सोमवार, 20 जून 2022

साक्षात्कार: समाज को नई दिशा देने वाला दीपक है साहित्य: गौतम

हरियाणा के लोकसाहित्य का किया गहनता से अध्ययन
व्यक्तिगत परिचय 
नाम: डॉ. राजेन्द्र गौतम 
जन्म: 6 सितंबर 1952 
जन्म स्थान: ग्राम बराहकलाँ, ज़िला जींद(हरियाणा) शिक्षा: पीएचडी, दिल्ली विश्वविद्यालय 
संप्रत्ति: सेवानिवृत्त प्रोफेसर,हिंदी विभाग, दिल्ली विश्वविद्यालय, दिल्ली। 
--ओ.पी. पाल 
देश के प्रसिद्ध वरिष्ठ साहित्यकार डॉ. राजेन्द्र गौतम हिंदी के चर्चित कवि, आलोचक एवं शिक्षाविद् के रूप में पहचाने जाते हैं। ये उन नवगीतकारों में भी शुमार हैं जिन्होंने साहित्य की विभिन्न विधाओं में इस उपभोक्तावादी दौर में भी विसंगतियों को उजागर करती श्रेष्ठ गीत जैसी रचनाएं दी हैं। अपनी साहित्य साधना के दौरान उन्होंने अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर हिंदी संवर्धन करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और हरियाणा को भी गौरवान्वित किया है। उन्होंने समाज को नई दिशा देने के मकसद से हरियाणा के लोकसाहित्य का गहनता से अध्ययन कर उसे नया आयाम दिया। साहित्य लेखन, कविता, नाटक, फिल्मी अभिनय, वृत्तचित्र निर्माता की भूमिका में अहम योगदान देने के अलावा हरियाणवी में गीत और दोहे लिखकर हरियाणवी संस्कृति और सभ्यता को जीवंत रखने का काम करके डा. गौतम ने अपनी मातृभूमि को सर्वोपरि रखा हुआ है। दिल्ली विश्वविद्यालय में हिंदी विभाग के सेवानिवृत्त प्रोफेसर डा. गौतम ने अपने साहित्य-सृजन-यात्रा में हिन्दी साहित्य के समकालीन परिदृश्य से जुड़े मुद्दों पर हरिभूमि संवाददाता के साथ बातचीत के दौरान कई अनछुए पहलुओं को भी साझा किया।
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दिल्ली विश्वविद्यालय में हिंदी विभाग के रीडर रहे प्रबुद्ध साहित्यकार डा. राजेन्द्र गौतम का जन्म 6 सितंबर 1952 को हरियाणा में जींद जिले के गांव बराहकलाँ में रामभगत गौतम के परिवार में हुआ। शिक्षा और सुविधाओं की दृष्टि से बहुत पिछड़े इस गाँव में बचपन गुजारने वाले डा. गौतम को भले ही साहित्यिक परिवेश जैसा कुछ न मिला हो, लेकिन उनकी पारिवारिक पृष्ठभूमि में साहित्यानुराग अवश्य था। डा. गौतम ने बताया कि उस ग्रामीण परिवेश में हरियाणवी काव्य-रूप ‘सांग’ और ‘रागनी’ के रूप में तो साहित्य से लोगों का परिचय था, लेकिन खड़ी बोली कविता से देहात में किसी को खास वास्ता नहीं था। फिर भी एक समर्थ कवि रहे उनके पिता रामभगत गौतम द्वारा संग्रहीत पुस्तकों और उनकी कविताओं ने उनके साहित्य अध्ययन की और रूझान पैदा किया। इसी वजह से शैशवकाल में ही उनके साहित्य-प्रेम का बीजारोपण हुआ। परिवारिक संस्कार के कारण उनकी साहित्यिक रूचि बढ़ने लगी और पाँचवी या छठी कक्षा से ही ‘भारत-चीन युद्ध’ या ‘सरदी का मौसम’ जैसे विषयों पर विद्यालय में प्रत्येक शनिवार को होने वाली बाल-सभा में स्वरचित तुकबंदियाँ सुनाना शुरू