रविवार, 31 जुलाई 2016

..तो संसदीय प्रणाली में माननीयों को नहीं दिलचस्पी!


राज्यसभा: 64 में से मात्र 30 नये सांसदों ने ही प्रशिक्षण में लिया हिस्सा
ओ.पी. पाल. नई दिल्ली।
संसद में पिछले कुछ सालों से संसदीय मर्यादा के तार-तार होने की बढ़ती परंपरा के मिथक को तोड़ने के प्रयास में सांसदों को संसदीय प्रणाली का प्रशिक्षण देने की परंपरा में भी शायद संसद सदस्यों को ज्यादा दिलचस्पी नहीं है। इसका अंदाजा इसी से लग रहा है कि राज्यसभा में पहली बार मनोनीत और निर्वाचित होकर आये 64 नये सांसदों को संसदीय प्रणाली का ज्ञान देने के लिये आयोजित एक दो दिवसीय बोध कार्यक्रम में मात्र 30 सांसद ही गंभीर नजर आये, जिन्होंने संसदीय प्रणाली का पाठ पढ़ा।
दरअसल, संसद के ब्यूरो आॅफ पार्लियामेंट्री स्टडीज एवं ट्रेनिंग डिपार्टमेंट द्वारा लोकसभा और राज्यसभा के ऐसे सांसदों को संसद में उनकी अलग-अलग भूमिकाओं के साथ ही संसदीय परिपाटी और नियमों के बारे में प्रशिक्षण देता आ रहा है। इसी परंपरा के तहत इस साल पहली बार राज्यसभा में नवनिर्वाचित एवं मनोनीत होकर आये ऐसे सांसद जो पहली बार संसद पहुंचे हैं को ऐसे ही प्रशिक्षण के रूप में कल शनिवार को संसदीय सौंध में एक दो दिवसीय बोध कार्यक्रम यानि ओरियंटेशन प्रोग्राम शुरू हुआ। इस कार्यक्रम में उच्च सदन के 64 नये सांसदों को प्रशिक्षण के तौर पर आमंत्रित किया गया था। इसके बावजूद पहले दिन 30 सांसदों ने हिस्सा लिया, जबकि दूसरे दिन आज रविवार को दो और नये सदस्य आये, लेकिन पहले दिन हिस्सा लेने वालों में से सात नदारद रहे। जबकि इस कार्यक्रम में पहले दिन खुद राज्यसभा के सभापति ने तार-तार होती संसदीय मर्यादा का जिक्र करते हुए कई सदन में हंगामे और बैठकों की कम होती संख्या पर चिंता जताते हुए सांसदों से अपने कर्तव्य और भूमिका का निर्वहन करने का आव्हान किया था। आधे से भी ज्यादा सदस्यों द्वारा इस कार्यक्रम को नजरअंदाज करने वाले सांसदों के बारे में राजनीतिकारों का मानना है कि शायद सांसदों को संसदीय प्रणाली या प्रक्रिया को जानने में ज्यादा दिलचस्पी नहीं है।
कौन देता है संसदीय ज्ञान
राज्यसभा सचिवालय के एक अधिकार का कहना है कि संसद की गरिमा को बनाये रखने के लिये सदन के सदस्य के रूप में हर जनप्रतिनिधि को संसद के सभी कायदे-कानूनों का ज्ञान जरूरी है। इसलिये संसद में ऐसे नये सांसदों को एक प्रशिक्षण के रूप में सभापति, उप सभापति, राज्यसभा महासचिव और वरिष्ठतम सांसद, संविधान विशेषज्ञ संसदीय परंपराओं और नियम-कायदों का विस्तार से ज्ञान बोध कराते हैं। ऐसे संसदीय ज्ञान नए सांसदों को प्रभावशाली जनप्रतिनिध बनाने की दिशा में सदन के भीतर उनका आचरण कैसा होना चाहिए, संसदीय भाषाओं में एक सांसद का कैसा व्यवहार होना चाहिए जैसी जानकारी दी जाती है। वहीं सांसद की भूमिका और भारतीय राजनीतिक व्यवस्था में योगदान, सदस्य की सुविधाएं और विशेषाधिकार, संसद सदस्य स्थानीय क्षेत्र विकास योजना, कानून बनाने की प्रक्रिया, समिति प्रणाली, राजनीति में आचार संहिता जैसे विषयों के के अलावा नए सदस्यों को प्रश्नकाल,शून्यकाल, चर्चा या वाद-विवाद, विधेयकों, संसदीय समितियों, सांसद निधि और उसके विभिन्न योजनाओं में उपयोग, सदस्यों को दी जाने वाली सुख-सुविधाओं की क्या प्रक्रिया से भी अवगत कराया जाता है। वहीं सदन की कार्यवाही के दौरान मुद्दे उठाने के नियम और प्रक्रिया के साथ प्रश्नकाल, वाद-विवाद में हिस्सा लेने के नियमों की जानकारी तक दी जाती है।

राज्यसभा के नए सांसदों ने सीखी संसदीय प्रणाली!

सभापति अंसारी ने संसद की बैठकों में कमी चिंता पर जताई चिंता
नव निर्वाचित सांसदों के बोध कार्यक्रम शुरू
ओ.पी. पाल.
नई दिल्ली।
राज्यसभा में पहली बार मनोनीत व नव निर्वाचित होकर आये सांसदों को सभापति हामिद अंसारी तथा अन्य वरिष्ठ सांसदों ने संसदीय प्रणाली और नियमों के अलावा आचरण संबन्धी परिपाटियों की जानकारी देते हुए उन्हें संसदीय पाठ पढ़ाया।
राज्यसभा के द्विवार्षिक चुनाव में नव निर्वाचित और मनोनीत होकर उच्च सदन के नये सांसदों को संसदीय प्रणाली और अन्य नियम संबन्धी प्रशिक्षण देने की परंपरा के तहत उनके प्रशिक्षण की व्यवस्था का जिम्मा संभालते आ रहे संसद के ब्यूरो आॅफ पार्लियामेंट्री स्टडीज एवं टेªनिंग डिपार्टमेंट ने शनिवार को यहां संसदीय सौंध में दो दिवसीय बोध कार्यक्रम यानि ओरियंटेशन प्रोग्राम शुरू किया,  जिसका उद्घाटन उप राष्ट्रपति एवं राज्यसभा के सभापति मो. हामिद अंसारी ने किया। राज्यसभा के इन नये सांसदों को संसदीय पाठ पढ़ाते हुए सभापति मोहम्मद हामिद अंसारी ने संसद की बैठकों की संख्या घटने पर चिन्ता जताते हुए इस बात पर बल दिया कि सदन में विभिन्न मुद्दों पर चर्चा, विधायी तथा अन्य कामकाज में आई एक चैथाई कमी से निपटाने के लिये समय प्रबंधन जरूरी है। उनका कहना है कि पहले एक साल में 110 दिन तक संसद की कार्यवाही चलती थी जो अब घटकर लगभग 70 दिन हो गई है। उन्होंने कहा कि किसी मुद्दे पर उत्तेजना में सदस्यों का सदन के बीच में आना उचित नहीं है। अंसारी ने शून्यकाल या प्रश्नोत्तर  काल के दौरान सदस्य या सदस्यों के सदन के बीच में आने से कामकाज बाधित होने को नियमों के विपरीत बताया। पूरक प्रश्नों के लिये भी तैयारी की जरूरत है ताकि मंत्री जो उत्तर देते हैं और उनसे जो नई बात सामने आती हैं, उस पर त्वरित पूरक प्रश्न पूछे जायें।
मात्र 28 माननीय गंभीर
इस बोध कार्यक्रम के आमंत्रिम किये गये 64 सदस्यों में से केवल 28 नये राज्यसभा सांसद ही संसदीय प्रणाली की सीख के लिये गंभीर नजर आये, जिन्हें सभापति अंसारी के अलावा उप सभापति पीजे कुरियन के साथ पूर्व सांसद निलाकत्पल बसु ने भारतीय राजनीति में संसदीय नियमों की भ्ूमिका, पी राजीव ने प्रश्नकाल के महत्व और टीएमसी सांसद सुखेन्‍दु शेखर राय ने लोक महत्व के मुद्दो को संसद में उठाने का ज्ञान को नये सांसदो के साथ साझा किया।

राग दरबार- यूपी में कांग्रेस की सियासी लीला

कांग्रेस की लीला-यूपी में शीला
देश की सत्ता की सियासत का रास्ता यूपी से होकर जाता है ऐसा सभी राजनीतिक दल मानते आ रहे हैं। मगर यूपी मिशन को फतेह करने की सियासी लीला के लिये कांग्रेस ने दिल्ली से उस शीला दीक्षित को सीएम का उम्मीदवार बनाकर यूपी में भेज दिया है, जिसने दिल्ली की मुख्यमंत्री होते हुए कहा था कि यूपी के लोग दिल्ली आकर गन्दगी और भीड़ बढ़ाते हैं। यही नहीं राज बब्बर को यूपी कांगे्रस की बागडौर दी गई, जो Þ12 रूपये में भरपेट खाना खिला सकते हैं? ऐसे में यूपी की सियासत मे इनका हौंसला हफजाई करने में कानपुर में कांग्रेस युवराज राहुल गांधी ने हाईटेक रैली करके युवाओं की बात को हवा दी, पर यूपी चुनाव के लिए चेहरा दिया 78 साल की वृद्धा का। ऐसे में ‘‘कांग्रेस की देखो लीला-दिल्ली से आ गयीं शीला। राज बब्बर कर चुके कमाल-बारह रुपये में भरपेट थाल। राहुल क्या छेडेंगे राग-जब महल में उनके लगी है आग’’ जैसे यूपी के लोगों में जुमलेबाजी भी सोशल मीडिया पर जोर पकड़े हुए है। इन जुमलो को पुष्ट करते शीला के सामने सवाल खडे हो रहे हैं कि शीला जी अगर यूपी वाले गंदगी बढ़ाते है तो क्या वह यूपी के कूड़े में से क्या बीनने आयी हो? पता तो होगा न कि कूड़ा बीनने वाले को क्या कहते है? कांगे्रस की यूपी में खोई सियासी जमीन की वापसी की इस कवायद को लेकर सियासी गलियारों में तो चर्चा यही है कि शायद यह शीला के यूपी वालों को कोसने की बदुआ ही ‘सिर मुंडाते ही ओले पडे’ जैसी कहावत को चरितार्थ होती दिखी, जिसमे यूपी विधानसभा चुनाव का शंखनाद करने दिल्ली से एक लग्जरी बस पर सवार होकर निकली शीला दीक्षित को तबीयत नासाज होने पर बीच रास्ते से ही दिल्ली लौटना पड़ा। इससे पहले जब वह लखनऊ में पीसीसी दμतर जाते समय वाहन पर बनाया गया मंच टूटने और कानपुर में झमाझम बारिश की बाधा को अब पुराने खयाल वाले इसे अपशकुन माना जा रहा है? हुई ना यूपी में कांग्रेस की लीला...।

शनिवार, 30 जुलाई 2016

बंदगाहों की ‘सागरमाला’ को अब लगेंगे पंख

तट व भूमि आवंटन नीति की मंजूरी से घटेंगे यातायात खर्च
ओ.पी. पाल. नई दिल्ली।
देश में समुद्री कारोबार को प्रोत्साहन करने की दिशा में प्रमुख बंदरगाहों के आधुनिक विकास के लिये कई महत्वपूर्ण परियोजनाएं लागू की गई है। बंदरगाहों को सड़क संपर्क मार्ग से जोड़ने की दिशा सागरमाला कार्यक्रम में तेजी लाने के लिये सरकार ने प्रमुख बंदरगाहों पर तट और संबद्ध भूमि आवंटित करने के लिये बनाई गई नीति को मंजूरी दे दी है।
केंद्रीय जहाजरानी मंत्रालय के अनुसार केंद्रीय मंत्रिमंडल द्वारा बंदरगाह पर निर्भर उद्योगों को प्रमुख बंदरगाहों पर तट और संबद्ध भूमि आवंटित करने के लिए नीति को मंजूरी देने से कैप्टिव फैसिलिटी आवंटित करने की प्रक्रिया में पारदर्शिता और एकरूपता आ सकेगी। इससे प्रमुख बंदरगाहों पर क्षमताओं को अधिकतम दोहन सुनिश्चित होगा और मेजर पोर्ट अथॉरिटी के राजस्व में वृद्धि होगी। केंद्र सरकार सागरमाला कार्यक्रम के जरिये बंदरगाह आधारित विकास को प्राथमिकता देकर समुद्री कारोबार को आर्थिक विकास में प्रमुख भूमिका में लाना चाहती है। सागरमाला कार्यक्रम में तेजी लाने की दिशा में ही प्रमुख बंदरगाहों पर भूमि और तटों का अधिकतम उपयोगिता सुनिश्चित करना बेहद महत्त्वपूर्ण है। इस नीति का उद्देश्य कैप्टिव फैसिलिटी आवंटित करने की प्रक्रिया में एकरूपता और पारदर्शिता सुनिश्चित करना है। उद्योगों द्वारा समर्पित बंदरगाह फैसिलिटी के विकास और परिचालन सुनिश्चित करते हुए यह नीति प्रमुख बंदरगाहों के लिए दीर्धावधि आधार पर कारोबार सृजित करने में मदद करेगी। इस प्रकार यह बंदरगाह आधारित विकास के उद्देश्यों को पूरा करने में उत्प्रेरक की भूमिका निभाएगी।
दायरे में नई परिसंपत्तियां
मंत्रालय के अनुसार देश के सभी प्रमुख बंदरगाहों पर लागू होने वाली इस नीति के दायरे में नई परिसंपत्तियों के सृजन के साथ खाली बर्थ जैसे वर्तमान परिसंपत्तियों की बेहतर उपयोगिता को देखते हुए शामिल किया गया है। इस नीति के तहत प्रमुख बंदरगाहों पर अपनी डेडिकेटेड फैसिलिटी स्थापित करने के लिए बंदरगाह पर निर्भर उद्योगों (पीडीआई) को 30 वर्षों के लिए रियायत दी जाएगी, ताकि आयात और निर्यात के लिए वस्तुओं के भंडारण में उन्हें मदद मिल सके। यही नहीं इसके जरिये कुछ शर्तों के साथ रियायत अवधि में विस्तार भी दिया जा सकेगा, जिसमें रियायत अनुबंध के अनुरूप परिसंपत्तियों की उपयोगिता सुनिश्चित होने पर विस्तार की मंजूरी मिलना आसान होगा।

वर्दी पहनकर बेगाने नजर आए अनुराग!

बीसीसीआई अध्यक्ष व सांसद सेना की वर्दी पहन पहुंचे संसद
ओ.पी. पाल. नई दिल्ली।
प्रादेशिक सेना में अधिकारी के तौर पर शामिल होने के बाद भाजपा सांसद एवं बीसीसीआई अध्यक्ष अनुराग ठाकुर सेना की वर्दी में संसद पहुंचे तो कौतुहल का कारण बनते नजर आये। मसलन अनुराग ठाकुर को लोकसभा में पहुंचने पर भी सांसदों ने नहीं पहचाना और बाद में नेम प्लेट देखने के बाद पहचाना तो हरेक दल के सदस्यों द्वारा उन्हें बधाई देने का तांता लग गया।
दरअसल हिमाचल प्रदेश के हमीरपुर से भाजपा के सांसद अनुराग सिंह ठाकुर की राजनीति व क्रिकेट के साथ भारतीय सेना में नई पारी शुरू हुई। प्रादेशिक सेना में अधिकारी के तौर पर शामिल होने के बाद सेना की वर्दी पहनकर संसद भवन पहुंचे तो उनकी कोई भी पहचान नहीं कर सका और संसद भवन व लोकसभा में जाने के लिये उन्हें सुरक्षाकर्मियों को अपना कार्ड दिखना पड़ा। आलम यह था कि सदन में सेना की वर्दी में अपनी सीट पर पहुंचे तो उन्हें किसी सेना के अधिकारी को ऐसे सदन में देख संसद सदस्य एक बारगी तो हैरानी में पड़ते नजर आये, लेकिन उनकी नेम प्लेट और बातचीत के बाद पहचान हुई तो हर दल का सदस्य उन्हें बधाई देता नजर आया।
हुलिया पूरी तरह बदला
भारतीय क्रिकेट नियंत्रण बोर्ड के अध्यक्ष एवं भाजपा सांसद अनुराग ठाकुर का हुलिया एकदम बदला हुआ था, जो हमेशा दाढ़ी और बालों के स्टाइल से सदाबहार नेता के रूप में देखे जाते रहे, उनके बालों की कटिंग सेना के अनुरूप तथा चेहरे से दाढ़ी गायब थी और वहीं उनकी सेना की वर्दी के साथ सेना की कैप ने उन्हें संसद में पहचान से एक बार को महरूम कर दिया। आलम यह था कि जब वह मीडिया से बात कर रहे थे, तो भी उनकी पहचान करना मुश्किल भरा नजर आ रहा था।
जहां चाह-वहां राह..  
संसद भवन में सेना की वर्दी पहने सांसद और बीसीसीआई अध्यक्ष अनुराग ठाकुर ने मीडिया से बातचीत के दौरान कहा कि भारतीय सेना का हिस्सा बनने पर वह अपने आपको गौरवशाली महसूस कर रहे हैं। राजनीति, क्रिकेट और अब सेना में होने के सवाल पर अनुराग ने कहा कि जहां चाह-वहां राह। उन्होंने कहा कि वह अब देश सेवा के लिए किसी भी क्षण और किसी भी परिस्थिति में तैयार हैं। गौरतलब है कि प्रादेशिक सेना में अनुराग ठाकुर का चयन एक लिखित परीक्षा और साक्षात्कार पास करने के बाद हुआ है। इसके लिये अनुराग को मध्यप्रदेश और हमीरपुर में नियमित अधिकारी के तौर पर प्रशिक्षण दिलाने के बाद प्रादेशिक सेना में अधिकारी के रूप में शामिल किया गया है।
क्या है प्रादेशिक सेना
टेरिटोरियल आर्मी भारत की नियमित सेना तो नहीं, मगर सेकंड लाइन आफ डिफेंस है। इसमें वो लोग शामिल होते हैं जो एक साल लगभग एक महीने की सैन्य प्रशिक्षण लेते हैं। जिससे उन्हें किसी भी इमरजेंसी में देश की रक्षा के लिए तैनात किया जा सके। यह कोई रोजगार का जरिया भी नहीं है। प्रादेशिक सेना में शामिल होने के लिए किसी असैन्य पेशे से जुड़ा होना जरूरी है।  
30July-2016

शुक्रवार, 29 जुलाई 2016

अंतर्राष्ट्रीय मानकों पर बनेंगी सुरक्षित सड़कें!

दुनिया में सड़क हादसों के कलंक को धोने की कवायद
सरकार की सड़क इंजीनियरिंग में उच्च गुणवत्ता सर्वोच्च प्राथमिकता
ओ.पी. पाल. नई दिल्ली।
देश में सड़क परियोजनाओं में उच्च गुणवत्ता, हरित व सड़क सुरक्षा को प्राथमिकता देते हुए अंतर्राष्ट्रीय मानकों को लागू करने की अनिवार्यता तय कर चुकी है। इसका मकसद सरकार हर हालत में दुनियाभर में सर्वाधिक सड़क हादसों व उसमें हो रही मौतों के लगे कलंक को मिटाना चाहती है।
केन्द्रीय सड़क परिवहन, राजमार्ग मंत्री नितिन गडकरी ने देश में फिलहाल अपनाई जा रही सड़क इंजीनियरिंग की गुणवत्ता को नाकाफी बताते हुए इसमें और ज्यादा सुधार लाने पर बल दिया है। इसलिये सरकार ने सड़क निर्माण करने वाली एजेंसियों के लिये यह अनिवार्य कर दिया है कि सड़क परियोजनाओं में सड़क सुरक्षा और पर्यावरण की दृष्टि से उच्च गुणवत्ता में दिशानिर्देशित अंतर्राष्ट्रीय मानकों का पालन करना सुनिश्चित करें। परियोजनाओं में हर स्तर पर निर्णय लेने की प्रक्रिया में तेजी और पारदर्शिता के लिये आॅडिट कराने की नीति भी लागू की है, ताकि परियोजना में देरी या उच्च गुणवत्ता वाले अंतर्राष्टÑीय मानकों के उल्लंघन पर आवश्यक कार्यवाही अमल में लायी जा सके। इसलिये सरकार की मंशा को जाहिर करते हुए राष्ट्रीय राजमार्ग एवं बुनियादी ढांचा विकास निगम लिमिटेड के स्थापना दिवस समारोह के दौरान भी गडकरी ने अपना इरादा स्पष्ट करते हुए कहा कि भारत में बढ़ रही सड़क दुर्घटनाओं और इन हादसों में लोगों की की मौतों को हर हालत में ज्यादा से ज्यादा कमी लाना सरकार की सर्वोच्च प्राथमिकता है। इस दौरान एनएचआईडीसीएल के महाप्रबंधक आनंद कुमार ने निगम द्वारा किए गए काम का एक सिंहावलोकन प्रस्तुत करते हुए जानकारी दी कि यह निगम 14 राज्यों में लगभग 8000 हजार करोड़ रुपए लागत की 133 परियोजनाओं का कार्य कर रहा है।

गुरुवार, 28 जुलाई 2016

कैबिनेट ने दी जीएसटी को मंजूरी

राज्‍यों और कांग्रेस की अहम मांगें मानी
ओ.पी. पाल. नई दिल्ली। सरकार ने वस्तु एवं सेवाकर (जीएसटी) संविधान संशोधन विधेयक में कुछ प्रमुख बदलावों को बुधवार को मंजूरी दे दी।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में बुधवार को हुई केंद्रीय मंत्रिमंडल की बैठक में ये निर्णय लिये गये। जीएसटी संविधान संशोधन विधेयक में यह भी प्रावधान किया जायेगा कि जीएसटी लागू होने पर केंद्र और राज्यों के बीच विवाद की सूरत में जीएसटी परिषद में मामला जायेगा और वही फैसला करेगी। इस परिषद में केंद्र और राज्य दोनों के प्रतिनिधि होंगे।
विधेयक में एक प्रतिशत अंतर-राज्यीय कर को समाप्त कर सरकार ने विपक्षी दल कांग्रेस की तीन में से एक प्रमुख मांग को मान लिया है। कांग्रेस के विरोध की वजह से ही जीएसटी विधेयक राज्यसभा में अटका हुआ है। बहरहाल कांग्रेस की दो अन्य प्रमुख मांगों पर कोई पहल नहीं हुई है। कांग्रेस की मांग है कि जीएसटी की अधिकतम दर का संविधान में उल्लेख किया जाये और कर विवाद का निपटारा सुप्रीम कोर्ट के न्यायधीश की अध्यक्षता वाली संस्था करे।
मंत्रिमंडल ने जिन संशोधन को मंजूर किया है, उसके मुताबिक केंद्र सरकार राज्यों को संविधान के तहत पहले पांच साल तक राजस्व में यदि नुकसान होता है तो उसकी भरपाई की गारंटी होगी। कहा जा रहा है कि जीएसटी दर का उल्लेख जीएसटी संविधान संशोधन विधेयक के बाद आने वाले जीएसटी के दो अन्य विधेयकों में किया जा सकता है।

बुधवार, 27 जुलाई 2016

राज्यों की सहमति से आपस में जुड़ेगी नदियां!

