शनिवार, 31 दिसंबर 2016

सपा का महासंग्राम-2: चुनावी दंगल में अखिलेश का पलटा भारी!

आर-पार में बदला सपा कुनबे का ‘दंगल’
 ओ.पी. पाल. नई दिल्ली।
समाजवादी पार्टी प्रमुख मुलायम सिंह यादव द्वारा उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में फिर से सपा की सत्ता हासिल करने के इरादे से अपने पुत्र व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव को नजरअंदाज करते हुए महाभारत-2 पेश किया है। राजनीतिकारों के मुताबिक सिर पर खड़े राज्य विधानसभा चुनाव में टिकट वितरण को लेकर सपा कुनबे के इस आर-पार के दंगल में पुत्र अखिलेश व भाई रामगोपाल को पार्टी से बाहर करने का फैसला मुलायम सिंह यादव और पार्टी के लिए घातक सिद्ध हो सकता है। सपा के दो फाड़ होने से सूबे की सियासत को लेकर जारी इस सियासी दंगल में अखिलेश यादव का ही पलड़ा भारी माना जा रहा है।
उत्तर प्रदेश के जल्द ही विधानसभा चुनाव होने वाले हैं, जिसके लिए सभी सियासी दल एक साल से ज्यादा समय से अपनी रणनीतियों के साथ तैयारियां कर रहे हैं, जिसमें सपा सरकार में मुख्यमंत्री के रूप में अखिलेश यादव ने भी जनता के हित में अनेक योजनाओं को पटरी पर उतारने में पूरी ताकत झोंकी हुई है, लेकिन पिछले चार माह से समाजवादी पार्टी की परिवारिक कलह सड़कों पर आना शुरू हुई तो सपा कुनबे में झोल शुरू हो गये। सपा प्रमुख मुलायम सिंह यादव द्वारा दागियों के दल का विलय करना, अमर सिंह को पार्टी में वापस लेकर राज्यसभा भेजना और फिर अखिलेश यादव को सपा के यूपी प्रदेश के अध्यक्ष पद से हटाकर भाई शिवपाल यादव को सौंपना और अखिलेश द्वारा चुनाव में कांग्रेस से गठबंधन करने की इच्छा जैसे ऐसे कई कारण सपा कुनबे के महाभारत को सड़क तक ले आए। किसी तरह से मुलायम सिंह ने अपना फार्मूला सामने रखकर महाभारत के पहले एपिसोड का अंत कर दिया था, जिसमें अखिलेश का समर्थन करने पर प्रो. रामगोपाल को निष्कासन जैसी कार्रवाई से दो-चार होना पड़ा।
मुलायम पर भारी दंगल
दरअसल समाजवादी पार्टी में सबकुछ ठीक चल रहा था, लेकिन जब सपा प्रदेशाध्यक्ष शिवपाल यादव ने 176 प्रत्याशियों की सूची सपा प्रमुख मुलायम सिंह को सौंपी तो मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने भी 403 प्रत्याशियों की सूची नेताजी को सौंपी और सभी को इस बात का एतबार था कि सपा प्रमुख मुलायम सिंह यादव इन प्रत्याशियों की सूची पर अंतिम मुहर लगाएंगे और इसमें समाजवादी नीतियों में विश्वास रखने वालों का ही ऐलान होगा। लेकिन जैसे ही सपा प्रमुख की 325 प्रत्याशियों की सूची बाहर आई तो उसमें अखिलेश के तीन मंत्रियों, विधायकों और ज्यादातर समर्थकों के टिकट काटे जा चुके थे, जबकि शिवपाल यादव के सभी नामों को मंजूरी दी गई। यहीं से सपा कुनबे के महाभारत के दूसरे एपिसोड ने नया मोड़ ले लिया। सपा कुनबे के इस आर-पार का दंगल में यहां तक नौबत आई कि सपा प्रमुख मुलायम सिंह यादव ने बेटे और सीएम अखिलेश के साथ उसकी हिमायती माने जाने वाले प्रो.रामगोपाल यादव को छह साल के लिए पार्टी से ही निकालने का फरमान जारी कर दिया। माना जा रहा है कि यह फैसला खुद
मुलायम सिंह यादव पर भारी पड़ सकता है।
अखिलेश के पक्ष में माहौल
सपा प्रमुख मुलायम की अखिलेश यादव के खिलाफ की गई कार्रवाई के बाद सपा दो फाड़ होने की संभावना प्रबल हो गई है। इस कार्रवाई के बाद जिस प्रकार राज्य की राजधानी लखनऊ और यूपी के अन्य शहरों में सपा प्रमुख के इस फैसले के खिलाफ अखिलेश यादव के समर्थन में सपा कार्यकर्ता सड़कों पर उतर आए हैं उससे जाहिर है कि यदि मुलायम सिंह ने इस फैसले को बदलकर अखिलेश के पक्ष में चुनावी रणनीति नहीं बनाई तो अखिलेश यादव अपने समर्थकों को निर्दलीय चुनाव लड़ाकर सपा को गहरा झटका दे सकते हैं।
कांग्रेस से तालमेल संभव
