रविवार, 10 जुलाई 2016

राग दरबार:- गांधीगिरी के बाद ऊर्जा गिरी...

सहजता की ताकत ऊर्जा गिरी..
देश को आजाद कराने के लिये राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के सिद्धांत पर अहिंसा से दूर रहने के लिये भारत जैसे लोकतांत्रिक देश में पिछले कुछ अरसे से दादागिरी पर हावी होने के फार्मूले के तहत गांधी गिरी का प्रचलन देखने को मिल रहा है। मसलन किसी मुश्किल समस्या के समाधान के लिये गांधी गिरी शब्द की व्याख्या की गई है इसका तात्पर्य यह भी माना जा सकता है कि जोर जबरदस्ती के बजाय प्यार और सहजता से काम को अंजाम देना। ऐसे में मोदी सरकार में गांधी गिरी की तर्ज पर एक शब्द की व्याख्या और जन्म लेती दिखने लगी है, जो शायद लोगों को रास भी आयेगी? यह कोई बड़ी समस्या के समाधान के लिये नहीं, बल्कि देश में उन बिजली उपभोक्ताओं की सोच बदलने के लिये है। मोदी सरकार ने देश को बिजली संकट से उबारने के लिये ही नहीं, बल्कि बिजली क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनाने के लिए उत्पादन बढ़ाने का लक्ष्य तय किया है। देश में बिजली चोरी की समस्या से निपटने के लिए भले ही कानूनी जाल सख्त हो, लेकिन इसके विपरीत देश के बिजली मंत्री पीयूष गोयल ने राज्य सरकारों को बिजली चोरी की समस्या से कानून के बजाए ऊर्जा गिरी फार्मूले का इस्तेमाल करने का प्रस्ताव भेजा है। राजनीतिक गलियारों में गोयल के इस प्रस्ताव के बारे में मानना है कि गांधी गिरी के साथ ऊर्जा गिरी से बिजली उपभोक्तओं की सोच में बदलाव लाना आसान है, जिसमें चोरी पकड़े जाने पर कानूनी कार्रवाई के बजाये बिजली चोरों को शर्मिदा किया जाये तो शायद बिजली चोरी पर अंकुश लगना आसान होगा। हालांकि देश में पुरानी कहावत में कहें तो जब सीधी उंगली से घी न निकले तो उंगली टेढी कर लेनी चाहिए, लेकिन यह क्या..ऊर्जा गिरी तो इसका एकदम उलटा हुआ ना, पर सहजता की ही ताकत मानी जाएगी ना ऊर्जा गिरी..।
गोयल के फिरे दिन
दिल्ली की राजनीति में लंबे अरसे से वनवास भोग रहे विजय गोयल के दिन आखिरकार फिर ही गये। मोदी कैबिनेट में उनको जगह मिल जायेगी ये गोयल साहब ने भी नहीं सोचा होगा। चर्चा है कि उनके लिए दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल मददगार बने। दरअसल दिल्ली में केजरीवाल और उनकी पार्टी का मुकाबला करने में भाजपा का कोई स्थानीय नेता कारगर नहीं साबित हो पा रहा था, उधर गोयल 2013 के दिल्ली विधानसभा चुनाव के बाद से ही लगभग निष्क्रिय थे। चर्चा है कि मोदी और शाह तमाम माथापच्ची के बाद इस नतीजे पर पहुंचे कि आम आदमी पार्टी को दिल्ली में रोकने के लिए गोयल को मंत्री बनाया जाये ताकि भाजपा के परंपरागत व्यापारी वर्ग को संतुष्ट किया जाए साथ ही इससे कार्यकर्ताओं में भी उत्साह पैदा होगा। दरअसल डॉ. हर्षवर्धन को किनारे किये जाने के बाद विजय गोयल ही ऐसे नेता बचे हैं जो राजधानी के हर कोने में पहचान रखते हैं। पार्टी के पदाधिकारियों और कार्यकर्ताओं के बीच उनका असर भी है। मंत्री बनने से कुछ दिन पहले गोयल यकायक केजरीवाल सरकार के खिलाफ सड़क पर उतरे और एक-दो प्रदर्शन भी किये पर ये सब भाजपा के बैनर की बजाय उन्होंने अपने सामाजिक संगठन के जरिये किया। भाजपा को लगा कि गोयल को साधे रखने की जरूरत है और वे मंत्री बना दिये गये।
एचआरडी का हुआ हृदय परिवर्तन
कुछ दिन पहले हुए मंत्रिमंडल विस्तार के बाद केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्रालय का जैसे हृदय परिवर्तन हो गया है। अब पुराने जैसा कुछ भी नहीं है। सब कुछ बदला-बदला सा नजर आ रहा है। मानो मंत्रालय का हृदयपरिवर्तन हो गया हो। सबसे पहले शास्त्री भवन के तीसरे माले पर केंद्रीय एचआरडी मंत्री के कार्यालय वाले कोरिडोर में बीते दो वर्षों से बंद पड़ा गेट खुल गया। तो दूसरी ओर नए मंत्री के आते ही राज्य मंत्रियों से लेकर अधिकारियों के चेहरे खिल उठे। पहले ये ज्यादातर चुप रहना ही पंसद करते थे। शायद पुरानी मंत्री साहिबा को बोलने वाले लोग पंसद नहीं होंगे। अब एचआरडी के जिस कोरिडोर में चले जाइये वहां एक अलग ही तरह की चहल-पहल नजर आ रही है। खैर परिवर्तन तो संसार का नियम है और यह यथावत चलता ही रहेगा।
-ओ.पी. पाल, आनंद राणा व कविता जोशी
10July-2016

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें