिंग के दौरान एक्टिंग में निर्देशक की डांट खानी पड़ी, लेकिन उसने जैसा कहा दादा लखमी के बचपन का अभिनय किया। अब फिल्म में योगेश की दादा लखमी के बचपन की भूमिका के साथ रागनी गायकी की चौतरफा चर्चाएं हैं, तो उसका आत्मविश्वास और हौंसले को पंख लगना लाजिमी है। इसी वजह से दादा लखमी के बाद योगेश 16 दिसंबर को रिलीज होने वाली एक बायोग्राफी फिल्म ‘डा. अजयवर्धन’ में भी अभिनय करता नजर आएगा। 
दर्दभरे संघर्ष भी नहीं डिगा हौंसला
इस बाल कलाकार योगेश के पिता नरेश वत्स ने बताया कि उनके परिवार पर ऐसा मुसीबत का पहाड़ टूटा, लेकिन परिवार ने संघर्ष करते हुए दर्दभरी जिंदगी को हौंसले के साथ आगे बढ़ाया। बकौल नरेश वत्स साल 2009 की वह घटना चाहते हुए भी भुलाना मुश्किल है। दरअसल नवरात्र के दिनों में वह अपनी पत्नी और बेटे योगेश के साथ मोटर साइकिल से बेरी में माता मंदिर गये, जहां से लौटते हुए वह दुर्घटनाग्रस्त हो गये। उस समय योगेश केवल चार साल का था, जिसके पैर में लगी चोट के कारण उसका एक पैर छोटा पड़ गया। जबकि पिता को अपनी एक टांग ही गंवानी पड़ी। इसके बावजूद पिता हरियाणवी संस्कृति की खातिर रागनी गायकी को आगे बढ़ाकर परिवार की जीविका भी चलाते रहे। 
विरासत में मिली गायकी 
योगेश वत्स का जन्म पांच मार्च 2005 को रोहतक की अमृत कालोनी में रह रहे नरेश वत्स के परिवार में हुआ। हालांकि उसके पिता गोहाना के छतैरा गांव से साल 1998 में रोहतक आ गये थे। उसके पिता नरेश कुमार वत्स यहां सुखपुरा चौक पर मोबाइल की दुकान चलाते है और मां अनीता गृहणी है। योगेश को लोकगीत और रागनी गायकी विरासत में मिली, जिसके पिता नरेश वत्स भी बचपन से रागनी के शौकीन रहे और अब रागनी गायक के रूप में पहचाने जाते हैं। पिता के नक्शे कदम पर योगेश का भी बचपन से ही रागनी के प्रति रुझान बढ़ने लगा। स्कूलों के वार्षिक समारोह में मंच पर वह रागनी गाते हुए का संगीत में माहिर हो गया। हालांकि इस फिल्म में पहली बार अपने अभिनय से वह एक अनुभवी कलाकार का संकेत दे चुका है। योगेश वत्स ने बताया कि दादा लखमी के बचपन का किरदार बेहद कठिन था, लेकिन पटकथा में निर्देशक के अनुसार उसने फिल्म के लिए रोजाना कम से कम आठ से दस घंटे काम किया, जो इस अभिनय के लिए मुश्किल डगर थी, लेकिन उसने कैरियर की खातिर ज्यादा मेहनत करने पर ध्यान दिया। फिल्म की शूटिंग के दौरान ही योगेश पर दसवीं कक्षा की पढ़ाई का दबाव भी रहा। फिलहाल वह इसी क्षेत्र में सुपवा के फाउंडेशन के लिए प्रथम वर्ष का छात्र है। 
पुरस्कार व सम्मान 
रोहतक के बाल कलाकार एवं गीतकार योगेश वत्स की हरियाणवी फिल्म ‘दादा लखमी’ में अभिनय की प्रतिभा को देखते हुए इस फिल्म के लिए उसे न्यूयार्क अमेरिका ने बेस्ट चाइल्ड एक्टिंग अवार्ड दिया है। इसके अलावा लोकगीत के लिए हरियाणा कला परिषद रोहतक से वर्ष 2017 में प्रथम पुरस्कार से नवाजा गया था। इसके अलावा अन्य मंचों व अध्यात्मिक कार्यक्रमों में स्टेज शो में इस छोटे गीतकार ने अनेक पुरस्कार हासिल किये हैं। लोकगीत के क्षेत्र में यूट्यूब चैनलों पर भी योगेश सुर्खियों में हैं। 
21Nov-2022

मंडे स्पेशल: हरियाणा में थमने का नाम नहीं ले रहा कुत्तों का 'आतंक'

हरियाणा में दस फीसदी बढ़ी आवारा कुत्तों की तादाद इंसानों पर हर रोज हो रहे सैकड़ो लोगों पर कुत्तों के हमले 
ओ.पी. पाल.रोहतक। सुप्रीम कोर्ट द्वारा राज्यों से पिछले सात सालों में कुत्ते से काटने घायल या मौत के शिकार हुए लोगो के आंकड़े तलब करने से चौतरफा घमासान मचा हुआ है। गुरुग्राम में उपभोक्ता फोरम में विदेशी कुत्ते के काटने की एवज में एक पीड़ित महिला को दो लाख का मुआवजा देने के बाद हरियाणा सरकार ने भी कुत्ता या बिल्ली पालने के नियमों को सख्त करते हुए नए दिशा निर्देश जारी कर दिये हैं। इन नए नियमों के तहत बिना लाइसेंस लिए ऐसे जानवर पालने पर जेल तक की हवा खानी पड़ सकती है। हरियाणा में पालतू और आवारा कुत्तों के हमले इस कदर बढ़ रहे हैं, कि इसी मौजूदा साल में कई बच्चों व महिलाओं समेत कुत्तों के काटने से मरने वालों का आंकड़ा दो अंकों तक पहुंच गया है, जबकि कुत्ते के काटने से जख्मी होने वालों की संख्या इसी से लगाई जाती है कि हरियाणा के हर जिले के अस्पतालों में हर दिन दर्जनों लोग कुत्ते के काटने का इलाज या एंटी रेबीज के इंजेक्शन लेने आते हैं। देश में बीसवीं पशु गणना में जिन सत्रह राज्यों में आवारा कुत्तों की तादाद बढ़ी है उनमें हरियाणा में भी सात साल में करीब दस फीसदी बढ़कर 4.65 लाख पहुंच गई है। 