यूपी विधानसभा चुनाव में सूबे के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव पहले भी कांग्रेस के साथ तालमेल करके चुनाव लड़ने के संकेत देते रहे हैं, जिनका मानना था कि यदि सपा व कांग्रेस गठबंधन करके चुनाव लड़ेगी तो 300 से ज्यादा सीटों पर जीत होगी। इसके बावजूद सपा प्रमुख मुलायम सिंह अखिलेश के इस सुझाव को दरकिनार करके पार्टी स्तर पर उन्हें कई झटके दिये, लेकिन वे पिता और नेता के रूप में उनका सम्मान करते रहे हैं। अब यदि अखिलेश यादव का निष्कासन वापस नहीं होता, तो वह अपने मंत्रियों, विधायकों और समर्थकों को निर्दलीय रूप से चुनावी मैदान में उतारकर कांग्रेस के साथ गठबंधन करके चुनाव लड़ सकते हैं।
इसलिए की निष्कासन की कार्यवाही
सपा सुप्रीमो मुलायम सिंह यादव ने अखिलेश व रामगोपाल के निष्कासन करने के बारे में कहा कि रामगोपाल ने कुछ समय पहले भी रामगोपाल को पार्टी से छह साल के लिए निकाल दिया था. इस पर मुलायम ने कहा कि उसके बाद रामगोपाल ने माफी मांग ली थी और अपनी गलती स्वीकार कर ली थी। इसलिए उनको माफ कर दिया था, लेकिन अब पार्टी में वापस आने के बाद रामगोपाल ने सीधा मुझ पर हमला किया है, इसको बर्दाश्त नहीं किया जा सकता। इसलिए रामगोपाल को पार्टी से निकाला जाता है। उन्होंने कहा कि रामगोपाल ने मुझे बिना बताए पार्टी का अधिवेशन बुलाने का फैसला लिया। जबकि इस तरह का फैसला लेने का अधिकार केवल राष्ट्रीय अध्यक्ष को है। उन्होंने अखिलेश पर तंज कसते हुए कहा कि वह भी मुख्यमंत्री रहे हैं, लेकिन कभी इस तरह का मामला कभी नहीं रहा और नही उनके समय ऐसी कोई बात नहीं हुई। उन्होंने रामगोपाल पर अखिलेश का भविष्य खराब करने तक का आरोप लगाया। तो वहीं यह भी कहा कि ऐसे में यदि अखिलेश अपना भविष्य खुद खराब करने पर तुले हैं तो उसमें कोई क्या कर सकता है? मेरा लक्ष्य तो समाजवादी पार्टी को बचाना है।
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अखिलेश व रामगोपाल पार्टी से निष्कासितओ.पी. पाल. नई दिल्ली।
यूपी के विधानसभा चुनाव के लिए सपा प्रमुख मुलायम सिह यादव की सूची के बाद मुख्यमंत्री अखिलेश यादव द्वारा जारी की गई
प्रत्याशियों की समानांतर सूची के बाद सत्तारूढ़ समाजवादी पार्टी का महासंग्राम इस कदर आर-पार के दंगल में बदल गया, जब सपा प्रमुख ने नोटिस देकर अखिलेश यादव को छह साल के लिए पार्टी से निष्कासित कर दिया। अखिलेश का समर्थन करने वाले राष्टÑीय महासचिव प्रो. रामगोपाल यादव को भी कारण बताओं नोटिस जारी कर दिया गया है।
समाजवादी पार्टी के कुनबे में उत्तर प्रदेश में होने वाले विधानसभा चुनाव के लिए प्रत्याशियों के टिकट वितरण को लेकर फिर शुरू हुए महासंग्राम आर-पार की लड़ाई में तब्दील होने लगा है। दो दिन पहले मुलायम सिंह यादव द्वारा जारी की गई 325 प्रत्याशियों की सूची में अपने समर्थकों के अलावा मंत्रियों व विधायकों के टिकट कटने से नाराज मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने एक दिन पहले गुरुवार की रात को अपनी अलग से सूची जारी करके ऐलान कर दिया था कि वे अपने-अपने विधानसभा क्षेत्रों में चुनाव लड़ने की तैयारी करें। सपा कुनबे में चुनाव मैदान में जाने के लिए जारी हुई सपा की समानांतर सूचियों पर सपा प्रमुख मुलायम सिंह ने सख्ती करते हुए पहले शुक्रवार को अखिलेश यादव और उनका समर्थन कर रहे सपा राष्टÑीय महासचिव प्रो. रामगोपाल यादव को अनुशासन तोड़ने के लिए कारण बताओं नोटिस जारी किया और शाम होते होते मुलायम सिंह यादव ने पार्टी प्रमुख होने के नाते अपने पुत्र और सूबे के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव को छह साल के लिए पार्टी से निष्कासित कर दिया।
रामगोपाल दूसरी बार निष्कासित
गौरतलब है कि सपा कुनबे के महाभारत-एक के दौरान भी सपा प्रमुख मुलायम सिंह यादव ने राज्यसभा सांसद और राष्टÑीय महासचिव प्रो. रामगोपाल यादव को अखिलेश यादव का समर्थन करने के कारण पार्टी से छह साल के लिए निष्कासन कर दिया था। किसी तरह से चुनावी तैयारियों के मद्देनजर प्रो. रामगोपाल यादव के निष्कासन को वापस लिया गया था, लेकिन सपा के महाभारत-दो में भी शुक्रवार को जब प्रो. रामगोपाल ने दलील दी कि अखिलेश यादव का विरोध करने वाले विधानसभा का मुहं तक नहीं देख पाएंगे तो इसी बयान से खफा सपा मुखिया ने अखिलेश के साथ-साथ उनके खिलाफ फिर से निष्कासन की कार्रवाही को अंजाम दिया।
31DEc-2016

शुक्रवार, 30 दिसंबर 2016

राजनीतिक दलों पर कसा नियमों का शिकंजा!

पांच राज्यों के चुनावों पर सख्त आयोग
ओ.पी. पाल.
नई दिल्ली।
केंद्रीय चुनाव आयोग ने उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, पंजाब मणिपुर और गोवा में विधानसभा चुनाव कराने की सभी तैयारियों को अंतिम रूप दे चुका है और चुनावों की घोषणा से पहले चुनाव आयोग ने निष्पक्ष और नई व्यवस्था में सुधार के माहौल बनाने की दिशा में राजनीतिक दलों पर शिकंजा कसना शुरू कर दिया है। मसलन चुनावी आचार संहिता का उल्लंघन करना राजनीतिक दलों के लिए मुश्किलें खड़ी कर सकता है।
देश की लोकतांत्रिक व्यवस्था में चुनावी सुधार की दिशा में नई व्यवस्था में चुनाव कराने का रोडमैप तैयार कर चुके चुनाव आयोग ने चुनावी कार्यक्रम की घोषणा से पहले ही अपनी-अपनी रणनीतियों का तानाबाना बुन चुके राजनीतिक दलों को चुनाव आचार संहिता की याद दिलाने और नियमों का उल्लंघन करने पर संभावित कार्रवाही की याद दिलाना शुरू कर दिया है। केंद्रीय चुनाव आयोग ने इन पांचों राज्यों के मुख्य सचिवों और मुख्य चुनाव अधिकारियों के साथ सभी राजनीतिक दलों को पत्रोें के जरिए आगाह किया है कि चुनाव कार्यक्रम की घोषणा होते ही पांचों राज्यों उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, पंजाब मणिपुर और गोवा में आदर्श चुनाव आचार संहिता लागू हो जाएगी। लिहाजा जनता के साथ इस आचार संहिता का अनुपालन करने में कोई भी राजनीतिक दल या नेता लापरवाही न बरतें, बल्कि इसका पालन करके पारदर्शी नई व्यवस्था के माहौल बनाने में सहयोग करें। आयोग ने यह भी चेतावनी दी है कि यदि कहीं भी आदर्शन आचार संहिता के उल्लंघन की सूचना मिले तो उसे चुनाव आयोग के 24 घंटे काम करने वाले कॉल सैंटर को टोलफ्री नंबर 1950 पर फोन या एसएमएस करके इस लोकतांत्रिक व्यवस्था के सुधार में सहयोग करें।
इन पाबंदियों में बंधे दल
चुनाव आयोग के सूत्रों के अनुसार आदर्श चुनाव आचार संहिता के प्रावधानों के तहत चुनाव वाले राज्यों की सरकारों और राजनीतिक दलों के साथ आम मतदाताओं को इस बात से अवगत कराया जा रहा है कि चुनाव कार्यक्रम के ऐलान होने के 24 घंटों के भीतर सरकारी संपत्ति, इमारतों और उनके अहातों पर पोस्टर चिपकाने, नारे लिखने, कट आउट या बैनर लगाकर संपत्ति को खराब या गंदा करने पर पाबंदी होगी। पहले से लगाई गई गैरजरूरी चीजों को चुनाव के ऐलान के 24 घंटे के भीतर हटाना होगा। सार्वजनिक संपदा या अहातों पर ये प्रावधान 48 घंटों में और निजी संपदा के मामले में 72 घंटों में हटाना जरूरी होगा। इस अवधि के बीतने पर कोई भी शिकायत आएगी तो चुनाव आयोग नियमों के तहत कड़ी कार्रवाई करने के लिए मजबूर होगा।
इन नियमों का चलेगा चाबुक

