शुक्रवार, 22 जुलाई 2016

दलितों के बहाने आंकड़ो की सियासत!

राज्यसभा: सत्ता-विपक्ष ने साधा एक-दूसरे पर निशाना
ओ.पी. पाल.
नई दिल्ली।
देश के विभिन्न भागों में दलितों पर हुई अत्याचार की हाल की घटनाओं पर राज्यसभा में हुई चर्चा के दौरान सत्तापक्ष और विपक्ष में आंकड़ो की सियासत के जरिये एक-दूसरे पर ठीकरा फोड़ने का प्रयास रहा, जिसमें हरेक अपने को दलित हितैषी होने का दावा करते देखे गये।
उच्च सदन की दो बजे शुरू हुई कार्यवाही के दौरान राज्यसभा में नियम 176 के तहत इस मुद्दे पर चर्चा की शुरूआत करते हुए जदयू सांसद शरद यादव ने देश में दलितों पर अत्याचार के लिये कांग्रेस से कहीं ज्यादा भाजपा के शासन पर हमला करने के प्रयास में वर्ष 2011-14 तक यानि पिछले चार साल के आंकड़े पेश करके उनमें आधे मोदी सरकार के मत्थे मंढने की कौशिश की। मोदी सरकार पर निशाना साधते हुए शरद यादव ने सुप्रीम कोर्ट में मौजूदा जजों में किसी के भी दलित न होने पर राजग सरकार को दलित विरोधी करार दिया। इसी प्रकार कांग्रेस के अहमद पटेल ने भाजपा को दलित विरोधी करार देने का प्रयास किया। जबकि बसपा सुप्रीमो मायावती ने दलितों के मामले में कांग्रेस और भाजपा को राजनीति न करने की नसीहत देते हुए कठघरे में खड़ा करने का प्रयास किया। उनका कहना था कि भाजपा-कांग्रेस दलगत राजनीति से ऊपर उठकर समाज में दलितों पर बढ़ रहे अत्याचार को रोकने पर बल दिया। इस दौरान चर्चा में हिस्सा लेते हुए महाराष्ट्र से भाजपा के नवनिर्वाचित सदस्य विनय सहस्रबुद्धे ने भी आंकड़ो का सहारा लेकर विपक्ष की आंकड़ो पर जोरदार पलटवार किया, जिसमें बिहार, यूपी व ओडिशा अव्वल नजर आते देख खासकर शरद यादव और कांग्रेस के खेमे में बेचैनी नजर आने लगी।
सरकार की दलील
राज्यसभा में चर्चा का जवाब देते हुए सरकार ने विपक्ष के आंकड़ो की सियासत पर पलटवार करते हुए तर्क दिया कि भाजपा पर दलित विरोधी होने का आरोप लगाना गलत है, इस बात की गवाही आंकड़े खुद दे रहे हैं कि संसद के दोनों सदनों में फिलहाल भी सबसे जयादा ज्यादा दलित आदिवासी भाजपा के सांसद हैं। लिहाजा विपक्ष गलत आंकड़ेबाजी करके भाजपा को दलित विरोधी करार करके दलितों पर राजनीति करने से बाज आयें।
आहत दिखी माया
दरअसल भाजपा नेता दयाशंकर सिंह की टिप्पणी से आहत नजर आई मायावती ने चर्चा के दौरान कहा कि आजादी के 69 वर्ष बाद भी देश में दलितों एवं आदिवासियों पर उत्पीडन होना बंद नहीं हुआ है और यह आज भी जारी है। उन्होंने कहा कि गुजरात में दलितों की सार्वजनिक पिटाई की घटना को जब चैनलों ने दिखाया तब 18 घंटे बाद वहां की सरकार हरकत में आई और उसने कार्रवाई की। लेकिन हम जानते हैं कि सीआईडी से घटना की जांच कराने का मतलब क्या होता है।
यूपी का सियासी खेल
दरअसल यूपी में अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव की सियासत में जहां कांग्रेस के भाजपा पर लगातार हमले कर रही है, वहीं यूपी चुनावों के मद्देनजर बसपा भी दलितों संबन्धी ऐसे मुद्दे को गर्मा कर रखना चाहती है। जबकि भाजपा को उम्मीद थी कि माया पर टिप्पणी करने वाले भाजपा नेता दयाशंकर सिंह के निष्कासन के बाद यह मामला खत्म हो जाएगा। लेकिन यूपी चुनाव के मद्देनजर बसपा को इस कार्यवाई ने एक एक नया हथियार थमा दिया है। यानि कुछ बड़े नेताओं के पार्टी छोड़ने से बैकफुट पर आई बसपा कुछ ज्यादा आक्रामक नजर आ रही है, ऐसे में भाजपा को नए सिरे से रणनीति बनानी पड़ रही है। वहीं कांग्रेस भी यूपी चुनाव की सियासत में ऐसे मुद्दे को जिंदा रखने की कोशिश में नजर आ रही है।
22July-2016

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