रियाणा में कुत्तों के काटने के मामले बढ़ रहे हैं, जिसमें औसतन हर जिले में कई दर्जन मामले कुत्ते के काटने के आ रहे हैं। हरियाणा सरकार ने कुत्तो के शौकीनों पर लगाम कसने के लिए नए नियमों को जारी किया है। मसलन हरियाणा सरकार के प्रदेश में कुत्तों के काटने की बढ़ती घटनाओं के मद्देनजर पिछले महीने ही जारी नियमों के मुताबिक अब प्रदेश में कोई भी शख्स बिना अनुमति यानी लाइसेंस लिए बिना कुत्ता, बिल्ली और किसी पक्षी को नहीं पाल सकेगा। नियमों व शर्तो का उल्लंघन करने पर 5 हजार तक का जुर्माना और जेल भी हो सकती है? इन नए नियमों में स्पष्ट कहा गया है कि कुत्तों को सार्वजनिक स्थान पर ले जाने से पहले उनके मुंह पर मुखौटा लगाना अनिवार्य होगा। वहीं एक मकान मालिक सिर्फ एक ही कुत्ता रख सकेगा। कुत्ता या अन्य जानवर पालने के लिए लाइसेंस लेने के लिए हरियाणा के ‘सरल पोर्टल’ पर आवेदन करना होगा। 
सुप्रीम कोर्ट भी हुआ सख्त 
 सुप्रीम कोर्ट ने पिछले महीने ही 12 अक्टूबर को पशु कल्याण बोर्ड से पिछले 7 साल में कुत्ते के काटने से हुई मौतों पर आंकड़े पेश करने के निर्देश दिये और राज्यवार कुत्ते के काटने से लोगों की मौत और घायल होने के साथ ऐसी घटनाओं को रोकने के लिए उठाए गये कदमों का हिसाब मांगा है। गौरतलब है कि देशभर में मौजूदा साल में अभी तक 14,50,666 लोगों को कुत्तों ने काटकर घायल किया है, जबकि 2021 में 17,01,133, साल 2020 में 46,33,493 और वर्ष 2019 में 72,77,523 लोगों को कुत्तों ने काटा है। 
ग्यारह विदेशी नस्लों पर प्रतिबंध 
गुरुग्राम की फोरम के फैसले पिछले सप्ताह एक पालतू कुत्ते के हमले में घायल हुई महिला को दो लाख रुपये का अंतरिम मुआवजा देने के आदेश के साथ ही अमेरिकन पिट-बुल टेरियर्स, डोगो अर्जेन्टीनो, रॉटवीलर, नीपोलिटन मास्टिफ, बोअरबेल, प्रेसा कैनारियो, वुल्फ डॉग, बैंडोग, अमेरिकन बुलडॉग, फिला ब्रासीलेरो और केन कोरो जैसी 11 विदेशी नस्लों के पालतू कुत्तों पर तत्काल प्रभाव से पूर्ण प्रतिबंध लगाने के ओदश दिये। 
मुआवजा देने का प्रावधान वहीं हरियाणा सरकार ने बताया कि राज्य में कुत्ते के काटने से मौत होने पर 50 हजार से एक लाख रुपये तक मुआवजा मिलता है। घायल के लिए निशुल्क इलाज की व्यवस्था का प्रावधान है। बाइक सवार के पीछे दौड़ पड़ते हैं। राह चलते लोगों को भी काटने के लिए दौड़ते हैं। आवारा कुत्तों की संख्या लगातार बढ़ रही है, लेकिन न तो इन्हें पकड़ने का कोई इंतजाम है और न ही नसबंदी करने का। 
हरियाणा में पशु कल्याण बोर्ड का गठन 
हरियाणा सरकार ने पशु पालन एवं डेयरी विभाग में पशुओं के कल्याण के लिए हरियाणा राज्य पशु कल्याण बोर्ड का गठन किया हुआ है। यह बोर्ड पशुओं के प्रति क्रूरता की रोकथाम अधिनियम-1960, पंजाब गाय वध(हरियाणा संशोधन) का निषेध अधिनियम-1980, मवेशी अपराध अधिनियम-1871 और हरियाणा राज्य में लागू पशु कल्याण के लिए अन्य अधिनियम व विनियम का उचित कार्यान्वयन सुनिश्चित करता है। 
प्रदेश में इस साल के प्रमुख हमले 
हरियाणा में हर रोज दो दर्जन से ज्यादा मामले कुत्तों के काटने के आ रहे हैं, जिसमें आवारा ही नहीं पालतू कुत्तों के हमले भी शामिल है। मौजूदा साल में कुरुक्षेत्र के पिहोवा में एक दस वर्षीय बच्चे की मौत हुई, तो इसी जिले के गांव चनारथल के जंगल में पेड़ के नीचे सो रहे दस साल के अमन पर आवारा कुत्तों के झुंड ने हमला करके उसका सिर व गर्दन नोच नोच कर उसे मौते के घाट उतार दिया। पिछले महीने ही 13 अक्तूबर को फरीदाबाद के बल्लभगढ़ गांव मुजेड़ी में घर के बाहर खेल रहे 10 साल के बच्चे पर पिटबुल ने हमला कर बुरी तरह से घायल कर दिया। घटना के बाद बच्चा काफी डरा हुआ है। इसी महीने रेवाड़ी के बलियार खुर्द गांव में एक महिला और उसके दो बच्चों पर पालतू पिटबुल कुत्ते ने हमला कर दिया, महिला के पैर, हाथ और सिर में 50 टांके लगे थे। जबकि अगस्त में गुरुग्राम में भी एक महिला पर एक पालतू कुत्ते ने हमला किया, जिसका महिला ने कुत्ते के मालिक के खिलाफ केस दर्ज कराया था। पानीपत में दो दिन के नवजात मासूम को कुत्ताअ जबड़ों में दबाकर ले गया और उसे मार डाला। इसी साल झज्जर जिले के बहादुरगढ़ में आवारा और पालतू कुत्तों के काटने के रोजाना करीब 50 मामले सामने आ रहे हैं। पिछले सप्ताह ही बहादुरगढ़ के बुपनिया गांव में एक 8 साल के बच्चे को कुत्ते ने बेरहमी से नोचकर लहुलुहान किया, जिसे पीजीआई रोहतक रैफर करना पड़ा। पानीपत के पत्थरगढ़ गांव में कुत्तों के कातिलाना हमले ने एक गरीब की रोजी रोटी पर ऐसी चोट मारी कि कुत्तों के काटने से उसकी 70 में से 65 भेड़-बकरियां मौत के मुहं में समा गई। आवारा कुत्तों की बढ़ती संख्या का यह नतीजा है कि मौजूदा समय में भी 15 से 20 लोगों के पीछे एक कुत्ता है। 
वन्य जीवों पर कुत्तों का कहर 