पांचों राज्यों में चुनाव कार्यक्रम का ऐलान होते ही आदर्श चुनाव आचार संहिता लागू हो जाएगी तो सिर्फ चुनाव के काम में लगे अधिकारियों और अमले को सरकारी वाहनों के इस्तेमाल की छूट होगी। वहीं सरकारी खजाने से अखबारों, टीवी, रेडियो या किसी भी प्रचार माध्यम से सरकारें अपनी उपलब्धियों का विज्ञापन नहीं करा सकेंगी। नियमों के तहत सरकार के मंत्रालयों या विभागों की आधिकारिक वेबसाइट पर राजनीतिक समारोह के फोटोग्राफ डालना आचार संहिता का उल्लंघन माना जाएगा। इसी प्रकार से विकास कार्य और निर्माण कार्यो को कराने के लिए केवल विभागों को 72 घंटे के दौरान ही चुनाव आयोग जानकारी देनी होगी।

यूपी मिशन: नहीं थम रही सपा की अंतर्कलह

अखिलेश ने जारी की अपनी अलग सूची
हरिभूमि ब्यूरो.
नई दिल्ली।
उत्तर प्रदेश के विधानसभा एकदम सिर पर आ चुके हैं और सत्तारूढ़ समाजवादी पार्टी की टिकट वितरण को लेकर तेज हुई अंतर्कलह थमने का नाम नहीं ले रही है। सपा मुखिया मुलायम, चाचा शिवपाल के साथ हुई चर्चा के बावजूद खफा मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने अपने समर्थक विधायकों को अपने अपने क्षेत्रों में चुनाव लड़ने की तैयारी करने का ऐलान करके ऐसे संकेत दे दिये हैं कि सपा परिवार के इस सियासी महासंग्राम पर विराम लगने की संभावनाएं बहुत ही कम हैं।
समाजवादी पार्टी में टिकट बंटवारे के बाद तेज हुए सियासी महासंग्राम को खत्म करने की सभी कोशिशें गुरुवार को दिनभर चली बैठकों के बावजूद बेनतीजा रहीं। मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के साथ सपा प्रमुख मुलायम सिंह यादव और शिवपाल यादव की बातचीत में भी कोई कारगर फामूर्ला सामने नहीं आया। नतीजन नाराज अखिलेश को अपने समर्थक विधायकों को अपने अपने क्षेत्र मेें चुनाव लड़ने की तैयारी का ऐलान करना पड़ा। माना जा रहा है कि अखिलेश अब अपने समर्थक विधायकों को निर्दलीय के रूप में चुनाव मैदान में उतारने की तैयारी में हैं। गौरतलब है कि एक दिन पहले समाजवादी पार्टी प्रमुख मुलायम सिंह यादव द्वारा एक सर्वे का हवाला देकर जारी की 325 प्रत्याशियों की सूची में अपने पुत्र एवं मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के तीन मंत्रियों के अलावा कई विधायकों और समर्थकों के नामों को नजरअंदाज करते हुए सपा प्रदेशाध्यक्ष शिवपाल यादव की सूची को तरजीह दी थी। इससे खफा अखिलेश यादव के पक्ष में कोई बात नहीं बन सकी। इसलिए नाराज अखिलेश ने अपने आवास पर पहुंचकर विधायकों और समर्थकों के साथ बैठक कर विचार विमर्श करके कठोर कदम उठाने का फैसला किया। सूत्रोें का कहना है कि अखिलेश की ओर से 167 प्रत्याशियों की सूची जारी की गई, लेकिन इसकी अभी तक कोई पुष्टि नहीं हो पायी है।
