रविवार, 28 सितंबर 2014

दहेज के मामलों का निपटान बना चुनौती!

देश में छोड़ी गई महिलाओं ज्यादा हुई विधवाओं की संख्या
ओ.पी. पाल
. नई दिल्ली।
भले ही केंद्र सरकार देशभर की अदालतों में लंबित पड़े आपराधिक मामलों के निपटाने की दिशा में ठोस कदम उठाने और त्वरित निपटान न्यायालयों की स्थापना की योजनाओं को अंजाम देने का दावा करती आ रही हों, लेकिन यह सच है कि देश में दहेज उत्पीड़न जैसे मामलों की संख्या निरंतर बढ़ती जा रही है। इसी का परिणाम है कि देश में तलाकशुदा या पतियों के परित्याग के बाद अकेले चुनौतियों का सामना कर रही महिलाओं से कहीं ज्यादा विधवाओं की संख्या है।
केंद्र सरकार की महिलाओं की सुरक्षा और उनके प्रति अपराधों के प्रति गंभीरता का नजरिया रखा है और न्यायिक सुधार के लिए पहल भी शुरू की है,जिसमें खासकर न्याय पाने की बाट जो रही महिलाओं के लंबित मामलों के निपटान को एक चुनौती मानते हुए ठोस कदम उठाने का दावा किया है। केंद्रीय विधि एवं न्याय मंत्री रविशंकर प्रसाद ने पिछले महीने ही कहा था कि दहेज के लंबित मामलों को निपटाने के लिए केंद्र सरकार ने त्वरित निपटान न्यायालय यानि फास्ट टेÑक कोर्ट की स्थापना के लिए अधीनस्थ न्यायपालिका में सृजित किये जाने वाले न्यायाधीशों के दस प्रतिशत रिक्त पदों के उपयोग करने के लिए राज्य सरकारों तथा उच्च न्यायालयों के मुख्य न्यायमूर्तियों से अनुरोध किया है। वहीं केंद्र सरकार ने तेरवें वित्त आयोग से इन रिक्त पदों पर होने वाले पूरे व्यय हेतु मौजूदा वित्तीय वर्ष के अंत तक बराबर शेयर के आधार पर अधिकतम 80 करोड़ वार्षिक निधि का प्रबंध करने का भी भरोसा दिया है। जहां तक देश में दहेज प्रतिषेध अधिनियम के अंतर्गत दर्ज मामलों के न्यायालयों में लंबित मामलों का सवाल है, विधि मंत्रालय के अनुसार उनकी संख्या तीन लाख 72 हजार 706 हो चुकी है, जिसमें 31888 मामले भारतीय दंड संहिता की धारा 304 ख के अधीन भी लंबित हैं। अदालतों में लंबित दहेज के मामलों पश्चिम बंगाल पहले पायदान पर है जहां करीब 1.10 लाख मामले लंबित हैं। इसके बाद महाराष्ट् में 54600 मामले निपटारे का इंतजार कर रहे हैं। गुजरात में 42859, राजस्थान में 28317, आंध्र प्रदेश में 22634, केरल में 20844, उत्तर प्रदेश में 15705, मध्य प्रदेश में 12621, असम में 9680 व उडीसा में 9584 दहेज एक्ट के मामले लंबित हैं। इनके अलावा छत्तीसगढ़ में 4632, हरियाणा में 6743, दिल्ली में 3838, पंजाब में 3971 व हिमाचल में 1296 मामलों में दहेज उत्पीड़न की महिलाएं न्याय की बाट जोहने को मजबूर हैं।
विधवाओं की बढ़ती संख्या चिंता
देशभर में दहेज के लिए परित्याग या अन्य किसी कारण से विधवा हो रही महिलाओं की संख्या में लगातार इजाफा भी केंद्र व राज्यों की सरकार के लिए बड़ी चुनौती बनता जा रहा है। केंद्र सरकार के आंकड़ों पर गौर करें तो देश में जहां 23 लाख 42 हजार 940 महिलाएं दहेज के कारण या तलाक के कारण अलग रहने को मजबूर हैं, तो वहीं विधवाओं की संख्या तीन करोड़ 42 लाख 89 हजार 729 हो चुकी है। विधवाओं में सबसे ज्यादा 37 लाख 63 हजार 168 उत्तर प्रदेश में हैं, जबकि 37 लाख 26 हजार 735 विधवाओं की संख्या के साथ महाराष्ट् दूसरे पायदान पर है। इसके बाद आंध्र प्रदेश में 32 लाख 70 हजार 964 विधवाएं अपना गुजर-बसर कर रही हैं। मध्य प्रदेश में 17 लाख 52 हजार 228 तथा छत्तीसगढ़ में विधवाओं की संख्या सात लाख 71 हजार 106 आंकी गई है, जबकि हरियाणा में यह संख्या पांच लाख 33 हजार 974 है, तो दिल्ली में तीन लाख, पांच हजार 940 विधवाएं हो चुकी हैं।
परित्याग का दर्द झेलती महिलाएं
दहेज या तलाक की शिकार ऐसी महिलाओं की संख्या हालांकि विधवाओं से बहुत कम यानि 23 लाख 42 हजार 940 हैं, लेकिन इनका दर्द भी न्यायालयों में लंबित मामलों के कारण कम नहीं है। ऐसी महिलाओं की सबसे ज्यादा संख्या तीन लाख 26 हजार198 महाराष्ट् में हैं, जिसके बाद पश्चिम बंगाल में 287344, आंध्र प्रदेश में 261525, तमिलनाडु में 249356, केरला में 196085, उत्तर प्रदेश में 112855, गुजरात में 105753 महिलाएं पति के परित्याग का दर्द झेल रही हैं। मध्य प्रदेश में ऐसी महिलाओं की संख्या 115807, छत्तीसगढ़ में 90985, हरियाणा में 11410, दिल्ली में 13541, हिमाचल में 8336,राजस्थान में 49544 हैं।
28Sep-2014

बुधवार, 24 सितंबर 2014

चौ.चरण सिंह स्मारक बनाने की मांग पर बवाल!

पंचायत करने सैकड़ो किसान गिरफ्तार

लुटियंस जोन में निषेधाज्ञा लागू, 12 तुगलक रोड छावनी में तब्दील

ओ.पी. पाल. नई दिल्ली।
लुटियंस जोन में 12 तुगलक रोड के सरकारी बंगले का चौधरी चरण सिंह स्मारक घोषित करने मांग को लेकर रालोद समर्थकों का केंद्र सरकार के फैसले के खिलाफ आक्रोश थमने का नाम नहीं ले रहा है। इस बंगले को स्मारक बनाने की मांग को लेकर मंगलवार को होने वाली पंचायत में पहुंचते ही किसानों और पुलिस में जमकर बवाल हुआ। पंचायत पर रोक के बावजूद 12 तुगलक रोड के बंगले में घुसने के प्रयास में भाकियू नेता राकेश टिकैत समेत सैकड़ो रालोद समर्थक और किसानों ने गिरफ्तार कर लिया।
रालोद प्रमुख चौधरी अजित सिंह के लोकसभा चुनाव हार जाने के बाद सरकार ने अन्य पूर्व सांसदों के साथ उन्हें भी 12 तुगलक रोड के सरकारी आवास को खाली कराने के लिए कई नोटिस जारी किये थे, लेकिन वह बंगले को खाली करने में आनाकानी करते रहे तो एनडीएमसी व सीपीडब्ल्यूडी ने इस बंगले की बिजली व पानी आपूर्ति को काट दिया। सरकार की ओर से इस कार्यवाही से रालोद और भाकियू समर्थकों का गुस्सा तेज हुआ, तो वहीं इस बंगले को चौधरी चरण सिंह स्मारक बनवाने की मांग ने ज्यादा जोर पकड़ा। बिजली व पानी कटने के बाद अजित सिंह ने बंगले को खाली कराने की शुरूआत तो की लेकिन अभी पूरी तरह खाली नहीं किया। सरकार और रालोद-भाकियू के बीच तकरार इसलिए तूल पकड़ने लगा कि सरकार ने इस बंगले को स्मारक घोषित करने से नियमों का तर्क देते हुए साफ इंकार कर दिया। इसी मांग को लेकर इस बंगले पर मंगलवार को रालोद-भाकियू की एक पंचायत बुलाई गई थी, जिसमें आंदोलन की रणनीति तय करने के लिए संघर्ष समिति का गठन भी किया जाना था। इस पंचायत के मद्देनजर दिल्ली पुलिस ने पूरे लुटियंस जोन में धारा 144 लागू करके मंगलवार को प्रस्तावित पंचायत को भी अवैध करार घोषित कर दिया। तय कार्यक्रम के मुताबिक मंगलवार को यूपी व अन्य आसपास के राज्यों से सैकड़ो रालोद व भाकियू समर्थकों को सुबह ही 12 तुगलक रोड की तरफ आना शुरू हो गया था, लेकिन पुलिस ने पहले ही तुगलक रोड, औरंगजेब रोड, राजेश पायलट रोड और आईएनए, तीन मूर्ति जैसे मार्गो पर बेरेकेटिंग लगाकर कड़ी सुरक्षा के इंतजाम कर रखे थे, ताकि किसानों को 12 तुगलक रोड के बंगले पर जाने से रोका जा सके। इस दिशा में रेसकोर्स मैट्रो स्टेशन को भी बंद कर दिया गया था।
ऐसे हुआ बवाल
12 तुगलक रोड के सरकारी बंगले रालोद प्रमुख अजित सिंह और भाकियू द्वारा बुलाई गई पंचायत में जैसे ही सुबह किसानों के जत्थे आना शुरू हुए तो पूरी तरह से पुलिस सुरक्षा में बेरेकेटिड तुगलक रोड़ पर उन्हें रोका गया। बहुत से समर्थक तो किसी तरह चकमा देकर बंगले तक पहुंच भी गये थे, लेकिन 12 तुगलक रोड पूरी तरह से पुलिस छावनी में तब्दील किया जा चुका था। लुटियंस जोन में बढाई गई सुरक्षा व्यवस्था के बीच पहले ही आने वाले समर्थकों को निषेधाज्ञा लागू होने की जानकारी देकर वापस जाने को कहा गया, लेकिन तुगलक रोड के दोनों ओर से बेरेकैटिंग लांघने के लिए रालोद समर्थकों ने हंगामा करके बवाल काटा। चौधरी चरण सिंह के स्मारक बनाने की मांग को लेकर नारेबाजी करते हुए 12 तुगलक रोड की तरफ बढ़ने के प्रयास में पुलिस ने सौ से भी ज्यादा रालोद व भाकियू नेताओं समेत किसानों को गिरμतार कर लिया और उन्हें बसों में बैठाकर संसद मार्ग, तिलक मार्ग व तुगलक रोड पुलिस स्टेशन ले जाया गया, जहां उन्हें शाम के समय रिहा किया गया। गिरफ्तार समर्थकों में भाकियू नेता राकेश टिकैत, चन्द्रपाल फौजी,रालोद नेता तरसपाल मलिक, त्रिलोक त्यागी व राजकुमार सांगवान आदि प्रमुख रूप से शामिल थे।
अब मेरठ में 12 को होगी महापंचायत
चौधरी चरण सिंह विचार मंच और भाकियू के गिरμतार नेताओं ने संसद मार्ग थाने में ही बैठक करके निर्णय लिया है कि 12 तुगलक रोड को चौधरी चरण सिंह स्मारक बनवाने की मांग के लिए आंदोलन को तेज किया जाएगा। इस आंदोलन की रणनीति के लिए 12 अकटूबर को मेरठ में महापंचायत करने का निर्णय भी लिया गया। हरिभूमि को भाकियू के राष्ट्रीय प्रवक्ता राकेश टिकैत ने यह जानकारी देते बताया कि अब मेरठ में प्रस्तावित महापंचायत में जनप्रतिनिधियों को भी बुलाया जाएगा और इस सरकारी बंगले को चौधरी चरण सिंह स्मारक बनवाने के लिए समर्थक आंदोलन करके सरकार से आर-पार की लड़ाई के लिए तैयार हैं।
केंद्र सरकार पर निशाना 
रालोद प्रमुख अजीत सिंह का कहना है कि चौधरी चरण सिंह 12 तुगलक रोड के बंगले पर करीब 35 वर्षो तक रहे और यहीं उन्होंने अंतिम सांस ली थी,जिसके बाद यह बंगला मेरे नाम से आवंटित है। इस बंगले से देश के किसानों की भावनाएं जुडी हुई हैं। तो जनता की मांग है कि इस आवास को उनके स्मृति स्थल में तबदील कर दिया जाना चाहिए, इसमें सरकार को निर्णय लेने में कोई आपत्ति नहीं होनी चाहिए। अजित सिंह ने चौधरी चरण सिंह के अनुयायियों की इस मांग के लिए होने वाली पंचायत के मद्देनजर लुटियन जोन के कई मार्गो को बंद कर बंगले को छावनी बनाने के लिए भी केंद्र सरकार पर निशाना साधा। वहीं रालोद महासचिव त्रिलोक त्यागी ने पुलिस की कार्यप्रणाली पर सवाल उठाते हुए बताया कि किसान शांति में रणनीति बनाने आए थें, मगर दिल्ली पुलिस ने केन्द्र सरकार के दबाव में आकर यह कार्यवाही की और किसानों को पंचायत नही करने दी। उन्होंने कहा कि कि जब दिल्ली में वर्ष 2000 के बाद जगजीवन राम स्मारक व कांशीराम स्मारक के अलावा अन्य नेताओं के नाम के स्मारक बन सकते हैं तो किसानों के मसीहा रहे चौधरी चरण सिंह का स्मारक व संग्राहलय क्यों नहीं बनाया जा सकता।
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12 तुगलक रोड को स्मारक बनाने की मांग को एक सिरे से खारिज करते हुए स्पष्ट किया है कि वर्ष 2000 में कैबिनेट के फैसले से सरकार अलग नहीं जा सकती। यदि चौधरी अजित सिंह को इस बंगले को स्मारक बनवाने की इतनी ही चिंता थी, तो वे इससे पहले की केंद्र सरकार में मंत्री रहते हुए चौधरी चरण सिंह स्मारक क्यों नहीं बनवा पाय। नायडू ने यहां तक कटाक्ष किया कि स्मारक तो दूर की बात है वह उनके नाम से किसी मार्ग का नामकरण तक नहीं करवा सके। अब इस मांग का औचित्य क्या है जिसमें वे केंद्र सरकार के सिर ठींकरा फोडने का प्रयास कर रहे हैं।-- एम. वेंकैया नायडू (केंद्रीय शहरी विकास मंत्री)
24Sep-2014

मंगलवार, 23 सितंबर 2014

पशुओं समेत बंगले में डेरा डालने की तैयारी में किसान!


