सोमवार, 27 जून 2022

मंडे स्पेशल: हरियाणा में रिश्वतखोरी पर कसी जा रही नकेल, फिर भी बढ़ रहे भ्रष्टाचार के मामले

रिश्वतखोरी कम हो गई या विजिलेंस महकमा ढीला पड़ा! 
चालू साल में अब तक हत्थे चढ़े करीब चार दर्जन सरकारी मुलाजिम 
पिछले एक दशक में हर साल औसतन सौ से ज्यादा के खिलाफ जांच पंजीकृत 
ओ.पी.पाल.रोहतक। हरियाणा से भ्रष्टाचार, रिश्वतखोरी खत्म हो गए हैं या फिर करप्शन पर नकेल कसने वाला महकमा कमजोर पड़ गया है? यह सवाल इसलिए उठा, क्योंकि भ्रष्टाचार के खिलाफ सरकार की जीरो टॉलरेंस की नीति के बावजूद करप्शन मामलों में कमी नहीं आ रही है। अभी पिछले छह माह में ही भ्रष्टाचार के चार दर्जन मामले सामने आ चुके हैं। राज्य सरकार व विजिलेंस विभाग बेशक भ्रष्ट अफसरों पर लगातार सख्त कार्रवाई कर रहे हैं, पर आम नागरिक में परसेप्प्शन है कि करप्शन में कमी नहीं आई है, बल्कि कुछ वृद्धि ही हुई है। इसका मतलब रिश्वतखोरी पर लगाम लगाने वाला विजिलेंस अमला ही सुस्त हो गया है। अगर आंकड़ों पर नजर दौड़ाए तो प्रदेश में 2013-14 के दौरान 128 कर्मचारियों को रिश्वतखोरी के इल्जाम में दबोचा गया, 2015-16 में यह आंकड़ा 176 हो गया। वर्ष 2019-20 में 44 कर्मियों और वर्ष 2020-21 के दौरान 36 कर्मचारियों को रिश्वत लेते रंगे हाथों गिरफ्तार किया गया। हालांकि सरकार ने एक बार फिर जीरो टॉलरेंस नीति चालू वर्ष में कई ठोस कदम उठाए, जिसके तहत चालू वर्ष में अब तक विभिन्न विभागों के चार दर्जन से ज्यादा अधिकारी और कर्मचारी विजिलेंस विभाग के हत्थे चढ़े हैं।
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अंतर्राष्ट्रीय गैर-सरकारी संगठन ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल ने करप्शन परसेप्शन इंडेक्स-2021 के सूचकांक में भारत में भ्रष्टाचार के मामले में साल 2020 की तरह ही 85वें स्थान पर कायम है। मसलन देश में भ्रष्टाचार को अंजाम देने वालों में कोई कमी नहीं आई और हरियाणा भी रिश्वतखोरी में संलिप्त सरकारी मुलाजिमों को सरकार की किसी सख्ती की परवाह नहीं है। जबकि भ्रष्टाचार के खिलाफ गंभीर राज्य सरकार ने रिश्वतखोरी के मामलों और शिकायतों का जल्द से जल्द निवारण करने की दिशा में जहां उच्चाधिकार समिति का गठन किया है, वहीं हरियाणा स्टेट विजिलेंस ब्यूरो का विकेंद्रीकरण करते हुए डिविजनल लेवल पर 6 स्वतंत्र इकाईयां गठित करने का निर्णय लिया गया है, जिन्हें ग्रुप बी, सी व डी श्रेणी के सरकारी कर्मचारियों के खिलाफ एक करोड़ रुपये तक के मामलों और शिकायतों की जांच करने का अधिकार दिया गया है। जबकि ग्रुप-ए श्रेणी के कर्मचारियों व एक करोड़ से अधिक राशि की शिकायतों की जांच स्टेट विजिलेंस ब्यूरो पहले की तरह करता रहेगा। पंचकूला में राज्य सतर्कता ब्यूरो मुख्यालय के अलावा प्रदेश में अंबाला, करनाल, रोहतक, हिसार, गुरुग्राम और फरीदाबाद में सात पुलिस प्रमुखों के अधीनस्थ सतर्कता विभाग कार्य कर रहा है। यह भी गौरतलब है कि प्रदेश में कुछ राजनैतिक दिग्गजों के खिलाफ भी भ्रष्टाचार और गबन जैसे के मामले चल रहे हैं। 
पिछले छह माह में बड़ी कार्रवाई 
राज्य में भ्रष्टाचार के खिलाफ सरकार के निर्देश पर राज्य सतर्कता ब्यूरो द्वारा चलाए गये विशेष अभियान के तहत इस साल पहले छह माह में विभिन्न सरकारी विभागों के प्रथम श्रेणी के अधिकारियों से लेकर तृतीय श्रेणी के कर्मचारियों समेत करीब 50 कर्मचारियों को रिश्वत लेते रंगे हाथ पकड़ा गया है। जनवरी माह में तीन बड़े अधिकारियों समेत 1500 से 50 हजार रुपये की घूस लेते रंगे हाथ पकड़े गये नौ सरकारी मुलाजिमों समेत 11 लोगों के खिलाफ भ्रष्टाचार के मामले दर्ज करके कार्रवाई की गई है। जबकि फरवरी में एक राजपत्रित अधिकारी समेत 10 सरकारी कर्मियों को 1000 से 1.40 लाख रुपये तक की रिश्वत लेते हुए रंगे हाथ गिरफ्तार किया गया। ब्यूरो ने इस दौरान जहां चार मामलों में पूछताछ के बाद 4 राजपत्रित अधिकारियों, 7 अराजपत्रित अधिकारियों और 7 निजी व्यक्तियों के खिलाफ आपराधिक मामलों की सिफारिश की है, वहीं तीन विशेष तकनीकी जांच रिपोर्ट भी राज्य सरकार को सौंपी। इस रिपोर्ट में तीन राजपत्रित अधिकारियों व दो अराजपत्रित अधिकारियों के खिलाफ विभागीय कार्रवाई की सिफारिश करते हुए 16 लाख 84 हजार रुपये से अधिक की राशि वसूलने को कहा है। 
ऐसे सख्त हुआ विजिलेंस विभाग 
प्रदेश में मार्च के महीने में ब्यूरो सर्वाधिक 18 मामलों में 22 सरकारी मुलाजिमों को रिश्वत लेते रंगे हाथ पकड़ा है। इस दौरान 5 लाख रुपये तक की रिश्वत लेते हुए 3 प्रथम श्रेणी के अधिकारी और 19 तृतीय श्रेणी के कर्मचारी शामिल हैं। अप्रैल व मई में रिश्वत लेते हुए एक-एक मुलाजिम रंगे हाथ पकडे गये तो इस माह जून में एक महिला पुलिसकर्मी समेत तीन लोगों को रंगे हाथ गिरफ्तार करके उनके खिलाफ मुकदमे दर्ज कराये गये हैं। इससे पहले प्रदेश में साल 2021 तक पिछले एक दशक से ज्यादा समय के दौरान भ्रष्टाचार के 1085 मामले जांच के लिए रजिस्टर्ड किये गये, जिनमें अपराध के 244 मामलों समेत भ्रष्टाचार के मामले शामिल हैं। वहीं इस दौरान 915 मामलों की जांच पूरी की गई है। इसके अलावा राज्य सतर्कता ब्यूरो की टीमों ने 848 मुलाजिमों और अन्य को रिश्वत लेते हुए रंगे हाथ पकड़ा गया है। इनमें सबसे ज्यादा 176 को वर्ष 2015-16 के दौरान पकड़ा गया है। 
आठ मुलाजिम निलंबित 
प्रदेश में आमजन के लिए भ्रष्टाचार व अनियमितताओं की शिकायत दर्ज कराने के लिए सीएम विंडो की व्यवस्था भी कारगर सिद्ध हो रही है, जिसमें सीएम कार्यलय भ्रष्टाचार के मामलों पर जांच में दोषी अधिकारियों व कर्मचारियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई अमल में लाई जा रही है। इसी कार्रवाई का नतीजा है कि इस साल सरकार कम से कम आठ अधिकारियों व कर्मचारियों को निलंबित कर चुकी है। मसलन मई माह 2022 के दौरान हरियाणा सरकार की ओर से भ्रष्टाचार के एक मामले में बड़ी कार्रवाई की गई है। सरकार ने गबन के दो मामलों में शहरी स्थानीय निकाय विभाग के छह अधिकारियों को निलंबित करने के सथ उनके खिलाफ प्राथमिकी दर्ज कराई है। ऐसे अधिकारियों में नूहं के उपायुक्त की जांच रिपार्ट में चार अधिकारियों जसमीर, जावेद हुसैन, राजेश दलाल और लखमी चंद राघव के खिलाफ उचित कार्रवाई की सिफारिश के बाद यह कदम उठाया गया। इससे पहले फरीदाबाद की समाज कल्याण अधिकारी सुशीला व उसके ड्राइवर सतीश को तुरंत प्रभाव से निलम्बित कर उनके खिलाफ आपराधिक मामला दर्ज करने व नियम 7 के तहत कार्यवाही की गई है। जबकि भिवानी के उपायुक्त ने मामले की जांच के बाद पंकज ढांडा और प्रवीण कुमार को भी निलंबित किया जा चुका है। 
आठ सौ मुलाजिमों को नोटिस 
राज्य सरकार प्रदेश में चर्चित रजिस्ट्री घोटाले को लेकर भी एक्शन में है और सरकार ने पिछले दिनों ही साल 2010 से अब तक तहसीलों में हुई रजिस्ट्रियों की जांच कराने का निर्णय लिया है। सरकार ने इस मामले में 800 अधिकारियों व कर्मचारियों को नोटिस भी जारी कर दिया है, जिनमें 400 तहसीलदार और नायब तहसीलदार के अलावा 400 लिपिक और पटवारी शामिल हैं। 
रोडवेजकर्मी को सजा 
हिसार के अतिरिक्त जिला एवं सत्र न्यायाधीश की अदालत ने हरियाणा राज्य परिवहन विभाग में तैनात एक कर्मचारी रवींद्र कुमार उर्फ रवि को भ्रष्टाचार के एक मामले में सुनवाई करते हुए चार साल कारावास की सजा और 5000 रुपये का जुर्माना लगया है। वहीं साल 2015 के मामले में भ्रष्टाचार के मामले में एक सरकारी कॉलेज के एसोसिएट प्रोफेसर दुग्गल को चार साल की कैद और दस हजार रुपये का जुर्माना भरने का फैसला सुनाया। खेमका समेत चार के खिलाफ मामला दर्ज
अप्रैल माह के दौरान हरियाणा के चर्चित आईएएस अधिकारी अशोक खेमका समेत के खिलाफ बीते दिन भ्रष्टाचार के आरोपों में शिकायत दर्ज हुई है। पंचकूला के सेक्टर पांच थाने में हरियाणा वेयर हाउस कॉर्पोरेशन के एमडी संजीव वर्मा ने शिकायत दर्ज कराई है। 
27June-2022

