सोमवार, 18 जुलाई 2016

राग दरबार: कांग्रेस का सियासी दांव या जोखिम....

यूपी मिशन पर गंभीर कांग्रेस
देश की सियासत करने वाले ही कहते आ रहे हैं कि केंद्र की सत्ता का रास्ता उत्तर प्रदेश से होकर जाता है, ऐसे में अगले साल होने वाले यूपी विधानसभा चुनाव की तैयारियों के लिये सभी राजनीतिक दल अपनी रणनीतियों का ताना-बाना बुनने में व्यस्त हैं। कांग्रेस भी अपनी खोई हुई सियासी जमीन की वापसी करने की जुगत में है, जिसने कई प्रयोग करने के बाद मोदी को केंद्र की सत्ता तक पहुंचाने की रणनीति बनाने वाले प्रशांत किशोर को हायर किया तो उसकी रणनीतियों का ही शायद यह नतीजा है कि कांग्रेस यूपी मिशन को लेकर कुछ गंभीर और सकारात्मक रणनीति तक पहुंचती नजर आ रही है। यूपी की सत्ता किसके हाथ लगेगी, लेकिन कांग्रेस की सियासी रणनीति पटरी पर जरूर दिखी, जिसमें उत्तर प्रदेश जैसे सूबे कांग्रेस ने राज बब्बर को कमान सौंप कर लंबे अंतराल के बाद एक सही कदम उठाया है। पश्चिमी उत्तर प्रदेश की सियासत में इमरान मसूद को वरिष्ठ उपाध्याय बनाकर पार्टी को एक नई और संभावनाशील ऊर्जा देने का प्रयास किया। राजनीतिकारों की माने तो राजबब्बर उस राजनीतिक परंपरा के अंतिम प्रतिनिधि कहे जा सकते हैं, जिसमें नेता समाजवादी आंदोलन से निकल कर कांग्रेस के महासमुद्र में डुबकी लगाते रहे हैं। वह यूपी कांग्रेस की गुटबंदी से दूर हैं, लेकिन यहां की सियासत को बैहतर समझते हैं। हां एक बात और वह मुलायम के दांव-पेंच से भी वाकिफ हैं। राजबब्बर के साथ इमरान मसूद की नियुक्ति से कांग्रेस ने पश्चिमी यूपी में पूर्व मंत्री सईदुज्जमा जैसे पिटे मोहरे की जगह की मुस्लिम चेहरे के रूप में भरपाई माना जा रहा है। सियासी गलियारों में चर्चा तो ऐसी ही है कि कुछ महीने पूर्व हुए उपचुनाव में देवबंद सीट पर माबिया अली की जीत को इमरान की राजनीतिक पकड़ का कौशल मंत्र मानते हुए मुस्लिम वोटबैंक खासकर युवाओं को साधा जा सकता है। मसलन कांग्रेस ने यूपी के सियासी दांव में दोनों नेताओं का चयन करके पार्टी नेताओं को एक सकारात्मक सियासत का संदेश दिया है, लेकिन इसका मतलब यह भी नहीं कि इस दांव से कांग्रेस मिशन यूपी की नैया पार कर पाएगी या नहीं..। तात्पर्य साफ है कि प्रतिद्वंद्वी सियासी दलों को भी रणनीतियों में बदलाव करने का मौका मिला है, जिससे कहा जा सकता है कि यह कांग्रेस का सियासी दांव है या फिर जोखिम भरा कदम..।
जब पीआईबी पर हुआ ईरानी को ऐतबार
भारत सरकार का कोई भी मंत्रालय हो। वहां के प्रचार-प्रसार का जिम्मा तो पत्र सूचना कार्यालय (पीआईबी) के कंधों पर ही होता है। ऐसे में विभागीय मंत्री और पीआईबी के सूचना अधिकारी के बीच अच्छा तालमेल होना बेहद जरूरी होता है। लेकिन अब तक अगर पीआईबी के प्रचार की स्थिति देखी जाए तो बाकी मंत्रालयों को छोड़कर केवल मानव संसाधन विकास मंत्रालय ही एक ऐसा मंत्रालय था जहां पीआईबी के अधिकारी लंबे समय तक टिकते ही नहीं थे। थोड़े ही समय में कुछ न कुछ कारणों की वजह से उन्हें विभाग से चलता कर दिया जाता था। इसके पीछे पूर्व विभागीय मंत्री स्मृति ईरानी और पीआईबी के बीच सामंजस्य की कमी कारण बनकर उभर रही थी। लेकिन इस-बीच एक ऐसे शख्स का भी प्रार्दुभाव हुआ जिन्होंने न केवल लंबे समय तक मंत्रालय के प्रचार की सफल कमान संभाली। वो हैं मंत्रालय के प्रवक्ता धनश्याम गोयल जिन्होंने पूर्व एचआरडी मंत्री के साथ सामंजस्य की वो मिसाल पेश कर दी जिसकी पीआईबी में शायद ही किसी को उम्मीद हो। आज स्थिति यह है कि उक्त अधिकारी को ईरानी ने खुद पहल करके सूचना एवं प्रसारण मंत्री वैंकेया नायडु से फोन करके अपने नए विभाग यानि कपड़ा मंत्रालय की पब्लिसिटी की जिम्मेदारी संभालने के लिए नियुक्त करने को कहा है। खैर जो भी हो आखिरकार स्मृति ईरानी को पीआईबी पर ऐतबार तो हो ही गया।
पब्लिक डिकोरम
मौका था सुप्रीम कोर्ट द्वारा अरूणांचल की कांग्रेसी सरकार की पुन: बहाली का। कांग्रेस मुख्यालय पर पूर्व मंत्री कपिल सिब्बल निर्णय के बारे में पत्रकारों को बता कर उनसे अनौपचारिक वार्ता कर रहे थे। तभी उन्हें सूचना दी गई कि अरूणांचल के बहाल हुए मुख्यमंत्री नबम तुकी मुख्यालय पर हैं तथा पत्रकारों के सामने सिब्बल से मिलने आना चाहते हैं। सिब्बल ने उन्हें मना करवा दिया। जानते हैं क्यों? सिब्बल का मानना है कि पब्लिक डिकोरम भी कुछ होता है। इसलिए बहाल मुख्यमंत्री को प्रेस के सामने एकाएक जश्न मनाने के अंदाज में नहीं आना चाहिए।
17July-2016

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