किया। मसलन छठी कक्षा से उन्होंने साहित्य पठन पाठन का सिलसिला शुरू कर दिया। कक्षा दसवीं तक उन्होंने पुस्तकों के साथ-साथ इन पत्रिकाओं में प्रकाशित विपुल अनूदित और मौलिक गद्य-पद्य साहित्य पढ़ डाला, जिसमें हरिवंशराय बच्चन का बहुत-सा काव्य-साहित्य भी शामिल रहा। ‘नवनीत’ के जनवरी 1969 के अंक में उनकी पहली रचना गद्यगीत के रुप में प्रकाशित हुई। उन्होंने हरियाणवी में कुछ गीत और दोहे लिखे हैं। उनका कहना है कि यह सौभाग्य ही रहा कि नवगीत की प्रथम पीढ़ी के सभी नवगीतकारों के साथ उन्हें काम करने का अवसर मिला। हरियाणवी साहित्य खासकर पं. लख्मीचंद पर उन्होंने 1974 लिखना शुरू किया और गीत, सवैये, और दोहे जैसी उनकी रचनाओं का प्रकाशन ‘हरियाणा संवाद’ में हुआ है। उनकी हरियाणवी और खड़ीबोली की रचनाएँ कई वर्षों तक कुरुक्षेत्र यूनिवर्सिटी में पाठ्यक्रम में पढाई जाती रहीं हैं। यही नहीं उनकी ऐसी अनेक रचनाओं का प्रसारण आकाशवाणी के दिल्ली और रोहतक केंद्रों से भी हुआ है। सन 1975 में दिल्ली आने के बाद उनकी रचनाएं विभिन्न पत्र और पत्रिकाओं में प्रकाशित होने लगी। डा. गौतम ने विश्वविद्यालय अनुदान आयोग की सांस्कृतिक आदान-प्रदान योजना के तहत साल 2003-04 में तीन माह तक महात्मा गांधी संस्थान मारीशस‘ में अध्ययन-अध्यापन कार्य भी किया। जहां उन्होंने मारीशस ब्रॅाडकास्टिंग कॉर्पोरेशन द्वारा ‘एन्काउंटर विद एन इंडियन राइटरः डॉ. राजेंद्र गौतम’ शीर्षक से डाक्यूमेंट्री फिल्म बनाई गई। इससे पहले 1995 में अपने गांव पर दूरदर्शन के लिए बनाई गई डोक्यूमेंट्री ‘बारह वन की ओर’ डीडी-1 वन पर प्रसारित हुई थी। डा. गौतम का मानना है कि इस आधुनिक युग में समय के साथ सब कुछ परिवर्तित होता है और समाज में साहित्य की स्थिति का बदलना भी स्वाभाविक है। लेकिन साहित्य की भूमिका समाज में अप्रासंगिक नहीं हुई है। हालांकि सोशल मीडिया के दौर में साहित्य के पारंपरिक रूप से पाठक कम जुड़ रहा है, लेकिन कोई समाज साहित्य की ऑक्सीजन के बिना जिंदा कैसे रह सकता है? खासकर युवा पीढ़ी की साहित्य में रुचि घटने से इनकार नहीं किया जा सकता और वह आंशिक रूप में साहित्य से कटा है। युवकों को संवेदनशील साहित्य से जोड़ने की जरूरत है, क्योंकि साहित्य ही मनुष्य को संवेदनशील बनाता है। युवाओं को साहित्य से जोड़ने में इंटरनेट एक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है। साहित्य के गिरते स्तर पर उन्होंने कह कि सोशल मीडिया ने एक ऐसी मानसिकता को जन्म दिया है जिसमें अभी-अभी जो लिखा, उसे तत्काल पोस्ट कर दिया जाए। यह ‘काता और ले भागा’ वाली स्थिति साहित्य के स्तर को गिरा रही है। यही कारण है कि आज लेखन के स्तर पर गिरावट भी इसी का परिणाम है।यशपाल शर्मा द्वारा निर्मित हरियाणवी फिल्म ‘दादा लखमी’ में भी उन्होंने अभिनय और गीतों के जरिए अपना योगदान दिया।
प्रकाशित पुस्तकें 