चौपाल: गुमनाम वीरांगनाओं से रुबरु कराने की मुहिम

आजादी का अमृत महोत्सव:इतिहास के पन्नों से गुमनाम वीरांगनाओं को सलाम 
जादी के अमृत महोत्सव के महत्व को सार्थक करने की दिशा में देशभर में उन स्वतंत्रता सेनानियों को तलाशा जा रहा है, जो अभी तक गुमानामी के अंधेरे में हैं और उनके परिजन आगे नहीं आ पा रहे हैं। वीरों की भूमि के रूप में पहचाने जाने वाले हरियाणा में भी कुछ लोग और संस्थाएं ऐसे गुमनाम स्वतंत्रता सेनानियों को तलाशकर उन्हें पहचान दिलाने में जुटे हुए हैं। ऐसी मुहिम में रोहतक के महारानी किशोरी बाई जाट कन्या महाविद्यालय की शिक्षिकाओं द्वारा ऐतिहासिक कदम उठाते हुए आजादी के अमृत महोत्सव के इस त्यौहार में हरियाणा ही नहीं, बल्कि देशभर की ऐसी गुमनाम वीरांगनाओं को तलाशा जा रहा है। इसका मकसद यही है कि स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में ऐसे वीरों व वीरांगनाओं का पहचानकर आज की युवा पीढ़ी भी प्रेरणा ले सके। भारत की आजादी के नौ दशक तक स्वतंत्रता संग्राम में बलिदान और योगदान देने वालों के सम्मान में आजादी के 75वें साल को आजादी का अमृत महोत्सव के रूप में मना रहा है। देश को गुलामी की जंजीरों से मुक्त कराने के लिए आजादी की लड़ाई में बलिदान करने वाले कुछ लोग स्वतंत्र भारत में अभी तक वह सम्मान और पहचान न पा सके, जिसके वे हकदार थे। इन वीर सेनानियों में अनेक वीरांगनाएं भी शामिल रही, जिनकी पहचान इतिहास के पन्नों में कहीं खो गईं। जबकि पुरुषों के विपरीत महिलाओं को स्वतंत्रता के आंदोलन तक पहुँचने से पहले हालांकि समाज की असंख्य बेड़ियों का तोड़ना पड़ता था, लेकिन इसके बावजूद देश की आजादी के लिए हजारो भारतीय महिलाएं स्वतंत्रता संग्राम की वीरांगनाओं के रूप में योगदान करके देश की आजादी में अहम योगदान दिया। इसलिए भी अमृत महोत्सव ऐसे वीरों और वीरांगनाओं के बिना अधूरा है, जो अभी तक स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास से गुमनामी के अंधेरे में है। खासकर आजादी के पुरुष दीवानों के साथ कंधा से कंधा मिलाकर स्वतंत्रता संग्राम की उन वीरांगनाओं के बलिदान और योगदान को भी भुलाया नहीं जा सकता, जिन्हें स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में शामिल ही नहीं किया गया। ऐसी गुमनाम वीरांगना में कनक लता के आदम्य साहस को भी इतिहास से नकार दिया गया, जिसने महज 18 साल की उम्र में देश के लिए कुर्बानी दी। मसलन महिला स्वतंत्रता सेनानियों में रानी लक्ष्मीबाई, सरोजनी नायडू, कमला नेहरु, कस्तूरबा गांधी, अरुणा आसफ अली, ऐनी बेसेंट, बेगम हजरत महल, कैप्टन लक्ष्मी सहगल, सुचेता कृपलानी, विजय लक्ष्मी पंडित, सावित्रीबाई फुले जैसे नामों के इतिहास तो परिचित है, लेकिन स्वतंत्रता के इतिहास में ऐसी सैकड़ो गुमनाम वीरांगनाएं अभी तक पहचान से महरूम हैं। ऐसी वीरांगनाओं की पहचान के बिना आजादी के अमृत महोत्सव के कोई मायने नहीं है। 
गुमनाम वीरांगनाओं को पहचान देने की मुहिम 
भारत की आजादी के लिए साल 1857 से 1947 तक के स्वतंत्रता संग्राम में ऐसी गुमनाम वीरांगनाओं को तलाशने की मुहिम महारानी किशोरी बाई जाट कन्या महाविद्यालय, रोहतक की लाइब्रेरियन उर्मिला राठी के संयोजन में कालेज की प्राचार्य डा. रश्मि लोचब, समाजशास्त्र विभाग की प्रो. सुशीला धनखड़ और इतिहास विभाग की प्रो. डा. सरिता सहरावत ने शुरू की है और अब तक करीब चार दर्जन ऐसी गुमनाम वीरांगनाओं को तलाशकर वे आजादी के अमृत महोत्सव के विभिन्न कार्यक्रमों में उनके बलिदान और योगदान से परिचय कराने में जुटी हैं। कालेज की इस अभियान दल का मानना है कि ऐसी गुमनाम वीरांगनाओं के बिना अमृत महोत्सव अधूरा है। वहीं उनका कहना है कि आज के इस आधुनिक युग में समाज, खासतौर से युवा पीढ़ी को आजादी के स्वतंत्रता इतिहास और उसमें योगदान करने वाले स्वतंत्रता सेनानियों की जानकारी देकर देश प्रेम के लिए प्रेरित करना है। इसी माह आजादी के अमृत महोत्सव के तहत इन शिक्षकाओं ने कालेज में गुमनाम वीरांगनाओं झलकारी बाई, बेगम हजरत महल, किट्टूर रानी चेन्नम्मा, रानी गैडीन्ल्यू, मतांगिनी हजारा, उदा देवी, मूलमती, कनकलता बरुआ, तारारानी श्रीवास्तव, मेडम भिकाजी कामा, अम्मु स्वामीनाथन, उमाबाई कुंडापुर, कमला देवी चट्टोपाध्याय, बेगम रॉयका, दुर्गाबाई देशमुख, दक्ष्यानी वेलायुद्धान, बेगम एजाज रसूल, लीला रॉय, कमला चौधरी, मालती चौधरी, राजकुमारी अमृतकौर, रेणुका रॉय, एनी मस्कराने, दुर्गावती देवी, सुहासिनी गांगुली, कल्पना दत्ता, प्रीतिलता वाडेडार, सुनीती चौधरी, बसंती देवी, सरला देवी चौधरी, गुलाब कौर व पदमजा नायडू की प्रतिमा और उनके स्वतत्रता संग्राम में योगदान को दर्शाते हुए प्रदर्शनी भी लगाई। 
हरियाणा की वीरांगनाओं ने भी हिलाई अंग्रेजी हकूमत की चूलें 
हरियाणा देश के सूबों में वीरों की भूमि के रुप में पहचाना जाता है, जहां पुरुषों के साथ महिलाओं ने भी कंधा से कंधा मिलाकर आजादी के लिए स्वतंत्रता संग्राम में हिस्सा लेकर अंग्रेजी हुकूमत की नींव हिलाने में अपना अहम योगदान दिया है। देश के स्वतंत्रता संग्राम में इतिहास में हरियाणा की ऐसी वीरांगनाओं योगदान को भी भुलाया नहीं जा सकता। साल 1857 से 1947 तक हरियाणा के हिसार, सिरसा, अंबाला, रोहतक, गुरुग्राम, झज्जर, उकलाना, टोहना, सोनीपत जैसे क्षेत्रों से ऐसी वीरांगनाओं की फेहरिस्त वैसे तो बेहद लंबी है, जिनमें ज्यादातर ऐसी गुमनाम वीरांगनाएं हैं, जो इतिहास के पन्नों से गुमनाम है। ऐसी वीरांगनाओं में हिसार की चांदबाई और उनकी बहू तारावती, रोहतक के रोहण गांव की लक्ष्मीबाई आर्य व कस्तूरी देवी, सोनीपत के गडकुण्डल गांव की गायत्री देवी, गुरुग्राम की कमला भार्गव, झज्जर की मन्नो देवी के अलावा प्रदेश की मोहिनी देवी, सोहाग रानी, लक्ष्मी देवी, सोमवती, शन्नों, कस्तूरीबाई शामिल हैं। इन वीरांगनाओं ने देश की आजादी की खातिर अंग्रेजों के खिलाफ सत्याग्रह अंदोलन, भारत छोड़ो आंदोलन जैसे असहयोग आंदोलन में सक्रीय रुप से हिस्सा लिया और जेल की सजा और यातनाओं का सामना किया। 
दलित वीरांगनाओं का बलिदान 
स्वतंत्रता संग्राम में शाही या कुलीन पृष्ठभूमि वाली औरतों ने ही हिस्सा नहीं लिया, बल्कि दलित समुदायों की औरतों की भी इसमें सक्रीय भागीदारी थी। लखनऊ में जन्मी उदा देवी स्वतंत्रता संग्राम में ऐसी पहली दलित वीरांगना के रूप में पहचानी गई। लखनऊ के चिनहट क्षेत्र की लड़ाई में पति के वीरगति प्राप्त होने के बाद उदा देवी ने एक पीपल के घने पेड़ की आड लेकर कम से कम 32 अंग्रेजी सैनिकों को मार गिराया, जिसके बाद गोली लगने से उसने वहीं अपना बलिदान दिया। ऐसी ही एक और दलित वीरांगना मुज़फ़्फ़रनगर ज़िले के मुंडभर गांव की महाबीरी देवी थी, जिसने 22 महिलाओं दस्ता बनाकर 1857 में कई अंग्रेज सैनिकों को ढेर किया और देश की आजादी के लिए शहीद हो गई। इनके अलावा दलित वीरांगनाओं में रनवीरी वाल्मीकि, शोभा देवी वाल्मीकि, सहेजा वाल्मीकि, नामकौर, राजकौर, हबीबा गुर्जरी देवी, भगवानी देवी, भगवती देवी, इंदर कौर, कुशल देवी और रहीमी गुर्जरी आदि भी इतिहास के पन्नों से नजरअंदाज हैं। 
वीरबाला कनकलता बरुआ 
असम के सोनीपुर जिले के गोहपुर गांव में 22 दिसंबर 1924 को जन्मी कनकलता बरुआ ने महज सात साल की कनकलता क्रांतिकारियों के बीच ही बड़ी हुई, जिसने महज 18 साल की आयु में हाथ में तिरंगा थामे एक जुलूस में अंग्रेजी सेना की गोली खाकर देश के लिए शहीद हो गई। अपनी वीरता व निडरता के कारण वह वीरबाला के नाम से जानी गईं। स्वतंत्रता संग्राम में सबसे कम उम्र की बलिदानी कनकलता का नाम भी इतिहास के पन्नों से गायब है। 
27June-2022

