सोमवार, 27 जून 2022

चौपाल: गुमनाम वीरांगनाओं से रुबरु कराने की मुहिम

आजादी का अमृत महोत्सव:इतिहास के पन्नों से गुमनाम वीरांगनाओं को सलाम 
जादी के अमृत महोत्सव के महत्व को सार्थक करने की दिशा में देशभर में उन स्वतंत्रता सेनानियों को तलाशा जा रहा है, जो अभी तक गुमानामी के अंधेरे में हैं और उनके परिजन आगे नहीं आ पा रहे हैं। वीरों की भूमि के रूप में पहचाने जाने वाले हरियाणा में भी कुछ लोग और संस्थाएं ऐसे गुमनाम स्वतंत्रता सेनानियों को तलाशकर उन्हें पहचान दिलाने में जुटे हुए हैं। ऐसी मुहिम में रोहतक के महारानी किशोरी बाई जाट कन्या महाविद्यालय की शिक्षिकाओं द्वारा ऐतिहासिक कदम उठाते हुए आजादी के अमृत महोत्सव के इस त्यौहार में हरियाणा ही नहीं, बल्कि देशभर की ऐसी गुमनाम वीरांगनाओं को तलाशा जा रहा है। इसका मकसद यही है कि स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में ऐसे वीरों व वीरांगनाओं का पहचानकर आज की युवा पीढ़ी भी प्रेरणा ले सके। भारत की आजादी के नौ दशक तक स्वतंत्रता संग्राम में बलिदान और योगदान देने वालों के सम्मान में आजादी के 75वें साल को आजादी का अमृत महोत्सव के रूप में मना रहा है। देश को गुलामी की जंजीरों से मुक्त कराने के लिए आजादी की लड़ाई में बलिदान करने वाले कुछ लोग स्वतंत्र भारत में अभी तक वह सम्मान और पहचान न पा सके, जिसके वे हकदार थे। इन वीर सेनानियों में अनेक वीरांगनाएं भी शामिल रही, जिनकी पहचान इतिहास के पन्नों में कहीं खो गईं। जबकि पुरुषों के विपरीत महिलाओं को स्वतंत्रता के आंदोलन तक पहुँचने से पहले हालांकि समाज की असंख्य बेड़ियों का तोड़ना पड़ता था, लेकिन इसके बावजूद देश की आजादी के लिए हजारो भारतीय महिलाएं स्वतंत्रता संग्राम की वीरांगनाओं के रूप में योगदान करके देश की आजादी में अहम योगदान दिया। इसलिए भी अमृत महोत्सव ऐसे वीरों और वीरांगनाओं के बिना अधूरा है, जो अभी तक स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास से गुमनामी के अंधेरे में है। खासकर आजादी के पुरुष दीवानों के साथ कंधा से कंधा मिलाकर स्वतंत्रता संग्राम की उन वीरांगनाओं के बलिदान और योगदान को भी भुलाया नहीं जा सकता, जिन्हें स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में शामिल ही नहीं किया गया। ऐसी गुमनाम वीरांगना में कनक लता के आदम्य साहस को भी इतिहास से नकार दिया गया, जिसने महज 18 साल की उम्र में देश के लिए कुर्बानी दी। मसलन महिला स्वतंत्रता सेनानियों में रानी लक्ष्मीबाई, सरोजनी नायडू, कमला नेहरु, कस्तूरबा गांधी, अरुणा आसफ अली, ऐनी बेसेंट, बेगम हजरत महल, कैप्टन लक्ष्मी सहगल, सुचेता कृपलानी, विजय लक्ष्मी पंडित, सावित्रीबाई फुले जैसे नामों के इतिहास तो परिचित है, लेकिन स्वतंत्रता के इतिहास में ऐसी सैकड़ो गुमनाम वीरांगनाएं अभी तक पहचान से महरूम हैं। ऐसी वीरांगनाओं की पहचान के बिना आजादी के अमृत महोत्सव के कोई मायने नहीं है। 
गुमनाम वीरांगनाओं को पहचान देने की मुहिम 
भारत की आजादी के लिए साल 1857 से 1947 तक के स्वतंत्रता संग्राम में ऐसी गुमनाम वीरांगनाओं को तलाशने की मुहिम महारानी किशोरी बाई जाट कन्या महाविद्यालय, रोहतक की लाइब्रेरियन उर्मिला राठी के संयोजन में कालेज की प्राचार्य डा. रश्मि लोचब, समाजशास्त्र विभाग की प्रो. सुशीला धनखड़ और इतिहास विभाग की प्रो. डा. सरिता सहरावत ने शुरू की है और अब तक करीब चार दर्जन ऐसी गुमनाम वीरांगनाओं को तलाशकर वे आजादी के अमृत महोत्सव के विभिन्न कार्यक्रमों में उनके बलिदान और योगदान से परिचय कराने में जुटी हैं। कालेज की इस अभियान दल का मानना है कि ऐसी गुमनाम वीरांगनाओं के बिना अमृत महोत्सव अधूरा है। वहीं उनका कहना है कि आज के इस आधुनिक युग में समाज, खासतौर से युवा पीढ़ी को आजादी के स्वतंत्रता इतिहास और उसमें योगदान करने वाले स्वतंत्रता सेनानियों की जानकारी देकर देश प्रेम के लिए प्रेरित करना है। इसी माह आजादी के अमृत महोत्सव के तहत इन शिक्षकाओं ने कालेज में गुमनाम वीरांगनाओं झलकारी बाई, बेगम हजरत महल, किट्टूर रानी चेन्नम्मा, रानी गैडीन्ल्यू, मतांगिनी हजारा, उदा देवी, मूलमती, कनकलता बरुआ, तारारानी श्रीवास्तव, मेडम भिकाजी कामा, अम्मु स्वामीनाथन, उमाबाई कुंडापुर, कमला देवी चट्टोपाध्याय, बेगम रॉयका, दुर्गाबाई देशमुख, दक्ष्यानी वेलायुद्धान, बेगम एजाज रसूल, लीला रॉय, कमला चौधरी, मालती चौधरी, राजकुमारी अमृतकौर, रेणुका रॉय, एनी मस्कराने, दुर्गावती देवी, सुहासिनी गांगुली, कल्पना दत्ता, प्रीतिलता वाडेडार, सुनीती चौधरी, बसंती देवी, सरला देवी चौधरी, गुलाब कौर व पदमजा नायडू की प्रतिमा और उनके स्वतत्रता संग्राम में योगदान को दर्शाते हुए प्रदर्शनी भी लगाई। 
हरियाणा की वीरांगनाओं ने भी हिलाई अंग्रेजी हकूमत की चूलें 
हरियाणा देश के सूबों में वीरों की भूमि के रुप में पहचाना जाता है, जहां पुरुषों के साथ महिलाओं ने भी कंधा से कंधा मिलाकर आजादी के लिए स्वतंत्रता संग्राम में हिस्सा लेकर अंग्रेजी हुकूमत की नींव हिलाने में अपना अहम योगदान दिया है। देश के स्वतंत्रता संग्राम में इतिहास में हरियाणा की ऐसी वीरांगनाओं योगदान को भी भुलाया नहीं जा सकता। साल 1857 से 1947 तक हरियाणा के हिसार, सिरसा, अंबाला, रोहतक, गुरुग्राम, झज्जर, उकलाना, टोहना, सोनीपत जैसे क्षेत्रों से ऐसी वीरांगनाओं की फेहरिस्त वैसे तो बेहद लंबी है, जिनमें ज्यादातर ऐसी गुमनाम वीरांगनाएं हैं, जो इतिहास के पन्नों से गुमनाम है। ऐसी वीरांगनाओं में हिसार की चांदबाई और उनकी बहू तारावती, रोहतक के रोहण गांव की लक्ष्मीबाई आर्य व कस्तूरी देवी, सोनीपत के गडकुण्डल गांव की गायत्री देवी, गुरुग्राम की कमला भार्गव, झज्जर की मन्नो देवी के अलावा प्रदेश की मोहिनी देवी, सोहाग रानी, लक्ष्मी देवी, सोमवती, शन्नों, कस्तूरीबाई शामिल हैं। इन वीरांगनाओं ने देश की आजादी की खातिर अंग्रेजों के खिलाफ सत्याग्रह अंदोलन, भारत छोड़ो आंदोलन जैसे असहयोग आंदोलन में सक्रीय रुप से हिस्सा लिया और जेल की सजा और यातनाओं का सामना किया। 
दलित वीरांगनाओं का बलिदान 
स्वतंत्रता संग्राम में शाही या कुलीन पृष्ठभूमि वाली औरतों ने ही हिस्सा नहीं लिया, बल्कि दलित समुदायों की औरतों की भी इसमें सक्रीय भागीदारी थी। लखनऊ में जन्मी उदा देवी स्वतंत्रता संग्राम में ऐसी पहली दलित वीरांगना के रूप में पहचानी गई। लखनऊ के चिनहट क्षेत्र की लड़ाई में पति के वीरगति प्राप्त होने के बाद उदा देवी ने एक पीपल के घने पेड़ की आड लेकर कम से कम 32 अंग्रेजी सैनिकों को मार गिराया, जिसके बाद गोली लगने से उसने वहीं अपना बलिदान दिया। ऐसी ही एक और दलित वीरांगना मुज़फ़्फ़रनगर ज़िले के मुंडभर गांव की महाबीरी देवी थी, जिसने 22 महिलाओं दस्ता बनाकर 1857 में कई अंग्रेज सैनिकों को ढेर किया और देश की आजादी के लिए शहीद हो गई। इनके अलावा दलित वीरांगनाओं में रनवीरी वाल्मीकि, शोभा देवी वाल्मीकि, सहेजा वाल्मीकि, नामकौर, राजकौर, हबीबा गुर्जरी देवी, भगवानी देवी, भगवती देवी, इंदर कौर, कुशल देवी और रहीमी गुर्जरी आदि भी इतिहास के पन्नों से नजरअंदाज हैं। 
वीरबाला कनकलता बरुआ 
असम के सोनीपुर जिले के गोहपुर गांव में 22 दिसंबर 1924 को जन्मी कनकलता बरुआ ने महज सात साल की कनकलता क्रांतिकारियों के बीच ही बड़ी हुई, जिसने महज 18 साल की आयु में हाथ में तिरंगा थामे एक जुलूस में अंग्रेजी सेना की गोली खाकर देश के लिए शहीद हो गई। अपनी वीरता व निडरता के कारण वह वीरबाला के नाम से जानी गईं। स्वतंत्रता संग्राम में सबसे कम उम्र की बलिदानी कनकलता का नाम भी इतिहास के पन्नों से गायब है। 
27June-2022

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें