सोमवार, 14 नवंबर 2022

साक्षात्कार: हिंदी साहित्य के इतिहास को नया आयाम दे गये पद्मश्री डा. जयभगवान

60 हजार छन्दों के महाकाव्य ग्रंथों का गुरुमुखी से हिंदी रुपांतरण कर किया ऐतिहासिक कार्य 
व्यक्तिगत परिचय 
नाम: डॉ. जयभगवान गोयल 
जन्म: 30 सितम्बर, 1931 
जन्म स्थान: गांव छछरौली, जिला यमुनानगर (हरियाणा) 
निधन: 28 अक्टूबर 2022 कुरुक्षेत्र 
शिक्षा: एमए(हिन्दी), पीएचडी, 
संप्रत्ति: पूर्व आचार्य/अध्यक्ष, कला संकाय के अधिष्ठाता, कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय, पूर्व अध्यक्ष-हरियाणा शिक्षा बोर्ड।
-:ओ.पी. पाल 
हिंदी साहित्य के इतिहास को नया आयाम देने वाले हरियाणा के मूर्धन्य विद्वान एवं वरिष्ठ साहित्यकार डा. जयभगवान गोयल को हिन्दी जगत की बहुमूल्य सेवा करने के लिए केंद्र सरकार पद्मश्री पुरस्कार से सम्मानित कर चुकी है। देश के साहित्यकारों व लेखकों में शायद डा. गोयल एक ऐसे अकेले विद्वान एवं वरिष्ठ साहित्यकार के रूप में याद किये जाएंगे, जिन्होंने गुरुमुखी लिपि में उपलब्ध हिन्दी साहित्य के अनुसंधान द्वारा हिन्दी जगत में नई अवधारणाएं विकसित की। समसामयिक घटनाओं को वास्तवकि रूप में प्रस्तुत करने में एक रिपोर्ताज–लेखक के रूप में डॉ. गोयल का नाम अग्रण्य रुप से इसलिए भी लिया जाता है कि उन्होंने साहित्य अनुसंधान, विश्लेषण और मूल्यांकन करके 60 हजार छन्दों का महाकाव्य गुर प्रताप सूरज तथा गुरु शोभा, महिमा प्रकाश-गुरु बिलास गुरु नानक विजय आदि कई महत्वपूर्ण ग्रंथो का हिंदी रुपांतरण कर साहित्य जगत के सामने लाने का ऐतिहासिक कार्य किया है। हिंदी जगत में अध्यापन के अलावा शोध निर्देशन, शोध लेख, निबंध, रेखाचित्र, रिपोर्ताज लेखक के रूप में हिंदी साहित्य सृजन में महत्वपूर्ण योगदान देने वाले अनुसंधान के भगीरथ समीक्षक, निबंधकार, चिंतक स्वर्गीय डा. जयभगवान गोयल से सितंबर माह में हरिभूमि संवाददाता से साक्षात्कार के लिए बातचीत हुई थी, जिनका पिछले माह 28 अक्टूबर को निधन हो चुका है। उनके प्रति श्रद्धांजलि अर्पित करने के रूप में हरिभूमि में उनका यह विशेष साक्षात्कार प्रकाशित कर रहा है। 
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हरियाणा के यमुनानगर जिले के छछरौली गांव में 30 सितम्बर 1931 लाला मंसाराम के परिवार में जन्में डॉ. जयभगवान गोयल ने एमए हिन्दी की परीक्षा पंजाब विश्वविद्यालय से प्रथम श्रेणी उतीर्ण की और वहीं से ‘गुरु प्रतापसूरज के काव्य-पक्ष का अध्ययन विषय पर शोध-कार्य पीएचडी की उपाधि प्राप्त की। वे कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय में हिन्दी विभाग के आचार्य एवं अध्यक्ष, कला संकाय के अधिष्ठाता, प्रोफेसर एमरेट्स रहने के पश्चात हरियाणा शिक्षा बोर्ड के अध्यक्ष पद पर भी रहे। मूल रूप से यमुनानगर के रहने वाले डॉ. जय भगवान गोयल पिछले कई सालों से अपनी पत्नी के साथ धर्मनगरी कुरुक्षेत्र में रह रहे थे। स्वर्गीय डॉ. जय भगवान गोयल अपने परिवार में पत्नी पुष्पा गोयल के अलावा दो बेटे और एक बेटी छोड़ गये हैं। उनकी पत्नी भी कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय से सेवानिवृत हैं और तीनों बच्चे विदेश में रहते हैं। डॉ. गोयल सन 1962 में कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय में बतौर लेक्चरर नियुक्त हुए थे। साल 1966 में रोहतक में रीडर हेड रहे, जहां से वर्ष 1975 में वे वापस कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय आ गए थे। कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय में उन्होंने कई पदों के अलावा हिंदी विभाग के बतौर डीन पद को भी संभाला। करीब 37 साल की नौकरी के बाद वो सेवानिवृत हुए थे। डॉ. जयभगवान गोयल ने कुरुक्षेत्र यूनिवर्सिटी जैसे महान शिक्षण संस्थान में काम करने को अपने लिए सौभाग्य की बात कही थी। अध्यापन के अलावा उन्होंने हिंदी साहित्य में शोध निर्देशन, शोध लेखन, निबंध रेखाचित्र जैसे कई कार्य किए। वे अपनी साहित्यिक रचनाओं के कारण शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबन्ध कमेटी, अमृतसर तथा हरियाणा प्रादेशिक हिन्दी साहित्य सम्मेलन द्वारा दो बार पुरस्कृत एवं सम्मानित हुए थे। इन्हें भूतपूर्व राष्ट्रपति ज्ञानी जैल सिंह ने भी इनकी साहित्यिक उपलब्धियों के लिए सम्मानित किया था। वहीं मध्ययुगीन साहित्य का पुनर्मूल्यांकन करके हिन्दी साहित्य को एक नया आयाम देने में महत्ती भूमिका के लिए भी उन्हें याद किया जाएगा। 
हिंदी में बदला गुरमुखी साहित्य 
प्रदेश के वयोवृद्ध साहित्यकार डॉ. गोयल ने तीस से ज्यादा पुस्तकें लिखकर साहित्य सृजन किया। खासबात ये है कि उन्होंने गुरुमुखी लिपि में खड़ी बोली गद्य की 400 वर्ष से अधिक के साहित्यिक रचनाओं की विशाल संपदा का अन्वेषण करके खड़ी बोली गद्य के इतिहास पर नए चिंतन के साथ हिंदी गद्य के विकास की एक नई अवधारणा प्रस्तुत करके एक मिसाल कायम की। जहां उन्होंने 60 हजार छन्दों के महाकाव्य जैसे ग्रंथो का हिंदी रुपांतरण किया। वहीं वे महाकाव्य गुरु प्रताप सूरज के रचयिता भाई संतोष सिंह के परिचय को अपनी लेखनी से साहित्य जगत में हिंदी संवर्धन में महत्वपूर्ण योगदान दे गये। डा. गोयल का मानना था कि यहां गुरुमुखी में बड़ी संख्या में रामकाव्य, कृष्णकाव्य, रीतिग्रंथ, वीरकाव्य तथा छंदशास्त्र आदि रचनाए उपलब्ध है, जिनमें से रामावतार तथा कृष्णावतार विशुद्ध उत्कृष्ट वीरकाव्यों के रूप में लिखे गये हैं। जबकि गुरुमुखी लिपि में 25 हजार से ज्याद वीर रस से संबन्धित छन्द उपलब्ध हैं। उनके साहित्य क्षेत्र में योगदान को देश के प्रख्यात विद्वानों, साहित्यकारों, राजनैतिज्ञों और गणमान्यों ने प्रशंसा करते हुए सराहा है। प्रो. डा. जयभगवान गोयल के निर्देशन में एमफिल और पीएचडी करने वाले वरिष्ठ साहित्यकार डा. बालकिशन शर्मा ने तो पद्मश्री से सम्मानित ‘प्रोफेसर जयभगवान गोयल: व्यक्तित्व एवं कृतित्व’ ‘शीर्षक से पुस्तक लिखकर उनके सम्मान में गुरु-शिष्य परम्परा के निर्वहन का संदेश दिया है। 
मानवतावाद की पैरवी 
हिंदी साहित्य और हरियाणवी लोक साहित्य के पुरोधा डा. जयभगवान गोयल ने सामाजिक धार्मिक एवं सांस्कृतिक पुनर्जागरण के प्रतीक गुरुओं के बलिदान का विशुद्ध विवेचन करके हमेशा मानववाद और मानवतावाद की पैरवी की है। यही नहीं उन्होंने 200 वर्ष पूर्व की ऐसी रचना ‘जपुजी गरब गंजनी’ में अध्यात्म पक्ष के साथ संस्कृत की काव्यशास्त्रीय पद्धति पर जपुजी की समालोचना भी की, जिसे वे खुद हिंदी का प्रथम समीक्षा ग्रंथ भी मानते थे। कबीर, गुरुनानक, गुरु गोबिन्द सिंह, शेख फरीद, गुरु तेग लिखे गए उनके निबंधों में पर्याप्त मौलिकता के साथ वैयक्तिकता भी झलकती है। यही नहीं उनकी सहज, सरल, सशक्त एवं प्रांजल भाषा ‘टक्साल की तर्ज पर ऐसी भानुकूल रही, जिसके प्रत्येक शब्द नगीने की भान्ति रचना में जड़े नजर आते हैं। मसलन उनकी भाषा में मुहावरों का भी सटीक और देशज शब्दों का सहज प्रयोग देखा गया है, भले ही उनकी भाषा में संस्कृत, अंग्रेजी, अरबी-फारसी व देशज शब्दों का इस्तेमाल किया गया हो। उनकी साहित्यिक कृतियों में वह सभी शाश्वत मूल्यों एवं सत्यों का समावेश मिलता है, जो एक साहित्यकार मानव संस्कृति को खुद में एक सबल अंग मानकर ग्रहण करता है। खासबात ये भी है कि हिंदी साहित्य जगत में स्वर्गीय डॉ. गोयल की भाषा शैली, शब्दो का चयन, वाक्य-विन्यास, मुहावरों का प्रयोग, वर्णन की रोचकता, व्यक्तित्व की छाप के साथ लेखन को भावपूर्ण एवं प्रवाहमयी माना जा रहा है। 
प्रकाश्त पुस्तकें 
वयोवृद्ध साहित्यकार डॉ. गोयल ने साहित्य की विभिन्न विधाओं में हिन्दी जगत की बहुमूल्य सेवा की हैं। उनकी प्रकाशित करीब तीस पुस्तकों के अलवा मौलिक एवं सम्पादित सोलह ग्रन्थ भी प्रकाशित हो चुके हैं। उनकी प्रकाशित कृतियों में गुरु प्रताप सूरज के काव्य पक्ष का अध्ययन, महाकवि संतोख सिंह और उनका काव्य, गुरुमुखी लिपी में हिंदी साहित्य, रीतिकाल का पुनर्मूल्यांकन, मध्ययुगीन काव्य: नया मूल्यांकन, साहित्य चिंतन, सन्त साहित्य: नए आयाम, गुरुकाव्य-चिंतन, गुरु तेगबहादुर: चिंतन और कला, गुरु गोविंद सिंह का वीरकाव्य, गुरु गोविंद सिंह: विचार और चिंतन, अंबुवा की डार पे कूके कोयललया, वीरकवि दशमेश, सूफी दरवेश शेख फरीद और उनका काव्य, भारतीय वीर काव्य परम्परा और स्वरुप: नये आयाम, प्रसाद और उनका काव्य, गुरुशोभा, जंगनामा गुरु गोबिन्द सिंह, गुरु बिलास, गुरु नानक प्रकाश, वीर अमर सिंह, संक्षिप्त गुरु प्रताप सूरज, खट्ठा-मिट्ठा-कड़वा और हरियाणा गौरव गाथा प्रमुख ग्रंथों में शामिल हैं। इन रचनाओं के अलावा उनके करीब 85 निबंध प्रकाशित हो चुके हैं। राष्ट्रीय स्तर पर विभिन्न पत्र और पत्रिकाओं में उनके समीक्षात्मक, विचारात्मक, व्यंग्यात्मक, निबंध, संस्मरण, रेखाचित्र, यात्रा वर्तांत, भेंटवार्ताएं, शोधपत्र जैसे लेख बड़ी संख्या में प्रकाशित हुए हैं। 
पुरस्कार व सम्मान 
हरियाणा के सबसे वरिष्ठ साहित्यकारों में शामिल डा. जयभगवान हालांकि पुरस्कार, विज्ञापन, आत्मप्रशंसा से सदैव परहेज करके हमेशा हिंदी साहित्य में जुटे रहे। केंद्र सरकार ने उन्हें पद्मश्री पुरस्कार देकर सम्मान दिया है। वहीं उन्हें हरियाणा साहित्य अकादमी ने साहित्यकार सम्मान योजना के तहत उन्हें वर्ष 2021 के सात लाख रुपये के आजीवन साहित्य साधना सम्मान दिया है। हालांकि उन्हें साहित्यकार एवं विद्वान के रूप में अनेक सम्मान मिले हैं। उनके साहित्य की महिमा के के कायल रहे तत्कालीन राष्ट्रपति ज्ञानी जैल सिंह ने उन्हें राष्ट्रपति भवन में जो सम्मान दिया। इसी प्रकार सुषमा स्वराज और अनेक जाने माने राजनीतिज्ञो ने एक मूर्धन्य विद्वान व साहित्यकार के रूप में उन्हें सम्मान देने में कोई कसर नहीं छोड़ी। 
14Nov-2022

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