तय होगी नदियों के ‘अतिरिक्ता जल’ की परिभाषा
ओ.पी. पाल. नई दिल्ली।
अटल सरकार की महत्वाकांक्षी ‘नदियों को आपस में जोड़ने’ की परियोजना को आगे बढ़ा रही मोदी सरकार राज्यों की सहमति बनाने की कवायद में जुटी है। इसी मकसद से राज्यों के साथ बाधक बन रहे विवाद खत्म करने के लिये सरकार जल्द ही नदियों के ‘अतिरिक्ता जल’ की परिभाषा तय करेगी।
केंद्रीय जल संसाधन नदी विकास और गंगा संरक्षण मंत्री सुश्री उमा भारती ने ऐसे संकेत यहां मंगलवार को यहां नई दिल्ली में नदी जोड़ो परियोजना से संबंधित विशेष समिति की हुई बैठक की अध्यक्षता करते हुए दिये है। सुश्री भारती ने स्पष्ट रूप से सभी राज्यों की सहमति से नदियों के ‘अतिरिक्ता जल’ की परिभाषा अंतिम रूप देने की जरूरत को रेखांकित किया है। उन्होंने कहा कि इस काम के लिए देश की कृषि योग्य भूमि, सिंचाई के लिए उपलब्ध, भूमि, गैर सिंचित भूमि, कृषि पैदावार और उस पैदावार के लिए बाजार आदि सभी तथ्यों का आकलन किया जाएगा है। ऐसी सभी जानकारी जुटाने के बाद उनका मंत्रालय सभी राज्यों के साथ व्यापक विमर्श करने के बाद इस मुद्दे पर अंतिम निर्णय लेगा, ताकि इस विवाद को समाप्त करके नदियों को जोड़ने वाली परियोजनाओं में तेजी लाई जा सके।
राज्यों ने भी दिये सुझाव
नदी जोड़ो परियोजना से संबंधित विशेष समिति की बैठक में बिहार के जल संसाधन मंत्री राजीव रंजन सिंह ने नेपाल से राज्य में प्रवेश करने वाली नदियों में आने वाली बाढ़ का मुद्दा उठाया और बिहार में नदी जोड़ो परियोजना का तेजी से अमल करने पर बल दिया। उन्होंने सुझाव दिया कि दो लाख हेक्टेयर से अधिक भूमि को सिंचित करने वाली परियोजनाओं को राष्ट्रीय परियोजना घोषित किया जाए। इसी प्रकार उत्तर प्रदेश के जल संसाधन राज्य मंत्री सुरेन्दर सिंह पटेल ने केन-बेतवा नदी जोड़ो परियोजना को तेजी से आगे बढ़ाने की जरूरत बताया।
केन-बेतवा में है अड़चन
मंत्रालय के अनुसार नदी जोड़ो परियोजना को आगे बढ़ाने में सबसे पहले केन-बेतवा नदियों को आपस में जोड़ने वाली परियोजना लगभग तैयार है, लेकिन पर्यावरण मंत्रालय की वन्यजीव समिति इसमें अभी तक रोड़ा बनी हुई है। इस समिति से खुद केद्रीय मंत्री उमा भारती भी खफा हैं। केंन-बेतवा नदी जोड़ो परियोजना के पूरा होने का इंतजार मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश की सरकारे भी कर रही हैं, क्योंकि इसके पूरा होने से दोनों राज्यों में बुंदेलखंड के लोगों की सूखे और बाढ़ जैसी समस्या का समाधान हो जायेगा। मसलन इस परियोजना से मध्यप्रदेश और उत्तर प्रदेश में जल संकट से जूझ रहे बुंदेलखंड क्षेत्र के 70 लाख लोगों की खुशहाली का मार्ग प्रशस्त होगा, जिन्हें पर्याप्त पानी, फसलों की सिंचाई और रोजगार की समस्या से भी निजात मिलेगी।

पीएम मोदी के शिंकजे में कैबिनेट मंत्री!

कई राज्यमंत्रियों को ‘वर्क आर्डर‘ मिलने का इंतजार
ओ.पी. पाल. नई दिल्ली।
देश की तस्वीर बदलने की तरफ बढ़ रहे प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी शायद ऐसी परंपरा को तोड़ते हुए अपने मंत्रिमंडल के कनिष्ठ यानि राज्यमंत्रियों की जिम्मेदारी बढ़ाने में प्रत्यक्ष भूमिका निभा रहे हैं। इसे हकीकत बनाने के लिये उन्होंने कैबिनेट या वरिष्ठ मंत्रियों पर शिकंजा कसना शुरू कर दिया है। इसी का नतीजा है कि शायद पहली बार किसी सरकार में राज्यमंत्रियों को अपने मंत्रालय में पर्याप्त काम मिलना शुरू हो गया है।
सूत्रों के अनुसार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की इस कवायद में उनके मंत्रिमंडल के जूनियर मंत्रियों को पर्याप्त कार्य देने की परंपरा शुरू करना और फाइलें को राज्यमंत्रियों के जरिये आगे बढ़ाने का मकसद नजर आ रहा है। अक्सर आजाद भारत की पूववर्ती सरकारों में राज्यमंत्रियों की शिकायते सामने आती रही हैं कि उन्हें उनके कैबिनेट मंत्री उन्हें कोई काम देना नहीं चाहते। इसी परंपरा को मोदी ने तोड़कर हरेक मंत्रालयों में समन्वय बनाने की तरह ही नये विस्तार के बाद कैबिनेट मंत्रियों को ऐसे दिशानिर्देश जारी किये हैं। पीएमओ ने भी मोदी सरकार के सभी 26 कैबिनेट मंत्रियों को संकेत प्रधानमंत्री मोदी की इस मंशा से अवगत करा दिया है कि वह प्रधानमंत्री से सलाह-मशविरा करके ही विभागों का कामकाज बांटना सुनिश्चित करें। पीएमओ के ऐसे स्पष्ट संकेत मिलते ही ज्यादातर कैबिनेट मंत्रियों ने राज्य मंत्रियों को पर्याप्त कामकाज का वितरण कर दिया है, लेकिन जिन कैबिनेट मंत्रियों अभी अपने राज्यमंत्रियों को पर्याप्त कामकाज नहीं सौंपा है उन पर खुद मोदी नजर रखे हुए हैं। सूत्रों की माने तो पीएमओ की और से ऐसे मंत्रियों को सख्त संदेश जारी कर दिया गया है, जिससे जूनियर मंत्रियों को काम मिलने यानि अपने ‘वर्क आर्डर’ मिलने का इंतजार है।

मंगलवार, 26 जुलाई 2016

आखिर कैम्पा बिल पर क्यों पलटी कांग्रेस!

आंध्र के बहाने राज्यसभा में अटकाया विधेयक
ओ.पी. पाल. नई दिल्ली। 
संसद के मानसून सत्र में पिछले सप्ताह ही देश के जंगलो और वन्यजीवों का बचाने वाले वन अधिकार कानून बनाने वाले कैम्पा बिल को पारित कराने की सहमति बन गई थी, लेकिन सोमवार को आंध्र प्रदेश को विशेष दर्जा देने संबन्धी एक निजी विधेयक के बहाने अचानक सरकार और कांग्रेस के बीच तकरार ने इतना तूल पकड़ा कि एक-दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप का दौर शुरू हो गया और यह विधेयक अधर में लटक गया।
सरकार और कांग्रेस समेत विपक्ष में बनी सहमति के मुताबिक सोमवार को भोजनावकाश के बाद जैसे ही दो बजे उच्च सदन की कार्यवाही आरंभ हुई और उपसभापति प्रो.पीजे कुरियन ने लोकसभा से पारित हो चुके प्रतिकरात्मक वनरोपण निधि विधेयक यानि कैम्पा बिल पेश कराने का प्रयास किया तो कांग्रेस के आनंद शर्मा ने सरकार पर शुक्रवार को जानबूझकर सरकार पर सदन की कार्यवाही बाधित करने का आरोप लगाते हुए कहा कि उसमें निजी विधेयक पेश नहीं किये जा सके, जिनमें एक आंध्र प्रदेश के पैकेज से संबन्धित था। कांग्रेस ने कैम्पा बिल से पहले इस विधेयक को लेने पर जोर देते हुए हंगामा कर दिया। हालांकि इसके पलटवार में केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्री अनिल दवे ने कांग्रेस पर आरोप लगाया कि वह आदिवासियों के हित में कैम्पा बिल के प्रति गंभीर नहीं है और इसे जानबूझकर रोक रही है। जबकि इस विधेयक को सोमवार में पेश करने पर सहमति बन चुकी थी, इस सहमति की पुष्टिकरते हुए खुद उपसभापति कुरियन ने भी सदन में स्पष्ट किया।
आदिवासियों की गुनाहगार कांग्रेस
केंद्रीय संसदीय कार्य राज्यमंत्री मुख़्तार अब्बास नकवी ने आरोप लगाया कि कांग्रेस ने उच्च सदन में कैम्पा बिल को रोक कर ऐसा पाप किया है जिसमें केंद्र सरकार द्वारा आंध्र प्रदेश को दिए जाने वाले 2023 करोड़ रुपये समेत देश के अन्य राज्यों को मिलने वाली 42 हजार करोड़ रुपये की राशि को भी अधर में लटका दिया है। नकवी का कहना है कि संसद में पिछले कई सत्रों से कांग्रेस किसी न किसी बहाने से महत्वपूर्ण विधेयकों को रोक कर दलितों-कमजोर तबकों, आदिवासियों की तरक्की में बाधा पैदा करने का गुनाह कर रही है। जबकि सरकार इनके हितों में कैम्पा बिल को राज्यसभा में भी जल्द से जल्द पारित कराना चाहती है।

सोमवार, 25 जुलाई 2016

अमेरिका को रास आई सड़क परियोजनाएं!

सड़क हादसें रोकने में भारत की करेगा मदद
ओ.पी. पाल. नई दिल्ली।
देश में ढांचागत विकास क्षेत्र को मजबूत करने की मोदी सरकार की परियोजनायें अमेरिका को ऐसे रास आई कि भारत में सड़क और समुद्री परिवहन क्षेत्र में खासकर सड़क दुर्घटनाओं पर अंकुश लगाने के लिये भारत को तकनीकी रूप से मदद देने को तैयार है।
दरअसल केंद्रीय सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्री नितिन गडकरी ने हाल ही में एक सप्ताह की अमेरिका यात्रा के दौरान ढांचागत विकास क्षेत्र में सड़क, बंदरगाह, जलमार्ग और ई-वाहनों जैसी अमेरिकी यायेजनाओं का जायजा लिया। यही नहीं गडकरी ने 400 कंपनियों की सदस्यता वाले अमेरिका-भारत व्यापार परिषद यानि यूएसआईबीसी के वरिष्ठ अधिकारियों के साथ भारत में सड़क दुर्घटनाओं में हो रही मौतों में ज्यादा से ज्यादा कमी लाने की मंशा जाहिर की। देश में सड़क और जल परिवहन संबन्धी परियोजनाओं को भी अमेरिका के साथ साझा किया। अमेरिका को भारत में बुनियादी ढांचे की मजबूती के लिये चलाई जा रही परियोजनाएं रास आई और उनमें तकनीकी खासकर सड़क दुघर्टनाओं में कमी लाने में मदद करने पर सहमति जताई। भारत में सड़कों को बंदरगाहों से जोड़ने के लिये शुरू की गई परियोजनाओं की अमेरिका ने सराहना भी की। केंद्रीय सड़क परिवहन मंत्री गडकरी ने इस दौरान भारत में चलाई जा रही सड़क इंजीनियरिंग, राजमार्ग निर्माण, सड़क संकेतक के क्षेत्र में नवीनतम तकनीक एवं सड़क सुरक्षा के प्रभावी उपायों की परियोजनाओं को सिरे चढ़ाने की दिशा में अनुभव के तौर पर वहां दस घंटे की 800 किलोमीटर लंबी सड़क मार्ग से यात्रा की। इस यात्रा में घुमावदार पहाड़ी इलाके, घने जंगल और प्रशांत महासागर से लगे कुछ रेगिस्तानी रास्तों का अनुभव लिया, ताकि अपने देश में भौगोलिक दृष्टि से जम्मू-कश्मीर एवं लद्दाख के मुश्किल इलाकों, पूर्वोत्तर क्षेत्र एवं पिथोरागढ़ से मानसरोवर और हरिद्वार से गंगोत्री, यमुनोत्री, बद्रीनाथ तथा केदारनाथ आदि हिमालय के क्षेत्रों में राष्ट्रीय राजमार्ग का निर्माण करने जैसी परियोजनाओं के कठिन काम को आसान बनाया जा सके।