हरियाणा राज्य वन विभाग के अनुसार जनवरी 2016 से मई 2020 तक अकेले हिसार संभाग में 361 काले हिरण, 1641 नीलगाय, 25 मोर, 29 चिंकारा और 35 बंदरों को कुत्तों ने मार दिया। फतेहाबाद ज़िले में बडोपाल क्षेत्र और हिसार ज़िले के मंगली-रावतखेड़ा क्षेत्र में आवारा कुत्तों की वजह से स्थानीय नीलगाय और काले हिरण की आबादी ख़तरे में है। एक अध्ययन में पाया गया कि आवारा कुत्तों ने वन्यजीवों पर गिरोह बना कर हमला किया। हमले की वारदात और इन वन्य-जीवों के हताहत होने की घटना प्रजनन के मौसम में अधिक देखने को मिली, क्योंकि मादाएं अपने बच्चों पर हमले के प्रति अधिक संवेदनशील होती हैं। 
पांच साल में लाखों हुए रेबीज के शिकार 
हरियाणा के हिसार मंडल के चार जिलों हिसार, फतेहाबाद, भिवानी व सिरसा में जनवरी 2016 से मई 2020 तक पालतू या आवारा कुत्तों ने 27 लाख से ज्यादा लोगों को काटकर अपने हमले का शिकार बनाया है। इन जिलों एवं कस्बो के विभिन्न सरकारी अस्पतालों के आंकड़ो के अनुसार इन लोगों को एंटी रेबीज के इंजेक्शन दिये गये। एक व्यक्ति पर इन इंजक्शनों का खर्च डेढ़ हजार रुपये आता है। इस हिसाब से इस दौरान इन लाखों लोगों को एंटी रेबीज पर सरकार को करीब 40.65 करोड़ रुपये का खर्च वहन करना पड़ा है। 
देश में हर साल रेबीज से 20 हजार मौतें 
लुवासा यूनिवर्सिटी के पब्लिक हेल्थ डिपार्टमेंट हिसार के पूर्व असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. अशोक भटेजा का कहना है कि भारत में रेबीज ग्रस्त जानवरों के काटने से हर साल 20 हजार लोगों की मौतें होती हैं, जबकि विश्व में इसका आंकड़ा 60 हजार का है। रेबीज के मरीज को हवा, पानी, आग और रोशनी से डर लगने लगता है। भारत में कुत्तों या अन्य जानवरों के काटने के बाद खासतौर से ग्रामीण इलाको में काटे गए घाव के स्थान पर हल्दी, चूना और मिर्ची लगाने अंधविश्वासी परंपरा है, जो रेबीज की बीमारी को थामने की बजाए और बढ़ा देती है। यही कारण है कि कुत्तों और अन्य जानवरों जिनमें रेबीज के विषाणु पाए जाते हैं उनके काटने से लोगों की मौत हो जाती हैं। कुत्तों के काटने के अलावा नेवला, सियार, बंदर, बिल्ली और चमगादड़ के काटने से रेबीज होता है। इंसानों के साथ-साथ अगर यह जानवर भैंस, गाय, भेड़, बकरी, घोड़ा और ऊंट को भी काट ले और इनका समय पर इलाज न हो तो ये जानवर भी रेबीज की बीमारी से मर सकते हैं। 
कुत्ते के काटने पर क्या करें? 
चिकित्सकों के अनुसार, जब किसी मनुष्य को कुत्ता काट लेता है तो पीड़ित को तुरंत साफ पानी और साबुन से उस जगह को अच्छे से धो लेना चाहिए। क्योंकि कुत्तों के लार में रेबीज नामक कीटाणु होते हैं, जो जानलेवा होते हैं। इसलिए कुत्ते के काटने के बाद इंजेक्शन लगवाना बहुत ही जरूरी होता है और वैक्सीन की पूरी प्रक्रिया का पालन करना चाहिए। कुत्ते के काटने के बाद इंजेक्शन नहीं लगाने से मौत हो सकती है। पशु चिकित्सकों की मानें तो पालतू कुत्तों की अपेक्षा स्ट्रीट डॉग को रेबीज होने का खतरा ज्यादा रहता है, क्योंकि इनका टीकाकरण नहीं किया जाता। 
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वर्जन 
आवारा कुत्तों का टीकाकरण जरुरी 
प्रदेश में आवारा कुत्तों पर शिकंजा कसने के लिए लगातारउनके बधियाकरण की मांग उठाई जाती रही है। घरो में पालतू कुत्तों के टीकाकरण से ज्यादा सड़को व गलियों या जंगलों में घूमते आवारा कुत्तों का टीकाकरण बेहद जरुरी है। प्रदेश में आवारा कुत्तों पर अंकुश लगाने और इस प्रकार बढ़ रहे हमलों को लेकर पंजाब-हरियाणा उच्च न्यायालय में एक जन याचिका दायर है और यह मामला अभी विचाराधीन है। कुत्ते काटने पर इंसान को एंटी रेबीज का टीका दिया जाता है, जो सरकारी अस्पतालों में निशुल्क है, लेकिन इंजेक्शन की कमी के कारण पीड़ितों को निजी अस्पतालों में इलाज कराना पड़ा है। इसके बावजूद सूचना के अधिकार के तहत उन्हें मिली जानकारी में पांच साल में 27 लाख से ज्यादा को सरकारी अस्पताल में कुत्ते काटने के इलाज पर एंटी रेबीज दिया गया, जिसमें सरकार का करोड़ो रुपये खर्च होता है। सरकार कुत्तो के बधियाकरण की नीति को सख्त करके इस राजस्व को बचा सकती है। 
- विनोद कड़वासरा, प्रदेशाध्यक्ष, अखिल भारतीय जीव रक्षा बिश्नोई सभा, हरियाणा 
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कुत्तो के लिए नियम में संशोधन 
केंद्र सरकार ने पशु जन्म नियंत्रण (कुत्ता) नियम 2001 बनाया था, जिसे बाद में वर्ष 2010 में संशोधित किया गया था। इसके तहत कुत्तों की आबादी पर लगाम के लिए नगर निगम-पशु कल्याण संस्था या अन्य एनजीओ यदि किसी आवारा कुत्ते को गली-मोहल्ले से पकड़ती है तो बंध्याकरण के बाद उसे वहीं छोड़ना होगा, ऐसा न करना कानून अपराध है। भारतीय जीव जंतु कल्याण बोर्ड ने मनुष्य-पशु विवाद को कम करने के लिये सामुदायिक पशुओं को गोद लेने के लिये 17 मई 2022 को परामर्श भी जारी किया। चूंकि कुत्ता सबसे वफादार जानवर माना जाता है, लेकिन पिछले कुछ दिनों से पालतू और आवारा कुत्तों को लेकर एक अलग ही बहस छिड़ी है, मामला इतना तूल ले गया कि कि सुप्रीम कोर्ट तक इस मसले पर राज्यों के पशु कल्याण बोर्ड से पूरा हिसाब किताब मांग लिया है। 
ये नियम भी बन रहा है बाधा 
विशेषज्ञों के अनुसार यह भी सच है कि कुत्ते अक्सर लोगों को अपना शिकार बना लेते हैं, लेकिन क्या इससे लोगों को उन्हें प्रताड़ित करने या मारने का हक मिल जाता है? यदि आपको ऐसा लगता है तो हम ये बता देते हैं कि ऐसा करना कानून अपराध है। संविधान में आम लोगों की तरह ही कुत्तों को भी जीने और भोजन पाने का अधिकार दिया गया है। यदि कुत्तों को आपसे कोई परेशानी होती है तो तय मानिए कि आप कानूनी उलझन में पड़ सकते हैं। यदि मामला क्रूरता या कुत्ते की हत्या का हुआ तौर पांच साल जेल की सजा भी भुगतनी पड़ सकती है। इन कानूनों के कुत्तों को सम्मान से जीने का अधिकार दिया गया है। पशु क्रूरता अधिनियम की धारा 428 और 429 के तहत यदि आवारा कुत्ते के साथ क्रूरता की जाती है, उन्हें मारा जाता या है या वे अपंग हो जाते हैं तो ऐसा करने वाले को पांच साल तक की सजा हो सकती है। 
मूल निवासी होने का अधिकार 
संविधान में पशु क्रूरता निरोधक अधिनियम 1960 इसमें समय-समय पर संशोधन होते रहे हैं। 2002 में हुए संशोधन के तहत आवारा कुत्तों को देश का मूल निवासी माना गया है। वह जहां भी चाहें वहां रह सकते हैं, किसी को भी उन्हें भगाने या हटाने का हक नहीं है। यदि कुत्ता विषैला है और उसके काटने का भय है, इसके बावजूद उसे मारा नहीं जा सकता, यदि ऐसा है तो उसके लिए पशु कल्याण संगठन से संपर्क करना होगा। 
भूखा और बांधकर रखने पर भी सजा 
यदि किसी कुत्ते को लंबे समय तक बांधकर रखा जाता है या उसे भोजन नहीं दिया जाता है तो ये संज्ञेय अपराध माना जाएगा, इसकी शिकायत मिलने पर तीन माह तक की सजा का प्रावधान है और किसी पालतू कुत्ते को आवारा नहीं छोड़ा जा सकता। यदि ऐसा किया गया तो ये भी पशु क्रूरता अधिनियम में आएगा, तब भी संबंधित व्यक्ति को तीन माह तक की जेल हो सकती है। 
कुत्ता पालने के भी हैं नियम 
यदि कोई कुत्ता पालने का शौक रखता है, उसे कई नियमों का पालन भी करना होगा. सबसे पहले उसे अलग-अलग तरह की वैक्सीन तय समय पर लगवाना होगा. इसके अलावा दरवाजे पर ‘कुत्ते से सावधान’ का बोर्ड लगाना होगा. यदि आप उसे सोसायटी या पार्क में टहलाने ले जाते हैं तो उसके मुंह पर मजल यानी की मास्क जरूर लगाएं ताकि वो किसी को काट न सके। 
8 करोड़ से ज्यादा हैं आवारा कुत्ते 
भारत में कुत्तों की आबादी लगातार बढ़ती जा रही है, स्टेटिटा वेबसाइट के मुताबिक भारत में पालतू कुत्तों की संख्या 2.5 करोड़ के आसपास है जो 2023 में बढ़कर तीन करोड़ तक पहुंच जाएगी, इसी तरह आवारा कुत्तों की संख्या भी 8 करोड़ से ज्यादा है। 
21Nov-2022

सोमवार, 14 नवंबर 2022

साक्षात्कार: हिंदी साहित्य के इतिहास को नया आयाम दे गये पद्मश्री डा. जयभगवान

60 हजार छन्दों के महाकाव्य ग्रंथों का गुरुमुखी से हिंदी रुपांतरण कर किया ऐतिहासिक कार्य 
व्यक्तिगत परिचय 
नाम: डॉ. जयभगवान गोयल 
जन्म: 30 सितम्बर, 1931 
जन्म स्थान: गांव छछरौली, जिला यमुनानगर (हरियाणा) 
निधन: 28 अक्टूबर 2022 कुरुक्षेत्र 
शिक्षा: एमए(हिन्दी), पीएचडी, 
संप्रत्ति: पूर्व आचार्य/अध्यक्ष, कला संकाय के अधिष्ठाता, कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय, पूर्व अध्यक्ष-हरियाणा शिक्षा बोर्ड।
-:ओ.पी. पाल 
हिंदी साहित्य के इतिहास को नया आयाम देने वाले हरियाणा के मूर्धन्य विद्वान एवं वरिष्ठ साहित्यकार डा. जयभगवान गोयल को हिन्दी जगत की बहुमूल्य सेवा करने के लिए केंद्र सरकार पद्मश्री पुरस्कार से सम्मानित कर चुकी है। देश के साहित्यकारों व लेखकों में शायद डा. गोयल एक ऐसे अकेले विद्वान एवं वरिष्ठ साहित्यकार के रूप में याद किये जाएंगे, जिन्होंने गुरुमुखी लिपि में उपलब्ध हिन्दी साहित्य के अनुसंधान द्वारा हिन्दी जगत में नई अवधारणाएं विकसित की। समसामयिक घटनाओं को वास्तवकि रूप में प्रस्तुत करने में एक रिपोर्ताज–लेखक के रूप में डॉ. गोयल का नाम अग्रण्य रुप से इसलिए भी लिया जाता है कि उन्होंने साहित्य अनुसंधान, विश्लेषण और मूल्यांकन करके 60 हजार छन्दों का महाकाव्य गुर प्रताप सूरज तथा गुरु शोभा, महिमा प्रकाश-गुरु बिलास गुरु नानक विजय आदि कई महत्वपूर्ण ग्रंथो का हिंदी रुपांतरण कर साहित्य जगत के सामने लाने का ऐतिहासिक कार्य किया है। हिंदी जगत में अध्यापन के अलावा शोध निर्देशन, शोध लेख, निबंध, रेखाचित्र, रिपोर्ताज लेखक के रूप में हिंदी साहित्य सृजन में महत्वपूर्ण योगदान देने वाले अनुसंधान के भगीरथ समीक्षक, निबंधकार, चिंतक स्वर्गीय डा. जयभगवान गोयल से सितंबर माह में हरिभूमि संवाददाता से साक्षात्कार के लिए बातचीत हुई थी, जिनका पिछले माह 28 अक्टूबर को निधन हो चुका है। उनके प्रति श्रद्धांजलि अर्पित करने के रूप में हरिभूमि में उनका यह विशेष साक्षात्कार प्रकाशित कर रहा है। 
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हरियाणा के यमुनानगर जिले के छछरौली गांव में 30 सितम्बर 1931 लाला मंसाराम के परिवार में जन्में डॉ. जयभगवान गोयल ने एमए हिन्दी की परीक्षा पंजाब विश्वविद्यालय से प्रथम श्रेणी उतीर्ण की और वहीं से ‘गुरु प्रतापसूरज के काव्य-पक्ष का अध्ययन विषय पर शोध-कार्य पीएचडी की उपाधि प्राप्त की। वे कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय में हिन्दी विभाग के आचार्य एवं अध्यक्ष, कला संकाय के अधिष्ठाता, प्रोफेसर एमरेट्स रहने के पश्चात हरियाणा शिक्षा बोर्ड के अध्यक्ष पद पर भी रहे। मूल रूप से यमुनानगर के रहने वाले डॉ. जय भगवान गोयल पिछले कई सालों से अपनी पत्नी के साथ धर्मनगरी कुरुक्षेत्र में रह रहे थे। स्वर्गीय डॉ. जय भगवान गोयल अपने परिवार में पत्नी पुष्पा गोयल के अलावा दो बेटे और एक बेटी छोड़ गये हैं। उनकी पत्नी भी कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय से सेवानिवृत हैं और तीनों बच्चे विदेश में रहते हैं। डॉ. गोयल सन 1962 में कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय में बतौर लेक्चरर नियुक्त हुए थे। साल 1966 में रोहतक में रीडर हेड रहे, जहां से वर्ष 1975 में वे वापस कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय आ गए थे। कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय में उन्होंने कई पदों के अलावा हिंदी विभाग के बतौर डीन पद को भी संभाला। करीब 37 साल की नौकरी के बाद वो सेवानिवृत हुए थे। डॉ. जयभगवान गोयल ने कुरुक्षेत्र यूनिवर्सिटी जैसे महान शिक्षण संस्थान में काम करने को अपने लिए सौभाग्य की बात कही थी। अध्यापन के अलावा उन्होंने हिंदी साहित्य में शोध निर्देशन, शोध लेखन, निबंध रेखाचित्र जैसे कई कार्य किए। वे अपनी साहित्यिक रचनाओं के कारण शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबन्ध कमेटी, अमृतसर तथा हरियाणा प्रादेशिक हिन्दी साहित्य सम्मेलन द्वारा दो बार पुरस्कृत एवं सम्मानित हुए थे। इन्हें भूतपूर्व राष्ट्रपति ज्ञानी जैल सिंह ने भी इनकी साहित्यिक उपलब्धियों के लिए सम्मानित किया था। वहीं मध्ययुगीन साहित्य का पुनर्मूल्यांकन करके हिन्दी साहित्य को एक नया आयाम देने में महत्ती भूमिका के लिए भी उन्हें याद किया जाएगा। 
हिंदी में बदला गुरमुखी साहित्य 
प्रदेश के वयोवृद्ध साहित्यकार डॉ. गोयल ने तीस से ज्यादा पुस्तकें लिखकर साहित्य सृजन किया। खासबात ये है कि उन्होंने गुरुमुखी लिपि में खड़ी बोली गद्य की 400 वर्ष से अधिक के साहित्यिक रचनाओं की विशाल संपदा का अन्वेषण करके खड़ी बोली गद्य के इतिहास पर नए चिंतन के साथ हिंदी गद्य के विकास की एक नई अवधारणा प्रस्तुत करके एक मिसाल कायम की। जहां उन्होंने 60 हजार छन्दों के महाकाव्य जैसे ग्रंथो का हिंदी रुपांतरण किया। वहीं वे महाकाव्य गुरु प्रताप सूरज के रचयिता भाई संतोष सिंह के परिचय को अपनी लेखनी से साहित्य जगत में हिंदी संवर्धन में महत्वपूर्ण योगदान दे गये। डा. गोयल का मानना था कि यहां गुरुमुखी में बड़ी संख्या में रामकाव्य, कृष्णकाव्य, रीतिग्रंथ, वीरकाव्य तथा छंदशास्त्र आदि रचनाए उपलब्ध है, जिनमें से रामावतार तथा कृष्णावतार विशुद्ध उत्कृष्ट वीरकाव्यों के रूप में लिखे गये हैं। जबकि गुरुमुखी लिपि में 25 हजार से ज्याद वीर रस से संबन्धित छन्द उपलब्ध हैं। उनके साहित्य क्षेत्र में योगदान को देश के प्रख्यात विद्वानों, साहित्यकारों, राजनैतिज्ञों और गणमान्यों ने प्रशंसा करते हुए सराहा है। प्रो. डा. जयभगवान गोयल के निर्देशन में एमफिल और पीएचडी करने वाले वरिष्ठ साहित्यकार डा. बालकिशन शर्मा ने तो पद्मश्री से सम्मानित ‘प्रोफेसर जयभगवान गोयल: व्यक्तित्व एवं कृतित्व’ ‘शीर्षक से पुस्तक लिखकर उनके सम्मान में गुरु-शिष्य परम्परा के निर्वहन का संदेश दिया है। 
मानवतावाद की पैरवी 
हिंदी साहित्य और हरियाणवी लोक साहित्य के पुरोधा डा. जयभगवान गोयल ने सामाजिक धार्मिक एवं सांस्कृतिक पुनर्जागरण के प्रतीक गुरुओं के बलिदान का विशुद्ध विवेचन करके हमेशा मानववाद और मानवतावाद की पैरवी की है। यही नहीं उन्होंने 200 वर्ष पूर्व की ऐसी रचना ‘जपुजी गरब गंजनी’ में अध्यात्म पक्ष के साथ संस्कृत की काव्यशास्त्रीय पद्धति पर जपुजी की समालोचना भी की, जिसे वे खुद हिंदी का प्रथम समीक्षा ग्रंथ भी मानते थे। कबीर, गुरुनानक, गुरु गोबिन्द सिंह, शेख फरीद, गुरु तेग लिखे गए उनके निबंधों में पर्याप्त मौलिकता के साथ वैयक्तिकता भी झलकती है। यही नहीं उनकी सहज, सरल, सशक्त एवं प्रांजल भाषा ‘टक्साल की तर्ज पर ऐसी भानुकूल रही, जिसके प्रत्येक शब्द नगीने की भान्ति रचना में जड़े नजर आते हैं। मसलन उनकी भाषा में मुहावरों का भी सटीक और देशज शब्दों का सहज प्रयोग देखा गया है, भले ही उनकी भाषा में संस्कृत, अंग्रेजी, अरबी-फारसी व देशज शब्दों का इस्तेमाल किया गया हो। उनकी साहित्यिक कृतियों में वह सभी शाश्वत मूल्यों एवं सत्यों का समावेश मिलता है, जो एक साहित्यकार मानव संस्कृति को खुद में एक सबल अंग मानकर ग्रहण करता है। खासबात ये भी है कि हिंदी साहित्य जगत में स्वर्गीय डॉ. गोयल की भाषा शैली, शब्दो का चयन, वाक्य-विन्यास, मुहावरों का प्रयोग, वर्णन की रोचकता, व्यक्तित्व की छाप के साथ लेखन को भावपूर्ण एवं प्रवाहमयी माना जा रहा है। 
प्रकाश्त पुस्तकें 
वयोवृद्ध साहित्यकार डॉ. गोयल ने साहित्य की विभिन्न विधाओं में हिन्दी जगत की बहुमूल्य सेवा की हैं। उनकी प्रकाशित करीब तीस पुस्तकों के अलवा मौलिक एवं सम्पादित सोलह ग्रन्थ भी प्रकाशित हो चुके हैं। उनकी प्रकाशित कृतियों में गुरु प्रताप सूरज के काव्य पक्ष का अध्ययन, महाकवि संतोख सिंह और उनका काव्य, गुरुमुखी लिपी में हिंदी साहित्य, रीतिकाल का पुनर्मूल्यांकन, मध्ययुगीन काव्य: नया मूल्यांकन, साहित्य चिंतन, सन्त साहित्य: नए आयाम, गुरुकाव्य-चिंतन, गुरु तेगबहादुर: चिंतन और कला, गुरु गोविंद सिंह का वीरकाव्य, गुरु गोविंद सिंह: विचार और चिंतन, अंबुवा की डार पे कूके कोयललया, वीरकवि दशमेश, सूफी दरवेश शेख फरीद और उनका काव्य, भारतीय वीर काव्य परम्परा और स्वरुप: नये आयाम, प्रसाद और उनका काव्य, गुरुशोभा, जंगनामा गुरु गोबिन्द सिंह, गुरु बिलास, गुरु नानक प्रकाश, वीर अमर सिंह, संक्षिप्त गुरु प्रताप सूरज, खट्ठा-मिट्ठा-कड़वा और हरियाणा गौरव गाथा प्रमुख ग्रंथों में शामिल हैं। इन रचनाओं के अलावा उनके करीब 85 निबंध प्रकाशित हो चुके हैं। राष्ट्रीय स्तर पर विभिन्न पत्र और पत्रिकाओं में उनके समीक्षात्मक, विचारात्मक, व्यंग्यात्मक, निबंध, संस्मरण, रेखाचित्र, यात्रा वर्तांत, भेंटवार्ताएं, शोधपत्र जैसे लेख बड़ी संख्या में प्रकाशित हुए हैं। 
पुरस्कार व सम्मान 
हरियाणा के सबसे वरिष्ठ साहित्यकारों में शामिल डा. जयभगवान हालांकि पुरस्कार, विज्ञापन, आत्मप्रशंसा से सदैव परहेज करके हमेशा हिंदी साहित्य में जुटे रहे। केंद्र सरकार ने उन्हें पद्मश्री पुरस्कार देकर सम्मान दिया है। वहीं उन्हें हरियाणा साहित्य अकादमी ने साहित्यकार सम्मान योजना के तहत उन्हें वर्ष 2021 के सात लाख रुपये के आजीवन साहित्य साधना सम्मान दिया है। हालांकि उन्हें साहित्यकार एवं विद्वान के रूप में अनेक सम्मान मिले हैं। उनके साहित्य की महिमा के के कायल रहे तत्कालीन राष्ट्रपति ज्ञानी जैल सिंह ने उन्हें राष्ट्रपति भवन में जो सम्मान दिया। इसी प्रकार सुषमा स्वराज और अनेक जाने माने राजनीतिज्ञो ने एक मूर्धन्य विद्वान व साहित्यकार के रूप में उन्हें सम्मान देने में कोई कसर नहीं छोड़ी। 
14Nov-2022

सोमवार, 7 नवंबर 2022

चौपाल: कैनवास पर रंगों की तकनीक से शक्तिसिंह को मिली बड़ी पहचान

देश विदेश में संग्राहलयों व प्रसिद्ध हस्तियों के यहांं शोभा बढ़ा रही हैं कला कृतियां 
-ओ.पी. पाल 
राष्ट्रीय स्तर के प्रसिद्ध चित्रकार शक्तिसिंह अहलावत ने दृश्य कला के क्षेत्र में अपने रंगों की रचनाओं का जिस प्रकार से विस्तार किया है, उसमें कैनवास पर प्रोट्रेट, स्केच, ऑयल और वाटर पेंटिंग जैसी आर्ट की विभिन्न विधाओं में रंगों का अभिनव प्रयोग करते हुए कला में तकनकी प्रयोग को नया आयाम दिया है। इसी प्रभावशाली कला की बदौलत अहलावत की कलाकृतियां देश-विदेश की आर्ट गैलरियों, संग्राहलयों और नामी हस्तियों के निजी आवासों और कार्यालयों की भी शोभा बढ़ा रही हैं। हरियाणा के प्रतिभाशाली प्रसिद्ध चित्रकार शक्तिसिंह अहलावत कला के इतिहास, सौंदर्यशास्त्र, प्रकृति, छाया चित्रण, फोटोग्राफी जैसे हरेक विधा में कैनवास पर प्राकृतिक रंगों की इस तकनीकी कला के प्रति युवाओं में हुनर के रंग भरने में जुटे हैं। 
