केंद्र सरकार ने मांगी विधि आयोग से राय
ओ.पी. पाल. नई दिल्ली।
आखिर
मोदी सरकार ने देश में समान आचार संहिता लागू करने की तैयारी शुरू कर दी
है, जिसके लिए केंद्र सरकार ने इस मुद्दे पर विधि आयोग से अध्ययन कराने और
इसके लागू करने संबन्धी एक रिपोर्ट तैयार करने को भी कहा है।
सूत्रों
के अनुसार केंद्रीय विधि एवं न्याय मंत्रालय ने इस मुद्दे पर विधि आयोग को
पत्र लिखकर मामले में विस्तृत रिपोर्ट की मांग की है। केंद्र सरकार ने
विधि आयोग से सिविल कोड मामले की पड़ताल कर रिपोर्ट देने को भी कहा है। विधि
आयोग को मंत्रालय की ओर से सुप्रीम कोर्ट द्वारा हाल ही में तलाक के मामले
और इस से जुडेÞ कुछ फैसलों के दस्तावेज भी मुहैया कराये गये हैं, जिनका
अध्ययन किया जायेगा। केंद्र की इस तैयारी की पुष्टि शुक्रवार को केंद्रीय
विधि एवं न्याय मंत्री डीवी सदानंद गौडा ने करते हुए साफ संकेत दिये हैं कि
भारतीय संविधान की प्रस्तावना और अनुच्छेद 44 में भी इस कानून का उल्लेख
है, जिसमें समान नागरिक संहिता को लागू करना अनुच्छेद 44 के तहत राज्य की
जिम्मेदारी बताया गया है। इस मुद्दे पर उनके मंत्रालय के विधिक विषयक विभाग
ने विधि आयोग से इस संबंध में अध्ययन करके एक रिपोर्ट भी देने को कहा है।
सेवानिवृत्त न्यायाधीश बलबीर सिंह की अगुवाई वाला विधि आयोग संबंधित पक्षों
और विधि विशेषज्ञों के साथ अध्ययन और विचार विमर्श करके इस मुद्दे पर
रिपोर्ट तैयार करेंगे। आयोग इस मुद्दे पर आमसहमति कायम करने हेतु विभिन्न
पर्सनल लॉ बोर्डों और अन्य पक्षों के साथ व्यापक परामर्श करेगा।
कानून लागू करने का मकसद
केंद्र
सरकार की यह कवायद यदि अंजाम तक पहुंची तो देश में समान नागरिक संहिता
यानि यूनिफॉर्म सिविल कोड लागू हो जायेगा। इसका सीधा तात्पर्य है कि इस
कानून के तहत देश में रहने वाले हर व्यक्ति के लिए एक ही तरह का कानून
अनिवार्य हो जायेगा, जो सभी धर्म और संप्रादाय पर लागू होगा। मसलन इस कानून
के लागू होने के बाद भारत में हर धर्म के लोगों के लिए शादी, तलाक, गोद
लेना और जायदाद के बंटवारे जैसे मामलों में एक ही कानून लागू होगा। फिलहाल
हर धर्म के लोग इन मामलों का निपटारा अपने पर्सनल लॉ यानी निजी कानूनों के
तहत करते हैं यानि दुनिया के सबसे बड़े लोकतांत्रिक देश भारत में हिन्दू और
मुस्लिमों के लिए अलग-अलग कानून हैं और अलग तरीके से लागू होते हैं।
क्या है समान नागरिक संहिता
यूनिफॉर्म
सिविल कोड या समान नागरिक संहिता का मतलब है, कि भारत के सभी नागरिक वो
चाहे किसी भी धर्म और जाति के हों उनके लिए समान कानून रहेगा। समान नागरिक
संहिता एक धर्मनिरपेक्ष कानून होता है, जो सभी धर्मों के लोगों के लिये
समान रूप से लागू होगा। यह कानून भी किसी भी धर्म या जाति के सभी निजी
कानूनों से ऊपर होगा।
सियासत बन सकती है मुश्किल
विधि
विशेषज्ञों की माने तो समान आचार संहिता कानून लागू होना देश में हिन्दू
कानून माना जायेगा यानि किसी एक समुदाय के लिए नहीं होगा यानि यूनिफॉर्म
सिविल कोड लागू होते ही इस सच्चाई को भी नकारा नहीं जा सकेगा कि समान
नागरिक संहिता के लागू हो जाने के बाद लोगों की धार्मिक स्वतंत्रता बाधित
नहीं होगी, बल्कि इसके लागू होने से सभी को एक समान नजरों से देखा जाएगा।
मुस्लिम धर्म के लोगों के लिए इस देश में अलग कानून चलता है जो मुस्लिम
पर्सनल लॉ बोर्ड के जरिए लागू होता है। यही नहीं इस काननू को लागू करने के
लिए कई तरह के बदलाव करना ही विभिन्न धर्मो के लिए सबसे बड़ी दिक्कत का कारण
बन सकती है। ऐसे में धर्मनिरपेक्षता की दुहाई देने वाली सियासत के भी इस
मुद्दे को लेकर गरमाने से इंकार नहीं किया जा सकता। जाहिर सी बात है कि
मोदी सरकार के इस कदम राजनीतिक गलियारों में भूचाल आना तय मान जा रहा है।
समझा जाता है कि भारतीय जनता पार्टी के नेतृत्व वाली सरकार के इस कदम से
राजनीतिक विवाद शुरू होगा, क्योंकि देश में समान आचार संहिता लागू करने को
लेकर राजनीतिक पार्टियां एकमत नहीं हैं। समान आचार संहिता पर राजनीतिक दलों
के अपने-अपने तर्क हैं।
तीन दशक पहले सुर्खियों में आया मामला
सूत्रों
के अनुसार समान नागरिक संहिता भारतीय राजनीति में सबसे पहले 1985 में
सामने आई, जब शाह बानो केस में सुप्रीम कोर्ट ने मुस्लिम महिला शाह बानो के
पति को गुजारा भत्ता देने के लिए कहा था। बाद में राजीव गांधी ने सुप्रीम
कोर्ट के आदेश को पलटने के लिए एक विवादित बिल भी प्रस्तुत किया था।
सुप्रीम कोर्ट ने पिछले साल समान आचार संहिता पर कानून बनाने के लिए केंद्र
और संसद को निर्देश देने से जुड़ी एक याचिका पर सुनवाई करने से इंकार कर
दिया था। दिल्ली के एक भाजपा नेता ने सुप्रीम कोर्ट में अर्जी दायर की थी।
भाजपा नेता ने मुस्लिम महिलाओं के साथ कथित भेदभाव का हवाला देते हुए
सुप्रीम कोर्ट से दखल देने की मांग की थी।
चुनावी घोषणापत्र का हिस्सा
गौरतलब
है कि देश में एक समान संहिता का क्रियान्वयन भाजपा के चुनावी घोषणापत्र
का हिस्सा है। यह मुद्दा इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि सुप्रीम कोर्ट ने
हाल ही में कहा है कि वह तीन बार तलाक की संवैधानिक वैधता पर निर्णय करने
से पहले आम लोगों और अदालत में व्यापक बहस पसंद करेगा। कई लोगों की शिकायत
है कि तीन बार तलाक बोलने की व्यवस्था का मुस्लिम पुरूष अपनी पत्नियों को
मनमाने ढंग से तलाक देने के लिए दुरूपयोग करते हैं।
02July-2016
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