ऐसे कैसे सिरे चढ़ेगा ‘आदर्श गांव’ मिशन

डेढ़ दर्जन कैबिनेट मंत्रियों ने गोद नहीं लिये गांव
हरिभूमि ब्यूरो.
नई दिल्ली।
मोदी सरकार द्वारा गांवों के आधुनिकीकरण के लिये शुरू की गई ‘सांसद आदर्श ग्राम योजना’ यानि के दूसरे चरण में डेढ़ दर्जन केंद्रीय मंत्री अब तक एक भ्‍ाी गांव गोद नहीं ले पाये हैं, जबकि इसके लिये छह माह पहले ही मियाद खत्म हो चुकी है।
स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर लालकिले से अपने पहले भाषण के दौरान प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने ‘सांसद आदर्श ग्राम योजना’ का ऐलान किया था, जिसका दूसरा चरण शुरू हो चुका है और सांसदों को गांव का चयन कर गोद लेने के लिये गत जनवरी के अंत तक का समय दिया गया था। ग्रामीण विकास मंत्रालय के ताज आंकड़ों पर गौर करें तो इस दूसरे चरण में पीएम मोदी के अलावा केवल आठ कैबिनेट मंत्रियों सुषमा स्वराज, रामविलास पासवान, जेपी नड्डा, अशोक गजपति राजू, चौधरी बीरेंद्र सिंह, थावर चंद गहलोत, स्मृति ईरानी और प्रकाश जावड़ेकर ने ही ने ही गांव गोद लिए हैं। जबकि इस योजना के दूसरे चरण में अभी तक 18 कैबिनेट मंत्रियों का अपने-अपने निर्वाचन क्षेत्र में एक-एक गांव गोद लेने का इंतजार है। हालांकि एसएजीवाई के तहत सभी राजनीतिक दलों के सांसदों को गांव गोद लेने की बात कही गई है, ताकि इन गांवों को आधुनिक गांव में बदला जा सके और इन क्षेत्रों में भौतिक और संस्थागत अवसंरचना विकसित करने की जिम्मेदारी ली जा सके। मंत्रालय के अनुसार पहले चरण में 795 सांसदों में से 701 ने गांवों को गोद लिया था, जबकि दूसरे चरण में प्रतिक्रिया कमजोर रही और केवल 102 सांसदों ने ही गोद लेने के लिए एक-एक गांव का चयन किया है। 
क्या आदर्श ग्राम योजना
इस योजना के तहत लोकसभा के 543 और राज्यसभा के 242 सांसदों सहित सभी 785 सांसदों को वर्ष 2019 तक तीन-तीन गांव विकसित करने हैं। एसएजीवाई के तहत सभी राजनीतिक दलों के सांसदों को गांव गोद लेने की बात कही गई है, ताकि इन गांवों को आधुनिक गांव में बदला जा सके और इन क्षेत्रों में भौतिक और संस्थागत अवसंरचना विकसित करने की जिम्मेदारी ली जा सके। एसएजीवाई के तहत अलग से किसी बजटीय आवंटन का प्रावधान नहीं है, लेकिन सांसदों से कहा गया कि वे अपने चुने गए गांवों के लिए धन की व्यवस्था ग्रामीण आवास के वास्ते इंदिरा आवास योजना, प्रधानमंत्री ग्रामीण सड़क योजना और बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ जैसी जारी 21 योजनाओं को किए जाने वाले आवंटन के माध्यम से करें। हालांकि सांसदों ने योजना के लिए अलग से धन न होने की शिकायत की है। एसएजीवाई का उद्देश्य मूलत: चयनित गांवों में सभी तबकों के जीवन स्तर और जीवन गुणवत्ता में सुधार करने का है।
क्या था पीएम का मकसद
प्रधानमंत्री ने शहरों की तर्ज पर गांवों के विकास के लिए इस योजना की शुरूआत की। इस योजना के तहत सांसदों को एक गांव गोद लेकर उसका विकास करना था। प्रधानमंत्री की इस योजना से गांववाले काफी खुश थे कि अब उनके गांव का जल्द विकास होगा लेकिन यह खुशी उनकी अब लगभग खत्म सी हो गई है। क्योंकि इन आदर्श गांवों का विकास मात्र दिखावा साबित हो रहा है।
कंपनियों को सौंपने की योजना
सूत्रों की माने तो प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के गांव गोद लेने की इस आदर्श ग्राम योजना में सांसदों की दिलचस्पी खत्म होती नजर आ रही है। ऐसे में सरकार अब इस योजना को बरकरार रखने के लिये कॉर्पाेरेट फंडिंग की तलाश में हैं। सूत्रों के अनुसार ग्रामीण विकास मंत्रालय इस सिलसिले में  रीजनल कॉरपोरेट सोशल रिस्पॉन्सिबिलिटी यानि सीएसआर कॉन्क्लेव का आयोजन करके इसके लिये आगे कदम बढ़ा रहा है। सूत्रों के अनुसार ऐसे आयोजन मुंबई के बाद सरकार लखनऊ, गुजरात, चंडीगढ़ और अन्य रीजनल सेंटरों में किये जा सकते हैं। इस योजना में सरकार को रीजनल कॉन्क्लेव से सांसदों और जिला प्रशासन को उन कॉपोर्रेट खिलाडियों से जुड़ने में मदद मिलेगी, जो गांव में निवेश करना चाहते हैं। ग्रामीण विकास मंत्रालय ने राज्यों में 340 ऐसे प्रोजेक्ट्स की पहचान की है, जिन्हें फंडिंग की जरूरत है। 
25July-2016


रविवार, 24 जुलाई 2016

राग दरबार: सादगी पर भारी लाल बत्ती का मोह...

लाल बत्ती के मोह मे भाजपा सांसद भारतीय राजनीति को लेकर सादगी की बात की जाये तो करवटे बदलती देखी गई है, जबकि ब्रिटेन जैसे कुछ देशों के बारे में कहा जाता है कि वहां की सरकार के नुमाइंदे और संसद सदस्य आम आदमी की तरह सरकारी वाहन के बजाय सार्वजनिक वाहन में सवारी करते हैं और सादगी का जीवन जीते हैं। हालांकि अपने भारत में भी सादगी के वैसे तो कई  उदाहरण हैं। राजग की मोदी सरकार में भी कुछ माननीयों ने सादगी पेश की, जिनमे प्रधानमंत्री मोदी के मंत्रिमंडल विस्तार के बाद नये मंत्रियों में भाजपा के वे दो सांसद भी शामिल हैं। इन दोनों ने मोदी के संकल्प के मिशन में कदमताल मिलाकर एक आदर्श पेश करके पिछले दो सालों में सुर्खियां बटोरी थी, लेकिन लाल बत्ती मिलते ही उन्होनें उन सभी सिद्धांतवादी विचारधरा को ताक पर रखना शुरू कर दिया। इनमें एक ने तो बिकानेर तक साइकिल तक यात्रा कर पीएम मोदी को प्रदूषण उन्मूलन अभियान कम रूप में प्रभावित किया। मसलन पर्यावरण संरक्षण का संकल्प लेकर राजस्थान के ये माननीय तो मंत्रालय का काम मिलते नये तेवर में नजर आये और अपनी साईकिल को ताला लगाकर संसद के मानसून सत्र में लाल बत्ती की गाड़ी से आना जाना करते देखे गये। यही नही मंत्रिमंडल से बाहर किये गये माननीयों ने भी बत्ती का मोह नही छाड़ा तो ‘खरबूजे को देख खरबूजी भी रंग बदलने’ वाली कहावत सामने आई। मसलन मौजूदा संसद सत्र में पहले तीन दिन तक मंत्री बनने के बावजूद साईकिल पर सवार होकर संसद आने के बाद गुजरात के माननीय ने लाल बत्ती की गड़ी थाम ली। हुअ ना लाल बत्ती का मोह...!
दाल ने बदली मुर्गी की चाल...
दाल बराबर मुर्गी..वाली कहावत आज के दौर में शायद बदल रही है। मसलन दाल मुर्गी से ज्यादा तेज दौड़ रही है जिसका कारण सुरसा की तरह मुहं बाये डायन महंगाई? दरअसल देश में आवश्यक वस्तुओं के दामों में भारी वृद्धि पर राज्यसभा में विपक्षी दलों के सदस्यों ने गंभीर चिंता व्यक्त करते हुए ऐसी ही पहेली पेश की। तर्क भी साफ है कि बढ़ती महंगई के हालात यहां तक पहुंच गए कि दाल महंगी और मुर्गी सस्ती हो गई है। उच्च सदन में कांग्रेस के प्रमोद तिवारी ने बढ़ती महंगाई का मुद्दा उठाते हुए दाल बराबर मुर्गी की बदलती चाल को आम आदमी की कमर तोड़ने का सबब करार दिया। सरकार का फोकस भी दालों की कीमतों को नियंत्रण करने पर है ताकि दाल और मुर्गी की चाल खरगोश व कछुआ बनने से रोकी जा सके। सियासी गलियारे में महंगाई को लेकर चल रही बहस मे बदल गई ना दाल के मुकाबले मुर्गी की चाल..।
संसद में दिखा टीम एचआरडी का जलवा
केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्रालय की कमान प्रकाश जावड़ेकर के हाथों में आते ही उनकी सबसे पहली घोषणा में कहा गया कि इस विभाग के तीनों मंत्री टीम एचआरडी की तरह काम करेंगे। इसकी झलक अब धीरे-धीरे मंत्रालय के बाहर भी दिखाई और सुनाई देनी लगी है। बीते बृहस्पतिवार को उच्चसदन यानि राज्यसभा में मानव संसाधन मंत्रालय के सवाल-जवाब के दिन टीम एचआरडी की एकजुटता का साफ नजारा देखने को मिला। तीनों मंत्री एक साथ तीसरी पंक्ति में बैठे हुए नजर आए। ऐसा बीते दो वर्षों में संसद में कभी भी देखने को नहीं मिला। सदन की कार्रवाई जैसे ही प्रश्नकाल के लिए शुरू हुई। केंद्रीय एचआरडी मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने सांसदों के प्रश्नों के जवाब दिए तो वहीं दोनों राज्य मंत्री महेंद्रनाथ पांड्ेय और उपेंद्र कुशवाहा साथ में उन्हें पूर्ण सहयोग देने की मुद्रा में बैठे हुए नजर आए। इसी तो संसद में टीम एचआरडी का जलवा ही कहेंगे।
-ओ.पी. पाल व कविता जोशी
24July-2016

शनिवार, 23 जुलाई 2016

संसद की मंजूरी के मुहाने पर जीएसटी विधेयक!

राज्यसभा: अगले सप्ताह होगी पांच घंटे की चर्चा
ओ.पी. पाल. नई दिल्ली।
केंद्र सरकार ने वस्तु व सेवा कर यानी जीएसटी विधेयक को चर्चा के लिये इस उम्मीद के साथ अगले हफ्ते राज्यसभा की कार्यसूची में शामिल किया है कि ज्यादातर दलों की सहमति के बीच इस विधेयक को संसद की मंजूरी मिल जायेगी। हालांकि सरकार ने कांग्रेस का साथ लेने के लिये उनके सुझावों पर विचार करने का मन बनाया है, जिसके लिये जीएसटी के कुछ प्रावधानों में संशोधन के लिये केंद्रीय कैबिनेट की मंजूरी ली जा सकती है।
संसद के मानसून सत्र की पहले सप्ताह की कार्यवाही पूरी होने से पहले राज्यसभा की कार्यमंत्रणा समिति ने जीएसटी को आगामी सोमवार से शुरू होने वाले सप्ताह की कार्यावली में शामिल किया है। उच्च सदन में जीएसटी से जुड़े संविधान संशोधन विधेयक पर चर्चा के लिये पांच घंटे का समय निर्धारित किया गया है। जीएसटी पर राज्यों और ज्यादातर विपक्षी दलों के समर्थन के साथ ही कांग्रेस के तेवरों में देखी जा रही नरमी को देखते हुए संभावना है कि उच्च सदन में इस बार संविधान (122वां संशोधन) के रूप में जीएसटी विधेयक पारित हो जायेगा। हालांकि सरकार पहले ही कह चुकी है कि कांग्रेस को वह अलग-थलग करने के मूड में नहीं है, जिसके कारण सरकार ने कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं के साथ चर्चा करके उनके मन को भी टटोला है। सूत्रों की माने तो कांग्रेस जीएसटी में जिन प्रावधानों को बदलने का सुझाव देती आ रही है उसके लिये सरकार की रणनीति में भी नरमी देखी गई है। गौरतलब है कि यह विधेयक पिछले साल ही लोकसभा में पारित हो चुका है। राज्यसभा की कार्यमंत्रणा समिति में शामिल सभी दलों के सदस्यों में भी इस विधेयक को लेकर आई नरमी को देखते हुए माना जा रहा है कि जीएसटी से जुड़े संविधान संशोधन विधेयक पर सार्थक चर्चा होगी और इसे पारित करा लिया जायेगा।
आंशिक संशोधन की संभावना
सूत्रों की माने तो सरकार ने ऐसे संकेत दिये हैं कि वह कांग्रेस के सुझावों के आधार पर जीएसटी के प्रावधानों में थोड़ा-बहुत संशोधन करके कांग्रेस को समर्थन कर सकती है। हालांकि जीएसटी की 18 फीसदी दर को संविधान का हिस्सा बनाने की अपनी मांग को कांग्रेस छोड़ने का संकेत दे चुकी है। जबकि उत्पादक राज्यों को एक फीसदी का अतिरिक्त कर को खत्म करने की सरकार पहले ही मान चुकी है। जबकि जीएसटी की दर की अधिकतम सीमा 20 प्रतिशत तय करने के सुझाव में कुछ संशोधन की संभावना जताई जा रही है। संविधान संशोधन में शामिल कराना चाहती है। कांग्रेस की मांग में राज्यों के बीच राजस्व बंटवारे के विवादों को सुलझाने के लिए बनने वाली परिषद के अधिकारों में भी कांग्रेस के सुझाव पर सरकार विचार कर रही है। ऐसी स्थिति में उच्च सदन में चर्चा कराने से पहले कुछ आंशिक संशोधन की मंजूरी हेतु जीएसटी फिर केंद्रीय कैबिनेट में जा सकता है।

शुक्रवार, 22 जुलाई 2016

दलितों के बहाने आंकड़ो की सियासत!

राज्यसभा: सत्ता-विपक्ष ने साधा एक-दूसरे पर निशाना
ओ.पी. पाल.
नई दिल्ली।
देश के विभिन्न भागों में दलितों पर हुई अत्याचार की हाल की घटनाओं पर राज्यसभा में हुई चर्चा के दौरान सत्तापक्ष और विपक्ष में आंकड़ो की सियासत के जरिये एक-दूसरे पर ठीकरा फोड़ने का प्रयास रहा, जिसमें हरेक अपने को दलित हितैषी होने का दावा करते देखे गये।
उच्च सदन की दो बजे शुरू हुई कार्यवाही के दौरान राज्यसभा में नियम 176 के तहत इस मुद्दे पर चर्चा की शुरूआत करते हुए जदयू सांसद शरद यादव ने देश में दलितों पर अत्याचार के लिये कांग्रेस से कहीं ज्यादा भाजपा के शासन पर हमला करने के प्रयास में वर्ष 2011-14 तक यानि पिछले चार साल के आंकड़े पेश करके उनमें आधे मोदी सरकार के मत्थे मंढने की कौशिश की। मोदी सरकार पर निशाना साधते हुए शरद यादव ने सुप्रीम कोर्ट में मौजूदा जजों में किसी के भी दलित न होने पर राजग सरकार को दलित विरोधी करार दिया। इसी प्रकार कांग्रेस के अहमद पटेल ने भाजपा को दलित विरोधी करार देने का प्रयास किया। जबकि बसपा सुप्रीमो मायावती ने दलितों के मामले में कांग्रेस और भाजपा को राजनीति न करने की नसीहत देते हुए कठघरे में खड़ा करने का प्रयास किया। उनका कहना था कि भाजपा-कांग्रेस दलगत राजनीति से ऊपर उठकर समाज में दलितों पर बढ़ रहे अत्याचार को रोकने पर बल दिया। इस दौरान चर्चा में हिस्सा लेते हुए महाराष्ट्र से भाजपा के नवनिर्वाचित सदस्य विनय सहस्रबुद्धे ने भी आंकड़ो का सहारा लेकर विपक्ष की आंकड़ो पर जोरदार पलटवार किया, जिसमें बिहार, यूपी व ओडिशा अव्वल नजर आते देख खासकर शरद यादव और कांग्रेस के खेमे में बेचैनी नजर आने लगी।

गुरुवार, 21 जुलाई 2016

माया को दलित हितैषी तमगा जाने का डर!

कांग्रेस को पहले बोलने से बौखलाई बसपा सुप्रीमो
ओ.पी. पाल. नई दिल्ली।
राज्यसभा में गुजरात में दलित उत्पीड़न के मामले पर बसपा से पहले कांग्रेस को बोलने की अनुमति देने पर बसपा प्रमुख मायावती द्वारा संसद नियम की व्यवस्था पर सवाल उठाने के पीछे यूपी चुनाव की सियासत सामने आती नजर आ रही है। मसलन दलित हितैषी का तमगा लिये बसपा सुप्रीमो को अपने परंपरागत वोट बैंक में सेंधमारी का डर सताने लगा है।
उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव की तैयारियों में बसपा के अलावा भाजपा, कांग्रेस और सत्तारूढ़ दल सपा जातीय समीकरण की सियासी रणनीति बनाने में जुटे हुए है। भाजपा द्वारा यूपी ईकाई की बागडौर केशव मौर्य को दिये जाने से बसपा को पहले ही दलित वोट बैंक में सेंधमारी की आशंका घर कर रही है। दरअसल बसपा पर लगे दलित हितैषी तमगे को बचाये रखने के इरादे से ही संसद के मानसून सत्र के पहले ही दिन बसपा सुप्रीमो ने गुजरात में दलित उत्पीड़न का मुद्दा उच्च सदन में उठाया था। इसके बाद गुजरात में इस मुद्दे पर तूल पकड़ने का सियासी फायदा अन्य दल भी उठाने की तैयारी में जुट गये। मायावती सरकार के खिलाफ दलित मुद्दे पर कांग्रेस से पहले बोलने की अनुमति न मिलने पर बौखलाने पर राजनीतिकारों का मानना है कि दलितों, पिछड़ो और अन्य कमजोर तबकों के जातीय समीकरण साधने में जुटे अन्य दलों की रणनीति से बसपा को अपने दलित वोट बैंक खिसकने का डर सता रहा है।

संसदीय समितियों में बढ़ा भाजपा सांसदों का वर्चस्व!

कई सांसदों को मिली महत्वपूर्ण समितियों की जिम्मेदारी
ओ.पी. पाल. नई दिल्ली।
मोदी कैबिनेट के विस्तार के बाद संसदीय समितियों में भाजपा के सांसदों का वर्चस्व बढ़ गया है। इसका कारण नये मंत्रियों में शामिल सांसदों लोकसभा व राज्यसभा की संसदीय समितियों के अध्यक्ष और सदस्य पदों से अलग होना पड़ा है, जिनकी रिक्तियों को भरने के लिये अन्य सांसदों की नियुक्यिां की गई हैं।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कैबिनेट में मंत्री पद पाने वाले सांसदों को की संसदीय समितियों में जगह खाली हो गई, तो उनके स्थान पर भाजपा की सिफारिशों पर कई अन्य सासंदों की नियुक्ति कर दी है। इसमें नई दिल्ली से सांसद और वरिष्ठ वकील मीनाक्षी लेखी को एस.एस .अहलूवालिया की जगह लोकसभा की प्रिविलेज कमेटी का अध्यक्ष बनाया गया है। जबकि ओबीसी कमेटी में राजन गोहेन की जगह का मध्य प्रदेश की सतना लोकसभा सासंद गणेश सिंह को अध्यक्ष नियुक्त किया गया है। कर्नाटक की बेलगाम सीट से सांसद सुरेश आघाड़ी अब अर्जुन मेघवाल की जगह लोकसभा की आवास समिति के अध्यक्ष होंगे। पश्चिम अहमदाबाद से सांसद किरीट सोलंकी को एससी-एसटी कमेटी का अध्यक्ष बनाकर फगन सिंह कुलस्ते की जगह दी गई है। इसी प्रकार पीपी चौधरी की जगह बागपत से भाजपा सांसद सतपाल सिंह को नया अध्यक्ष नियुक्त कर दिया गया है।

बुधवार, 20 जुलाई 2016

माननीयों को भी चाहिए जल्द दोगुना वेतन!

सरकार की तैयारी के बावजूद संसद में उठाई मांग
ओ.पी. पाल. नई दिल्ली।
मोदी सरकार द्वारा केंद्रीय कर्मचारियों को सातवें वेतन आयोग की सिफारिशें स्वीकार करने के बाद संसद सदस्यों को भी दोगुना वेतन होने वाली संसदीय समिति की सिफारिश याद आने लगी, जिसमें वेतन और भत्तों में दोगुना इजाफा करने की सिफारिश की गई थी। इसके लिये सांसदों ने राज्यसभा में जोरदार तरीके से मामला उठाते हुए संसदीय समिति की सिफारिशों को जल्द लागू करने की मांग की गई है।
मोदी सरकार ने उसी तरह संसद के दोनों सदनों के सांसदों को वेतन में बढ़ोतरी की सौगात देने की तैयारी शुरू कर दी है, जिस प्रकार सातवें वेतन आयोग की सिफारिशें मंजूर करके देश के करीब एक करोड़ केंद्रीय कर्मचारियों को तोहफा दिया है। सरकार की इस कवायद के बीच ही मंगलवार को राज्यसभा में संसद सदस्यों ने वेतन एवं भत्तों को बढ़ाने संबन्धी लोकसभा सांसद योगी आदित्यनाथ की अगुवाई वाली संसदीय समिति की सिफारिशों को जल्द से जल्द लागू करने की मांग उठाकर अपनी मंशा जाहिर कर दी हैं। मसलन उच्च सदन की बैठक शुरू होते ही सपा सांसद नरेश अग्रवाल ने प्रधानमंत्री द्वारा संसदीय समिति की सिफारिशों पर विचार करने के लिए मंत्रियों के गठित एक समूह पर सवाल खड़े करते हुए कहा कि सरकार ने पिछले दिनों कहा था कि जब सरकारी कर्मचारियों के लिए सातवें वेतन आयोग की सिफारिशों को लागू होगी, तो तब रिपोर्ट की सिफारिशों पर अमल होगा। तो ऐसे में मंत्री समूह गठित करने की क्या जरूरत थी? इसलिये सरकार को चाहिए कि संसद सदस्यों के वेतन भत्तों संबंधी रिपोर्ट पर शीघ्र फैसला किया जाये। उन्होंने कहा कि संसद सदस्य कैबिनेट सचिव से ऊपर होते हैं इसलिए उन्हें शीर्ष नौकरशाहों को मिलने वाले वेतन से 1000 रुपए अधिक दिया जाना चाहिए। अग्रवाल ने संसदीय समिति की रिपोर्ट संसद में पेश करने की मांग की, तो सदन में अन्य दलों के सदस्यों ने भी इसका समर्थन किया। माकपा के सीताराम येचुरी ने सदन के समक्ष एक समुचित विधेयक लाने का आदेश देने के लिये पीठ से भी आग्रह किया।
क्या है संसदीय समिति की सिफारिशें
भाजपा सांसद योगी आदित्यनाथ की अध्यक्षता वाली संसदीय समिति ने सांसदों को हर महीने मिलने वाले 50 हजार रुपए वेतन को बढ़ाकर एक लाख रुपये यानि दोगुना करने की सिफारिश की है। इसी प्रकार अभी तक मिलने वाले संसदीय क्षेत्र भत्ता और कार्यालय भत्ते के 45-45 हजार रुपये, संसद सत्र के दौरान हर रोज दो हजार रुपए दैनिक भत्ते को भी बढ़ाने की सिफारिश की गई है। सांसदों की मांग है कि संविधान के अनुच्छेद 106 में कहा गया है कि संसद सदस्य सरकार के मोहताज नहीं हैं। इसलिये संसद सदस्यों का वेतन एक कैबिनेट सचिव से एक हजार रुपये अधिक होना चाहिए। यदि मोदी सरकार समिति की सिफारिशों पर मुहर लगा देती है तो सांसदों को प्रतिमाह एक लाख रुपये वेतन एवं भत्ते मिलाकर हर माह मौजूदा 1.90 लाख रुपये के बजाय 2.80 लाख रुपये मिलना शुरू हो जायेगा।

नौकरशाही पर शिकंजा कसने की तैयारी!