डा. राजेन्द्र गौत्तम के काव्य संग्रह में गीत पर्व आया है, पंख होते हैं समय के, बरगद जलते हैं के अलावा आवाज मौसम की, ठहरे हुए समय में, कुछ दोहे इस दौर के, नवगीत दशक-3, और कवि अनुपस्थित है पुस्तक लिख चुके हैँ। रचनात्मक लेखन, दृष्टिपात, हिंदी नवगीत:उद्भव और विकास, सुमित्रानंदन पंत के काव्य में आभिजात्यवादी और स्वच्छंदतावादी तत्व और प्रकृति तुम वन्द्य हो’ नामक पुस्तक सुर्खियों में रही है। उनकी पुस्तकों में ज्ञानकलश, कविता यात्राःछह, कथावीथी, ज्ञानकलश, आधुनिक कविता, भूमिजा, यात्रा में साथ साथ, भारतीय संस्कृति और सभ्यता, दोहा सप्तपदी और बाबा नंदसिह प्रमुख हैं। इसके अलावा उन्होंने काव्यशास्त्र, हरियाणवी लोकसाहित्य, तकनीकी अनुवाद के क्षेत्र में व्यापक कार्य किया है। ‘हरियाणा साहित्य अकादमी’ के संकलन ‘कथा-यात्रा-4’ समेत चार पांच कहानियां भी लिखी है, तो उनका ललित निबंधों का एक संग्रह भी प्रकाशित हुआ है। उनकी अन्य पुस्तकों में शिक्षा के विविध आयाम, राजभाषा और पारिभाषिक शब्दावली, समकालीन हिंदी कविता, हरियाणवी काव्य एवं लखमीचंद, कुछ प्रेम कविताएँ, विविध शोधपत्रों के तीन संकलन भी शामिल हैं। उनकी रचनाओं का सैकड़ो शोधपत्र संगोष्ठियों में प्रस्तुत और शोधपत्रिकाओं में प्रकाशन हुआ, तो वहीं दूरदर्शन एवं आकाशवाणी से अनेक साहित्यिक प्रसारण भी हुए। कई विश्वविद्यालयों में शोधर्थियों द्वारा उनके रचनात्मक साहित्य पर एम.फिल. एवं पीएच. डी. हेतु शोधकार्य भी किया। 
सम्मान/पुरस्कार 
वरिष्ठ साहित्यकार डॉ. राजेन्द्र गौतम को हरियाणा साहित्य अकादमी ने वर्ष 2021 के लिए हरियाणा गौरव सम्मान से सम्मानित करने का निर्णय लिया है। इससे पहले हरियाणा साहित्य अकादमी वर्ष 998-99 में उनकी काव्य कृति ‘बरगद जलते हैं' तथा 1982-83 'गीतपर्व आया है' के लिए श्रेष्ठ कृति पुरस्कार प्रदान कर चुकी है। डा. गौत्तम को साहित्य सेवा के लिए लोकनायक जयप्रकाश नारायण सम्मान, शिक्षक गौरव सम्मान, माहेश्वर तिवारी अक्षरा नवनीत सृजन सम्मान, अक्षर पुरुष सम्मान,समन्वय आकाशवाणी सम्मान, प्रज्ञा सम्मान, हिंदी भाषी संघ मॉरीशस का हिंदी सेवा सम्मान, सुरुचि साहित्य सम्मान, हंस कविता सम्मान मिला है। वहीं भाषा विभाग हरियाणा का ‘सर्वश्रेष्ठ निबंध पुरस्कार’, आचार्य ‘हजारी प्रसाद द्विवेदी निबंध पुरस्कार और आठवें दशक के प्रबंध-काव्य शोधपत्र पर अखिल भारतीय निबंध पुरस्कार मिल चुके हैं। पाकिस्तान अकादमी ऑफ लेटर्स द्वारा इस्लामाबाद में 2013 में लोकतंत्र और साहित्य विषय पर सम्मेलन में भी उनका सम्मान हो चुका है। इसके अलावा वर्ष 1974 में पंजाब विश्वविद्यालय द्वारा एम ए. (हिंदी) और वर्ष 1972 बीए(ऑनर्स) में प्रथम स्थान के लिए स्वर्ण पदकों से सम्मानित किया जा चुका है। 
संपर्क: 906,झेलम,प्लॉट:8,सेक्टर:5,द्वारका ,नई दिल्ली-110075
Mob:9868140469. E-mail: rajendragautam99@yahoo.com, 
20June-2022

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