आधे गरीबों की गरीबी बनी मुसीबत का सबब
ओ.पी. पाल. नई दिल्ली।
मोदी
सरकार की कुछ ऐसी योजनाओं का देश में गरीबों और गरीबी में की असमानता को
बढ़ाना शुरू कर दिया है, जिसका नतीजा दो साल में देश में गरीबों की संख्या
में बड़े पैमाने पर कमी दर्ज की गई, लेकिन गरीबी ने कम होने का नाम नहीं
लिया। मसलन बीते दो सालों के दौरान शहरों और गांव में रहने वाले गरीबों की
आधी हुई संख्या के बावजूद गरीब की कमाई अभी भी उसके लिए पूरी मुसीबत का सबब
बनी हुई है।
देश में गरीबों पर योजना आयोग में सुरेश तेंदुलकर
आयोग की रिपोर्ट का हाल ही में नीति आयोग के उपाध्यक्ष अरविंद पनगढ़िया और
मेघा मुकीम ने एक विश्लेषण किया है। इस रिपोर्ट के अनुसार भारत और चीन
अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष के मुताबिक दुनिया की सबसे तेजी से उभरती
अर्थव्यवस्था बनते नजर आ रहे हैंं। मोदी सरकार की नीतियों और योजनाओं के
कारण तेजी के साथ गरीबों की संख्या पर नियंत्रण होने की राह बनने का दावा
किया जा रहा है। मसलन भारत जैसे देश में गरीबी रेखा का स्तर ऊंचा करने की
योजनाओं के बावजूद तंगहाल जिंदगी गजारने को मजबूर गरीबों की तादाद पिछले दो
वर्ष में घटकर आधी रह गई है। यह भी गौरतलब है कि देश में राजनीतिक दलों से
लेकर सरकारों तक के लिए गरीब और गरीबी हमेशा मुद्दा होता है, मगर इस वर्ग
को लेकर वास्तव में सरकारें या दल कितने गंभीर हैं, इस बात का अंदाजा इसी
से लगाया जा सकता है कि नीति आयोग अब तक भी मोदी सरकार द्वारा शुरू कराई गई
कवायद के बावजूद गरीबी की व्यावहारिक परिभाषा तक विकसित नहीं कर पाया है।
गरीबी की व्यावहारिक परिभाषा विकसित होने का ही कारण माना जा रहा है कि देश
में गरीबों की कमाई अभी तक नाकाफी है,जिसके जिसका नतीजा गरीबों की संख्या
तो कम हुई लेकिन गरीबी के दायरे में शामिल लोंगो के लिये गरीबी अभी भी पूरी
तरह से मुसीबत का सबब बनी हुई है। दरअसल मोदी सरकार ने केंद्र की सत्ता
संभालते ही योजना आयोग को खत्म कर नीति आयोग बनाया और इस फैसले के तहत नीति
आयोग के उपाध्यक्ष डा. अरविंद पनगढ़िया की अध्यक्षता में 16 मार्च 2015 को
गरीबी उन्मूलन संबंधी कार्यदल का गठन किया गया, जिसे गरीबी की व्यावहारिक
परिभाषा विकसित करने की भी जिम्मेदारी दी थी।
बढ़ती अर्थव्यवस्था बना भारत
अंतर्राष्ट्रीय
मुद्रा कोष के मुताबिक भारत और चीन भले ही दुनिया की सबसे तेजी से उभरती
अर्थव्यवस्था बने हैं, जिसके कारण गरीबी पर नियंत्रण करके गरीबों की तादात
कम करने की राह तैयार हो रही है। भारत की बात की जाये तो चीन के मुकाबले
आर्थिक विषमताएं कम हैं, लेकिन ग्रामीण और शहरी आबादी में आय का अंतर बढ़ने
से शैक्षणिक व्यवस्था में कमी के चलते बीते दो दशकों में यहां गरीबों और
अमीरों का अंतर बढ़ता गया, जिसे मोदी सरकार जनधन जैसी कुछ महत्वपूर्ण
योजनाओं के जरिए पाटने का प्रयास भी कर रही है। हाल ही में आरबीआई गवर्नर
ने गरीबी खत्म करने के लिए प्रति व्यक्ति आय कम से कम छह हजार डॉलर करने का
सुझाव दिया है।
भारत
जैसे लोकतांत्रिक देश में गरीबी से तात्पर्य मुख्य रूप से रोटी, कपडा, और
मकान, जैसी आवश्यकता पूर्ति के अभाव से होता है। यानि गरीबी की रेखा
निर्धारित करते समय रोटी, कपडा, और मकान के अलावा शिक्षा,स्वास्थ्य, पेयजल व
रोजगार जैसी मुलभूत आवश्यकताओं को भी गरीबी की माप करते समय ध्यान में रखा
जाना चाहिए, जिनसे आज गरीबी की रेखाओं के ऊपर रहने वाले भी वंचित है गरीबी
रेखा के सन्दर्भ में विवेचन करते हुए यह बताना युक्ति संगत होगा कि गरीबी
उन्मूलन की योजना बनाती आ रही देश की सरकारें आजादी से आज तक कोई ठोस
परिणाम सामने नहीं दे सकी। इसी का नतीजा है कि देश में अमीरी और गरीबी का
अंतराल बढ़ता ही जा रहा है।
छत्तीसगढ़ में सर्वाधिक गरीब
नीति
आयोग की विश्लेषण रिपोर्ट के मुताबिक देश के ऐसे पांच शीर्ष राज्यों में
सर्वाधिक 39.93 फीसदी गरीबी आबादी छत्तीसगढ़ राज्य में है, हालांकि इससे
पहले राज्य में 50.90 प्रतिशत गरीबों की आबादी थी, जिसमें 10.9 प्रतिशत की
कमी आई और फिलहाल भी गरीबों की संख्या के मामले में शीर्ष राज्यों में कायम
है। जबकि 39.31 प्रतिशत गरीबों के साथ दादरनगर हवेली दूसरे पायदान पर है।
इसके अलावा झारखंड में 36.96 प्रतिशत, मणिपुर में 36.89 प्रतिशत तथा
अरुणाचल प्रदेश में 34.67 प्रतिशत गरीबों की आबादी है। सबसे कम एक प्रतिशत
गरीबों की संख्या के साथ अंडमान निकोबार शीर्ष पर है, लेकिन 9.91 प्रतिशत
गरीबों की संख्या के साथ राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली बेहतर स्थिति में है,
जहां पिछले दो साल में 5.7 प्रतिशत गरीब कम हुए हैं।
इन राज्यों मेें तेजी से घटी गरीबी
रिपोर्ट
के मुताबिक देश में दक्षिण राज्यों में एक दशक के दौरान सबसे ज्यादा
गरीबों की संख्या घटती देखी गई है। इनमें शीर्ष पांच राज्यों पर नजर ड़ाली
जाए, तो उसमें आंध्र प्रदेश में सबसे ज्यादा 35.4 प्रतिशत कमी के बाद 9.20
प्रतिशत ही गरीबों की तादाद रह गई है, मसलन एक दशक पहले इस राज्य में 44.60
प्रतिशत गरीबों की संख्या थी। इसके बाद तमिलनाडु में 33.3 प्रतिशत,
महाराष्ट्र में 30.4 प्रतिशत, कर्नाटक में 28.6 प्रतिशत तथा मणिपुर में
65.10 प्रतिशत गरीबों में 28.2 प्रतिशत गरीबों की तादात में कमी दर्ज की
गई, जहां अब 36.89 गरीब रह गये हैं। मध्य प्रदेश में इस दौरान 12.9 प्रतिशत
की कमी के बाद गरीबों की तादात 31.65 प्रतिशत रह गई है। देश में मिजोरम एक
मात्र ऐसा राज्य है जहां बीते दो दशकों के दौरान गरीबी रेखा से नीचे जीवन
यापन करने वालों में 8.6 प्रतिशत का इजाफा हुआ है।
यूपीए ने ऐसे उड़ाया था मजाक
पूर्ववर्ती
यूपीए सरकार ने योजना आयोग की गठित प्रो. सुरेश डी. तेंदुलकर समिति की
रिपोर्ट जारी करके गरीबों का ऐसा मजाक उड़ाया था कि मनमोहन सरकार की फजीहत
सामने आ गई थी। दिलचस्प बात यह भी थी कि योजना आयोग ने वर्ष 2011-12 के लिए
योजना आयोग ने तेंदुलकर समिति की सिफारिश और वर्ष 2011-12 में गरीबी रेखा
का उपयोग कर ग्रामीण क्षेत्रों के लिए 27 रुपये दो पैसे प्रतिदिन और शहरी
क्षेत्र के लिए 33 रुपये 33 पैसे प्रतिदिन प्रति व्यक्ति उपभोग व्यय को
गरीबी रेखा मानने की सिफारिश को मान लिया था। इस मामले पर सुप्रीम कोर्ट ने
भी संज्ञान लिया था, जिसके बाद सरकार ने गरीबी की परिभाषा को पुन: विकसित
करने के लिए कदम आगे बढ़ाने की शुरूआत की।
04July-2016
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