आचार नियम में नहीं कर पाएंगे सरकार की आलोचना
हरिभूमि ब्यूरो. नई दिल्ली।
केंद्र सरकार नौकरशाहों पर शिकंजा कसने के साथ उन्हें जल्द ही फेसबुक, ट्विटर और लिंक्डइन जैसे सोशल मीडिया पर खुलकर हिस्सेदारी करने का मौका देने जा रही है। आचार नियमों में बदलाव के बाद जारी मसौदे में अधिकारियों को किसी भी कीमत पर सरकार की आलोचना करने की इजाजत नहीं होगी।
केंद्रीय कार्मिक एवं प्रशिक्षण विभाग ने सरकारी अधिकारियों के लिये बने आॅल इंडिया सर्विस नियम-1968 यानि आचार नियमों में संशोधन के लिए एक नया मसौदा जारी किया है, जिसमें बदले नियमों के प्रावधान अधिकारियों को संचार माध्यम पर सरकार की आलोचना करने रोकता है। मसलन टेलीविजन, सोशल मीडिया या अन्य माध्यम पर नौकरशाह के लिए सरकार की आलोचना करना प्रतिबंधित है। प्रस्तावित नियम में लोक सेवकों को सस्ते मनोरंजक कार्यक्रमों में भाग लेने की छूट दी गई है। हालांकि उन्हें सरकार के सामने घरेलू उपकरणों, वाहनों या यातायात के किसी अन्य साधनों का ब्योरा देना होगा। इनकी कीमत दो माह के बेसिक वेतन से ज्यादा होगी तभी ब्यौरा सौंपना होगा। इन प्रावधानों के दायरे में सरकारी कर्मचारियों को किसी सार्वजनिक या अन्य संवाद माध्यम से सरकार की आलोचना करने की इजाजत नहीं होगी। सरकार का इस योजना का मकसद खासतौर पर टीवी, सोशल मीडिया या अन्य किसी संवाद एप्लीकेशन के जरिये अधिकारियों को रोकना हेै, जिसके लिये आचार नियमों में संशोधन करना जरूरी था।
इन कैडर पर लागू होगा नियम
मसौदे के प्रावधान में यह नियम अखिल भारतीय सेवा (आचरण) नियम 1968 में प्रस्तावित बदलाव का हिस्सा है। यह तीनों भारतीय सेवाओं, भारतीय प्रशासनिक सेवा (आइएएस), भारतीय पुलिस सेवा (आइपीएस) और भारतीय वन सेवा (आइएफओएस) पर लागू है। कार्मिक विभाग ने सरकार की आलोचना पर अंकुश लगाने के उद्देश्य से नियम का दायरा बढ़ा दिया है। सेवा से जुड़े व्यक्ति सरकार, उसकी नीति या कार्रवाई आलोचना नहीं कर सकते। केंद्र का राज्य से संबंध और विदेश से संबंध पर टिप्पणी नहीं करेंगे। सूत्रों के अनुसार सरकार ने यह कदम के बाद अखिल भारतीय सेवा नियमों की समीक्षा के लिए बनाई गई एक कमेटी के द्वारा कुछ संशोधन करने के दिए गए प्रस्ताव के बाद उठाया गया है।
 20July-2016

मंगलवार, 19 जुलाई 2016

सांसदों को वेतन की सौगात देने की तैयारी!

जल्द ही सांसदों के वेतन में होगी सौ फीसदी बढ़ोतरी
ओ.पी. पाल. नई दिल्ली।
मोदी सरकार ने सातवें वेतन आयोग की सिफारिशों को स्वीकार करके जहां करीब एक करोड़ केंद्रीय कर्मचारियों को तोहफा दिया है,वहीं अब सरकार संसद के दोनों सदनों के सांसदों को वेतन की सौगात देने की तैयारी कर रही है।
सूत्रों के अनुसार सांसदों के वेतन एवं भत्ते संबन्धी संसदीय समिति की सिफारिशों का अध्ययन करने के लिए गठित की गई सांसदों की एक अन्य समिति ने सांसदों के नये वेतनमान तय करने संबन्धी अपनी रिपोर्ट केंद्र सरकार को सौंप दी है। बताया जा रहा है कि संसद सदस्यों के प्रतिमाह बेसिक वेतन 50 हजार रुपये को दोगुना करने की संभावना है। समिति की इन सिफारिशों का कैबिनेट नोट भी तैयार किया जा चुका है, जिसे मंजूरी के लिये जल्द ही केंद्रीय कैबिनेट की बैठक में प्रस्तुत किया जायेगा, जिसमें मंत्रिमंडल समिति के साथ विचार विमर्श के बाद प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को अंतिम फैसला करना है। माना जा रहा है कि पीएम मोदी के इन सिफारिशों के सहमत होते ही संसद के दोनों सदनों के करीब करीब 800 सांसदों को प्रतिमाह मिलने वाले वेतन में 100 प्रतिशत की बढ़ोतरी हो जायेगी। यह भी जानकारी है कि यह वेतनमान मान गत एक अप्रैल 2016 से लागू किया जायेगा, जिसका सांसदों को एरियर भी मिलेगा। सूत्रों की माने तो सरकार कैबिनेट में इन सिफारिशों को मंजूर करके मौजूदा मानसून सत्र में ही इससे संबन्धित एक विधेयक संसद में पेश करके उसे पारित करायेगी।

सोनिया-राहुल ने नहीं ली जनता की सुध!

मोदी राज में नहीं पूछा संसद में एक भी सवाल
हरिभूमि ब्यूरो
. नई दिल्ली
सोलहवीं लोकसभा के गठन के बाद मोदी सरकार को निशाने पर लेती आ रही कांग्रेस की प्रमुख सोनिया गांधी और उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने शायद जनहित के मामलों को ज्यादा तरजीह नहीं दी। तभी तो मोदी शासनकाल के दौरान अब तक इन दोनों शीर्ष कांग्रेस नेताओं ने लोकसभा में एक भी सवाल नहीं पूछा है। 
संसद का मानसून सत्र की शुरुआत होते ही कांग्रेस को जनहित के मामलों की कितनी चिंता है उसकी बहस के बीच चौंकाने वाला तथ्य सामने आया है। मसलन सोलहवीं लोकसभा में कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी और उपाध्यक्ष राहुल गांधी सदन में मोदी सरकार के खिलाफ आरोप लगाने में तो आगे रहे और राहुल गांधी तो आसन के करीब जाकर हंगामा कर नारेबाजी करने वाले सांसदों में भी शामिल रहे। कांग्रेस नेतृत्व की अग्रिम पंक्ति में शामिल और जनता द्वारा रायबरेली से चुनी गई सोनिया गांधी तथा अमेठी से निर्वाचत सांसद राहुल गांधी ने इस दौरान अपने संसदीय क्षेत्र या जनता की समस्याओं को लोकसभा में उठाने का कोई प्रयास तक नहीं किया यानि एक भी सवाल सरकार से नहीं पूछा है। ऐसे में कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी और उनके बेटे राहुल गांधी की कार्यशैली पर कई सवाल खड़े होने से इंकार नहीं किया जा सकता।
गौरतलब है कि राहुल गांधी 2004 से लोकसभा के सदस्य हैं। जब वह पहली बार लोकसभा सदस्य बने थे, तो उन्होंने उस दौरान कुछ सवाल पूछे थे, लेकिन 2009 के बाद उन्होंने प्रश्नकाल में सवाल पूछना करीब-करीब बंद कर दिया। मौजूदा लोकसभा के दो साल गुजर हैं, लेकिन अब तक एक सवाल भी नहीं पूछा है।

सोमवार, 18 जुलाई 2016

लंबित विधेयकों पास कराना होगी चुनौती!

भारी-भरकम कामकाज के साथ संसद में सरकार
ओ.पी. पाल. नई दिल्ली।
संसद के मानसून सत्र में केंद्र सरकार ने महत्वपूर्ण विधेयकों समेत भारी भरकम एजेंडे के साथ आ रही है, लेकिन मात्र बीस बैठकों में सरकार के लिये महत्वपूर्ण कामकाज का निपटान करना भी किसी चुनौती से कम नहीं होगा। इसका कारण है कि इस दौरान विपक्ष के मुद्दों पर भी चर्चा कराने का भरोसा सरकार दे चुकी है।
सोमवार से शुरू हो रहे संसद के मानसून सत्र के दौरान 12 अगस्त तक 20 बैठकें तय की गई है। सरकार ने इस सत्र के लिये जीएसटी जैसे महत्वपूर्ण लंबित विधेयकों समेत दो दर्जन से भी ज्यादा विधेयकों को एजेंडे में शामिल किया है। संसदीय कार्य मंत्रालय के अनुसार मानसून सत्र के दौरान जहां तक राज्यसभा में लंबित जीएसटी विधेयक का सवाल है उसके लिए सभी राज्य सरकारों और कांग्रेस समेत अन्य विपक्षी दलों के बीच लगभग सहमति बन जाने के बाद सरकार पूरी तरह इसे पारित कराने के प्रति आश्वस्त है। इसके बावजूद सरकार का प्रयास है कि इन लंबित विधेयकों को पारित कराना किसी चुनौती से कम नहीं होगा।
इन अध्यादेशों को विधेयक में बदलना
केंद्र सरकार के सामने इस सत्र के दौरान तीसरी बार लागू शत्रु संपत्ति (संशोधन और विधिमान्यकरण) अध्यादेश, भारतीय चिकित्सा परिषद (संशोधन) अध्यादेश तथा दंत चिकित्सक (संशोधन) अध्यादेश को विधेयकों में बदलने की भी चुनौती है। इसी इरादे से सरकार ने बाल श्रम (प्रतिबंध और नियमन) संशोधन विधेयक के साथ शत्रु संपत्ति (संशोधन और विधिमान्यकरण) तीसरा अध्यादेश को राज्यसभा की कार्यसूची में पहले ही दिन शामिल किया है।

जीएसटी पर कांग्रेस समेत विपक्ष के तेवर नरम

संसद का मानसून सत्र आज से
सर्वदलीय बैठक में विपक्षी दलों ने दिए सहमति के संकेत
ओ.पी. पाल. नई दिल्ली।
सोमवार से शुरू हो रहे संसद के मानसून सत्र में वस्तु एवं सेवाकर यानि जीएसटी विधेयक पारित कराने के लिए कांग्रेस समेत विपक्षी दलों ने समर्थन देने के संकेत दिये हैं। वहीं कई मुद्दों पर लामबंद विपक्षी दल संसद में सरकार को घेरने की तैयारी में है, हालांकि सरकार विपक्ष को माकूल जवाब देने की रणनीति बनाकर सदन में आयेगी।
संसदीय कार्य मंत्री अनंत कुमार द्वारा रविवार को बुलाई गई सर्वदलीय बैठक में जीएसटी जैसे कुछ महत्वपूर्ण विधेयकों पर मोदी सरकार को कामयाबी मिलती नजर आ रही है, जिसके लिये कांग्रेस समेत विपक्षी दलों ने समर्थन करने के संकेत दिये हैं। इस बैठक में पीएम नरेन्द्र मोदी और कैबिनेट मंत्रियों के अलावा कांग्रेस समेत कई दलों के प्रमुख नेताओं ने संसद में लंबित विधेयकों को लेकर चर्चा की, जिसमें सरकार ने खासकर जीएसटी बिल पर विपक्षी दलों से सहयोग करने की अपील की। जीएसटी के रूप में विवादास्पद संविधान (122वां संशोधन) विधेयक लोकसभा में पारित होने के बाद पिछले एक साल से उच्च सदन में कांग्रेस के विरोध के कारण अटका हुआ है। सर्वदलीय बैठक के बाद संसदीय कार्यमंत्री अनंत कुमार ने बताया कि इस दौरान सभी राजनीतिक दलों ने अपनी-अपनी बात रखी है और संसद में सरकार को सकारात्मक सहयोग करने का भरोसा दिया। केंद्रीय मंत्री एम. वेंकेया नायडू ने कहा कि अधिकांश राज्य जीएसटी बिल के पक्ष में हैं और उम्मीद है कि यह पारित हो जाएगा। सरकार चाहती है कि राष्ट्रहित में जीएसटी को आम सहमति से पारित किया जाना चाहिए।
जीएसटी पर नरम  कांग्रेस 
 कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और राज्यसभा में विपक्ष के नेता गुलाम नबी आजाद ने कहा कि विधेयकों को पारित करने में कांग्रेस बाधक नहीं बनेगी और उनकी पार्टी राष्ट्रहित और जनहित तथा देश के विकास को देखते हुए दोनों सदनों में विधेयकों का समर्थन करेगी। आजाद ने कहा कि जम्मू-कश्मीर के हालात बेहद गंभीर हैं, इस पर भी ससंद में चर्चा होनी चाहिए और सरकार को जवाबदेह होना चाहिए। सीपीएम नेता सीताराम येचुरी ने कहा कि हम पिछले दो सालों से जीएसटी विधेयक पर चर्चा के लिए सरकार से सर्वदलीय बैठक बुलाने और सहमति के लिए हमारी चिंता सुनने की अपील कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि जीएसटी विधेयक की जहां तक बात है, यह ऐसा मामला नहीं है जो सिर्फ भाजपा और कांग्रेस के बीच तय होगा। बैठक के बाद समाजवादी पार्टी के नेता नरेश अग्रवाल ने भी बिल पर सरकार का समर्थन करने की बात कही है।

राग दरबार: कांग्रेस का सियासी दांव या जोखिम....

यूपी मिशन पर गंभीर कांग्रेस
देश की सियासत करने वाले ही कहते आ रहे हैं कि केंद्र की सत्ता का रास्ता उत्तर प्रदेश से होकर जाता है, ऐसे में अगले साल होने वाले यूपी विधानसभा चुनाव की तैयारियों के लिये सभी राजनीतिक दल अपनी रणनीतियों का ताना-बाना बुनने में व्यस्त हैं। कांग्रेस भी अपनी खोई हुई सियासी जमीन की वापसी करने की जुगत में है, जिसने कई प्रयोग करने के बाद मोदी को केंद्र की सत्ता तक पहुंचाने की रणनीति बनाने वाले प्रशांत किशोर को हायर किया तो उसकी रणनीतियों का ही शायद यह नतीजा है कि कांग्रेस यूपी मिशन को लेकर कुछ गंभीर और सकारात्मक रणनीति तक पहुंचती नजर आ रही है। यूपी की सत्ता किसके हाथ लगेगी, लेकिन कांग्रेस की सियासी रणनीति पटरी पर जरूर दिखी, जिसमें उत्तर प्रदेश जैसे सूबे कांग्रेस ने राज बब्बर को कमान सौंप कर लंबे अंतराल के बाद एक सही कदम उठाया है। पश्चिमी उत्तर प्रदेश की सियासत में इमरान मसूद को वरिष्ठ उपाध्याय बनाकर पार्टी को एक नई और संभावनाशील ऊर्जा देने का प्रयास किया। राजनीतिकारों की माने तो राजबब्बर उस राजनीतिक परंपरा के अंतिम प्रतिनिधि कहे जा सकते हैं, जिसमें नेता समाजवादी आंदोलन से निकल कर कांग्रेस के महासमुद्र में डुबकी लगाते रहे हैं। वह यूपी कांग्रेस की गुटबंदी से दूर हैं, लेकिन यहां की सियासत को बैहतर समझते हैं। हां एक बात और वह मुलायम के दांव-पेंच से भी वाकिफ हैं। राजबब्बर के साथ इमरान मसूद की नियुक्ति से कांग्रेस ने पश्चिमी यूपी में पूर्व मंत्री सईदुज्जमा जैसे पिटे मोहरे की जगह की मुस्लिम चेहरे के रूप में भरपाई माना जा रहा है। सियासी गलियारों में चर्चा तो ऐसी ही है कि कुछ महीने पूर्व हुए उपचुनाव में देवबंद सीट पर माबिया अली की जीत को इमरान की राजनीतिक पकड़ का कौशल मंत्र मानते हुए मुस्लिम वोटबैंक खासकर युवाओं को साधा जा सकता है। मसलन कांग्रेस ने यूपी के सियासी दांव में दोनों नेताओं का चयन करके पार्टी नेताओं को एक सकारात्मक सियासत का संदेश दिया है, लेकिन इसका मतलब यह भी नहीं कि इस दांव से कांग्रेस मिशन यूपी की नैया पार कर पाएगी या नहीं..। तात्पर्य साफ है कि प्रतिद्वंद्वी सियासी दलों को भी रणनीतियों में बदलाव करने का मौका मिला है, जिससे कहा जा सकता है कि यह कांग्रेस का सियासी दांव है या फिर जोखिम भरा कदम..।

शनिवार, 16 जुलाई 2016

जीएसटी पर कांग्रेस का भी साथ लेगी मोदी सरकार!

मानसून सत्र के एजेंडे में पहली प्राथमिकता में जीएसटी
जेटली व अनंत कुमार ने शुरू किया मुलाकात का दौर
ओ.पी. पाल. नई दिल्ली।
सोमवार से शुरू हो रहे संसद के मानसून सत्र में वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) विधेयक सरकार के एजेंडे में सर्वोच्च प्राथमिकता में हैं। सरकार इस विधेयक को सर्वसम्मिति से पारित कराना चाहती है। यही कारण है कि मोदी सरकार इस मुद्दे पर कांगे्रेस को अलग-थलग करने के पक्ष में नहीं है। इसी इरादे से सरकार ने आम सहमति बनाने के लिये कांग्रेस से बातचीत का दौर शुरू कर दिया है।
राज्यसभा में सत्तारूढ़ राजग सबसे बड़ा गठबंधन होने और अन्य कई दलों के समर्थन के ऐलान से मोदी सरकार 18 जुलाई यानि आगामी सोमवार से शुरू हो रहे संसद के मानसून सत्र में जीएसटी विधेयक को पारित कराने के प्रति आश्वस्त है, लेकिन सरकार कांग्रेस के साथ भी आमसहमति बनाने के पक्ष में है। इसी इरादे के तहत वित्त मंत्री अरुण जेटली और नये संसदीय कार्य मंत्री अनंत कुमार जीएसटी कानून में कांग्रेस की ओर से सुझाए गये बदलाव को लेकर उच्च सदन में प्रतिपक्ष नेता गुलाम नबी आजाद और कांग्रेस के उपनेता आनंद शर्मा के साथ मिलकर काम कर रहे हैं। इन मुद्दों पर शुक्रवार को दोनों मंत्रियों की कांग्रेस के इन शीर्ष नेताओं के साथ मुलाकात भी हुई। गौरतलब है कि लोकसभा में जीएसटी प्रस्तावों को पहले ही मंजूरी मिल चुकी है, लेकिन प्रमुख विपक्षी दल कांग्रेस के विरोध के कारण अप्रत्यक्ष करों के क्षेत्र में महत्वपूर्ण सुधार लाने वाला यह महत्वपूर्ण विधेयक राज्य सभा में अटका हुआ है। अब सोमवार से शुरू हो रहे संसद के मानसून सत्र में जीएसटी विधेयक को पारित कराने के इरादे से मोदी सरकार ने सभी रणनीतियों को सकारात्मक नजरिये से अपनाने का निर्णय लिया है, जिसमें वह सभी दलों के अलावा राज्यों की सरकारों को भी आम सहमति के लिए साधने की तैयारी में है। शनिवार को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा अंतर-राज्यीय परिषद की बैठक में दो दर्जन मुख्यमंत्रियों के साथ बैठक करने का मकसद भी इसी रणनीति का हिस्सा माना जा रहा है। बहरहाल केंद्र सरकार अगले वित्तीय वर्ष से देश में जीएसटी कानून लागू करने की तैयारी में है। यह भी तय है कि देश में जीएसटी के अमल में आने के बाद एक समान कर व्यवस्था लागू हो जायेगी और इसमें कई तरह के अप्रत्यक्ष कर समाहित हो जायेंगे। वही देश की जीडीपी में 1 से 2 प्रतिशत वृद्धि की उम्मीद से भी इंकार नही किया जा सकता।
क्या चाहती है कांग्रेस
कांग्रेस जीएसटी की दर की अधिकतम सीमा 20 प्रतिशत तय करने की सरकार से मांग कर रही है, जिसे संविधान संशोधन में शामिल कराना चाहती है। जबकि सरकार का तर्क है कि ऐसा करने पर दरों में बदलाव करने हेतु हर बार संविधान में संशोधन करना पड़ेगा। अब कांग्रेस ने कर की दर को जीएसटी से संबंधित सहायक दस्तावेजों में दर्ज करवाने की सहमति के संकेत दिए हैं। कांग्रेस वस्तुओं को राज्यों की सीमा से आने-जाने पर देने वाले प्रस्तावित एक प्रतिशत अतिरिक्त कर को भी हटवाना चाहती है। जबकि तीसरी बड़ी मांग में वित्तमंत्री से उस परिषद के अधिकारों को बढ़ावाना चाहती है, जो राज्यों के बीच राजस्व बंटवारे के विवादों को सुलझाने के लिए बनाई जाएगी।

विदेशों में प्रताड़ित विवाहिताओं की सुध लेगी सरकार!

पुराना विदेशी विवाह कानून बनेगा मदद का सहारा
ओ.पी. पाल. नई दिल्ली।
भारत सरकार अब प्रवासी भारतीयों की मदद करने की योजनाओं के तहत विदेशों में ब्याही ऐसी भारतीय महिलाओं की भी सुध लेगी,जो प्रवासी विवाहों में उत्पीड़न का दर्द झेलने को मजबूर हैं।
भारत सरकार के प्रवासी मामलों के मंत्रालय की भारतीय प्रवासियों के लिए अनेक योजनाएं पटरी पर उतारी हुई हैं, जिसमें विदेशों में परेशानियों से घिरे प्रवासी भारतीयों को कानूनी मदद देना भी शामिल है। ऐसे में प्रवासी भारतीयों द्वारा स्वदेश में विवाह रचाने के बाद उनका विदेशों में दहेज या अन्य उत्पीड़न करने के मामलों को भी केंद्र की सरकार ने संज्ञान में लिया है। ऐसे मामलों में विदेशों में ब्याही भारतीय महिलाओं की सुरक्षा और उनकी मदद करने का मामला राज्यसभा की याचिका समिति में भी जांच के दायरे में है। ऐसे में केंद्रीय विधि एवं न्याय मंत्रालय ने समिति के संज्ञान में विदेशी विवाह कानून-1969 की जानकारी दी, जिसमें विदेशों में ब्याही गईं महिलाओं की सहायता यानि जीवनसाथी के लिए ‘वैवाहिक राहत' का भी प्रावधान है। विदेश एवं प्रवासी मामलों की मंत्री सुषमा स्वराज ने ऐसे मामलों में मानक संचालन प्रक्रिया यानि एसओपी बनाकर इसे विदेशों में विभिन्न भारतीय दूतावासों के साथ साझा करने का फैसला किया है, ताकि इस कानून के जरिये ऐसी विवाहिताओं की मदद की जा सके।

शुक्रवार, 15 जुलाई 2016

इंदिरा के नाम है राष्ट्रपति शासन लगाने का रिकार्ड !

देश में 124 बार की संस्तुति में इंदिरा ने की थी 50 संस्तुति
ओ.पी. पाल. नई दिल्ली।
सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद भले ही अरुणाचल और उत्तराखंड में राष्ट्रपति शासन हटने से मोदी सरकार विपक्ष के निशाने पर आई हो। इसके बावजूद देश में अब तक विभिन्न राज्यों में किसी न किसी कारण 124 बार राष्ट्रपति शासन लागू किया गया है, जिसमें कांग्रेस शासन में 96 बार अनुशंसा की गई। पूर्व प्रधानमंत्री स्व. श्रीमती इंदिरागांधी द्वारा सबसे जयादा 50 बार राष्ट्रपति शासन की अनुशंसा करने का रिकार्ड आज भी कायम है।
केंद्र में मोदी सरकार द्वारा इन दो साल के कार्यकाल के दौरान दिल्ली, अरुणाचल प्रदेश और उत्तराखंड राज्यों में राष्ट्रपति शासन लागू करने की संस्तुति की गई और तीनों राज्यों में इस फैसले के खिलाफ यह मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा। इसमें हालांकि उत्तराखंड के बाद अरुणाचल प्रदेश में भी राष्ट्रपति शासन लगाने की मोदी सरकार की अनुशंसाओं को झटका माना जा रहा है। जहां तक राष्ट्रपति शासन का सामना करने वाले राज्यों का मामला है उसमें आजादी के बाद अब तक राज्यों में 124 बार राष्ट्रपति शासन लगाने की नौबत आई है। जहां तक कांग्रेस शासन में राष्ट्रपति शासन की अनुशंसा करने का सवाल है उसमें 96 बार केंद्र की सत्ता में रहते हुए कांग्रेस के प्रधानमंत्रियों की अनुशंसा के बाद विभिन्न राज्यों में राष्ट्रपति शासन लागू हुआ। इसमें पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने दो बार के शासन में बारी बारी से 35 और 15 यानि पूरे 50 बार राष्ट्रपति शासन लगाने की अनुशंसा का रिकार्ड बनाया हुआ है। आज वही कांग्रेस मोदी सरकार पर राष्ट्रपति शासन लगाकर भाजपा के लिये राज्यों में सत्ता हड़पने का आरोप लगा रही है।

गुरुवार, 14 जुलाई 2016

वाराणसी-हल्दिया जल परिवहन योजना पर ग्रहण!

कछुआ सेंचुरी जोन बना ट्रायल में बाधक
ओ.पी. पाल. नई दिल्ली।
वाराणसी से हल्दिया तक जल परिवहन का ट्रायल की सभी तैयारियां पूरी होने के बावजूद मोदी सरकार की महत्वकांक्षी ‘जल परिवहन योजना’ पर संकट के बादल छा गये हैं। मसलन इस ट्रायल को कछुओं ने रोक दिया यानि वाराणसी के राजघाट से लेकर अस्सी घाट तक बने कछुआ सेंचुरी जोन होने के कारण वन विभाग ने माल वाहक जल पोतों के जल में उतारने की मंजूरी नहीं दी है।
सूत्रों के अनुसार प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की इस महत्वाकांक्षी जल परिवहन परियोजना को केंद्रीय जहाजरानी मंत्री नितिन गड़करी ने इसी माह वाराणसी से हल्दिया तक शुरू करने का ऐलान किया था, जिसके ट्रायल के लिये वाराणसी से हल्दिया तक सभी तैयारियां पूरी हो गई है। इसके लिए हल्दिया तक जाने वाले मालवाहक जल पोत वाराणसी के खिड़किया घाट के किनारे पर खड़े हैं और जल में उतरने की बाट जोह रहे है। सूत्रों के अनुसार मंजूरी न देने के कारण में वन विभाग का तर्क है कि भारी जहाज जाने से कछुओं को नुकसान होगा। वन विभाग की मंजूरी मिलने पर ही माल वाहक पोतों का परिसंचालन हो सकता है, इसके लिये यह गारंटी देनी होगी कि माल वाहक जहाजों के जाने से कछुओं को कोई नुकसान नहीं होगा। गौरतलब है कि वाराणसी के राजघाट से लेकर अस्सी घाट तक बने कछुआ सेंचुरी जोन की उपयोगिता को लेकर कई सवाल उठते रहे हैं और इसे खत्म करने की मांग भी होती रही है, लेकिन अभी तक कोई नतीजा नहीं निकला। इसी वजह से जलमार्ग परियोजना में रूकावटें आ रही हैं।

सोमवार, 11 जुलाई 2016

‘ईस्टर्न पेरिफेरल एक्सप्रेस-वे’ पर मंडराया संकट!

बाहर आया यूपी व हरियाणा के किसानों के विवाद का जिन्न
ओ.पी. पाल. नई दिल्ली।
राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली को इस्टर्न पेरीफेरल एक्सप्रेस-वे और वेस्टर्न पेरीफेरल एक्सप्रेस-वे यानि ‘गोल्डन नेकलस’ के बीच लाकर यातायात की समस्या से राहत देने वाली मोदी सरकार की मेगा सड़क परियोजना पर संकट के बादल मंडराने लगे हैं। मसलन ईस्टर्न पेरीफेरल एक्सप्रेस-वे का निर्माण कार्य यूपी और हरियाणा के किसानों के पुराने विवाद में फंसता नजर आ रहा है।
केंद्रीय सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्रालय के अधिकारियों ने इस्टर्न पेरीफेरल एक्सप्रेस-वे के निर्माण कार्य में आ रही बाधा को गंभीरता से लिया है, जहां किसान मुआवजे के विवाद पर काम को बाधित कर रहे हैं। सूत्रों के अनुसार उत्तर प्रदेश और हरियाणा के किसानों में मुआवजे को लेकर फिर से विवाद शुरू हो गया है। नौबत यहां तक आ चुकी है कि किसान पहले की तरह फिर से इस एक्सप्रेस-वे का निर्माण कार्य रूकवाने के लिए पूरी तरह आक्रोशित हैं। स्वयं प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा पिछले साल नवंबर में शुरू की गई केंद्र सरकार की 7558 करोड़ रुपये की लागत वाली इस सड़क परियोयजना के तहत 135 किमी लंबे ईस्टर्न एक्सप्रेस-वे का निर्माण हरियाणा के पलवल से शुरू होकर ग्रेटर नोएडा, गाजियाबाद व बागपत जिले से गुजरते हुए फिर हरियाणा के सोनीपत जिले के कुंडली गांव तक होना है, जहां से इसे हरियाणा में पहले से ही यातायात के लिये शुरू हो चुके वेस्टर्न पेरीफेरल एक्सप्रेस-वे से जोड़ा जाना है। वेस्टर्न पेरीफेरल एक्सप्रेस-वे कुंडली से पलवल तक जाता है।
क्या है किसानों को विवाद
दरअसल इस एक्सप्रेस-वे के तहत पलवल से ग्रेटर नोएडा और सोनीपत व बागपत जिले के बीच यमुना बह रही है, जिसे यूपी व हरियाणा की सीमाएं भी माना जाता है। यूपी व हरियाणा के किसानों का असली विवाद इसी यमुना के आस पास की लगती जमीन को लेकर पिछले कई अरसे से चला आ रहा है। सूत्रों के अनुसार बरसात में बाढ़ और पानी के उतार-चढ़ाव के कारण यमुना अपना किनारा ऐसे बदलती आ रही है कि वह कभी हरियाणा की ओर बहने गलती है तो कभी यूपी की ओर से बहने लगती है। बस यहीं से दोनों राज्यों के किसानों के बीच सीमा विवाद को लेकर हिंसक रूप भी शुरू हो जाता है। केंद्र सरकार की ईस्टर्न पेरिफेरल एक्सप्रेस-वे नाम की इस सड़क परियोजना के बाद अधिगृहित किसानों की जमीन के बांटे गए मुआवजे ने इस तकरार को और बढ़ा दिया है। मसलन हरियाणा और यूपी के किसानों का ही कहना है कि जिस जमीन पर वे सालों से खेती करते रहे हैं उसका मुआवजा एक-दूसरे राज्य के किसानों ने ले लिया है। इसी विवाद के कारण इस एक्सप्रेस-वे के निर्माण में बार-बार रूकावटें आ रही हैं। यही नहीं इस विवाद में दोनों राज्यों के किसान जमीनों के कागजात होने का दावा तक करते नहीं थक रहे हैं।

जल्द कानूनी दायरे में होगा ‘नमामि गंगे’ मिशन

अधिनियम का मसौदा तैयार करेगी विशेष समिति
केंद्र सरकार ने गठित की दो समितियां
हरिभूमि ब्यूरो. नई दिल्ली।
केंद्र सरकार ने महत्वाकांक्षी नमामि गंगे परियोजना को तेजी से आगे बढ़ाने के लिये कानूनी ढांचा तैयार करने की कवायद तेज कर दी है। सरकार ने कानूनी मसौदा तैयार करने के लिये जस्टिस गिरधर मालवीय की अध्यक्षता और डी-सिलटिंग के लिए विशेषज्ञ माधव चिताले की अध्यक्षता में एक-एक समिति का गठन करने का निर्णय लिया है।
केंद्रीय जल संसाधन मंत्रालय के अनुसार सरकार ने गंगा को अविरल और निर्मल बनाने की पीएम नरेन्द्र मोदी की महत्वाकांक्षी ‘नमामि गंगे’ परियोजना को राज्यों के परामर्श से गंगा अधिनियम यानि एक ठोस कानून बनाने हेतु पिछले सप्ताह ही राष्ट्रीय गंगा नदी प्राधिकरण की बैठक के दौरान राज्यों के परामर्श से एक समग्र गंगा अधिनियम बनाने पर सहमति बनी थी। केंद्र व राज्यों की इस सहमति के आधार पर मंत्रालय ने पूर्व न्यायाधीश न्यायमूर्ति गिरधर मालवीय के नेतृत्व में गंगा अधिनियम का प्रारूप तैयार करने के लिये निर्णय लिया है। इसी कानूनी के जरिये भविष्य में गंगा संरक्षण के कार्य को कार्यान्वित किया जायेगा। वहीं नदियों के डी-सिलटिंग हेतु अंतर्राष्ट्रीय स्तर के विशेषज्ञ माधव चिताले की अध्यक्षता में एक समिति का गठन करने का भी फैसला लिया गया है, जिसमें जल संसाधन सचिव और पर्यावरण एवं वन मंत्रालय सचिव सदस्य के रूप में शामिल होंगे। यह समिति उत्तराखंड के भीमगोड़ा से लेकर पश्चिमी बंगाल के फरक्का तक डी-सिलटिंग के कार्य से संबंधित दिशानिर्देश एवं अन्य संस्तुतियां सरकार को देगी।वहीं विश्व की उत्तम जल शोधन प्रौद्योगिकी के आधार पर गैर चिन्हित नालों की सफाई के लिये छोटी छोटी परियोजनायें शुरू की जायेंगी।