अखिलेश का यह बड़ा कदम!
सूत्रों की माने तो अखिलेश यादव जल्द ही अयोध्या में मंत्री पवन पाण्डेय, बलिया में रामगोविंद और बाराबंकी अरविंद सिंह गोप के समर्थन में बड़ी रैली कर सकते हैं। यही नहीं अगर बात नहीं बनी और अखिलेश यादव के करीबियों को अगर टिकट नहीं दिया जाता तो मुख्यमंत्री अपने चहेतों को निर्दलीय ताल ठोकने की हरी झंडी दे सकते हैं और वो इन सीटों पर वह उनके समर्थन में रैली भी करने का फैसला ले सकते हैं। राज्य में कई जगहों पर सपा नेताओं ने अखिलेश समर्थक विधायक उम्मीदवार होने के पोस्टर भी लगा दिए हैं।
सर्वे पर भी उठे सवाल
सपा प्रमुख मुलायम सिंह के सर्वे के आधार पर जारी प्रत्याशियों की सूची पर भी सवाल खड़े किये गये। मुख्यमंत्री की विधायकों के साथ बैठक के बाद विधायकों का कहना था कि अखिलेश ने सपा प्रमुख के सामने खुद कहा है कि कौन सा सर्वे हुआ बताया जाए? किसने किया? यह जानकारी सामने रखी जाए। मुख्यमंत्री ने विधायकों से कहा कि वे क्षेत्र में जाएं और चुनाव की तैयारी करें। वे उनके टिकट का इंतजाम करेंगे। जल्द ही स्थिति सामान्य हो जाएगी।
कांग्रेस से गठबंधन की संभावना
सूत्रों के अनुसार अखिलेश यादव द्वारा जारी सूची के बाद इन अटकलों का बाजार गर्म हो गया है कि अखिलेश यादव सपा की इस अंतर्कलह से दूर कांग्रेस के साथ गठबंधन करके चुनाव मैदान में उतरकर बगावत कर सकते हैं।
रामगोपाल की सफाई
समाजवादी पार्टी में जारी महासंग्राम को लेकर राज्यसभा सांसद प्रो. राम गोपाल यादव ने सफाई देते हुए कहा कि पार्टी में कोई घमासान नहीं है। उन्होंने कहा कि टिकट कटने पर ऐसा होता है। जिनकी टिकट कटी है उनको सीएम ने बुलाया है। अखिलेश की भूमिका के सवाल पर रामगोपाल ने कहा कि उनकी भूमिका मुख्यमंत्री की ही रहेगी।
अमर व बेनी पर निशाना
इससे पहले अखिलेश के घर बैठक में धर्मेंद्र यादव, अरविंद गोप और अभिषेक मिश्रा समेत तमाम समर्थक शामिल हुए। इस बैठक में वे विधायक और मंत्री शामिल हुए जिनके टिकट काट दिए गए थे। सूत्रों के मुताबिक टिकट से बेदखल मंत्रियों ने मुख्यमंत्री अखिलेश के सामने अपने दर्द को बयां किया। मंत्री अरविंद सिंह गोप ने अखिलेश के सामने कहा कि हमारा टिकट अमर सिंह ने कटवाया है,बेनी प्रसाद वर्मा पर भी शिवपाल सिंह यादव से अपने बेटे के लिए साजिÞश रचने का आरोप लगाया गया।
30Dec-2016