सोमवार, 20 जून 2022

मंडे स्पेशल: सिरे चढ़ती नहीं दिखती जेल सुधार की कवायद

प्रदेश की जेलों में क्षमता से दो-तीन गुणा ज्यादा कैदियों की भीड़ सजा पा रहे कैदियों से पांच गुणा बंद हैं विचाराधीन कैदी 
 ओ.पी. पाल.रोहतक। भले ही पिछले प्रदेश में जेल सुधार की कवायद की जा रही हो, लेकिन हरियाणा की जेलों में लगातार बढ़ती कैदियों की संख्या सिकुड़ने का नाम नहीं ले रही है। इन जेलों में सजा काट रहे कैदियों के मुकाबले ऐसे विचाराधीन कैदियों की भीड़ का अनुपात पिछले साढ़े तीन साल में ही बढ़कर 65 से बढ़कर 89 तक पहुंच चुका है। ये ऐसे कैदी हैं जिन पर लगे आरोप अभी तक सिद्ध नहीं हो सके हैं। हालात ये है कि केंद्रीय और जिला जेलों में उनकी कैदियों को रखने की क्षमता से 2-3 गुणा अधिक कैदी बंद हैं। यही नहीं प्रदेश में जेल विभाग के कर्मियों का इतना टोटा है कि स्वीकृत पद भी खाली पड़े हैं, तो ऐसे में जेलों में क्षमता से अधिक कैदियों की बुनियादी सुविधाएं मिलने की व्यवस्था निश्चित रुप से प्रभावित होना स्वाभाविक होगा। जेलों में बैरकों में भीड़ खासकर कई जेलों में महिला बैरकों का काम रसोई घरों से चलाया जा रहा है। ये हालात तब है कि अदालतों में त्वरित कार्रवाई के चलते हर दिन जेलों में आने वाले कैदियों से ज्यादा बंदियों की रिहाई हो रही है। हरियाणा की जेलों में इस माह 15 जून तक 153 विदेशी और 2188 महिलाओं समेत कुल 42702 कैदी बंद हैं। 
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हरियाणा की जेलों के सुधार के लिए राज्य सरकार कई फैसलों पर काम कर रही है, जिसमें जेलों के आधुनिकीकरण और उनकी क्षमता बढ़ाने के साथ कैदियों की बुनियादी सुविधाएं और उन्हें समाज की मुख्यधारा में लाने जैसे कई सुधारात्मक पहलुओं का खाका खींचा गया है। इसके लिए अधिकारियों की कमेटियां भी ऐसे पहलुओं पर अध्ययन कर रही है, जिसमें जेलों में आने के बाद कैदी या बंदी अपने जीवन में सुधार करने की सोच पैदा कर सके। इसके लिए अंग्रेजी हकूमत के 1894 प्रिजन एक्ट में बदलाव करने की भी सरकार की योजना है। सरकार ने कैदियों की मानसिकता में बदलाव लाने का प्रयास में जेलों की जमीन पर पेट्रोल पंप खोलने के प्रस्ताव किया है, जिसमें पहले पेट्रोल पंप की शुरूआत कुरुक्षेत्र में की जा चुकी है। प्रदेश में ऐसे 11 जेल फिलिंग स्टेशनों के लिए पहले जेलर द्वारा कैदियों के प्रशिक्षण की व्यवस्था होगी और उनके कार्य व्यवहार के आधार पर ड्यूटी रोटेट होगी। इसके अलावा सरकार का अंबाला, यमुनानगर, करनाल, झज्जर, फरीदाबाद, गुरुग्राम, भिवानी, जींद और हिसार में इस योजना को अंजाम देने का प्रस्ताव है। प्रदेश सरकार की योजना के तहत जेलों में सजा काट रही महिलाओं के बच्चों की स्कूल स्तर की पढ़ाई के प्रबंध का जिम्मा जेल प्रशासन संभालेगा। महिला कैदियों के लिए सरकार की मंशा है कि जिन महिला कैदियों के बच्चे छोटे हैं, उनकी सजा को सरकार एक से तीन साल तक के लिए कम कर सकती है। प्रदेश में नूहं जिले में 846 कैदियों को रखने की क्षमता वाली नई जेल का निर्माण कराया है, जिसके जल्द ही शुरू होने की उम्मीद है। सर्वोच्च न्यायालय द्वारा जेल सुधार के लिये गठित न्यायमूर्ति (सेवानिवृत्त) अमिताभ रॉय समिति ने जेलों में भीड़भाड़ की समस्या को दूर करने के लिये कई महत्वपूर्ण सिफारिश की थी, लेकिन हरियाणा ही नहीं देशभर की जेलों में कैदियों की भीड़ कम होने का नाम नहीं ले रही है। 
हरियाणा में तेजी से बढ़ी संख्या 
हरियाणा की जेलों में कैदियों के अनुपात में वृद्धि का औसत हरियाणा में 2019 में 95 से बढ़कर 2021 में 106 प्रतिशत था। जबकि 31 दिसंबर 2020 के मुकाबले पिछले डेढ़ साल में 15 जून 2022 तक यह अनुपात 133.22 प्रतिशत यानि 2.33 गुणा कैदियों की संख्या में इजाफा हुआ। मसलन फिलहाल हरियाणा की जेलों में क्षमता के मुकाबले कैदियों की संख्या 2.17 गुणा यानी 116.9 प्रतिशत अधिक है। हरियाणा की 19684 कैदियों की क्षमता वाली तीन केंद्रीय और 16 जिला जेलों में 15 जून 2022 की स्थिति के अनुसार 2188 महिला कैदियों 153 विदेशी कैदियों समेत समेत 42,707 कैदी बंद हैं। इनमें सबसे ज्यादा 4,749 कैदी गुरुग्राम की भोंडसी जेल में बंद हैं, जिनमें 53 विदेशी कैदी भी लंबे समय से बंद हैं। हरियाणा की जेलों में बंद कैदियों में सबसे ज्यादा622 महिलाओं समेत 22859 कैदी 20-30 साल की उम्र के हैँ। महिलाओं में सबसे ज्यादा 876 कैदी 40-50 साल, 50-60 की 175, 60-70 साल की 94 और 70 से ज्यादा साल की 60 महिला कैदी बंद हैं। 
नेपाल के सर्वाधिक कैदी 
हरियाणा की जेलों में लंबे समय से बंद 16 महिलाओं समेत 153 विदेशी कैदियों में सबसे ज्यादा नेपाल के 50 कैदी हैं। जबकि नाइजीरिया के 37, बांग्लादेश के 31, पाकिस्तान के 06, अफगानिस्तान व सूडान के 05-05, उज्बेकिस्तान,आइसलैंड, इराक, केन्या, दक्षिण अफ्रीका और तुर्कीस्तान के 02-02, कैमरुन और आईवोरीकोस्ट का एक-एक कैदी बंद हैं। सबसे ज्यादा 53 कैदी भोंडसी जेल और 20 फरीदाबाद की जिला जेल में बंद हैं। 
बंदी से ज्यादा कैदी रिहा 
हरियाणा की जेलों से पिछले दस दिनों यानी दस जून से 19 जून 22 के बीच 24616 बंदियों को रिहा किया गया है, जबकि 21948 कैदी विभिन्न आरोपों में जेलों में बंद किये गये हैं। बावजूद इसके जेलों में विचाराधीन कैदियों की संख्या में लगातार बढ़ोतरी हो रही है। यही कारण है कि हरियाणा की जेलों में पिछले डेढ़ साल में विचाराधीन कैदियों का अनुपात औसतन 85 बढ़कर 89 तक जा पहुंचा है, जो 2019 में 65 से 2021 तक 85 तक दर्ज किया गया था। 
हाई सिक्योरिटी जेल 
प्रदेश सरकार रोहतक के सुनारियां में हाई सिक्योरिटी जेल बनाने की मंजूरी के बाद बजट भी जारी हो चुका है। योजना के मुताबिक 76 करोड़ रुपये की लागत से 19.5 एकड़ में अलग से करीब 350 कैदियों की क्षमता वाली हाई सिक्योरिटी जेल का निर्माण करवाया जा रहा है। मसलन विदेशों की तर्ज पर बनने वाली आधुनिक सुविधाओं व सिक्योरिटी से लैस इस जेल में हार्डकोर क्रीमिनल व आतकंवादी रखे जाएंगे। 
बुजुर्ग कैदियों को मिलेगी राहत 
सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले के आधार पर राज्य सरकार हरियाणा में भी 14 साल की सजा पूरी करने वाले 60 साल या उससे ज्यादा उम्र वाले कैदियों को रिहा करने की तैयारी में है। इसकी सूची जेल प्रशासन तैयार करेगा, जिसे राज्य प्रिजन रिलीज कमेटी को भेजा जाएगा। इसके लिए दोषसिद्ध कैदी के व्यहार और आचरण का भी आकलन होगा। 
जेलों स्टाफ पर एक नजर 
प्रदेश की जेलों के लिए 4093 पद स्वीकृत है, जिनमें से 66.72 प्रतिशत ही कार्यरत हैं और 1362 पद खाली पड़े हुए हैं। इनमें 231 अधिकारियों के पदों में केवल 151 ही कार्यरत हैं, जबकि अराजपत्रित अधिकारियों के 159 पदों में से केवल 98 ही कार्यरत हैं। इसी प्रकार 2369 कार्यपालक तैनात है, जबकि स्वीकृत 3346 हैं। हरियाणा की जेलों में 50.5 प्रतिशत चिकित्साकर्मियों की कमी चल रही है। स्वीकृत 99 पदों के मुकाबले 49 चिकित्साकर्मी कार्यरत हैं। जबकि जेलों में 290 मुख्य वार्डन में 276 तथा 2615 वार्डरों में से 1816 ही कार्य कर रहे हैं। जेलों में खासकर रेजिडेंट चिकित्सा अधिकारी, चिकित्सा अधिकारी, फार्मासिस्ट जैसे स्वास्थ्यकर्मियों के अभाव में कैदियों की स्वास्थ्य आवश्यकताओं की पूर्ति में देरी होती है। 
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हरियाणा जेलें            क्षमता   कुल कैदी   महिला   विदेशी  
सेंट्रल जेल, अम्बाला  1228      2636        89            14 
सेंट्रल जेल- I, हिसार  1499      2733        0              06 
सेंट्रल जेल-II, हिसार  571       1378      284            05 
जिला जेल, भिवानी   561        2081       37             03 
जिला जेल, फरीदाबाद 2500    4593     205             20 
जिला जेल, गुड़गांव    2412    4749       81             53 
जिला जेल, जींद        1047     1639      65             03 
जिला जेल, कैथल        515    1322      26             00 
जिला जेल, करनाल   2434   1603      146            10 
जिला जेल, कुरुक्षेत्र    446     1399      35             02 
जिला जेल, नारनौल  350       972       31             09 
जिला जेल, रेवाड़ी       65       289        00            00 
जिला जेल, रोहतक  1300    2654      330          02 
जिला जेल, सिरसा    807    2062       52           01 
जिला जेल, सोनीपत 745   3229       432          01 
जिला जेल, यमुनानगर1200 1659     41          02 
जिला जेल, पलवल        60    188      01          00 
जिला जेल, पानीपत    870   3257    228          04 
जिला जेल, झज्जर   1074   2236    106          18 
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कुल                   19684    42702    2188     153 
नोट: (यह आंकड़ा 15 जून 2022 तक का है)
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विदेशी कैदी 
अफगानिस्तान 05 बांग्लादेश 31 उज्बेकिस्तान 02 कैमरुन 01 आइसलैंड 02 इराक 02 आईवोरीकोस्ट 01 केन्या 02 नेपाल 50 नाइजीरिया 37 पाकिस्तान 06 दक्षिण अफ्रीका 02 सूडान 05 तुर्कीस्तान 02/ कुल 153 महिला 16 
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आयु वर्ग के  कैदी        महिला 
20 से कम    2282       22 
20-30         22859      622 
30-40        11530     442 
40-50        5873      876 
50-60        2806      175 
60-70       1335        94 
70 से ज्यादा 318     60
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कोरोना काल में कैदियों को दी गई बड़ी राहत