12 तुगलक रोड़ पर कोर कमेटी की बैठक आज, बनेगी संघर्ष समिति
ओ.पी. पाल
. नई दिल्ली।
पूर्व केंद्रीय मंत्री एवं रालोद प्रमुख चौधरी अजित सिंह से 12 तुगलक रोड का सरकारी आवास खाली कराने का विरोध गहराता जा रहा है, जिससे रालोद और भाकियू समर्थक किसानों के मसीहा स्व. चौधरी चरण सिंह का स्मारक बनाने की मांग को लेकर केंद्र सरकार के सामने आर-पार की लड़ाई के लिए तैयार है। मंगलवार को इसी बंगले पर होने वाली बैठक में एक संघर्ष समिति का गठन है, जिसके नेतृत्व में आंदोलन की रणनीति बनेगी। ऐसी भी खबर है कि चरण सिंह स्मारक बनाने की मांग को लेकर किसान अपने पशुओं के साथ इस सरकारी बंगले पर डेरा डालने की तैयारी कर रहे हैं?
भाकियू के प्रवक्ता ने बताया कि 12 तुगलक रोड के सरकारी बंगले को स्व. चौधरी चरण सिंह स्मारक बनवाने के लिए किसान किसी भी तरह की कुर्बानी से पीछे हटने वाला नहीं है। इसी बंगले पर मंगलवार 23 सितंबर को रालोद कोर कमेटी और भाकियू कार्यकारिणी की संयुक्त बैठक होगी, जिसमें रालोद व भाकियू से जिम्मेदार लोगों का चयन करके चौधरी चरण सिंह स्मारक हेतु आंदोलन को तेज करने के लिए एक संघर्ष समिति का गठन किया जाएगा। यह समिति आंदोलन की रणनीतियां तय करेगी और इस समिति के नेतृत्व में किसानों के हक को हासिल करने के लिए इस बंगले को चौधरी चरण सिंह स्मारक घोषित होने तक आंदोलन चलेगा। किसानों का आंदोलन का क्या रूप होगा इसके बारे में भाकियू का कहना है कि सरकार इस मांग को पूरी नहीं करती तो किसान आर-पार की लड़ाई के लिए तैयार बैठा है। सूत्रों के अनुसार ऐसी भी खबर है कि चौधरी अजित सिंह इस बंगले को 24 सितंबर को खाली कर देंगे, जिसके तुरंत बाद दिल्ली कूच करने वाले किसान इस सरकारी बंगले में अपने पशुओं के साथ डेरा जमा लेंगे? हालांकि भाकियू प्रवक्ता और रालोद का कहना है कि इस तरह की नौबत नहीं आनी चाहिए, लेकिन किसान इसी स्थान पर अपना आंदोलन चलाएंगे, यदि सरकार उन्हें बंगले में नहीं घुसने देगी, तो वह बाहर सड़क पर ही बेमियादी धरना देने का निर्णय ले सकते हैं। भाकियू नेताओं का कहना है कि 12 तुगलक रोड़ से चौधरी चरण के परिवार का नाता कई दशक पुराना है और इसी बंगले में चौधरी चरण सिंह ने अंतिम सांस ली थी। उसी समय से इस बंगले में छोटे चौधरी अजित सिंह का परिवार रहता आ रहा है। इसलिए देश के करोड़ो किसानों की इस बंगले से भावनाएं जुड़ी हुई हैं। इसलिए किसान इसे चौधरी चरण सिंह का स्मारक ही मानते हैं जिसकी 1987 में तत्कालीन सरकार भाकियू के संस्थापक अध्यक्ष चौधरी महेन्द्र सिंह टिकैत की मौजूदगी घोषणा भी कर चुकी थी।
आज से शुरू दिल्ली कूच करेंगे
किसान चौधरी चरण सिंह स्मारक की मांग के कारण विवादों में घिरा 12 तुगलक रोड का सरकारी बंगला आंदोलन का केंद्र बनने की राह पर है। मंगलवार को इस बंगले पर भले ही रालोद और भाकियू के वरिष्ठ नेताओं वाली कोर कमेटी की बैठक होने की बात हो रही हो, लेकिन संकेत हैं कि खासकर यूपी,हरियाणा व पंजाब के किसानों का कूच मंगलवार को दिल्ली की तरफ होने जा रहा है। भाकियू पहले ही चौधरी चरण सिंह स्मारक के लिए आर-पार की लड़ाई का ऐलान करके एक टैÑक्टर, 21 किसान और पांच कुंतल अनाज के साथ यहां जमावडा लगाने के लिए सरकार को चेतावनी दे चुकी है। किसानों के आंदोलन की तैयारियों में किसान अपने पशुओं को भी साथ लेकर आ सकते हैं ऐसी चर्चाए तेज हैं। किसानों में सरकार द्वारा इस बंगले को स्मारक बनाने की मांग खारिज करने का गुस्सा ज्यादा देखा जा रहा है।
23Sep-2014

सोमवार, 22 सितंबर 2014

अल्पसंख्यकों को बिना ब्याज मिलेगा शिक्षा ऋण!

ब्याज को वहन करेगी केंद्र सरकार
ओ.पी. पाल. नई दिल्ली।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के हाल में सामने आये बयान ने केंद्र सरकार की मंशा को जाहिर कर दिया है कि वह देश में अल्पसंख्यकों की सोच को बदलना चाहती है, तभी तो सरकार ने अल्पसंख्यकों के विकास और कल्याणकारी योजनाओं के तौर तरीके बदलकर उन्हें ज्यादा से ज्यादा बुनियादी सुविधाएं देने का खाका तैयार किया है। मोदी सरकार की इसी नीति में अल्पसंख्यक वर्ग के बच्चों को बिना ब्याज के उच्च शिक्षा ऋण देने का महत्वपूर्ण फैसला किया गया है यानि ब्याज को सब्सिडी के रूप में स्वयं केंद्र सरकार वहन करेगी।
प्रधानमंत्री के रूप में नरेन्द्र मोदी को लेकर अल्पसंख्यक समुदाय में बेचैनी थी कि राजग सरकार अल्पसंख्यक मामले के मंत्रालय को बंद कर देगी, लेकिन सरकार ने इस मंत्रालय के अधिकार और भी ज्यादा बढ़ाकर अल्पसंख्यक वर्ग के लिए चल रही पहली योजनाओं की समीक्षा की, जिनमें खामियों को दूर करके नई योजनाओं को कार्यान्वित किया गया है। अल्पसंख्यक मंत्रालय के सूत्रों के अनुसार केंद्र सरकार ने मदरसों की पढ़ाई को तरजीह देते हुए सभी मदरसों को आधुनिक रूप से विकसित करने की योजना बनाई है। सरकार ने मदरसों से निकलने वाले लड़के-लड़कियों को दुनिया की तालीम देने के लिए नई मंजिल कार्यक्रम शुरू किया है, जिसमें देश-विदेश में उच्च शिक्षा पाने के इच्छुक अल्पसंख्यक समुदाय के बच्चों को बिना ब्याज शिक्षा ऋण मुहैया कराने का ऐतिहासिक निर्णय लिया है। मंत्रालय के अनुसार खासकर मुस्लिम बच्चों को उच्च शिक्षा के प्रति प्रोत्साहन देने की दृष्टि से केंद्र सरकार ने उन्हे शिक्षा ऋण देने का फैसला किया है जिसके ब्याज को सब्सिडी के रूप में केंद्र सरकार स्वयं वहन करेगी। वहीं सरकार ने विदेशों में उच्च शिक्षा के लिए अल्पसंख्यक छात्रों को इसी प्रकार से शिक्षा ऋण की सुविधा देने का भी निर्णय लिया है। इसके लिए अल्पसंख्यक मंत्रालय ने क्रियान्वयन एजेंसी के रूप में केनरा बैंक से करार किया है, जिसमें शिक्षा ऋण देने के लिए योग्यता के आधार पर चयनित अल्पसंख्यक वर्ग के छात्र-छात्राओं शिक्षा ऋण मुहैया कराया जाना है। मंत्रालय ने बताया कि पांच सितंबर तक एक 48 बच्चों को बिना ब्याज के शिक्षा ऋण देने की मंजूरी दी गई है जिन्हें 19.22 लाख रुपये की सब्सिड़ी यानि ब्याज की छूट दी गई, इससे पहले ऐसे शिक्षा ऋण को तीन प्रतिशत वार्षिक ब्याज की दर पर दिये जाने का प्रावधान था।
पारदर्शी बनाई छात्रवृत्ति योजना
अल्पसंख्यक मंत्रालय के अनुसार अभी तक देश में अल्पसंख्यक वर्ग के बच्चों को दी जाने वाली छात्रवृत्त्ति की राशि में 25 प्रतिशत राज्य का हिस्सा होता था, लेकिन राजग सरकार की समीक्षा के बाद पाया गया कि राज्य अपने हिस्से की राशि न देने के कारण केंद्र द्वारा जारी छात्रवृत्ति योजना की राशि को खर्च नहीं कर पाते थे और उस धनराशि का अन्य रूप से दुरूपयोग होने के मामले भी सामने रहे, जिसके कारण कई राज्यों पर केंद्र की करोड़ो रुपये की धनराशि बकाया है। मोदी सरकार ने छात्रवृत्ति योजना को पारदर्शी बनाते हुए निर्णय लिया है कि केंद्र सरकार अब शतप्रतिशत राशि सीधे लाभार्थी के खाते में भेजेगी और राज्य सरकार का हिस्सा खत्म कर दिया गया है। 
22Sep-2014

स्मारक के बहाने वजूद बनाने की जुगत में रालोद!



23 सितंबर को रालोद व भाकियू  कोर कमेटी की बैठक
ओ.पी. पाल. नई दिल्ली।  
राष्ट्रीय लोकदल के सामने लोकसभा चुनाव में खोये हुए जनाधार को वापस हासिल करने की चुनौती है, जिसके लिए शायद अब रालोद ने 12 तुगलक रोड के सरकारी बंगले को चौधरी चरण सिंह स्मारक बनवाने की मांग के बहाने किसानों की सहानुभूति की रणनीति अपनाई है। इसके लिए 23 सितंबर को इसी बंगले पर रालोद व भाकियू की होने वाली कोर कमेटी की बैठक में रणनीति तय की जाएगी।
भाकियू के सूत्रों ने बताया कि 12 तुगलक रोड पर कोर कमेटी की बैठक में इस बंगले को स्व. चौधरी चरण सिंह स्मारक बनवाने की मांग को लेकर आंदोलन की अगली रणनीति को अंतिम रूप दिया जाएगा। लोकसभा चुनाव में अपना वजूद खो चुके रालोद प्रमुख चौधरी अजित सिंह ने सरकार के इस बंगले को कोई स्मारक न बनाने के ऐलान के बाद ही चुप्पी तोड़ी थी। उससे पहले बंगला खाली कराने के लिए काटी गई बिजली व पानी आपूर्ति के विरोध में रालोद समर्थक और भाकियू समर्थक किसान ही आंदोलन करते नजर आए। माना जा रहा है कि रालोद का मकसद अब यूपी के 2017 में होने वाले विधानसभा के लिए पार्टी के वजूद को बचाने का लक्ष्य है। राजनीति के जानकार भी मान रहे हैं कि चौधरी चरण सिंह के स्मारक के बहाने रालोद समर्थकों की अजित सिंह को सहानुभूति मिलने से पार्टी में कुछ जान आने की संभावना है। 12 तुगलक रोड के सरकारी बंगले को चौधरी चरण सिंह स्मारक की मांग को हरियाणा के मुख्यमंत्री भूपेन्द्र सिंह हुड्डा का समर्थन भी चौधरी अजित सिंह के लिए राज्यसभा तक जाने का रास्ता तय कर सकता है। हालांकि हुड्डा की स्मारक की मांग को केंद्र सरकार पहले ही खारिज कर सकती है, लेकिन स्मारक के बहाने रालोद सुर्खियों में रहेगा, तो उसके लिए यूपी की सत्तारूढ़ पार्टी सपा का भी रालोद को साथ मिल रहा है तो जदयू ने भी इस बंगले को चौधरी चरण सिंह का स्मारक बनाने की वकालत की है। इसके अलावा राजनीतिक दलों में जाट नेता भी स्मारक के समर्थक हैं, लेकिन भाजपा में शामिल जाट नेता इस मुद्दे पर खामोश ही रहना बेहतर समझ रहे हैं और वे खुलकर इस मामले में सामने आने को कहीं तक भी राजी नहीं हैं।
सरकार पर दबाव बरकरार
12 तुगलक रोड जहां पूर्व प्रधानमंत्री चरण सिंह ने अंतिम सांस ली थी और तभी से यह बंगला उसके परिवार के पास ही रहा है। अब जब लोकसभा चुनाव में रालोद जनमत हासिल नहीं कर सका तो इस सरकारी बंगले को खाली करने का फरमान तो आना तय था। ऐसे में इस बंगले को चौधरी चरण सिंह स्मारक बनाने की मांग जाग उठी और सरकार की मनाई के बाद रालोद व भाकियू समर्थक लगातार दबाव बनाने में लगे हुए हैं। इस मुद्दे को जीवित रखकर रालोद व भाकियू समर्थक हरियाणा में हो रहे विधानसभा चुनाव में जाट वोटों को साधकर भाजपा की घेराबंदी करने का प्रयास कर रहे हैं। सूत्रों की माने तो हुड्डा का केंद्र सरकार को स्मारक बनाने के लिए भेजा गया पत्र के पीछे भी यही राजनीति रही, ताकि जाट वोट के लिए अजित सिंह उनके चुनाव में योगदान दें सकें।
22Sep-2014

शनिवार, 20 सितंबर 2014

12 तुगलक रोड़ के बंगले पर गरमाई सियासत!


चरण सिंह स्मारक पर सरकार और रालोद में रार
ओ.पी. पाल
. नई दिल्ली।
पूर्व केंद्रीय मंत्री चौधरी अजित सिंह से सरकार बंगला खाली कराने के विरोध और इस 12 तुगलक रोड के सरकारी बंगले को पूर्व प्रधानमंत्री स्व. चौधरी चरण सिंह का स्मारक बनाने के मुद्दे पर सियासत इतनी गरमा गई है कि केंद्र सरकार और रालोद आमने सामने है। केंद्र सरकार ने इस बंगले को स्मारक घोषित करने से साफ इंकार करने के बाद स्वयं अजित सिंह ने भी चुप्पी तोड़ी तो सरकार ने भी पलटवार करने में नियमों का तर्क देते हुए अजित सिंह और उनकी हिमायत कर रही कांग्रेस को नसीहत देने में कोई परहेज नहीं किया।
केंद्र सरकार के इस बंगले को स्मारक न बनाने के प्रस्ताव को खारिज करने के बाद शुक्रवार को स्वयं रालोद प्रमुख चौधरी अजित सिंह ने अपनी चुप्पी तोड़ी और केंद्र सरकार पर निशाना साधते हुए अजित सिंह ने इस बंगले को अपने पिता पूर्व प्रधानमंत्री चरण सिंह के स्मारक में बदलने से इंकार करने पर मोदी सरकार की आलोचना की। उन्होंने कहा लाल बहादुर शास्त्री, बाबू जगजीवन राम और कांशी राम के नाम पर भी एक स्मारक बने हैं तो यह क्यों नहीं बन सकता। इस पर केंद्र सरकार ने स्पष्ट कर दिया कि वह नियमों के मुताबिक किसी सरकारी बंगले को स्मारक में तब्दील नहीं कर सकती, क्योंकि केन्द्रीय मंत्रिमंडल वर्ष 2000 में मंत्रियों के सरकारी बंगले को दिवंगत नेताओं के नाम पर स्मारक में बदलने पर रोक लगाने के प्रस्ताव को मंजूरी दे चुका है। गौरतलब है कि सांसद होने के नाते चौधरी अजित सिंह को आबंटित 12 तुगलक रोड का सरकारी आवास जब सीपीडब्ल्यूडी के कई नोटिस के बावजूद बंगला खाली नहीं हुआ तो पिछले सप्ताह इस बंगले की बिजली व पानी आपूर्ति काट दी गई और तब कहीं जाकर अजित सिंह ने बंगला खाली करने की शुरूआत की, हालांकि अभी इस बंगले पर उनका निजी कार्यालय और टेलीफोन सेवा काम कर रही है। बिजली पानी काटे जाने के विरोध में रालोद और भाकियू समर्थकों ने 12 तुगलक रोड को स्व. चौधरी चरण सिंह का स्मारक घोषित करने की मांग को लेकर अपनी आवाज बुलंद करना शुरू कर दिया। किसानों ने मुरादनगर नहर से कुछ घंटे तक दिल्ली की गंगा जल की आपूर्ति का रास्ता भी रोका और केंद्र सरकार पर दबाव बनाने का प्रयास किया। इसके बाद केंद्र सरकार का स्पष्टीकरण आने के बाद राजनीति गरमाने लगी। सूत्रों के अनुसार इस बंगले को खेल और युवा कल्याण मंत्री सवार्नंद सोनेवाल को आवंटित किया गया है। जबकि अजित सिंह अपने दिल्ली के वसंत विहार स्थित अपने निजी आवास में जाने की तैयारी में हैं।
स्वयं अजित जिम्मेदार
केंद्रीय शहरी विकास मंत्री एम. वेंकैया नायडू ने इस बंगले को चौधरी अजित सिंह को ही जिम्मेदार ठहराते हुए कहा कि अभी तक वह केंद्र की सरकार में थे, तो उन्होंने कैबिनेट के इस प्रस्ताव को निरस्त कराने के लिए प्रस्ताव क्यों पेश नहीं किया। लगे हाथ ही नायडू ने हरियाणा के मुख्यमंत्री भूपेन्द्र सिंह हुड्डा के इस बंगले को चौधरी चरण सिंह स्मारक घोषित करने के लिए आए पत्र पर भी कांग्रेस पर वार किया। नायडू ने रालोद पर प्रहार करते हुए कहा यदि इन लोगों को चरण सिंह के नाम पर स्मारक के लिए इतनी ही फिक्र है तो उनके निधन के बाद पिछले 37 साल में उन्हें किसने रोका? सरकार पर आरोप लगाना अनुचित है और वह आशा करते हैं कि लोग हकीकत समझते हैं। उन्होंने कहा कि सरकार ने 14 साल पहले तय किया था कि कोई भी सरकारी बंगला स्मारक में नहीं बदला जाएगा। हम तो महज तीन महीने से सरकार में हैं। अजीत सिंह पिछली सरकार में महत्वपूर्ण मंत्री थे। पिछले दस साल से कांग्रेस केंद्र की सत्ता में थी तो हुड्डा या केंद्र में कांग्रेस की सरकार इस बंगले को स्मारक में क्यों बदलने का प्रयास नहीं किया। उन्होंने रालोद प्रमुख या अन्य विपक्षी दलों के उन आरोपों को एक सिरे से खारिज कर दिया कि सरकार अजित सिंह से सरकारी आवास खाली करवाने में बदले की राजनीति कर रही है। गौरतलब है कि यह बंगला केंद्रीय खेल एवं युवा कल्याण मंत्री भावना जैसा कुछ नहीं है। सरकार ने साफ कर दिया है कि वह किसी आंदोलन या अन्य दबाव में आकर नियमों को नहीं तोड़ेगी।
राजनीतिक प्रतिक्रियाएं
राकांपा नेता नवाब मलिक ने भी चौधरी चरण सिंह का स्मारक बनाने की वकालत की है। मलिक ने कहा कि चौधरी चरण सिंह देश के पीएम और किसानों के बड़े नेता रहे हैं इसलिए उनके स्मारक की मांग को लेकर सरकार को मान जाना चाहिए। समाजवादी पार्टी के सांसद नरेश अग्रवाल ने कहा कि 12 तुगलक रोड का बंगला चौधरी साहब का स्मारक बनना चाहिए। हालांकि अग्रवाल ने पानी काटने, हुड़दंग व हंगामे के तरीके को गलत करार दिया। दूसरी ओर भाजपा प्रवक्ता संबित पात्रा ने कहा कि रालोद प्रमुख चौधरी अजित सिंह और रालोद के कार्यकर्ता जो दिल्ली की वाटर सप्लाई रोकने की बात कर रहें हैं यह गलत है। अजित सिंह राजनीति खेलने का प्रयास कर रहें हैं, ऐसा उन्होंने पहले सत्ता में रहते हुए क्यों नहीं किया।
20Sep-2014

गुरुवार, 18 सितंबर 2014

चरण स्मारक की मांग को हुड्डा का मिला साथ!


12 तुगलक रोड का बवाल अभी टला नहीं
ओ.पी. पाल. नई दिल्ली।
पूर्व केंद्रीय मंत्री चौ. अजित सिंह के सरकारी आवास 12 तुगलक रोड को चौधरी चरण सिंह स्मारक घोषित करने के लिए अड़िग भाकियू और रालोद को कांग्रेस का भी साथ मिला। मसलन 12 तुगलक रोड को पूर्व प्रधानमंत्री स्व. चौधरी चरण सिंह स्मारक बनाने की मांग के समर्थन में हरियाणा के मुख्यमंत्री भूपेन्द्र सिंह हुड्डा ने समर्थन करते हुए केंद्रीय शहरी विकास मंत्री एम. वेंकैया नायडू को पत्र भेजा है।
केंद्र सरकार के निर्देश पर 12, तुगलक रोड़ स्थित सरकारी आवास को खाली करने में आनकानी कर रहे पूर्व मंत्री चौधरी अजित सिंह की बिजली व पानी आपूर्ति काटकर जिस तरह किसानों की राजनीति गरमाई तो चौधरी अजित सिंह यह सरकारी आवास खाली करने को राजी हुए और कुछ सामान उन्होंने अपने निजी आवास बसंत बिहार पहुंचा दिया, बाकी 25 सितंबर तक इस आवास को खाली करने का वादा करने को मजबूर हुए। वहीं दूसरी और रालोद और भाकियू समर्थकों ने 12 तुगलक रोड को अजित सिंह से खाली कराने का विरोध किया और इस बंगले का चौ.चरणसिंह स्मृति भवन बनवाने और स्मारक घोषित कराने की मांग को लेकर अपना जमावड़ा भी लगाए रखा। बिजली व पानी काटने के विरोध में किसानों ने गुरुवार को मुरादनगर नहर से दिल्ली की पानी आपूर्ति रोकने और मंडोला से बिजली काटने तक का ऐलान किया। 12 तुगलक रोड को चौधरी चरण सिंह स्मारक बनाने की रालोद व भाकियू समर्थक किसानों के आंदोलन को और बल बुधवार को उस समय मिल गया जब हरियाणा के मुख्यमंत्री भूपेन्द्र सिंह हुड्डा ने केदं्रीय शहरी विकास मंत्री एम वेंकैया नायडू को पत्र लिखकर इस बंगले को चौ.चरण संह स्मृति भवन बनाये जाने की मांग की। अपने पत्र में हुड्डा ने लिखा है कि यह एक सरकारी आवास ही नहीं है, बल्कि इस बंगले से किसानों की आस्था भी जुड़ी रही है, जहां किसानों के मसीहा चौधरी चरण सिंह मरते दम तक रहे हैं।शहरी विकास मंत्री को भेजे पत्र में मुख्यमंत्री हुड्डा ने लिखा है कि चौ. चरण सिंह इस बंगले में 1978 में आए थे, तो उसी समय से यह बंगला उनके परिवार के पास ही है। 1978 से ही यह बंगला किसानों के हित में कार्यरत रहा है। कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक हजारों किसानों से जुडे आंदोलन का केन्द्र 12 तुगलक रोड़ ही रहा है। इसलिए केंद्र सरकार को चाहिए कि किसानों के मसीहा और पूर्व प्रधानमंत्री चौ. चरण सिंह की स्मृति में 12, तुगलक रोड़ को चौ.चरण सिंह स्मृति भवन घोषित कर दिया जाए।
आज दिल्ली का पानी रोकेंगे किसान
भाकियू के राष्टीयप्रवक्ता राकेश टिकैत ने हरिभूमि से बातचीत में कहा कि उन्होंने 12 तुगलक रोड पर पंचायत करके सरकार को दो दिन का समय दिया था कि वह इस बंगले की बिजली व पानी आपूर्ति को बहाल कर दे, वरना वे दिल्ली के पानी की आपूर्ति को ठप कर देंगे। उनका कहना है कि अभी तक केंद्र सरकार या एनडीएमसी के कानों तक यह बात शायद असर नहीं कर पाई है। इसलिए अब किसान आरपार की लड़ाई लडने के लिए तैयार हो चुका है, जिसके लिए कल गुरुवार को मुरादनगर नहर पर कूच करके किसान दिल्ली के पानी को रोकने वाले हैं। गौरतलब है कि भाकियू की इस चेतावनी के बावजूद अभी तक सरकार ने इस बंगले की बिजली-पानी आपूर्ति बहाल नहीं की। इसलिए 18 सितंबर यानि कल गुरुवार को मुरादनगर में किसानों का जमावडा होगा और वहां से दिल्ली के लिए आपूर्ति हो रहे पानी को रोककर सरकार पर दबाव बनाने की तैयारी है।

18Sep-2014

बुधवार, 17 सितंबर 2014

उपचुनावों के नतीजे भाजपा के लिए सबक!

अति आत्मविश्वास या बेइंतहा बयानों का नतीजा
यूपी में अपनी सीटें भी नहीं बचा पाई भाजपा
ओ.पी. पाल
. नई दिल्ली।
देश के नौ राज्यों में तीन लोकसभा और 33 विधानसभा सीटों पर उप चुनाव के नतीजे भाजपा के लिए उत्साहजनक नहीं कहे जा सकते, जो अगले महीने हरियाणा और महाराष्ट्र के विधानसभा चुनावों में बेहतर प्रदर्शन करने के लिए भाजपा के लिए एक सबक से कम नहीं हैं। उत्तर प्रदेश में तो भाजपा अपनी विधानसभा सीटें भी बचाने में कामयाब नहीं हो सकी, वहीं भाजपा शासित गुजरात और राजस्थान में भी भाजपा के लिए इन उप चुनाव के नतीजे झटका साबित हुए।
केंद्र में मोदी सरकार के कार्यकाल में यह सबसे बड़ा उप चुनाव था, जिसमें भाजपा खासकर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की प्रतिष्ठा भी दावं पर थी। खासतौर पर उत्तर प्रदेश में जिस तरह से लोकसभा चुनाव में भाजपा ने अप्रत्याशित प्रदर्शन करके देश के सबसे बडेÞे सूबे का दिल जिता है और राज्य में 11 भाजपा के 11 विधायकों को लोकसभा में जगह मिली है। तो ऐसे में मुलायम सिंह यादव द्वारा छोड़ी गई मैनपुरी लोकसभा सीट के उपचुनाव भी भाजपा के खाते में आने की उम्मीद जताई जा रही थी, लेकिन यूपी में भाजपा विधायकों की रिक्त हुए 11 विधानसभा सीटों के उप चुनाव में भाजपा की आठ सीटे सत्तारूढ़ सपा की झोली में चली गई और भाजपा केवल तीन सीटों पर ही वापसी कर सकी है। उप चुनाव के इन नतीजों से भाजपा के जनाधार पर सवालिया निशान खड़े होना स्वाभाविक है। हरिभूमि संवाददाता ने मैनपुरी लोकसभा के अलावा उपचुनाव के प्रचार का जायजा लिया था, जहां भाजपा ने मैनपुरी लोकसभा सीट और सभी 11 विधानसभा सीटों पर निष्पक्ष चुनाव कराने के इरादे में अर्द्धसैनिक बलों की फौज भी उतारी, लेकिन भाजपा को इसका लाभ नहीं मिल सका। राजनीतिक विशेषज्ञों का मानना है कि उत्तर प्रदेश में भाजपा के निराशाजनक प्रदर्शन के पीछे या तो पार्टी का अति आत्मविश्वास या फिर बेइंतहा बयानबाजी बड़ा कारण हो सकती है। भाजपा सुप्रीमो अमित शाह ने योगी आदित्यनाथ पर दांव खेला, जिन्होंने जमकर मेहनत भी की, लेकिन जनता ने उनके लव जेहाद के मुद्दे को नकारते हुए यह सबक दिया है कि सिर्फ उग्र हिंदुत्व के सहारे सत्ता तक नहीं पहुंचा जा सकता, उससे ज्यादा विकास का एजेंडा जनता के सामने होना चाहिए। इन उप चुनाव के नतीजों में सबसे दिलचस्प बात यह भी रही कि यूपी में बसपा सुप्रीमो मायावती ने उप चुनाव में बसपा को दूर रखा और उम्मीमद थी कि बसपा का वोटबैंक के बंटवारे का ज्यादा हिस्सा भाजपा को मिल सकता है, लेकिन नतीजे इसके विपरीत रहे। राजनीति के जानकार तो यहां तक कह रहे हैं कि यूपी में अखिलेश राज किसी से छिपा नहीं है फिर भी सपा के शानदार सियासी प्रदर्शन ने यूपी की राजनीतिक जमीन पर भाजपा के भविष्य पर सवाल खड़े कर दिये हैं।
गुजरात व राजस्थान में भी झटका
भाजपा शासित राज्य गुजरात में लोकसभा की बडोदरा सीट तो भाजपा को वापस मिल गई है, लेकिन लोकसभा चुनाव में गुजरात और राजस्थान में शतप्रतिशत नतीजे हासिल करने वाली भाजपा को उप चुनावों ने झटके दिये हैं। मसलन गुजरात में नौ विधानसभा सीटों पर हुए उप चुनाव में गुजरात की 9 विधानसभा सीटों में से भाजपा छह सीट ही बचाने में कामयाब रही, जबकि कांग्रेस ने भाजपा के विधायकों के सांसद बनने से खाली तीन सीटों पर अपना कब्जा कर लिया। इसी प्रकार राजस्थान में भी लोकसभा चुनाव में सभी सीटें जीतने वाली भाजपा को ठीक चार महीने बाद अपनी खाली चार विधानसभा सीटों में से तीन सीटें गंवानी पड़ी जिन पर कांग्रेस ने कब्जा कर लिया है।
फिर भी सबसे आगे भाजपा
तीनों लोकसभा सीटों के नतीजे तो आम चुनाव की तरह ही रहे, लेकिन नौ राज्यों की विधानसभा सीटों में मात खाने के बावजूद भाजपा सबसे आगे रही। मसलन 33 विधानसभा सीटों के आए नतीजों में भाजपा को सबसे ज्यादा 13 सीटों पर जीत हासिल हुई। भाजपा ने जहां यूपी, गुजरात और राजस्थान में अपनी सीटें गंवाई हैं, वहीं पश्चिम बंगाल की चौरांगी विधानसभा सीट वामदलों से छीनी है तो वहीं असम की सिलचर विधानसभा सीट को कांग्रेस के जबड़े से छीनने में सफलता हासिल की है। इसके अलावा एआईयूडीएफ, सीपीएम, टीएमसी और टीडीपी के अलावा एक सीट निर्दलीय प्रत्याशी ने जीती है। केंद्र में मोदी सरकार के सत्ता संभालने के बाद यह चौथे और सबसे बड़े उप चुनाव थे, जिसमें भाजपा के लिए उम्मीद के विपरीत नतीजे सामने रहे हैं।
17Sep-2014

हरियाणा विधानसभा में करोड़पतियों का वर्चस्व!

