कछुआ सेंचुरी जोन बना ट्रायल में बाधक
ओ.पी. पाल. नई दिल्ली।
वाराणसी
से हल्दिया तक जल परिवहन का ट्रायल की सभी तैयारियां पूरी होने के बावजूद
मोदी सरकार की महत्वकांक्षी ‘जल परिवहन योजना’ पर संकट के बादल छा गये हैं।
मसलन इस ट्रायल को कछुओं ने रोक दिया यानि वाराणसी के राजघाट से लेकर
अस्सी घाट तक बने कछुआ सेंचुरी जोन होने के कारण वन विभाग ने माल वाहक जल
पोतों के जल में उतारने की मंजूरी नहीं दी है।
सूत्रों के अनुसार
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की इस महत्वाकांक्षी जल परिवहन परियोजना को
केंद्रीय जहाजरानी मंत्री नितिन गड़करी ने इसी माह वाराणसी से हल्दिया तक
शुरू करने का ऐलान किया था, जिसके ट्रायल के लिये वाराणसी से हल्दिया तक
सभी तैयारियां पूरी हो गई है। इसके लिए हल्दिया तक जाने वाले मालवाहक जल
पोत वाराणसी के खिड़किया घाट के किनारे पर खड़े हैं और जल में उतरने की बाट
जोह रहे है। सूत्रों के अनुसार मंजूरी न देने के कारण में वन विभाग का तर्क
है कि भारी जहाज जाने से कछुओं को नुकसान होगा। वन विभाग की मंजूरी मिलने
पर ही माल वाहक पोतों का परिसंचालन हो सकता है, इसके लिये यह गारंटी देनी
होगी कि माल वाहक जहाजों के जाने से कछुओं को कोई नुकसान नहीं होगा। गौरतलब
है कि वाराणसी के राजघाट से लेकर अस्सी घाट तक बने कछुआ सेंचुरी जोन की
उपयोगिता को लेकर कई सवाल उठते रहे हैं और इसे खत्म करने की मांग भी होती
रही है, लेकिन अभी तक कोई नतीजा नहीं निकला। इसी वजह से जलमार्ग परियोजना
में रूकावटें आ रही हैं।
पिछले
सप्ताह ही केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी ने वाराणसी से हल्दिया तक जल
परिवहन परियोजना का ट्रायल कराने का ऐलान किया था। इस ट्रायल में एक हजार
टन भार क्षमता वाले जहाज को वाराणसी से कोलकाता के हल्दिया तक ले जाना है।
इस ट्रायल के तहत ही वीवी गिरी जलपोत को 600 मारूति कारों की डिलीवरी लेकर
लेकर वाराणसी से गाजीपर, बलिया, बक्सर व पटना होते हुए कोलकाता के हल्दिया
तक पहुंचना था। गडकरी के इस ट्रायल की राह में अचानक कछुआ अभ्यारण क्षेत्र
कांटा बन परियोजना को खटाई में धकेलता नजर आया। हालांकि जहाजरानी मंत्रालय
का कहना है कि इस विवाद को हल कर लिया जायेगा और इसी सप्ताह में वन विभाग
के मंजूरी हासिल कर ली जायेगी।।
नया नहीं है विवाद
गौरतलब
है कि वाराणसी में राजघाट के पास मालवीय पुल से लेकर अस्सी घाट के सामने
रामनगर के किले तक के सात किलोमीटर के दायरे को नेशनल वाइल्ड लाइफ के तहत
कछुआ सेन्चुरी के नाम पर संरक्षित किया गया है। कछुओं का प्रजनन केंद्र भी
वन विभाग ने सारनाथ में बनाया है। वन विभाग के सूत्रों के अनुसार चम्बल से
ब्रीड कर कर कछुओं को यहां लाते हैं और फिर बड़ा होने के बाद इन्हें गंगा
में डाल देते हैं। तकरीबन हर साल 1000 कछुओं को छोड़ने का दावा किया गया है।
सूत्रों के अनुसर वाराणसी में कछुआ सेंचुरी का यह विवाद पुराना है। मसलन
1989 में गंगा सफाई के नाम पर घाट से लग कर बहने वाले गंगा के भाग को नेशनल
वाइल्ड लाइफ के तहत संरक्षित कर दिया गया और तर्क दिया गया कि इस संरक्षित
इलाके में कछुआ सेंचुरी बनाकर कछुआ पाले जाएंगे, जो गंगा की गन्दगी को दूर
करेंगे।
14July-2016
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