प्रो रेसलिंग लीग (कुश्ती) का खुमार दो जनवरी से

हरियाणा व मुंबई में शुरूआती मुकाबला
ओ.पी. पाल.
नई दिल्ली।
क्रिकेट में आईपीएल की तर्ज पर देश में कुश्ती को लोकप्रिय बनाने की दिशा में पिछले साल शुरू हुई प्रो रेसलिंग लीग के दूसरे संस्करण की शुरूआत दो जनवरी को नई दिल्ली के इंदिरागांधी स्टेडियम में होगी, जिसमें अंतर्राष्टÑीय स्तर के पुरुष और महिला पहलवान अपने दावं आजमाएंगे। लीग का उद्घाटन मुकाबला हरियाणा हैमर्स और पिछली विजेता मुंबई महारथी के बीच होगा।
भारतीय कुश्ती संघ और प्रो स्पोटीर्फाई के अनुसार आगामी सोमवार दो जनवरी से 19 जनवरी तक यहां इंदिरा गांधी खेल परिसर के केडी जाधव हॉल में होने वाली प्रो रेसलिंग लीग सीजन-2 में छह टीमों के बीच रोमांचक मुकाबले होने की संभावना है। इन छह टीमों में इस बार जयपुर निंजास, मुम्बई महारथी, यूपी दंगल, एनसीआर पंजाब रॉयल्स, हरियाणा हैमर्स और दिल्ली सुल्तांस की टीमों के बीच कड़ा संघर्ष होने की उम्मीद जताई जा रही है। हरेक टीम में पांच पुरुष और चार महिला खिलाड़ी होंगे। इनमें पांच भारतीय और चार विदेशी खिलाड़ियों को शामिल किया जाएगा। इन चार विदेशी खिलाड़ियों में दो महिला और दो ही पुरुष खिलाड़ी होंगे।
ऐसा होगा लीग कार्यक्रम
भारतीय कुश्ती संघ के अध्यक्ष बृज भूषण शरण सिंह ने बताया कि इस लीग टूनार्मेंट में कुल 18 मुकाबले होंगे, जिनमें 15 लीग चरण, दो सेमीफाइनल और एक फाइनल होगा। लीग मुकाबलों के बाद 17 और 18 जनवरी को सेमीफाइनल मुकाबले होंगे और इसका बहुप्रतीक्षित फाइनल 19 जनवरी को खेला जाएगा। लीग का संचालन यूनाइटेड वर्ल्ड रेसलिंग से मान्यता प्राप्त अधिकारी करेंगे, जिसमें पिछले दिनों रियो ओलिम्पिक में बतौर रेफरी जिÞम्मेदारी सम्भालने वाले इकलौते भारतीय अशोक कुमार भी शामिल हैं। प्रो रेसलिंग लीग में पुरुषों के 57, 65, 70, 74 और 97 किलो के मुकाबले होंगे, जबकि महिलाओं में 48, 53, 58 और 69 से 75 किलो के मुकाबले होंगे। लीग में भाग ले रहे सभी 54 खिलाड़ियों में पंजाब टीम के व्लादीमिर सबसे महंगे खिलाड़ी (48 लाख) हैं जबकि दिल्ली टीम की मारिया स्टैडनिक और हरियाणा टीम के मैगमद कुबार्नालिऊ दूसरे महंगे खिलाड़ी (47 लाख) हैं।
इन चैंपियनों पर होंगी नजरें
प्रो स्पोटीर्फाई के संस्थापक और प्रमोटर कार्तिकेय शर्मा ने कहा कि जार्जिया के व्लादीमिर खिनचेंगशिवली और कनाडा की एरिका वीब के रूप में दो ओलिम्पिक चैम्पियनों सहित विश्व चैम्पियनशिप और ओलिम्पिक के पदक विजेताओं के साथ महाद्वीपीय चैम्पियनों की संख्या 20 तक पहुंच गई है, जो इस लीग को भव्य बनाने के लिए एक बड़ा कदम है। लीग में ओलिम्पिक की स्वर्ण पदक विजेता कनाडा की एरिका वीब्स, रजत पदक विजेता मारिया स्टैडनिक, कॉमनवेल्थ गेम्स की चैम्पियन ओडुनायो और रजत पदक विजेता याना रैटिगन लीग के मुख्य आकर्षण होंगे। इन चार विदेशी खिलाड़ियों में दो महिला और दो ही पुरुष खिलाड़ी होंगे। इनके अलावा भारतीय पुरुष और महिला पहलवानों पर भी नजरें होंगी। लंदन ओलिम्पिक के पदक विजेता और एशियाई खेलों के चैम्पियन योगेश्वर दत्त,रियो ओलिम्पिक की पदक विजेता साक्षी मलिक और मौजूदा एशियाई चैम्पियन संदीप तोमर के अलावा सीजन-1 की मुख्य आकर्षण और कॉमनवेल्थ गेम्स की स्वर्ण पदक विजेता फोगट सिस्टर्स गीता और बबीता, विश्व चैम्पियनशिप के पूर्व पदक विजेता बजरंग, पूर्व एशियाई चैम्पियन अमित धनकड़ और कॉमनवेल्थ चैम्पियनशिप के स्वर्ण पदक विजेता सत्यव्रत कादियान भी लीग का आकर्षण होंगे।