2020 के दौरान बंद किये गये कैदी 39024

31 दिसंबर 2020 तक हरियाणा की जेलों में कुल कैदी

हरियाणा की जेलों में 31 2020 तक कैदी 18309 (M-17657 F-588 T-6)

कैदी जुर्म(आईपीसी)     सिद्ध कैदी(3338)  विचाराधीन कैदी(14951)

हत्या                                    1035              4108

संदोष हत्या                              64                 189

दहेज हत्या                             126                 389

हत्या का प्रयास                       204                 303

अपहरण                              265                855

बलात्कार                              425                 1552

बलात्कार का प्रयास                  78                  251

लोकशांति(दंगे)                       25                  93

चोरी                                    188                 1740

जबरन वसूली                          16                 109

लूटपाट                                 135                502

डकैती                                   147                550 

डकैती की तैयारी                      83                  187

विश्वासभंग(अमानत में खयानत) 16                 211

धोखाधड़ी                                30                184

आगजनी                                 05                  20

सेंधमारी                                  46                253

संपत्ति अपराध                        666               3756

दस्तावेज जालसाजी                   02                  33

पति/रिश्तेदार की निर्दयता            18                  77

महिला लज्जा अवमाना               00                  16

महिलाअपराध के दोषी                647              2285

कुल 

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जुर्म कैदी(स्पेशल लोकल लॉ)     

दहेज प्रतिनिषेधअधिनियम            31                06

अनैतिक व्यवहार                        14               30

अजा/जजा अधि.                         04              60

रेलवे अधिनियम                          04              17

कलाकृति अधि.                           07              10

भ्रष्टाचार निवारण अधि.                 05             19

जुआ                                          00             20

शस्त्र अधिनियम                           00            364

शराब/नशीला पदार्थ अधि               00          1332

विदेशी पंजी/पासपोर्ट बअअधि.        00            012

आवश्यक अधिनियन                     00            006

विभन्न अधिनियम                         12             35

अन्य विभिन्न अधिनियम                 106          463

-दोषसिद्ध कैदी 3338 M-3237 F-100 T-1

18-30 आयुवर्ग के सर्वाधिक 1471 M-1445 F-25 T-1

-विचाराधीन कैदी 14951 M-14456 F-490 T-5

-नजरबंद-20

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2020-केंद्रीय जेल में कुल कैदी थे 3114

केंद्रीय जेल में दोषसिद्ध कैदी 503 M-489 F-13 T-1

केंद्रीय जेल में विचाराधीन कैदी 2611 M-2494 F-117  T-0

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जिला जेलों में 2020 को कैदी-15195

जिला जेल में दोषसिद्ध कैदी 2835  M-2748 F-87 T-0

जिला जेल में विचाराधीन कैदी 12340 M-11962 F-373  T-5

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हरियाणा में 31 दिसंबर 2020 तक 18309 कैदियों में 14951 विचाराधीन कैदी थे

साल 2020

4145 दोषसिद्ध तथा 36635 विचाराधीन कैदियों की रिहाई की गई।

सजा पूरी होने पर रिहा 776

विचाराधीन कैदी रिहा 34126

दोषमुक्त होने पर रिहा  662

दोषसिद्ध 133 कैदी तथा 568 विचाराधीन कैदी अन्य राज्यों को स्थानांतरित किये गये

2020 के दौरान 87 महिलाओं समेत 2971 कैदी पैरोल पर रिहा

रिमांड पर लिये गये 1060 कैदी

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फांसी की सजा                13  (अपील के बाद चार में से दो की सजा बरकरार और दो की उम्रकैद में तब्दील)

आजीवन कारावास       1553

10-13 साल                670

7-9  साल                   352

5-6 साल                    290 

2-4 साल                    189

1-2 साल से कम           132

6 माह-1 साल से कम       86

6 माह से कम                  53

कुल सजायाफ्ता             3338          

 

