रविवार, 28 सितंबर 2014

दहेज के मामलों का निपटान बना चुनौती!

देश में छोड़ी गई महिलाओं ज्यादा हुई विधवाओं की संख्या
ओ.पी. पाल
. नई दिल्ली।
भले ही केंद्र सरकार देशभर की अदालतों में लंबित पड़े आपराधिक मामलों के निपटाने की दिशा में ठोस कदम उठाने और त्वरित निपटान न्यायालयों की स्थापना की योजनाओं को अंजाम देने का दावा करती आ रही हों, लेकिन यह सच है कि देश में दहेज उत्पीड़न जैसे मामलों की संख्या निरंतर बढ़ती जा रही है। इसी का परिणाम है कि देश में तलाकशुदा या पतियों के परित्याग के बाद अकेले चुनौतियों का सामना कर रही महिलाओं से कहीं ज्यादा विधवाओं की संख्या है।
केंद्र सरकार की महिलाओं की सुरक्षा और उनके प्रति अपराधों के प्रति गंभीरता का नजरिया रखा है और न्यायिक सुधार के लिए पहल भी शुरू की है,जिसमें खासकर न्याय पाने की बाट जो रही महिलाओं के लंबित मामलों के निपटान को एक चुनौती मानते हुए ठोस कदम उठाने का दावा किया है। केंद्रीय विधि एवं न्याय मंत्री रविशंकर प्रसाद ने पिछले महीने ही कहा था कि दहेज के लंबित मामलों को निपटाने के लिए केंद्र सरकार ने त्वरित निपटान न्यायालय यानि फास्ट टेÑक कोर्ट की स्थापना के लिए अधीनस्थ न्यायपालिका में सृजित किये जाने वाले न्यायाधीशों के दस प्रतिशत रिक्त पदों के उपयोग करने के लिए राज्य सरकारों तथा उच्च न्यायालयों के मुख्य न्यायमूर्तियों से अनुरोध किया है। वहीं केंद्र सरकार ने तेरवें वित्त आयोग से इन रिक्त पदों पर होने वाले पूरे व्यय हेतु मौजूदा वित्तीय वर्ष के अंत तक बराबर शेयर के आधार पर अधिकतम 80 करोड़ वार्षिक निधि का प्रबंध करने का भी भरोसा दिया है। जहां तक देश में दहेज प्रतिषेध अधिनियम के अंतर्गत दर्ज मामलों के न्यायालयों में लंबित मामलों का सवाल है, विधि मंत्रालय के अनुसार उनकी संख्या तीन लाख 72 हजार 706 हो चुकी है, जिसमें 31888 मामले भारतीय दंड संहिता की धारा 304 ख के अधीन भी लंबित हैं। अदालतों में लंबित दहेज के मामलों पश्चिम बंगाल पहले पायदान पर है जहां करीब 1.10 लाख मामले लंबित हैं। इसके बाद महाराष्ट् में 54600 मामले निपटारे का इंतजार कर रहे हैं। गुजरात में 42859, राजस्थान में 28317, आंध्र प्रदेश में 22634, केरल में 20844, उत्तर प्रदेश में 15705, मध्य प्रदेश में 12621, असम में 9680 व उडीसा में 9584 दहेज एक्ट के मामले लंबित हैं। इनके अलावा छत्तीसगढ़ में 4632, हरियाणा में 6743, दिल्ली में 3838, पंजाब में 3971 व हिमाचल में 1296 मामलों में दहेज उत्पीड़न की महिलाएं न्याय की बाट जोहने को मजबूर हैं।
विधवाओं की बढ़ती संख्या चिंता
देशभर में दहेज के लिए परित्याग या अन्य किसी कारण से विधवा हो रही महिलाओं की संख्या में लगातार इजाफा भी केंद्र व राज्यों की सरकार के लिए बड़ी चुनौती बनता जा रहा है। केंद्र सरकार के आंकड़ों पर गौर करें तो देश में जहां 23 लाख 42 हजार 940 महिलाएं दहेज के कारण या तलाक के कारण अलग रहने को मजबूर हैं, तो वहीं विधवाओं की संख्या तीन करोड़ 42 लाख 89 हजार 729 हो चुकी है। विधवाओं में सबसे ज्यादा 37 लाख 63 हजार 168 उत्तर प्रदेश में हैं, जबकि 37 लाख 26 हजार 735 विधवाओं की संख्या के साथ महाराष्ट् दूसरे पायदान पर है। इसके बाद आंध्र प्रदेश में 32 लाख 70 हजार 964 विधवाएं अपना गुजर-बसर कर रही हैं। मध्य प्रदेश में 17 लाख 52 हजार 228 तथा छत्तीसगढ़ में विधवाओं की संख्या सात लाख 71 हजार 106 आंकी गई है, जबकि हरियाणा में यह संख्या पांच लाख 33 हजार 974 है, तो दिल्ली में तीन लाख, पांच हजार 940 विधवाएं हो चुकी हैं।
परित्याग का दर्द झेलती महिलाएं
दहेज या तलाक की शिकार ऐसी महिलाओं की संख्या हालांकि विधवाओं से बहुत कम यानि 23 लाख 42 हजार 940 हैं, लेकिन इनका दर्द भी न्यायालयों में लंबित मामलों के कारण कम नहीं है। ऐसी महिलाओं की सबसे ज्यादा संख्या तीन लाख 26 हजार198 महाराष्ट् में हैं, जिसके बाद पश्चिम बंगाल में 287344, आंध्र प्रदेश में 261525, तमिलनाडु में 249356, केरला में 196085, उत्तर प्रदेश में 112855, गुजरात में 105753 महिलाएं पति के परित्याग का दर्द झेल रही हैं। मध्य प्रदेश में ऐसी महिलाओं की संख्या 115807, छत्तीसगढ़ में 90985, हरियाणा में 11410, दिल्ली में 13541, हिमाचल में 8336,राजस्थान में 49544 हैं।
28Sep-2014

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