बुधवार, 17 सितंबर 2014

उपचुनावों के नतीजे भाजपा के लिए सबक!

अति आत्मविश्वास या बेइंतहा बयानों का नतीजा
यूपी में अपनी सीटें भी नहीं बचा पाई भाजपा
ओ.पी. पाल
. नई दिल्ली।
देश के नौ राज्यों में तीन लोकसभा और 33 विधानसभा सीटों पर उप चुनाव के नतीजे भाजपा के लिए उत्साहजनक नहीं कहे जा सकते, जो अगले महीने हरियाणा और महाराष्ट्र के विधानसभा चुनावों में बेहतर प्रदर्शन करने के लिए भाजपा के लिए एक सबक से कम नहीं हैं। उत्तर प्रदेश में तो भाजपा अपनी विधानसभा सीटें भी बचाने में कामयाब नहीं हो सकी, वहीं भाजपा शासित गुजरात और राजस्थान में भी भाजपा के लिए इन उप चुनाव के नतीजे झटका साबित हुए।
केंद्र में मोदी सरकार के कार्यकाल में यह सबसे बड़ा उप चुनाव था, जिसमें भाजपा खासकर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की प्रतिष्ठा भी दावं पर थी। खासतौर पर उत्तर प्रदेश में जिस तरह से लोकसभा चुनाव में भाजपा ने अप्रत्याशित प्रदर्शन करके देश के सबसे बडेÞे सूबे का दिल जिता है और राज्य में 11 भाजपा के 11 विधायकों को लोकसभा में जगह मिली है। तो ऐसे में मुलायम सिंह यादव द्वारा छोड़ी गई मैनपुरी लोकसभा सीट के उपचुनाव भी भाजपा के खाते में आने की उम्मीद जताई जा रही थी, लेकिन यूपी में भाजपा विधायकों की रिक्त हुए 11 विधानसभा सीटों के उप चुनाव में भाजपा की आठ सीटे सत्तारूढ़ सपा की झोली में चली गई और भाजपा केवल तीन सीटों पर ही वापसी कर सकी है। उप चुनाव के इन नतीजों से भाजपा के जनाधार पर सवालिया निशान खड़े होना स्वाभाविक है। हरिभूमि संवाददाता ने मैनपुरी लोकसभा के अलावा उपचुनाव के प्रचार का जायजा लिया था, जहां भाजपा ने मैनपुरी लोकसभा सीट और सभी 11 विधानसभा सीटों पर निष्पक्ष चुनाव कराने के इरादे में अर्द्धसैनिक बलों की फौज भी उतारी, लेकिन भाजपा को इसका लाभ नहीं मिल सका। राजनीतिक विशेषज्ञों का मानना है कि उत्तर प्रदेश में भाजपा के निराशाजनक प्रदर्शन के पीछे या तो पार्टी का अति आत्मविश्वास या फिर बेइंतहा बयानबाजी बड़ा कारण हो सकती है। भाजपा सुप्रीमो अमित शाह ने योगी आदित्यनाथ पर दांव खेला, जिन्होंने जमकर मेहनत भी की, लेकिन जनता ने उनके लव जेहाद के मुद्दे को नकारते हुए यह सबक दिया है कि सिर्फ उग्र हिंदुत्व के सहारे सत्ता तक नहीं पहुंचा जा सकता, उससे ज्यादा विकास का एजेंडा जनता के सामने होना चाहिए। इन उप चुनाव के नतीजों में सबसे दिलचस्प बात यह भी रही कि यूपी में बसपा सुप्रीमो मायावती ने उप चुनाव में बसपा को दूर रखा और उम्मीमद थी कि बसपा का वोटबैंक के बंटवारे का ज्यादा हिस्सा भाजपा को मिल सकता है, लेकिन नतीजे इसके विपरीत रहे। राजनीति के जानकार तो यहां तक कह रहे हैं कि यूपी में अखिलेश राज किसी से छिपा नहीं है फिर भी सपा के शानदार सियासी प्रदर्शन ने यूपी की राजनीतिक जमीन पर भाजपा के भविष्य पर सवाल खड़े कर दिये हैं।
गुजरात व राजस्थान में भी झटका
भाजपा शासित राज्य गुजरात में लोकसभा की बडोदरा सीट तो भाजपा को वापस मिल गई है, लेकिन लोकसभा चुनाव में गुजरात और राजस्थान में शतप्रतिशत नतीजे हासिल करने वाली भाजपा को उप चुनावों ने झटके दिये हैं। मसलन गुजरात में नौ विधानसभा सीटों पर हुए उप चुनाव में गुजरात की 9 विधानसभा सीटों में से भाजपा छह सीट ही बचाने में कामयाब रही, जबकि कांग्रेस ने भाजपा के विधायकों के सांसद बनने से खाली तीन सीटों पर अपना कब्जा कर लिया। इसी प्रकार राजस्थान में भी लोकसभा चुनाव में सभी सीटें जीतने वाली भाजपा को ठीक चार महीने बाद अपनी खाली चार विधानसभा सीटों में से तीन सीटें गंवानी पड़ी जिन पर कांग्रेस ने कब्जा कर लिया है।
फिर भी सबसे आगे भाजपा
तीनों लोकसभा सीटों के नतीजे तो आम चुनाव की तरह ही रहे, लेकिन नौ राज्यों की विधानसभा सीटों में मात खाने के बावजूद भाजपा सबसे आगे रही। मसलन 33 विधानसभा सीटों के आए नतीजों में भाजपा को सबसे ज्यादा 13 सीटों पर जीत हासिल हुई। भाजपा ने जहां यूपी, गुजरात और राजस्थान में अपनी सीटें गंवाई हैं, वहीं पश्चिम बंगाल की चौरांगी विधानसभा सीट वामदलों से छीनी है तो वहीं असम की सिलचर विधानसभा सीट को कांग्रेस के जबड़े से छीनने में सफलता हासिल की है। इसके अलावा एआईयूडीएफ, सीपीएम, टीएमसी और टीडीपी के अलावा एक सीट निर्दलीय प्रत्याशी ने जीती है। केंद्र में मोदी सरकार के सत्ता संभालने के बाद यह चौथे और सबसे बड़े उप चुनाव थे, जिसमें भाजपा के लिए उम्मीद के विपरीत नतीजे सामने रहे हैं।
17Sep-2014

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