गुरुवार, 29 दिसंबर 2016

अगले सप्ताह होगा पांच राज्यों के चुनाव का ऐलान


चुनाव आयोग ने राज्यों से तैयार रहने का कहा
ओ.पी. पाल.
नई दिल्ली।
देश के पांच राज्यों उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, पंजाब, गोवा, और मणिपुर में विधानसभा चुनावों का ऐलान अगले सप्ताह चार या पांच जनवरी को हो सकता है। ऐसे संकेत केंद्रीय चुनाव आयोग ने केंद्रीय कैबिनेट और पांचों राज्यों के मुख्य सचिवों तथा चुनाव अधिकारियों को सभी व्यवस्थाओं के साथ तैयार रहने को कहते हुए दिये हैं।
केंद्रीय चुनाव आयोग के सूत्रों के अनुसार अगले सप्ताह चार या पांच जनवरी को उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, पंजाब, गोवा, और मणिपुर में विधानसभा चुनाव कार्यक्रम का ऐलान किया जा सकता है। केंद्रीय चुनाव आयोग इन पांचों राज्यों में चुनाव की तैयारियों को लेकर बुधवार को एक बैठक में समीक्षा की और इन राज्यों के चुनाव की सभी व्यवस्थाओं को अंतिम रूप दे दिया गया है, बाकी है तो केवल चुनाव कार्यक्रम की घोषणा करना। इस तैयारियों के तहत आयोग ने इन राज्यों और केंद्र सरकार को चुनाव के लिए तैयार रहने के लिए कहा है। मसलन चुनाव आयोग ने चुनावों के लिए तैयार रहने के बारे में केंद्रीय कैबिनेअ सचिव, पांचों राज्यों के मुख्य सचिव और राज्यों में मुख्य चुनाव अधिकारियों को 33 पृष्ठीय पत्र भेजे हैं। इस पत्र में स्पष्ट किया गया है कि चुनाव की घोषणा के बाद राज्यों में तत्काल प्रभाव से चुनाव आचार संहिता को प्रभावी ढंग से लागू करने के लिए कदम उठाने को तैयार रहें।
सरकारी धन का न हो दुरुपयोग
आयोग के सूत्रों के अनुसार चुनाव आयोग ने राज्यों को जारी 'किए जाने वाले' और 'नहीं किए जाने वाले' कार्यों की सूची में सार्वजनिक स्थान के दुरुपयोग से बचने, प्रचार के लिए सरकारी वाहनों के इस्तेमाल से बचने, राज्य सरकार की वेबसाइटों से राजनीतिक पदाधिकारियों की तस्वीरें हटाने और सत्तारुढ़ पार्टी की मदद के लिहाज से विज्ञापनों के लिए सरकारी धन के इस्तेमाल पर रोक लगाने संबन्धी दिशा निर्देश भी दिये गये हैं। वहीं चुनाव आयोग ने राजनीतिक दलों से इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में जारी होने वाले प्रस्तावित राजनीतिक विज्ञापनों के पूर्व-प्रमाणन के लिए जिला और राज्यस्तर पर मीडिया प्रमाणन और निगरानी समितियों से संपर्क करने को भी कहा है।
यूपी को लेकर संशय
केंद्रीय चुनाव आयोग उत्तर प्रदेश में 403 सीटों पर होने वाले विधानसभा चुनावों को लेकर संशय में हैं। सूत्रों के अनुसार इन पांच राज्यों में यूपी का कार्यकाल मई तक है, जबकि अन्य चार राज्यों का कार्यकाल मार्च माह में ही समाप्त हो रहा है। यूपी में कम से कम छह या सात चरणों में चुनाव कराना पड़ सकता है, जबकि अन्य चार राज्यों में एक ही चरण में चुनाव हो सकते हैं। ऐसे में संसद के बजट सत्र के दौरान एक फरवरी को आम बजट पेश होने की संभावनाओं को देखते हुए राजनीतिक विशेषज्ञों का मानना है कि चुनाव आयोग यूपी से पहले चार राज्यों के चुनाव कराने का ऐलान कर सकता है, जबकि यूपी के चुनाव मार्च-अप्रैल में कराए जा सकते हैं। ऐसा भी मानना है कि यदि ऐसा संभव न हुआ तो आम बजट को कुछ दिन के लिए टालने का विकल्प भी दिया जा सकता है। बहरहाल यह चुनाव आयोग के निर्णय पर निर्भर करेगा कि उसने किस तरह के कार्यक्रम को अंतिम रूप दिया है। गौरतलब है कि चुनाव आयोग ने उत्तर प्रदेश माध्यमिक शिक्षा परिषद द्वारा दसवीं व बारहवीं के घोषित किये गये परीक्षा कार्यक्रम को निरस्त करा दिया था, जिसे देखते हुए उम्मीद है कि फरवरी में ही चुनाव की शुरूआत कराई जाएगी।

यूपी मिशन:सपा में आर या पार का दौर शुरू!