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देश के सुविख्यात चित्रकारों में शुमार रोहतक सन सिटी के निवासी शक्तिसिंह अहलावत ने हरिभूमि संवाददाता से विशेष बातचीत के दौरान कला सर्वव्यापी बताते हुए कहा कि कलाकार और वैज्ञानिक में समानता होती हैं। कला लोगों की मानसिकता व सोच को सकारात्मक रुप में बदलने में सक्षम है। जहां तक इस आधुनिक युग में कला के क्षेत्र में चुनौतियां का सवाल है, आज भी फाइन आर्ट एक संवेदनशील चित्रण के साथ युवा पीढ़ियों पर सकारात्मक प्रभाव छोड़ने के लिए अहम है। मसलन जिस कहानियों को शब्दों में लिखा जाता है, उसी कहानी को चित्रण के लिए रचनात्मक सोच को प्रोत्साहित किया जा सकता है। कला के इतिहास और सौंदर्यशास्त्र की कला तकनीक पर संवेदनशील अहलावत का कहना है कि हमारे इतिहास और पौराणिक कथाओं से जुड़ी कहानियों को कला यानि चित्रण के माध्यम से एक नए दृष्टिकोण से देखने में मदद मिलती है। अहलावत का मानना है कि कला के क्षेत्र में प्रकृति, पर्यावरण या राष्ट्रभक्ति से प्रेरित संदेश भी कैनवास के रंग समाज में नई दिशा देने में अहम भूमिका निभाने में सक्षम है। कला के क्षेत्र में विभिन्न विधाओं के लिए लंबे संघर्ष के बाद इस मुकाम तक पहुंचे मशहूर चित्रकार अहलावत का मानना है कि अन्य कलाकारों से विचारों का आदान प्रदान करने से कला के क्षेत्र में कुछ नया प्रयोगात्मक काम करने में मदद मिलती है। उनका निरंतर प्रयास रहता है कि वे कुछ इस क्षेत्र में नए तरीकों को खोजकर उन्हें कला के रूप में विकसित किया जाए। उनके मुताबिक कैनवास पर चित्रकला के लिए रंगों के रूप में रोली, महेंदी, घेरू, हल्दी, काजल जैसे प्राकृतिक उत्पादों का भी इस्तेमाल पर होता है। देश विदेशों में आयोजित कला महोत्सव और कला प्रदर्शनियों में उनकी कलाकृतियों को प्रदर्शित किया जाता है। 
व्यक्तिगत परिचय 
हरियाणा के रोहतक जिले में महम के गांव बेहल्बा में आठ अप्रैल 1967 को जगमाल सिंह के परिवार में जन्मे शक्तिसिंह अहलावत ने चंडीगढ़ के गवर्नमेंट कॉलेज ऑफ आर्ट्स से मास्टर डिग्री के बराबर बीएफए(पेंटिंग) में पांच वर्षीय डिग्री कोर्स किया है। यहीं से उनकी धर्मपत्नी श्रीमती सुरेखा अहलावत ने भी इसी संस्थान से बीएफए(पेंटिंग) की डिग्री ली है। माता पिता के संस्कार उनकी पुत्री अनुकृति ने भी कॉलेज ऑफ आर्ट्स चंडीगढ से ही फाइन आर्ट में एमएफए करके मास्टर डिग्री हासिल की है, तो वहीं उनके पुत्र ईश अहलावत भी आर्किटेक्ट बनने की राह पर हैं। मसलन पूरा परिवार कला के क्षेत्र में अपनी प्रतिभा का प्रदर्शन करने में जुटे हुए हैं। पेंटिंग के शौंक के बारे में उन्होंने बताया कि जब तीसरी कक्षा में थे तो उन्होंने महात्मा गांधी पर एक लेख देखा, जिसके साथ गांधी और उनकी रेखाचित्र पर ध्यान केंद्रित किया, जिसमें दो चार लाइनों से गांधी जी का चेहरा सामने आ रहा था। वह भी मंत्रमुग्ध होकर उसी का अभ्यास करने लगे। उनकी आंतरिक पुकार ने उन्हें गांव के बुजुर्गो के रेखाचित्र बनाने के लिए प्रेरित किया और इसके लिए उन्हें गांव में आस पड़ोस से जो प्रशंसा मिली तो उनका आत्मविश्वास ऐसा बढ़ा कि अब कला का यह शौक उनका पेशा बन चुका है। उन्होंने विज्ञान के साथ साथ कला में ज्यादा ध्यान केंद्रित किया। धीरे धीरे वे पेंटिंग की हर विद्या में परिपक्व हो गये। हालांकि फाइन आर्ट में उनकी शुरूआत पोट्रेट से व्यक्ति के चेहरे बनाने से ही हुई। अहलावत ने बताया कि उन्होंने प्रीइंजिनिरिंग भी की है, लेकिन उनका रुझान कला के क्षेत्र में ही है, हालांकि आज भी वे सांइस की किताबों को पढ़ते हैं। वहीं उन्होंने विश्वस्तरीय चित्रकारों की कलाकृतियों से प्रेरित होकर विभिन्न विधाओं की किताबों का अध्ययन भी किया। कला के क्षेत्र को अपना पेशा बनाने के साथ ही वह फाइन आर्ट के क्षेत्र में विभिन्न कार्याशालाओं में युवा पीढ़ी को भी पेंटिंग के गुर सीखाकर कला का विस्तार कर रहे हैं। वहीं वे अतिथि लेक्चरार के रूप में भी विभिन्न शैक्षिक संस्थानों में फाइन आर्ट में रंगों की तकनीकी जानकारी भी छात्रों को देते आ रहे हैं। 
कला की विधाओं में निपुण 
चित्रकार शक्तिसिंह अहलावत कला की विभिन्न विधाओं में निपुण हैं। कला की इस विधा में सिरेमिक, ड्राइंग, पेंटिंग, मूर्तिकला, प्रिंटमेकिंग, डिजाइन, शिल्प, फोटोग्राफी, वीडियो, फिल्म निर्माण और वास्तुकला जैसे रूप दृश्य कलाएं हैं। दृश्य कलाओं के भीतर शामिल औद्योगिक कला, ग्राफिक डिजाइन, फैशन डिजाइन, आंतरिक डिजाइन और सजावटी कला जैसी कलाओं के अलावा कई कलात्मक विषयों के तहत प्रदर्शन कला, वैचारिक कला, वस्त्र कला में दृश्य कला के पहलुओं के साथ-साथ अन्य प्रकार की कलाएं शामिल हैं। 