15 प्रतिशत विधायकों पर लंबित हैं अपराधिक मामले
ओ.पी. पाल.
नई दिल्ली।
हरियाणा विधानसभा में पिछले पांच साल में निर्वाचित होकर गये विधायकों ने अपनी संपत्ति बढ़ाने में ज्यादा दिलचस्पी दिखाई, जिसका नतीजा है कि 90सदस्यीय विधानसभा में फिलहाल 66 विधायक ऐसे हैं जिनकी संपत्ति करोड़ों में हैं, जबकि बाकी लखपतियों की फेहरिस्त में शामिल हैं। वहीं 17 प्रतिशत यानि 15 विधायक ऐसे हैं जिनके खिलाफ आपराधिक मामले लंबित चल रहे हैं।
हरियाणा विधानसभा चुनाव के लिए राज्य में सभी दलों ने रणभेरी का दम भरा हुआ है, जहां 15 अक्टूबर को चुनाव होने हैं। मौजूदा विधानसभा का स्वरूप कैसा है इसका अध्ययन चुनाव सुधार के लिए काम कर रहे गैर सरकारी संगठन नेशनल इलेक्शन वॉच और ऐसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉम्स ने किया है। इस रिपोर्ट के अनुसार 66 यानि 75 फीसदी करोड़पति विधायकों में पहले पायदान पर अंबाला सिटी के विनोद शर्मा हैं, जिनकी संपत्ति 87 करोड़ रुपये से ज्यादा की है, इसके बाद सिरसा के विधायक गोपाल कांडा जिनकी संपत्ति 63 करोड़ से ज्यादा आंकी गई है। आदमपुर से रेणुका बिश्नोई की सवा 47 करोड़, हिसार से सावित्री जिंदल की 43 करोड़, गुडगांव के सुखबीर की 38 करोड़, बहादुरगढ़ के राजेन्द्र जून की 33 करोड़, डबकाली से अजय चौटाला की 28 करोड़, उचाना कलां से ओमप्रकाश चौटाला की 15 करोड़, बडखल के महेन्द्र प्रताप की 14 करोड़ तथा एलनाबाद से अभय चौटाला की 14 करोड़ की संपत्ति है। इनके अलावा 56 और ऐसे विधायक हैं जिनका नाम कुबेरपतियों की सूची में शामिल है। यदि दलवार करोड़पतियों की बात की जाए तो कांग्रेस के 32, इनेलो के 49, हजकां के पांच और सात निर्दलीय विधायक शामिल हैं। मसलन हरियाणा विधानसभा में एक विधायक की औसतन संपति 7.11 करोड़ आंकी गई है।
सबसे कम संपत्ति
विधानसभा में नरवाना से इनेलो के विधान प्रिथी सिंह ऐसे विधायक हैं जिनकी संपत्ति सबसे कम करीब डेढ़ लाख रुपये ही है, जबकि गुहला के इनेलो के फूल सिंह की करीब सवा तीन लाख और बावल के रामेश्वर दयाल की चार लाख से ज्यादा की है।
अपराधी पृष्ठभूमि वाले विधायक 
हरियाणा विधानसभा में 15 विधायकों पर आपराधिक मामले चल रहे हैं, जिनमें से 13 पर गंभीर धाराओं वाले मामले शामिल हैं। इनमें कांग्रेस के छह,इनेलो के पांच, शिरोमणी अकाली दल का एक और तीन निर्दलीय शामिल हैं। जबकि गंभीर मामलों वाले में कांग्रेस के चार, इनेलो के पांच विधायक भी शामिल हैं।
17Sep-2014

सोमवार, 15 सितंबर 2014

किसानों की प्रतिष्ठा बना 12 तुगलक रोड का बंगला!

भाकियू ने चौ. चरणसिंह स्मारक बताकर डाला डेरा
सरकार से आर-पार की लड़ाई का ऐलान
ओ.पी. पाल.
नई दिल्ली।
रालोद प्रमुख चौधरी अजित सिंह ने बिजली-पानी की आपूर्ति कटने के बाद 12 तुगलक रोड स्थित सरकारी आवास को खाली करना शुरू कर दिया है,लेकिन चौधरी अजित सिंह की हिमायत में भाकियू ने इस सरकारी बंगले पर अपना डेरा जमाना शुरू कर दिया। भाकियू ने इस बंगले का स्व. चौधरी चरण सिंह स्मारक घोषित करने की मांग को लेकर आर-पार की लड़ाई का भी ऐलान कर दिया है, जिसके लिए सोमवार को चौतरफा कई राज्यों के किसान दिल्ली में उमड़ने वाले हैं।
केंद्र सरकार के निर्देश पर पूर्व मंत्रियों एवं सांसदों के सरकारी आवास खाली कराने के लिए सीपीडब्ल्यूडी के जरिए केई नोटिस भेजने के बावजूद सरकारी आवास खाली न करने वाले पूर्व मंत्रियों व पूर्व सांसदों में से 30 सरकारी बंगलों की शनिवार को बिजली व पानी की आपूर्ति ठप कर दी गई, जिसमें यूपीए में कैबिनेट मंत्री रहे राष्ट्रीय लोकदल प्रमुख चौधरी अजित सिंह सुर्खियों में रहे, जो 12 तुगलक रोड़ के बंगले को खाली न कराने के लिए चौधरी चरण सिंह का स्मारक बताकर सरकार पर दबाव बना रहे थे। शनिवार को जब इस बंगले की भी बिजली व पानी आपूर्ति ठप कर दी गई तो चौधरी अजित सिंह ने यह सरकारी आवास खाली करना शुरू कर दिया है, लेकिन रविवार को यहां भाकियू के नेतृत्व में सैकड़ो किसानों ने डेरा डाल लिया और सरकार की इस बंगले को खाली कराने का विरोध किया। भाकियू के राष्ट्रीय प्रवक्ता राकेश टिकैत ने ऐलान किया है कि केंद्र में मंत्री और सांसद होने के नाते चौधरी अजित सिंह को आवंटित इस बंगले को अजित सिंह भले ही खाली कर रहे हों, लेकिन इस बंगले को किसी अन्य मंत्री या सांसद को भी आबंटित नहीं होने दिया जाएगा। इसके लिए उन्होंने तर्क दिया कि यह बंगला पहले से ही स्व. चौधरी चरण सिंह स्मारक समाधि घोषित है और यह किसानों के मसीहा चौधरी चरण सिंह संग्राहलय के रूप में बना रहे, जो किसानों की प्रतिष्ठा से जुड़ा है। यही कारण है कि इसके लिए भाकियू के नेतृत्व में किसान केंद्र सरकार से आर-पार की लड़ाई लड़ने का फैसला कर लिया है। भाकियू नेता राकेश टिकैत ने कहा चरण सिंह के निधन के बाद ही तत्कालीन कांग्रेस की केंद्र सरकार ने भाकियू के संस्थापक अध्यक्ष चौधरी महेन्द्र सिंह टिकैत की मौजूदगी में 12 तुगलक रोड़ को चौ. चरण सिंह स्मारक घोषित कर दिया था, जहां वे प्रधानमंत्री बनने के बावजूद भी रहे हैं। दरअसल ऐसे 158 सांसद थे, 16वीं लोकसभा का चुनाव हार गए। इनमें से 70 सांसदों को सरकार ने नोटिस देकर उन्हें बीती 26 जुलाई तक अपने सरकारी आवास खाली करने को कहा गया था, जिनमें से शनिवार को 30 पूर्व सांसदों की बिजली व पानी की सुविधाएं बंद कर दी गई। जाहिर है कि अजित सिंह अपना सरकारी बंगला खाली नहीं कर पाए, जो बागपत से और उनके पुत्र जयंत चौधरी मथुरा से बीता लोकसभा चुनाव हार गए थे।
भाकियू ने सरकार द्वारा सरकारी बंगलों की बिजली पानी ठप करने पर यह भी चेतावनी दी है कि यदि सरकार 12 तुगलक रोड़ के बंगले की बिजली व पानी आपूर्ति ठप करती है तो किसान पूरी दिल्ली के बिजली व पानी को ठप रखने की कुबत रखते हैं। यह सरकार के विवेक पर निर्भर है कि वह किसानों से आर-पार की लड़ाई लड़ना चाहती है या नहीं। यदि 12 तुगलक रोड के बंगले पर आर-पार की लड़ाई होती है तो किसान गंगा के पानी को बंद कर देंगे और मंडोला से बिजली आपूर्ति ठप करने के लिए मजबूर हो जाएंगे। भाकियू नेता राकेश टिकैत ने आरोप लगाया कि जब दिल्ली में जगजीवन राम स्मारक व कांशीराम स्मारक के अलावा अन्य नेताओं के नाम के स्मारक बन सकते हैं तो किसानों के मसीहा रहे चौधरी चरण सिंह का स्मारक व संग्राहलय क्यों नहीं बन सकता। वहीं राकेश टिकैत ने भाजपा के कई पूर्व सांसदों का हवाला दिया जो अपने सरकारी आवासों में जमे हुए हैं। उन्होंने यह भी ऐलान किया कि भाकियू आर-पार की लड़ाई के लिए सोमवार से हरेक टैक्टर में 21 किसान और पांच कुंतल अनाज के साथ दिल्ली पहुंचना शुरू हो जाएंगे।
दो पूर्व प्रधानमंत्रियों की आस्‍था
केन्द्रीय शहरी विकास मंत्रालय और नई दिल्ली नगर पालिका मिलकर 12 तुगलक रोड से पूर्व केन्द्रीय मंत्री अजित सिंह को और 2 साउथ एवेन्यू के बंगले से नीरज शेखर को बाहर निकालने की कोशिश कर रही है। हालांकि अब तो ये बंगले इन नेताओं के नामों पर ही आवंटित थे, पर ये मूल रूप से मिले थे चौधरी चरण सिंह को और चंद्रशेखर को। ये दोनों देश के प्रधानमंत्री भी रहे। बताने की जरूरत नहीं है कि अजित सिंह पुत्र हैं चरण सिंह के और नीरज शेखर पुत्र हैं चंद्रशेखर के। सूत्रों के अनुसार चौधरी चरण सिंह 12 तुगलक रोड में 1978 में और चंद्रशेखर 1971 में साउथ एवेन्यू के बंगले में गए थे। तब से इनके परिवार इनमें ही रह रहे हैं। अब राजग सरकार इन दोनों बंगलों को खाली कराने की कार्यवाही कर रही है।
15Sep-2014

शनिवार, 13 सितंबर 2014

यूपी में सपा व भाजपा के बीच होगा मुकाबला !

मैनपुरी लोकसभा सीट के अलावा 11 विधानसभा सीटो पर उप चुनाव आज
यूपी में 2017 के विधानसभा चुनाव की दिशा तय करेंगे उप चुनाव
ओ.पी. पाल

मैनपुरी/ नई दिल्ली।
नौ राज्यों में तीन लोकसभा और 33 विधानसभा सीटों के लिए उपचुनाव कल शनिवार को होगा, जिसके लिए चुनाव आयोग ने कड़ी सुरक्षा के इंतजाम किये हैं। उत्तर प्रदेश में सत्ताधारी पार्टी सपा के लिए मैनपुरी लोकसभा व 11 विधानसभाओं का उप चुनाव साख की कसौटी पर है, जहां भाजपा ने भी अपना राजनीतिक जाल बिछाकर पूरी ताकत झोंक दी है।
शनिवार को हो रहे उप चुनाव में उत्तर प्रदेश की एक लोकसभा और 11 विधानसभा चुनाव में सपा और भाजपा की सीधी टक्कर मानी जा रही है, जहां सभी राज्यों की सीटों पर वैसे तो केंद्र सरकार का नेतृत्व कर रही भाजपा की प्रतिष्ठा दांव पर है, लेकिन उत्तर प्रदेश के उपचुनाव भाजपा के लिए अत्यंत अहम माने जा रहे हैं, जहां सपा प्रमुख मुलायम सिंह के नेतृत्व में यूपी की मैनपुरी लोकसभा सीट और 11 विधानसभा चुनाव में जीत हासिल करना पार्टी के लिए अग्निपरीक्षा से कम नहीं होगा, इसका कारण है कि मैनपुरी लोकसभा और अन्य विधानसभा सीटों पर निष्पक्ष और शांतिपूर्ण मतदान कराने के लिए जिस प्रकार से चुनाव आयोग ने अर्द्धसैनिक बलों की तैनाती की है इस प्रकार की सुरक्षा लोकसभा के आम चुनाव में भी नहीं की गई थी। सपा के सांसद धर्मेन्द्र यादव ने कहा कि सपा अपनी जीत के प्रति आश्वस्त है उसके सामने केवल जीत के अंतर को बढ़ाने की दरकार है। जहां तक चुनाव आयोग द्वारा अप्रत्याशित केंद्रीय बल तैनात करने का सवाल है उसके लिए समाजवादी पार्टी ने भाजपा का इशारा बताया है। वहीं लगातार मैनपुरी और आसपास के मौसम का मिजाज भी मतदान को प्रभावित करेगा, इसे सपा भी स्वीकार कर रही है, लेकिन यह भी दावा कर रही है कि सपा समर्थकों में जोश है जो बारिश के बावजूद भी वोट डालने जाएंगे और सपा की जीत निश्चित है। जबकि भाजपा के नेताओं ने मैनपुरी में दावा किया कि इस क्षेत्र में चुनाव के दौरान गड़बड़ी होने की आशंका न रहे इसलिए सुरक्षा बल जरूरी था, ताकि मतदाता बेखौफ मतदान स्थल तक अपने अधिकार का प्रयोग कर सके। भाजपा भी निष्पक्ष चुनाव होने पर अपनी जीत सुनिश्चित मानकर चल रही है। मैनपुरी लोकसभा सीट के अलावा उत्तर प्रदेश की शाहजहांपुर नगर, बिजनौर,ठाकुरद्वारा, नोएडा, निघासन, लखनऊ पूर्व, हमीरपुर, चरखारी, सिराथु, बल्हा व रोहनियां विधानसभा सीटों पर भी मतदान कराया जा रहा है। लोकसभा के आम चुनाव में यूपी में बेहतर प्रदर्शन करके भाजपा ने परचम लहराया था, जिसके लिए ये उपचुनाव अत्यंत अहम माने जा रहे हैं। दूसरी और मैनपुरी लोकसभा सीट पिछले ढाई दशक से सपा के कब्जे में है, जिसे बचाने की चुनौती राज्य के सत्तारूढ़ दल के सामने है। उत्तर प्रदेश में मैनपुरी और 11 विधानसभा चुनाव भाजपा व सपा के लिए इसलिए भी अहम हैं जिनसे वर्ष 2017 में विधानसभा चुनाव की दिशा तय होगी।
नौ राज्यों के उपचुनाव पर राजग की नजरें
16वीं लोकसभा के लिए 543 सीटों के लिए हुए चुनाव में भाजपा के नरेन्द्र मोदी ने वाराणसी और बडोदरा से चुनाव जीता था, तो इसी प्रकार सपा के मुलायम सिंह यादव ने आजमगढ़ व मैनपुरी से जीत हासिल की थी। जबकि तेलंगाना की मेडक सीट से लोकसभा चुनाव जीते टीआरएस प्रमुख चन्द्रशेखर राव ने भी राज्य का मुख्यमंत्री बनने पर इस्तीफा दे दिया था। निर्वाचन नियमों के अनुसार नरेन्द्र मोदी ने बडोदरा तथा मुलायम सिंह ने मैनपुरी संसदीय सीट से इस्तीफा दिया था। इन तीनों लोकसभा सीटों पर शनिवार को उप चुनाव हो रहा है। यूपी की मैनपुरी लोकसभा सीट और 11 विधानसभा सीटों के अलावा गुजरात की बडोदरा लोकसभा और नौ विधानसभा सीटों दीसा, मनीनगर, टंकारा, खंभालिया, मंगरोल, तलाजा, आनंद, मतर, व लिमखेडा में उपचुनाव होगा। वहीं आंध्र प्रदेश की नंदीगामा, आसाम की सिल्चन, लखीपुर तथा जमुनामुख, छत्तीसगढ़ की अनतागढ़(सु), राजस्थाना की सूरजगढ़, वेइर, नसीराबाद व कोटा दक्षिण, सिक्किम की रंगांग-यंगांग, त्रिपुरा की मानु, पश्चिम बंगाल की बसीरहट दक्षिण व चौवरांगी विधानसभा सीट पर भी कल शनिवार को उपचुनाव हो रहा है। इन सभी सीटों पर राजग की नजरें टिकी हुई है।
13Sep-2014

शुक्रवार, 12 सितंबर 2014

मैनपुरी लोकसभा सीट: सपा व भाजपा ने झोंकी ताकत !

भारी  सुरक्षा के साय में होगा उपचुनाव
मैनपुरी से ओ. पी. पाल
उत्तर प्रदेश में एक मात्र लोकसभा सीट मैनपुरी और 11 विधानसभाओं के लिए शनिवार को होने वाले उप चुनाव के लिए गुरूवार को चुनाव प्रचार थम गया है, जहां अंतिम दिन खासतौर से सपा व भाजपा ने अपनी-अपनी ताकत झोंक दी। सपा ने मैनपुरी लोकसभा के चुनाव प्रचार में वरिष्ठ नेताओं के नेतृत्व में जुलूस निकाला, तो भाजपा ने मैनपुरी व विधानसभा चुनाव के लिए अद्धैसैनिक बलों की तैनाती पर जोर दिया है, जिसे सपा भाजपा का एक हथकंडा करार दे रही है, जबकि भाजपा इस सुरक्षा व्यवस्था को निष्पक्ष चुनाव कराने के लिए मतदाताओं को बेखौफ मताधिकार का प्रयोग करने का तर्क दे रही है।
शनिवार को यूपी की मैनपुरी लोकसभा और 11 विधानसभा सीटों पर होने वाले उप चुनाव के लिए भाजपा व सपा में सीधी टक्कर मानी जा रही है। मैनपुरी लोकसभा सीट के लिए चुनाव प्रचार के अंतिम दिन सपा के सांसद रामगोपाल यादव व धमेन्द्र यादव के अलावा यूपी के कबीना मंत्री शिवपाल यादव आदि अनेक वरिष्ठ सपा नेताओं के नेतृत्व में शहर में जुलूस निकालकर अपनी ताकत दिखाई, तो भाजपा नेताओं ने भी चुनाव प्रचार में हर तरीकें अपनाए, वहीं भाजपा ने गृहमंत्री राजनाथ की रणनीति के तहत चुनाव आयोग के जरिए मैनपुरी लोकसभा सीट के लिए 70 कंपनियां अद्धैसैनिक बलों की अप्रत्याशित फौज को मतदान केंद्रों पर तैनात के लिए उतार दिया है, जबकि विधानसभा सीटों के लिए एक तमतदान केंद्र पर अर्द्धसैनिक बलों के सात जवान तैनात रहेंगे। यूपी में हो रहे उप चुनाव में इतनी बड़ी अर्द्धसैनिक बलों की तैनाती पर सपा के महासचिव एवं राज्यसभा सांसद रामगोपाल यादव ने आरोप लगाया कि भाजपा ने सपा को रोकने के लिए खासकर अर्द्धसैनिक बलों की इतनी बड़ी फौज उतारकर मतदाताओं में खौफ का वातावरण बनाने का प्रयास किया है। रामगोपाल ने तर्क दिया कि 11 विधानसभा सीटों पर अर्द्धसैनिक बलों के सात जवान एक बूथ पर रहेंगे, उसके हिसाब से मैनपुरी लोकसभा सीट पर 35 कंपनियां तैनात होनी चाहिए थी,लेकिन राजनाथ के इशारे पर इस लोकसभा सीट पर दो गुना अद्धैसैनिक बल तैनात किये जा रहे हैं। यादव ने कहा कि मैनपुरी लोकसभा सीट पर सपा की जीत को इसके बावजूद भाजपा रोक नहीं पाएगी। उन्होंने हालांकि माना है कि मैनपुरी लोकसभा और विधानसभा सीटों पर सपा व भाजपा के बीच ही सीधा मुकाबला होना है और मैनपुरी लोकसभा सीट पर पिछले ढाई दशक से कोई भी पार्टी सपा को परास्त नहीं कर सकी है, इसलिए सपा के लिए जीत में वोट प्रतिशत बढ़ाने का लक्ष्य है, जहां कांग्रेस व बसपा का प्रत्याशी न होने से इनके हिस्से के वोट बैंक बंटना तय है। दूसरी और मैनपुरी लोकसभा सीट पर बसपा व कांग्रेस का प्रत्याशी न होने का फायदा मिलने का दावा भाजपा भी ताल ठोककर कर रही है, जिनके नेताओं का कहना है कि इस क्षेत्र में निष्पक्ष वोट डालने की परंपरा ध्वस्त होने की आशंका को देखते हुए अद्धैसैनिक बलों की सुरक्षा के बीच चुनाव कराने की चुनाव आयोग से अनुरोध किया गया था, जिसके बाद सुरक्षा के साय में निष्पक्ष चुनाव होने के कारण भाजपा की जीत सुनिश्चित हैं, जहां वोटर बेखौफ वोट कर सकेगा।
आसान नहीं भाजपा की राह
सोलहवीं लोकसभा के चुनाव में सपा प्रमुख मुलायम सिंह ने आजमगढ़Þ और मैनपुरी दोनों सीटों पर जीत दर्ज की थी और बाद मे मैनपुरी सीट छोड़ दी है, जिसके कारण यहां 13 सितंबर को इस सीट पर उप चुनाव हो रहा है। इस सीट को बचाने के लिए जहां सपा अपने परंपरागत पैंतरे आजमा रही है। मैनपुरी लोकससभा सीट पर मुलायम परिवार का वर्चस्व रहा है जिसे तोड़ने के लिए भाजपा ने हर हालत में उपचुनाव में मैनपुरी संसदीय सीट पर जीत दर्ज करने के लिए प्रतिष्ठा को दांव पर लगा दिया है। हालांकि भाजपा व बसपा या अन्य किसी दल के लिए इस सीट पर ढाई दशक से जारी मुलायम सिंह के सियासी तिलिस्म को तोड़ नहीं सकी हैं।मैनपुरी लोकसभा सीट पर कुल 16 लाख 47 हजार मतदाता हैं। जातिगत आंकड़ों में सबसे ज्यादा मतदाता 4 लाख 40 हजार के करीब यादव हैं। दूसरे नंबर पर 2 लाख 60 हजार के करीब शाक्य वोटर हैं, जबकि 1 लाख 97 हजार के करीब ठाकुर, 1 लाख 60 हजार के आसपास ब्राह्मण, 1 लाख लोधे और 60 हजार के करीब मुस्लिम मतदाता हैं, इसी तरह 2 लाख 70 हजार के आसपास दलित मतदाता भी राजनीतिक दलों की सूची में है। भाजपा नेताओं का दावा है कि समाजवादी पार्टी के प्रत्याशी के साथ मात्र पांच लाख मत हैं, जबकि उनके साथ अन्य सभी जातियां हैं।
12Sep-2014

उप चुनाव: दावं पर लगी मोदी और मुलायम की प्रतिष्ठा!

तीन लोकसभा और 33 विधानसभा के लिए मतदान 13 को
ओ.पी. पाल. नई दिल्ली।
गुजरात और उत्तर प्रदेश समेत नौ राज्यों में तीन लोकसभा और 33 विधानसभा सीट पर 13 सितंबर को होने वाले उप चुनावों में जहां केंद्र की राजग सरकार की अगुवाई कर रहे प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की लोकप्रियता को लेकर प्रतिष्ठा दावं पर है, वहीं खासकर उत्तर प्रदेश में सत्तारूढ़ दल के मुखिया मुलायम सिंह यादव की साख भी उप चुनाव की कसौटी पर कसी जाएगी।
लोकसभा चुनाव में मोदी मैजिक की बदौलत भाजपा केंद्र में सत्ता हासिल करके नेतृत्व करने के लिए जिस तरह से जनादेश लेकर आई उसमें लगभग सभी विपक्षी दलों की राजनीति जमीन से खिसकी है और कई दलों का तो राष्टÑीय राजनीति में अस्तित्व भी जाता रहा है। लोकसभा चुनाव में नरेन्द्र मोदी यूपी की वाराणसी और गुजरात की बडोदरा सीट से जीते थे, जिन्होंने बडोदरा संसदीय सीट छोड़ दी है। इसी प्रकार सपा प्रमुख यूपी की आजमगढ़ व मैनपुरी से चुनाव जीते थे, जिन्होंने मैनपुरी सीट छोड़ी है, तो इसी प्रकार आंध्र प्रदेश की मेडक सीट से लोकसभा चुनाव जीतने वाले टीआरएस प्रमुख चंद्रशेखर राव ने तेलंगाना का मुख्यमंत्री बनने के बाद संसदीय सीट से इस्तीफा दिया था। लोकसभा की इन तीनों रिक्त सीटों पर 13 सितंबर को उप चुनाव होना है। इसी प्रकार लोकसभा चुनाव में विभिन्न राज्यों में विधायकों ने जीत हासिल कर लोकसभा में प्रवेश किया तो वे सीटे रिक्त हो गई थी, जिन्हें भरने के लिए नौ राज्यों की 33 विधानसभा सीटों पर उप चुनाव हो रहे हैं, इनमें उत्तर प्रदेश में 11 विधानसभा और गुजरात में नौ विधानसभ सीटें शामिल हैं, जहां गुजरात के मुख्यमंत्री रह चुके नरेन्द्र मोदी के प्रधानमंत्री पद संभालने के बावजूद प्रतिष्ठा दांव पर है। इसके अलावा राजस्थान की चार, पश्चिम बंगाल की दो तथा छत्तीसगढ़ व आंध्र प्रदेश की एक-एक विधानसभा सीटों पर उप चुनाव हो रहा है। लोकसभा में ऐतिहासिक रूप से बदले राजनीतिक परिदृश्य के बावजूद राजग सरकार बनने के बाद हुए दो उप चुनाव के नतीजे भाजपा के नेतृत्व में राजग के लिए एक सबक के रूप में उभरे, जिसके लिए 13 सितंबर के चुनाव राजग के लिए बेहद अहम माने जा रहे हैं।
अग्नि परीक्षा से कम नहीं उप चुनाव
भाजपा और समाजवादी पार्टी के लिए ये उपचुनाव राजनीति के सामने आ रहे आयामों के लिहाज से काफी अहम माने जा रहे हैं, जिसमें स्वयं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता भी सियासी कसौटी पर है, तो समाजवादी पार्टी प्रमुख मुलायम सिंह के लिए उत्तर प्रदेश में स्वयं की छोड़ी मैनपुरी संसदीय सीट और राज्य की 11 विधानसभा के उपचुनाव में साख दांव पर लगी हुई है। दरअसल नरेन्द्र मोदी के लोकसभा चुनाव में ऐतिहासिक विजय हासिल करने के बाद यह तीसरे उप चुनाव हो रहे हैं। लोकसभा चुनावों के तुरंत बाद उत्तराखंड विधानसभा की तीन सीटों पर उप चुनाव हुए थे और सभी पर कांग्रेस विजयी रही थी, जिसमें भाजपा के पूर्व मुख्यमंत्री रमेश पोखरियाल निशंक की डोईवाला विधानसभा सीट बचाने में भी पार्टी सफल नहीं हो पाई थी। इसी प्रकार अगस्त में बिहार सहित चार राज्यों की 18 विधानसभा सीटों पर हुए उपचुनावों में यूपीए को दस और राजग को आठ सीटें मिली थीं। उप चुनावों के इन नतीजों के कारण राजग के लिए 13 सितंबर के होने वाले उप चुनाव किसी अग्नि परीक्षा से कम नहीं माने जा रहे हैं।
11Sep-2014

मंगलवार, 9 सितंबर 2014

मैनपुरी लोकसभा उपचुनाव:भाजपा ने झोंकी ताकत!

सपा व भाजपा में कांटे की टक्‍कर
ओ.पी. पाल. नई दिल्ली।
लोकसभा में ऐतिहासिक प्रदर्शन करने के बाद भाजपा यूपी की मैनपुरी लोकसभा सीट पर हो रहे चुनाव में सपा के वर्चस्व को तोड़ने के लिए पूरी जान फंूके हुए है, जहां भाजपा को बसपा व कांग्रेस का प्रत्याशी न होने का भी फायदा मिलता दिखाई दे रहा है। इस चुनाव में भाजपा के प्रेम सिंह शाक्य व मुलायम ने अपने बड़े भाई के पौत्र तेज प्रताप यादव के बीच ही सीधी कांटे की टक्कर है।
सोलहवीं लोकसभा के चुनाव में अपने वर्चस्व को कायम रखने वाले सपा प्रमुख मुलायम सिंह ने मैनपुरी सीट जीतने के बाद छोड़ दी है, जिसके कारण यहां 13 सितंबर को इस सीट पर उप चुनाव हो रहा है। इस सीट को बचाने के लिए जहां सपा अपने परंपरागत पैंतरे आजमा रही है, वहीं केंद्र में भाजपा की सरकार का लाभ और दूसरे उप चुनावों से तौबाकर अलग हो चुकी बसपा व कांग्रेस की गैरमौजूदगी का लाभ भाजपा के प्रत्याशी प्रेम सिंह शाक्य आंकड़ो के हिसाब से बाजी मारते नजर आ रहे हैं। भाजपा ने अपना दल के साथ लोकसभा के आम चुनाव में यूपी की 80 में से 73 सीटें कब्जाई थी, मुलायम ने अपने पास आजमगढ़ सीट रखी है, इसलिए भाजपा के राजनीतिक समीकरण का दांव सीधे करवट बैठा तो यूपी में भाजपा गठबंधन के साथ 74 सीटें हो सकती है। इस सीट के लिए चुनाव प्रचार अंतिम चरम पर है जहां भाजपा कार्यकर्ता और वरिष्ठ नेता जीजान से मोदी सरकार की सौ दिन की उपलब्धियों का प्रचार करके सपा के वोटबैंक में सेंध लगाने में जुटे हुए हैं।अभी तक इस सीट पर मुलायम परिवार का वर्चस्व रहा है जिसे तोड़ने के लिए भाजपा ने हर हालत में उपचुनाव में मैनपुरी संसदीय सीट पर जीत दर्ज करने के लिए प्रतिष्ठा को दांव पर लगा दिया है। हालांकि भाजपा व बसपा या अन्य किसी दल के लिए इस सीट पर ढाई दशक से जारी मुलायम सिंह के सियासी तिलिस्म को तोड़ नहीं सकी हैं, लेकिन उप चुनाव में भाजपा की उम्मीदें बरकरार हैं। अब देखना है कि इस उप चुनाव में सपा प्रमुख मुलायम सिंह यादव के परिवार की राजनीतिक साख नतीजे आने पर किस करवट बैठती हैं।मैनपुरी सीट के उपचुनाव में भाजपा की ओर से प्रचार की कमान वरिष्ठ नेता और केंद्रीय मंत्री कलराज मिश्र, गोरखपुर से सांसद योगी आदित्यनाथ और प्रदेश अध्यक्ष लक्ष्मीकांत वाजपेयी के हाथों में है। तो सपा के तेज प्रताप को जिताने के लिए सपा के दिग्गज शिवपाल यादव लगातार मैनपुरी में डटे हुए हैं और मुलायम सिंह यादव भी 6 और 7 सितंबर को चुनावी रणनीति का बिगुल बजाकर चुनाव पर नजर रखे हुए हैं। भाजपा को उम्मीद है कि नरेंद्र मोदी की साख के सहारे वह मुलायम के गढ़ में सेंध लगाने में कामयाब रहेगी।
मैनपुरी लोकसभा सीट पर कुल 16 लाख 47 हजार मतदाता हैं। जातिगत आंकड़ों में सबसे ज्यादा मतदाता 4 लाख 40 हजार के करीब यादव हैं। दूसरे नंबर पर 2 लाख 60 हजार के करीब शाक्य वोटर हैं, जबकि 1 लाख 97 हजार के करीब ठाकुर, 1 लाख 60 हजार के आसपास ब्राह्मण, 1 लाख लोधे और 60 हजार के करीब मुस्लिम मतदाता हैं, इसी तरह 2 लाख 70 हजार के आसपास दलित मतदाता भी राजनीतिक दलों की सूची में है। भाजपा नेताओं का दावा है कि समाजवादी पार्टी के प्रत्याशी के साथ मात्र पांच लाख मत हैं, जबकि उनके साथ अन्य सभी जातियां हैं। उनके दावे से हट कर मौके की स्थिति की बात करें, तो पिछले चुनाव में मुलायम सिंह यादव के साथ अधिकाँश ठाकुर मतदाता थे एवं ब्राह्मण भी रहे, लेकिन इस चुनाव में ठाकुर व ब्राह्मण पूरी तरह भाजपा के साथ खड़े नजर आ रहे हैं।
09Sep-2014

रविवार, 7 सितंबर 2014

आखिर जाली पायलटों पर गिरने लगी गाज!



डीजीसीए रद्द करेगी 131 पायलटों के लाइसेंस
परीक्षा दिये बिना सैकड़ो पायलट उड़ा रहे हैं विमान
ओ.पी. पाल.
नई दिल्ली।
विमानन क्षेत्र में हवाई यात्रा करने वाले लोगों की सुरक्षा को सुनिश्चित करने के लिए पायलटों के फर्जीवाड़े पर लगाम कसने की मोदी सरकार की शुरू की गई कवायद रंग लाने लगी है। मोदी सरकार की पहल पर डीजीसीए ने जाली पायलटों की जांच में जेट एयरवेज पर ऐसा चाबुक चलाया है कि उसकी विमानन कंपनी के विमानों को बिना किसी योग्यता परीक्षा दिये विमानों को उड़ा रहे 131 पायलटों के लाइसेंस निरस्त करने की तैयारी कर ली, जिन्हें नोटिस जारी किये गये हैं।
मोदी सरकार के जाली पायलटों के खिलाफ कार्यवाही करने संबन्धी खबर हरिभूमि ने ‘जाली पायलट लाइसेंसों पर कसेगा शिकंजा’ नामक शीर्षक से प्रकाशित की थी, जिसका असर एक दिन बाद ही सामने नजर आया। विमानन मंत्रालय के अनुसार डीजीसीए ने जेट एयरवेज के 131 पायलटों के अलावा कंपनी के प्रशिक्षण कार्यक्रम के अंकेक्षण के आधार पर पायलटों के अलावा जेट के मुख्य परिचालन अधिकारी और प्रशिक्षण प्रमुख को भी नोटिस जारी किए गए हैं। इन कारण बताओ नोटिस में हर छह महीने में होने वाली पायलट दक्षता जांच (पीपीसी) परीक्षण जैसी कौशल परीक्षा (प्रोफिशिएंसी टेस्ट)दिये बिना विमानों की उड़ान भरने पर टिप्पणी टिप्पणी की गई है। डीजीसीए ने विमानन कंपनी से पूछा है क्यों न इन पायलटों के उड़ान लाइसेंस रद्द कर दिये जाएं। डीजीसीए द्वारा विमानन क्षेत्र में अभी तक की किसी विमानन कंपनी के खिलाफ यह सबसे बड़ी कार्यवाही करने का मामला माना जा रहा है। डीजीसीए ने जेट एयरवेज को यह भी आदेश दिया है कि वह वह अपने पायलट प्रशिक्षक प्रमुख, मुख्य परिचालन अधिकारी को भी तत्काल हटाने की कार्यवाही अमल में लाये। सूत्रों के अनुसार डीजीसीए ने जेट एयरवेज की मुंबई-ब्रुसेल्स μलाइट के दौरान पायलट के सो जाने की शिकायत मिलने के बाद विमानन करंपनी में पायलटों को दिये जाने वाले प्रशिक्षण की जांच की, जिसमें डीजीसीए ने जेट एयरवेज में पायलट प्रशिक्षण देने के मामले में गंभीर अनियमितताएं और लापरवाही बरतना पाया। इसके लिए डीजीसीए ने जेट के चीफ आॅपरेटिंग आॅफिसर को भी कारण बताओ नोटिस जारी कर सवाल किया है कि कंपनी के खिलाफ ट्रेनिंग में कमी के लिए उनके खिलाफ क्यों ने कार्रवाई जाए। डीजीसीए के सूत्रों के अनुसार जेट एयरवेज के उक्त पायलटों ने विमानन नियामक के नियमों के अनुसार द्विवार्षिक पायलट की परीक्षा भी उत्तीर्ण नहीं की, जिससे हवाई यात्रा करने वालों के सामने सुरक्षा का खतरे से निपटने में ये पायलट सक्षम नहीं हो सकते। गौरतलब है कि मोदी सरकार ने भ्रष्टाचार के खिलाफ शिकंजा कसने के लिए वैसे तो कई अहम फैसले किये हैं, इनमें विमानन क्षेत्र में यात्रियों की सुरक्षा को सुनिश्चित करने की दिशा में हो रहे फर्जीवाड़े को रोकने के लिए भी डीजीसीए के जरिए विमानन कंपनियों के लिए नए सिरे से दिशा निर्देश जारी किये गये थे।
क्या है नए दिशा निर्देश
नागर विमानन मंत्रालय के सूत्रों की माने तो पिछले दिनों सामने आए कुछ मामलों में डीजीसीए के अधिकारियों और कर्मचारियों की भी फर्जी पायलट लाइसेंस जारी करने में भूमिका सामने आ चुकी है तो इस प्रक्रिया को और कड़ा किया जा रहा है। विमानों में पायलटों को प्रशिक्षण नागर विमानन अपेक्षाएं विनियमन के अनुसार दिया जाता है। राजग सरकार ने हवाई मार्ग और हवाई यात्रा में यात्रियों की सुरक्षा को प्राथमिकता देते हुए जाली पायलट लाइसेंसो की उच्च स्तरीय जांच करने के दिशा निर्देश जारी किये हैं, इसमें जाली μलार्इंग स्कूलों के खिलाफ भी कार्यवाही का पैमाना तय किया जा रहा है। नए दिशा निर्देशों के अनुसार नागर विमानन नियामक डीजीसीए ने लाइसेंस जारी करने से पूर्व दस्तावजों के सत्यापन के लिए ठोस कदम उठाने शुरू कर दिये हैं,जिसमें विदेशों से पढ़ाई करके लौटे भारतीय पायलटों को भी जांच के दायरे में लाया जा रहा है। मसलन विदेशी लाइसेंस को भारतीय लाइसेंस में परिवर्तित करने के लिए पायलट के लाइसेंसों का सत्यापन विदेशी लाइसेंस जारी करने वाले वाले देश के संबधित विनियामक प्राधिकरण से कराना अनिवार्य बना दिया गया है। वहीं विदेश में ली गई उ ड़ान के अतिरिक्त संबन्धित पायलट की अपेक्षित विमान कौशल परीक्षा भी भारत में कराना जरूरी कर दिया गया है।
07Sep-2014

शनिवार, 6 सितंबर 2014

जाली पायलट लाइसेंसों पर कसेगा शिकंजा!

फर्जी फ़लाइंग स्कूलों की भी खैर नहीं
डीजीसीए ने जारी किये नए दिशा निर्देश
ओ.पी. पाल
. नई दिल्ली।
मोदी सरकार ने भ्रष्टाचार के खिलाफ शिकंजा कसने के लिए वैसे तो कई अहम फैसले किये हैं, इनमें विमानन क्षेत्र में यात्रियों की सुरक्षा को सुनिश्चितकरने की दिशा में हो रहे फर्जीवाड़े को रोकने के लिए भी डीजीसीए के जरिए विमानन कंपनियों के लिए नए सिरे से दिशा निर्देश जारी किये गये हैं। खासकर जाली दस्तावेजों के जरिए पायलट लाइसेंस हासिल करने वालों पर शिकंजा कसने की तैयारी जोरो पर है, जिसमें पायलटों को प्रशिक्षण देने वाले फर्जी μलाइंग स्कूलों की भी शामत आना तय है।
नागर विमानन मंत्रालय के सूत्रों की माने तो भारत में परिचालित विमानों पर दस हजार से भी ज्यादा पायलट हैं, जिनके दस्तावेजों की जांच करने की एक प्रक्रिया पहले से ही है, लेकिन पिछले दिनों सामने आए कुछ मामलों में डीजीसीए के अधिकारियों और कर्मचारियों की भी फर्जी पायलट लाइसेंस जारी करने में भूमिका सामने आ चुकी है तो इस प्रक्रिया को और कड़ा किया जा रहा है। हालांकि विमानों के लिए पायलटों की भर्तियां विमानन नीति के तहत की जाती है, फिर विमानों में पायलटों को प्रशिक्षण नागर विमानन अपेक्षाएं विनियमन के अनुसार दिया जाता है। मंत्रालय के अनुसार इस प्रक्रिया के बावजूद पिछले तीन साल में ऐसे तीन दर्जन मामले सामने आए हैं जिसमें जाली दस्तावेजों के आधार पर जाली वाणिज्यिक पायलेट लाइसेंस जारी किये गये,इन मामलों की जांच में डीजीसीए के सहायक निदेशक तक की मिली भगत पाई गई और दोषियों के खिलाफ कानूनी कार्यवाही भी की जा रही है। राजग सरकार ने हवाई मार्ग और हवाई यात्रा में यात्रियों की सुरक्षा को प्राथमिकता देते हुए जाली पायलठट लाइसेंसो की उच्च स्तरीय जांच करने के दिशा निर्देश जारी किये हैं, इसमें जाली μलार्इंग स्कूलों के खिलाफ भी कार्यवाही का पैमाना तय किया जा रहा है। नए दिशा निर्देशों के अनुसार नागर विमानन महानिदेशालय यानि डीजीसीए ने लाइसेंस जारी करने से पूर्व दस्तावजों के सत्यापन के लिए ठोस कदम उठाने शुरू कर दिये हैं, जिसमें विदेशों से पढ़ाई करके लौटे भारतीय पायलटों को भी जांच के दायरे में लाया जा रहा है। मसलन विदेशी लाइसेंस को भारतीय लाइसेंस में परिवर्तित करने के लिए पायलट के लाइसेंसों का सत्यापन विदेशी लाइसेंस जारी करने वाले वाले देश के संबधित विनियामक प्राधिकरण से कराना अनिवार्य बना दिया गया है। वहीं विदेश में ली गई उ ड़ान के अतिरिक्त संबन्धित पायलट की अपेक्षित विमान कौशल परीक्षा भी भारत में कराना जरूरी कर दिया गया है। सूत्रों के अनुसार नए दिशा निर्देशों के मुताबिक अब पायलट लाइसेंस प्रक्रिया की जांच एक तीसरा पक्ष करेगा तथा भारत में चल रहे सभी फ़लाइंग स्कूल का आॅडिट करने की प्रक्रिया को तेज करने का निर्णय लिया गया है। सरकार के इस कदम को फर्जी दस्तावेज के सहारे पायलट बनने के मामले को नागरिक और विमान जगत की सुरक्षा के रूप में सरकार के इस कदम को अत्यंत महत्वपूर्ण दृष्टि के रूप में देखा जा रहा है।
प्राथमिकता पर यात्रियों की सुरक्षा

नागर विमान मंत्रालय के अनुसार किसी भी विमान में सवार यात्रियों की सुरक्षा पायलट के कौशल पर निर्भर होती है, इसलिए पिछले सालों में सामने आए हादसों से सबक लेते हुए कुशल और अनुभवी पायलटों की भर्ती करने के लिए विमानन कंपनियों को दिशा निर्देश देकर यात्रियों की सुरक्षा और सुविधाओं को प्राथमिकता पर रखने के लिए केंद्र सरकार का स्पष्ट फरमान है। भारत में विमान क्षेत्र के बढ़ते विस्तार को देखते हुए सुरक्षित हवाई मार्ग और पायलट का कौशल हवाई यात्रियों की सुरक्षा के लिए की जा रही पहल के लिए महत्वपूर्ण है।
बाधाओं से निपटने के प्रावधान
सूत्रों के अनुसार पिछले मार्च 2011 के दौरान जाली पायलट लाइसेंस निरस्त करने और दोषी पायलटों के खिलाफ कानूनी कार्यवाही के दौरान विमान सेवाएं बाधित भी हुई हैं, जिसके विरोध में अइंडियन कार्मिशियल पायलट एसोसिएशन के बैनर तले पायलटों की लंबी हड़ताल ने विमानन उद्योग खासकर एयर इंडिया की आर्थिक कमर तोड़ दी थी, हालांकि वैकल्पिक व्यवस्था से भी विमानन सेवाएं सुचारू करना एक टेढ़ी खीर बना हुआ था। विमानन मंत्रालय के अनुसार हाईकोर्ट के हस्तक्षेप के जरिए इस एसोसिएशन की मान्यता को रद्द हुई और कई दर्जन पायलटों के लाइसेंस निरस्त किये गये। तब कहीं जाकर करीब ढाई माह बाद जुलाई में हडताल को समाप्त होने के बाद विमान सेवाएं पटरी पर आई। हालांकि सरकार को अपनी शर्तो पर ज्यादातर पायलटों को बहाल करना भी पड़ा। ऐसी स्थिति भविष्य में न आए इसके लिए डीजीसीए ने नए दिशा निर्देशों में प्रावधान किये हैं।
05Sep-2014

गुरुवार, 4 सितंबर 2014

सौ दिन में ही ‘मजबूत भारत की तस्वीर’ उकेर गए मोदी!

सात समंदर पार तक बजा मोदी मंत्र का डंका!
सौ दिन में किये अहम फैसले, सर्वे में भी मिला बहुमत
ओ.पी. पाल
. नई दिल्ली।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की अगुवाई में केंद्र की राजग सरकार के बुधवार को सौ दिन पूरे हो गये हैं। इस दौरान मोदी सरकार के कामकाज और तौरतरीकों का प्रभाव देश के लिए बनाए गये विकास के एजेंडे की तरफ रूख कर रहा है तो वहीं विदेश नीति में भी मोदी सरकार बाजी मारता नजर आ रही, जिसका परिणाम है कि देश में निवेश करने और विभिन्न क्षेत्रों में प्रभावी समझौतों के लिए दुनिया के दूसरे देशों ने भी भारत की तरफ अपना रुख करना शुरू कर दिया है। मसलन मोदी सरकार के सौ दिन के कामकाज को अपने देश में तो बहुमत के साथ समर्थन मिला है, वहीं विदेशों में भी मोदी मंत्र की गूंज देखने को मिली।
लोकसभा चुनाव में प्रचंड बहुमत हासिल करने के बाद जब सौ दिन पहले नरेन्द्र मोदी की अगुवाई में राजग सरकार ने शपथ ली थी तो उसमें पडोसी देशों से मधुर रिश्ते वाली विदेश नीति का समावेश रहा और सौ दिन पूरे भी विदेश नीति के साथ ही पूरे हुए जब प्रधानमंत्री मंत्री जापान की पांच दिन की यात्रा में नमो मंत्र की छाप छोड़ने के बाद स्वदेश लौटे। विपक्षी दल भले ही मोदी सरकार के सौ दिन के कार्यकाल को निराशाजन करा दे रहा हो, लेकिन देश की जनता और विभिन्न सेक्टर में मोदी सरकार के कार्यकाल का डंका बजता दिख रहा है। मसलन इन सौ दिनों में मोदी सरकार के आर्थिक, राजनीतिक, सामाजिक और विदेश नीति से लेकर किये गये कामकाज का लेखा जोखा देखा जाए तो मोदी सरकार ने ऐतिहासिक बदलाव के साथ देश की व्यवस्था में सकारात्मक परिवर्तन के संकेत दिये हैं। देश की विकास दर में आई बढ़ोतरी के बाद औद्योगिक संगठनों ने भी मोदी सरकार के काम का डंका बजाया है, तो वहीं एक एजेंसी के देशभर में किये गये सर्वेक्षण में भी सौ दिन के कामकाज में मोदी सरकार को दो तिहाई बहुमत से उत्तीर्ण किया है यानि देश के हर तीन में से दो यानि 60 प्रतिशत भारतीयों ने मोदी सरकार के सौ दिन के शासन पर संतुष्टि जताई है। यही नहीं देश में लाइलाज होते भ्रष्टाचार रोकने में भी मोदी की नीतियों को 54 अंक मिले हैं। देश की अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने की राह बनाने के लिए भी राजग सरकार के तौरतरीकों से लोग संतुष्ट हैं। केंद्र सरकार पर नरेन्द्र मोदी के नियंत्रण की नीति तो 83 फीसदी लोगों को रास आई। इसके अलावा प्रधानमंत्री मोदी के राज्यों के साथ समन्वय बनाकर काम करने की नीति को भी इन सौ दिनों में सफल माना गया है।
विदेशनीति का माना गया लोहा
देश ने अरसे बाद केंद्र की किसी सरकार की विदेश नीति का लोहा माना है, जिसका असर सरकार का कामकाज संभालने की पूर्व संध्या पर देखने को मिल गया था। इसी का असर मोदी को वीजा देने से मना करते आ रहे अमेरिका झुकता नजर आया और भारत के दौरे पर आए अमेरिकी विदेश मंत्री जॉन केरी भी मोदी के मुरीद होते नजर आए तथा मोदी को अमेरिका आने का न्यौता तक देने को मजबूर होना पड़ा। इसी प्रकार ब्रिक्स सम्मेलन में हिस्सा लेने ब्राजील गए नरेंद्र मोदी ने अंतरराष्ट्रीय मंच को भी आकर्षित किया और भारत ब्रिक्स बैंक का अध्यक्ष बना। ब्राजील में ही चीन के राष्ट्रपति के साथ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की मुलाकात हुई, हालांकि इससे पहले भारत की यात्रा पर आए चीनी विदेश मंत्री की भारत यात्रा के दौरान दोनों देशों के बीच आर्थिक रूप से महत्वपूर्ण समझौते किये गये, तो वहीं रूस के रिश्तों को नजदीक लाने के लिए मोदी ने रूस के उप प्रधानमंत्री से मुलाकता कर दो और न्यूक्लियर रिएक्टर बनाने के साथ दोनों देशों के बीच ऊर्जा सुरक्षा समझौते किये। सिंगापुर के विदेश मंत्री की भारत यात्रा में विदेश नीति का असर नजर आया। पिछले महीने ही प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने नेपाल की यात्रा पर अपनी विदेशनीति और पडोसी देशों से संबन्धों को प्रगाढ़ करने की मंशा सामने पेश की। प्रधानमंत्री बनने के बाद नरेन्द्र मोदी ने भूटान की यात्रा की और सौवें दिन जापान की यात्रा से नई दिल्ली वापस आए, जिनमें सरकार की विदेश नीति कैसी रहने वाली है इसका अहसास दुनिया के अन्य देश भी करने लगे हैं, जो भारत के साथ समझौते करके निवेश के लिए अपनी रूचि दिखाते नजर आ रहे हैं। पाकिस्तान से एनवक्त पर विरोधी गतिविधियों के कारण वार्ता को निरस्त करने का फैसला दूसरे देशों के लिए भी एक सख्त और पारदर्शी संदेश माना गया है।
सौ दिन में ज्यादा उपलब्धियां
मोदी सरकार के सौ दिन के कार्यकाल से देश की अर्थव्यवस्था पटरी पर लाने और विकास को जनांदोलन बनाने वाली प्रधानमंत्री की घोषणाएं सिरे चढ़ती महसूस की जा रही है। स्वतंत्रता दिवस पर घोषणा के साथ ही प्रधानमंत्री जन धन योजना ने आम जनता के सरकार के प्रति विश्वास को बढ़ाया है, तो वहीं इस दौरान पेट्रोल और गैस के दामों में कमी करने, विकास दर को मजबूत करने के साथ विदेशों में जमा कालेधन पर शासन की बागडौर संभालते ही कार्यवाही को अंजाम देने की मुहिम ने सरकार के भरोसे को बढ़ाया है। दिलचस्प पहलू यह है कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने सरकार के कामकाज में तेजी लाने और नौकरशाही के कामकाज के तरीकों में परिवर्तन करके त्वरित कार्यवाही करने की नीति ने उम्मीदें जगाई हैं। विकास के ढांचे को मजबूत करने और आम जनता की पहुंच तक सभी बुनियादी सुविधाओं संबन्धी योजनाओं को गति देने के साथ कृषि, सड़क, उद्योग तथा अन्य सभी सेक्टरों की योजनाओं का खाका तैयार करने वाली योजनाओं ने सरकार के कामकाज और तौरतरीकों के प्रति देश को आकर्षित किया है। इस दौरान सरकार के अनोपयोगी कानूनों का निरस्त करके नए कानूनों को लागू करने के फैसले भी ऐसे हैं जो देश के विकास और आम लोगों के हित में साबित होंगे। कुछ जटिल मुद्दों पर आने वाली चुनौती को सरकार सभी राजनीतिक दलों के साथ बैठकर हल करने की पक्षधर है, जिसमें जमीन अधिग्रहण विधेयक में कुछ और लचीलापन लाने की योजना है। बीमा में विदेशी निवेश की सीमा बढ़ाने से जनता को होने वाले लाभ, किसानों और गरीबों के हित में डब्ल्यूटीओ में उठाए गए कड़े कदम और डिजिटल इंडिया संबंधी फैसले इस रणनीति के केंद्र में रहेंगे। मोदी सरकार के बजट सत्र के दौरान आम बजट और रेल बजट में की गई घोषणाओं पर भी सरकार के बढ़ते कदमों ने राजग सरकार के प्रति विश्वास पैदा किया है। हालांकि सरकार का कहना है कि मोदी सरकार का यह एजेंडा सौ दिन का नहीं, बल्कि पूरे पांच साल का तय है, जिसमें दुनिया भारत की तरफ देखेगी।
सुधरेगी अर्थव्यवस्था!
आर्थिक मामलों के जानकारों की राय में विदेशी निवेशक जो देश में पैसा लगाने से परहेज कर रहे थे, वो अचानक खरीदारी पर उतर आए हैं। भारतीय उद्योग परिसंघ के अध्यक्ष अजय श्रीराम का कहना है कि नई सरकार ने विकास और सुधार के प्रति प्रतिबद्धता दिखाई है, जिससे निवेश का माहौल बेहतर हुआ है। हालांकि विशेषज्ञ के मुताबिक देश को नियंत्रण वाली अर्थव्यवस्था से विकासोन्मुख अर्थव्यवस्था की तरफ ले जाने के लिए अभी सरकार को बहुत कुछ करना बाकी है। फेडरेशन आॅफ इंडियन चैंबर्स आफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री यानि के अध्यक्ष सिद्धार्थ बिड़ला ने भी मोदी सरकार के कामकाज को सराहते हुए यह विश्वास जताया है कि 'मेक इन इंडिया' और 'मेड इन इंडिया' के सपने को पूरा करने के लिए जरूरी नीतियों और उपायों को लागू करने के लिए मोदी सरकार गंभीर नजर आ रही है।
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मंगलवार, 2 सितंबर 2014

शराबी चालकों पर शिकंजा कसेगा नया कानून!


सड़क दुर्घटनाओं पर अंकुश लगाने को गंभीर सरकार
नए मोटर वाहन अधिनियम का मसौदा तैयार: गडकरी
ओ.पी. पाल.
नई दिल्ली।
दुनियाभर के देशों के मुकाबले भारत की सड़कों पर हो रही दुघर्टनाओं में मौतों की संख्या तेजी से बढ़ रही है, जिन्हें रोकने के लिए मोदी सरकार गंभीर है और वह पुराने मोटर वाहन अधिनियम के स्थान पर नए कानून बनाने की तैयारी कर चुकी है, जिसमें शराब पीने वाले वाहन चालकों की शामत आना तय है। सरकार नए मोटर वाहन अधिनियम के लिए संसद के शीतकालीन सत्र में एक विधेयक लाने की तैयारियों को अंजाम दे चुकी है।
केंद्र की राजग सरकार ने इस आंकड़े पर चिंता जताई है जिसमें हर साल सड़कों पर होने वाली दुर्घटनाओं और उसकी वजह से मरने वालों की संख्या तेजी से बढ़ रही है। सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्रालय के आंकड़े के मुताबिक भारत में हर साल सड़क दुर्घटनाओं में 1.38 लाख लोगों की मौत हो जाती है,जिसकी कुल सामाजिक लागत लगभग एक लाख करोड़ रुपये बैठती है। यही नही, सड़क दुर्घटनाओं के चलते होने वाली 63 फीसदी मौतें राष्ट्रीय और राजमार्गों पर होती हैं। मंत्रालय के अनुसार पुराने कानून में कारगर सड़क इंजीनियरिंग के अभाव में दोषपूर्ण डीपीआर तैयार की गईं, जिसके कारण सड़क दुर्घटनाओं में मौतों की संख्या बढ़ती जा रही है। यही कारण है कि सड़क सुरक्षा के अलावा शहरी क्षेत्रों में जिस सबसे बड़ी समस्या से दो-चार होना पड़ रहा है, वह है वाहनों की संख्या में अप्रत्याशित बढ़ोतरी। इस वजह से जहां एक ओर सड़कों पर अक्सर जाम लग जाता है, वहीं दूसरी ओर सड़क यातायात के नियमों के उल्लंघन के मामले बढ़ते जा रहे हैं। इसलिए सरकार अपनी प्रासंगिकता खोते जा रहे मौजूदा मोटर वाहन अधिनियम 1988 के स्थान पर नया मोटर वाहन अधिनियम लाने की तैयारी कर रही है। इस अधिनियम में शराब पीकर वाहन चलाने वालों पर शिकंजा कसना जरूरी माना गया है जिनके कारण दुर्घटनाओं की संख्या में बढ़ोतरी देखी गई है। हालांकि सरकार राजमार्गो पर बनी शराब की दुकानों को भी प्रतिबंधित करने पर विचार कर रही है।
शीतकालीन सत्र में आएगा बिल

केंद्रीय सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्री नितिन गडकरी ने सोमवार को यहां सड़क यातायात प्रबंधन की क्षमता बढ़ाने की दिशा में सड़क यातायात शिक्षा संस्थान द्वारा ‘सड़क सुरक्षा’ विषय पर आयोजित एक कार्यशाला में कहा कि सरकार शीतकालीन सत्र में एक नया सड़क यातायात अधिनियम पेश करेगी,जो पुराने कानून का स्थान लेगा। गडकरी ने कहा कि नया मोटर वाहन अधिनियम सड़क क्षेत्र से जुड़े अंतर्राष्ट्रीय अधिनियमों के समतुल्य होगा। इसके लिए तैयार किये जा रहे मसौदा पहले ही अंतिम चरण में पहुंच चुका है, जिसमें अमेरिका, कनाडा, सिंगापुर, जापान, जर्मनी और ब्रिटेन सरीखे विकसित देशों में अपनाए जा रहे सर्वोत्तम तरीकों की खास बिंदुओं को शामिल किया जा रहा है। उन्होंने कहा कि नए कानून में पूर्ण पारदर्शिता और भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाने पर बल होगा और देशभर में सड़क दुर्घटनाओं पर सर्वोच्च स्तर पर जवाबदेही तय हो सकेगी। वहीं लोगों को सहज, सुगम सेवाएं प्रदान करने तथा समग्र पारदर्शिता लाने के लिए परिवहन विभाग को ई-गवर्नेंस से जोड़ा जाएगा।
नए कानून के खास प्रावधान

नए मोटर वाहन अधिनियम के मसौदे में देशभर के क्षेत्रीय परिवहन कार्यालयों यानि आरटीओ में भ्रष्टाचार जैसी कुप्रथाओं को समाप्त करके नई व्यवस्था के तंत्र को गठित करने पर भी जोर दिया गया है। मंत्रालय के सूत्रों के अनुसार नए कानून में आनलाईन परमिट जारी करने को मान्यता तथा कैमरे में रिकार्डिंग के आधार पर कार्यवाही करने का प्रावधान किया जा रहा है। मसलन यातायात नियमों का उल्लंघन करने वालों पर अर्थदंड लगाने की व्यवस्था से भ्रष्टाचार मुक्त और पारदर्शी प्रणाली सामने आएगी, जिसमें ड्राइविंग लाइसेंस का पूरा रिकार्ड होगा। इस कानून के जरिए यातायात नियंत्रण, प्रदूषण नियंत्रण करने की कवायद के साथ चालकों के खिलाफ किसी तरह का अपराध होने पर उसका लाइसेंस निरस्त करने के प्रावधान पर भी बल दिया गया है। यही नहीं महिला सुरक्षा के मद्देनजर पब्लिक वाहनों में महिला यात्रियों से बढ़ती छेड़छाड़ और अपराध को रोकने के लिए कड़ा प्रस्ताव तैयार किया गया है। इसके लिए यदि पब्लिक वाहन का ड्राइवर अपराध में लिप्त मिलता है या आपराधिक इतिहास रखता है तो सीधे वाहन परमिट निरस्त कर दिया जाएगा और परिवहन विभाग के इस प्रस्ताव में वाहन मालिक पर भी कार्रवाई करने के लिए स्वतंत्र होगा।
02Sep-2014

शतक: चुनौती से निपटने में सक्षम मोदी सरकार!