सजा पूरी होने पर जुर्माना न देने पर जेल में बंद दोषसिद्ध कैदी

6 माह से कम                  09

6 माह-1 साल से कम        02

2-3 साल से कम              01

3-5 साल                         01       
20June-2022        

साक्षात्कार: समाज को नई दिशा देने वाला दीपक है साहित्य: गौतम

हरियाणा के लोकसाहित्य का किया गहनता से अध्ययन
व्यक्तिगत परिचय 
नाम: डॉ. राजेन्द्र गौतम 
जन्म: 6 सितंबर 1952 
जन्म स्थान: ग्राम बराहकलाँ, ज़िला जींद(हरियाणा) शिक्षा: पीएचडी, दिल्ली विश्वविद्यालय 
संप्रत्ति: सेवानिवृत्त प्रोफेसर,हिंदी विभाग, दिल्ली विश्वविद्यालय, दिल्ली। 
--ओ.पी. पाल 
देश के प्रसिद्ध वरिष्ठ साहित्यकार डॉ. राजेन्द्र गौतम हिंदी के चर्चित कवि, आलोचक एवं शिक्षाविद् के रूप में पहचाने जाते हैं। ये उन नवगीतकारों में भी शुमार हैं जिन्होंने साहित्य की विभिन्न विधाओं में इस उपभोक्तावादी दौर में भी विसंगतियों को उजागर करती श्रेष्ठ गीत जैसी रचनाएं दी हैं। अपनी साहित्य साधना के दौरान उन्होंने अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर हिंदी संवर्धन करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और हरियाणा को भी गौरवान्वित किया है। उन्होंने समाज को नई दिशा देने के मकसद से हरियाणा के लोकसाहित्य का गहनता से अध्ययन कर उसे नया आयाम दिया। साहित्य लेखन, कविता, नाटक, फिल्मी अभिनय, वृत्तचित्र निर्माता की भूमिका में अहम योगदान देने के अलावा हरियाणवी में गीत और दोहे लिखकर हरियाणवी संस्कृति और सभ्यता को जीवंत रखने का काम करके डा. गौतम ने अपनी मातृभूमि को सर्वोपरि रखा हुआ है। दिल्ली विश्वविद्यालय में हिंदी विभाग के सेवानिवृत्त प्रोफेसर डा. गौतम ने अपने साहित्य-सृजन-यात्रा में हिन्दी साहित्य के समकालीन परिदृश्य से जुड़े मुद्दों पर हरिभूमि संवाददाता के साथ बातचीत के दौरान कई अनछुए पहलुओं को भी साझा किया।
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दिल्ली विश्वविद्यालय में हिंदी विभाग के रीडर रहे प्रबुद्ध साहित्यकार डा. राजेन्द्र गौतम का जन्म 6 सितंबर 1952 को हरियाणा में जींद जिले के गांव बराहकलाँ में रामभगत गौतम के परिवार में हुआ। शिक्षा और सुविधाओं की दृष्टि से बहुत पिछड़े इस गाँव में बचपन गुजारने वाले डा. गौतम को भले ही साहित्यिक परिवेश जैसा कुछ न मिला हो, लेकिन उनकी पारिवारिक पृष्ठभूमि में साहित्यानुराग अवश्य था। डा. गौतम ने बताया कि उस ग्रामीण परिवेश में हरियाणवी काव्य-रूप ‘सांग’ और ‘रागनी’ के रूप में तो साहित्य से लोगों का परिचय था, लेकिन खड़ी बोली कविता से देहात में किसी को खास वास्ता नहीं था। फिर भी एक समर्थ कवि रहे उनके पिता रामभगत गौतम द्वारा संग्रहीत पुस्तकों और उनकी कविताओं ने उनके साहित्य अध्ययन की और रूझान पैदा किया। इसी वजह से शैशवकाल में ही उनके साहित्य-प्रेम का बीजारोपण हुआ। परिवारिक संस्कार के कारण उनकी साहित्यिक रूचि बढ़ने लगी और पाँचवी या छठी कक्षा से ही ‘भारत-चीन युद्ध’ या ‘सरदी का मौसम’ जैसे विषयों पर विद्यालय में प्रत्येक शनिवार को होने वाली बाल-सभा में स्वरचित तुकबंदियाँ सुनाना शुरू किया। मसलन छठी कक्षा से उन्होंने साहित्य पठन पाठन का सिलसिला शुरू कर दिया। कक्षा दसवीं तक उन्होंने पुस्तकों के साथ-साथ इन पत्रिकाओं में प्रकाशित विपुल अनूदित और मौलिक गद्य-पद्य साहित्य पढ़ डाला, जिसमें हरिवंशराय बच्चन का बहुत-सा काव्य-साहित्य भी शामिल रहा। ‘नवनीत’ के जनवरी 1969 के अंक में उनकी पहली रचना गद्यगीत के रुप में प्रकाशित हुई। उन्होंने हरियाणवी में कुछ गीत और दोहे लिखे हैं। उनका कहना है कि यह सौभाग्य ही रहा कि नवगीत की प्रथम पीढ़ी के सभी नवगीतकारों के साथ उन्हें काम करने का अवसर मिला। हरियाणवी साहित्य खासकर पं. लख्मीचंद पर उन्होंने 1974 लिखना शुरू किया और गीत, सवैये, और दोहे जैसी उनकी रचनाओं का प्रकाशन ‘हरियाणा संवाद’ में हुआ है। उनकी हरियाणवी और खड़ीबोली की रचनाएँ कई वर्षों तक कुरुक्षेत्र यूनिवर्सिटी में पाठ्यक्रम में पढाई जाती रहीं हैं। यही नहीं उनकी ऐसी अनेक रचनाओं का प्रसारण आकाशवाणी के दिल्ली और रोहतक केंद्रों से भी हुआ है। सन 1975 में दिल्ली आने के बाद उनकी रचनाएं विभिन्न पत्र और पत्रिकाओं में प्रकाशित होने लगी। डा. गौतम ने विश्वविद्यालय अनुदान आयोग की सांस्कृतिक आदान-प्रदान योजना के तहत साल 2003-04 में तीन माह तक महात्मा गांधी संस्थान मारीशस‘ में अध्ययन-अध्यापन कार्य भी किया। जहां उन्होंने मारीशस ब्रॅाडकास्टिंग कॉर्पोरेशन द्वारा ‘एन्काउंटर विद एन इंडियन राइटरः डॉ. राजेंद्र गौतम’ शीर्षक से डाक्यूमेंट्री फिल्म बनाई गई। इससे पहले 1995 में अपने गांव पर दूरदर्शन के लिए बनाई गई डोक्यूमेंट्री ‘बारह वन की ओर’ डीडी-1 वन पर प्रसारित हुई थी। डा. गौतम का मानना है कि इस आधुनिक युग में समय के साथ सब कुछ परिवर्तित होता है और समाज में साहित्य की स्थिति का बदलना भी स्वाभाविक है। लेकिन साहित्य की भूमिका समाज में अप्रासंगिक नहीं हुई है। हालांकि सोशल मीडिया के दौर में साहित्य के पारंपरिक रूप से पाठक कम जुड़ रहा है, लेकिन कोई समाज साहित्य की ऑक्सीजन के बिना जिंदा कैसे रह सकता है? खासकर युवा पीढ़ी की साहित्य में रुचि घटने से इनकार नहीं किया जा सकता और वह आंशिक रूप में साहित्य से कटा है। युवकों को संवेदनशील साहित्य से जोड़ने की जरूरत है, क्योंकि साहित्य ही मनुष्य को संवेदनशील बनाता है। युवाओं को साहित्य से जोड़ने में इंटरनेट एक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है। साहित्य के गिरते स्तर पर उन्होंने कह कि सोशल मीडिया ने एक ऐसी मानसिकता को जन्म दिया है जिसमें अभी-अभी जो लिखा, उसे तत्काल पोस्ट कर दिया जाए। यह ‘काता और ले भागा’ वाली स्थिति साहित्य के स्तर को गिरा रही है। यही कारण है कि आज लेखन के स्तर पर गिरावट भी इसी का परिणाम है।यशपाल शर्मा द्वारा निर्मित हरियाणवी फिल्म ‘दादा लखमी’ में भी उन्होंने अभिनय और गीतों के जरिए अपना योगदान दिया।
प्रकाशित पुस्तकें 
डा. राजेन्द्र गौत्तम के काव्य संग्रह में गीत पर्व आया है, पंख होते हैं समय के, बरगद जलते हैं के अलावा आवाज मौसम की, ठहरे हुए समय में, कुछ दोहे इस दौर के, नवगीत दशक-3, और कवि अनुपस्थित है पुस्तक लिख चुके हैँ। रचनात्मक लेखन, दृष्टिपात, हिंदी नवगीत:उद्भव और विकास, सुमित्रानंदन पंत के काव्य में आभिजात्यवादी और स्वच्छंदतावादी तत्व और प्रकृति तुम वन्द्य हो’ नामक पुस्तक सुर्खियों में रही है। उनकी पुस्तकों में ज्ञानकलश, कविता यात्राःछह, कथावीथी, ज्ञानकलश, आधुनिक कविता, भूमिजा, यात्रा में साथ साथ, भारतीय संस्कृति और सभ्यता, दोहा सप्तपदी और बाबा नंदसिह प्रमुख हैं। इसके अलावा उन्होंने काव्यशास्त्र, हरियाणवी लोकसाहित्य, तकनीकी अनुवाद के क्षेत्र में व्यापक कार्य किया है। ‘हरियाणा साहित्य अकादमी’ के संकलन ‘कथा-यात्रा-4’ समेत चार पांच कहानियां भी लिखी है, तो उनका ललित निबंधों का एक संग्रह भी प्रकाशित हुआ है। उनकी अन्य पुस्तकों में शिक्षा के विविध आयाम, राजभाषा और पारिभाषिक शब्दावली, समकालीन हिंदी कविता, हरियाणवी काव्य एवं लखमीचंद, कुछ प्रेम कविताएँ, विविध शोधपत्रों के तीन संकलन भी शामिल हैं। उनकी रचनाओं का सैकड़ो शोधपत्र संगोष्ठियों में प्रस्तुत और शोधपत्रिकाओं में प्रकाशन हुआ, तो वहीं दूरदर्शन एवं आकाशवाणी से अनेक साहित्यिक प्रसारण भी हुए। कई विश्वविद्यालयों में शोधर्थियों द्वारा उनके रचनात्मक साहित्य पर एम.फिल. एवं पीएच. डी. हेतु शोधकार्य भी किया। 
सम्मान/पुरस्कार 
वरिष्ठ साहित्यकार डॉ. राजेन्द्र गौतम को हरियाणा साहित्य अकादमी ने वर्ष 2021 के लिए हरियाणा गौरव सम्मान से सम्मानित करने का निर्णय लिया है। इससे पहले हरियाणा साहित्य अकादमी वर्ष 998-99 में उनकी काव्य कृति ‘बरगद जलते हैं' तथा 1982-83 'गीतपर्व आया है' के लिए श्रेष्ठ कृति पुरस्कार प्रदान कर चुकी है। डा. गौत्तम को साहित्य सेवा के लिए लोकनायक जयप्रकाश नारायण सम्मान, शिक्षक गौरव सम्मान, माहेश्वर तिवारी अक्षरा नवनीत सृजन सम्मान, अक्षर पुरुष सम्मान,समन्वय आकाशवाणी सम्मान, प्रज्ञा सम्मान, हिंदी भाषी संघ मॉरीशस का हिंदी सेवा सम्मान, सुरुचि साहित्य सम्मान, हंस कविता सम्मान मिला है। वहीं भाषा विभाग हरियाणा का ‘सर्वश्रेष्ठ निबंध पुरस्कार’, आचार्य ‘हजारी प्रसाद द्विवेदी निबंध पुरस्कार और आठवें दशक के प्रबंध-काव्य शोधपत्र पर अखिल भारतीय निबंध पुरस्कार मिल चुके हैं। पाकिस्तान अकादमी ऑफ लेटर्स द्वारा इस्लामाबाद में 2013 में लोकतंत्र और साहित्य विषय पर सम्मेलन में भी उनका सम्मान हो चुका है। इसके अलावा वर्ष 1974 में पंजाब विश्वविद्यालय द्वारा एम ए. (हिंदी) और वर्ष 1972 बीए(ऑनर्स) में प्रथम स्थान के लिए स्वर्ण पदकों से सम्मानित किया जा चुका है। 
संपर्क: 906,झेलम,प्लॉट:8,सेक्टर:5,द्वारका ,नई दिल्ली-110075
Mob:9868140469. E-mail: rajendragautam99@yahoo.com, 
20June-2022