कैप्टन अमरेन्दर का कला प्रेम 
सुविख्यात चित्रकार शक्तिसिंह अहलावत ने बताया कि पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री कैप्टन अमरेन्दर सिंह एक बड़े कला प्रेमी है, जिन्होंने उनकी चित्रकारी और फाइन आर्ट को सबसे ज्यादा पसंद किया। वहीं उन्होंने अपने कार्यालय, आवास और म्यूजियम में उनकी सैकड़ो पेंटिंग बनवाकर लगाई हुई है। उन्होंने ही उन्हें पंजाब सरकार के म्यूजियम में पेंटिंग का कांट्रेक्ट देकर सबसे ज्यादा पेंटिंग बनवाई हैं। हालांकि अप्रवासी भारतीयों को भी उनकी पेंटिंग पसंद आ रही हैं। उन्होंने बताया कि तत्कालीन राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम और प्रणव मुखर्जी के प्रोट्रेट भी उन्होंने राष्टपति भवन में मौके पर बनाए हैं। यही नहीं उन्होंने देश के ज्यादातर शासकों और राष्ट्रपति व प्रधानमंत्रियों के पोट्रेट बनाकर कला में नए आयाम के साथ रंग उकेरकर समाज को भी नई दिशा देने का प्रयास किया है। कला में निपुणता और सटीकता के कारण उनकी कला की सबसे अधिक मांग है। 
फोटो प्रदर्शनियों का आकर्षण 
चित्रकला के रूप में बड़ी पहचान बना चुके शक्तिसिंह अहलावत की देश के विभिन्न शहरों में दर्जनों व्यक्तिगत कला प्रदर्शनियों के अलावा उनकी मुंबई में पांच, नई दिल्ली में दो और चंडीगढ़ में तीन समूह चित्र प्रदर्शियां अयोजित हो चुकी हैं। उनके आवास में लगी कलाकृतियों को आने वाला हर कोई अतिथि देखे बिना नहीं रहता, जो उनकी चित्रकारी की विभिन्न विधाओं का तकनीकी प्रयोग साबित करता है। उनकी कई कलाकृतियां निजी संग्रह के साथ भारत और विदेशों में 'मास्टरवर्क्स इंटरनेशनल' सहित यूके में स्टूडियोज की भी शोभा बढ़ रही हैँ। वहीं उन्होंने यूनाइटेड के किंग जॉर्ज पंचम के चित्र किंगडम और उनकी पत्नी, क्वीन मैरी को के लिए भी पोट्रेट बनाया था। 
कार्यशालाओं में हिस्सेदारी 
चित्रकार अहलावत ने महर्षि दयानंद विश्वविद्यालय रोहतक में दो बार , हरियाणा स्टेट इंस्टीट्यूट ऑफ फाइन आर्ट रोहतक, कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय, राजकीय महिला कालेज रोहतक, राजकीय कालेज अंबाला, नेशनल ललित कला अकादमी और एनजेडसीसी की मोरनी हिल्स में समय समय पर आयोजित नेशनल पेंटिंग वर्कशाप के अलावा हरियाणा कला परिषद, चंडीगढ़ कला अकादमी जैसी कला संस्थाओं द्वारा आयोजित राज्य स्तर की वर्कशाप में हिस्सेदारी की है। यही नहीं यूजीसी और हरियाणा उच्च शिक्षा विभाग द्वारा आयोजित लगभग सभी पेंटिंग वर्कशाप में उन्हें अपनी कला का प्रदर्शन करने का सौभाग्य मिला है। 
पुरस्कार व सम्मान 
कला के क्षेत्र में हरियाणवी लोककला व संस्कृति में रंग भरने के लिए हरियाणा सरकार ने वर्ष 2010 में मनजीत बावा सम्मान से नवाजा है। पंजाब ललित कला अकादमी सम्मान-1993, पोट्रेट पेंटिंग आर्ट ऑफ इंडिया लुधियाना से विशेष सम्मान-1990, डा. अंबेडकर अखिल भारतीय मानव कल्याण ट्रस्ट चंडीगढ़ का भारत कला रत्न सम्मान-1991, जीसीए चंडीगढ़ का अमृता शेरगिल सम्मान-1991, बैंक ऑफ पंजाब चंडीगढ़ से पुरस्कृत के अलावा अहलावत ने नेशनल ललित कला अकादमी मिजोरम के अल्जव्ल में 2010 में आयोजित नेशनल आर्ट फेस्टिवल में हरियाणा का प्रतिनिधित्व किया और राष्ट्रीय संग्रालय में पेंटिंग कार्य किया। 
यहां लगी हैं कलाकृतियां 
सुविख्यात चित्रकार शक्तिसिंह की विभिन्न विधाओं में पेंटिंग कृतियां नेशनल ललित कला अकादमी दिल्ली, राजकीय संग्राहलय चंडीगढ़, नेशनल गैलरी ऑफ पोट्रेट चंडीगढ़, वार म्यूजियम लुधियाना, धरोहर म्यूजियम कुरुक्षेत्र विश्विवद्यालय, राजभवन हरियाणा चंडीगढ़, डा. दीवान सिंह खेलेपानी म्यूजियम एंड लाइब्रेरी पोर्ट ब्लेयर, पुलिस म्यूजियम मधुबन करनाल, एनजेडसीसी पटियाला, वेस्टर्न कमांड चंडी मंदिर, पंजाब भवन नई दिल्ली, टैगोर आडोटेरियम एमडीयू रोहतक की शोभा बढ़ा रही हैं। पूर्व राष्ट्रपति स्व. डा. एपीजे अब्दुल कलाम के अलावा मॉरीशस के प्रधानमंत्री नवीनचन्द्रा रामगुलाम के अलावा देश की राजनीतिक हस्तियों सोनिया गांधी, कुमारी सैलजा, किरण चौधरी, पूर्व मुख्यमंत्री भूपेन्द्र हुड्डा के यहां भी उनकी कलाकृतियां लगाई हुई हैं। वहीं फिल्म हस्तियों में शबाना आजमी, सरिता जोशी, राकेश बेदी, शशि रंजन और आह जिंदगी मैग्जीन में भी प्रदर्शित है। इसके अलावा कला प्रेमियों ने उनकी पेंटिंग को अपने घरों और संस्थानों में स्थान दिया है। पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री कैप्टन अमरेन्दर सिंह उनकी कला के इतने बड़े फैन हैं कि आज तक उन्होंने ही सबसे ज्यादा पेंटिंग बनवाकर उनके पेशे को पंख लगाए हैं। 
07Nov-2022