दिखने लगा व्यवस्था में सकारात्मक बदलाव: जेटली
ओ.पी. पाल.
नई दिल्ली।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की अगुवाई में तीन माह पूरे कर चुकी भाजपानीत राजग सरकार कार्यकाल के दिनों का शतक पूरा करने की ओर है। राजग सरकार के अभी तक के कार्यकाल पर केंद्र सरकार ने दावा किया है कि केंद्र की मोदी सरकार ने देश की जनता से जो वायदे पूरे किये हैं उन्हें पूरा करने के लिए हर प्रकार की चुनौती से निपटने के लिए सक्षम है। वहीं आर्थिक मामलों के जानकारों ने भी देश को आर्थिक मजबूती देने वाले मोदी सरकार के फैसलों को मिल का पत्थर बताने में कोई कोताही नहीं बरती। इसका नतीजा देश के सामने है जब विकास दर में वृद्धि सामने आई है।
मोदी सरकार ने आर्थिक रूप से देश को मजबूत बनाने की दिशा में महत्वपूर्ण कदम उठाए हैं जिनसे उम्मीदें जगी हैं। शनिवार को वित्त मंत्री अरुण जेटली ने सरकार के सौ दिन का लेखा-जोखा सामने रखा और कहा कि जब भाजपा ने सत्ता संभाली, तो देश के समक्ष निर्णय लेने में धीमापन तथा निवेशकों का विश्वास खो जाने जैसी चुनौतियां सामने खड़ी थी, लेकिन धीरे-धीरे बढ़े विश्वास ने इन्हें कम किया और सरकार के कामकाज में सकारात्मक नजीजे नजर आने लगे। हालांकि मुद्रास्फीति को काबू में करना, वृद्धि एवं निवेश को फिर से पटरी पर लाना तथा राजकोषीय घाटे को स्वीकार्य स्तर पर रखना सरकार की प्राथमिकता है। अभी तक की सरकार की उपलब्धियों पर जेटली ने कहा कि 100 दिनों में जो निर्णय लिए गए, उनका दीर्घकालीक प्रभाव धीरे-धीरे महसूस हो रहा है और 30 साल बाद एक पार्टी की सरकार बनने से फैसले लेने से हरेक चुनौती से पार पाना भी आसान होगा। यही कारण है कि देश की अर्थव्यवस्था के प्रति निवेशकों का भरोसा तेजी के साथ बढ़ा है और 5.7 फीसदी की विकास दर सरकार के एजेंडे का हौसला बढ़ाने से कम नहीं है। उन्होंने कहा कि सरकार कारोबार को आसान बनाने कदम उठाने के साथ ज्यादातर क्षेत्रों में सामाजिक क्षेत्र के व्यय को बरकरार रखते हुए निर्णय लेने की प्रक्रिया में तेजी लाने की पक्षधर है। उन्होंने कहा कि मुद्रास्फीति में नरमी आने के बाद विनिर्माण क्षेत्र में भी स्थिति बदल रही है। जेटली ने कहा कि देश के पास खाद्यान्न का पर्याप्त भंडार है और सामान्य तौर पर एक समय होता है, जब कुछ फल एवं सब्जियों के दाम चढ़ जाते हैं, लेकिन माली हालत सुधरने के साथ महंगाई भी धीरे-धीरे कम हो रही है। देश की अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने की दिशा में प्रधानमंत्री जनधन योजना के तक करीब सवा दो करोड़ बैंक अकाउंट खुलना भी एक अच्छा संकेत है।
मेक इन इंडिया-मेड इन इंडिया
आर्थिक मामलों के जानकारों की की राय में विदेशी निवेशक जो देश में पैसा लगाने से परहेज कर रहे थे, वो अचानक खरीदारी पर उतर आए हैं और इससाल उनकी शुद्ध लिवाली 26 अरब डॉलर तक पहुंच गई। भारतीय उद्योग परिसंघ के अध्यक्ष अजय श्रीराम का कहना है कि नई सरकार ने विकास और सुधार के प्रति प्रतिबद्धता दिखाई है, जिससे निवेश का माहौल बेहतर हुआ है। उद्योग जगत ने भी मोदी की काम करने वाले की छवि का लोहा माना है। हालांकि विशेषज्ञ के मुताबिक देश को नियंत्रण वाली अर्थव्यवस्था से विकासोन्मुख अर्थव्यवस्था की तरफ ले जाने के लिए अभी सरकार को बहुत कुछ करना बाकी है। फेडरेशन आफ इंडियन चैंबर्स आॅफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री यानि के अध्यक्ष सिद्धार्थ बिड़ला ने भी मोदी सरकार के कामकाज को सराहते हुए यह विश्वास जताया है कि 'मेक इन इंडिया' और 'मेड इन इंडिया' के सपने को पूरा करने के लिए जरूरी नीतियों और उपायों को लागू करने के लिए मोदी सरकार गंभीर नजर आ रही है, तभी विनिर्माण क्षेत्र में प्रतिस्पर्धा बढ़ेगी। यही नहीं स्वच्छ भारत कार्यक्रम, कौशल विकास मिशन और वित्तीय समावेशीकरण योजनाओं से न सिर्फ सामाजिक सुरक्षा के साथ ग्रामीण क्षेत्रों को मजबूत बनाने की दिशा में काम को गति मिली है।
अभी बाकी हैं चुनौतियां
जेटली ने कहा कि कुछ जटिल मुद्दों पर आने वाली चुनौती को सरकार सभी राजनीतिक दलों के साथ बैठकर हल करेगी, जिसमें जमीन अधिग्रहण विधेयक में कुछ और लचीलापन लाने की योजना है। बीमा में विदेशी निवेश की सीमा बढ़ाने से जनता को होने वाले लाभ, किसानों और गरीबों के हित में डब्ल्यूटीओ में उठाए गए कड़े कदम और डिजिटल इंडिया संबंधी फैसले इस रणनीति के केंद्र में रहेंगे। सूत्रों की माने तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इन फैसलों के बारे में जनता के बीच गए संदेश से संतुष्ट नहीं हैं। इसलिए सरकार चाहती है कि इन फैसलों के मकसद से जनता को कैसे लाभ मिले इस संदेश की जानकारी देना जरूरी है, जिसका प्रयास संगठन की स्थानीय ईकाइयों के जरिए सरकार कर रही है। वहीं सौ दिन पूरे होते ही हरेक मंत्रालय प्रधानमंत्री कार्यालय को अपनी प्रगति रिपोर्ट भी सौंपेगा। प्रधानमंत्री कार्यालय इन्हीं प्रस्तुतियों के बाद सरकार के सौ दिन का रिपोर्ट कार्ड तैयार करेगी। इसका कारण है कि पूरे देश की नजर प्रधानमंत्री और उनके मंत्रिमंडल के विकास के कार्यों पर है और देश की जनता जानना चाहेगी कि राजग सरकार ने 100 दिन में कौन-कौन से विकास के काम किए हैं।
देश करेगा मूल्यांकन
केंद्र की राजग सरकार के 100 दिन पूरे होने जाएंगे। इस पर रेल मंत्री डीवी सदानंद गौडा ने कहा कि उनकी सरकार के कामकाज का मूल्यांकन देश की जनता ही कर सकती है, जिसने अपेक्षाओं के साथ उन्हें केंद्र की सत्ता सौंपी है। उन्होंने कहा कि सौ दिन के कामकाज की रिपोर्ट जनता के सामने रखेगी तो उसका मूल्यांकन जनता खुद करके सरकार की दिशा तय करेगी।
31Aug-2014

हरियाणा की रेल सुविधाओं को मिली मंजिल

कैप्टन अभिमन्यु की पहल रंग लाई
ओ.पी. पाल
. नई दिल्ली।
मोदी सरकार के रेल बजट में हरियाणा को जो सौगात दी गई थी, उसकी ज्यादातर योजनाओं को एक सितंबर से शुरू किया जा रहा है, जिससे हरियाणा व दिल्ली के बीच आवागमन करने वाले यात्रियों खासकर दैनिक यात्रियों को लाभ मिल सकेगा।
रेल बजट में सरकार ने हरियाणा को दी गई रेल योजनाओं को भाजपा नेता कैप्टन अभिमन्यु के अनुरोध पर शामिल किया था, जिन्हें अंजाम देना शुरू कर दिया गया हैँ उत्तर रेलवे की नई समय सारिणी के प्रभावी होते ही हरियाणा के लिए रेल बजट में दिल्ली जंक्शन-रोहतक एमईएमयू, रेवाड़ी-रोहतक डीईएमयू तथा अलीगढ़-पलवल एमईएमयू से ही चलना शुरू हो जांगी। पांच में से तीन हरियाणा में तो एक जम्मू-कश्मीर के बारामूला-बनिहाल तक नई डेमू चलाने का ऐलान किया गया है। इसके अलावा उत्तर रेलवे ने नई समय सारिणी में एक मात्र जिस रेलगाडी के फेरों में वृद्धि करने का ऐलान किया है उसमें दिल्ली जंक्शन से रोहतक के बीच चलने वाली मेमू रेलगाड़ी ही शामिल की गई है। इसी दिन से शुरू होने वाली नई एक्सप्रेस रेलगाड़ियों में नई दिल्ली से बठिंडा के बीच सप्ताह में दो दिन सोमवार व शनिवार को चलने वाली नई शताब्दी एक्सप्रेस का रोहतक, जींद और जाखल में ठहराव किया जाएगा। जबकि अहमदाबाद व माता वैष्णो देवी कटरा के बीच चलने वाली साप्ताहिक एक्सप्रेस रेलगाड़ी रेवाड़ी, भिवानी, हिसार, सिरसा रेलवे स्टेशनों पर ठहराव करेगी। इसी प्रकार से जयपुर और चंडीगढ़ के बीच शुरू हो रही नई दैनिक इंटरसिटी एक्सप्रेस ट्रेन भी रास्ते में रेवाडी, झज्जर, रोहतक, नरवाना, कैथल, कुरूक्षेत्र व अंबाला छावनी में रूककर चलेगी। नई समय सारिणी में कोटा और उधमपुर के बीच चलने वाली नई साप्ताहिक एम्सप्रेस का ठहराव भी फरीदाबाद,सोनीपत, पानीपत, करनाल, कुरूक्षेत्र व अंबाला रेलवे स्टेशनो पर किया जाएगा। इसके अलावा उत्तर रेलवे ने अमृतसर-हिसार के बीच चलने वाली रेलगाडी को सादुलपुर तक चलाने का ऐलान करके विस्तार किया है। गौरतलब है कि भाजपा के हरियाणा में लोकप्रिय नेता कैप्टन अभिमन्यु ने रेल बजट आने से पहले रेल मंत्री डीवी सदानंद गौडा से मुलाकात करके हरियाणा के लिए रेलवे की इन सुविधाओं को रेल बजट में शामिल करने का अनुरोध किया था, जिसे स्वीकार करते हुए सरकार ने हरियाणा को रेल संबन्धी सुविधाओं की सौगात दी।
हरियाणा की ओर आवागमन का समय
दिल्ली जंक्शन तथा रोहतक के बीच चलने वाली 64915 दिल्ली जंक्शन-रोहतक मेमू दिल्ली जंक्शन से सुबह 10.10 बजे रवाना होकर 12.20 बजे दोपहर रोहतक रेलवे स्टेशन पंहुंचेगी, जबकि वापसी दिशा में यह 64916 रोहतक-दिल्ली जंक्शन मेमू रोहतक रात्रि नौ बजे रवाना होकर रात्रि 11.10 बजे दिल्ली जंक्शन पहुंच जाएगी। इसी प्रकार रोहतक से 64914 रोहतक- दिल्ली जंक्शन मेमू दोपहर डेढ़ बजे रवाना होकर पौने चार बजे दिल्ली जंक्शन पहुंचेगी। जबकि वापसी दिशा में दिल्ली जंक्शन से 64913 दिल्ली जंक्शन-रोहतक मेमू पांच बजे रवाना होकर सात बजे रोहतक रेलवे स्टेशन पहुंच जाएगी। रेलवे के अनुसार रेवाड़ी व रोहतक के बीच चलाई जा रही नई दैनिक 74017 रेवाडी-रोहतक डेमू पैसेंजर रेलगाडी रेवाडी से प्रतिदिन सायं 7.50 पर रवाना होकर रात्रि 10.10 बजे रोहतक पहुंचेगी, जबकि वापसी दिशा में रोहतक से 74018 रोहतक-रेवाडी डेमू पैसेंजर सुबह पांच बजे चलकर दो घंटे बाद सात बजे रेवाडी पहुंचेगी। इसी प्रकार नई दैनिक 64168 अलीगढ़-पलवल मेमू अलीगढ़ से सायं 4.30 बजे रवाना होकर रात्रि साढे आठ बजे नई दिल्ली और वहां से चलने के बाद रात्रि साढे दस बजे पलवल पहुंचेगी। जबकि पलवल से 64167 पलवल-अलीगढ़ मेमू सुबह 3.50 बजे रवाना होगी, जो सुबह दस बजे वाया नई दिल्ली होकर अलीगढ़ पहुंच जाएगी।
30Aug-2014