आजकल: फौज की तर्ज पर अग्निवीरों को मिले पैकेज

सेना में अग्निपथ स्कीम के तहत जवानों की भर्ती शुरू -जरनल अश्वनी सिवाच, रक्षा विशेषज्ञ 
भारत सरकार की सेना में भर्ती प्रक्रिया के लिए अग्निपथ स्कीम का ऐलान करने की कई वजह हैं। दरअसल रक्षा बजट के दो हिस्से होते हैं, जिसमें कैपिटल बजट में सेना के आधुनिककरण के लिए 20 प्रतिशत से कुछ ज्यादा और रेवेन्यू एक्सपेंडिचर के लिए 70-75 प्रतिशत खर्च किया जाता है। सरकार पर लगातार रेवेन्यू बजट कम करने का दबाव था। इसलिए पेंशन को कम करने के मकसद से सरकार ने अग्निपथ स्कीम शुरू की, जिसमें साढ़े 17 साल से लेकर 21 साल के युवाओं को देश की तीनों सेनाओं में चार साल के लिए अग्निवीरों को सेवा देने का निर्णय लिया। इससे कैपिटल बजट की राशि बढ़ने से उसका इस्तेमाल नए हथियार, वायुयान, युद्धपोत और अन्य सैन्य उपकरण खरीदने और सेना के आधुनिकीकरण के दूसरे उपायों के लिए किया जा सकेगा। कारगिल युद्ध के दौरान गठित कारगिल समीक्षा समिति ने सिफारिश की थी कि सेना में जवानों की औसतन आयु 32-33 को कम करना चाहिए। अग्निपथ स्कीम में समिति की सिफारिश के ये उपाय लागू होते दिख रहे हैं और अगले दस साल के भीतर औसतन आयु 25-26 साल तक आ जाएगी। रक्षा बजट में पेंशन की राशि बचाकर सेना के आधुनिकीकरण हो सके, इसी सोच विचार के साथ सरकार ने सेना में अग्निपथ स्कीम के तहत जवानों की भर्ती शुरू करने की शुरूआत की है। सेना में भर्ती की इस नई योजना के तहत चार साल के लिए सैनिक भर्ती होंगे, उसमें छह महीने की बेसिक ट्रेनिंग करेंगे और बाकी साढ़े तीन साल उन्हें कॉम्बेट एनवायरमेंट यानी विभिन्न बोर्डर एरिया में तैनात कर दिया जाएगा। इन चार साल की सेवा में उन्हें पहले दो साल प्रतमिाह 30 हजार रुपये और फिर करीब 40 हजार रुपये दिये जाएंगे। कार्यकाल समाप्त होने के बाद सभी अग्निवीरों को 11.71 लाख की एकमुश्त ‘सेवानिधि’ पैकेज का भुगतान किया जाएगा। चार साल की सेवा अवधि के बाद सभी जवानों को कौशल प्रमाण पत्र, कक्षा 12वीं की डिग्री मिलेगी। यदि इन चार साल के दौरान कोई अग्निवीर के साथ कोई हादसा या कोई शहीद हो जाता है तो उसे बीमा योजना के तहत उनके परिजनों को करीब एक करोड रुपये दिये जाएंगे। यही नहीं 'अग्निवीर' को सियाचिन और अन्य क्षेत्रों जैसे क्षेत्रों में वही भत्ता और सुविधाएं मिलेंगी, जो नियमित सैनिकों को मिल रही हैं यानी सेवा शर्तों में किसी प्रकार के भेदभाव की गुंजाइश नहीं होगी। इस योजना के तहत कार्यकाल समाप्त होने के बाद 25 फीसदी तक जवानो को उनके कामकाज और क्षमता का आंकलन करके मैररिट के आधार पर स्थायी तौर पर नियमित कर दिया जाएगा, जो पुनः सेना में सेवा के बाद पेंशन के लिए पात्र होंगे। हालांकि सरकार सोचती है कि क्षमता, कौशल और अनुभव के आधार पर ऐसे जवान अपने बलबूते पर कॉर्पोरेट जगत और केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बल (सीएपीएफ) और राज्य पुलिस बलों सहित सरकार के अन्य अंगों में उपयुक्त नौकरी पाने में सक्षम होंगे, जिनमें नौकरियों के लिए इन्हें वरीयता दी जाएंगी। सरकार ने आवश्यक पात्रता मानदंडों को पूरा करने वाले अग्निवीरों के लिए रक्षा मंत्रालय में नौकरी की 10 फीसदी रिक्तियों को आरक्षित करने की मंजूरी दे दी। यही नहीं भारतीय तटरक्षक बल और डिफेंस सिविल पोस्ट के अलावा रक्षा क्षेत्र की सभी 16 सार्वजनिक उपक्रमों की नौकरियों में 10 फीसदी सीटें अग्निवीरों के लिए आरक्षित की जा रही है। सेना में चार साल की नौकरी पूरी करने वाले अग्निवीरों के लिए नागर विमानन ने भी एयर ट्रैफिक सर्विसेज और एयरक्राफ्ट टेक्नीशियन सर्विसेज में मौका देने का ऐलान किया है, तो सरकार के विभिन्न विभाग भी अग्निवीरों को नौकरी में प्राथमिकता देने का भरोसा दे रहे हैं। सरकार का यह भी विचार है कि सेना में अनुशासित सेना में सेवा देने वाले ऐसे जवान किसी भी विभाग में नौकरी करेंगे तो वे जनता के बीच एक अनुशासन की मिसाल भी पेश करेंगें। रक्षा विभाग के पूर्व एवं वरिष्ठ अधिकारियों ने इस योजना को पाइंट आउट किया, जिसमें सरकार सुधार भी कर रही है। पहली सेना में चार की नौकरी के भीतर एक साल तो उनका बुनियादी ट्रेनिंग और विशेष ट्रेनिंग में निकल जाएगा। सवाल ये भी था कि चार साल में तो युवा सेना में ट्रेंड होंगे और तभी उन्हें रिटायर्ड कर दिया जाएगा। भारत की फौज सारे युद्ध जीत चुकी है और हर जवान का ‘नाम, नमक और निशान’ के साथ जज्बा देश के लिए मर मिटने का है, जिसमें शहीद होने पर उनके परिवार की देश देखभाल करता है और उनके परिवार को बहुत बड़ा पैकेज और वित्तीय सुविधा भी मिलती है। इसकी अपेक्षा अग्निपथ स्कीम में चार साल की सेना में नौकरी करने वाले को बहुत कम पैकेज मिलेगा। वहीं क्या ‘नाम, नमक और निशान’ इन चार साल में होगा? और क्या असुरक्षा महसूस करने वाले ये जवान उसी जज्बे के साथ काम करगे? ऐसे सुझावों पर गौर करते हुए सरकार ने कई अहम फैसले लिए हैं, जिसे देखते हुए चार साल के बाद जो दोबारा सेना में नहीं होंगे, उन्हें अनुभव के आधार पर सरकार रक्षा विभाग के अलावा केंद्रीय बलों में भर्ती करने के लिए वरीयता देगी। सरकार के इस कदम से खासकर सीएपीएफ न केवल अच्छी तरह से प्रशिक्षित, प्रेरित और अनुभवी सैनिकों के आने से मजबूत होगी, बल्कि इससे उसका प्रशिक्षण पर होने वाला खर्च भी कम होगा। यदि अग्निवीर शहीद होते हैं तो उन्हें भी रेगुलर सेना के जवान की तर्ज पर पैकेज पर भी गौर कर रही है। दरअसल दो साल से सेना में भर्तियां नहीं हुई, इसलिए भी सेना की तैयारी में जुटे युवाओं में आक्रोश देखा जा रहा है। सरकार ने हालांकि 2-3 चीजे मान ली हैं। गृहमंत्री अमित शाह ने माना कि चार साल की सेना में नौकरी से हटने वालों को बाद में इंडेक्शन करने की योजना बनाई जा रही है। जबकि इस साल अग्निवीरों की भर्ती के लिए दो साल की वन टाइम छूट दी है। सरकार इसके लिए लिखित में अधसिूचना जारी करेगी। यदि ऐसा होता है तो अग्निपथ स्कीम एक बेहतर योजना साबित होगी, जिसमें पेंशन का पैसा बचाकर सरकार सेना के आधुनिकरण भी कर सकेगी। वहीं दूसरा फायदा चार साल की नौकरी के बाद युवाओं को आगे नौकरी मिल सकेगी। पहली बार सेना में भर्ती के लिए आई अग्निपथ स्कीम को लेकर आक्रोश की वजह यह भी रही है कि सेना में चार साल नौकरी करने वाले युवाओं के अनुभव होगा होगा, इसलिए उन्हें सिक्योरिटी गार्ड जैसी सुरक्षा संबन्धी नौकरी मिल सकती है। जहां तक कार्पोरेट या सेक्टरों में नौकरी का सवाल है तो वहां समायोजन की कोई संभावना कम और उन्हें सुरक्षा से सबंधित नौकरियां मिल सकती है। इसका कारण है कि कार्पोरेट जगत में कार्य संस्कृति के साथ तकनीकी इन्वायरमेंट अलग-अलग है। ऐसी स्थिति में सेना से पूरी तरह प्रशिक्षित युवा सुरक्षा से संबंधित सिक्योरिटी या छोटे-मोटे काम ही कर पाएंगे। क्योंकि संबन्धित नौकरी करेगी, तो इनके एंटी सोशल गतिविधियों की तरफ रुख करने की आशंका सबसे बड़ा चिंता का विषय है। ऐसे सब पहलुओं को लेकर भी सरकार विचार कर रही है। 
-(ओ.पी. पाल से बातचीत पर आधारित) 
  20June-2022

बुधवार, 15 जून 2022

मंडे स्पेशल: महिला सुरक्षा और सशक्तिकरण में बहुत कुछ बाकी

महिला पुलिस की कमी दुर्गाशक्ति के लक्ष्य में बड़ी अड़चन 
पुलिस में महिलाओं की भागीदीरी बढ़ाने की कवायद 
 ओ.पी. पाल.रोहतक। प्रदेश में आधी आबादी को अधिकार और सुरक्षा देने के लाख प्रयास के बावजूद अभी मुकाम नहीं मिल पाया है। हर जिले में महिला थाना खोला गया और महिला रेपिड एक्शन फोर्स का गठन हुआ। वहीं दुर्गाशक्ति उड़न दस्ता भी बना, लेकिन अभी तक पुलिस में महिलाओं के लिए तय पदों को ही नहीं भरा जा सका है। हालात ये हैं कि पुलिस में केवल महिला सिपाहियों के ही 1324 पद अभी भी खाली हैं। ऐसे ही सब इंस्पेक्टर के पदों पर 58 महिलाओं का इंतजार हो रहा है। ये हालात तो तब हैं जब पुलिस बल में महिलाओं का हिस्सा मात्र 10 फीसदी दी है। जबकि 2021 के बजट में सरकार आधी आबादी की हिस्सेदारी 15 फीसदी करने का ऐलान कर चुकी है। वर्ष 2014 में हरियाणा पुलिस में 5.79 प्रतिशत महिलाएं थी, जो 2020 में बढ़कर 8.59 फीसदी हो गईं हैं। शायद यही कारण है कि प्रदेश में महिलाओं के खिलाफ अपराधों में तेजी से लगातार बढ़ोतरी का सिलसिला थमने का नाम नहीं ले रहा है। 
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प्रदेश में महिलाओं की सुरक्षा और उनके सशक्तिकरण की दिशा में राज्य सरकार ने अगस्त 2015 में सभी जिलों में महिला पुलिस थानों की शुरूआत की। इसके बाद से पुलिस बल में महिलाओं की हिस्सेदारी तो जरुर बढ़ी है, लेकिन अभी तक प्रर्याप्त संख्या बल पूरा नहीं हो पाया है। हर जिले और बड़े शहरों में 34 महिला थाने भी खोले गये। जबकि इनके अलावा प्रदेश में 260 पुरुष थाने काम कर रहे हैं। सरकार ने खासकर महिलाओं को पुलिस का प्रशिक्षण देने के लिए गुरुग्राम में एक महिला आईआरबी बटालियन और हिसार में महिला पुलिस के लिए प्रशिक्षण केंद्र स्थापित किया। इसके अलावा महिला सुरक्षा सुनिश्चित करने जैसी कई घोषणाएं अभी केवल कागजों में ही अटकी हैं। सरकार ने 13 अप्रैल 2017 को महिला विरुद्ध अपराध पर लगाम कसने के लिए पुलिस महकमे में दुर्गा शक्ति रैपिड एक्शन फोर्स की शुरूआत भी की। इस फोर्स में महिला पुलिसकर्मियों को तैनात किया गया। इन्हें मुख्यता छेड़छोड़ और आवारागर्दी पर लगाम करने का जिम्मा सौंपा गया। दुर्गा शक्ति की टीम स्कूल-कालेज, यूनिवर्सिटी और कोचिग इंस्टीट्यूट के आसपास पेट्रोलिग करती दिखीं, लेकिन संसाधानों और वाहनों की कमी से यह योजना उतनी कारगर नहीं हो पाई, जिसकी उम्मीद थी। कारण यह रहा कि इस दल को जिला स्तर पर केवल एक या दो वाहन ही उपलब्ध हो पाए। हालात ये हैं कि कॉल आने पर महिला पुलिस भी ऑटो से मौके पर पहुंचती देखी गई है। 
महिला पुलिस पर्याप्त नहीं 
हरियाणा में ‘बेटी बचाओ-बेटी पढाओ’ का नारा भले ही सिर चढ़कर बोल रहा हो, लेकिन महिलाओं की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए पुलिस महकमा अभी खरा नहीं उतर पाह रहा। मसलन सरकार के आंकड़े ही गवाही दे रहे हैं कि हरियाणा में बेटियां और महिलाएं सुरक्षित नहीं हैं। महिलाओं के खिलाफ तेजी बढ़ते अपराधों को रोकने के लिए राज्य सरकार की सुरक्षाबलों में भागीदारी बढ़ाने की कवायद भी सिरे नहीं चढ़ पा रही है। मसलन प्रदेश में महिला पुलिस बल में ही 4498 पद स्वीकृत हैं, लेकिन केवल 3115 पदों से ही कार्य हो रहा है, जिनमें तीन एसपी, 18 डीएसपी, 83 इंस्पेक्टर, 218 सब इंस्पेक्टर, 500 एएसआई, 682 हेड कांस्टेबल और 2814 कांस्टेबल शामिल हैं। महिला पुलिस में सबसे ज्यादा 1324 कांस्टेबलों के पद खाली पड़े हैं। प्रदेश में तेजी से बढ़ते महिला अपराधों में सबसे ज्यादा मामले बलात्कार और छेड़छाड़ के हैं। 
एक नजर में हरियाणा पुलिस  
हरियाणा पुलिस में 74,910 पद स्वीकृत हैं, जिसमें सात डीजीपी, 8 एडीजीपी, 28,आईजी, 16 डीआईजी, 90 एसपी, 32 एएसपी, 236 डीएसपी, 1075 इंस्पेक्टर, 3,300 एसआई, 5,805 एएसआई, 12,028 हेड-कांस्टेबल और 47,224 कांस्टेबल शामिल हैं। इस आकार के विपरीत प्रदेश में 50,729 पद ही सुरक्षा का जिम्मा संभालने का काम कर रहे हैं। मसलन फिलहाल तीन डीजीपी, 4 एडीजीपी, 15 आईजी 4 डीआईजी, 27 एसपी, 25 एएसपी और 66 डीएसपी समेत 24,181 पद अभी भी खाली हैं। सुरक्षा के लिए फिल्ड में रहने वाले सबसे ज्यादा कांस्टेबल के 11643 पद खाली पडे हुए हैं। इसके अलावा 153 इंस्पेक्टर, 1032 सब इंस्पेक्टर, 1058 एएसआई तथा 3731 हेड-कांस्टेबल पदों पर भी नियुक्ति का इंतजार है। 
सात साइबर पुलिस स्टेशन 
प्रदेश में साइबर क्राइम पर अंकुश लगाने की भी पहल की है, जिसके लिए गुरुग्राम में पहला साइबर पुलिस स्टेशन खोलने के बाद अब तक इनकी संख्या सात कर दी है। बाकी साइबर थाने पंचकूला, रेवाडी, अंबाला, फरीदाबाद, हिसार और करनाल में खोले गये हैं। पुलिस बल को मजबूती देने के लिए राज्य में पांच सशस्त्र पुलिस बटालियन हैं, जिसमें तीन मधुबन(करनाल) और एक-एक हिसार व अंबाला में हैं। प्रदेश में तीन वारलैस रिपीटर एंटीना भी हैं, जो तोशाम हिल भिवानी, टिकडी हिल रेवाडी और साहरण हिल हिमाचल प्रदेश में है। इसके अलावा पुलिस प्रशिक्षण के लिए भी चार केंद्र काम कर रहे हैं, जिनमें मधुबनी पुलिस ट्रेनिंग सेंटर, सुनारिया पुलिस ट्रेनिंग सेंटर, भौंडसी गुरुग्राम पुलिस ट्रेनिंग सेंटर और महिला पुलिस के लिए हिसार में प्रशिक्षण केंद्र स्थापित है। 
हैरान करने वाले आंकड़े 
हरियाणा विधानसभा के इसी साल बजट सत्र में राज्य सरकार ने आंकड़े पेश करके खुद माना है कि पिछले आठ सालों में प्रदेश में महिलाओं के खिलाफ अपराधों में 65 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है। सरकार के आंकडों पर गौर की जाए तो जहां वर्ष 2014 में बलात्कार के 944 व गैंग रेप के 206 मामले दर्ज किए गए, तो वर्ष 2021 में बलात्कार के 1,546 और गैंगरेप के 176 मामले सामने आए। खासतौर से वर्ष 2018 से 2021 तक पिछले चार सालों महिलाओं के खिलाफ अपराधों में तेजी आई है। चौंकाने वाली बात ये है कि महिला अपराध करने वाले जहां 2014 में 151 दोषी ठराए गये थे, वहीं साल 2021 में केवल एक आरोपी को दोषी ठहराया गया है। प्रदेश में कोरोना काल यानी साल 2020 के दौरान बलात्कार, छेड़छाड़, बलात्कार के प्रयास, उनके प्रति पुलिस की उदासीनता, साइबर अपराध, दहेज और घरेलू हिंसा के 1,460 मामलों थे। आंकड़े इस बात की गवाही दे रहे हैं कि प्रदेश में औसतन हर दिन 6 महिलाओं से छेड़छाड़ हो रही है और हर दिन सात महिलाओं का अपहरण हो रहा है। 
13June-2022

रविवार, 12 जून 2022

पेंसिल से देश में सुधर सकता है बाल श्रम

विश्व बाल श्रम दिवस आज 
ओ.पी. पाल
नई दिल्ली। हर साल 12 जून को दुनिया भर में विश्व बाल श्रम दिवस मनाया जाता है। भारत में बाल श्रमिकों की संख्या 1.01 करोड़ है, जिसमें 56 लाख लड़के और 45 लाख लड़कियां हैं, जो दुनिया भर में सभी बाल श्रमिकों में से लगभग दस में से एक है। केंद्र सरकार ने भारत पेंसिल पोर्टल के जरिए बाल श्रम में सुधार करने की पहल की है। केंद्र सरकार द्वारा बाल श्रम उन्मूलन की दिशा में वर्ष 2017 में प्लेटफॉर्म फॉर इफेक्टिव एनफोर्समेंट फॉर नो चाइल्ड एनफोर्समेंट (पेंसिल) पोर्टल लांच किया था, जिस अभी तक 197412 बच्चों की पहचान की गई है, जिसमें 124268 बच्चों को विशेष प्रशिक्षण केंद्र की मुख्यधारा जोड़ा गया है। इसके अलावा 39660 बच्चों का विशेष प्रशिक्षण केंद्र के लिए पंजीकरण किया जा चुका है। चिंताजनक पहलू ये है कि पिछले कुछ वर्षों में में गिरावट के बावजूद, बच्चों का उपयोग अभी भी बाल श्रम के बंधुआ मजदूरी, बाल सैनिकों और तस्करी जैसे कुछ गंभीर गतिविधियों में हो रहा है। भारत में ईंट भट्टों, कालीन बुनाई, परिधान निर्माण, घरेलू सेवा, भोजन और जलपान सेवाओं, कृषि, मत्स्य पालन और खनन जैसे उद्योगों में बाल श्रमिक काम करते हैं। 
बाल श्रम पर गंभीर सरकार 
भारत सरकार बाल श्रम को खत्म करने के लिए बहुआयामी रणनीति अपना रही है, जिसमें विधायी उपाय, पुनर्वास रणनीति, मुफ्त शिक्षा का अधिकार प्रदान करना और सामान्य सामाजिक-आर्थिक विकास शामिल हैं, ताकि बाल श्रम की घटनाओं को खत्म किया जा सके। वैधानिक और विधायी उपायों, पुनर्वास रणनीति और शिक्षा के उद्देश्य से ही सरकार ने बाल श्रम (निषेध और विनियमन) अधिनियम, 1986 को भी 2016 में संशोधित कर कड़ा कया है। कानून के तहत बाल श्रम कराने वाले नियोक्ताओं के लिए कड़ी सजा प्रदान है यानी अधिनियम और अपराध को संज्ञेय बना दिया। देश में राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो की जारी रिपोर्ट के अनुसार 1.01 करोड़ बाल श्रमिकों में 5 से 9 साल की उम्र के 25.33 लाख बच्चे काम करते हैं। जबकि 10 से 14 वर्ष की उम्र के 75.95 लाख बच्चे कामगार हैं। रिपोर्ट के अनुसार बाल और किशोर श्रम (निषेध और विनियमन) अधिनियम, 1986 के तहत क्रमशः कैलेंडर वर्ष 2018, 2019 और 2020 के दौरान 464, 772 और 476 मामले दर्ज किए गए। 
संवैधानिक और कानूनी प्रावधान 
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 23 के अनुसार किसी भी प्रकार का बलात् श्रम निषिद्ध है। अनुच्छेद 24 के तहत 14 साल से कम उम्र के बच्चे को खतरनाक काम के लिए नियुक्त नहीं किया जा सकता। जबकि अनुच्छेद 39 में श्रमिकों, पुरुषों और महिलाओं के स्वास्थ्य और ताकत और बच्चों की कोमल उम्र का दुरुपयोग नहीं किया जा सकता। 
श्रम दिवस का महत्व 
विश्व बाल श्रम दिवस का यह दिन मूल रूप से बच्चों की उन्नति के इर्द-गिर्द केंद्रित है, और यह बच्चों के लिए शिक्षा और सम्मानजनक जीवन के अधिकार को सुरक्षित करता है। इस दिवस को मनाने का महत्व तभी है जब हम बाल श्रम को खत्म करने में मदद करने के लिए अपने दायित्वों को निभाएं। निःसंदेह ऐसे बच्चे देश और दुनिया के आर्थिक और सामाजिक विकास में भी योगदान देंगे। 
  12June-2022

मंगलवार, 7 जून 2022

मंडे स्पेशल: कोरोना ने बढ़ा दिया अदालतों का भार, खड़ा हो गया केसों का अंबार

लंबित केसों की संख्या पहुंच गई दो गुणा से ज्यादा प्रदेश में 13.64 लाख विवादों को है फैसले का इंतजार दीवानी से दोगुणा है फौजदारी के मामले 
तीन दशक तक के मामले भी लंबित
केसों के बोझ का एक कारण जजों की कमी भी 
ओ.पी. पाल.रोहतक। कोरोना ने हमारी व्यवस्था पर चौतरफा मार की है। इससे न्यायपालिका भी अछूती नहीं रह पाई है। संक्रमण के डर से पहले छुट्टियां हो जाने और बाद में ऑनलाइन सुनवाई तो हुई, लेकिन केसों के फैसले आधे भी नहीं हो पाए और पेंडिंग केसों की तादात बढ़कर दो गुणा से भी ज्यादा हो गई। हालात यह रहे कि 2019 में जहां हरियाणा में हमारी अदालतों ने पांच लाख से ज्यादा केसों का निपटारा किया, वहीं 2020 में कोरोना के चलते यह संख्या घटकर महज दो लाख से कुछ ज्यादा रह गई। स्थिति यह थी कि चालू वर्ष 2022 में महज पांच माह में ही 2,52,944 केसों का निपटान हो गया। वहीं कोरोना के कारण 2020 के पूरे साल में यह संख्या केवल 2,29,402 रही। केवल इतना ही नहीं लोक अदालतें और फास्ट ट्रैक कोर्ट का कामकाज भी खासा प्रभावित हुआ। जिसके चलते अदालतों में लंबित केसों की संख्या दो गुणा से भी ज्यादा हो गई। अब केस निपटान के कार्य ने रफ्तार तो पकड़ी है, लेकिन जजों व अन्य स्टाफ की कमी कार्य में तेजी नहीं आने दे रही। 
लंबित मामलों के निपटान पर फोकस 
प्रदेश के 21 जिलों में करीब 418 जिला एवं अधीनस्थ अदालतों में तेजी से सुनवाई के बावजूद अभी भी 13,63,549 मामले लंबित हैं। इनमें दीवानी 4,49,241 तथा फौजदारी के 9,14,308 केस फैाले का इंतजार कर रहे हैं। केवल जिला न्यायालयों में ही 12,030 सरकारी मामले अटके हुए हैं। लंबित केसों में दो लाख से ज्यादा तो पांच साल पुराने हैं। हालांकि इनमें दीवानी से दो गुना फौजदारी के हैं। दो जून को ही दस साल पुराने 1150 ऐसे मामले निपटान के लिए रजिस्टर्ड किये गए है, जिनमें 75 दीवानी और 1075 फौजदारी के शामिल हैं। पिछले दस साल पुराने 52 मामलों का निपटान भी किया गया है, जिसमें 24 दीवानी और 28 फौजदारी के हैं। 
लंबित मामलों का निपटान 
जिला एवं अधीनस्थ न्यायालयों पिछले एक दशक में 43,45,824 मामलों का निपटान किया जा चुका है, जिसमें सिविल के 13,49,005 और फौजदारी के 29,96,819 मामले शामिल हैं। चालू वर्ष के दौरान पांच माह में 2,52,944 मामले निपटाए गए, जिसमें 1,94,016 फौजदारी के हैं। जबकि साल 2021 में 3,99,258 मामलों के निपटान में फौजदारी के 3,12,170 थे। कोरोना की मार के बीच वर्चुअल सुनवाई के बावजूद अदालतों ने फौजदारी के 1,76,214 मामलों समेत 2,29,402 मामलों का निपटान किया। इससे हरियाणा की अदालतों में साल 2019 में 5,29,403, साल 2018 में 5,48,580, साल 2017 में 5,14,776, साल 2016 में 5,31,058 तथा साल 2015 में 4,62,559 मामलों का निपटान किया है। 
हाईकोर्ट में निपटान की रफ्तार तेज 
पंजाब-हरियाणा उच्च न्यायालय में 4,49,120 लंबित मामलों का अंबार लगा हुआ है, जिसमें 2,83,796 दीवानी और 1,65,324 फौजदारी के शामिल हैं। यहां 28 फरवरी 22 तक 14,710 सरकारी मामले लंबित थे, जिसमें भारत संघ एक पक्षकार है। हाईकोर्ट ने भी लंबित मामलों के निपटान में तेजी लाने की दिशा में 10,94,540 दीवानी और 8,53,878 फौजदारी के मामलों समेत 19,48,418 का निपटारा दो जून 22 तक कर दिया है। इस साल 21 फरवरी तक हाई कोर्ट ने हरियाणा के 28901 लंबित मामलों का निपटारा किया, जिसमें 13190 दीवानी और 15711 मामले फौजदारी के शामिल हैं। गत अप्रैल में ही हाईकोर्ट में हरियाणा के पंजीकृत 10846 मामलों के विपरीत 11955 मामलों यानी 110.22 प्रतिशत तथा मार्च में 12,078 मामलों के विपरीत 13,289 यानी 110.02 प्रतिशत मामलों का निपटान किया है। इस साल अब तक हाईकोर्ट में डेढ़ हजार से ज्यादा याचिकाओं का भी निपटारा किया गया है। 
फास्ट ट्रेक कोर्ट भी प्रभावित 
प्रदेश में बच्चों के प्रति बढ़ते अपराधों के मामलो के जल्द निपटान की दिशा में 16 स्पेशल फास्ट ट्रेक कोर्ट यानी त्वरित न्यायालय स्थापित हैं, इनमें 12 ई- स्पेशल पॉक्सो कोर्ट भी कार्यरत हैं। हरियाणा सरकार ने सांसदों और विधायकों के खिलाफ लंबित मामलों के तेजी से निपटान की दिशा में स्पेशल फास्ट ट्रैक कोर्ट पर भी सबसे पहले पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट ने काम शुरू करने की पहल की है। कोरोना के कारण फास्ट ट्रेक कोर्ट भी प्रभावित हुई है। यही कारण है कि पिछले पांच साल में लंबित 1.07 लाख मामलो में से केवल 30445 मामलों का निपटान किया जा चुका है। केंद्र सरकार ने फास्ट ट्रेक कोर्ट के लिए पिछले तीन साल में 10.8 करोड़ रुपये भी जारी किये हैं, जिसमें से अभी तक 50 फीसदी राशि खर्च की गई है। 
जजो के टोटे से जूझती अदालतें 
प्रदेश जिला एवं अधीनस्थ अदालतों में स्वीकृत पदों के मुकाबले 295 जजों के पद खाली हैं। जबकि हरियाणा की अदालतों में जजों के 772 पद स्वीकृत हैं और कार्यरत केवल 477 हैं। यही स्थिति उच्च न्यायालय पंजाब एवं हरियाणा में भी हैं, जहां स्वीकृत 85 पदों के मुकाबले केवल 49 पद कार्यरत हैं यानी 36 पद अभी भी खाली हैं। हाईकोर्ट में 64 पीएमटी व 21 एडीडीएल के पद स्वीकृत हैं, जिनमें से पीएमटी के 21 व एडीडीएल के 15 पद रिक्त हैं। हालांकि पिछले आठ सालों में हाईकोर्ट में 45 जजों की नियुक्तियां हुई, लेकिन उसी औसत से जज सेवानिवृत्त भी हुए हैं। हाईकोर्ट में 2018 में सात, 2019 में दस, 2020 में एक तथा 2021 में छह जजों की नियुक्ति हुई। इससे पहले 2017 में 8, 2016 में 01 तथा 2014 में 14 जजों की नियुक्तियां की गई। 
लोक अदालतों की भूमिका रही अहम 
प्रदेश में दिसंबर 2021 तक आयोजित 21 लोक अदालतों के आयोजन किया गया। इनमें से पिछले तीन साल में 74,661 मामलों का आपसी सुलह के तहत निपटारा किया गया। जबकि राज्य लोक अदालतों में पिछले ती साल में ही 2,75,136 लंबित मामले निपटाए गये, जिसमें साल 2021 में 92,174, 2020 में 48,453 तथा 2019 में 134509 मामलों का निपटान किया गया। साल 2020 में निपटान में 3627 मामले मुकदमे से पूर्व के शामिल रहे। इसी प्रकार इन तीन सालों में राष्ट्रीय लोक अदलतों में साल 2021 में 96,875 (26538 मुकदमे से पूर्व), साल 2020 में 17,392 (12906 मुकदमे से पूर्व) तथा 2019 में 62665(40633 मुकदमे से पूर्व) मामलों का निपटान किया गया। 
न्यायालयों का डिजिटलीकरण 
हरियाणा में न्यायालयों के अभिलेखों का डिजिटलीकरण के लिए 14वें वित्त आयोग के अधीन 49 करोड़ रुपये की निधि जारी की गई है। 28 मार्च 2022 तक तक राज्य के 33.51 लाख पेज स्कैन करके उनका डिजिटलीकरण किया जा चुका है।
वर्जन-1 
मध्यस्थता के विकल्प को मिले बढ़ावा 
कोरोना की वजह से दो साल तक प्रभावित हरियाणा समेत देश की अदालतों में लंबित मामलों की संख्या बढ़ी। अदालतों में लंबित केसों के निपटाने की दिशा में अदालतों में चल रही जजों की कमी को पूरा करने और नियुक्तियां बढ़ाई जानी चाहिए। वहीं हाईकोर्ट की गाइड लाइन पर मध्यस्थता के लिए बनाई गई स्थायी लोक अदालतों को और भी ज्यादा बढ़ावा देने की आवश्यकता है। कोर्ट और वकीलों के आपसी सहयोग से अदालतों को लंबित मामले के निपटान के लिए कार्य करने की आवश्यकता है, ताकि लोगों को सुलभ और सस्ता न्याय मिल सके। 
-विनोद पाहव, वरिष्ठ अधीवक्ता, रोहतक 
वर्जन-2 
हाई कोर्ट अलग हो 
अदालतों में लंबित मामलों की संख्या में बढ़ने के कई कारण है। फिर भी प्रदेश में लंबित मामलों के जल्द से जल्द निपटान के लिए अदालतों में जजों की अधिक से अधिक नियुक्तियां होनी चाहिए। वहीं हरियाणा हाई कोर्ट की अलग से स्थापना होनी चाहिए। 
-लेखराज शर्मा, वरिष्ठ अधिवक्ता, पंजाब एंड हरियाणा उच्च न्यायालय 
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हरियाणा की जिला एवं अधीनस्थ अदालतों में लंबित मामले (02 जून 2022 तक) 
जिला          दीवानी    फौजदारी  कुल लंबित निपटान 
अंबाला          22474   39332   61806       252633 
भिवानी         30916   33808   64724       251997 
फरीबादाबाद  33242  114943  148185    309172 
फतेहाबाद     10298   18113    28411      133260 
गुरुग्राम       45131   231450  276581     521024 
हिसार         23627   40894    64521       283740 
झज्जर       17750   25448    43198       143358 
जींद           15684   23521    39205       133329 
कैथल        15653   24240    39893       129931 
करनाल      27843  67722    95565       288504 
कुरुक्षेत्र      16454   30005    46459      214030 
नारनौल    19816   19078   38894       120958 
नूंह           20159   20886   41045       100132 
पलवल      19946   22493   42439      103446 
पंचकूला     9811   15379    25190      164172 
पानीपत     16105  29869   45974      198955 
रेवाड़ी        21331   25419   46750     163737 
रोहतक     14099   42119   56218      239068 
सिरसा      16621   26470   43091      205308 
सोनीपत    26037  36389    62426      214724 
यमुनानगर 26244  26730   52974      174346
कुल लंबित449241 914308 1363549 4345824 
 06June-2022