मुलायम ने अखिलेश को दिया जोर का झटका
भाई शिवपाल की सूची को दी ज्यादा तरजीह
ओ.पी. पाल.
नई दिल्ली।
आखिर समाजवादी पार्टी के मुखिया मुलायम सिंह यादव ने यूपी विधानसभा चुनाव के लिए 325 उम्मीदवारों के नाम का ऐलान करके संकेत दे दिये हैं कि उन्होंने पुत्रमोह छोड़कर भाई शिवपाल यादव को ज्यादा तरजीह दी है, जिसमें सपा प्रमुख ने अखिलेश समर्थकों जिनमें मंत्री भी शामिल हैं के टिकट काट दिये हैं। ऐसे में इस संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता कि सपा में जारी घमासान पर विराम लग गया हो।
सपा प्रमुख मुलायम सिंह यादव द्वारा जारी प्रत्याशियों की सूची को लेकर अखिलेश व उसके समर्थकों को मिले झटके से माना जा रहा है कि सपा की अंतर्कलह में अब आर या पार का दौर शुरू हो गया है। अखिलेश समर्थकों का मानना है कि सपा प्रमुख ने टिकट वितरण पर सर्वमान्य फॉमूर्ला न निकालते हुए मुख्यमंत्री अखिलेश की अनदेखी करके उनके विरोधियों को ज्यादा तरजीह दी है। दरअसल मुलायम को अखिलेश की सूची में शामिल कई नामों पर ऐतराज है तो अखिलेश को शिवपाल की सूची में दागियों के नामों पर ऐतराज है, इसलिए कहा जा सकता है कि सपा के अंतर्कलह विराम के बजाए बढ़ सकती है।
कई मंत्रियों व विधायकों के नाम गायब
उत्तर प्रदेश विधानसभा की 403 सीटों पर होने वाले चुनाव के लिए जहां उत्तर प्रदेश के सपा अध्यक्ष के रूप में शिवपाल यादव ने मुलायम सिंह को 176 प्रत्याशियों की सूची सौंपी थी, वहीं मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने सभी 403 सीटों के प्रत्याशियों की सूची सपा प्रमुख को दी थी। सपा के टिकट वितरण पर फिर से चाचा-भतीजे के बीच घमासान की सुगबुगहाट में सपा प्रमुख ने बुधवार को अपने अधिकारों का प्रयोग करते हुए 325 प्रत्याशियों की सूची जारी कर दी है। मुलायम की इस सूची में 176 वर्तमान विधायकों के नाम भी हैं, लेकिन अखिलेश के मंत्रिमंडल में शामिल कई मंत्रियों के टिकट तक काट दिये हैं और इस सूची में अखिलेश यादव का भी नाम नहीं है, हालांकि उन्होंने कहा कि अखिलेश जहां से चाहें चुनाव लड़ सकते हैं।
कोई प्रत्याशी बदला नहीं जाएगा
सपा प्रमुख मुलायम ने प्रत्याशियों की सूची जारी करते हुए यह भी साफ कर दिया है, अब जिन 325 सीटों पर प्रत्याशियों के नाम का एंलान हुआ है, उनमें से किसी का टिकट बदला नहीं जाएगा। वहीं सीएम उम्मीदवार के सवाल पर मुलायम ने कहा कि हम पहले से सीएम उम्मीदवार तय नहीं करते। दरअसल अखिलेश यादव ने अपनी सूची में किसी दागी प्रत्याशी का नाम शामिल नहीं किया था, लेकिन मुलायम सिंह यादव की सूची में अखिलेश समर्थक प्रत्याशियों के नाम सूची से हटा दिये हैं।

एक अप्रैल से पुराने नोट रखने वालों की खैर नहीं!

आरबीाई कानून संशोधन पर अध्यादेश को मिली मंजूरी
अध्यादेश के तहत जुर्माना और सजा का प्रावधान
ओ.पी. पाल. नई दिल्ली।
देश में नोटबंदी के तहत अमान्य हुए 500 व 1000 रुपये के पुराने नोटों को आगामी 31 मार्च के बाद यदि किसी व्यक्ति ने 10 से ज्यादा रखने का प्रयास किया तो उसे जुर्माना भरने के साथ सजा भी भुगतनी पड़ सकती है। मसलन केंद्र सरकार ने नोटबंदी के फैसले से अमान्य किये गये पुराने नोटों को अवैध घोषित करने की दिशा में आरबीआई कानून संशोधन वाले अध्यादेश को मंजूरी दी है,जिसमें ऐसे प्रावधान किये गये हैं।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की अध्यक्षता में बुधवार को हुई केन्द्रीय मंत्रिमंडल की बैठक में भारतीय रिजर्व बैंक कानून में संशोधन वाले ‘द स्पेसिफाइड बैंक नोट्स केसेशन आॅफ लायबिलटिीज आॅर्डिनेंस’ नाम से एक अध्यादेश को मंजूरी दी गई। इस अध्यादेश में निर्धारित तिथि 31 मार्च के बाद 500 और 1000 रुपये के अमान्य किये गये नोट रखने वालों पर 50 हजार तक का जुमार्ना लगाने के साथ साथ् चार से 10 साल की जेल की सजा का प्रावधान किया गया है। केंद्र सरकार ने भारतीय रिजर्व बैंक कानून में संशोधन वाले एक अन्य अध्यादेश को भी मंजूरी दी है, जिसमें अमान्य किये गये इन नोटों के दायित्व से सरकार और केन्द्रीय बैंक को मुक्त किया गया है, ताकि भविष्य में किसी भी प्रकार के विवाद से बचा जा सके। बुधवार को पुराने नोटों को रखने के मामले पर मंजूरी वाले अध्यादेश के प्रावधानों के अनुसार दस से अधिक पुराने नोट रखने पर जुमार्ना लग सकता है और कुछ मामलों में चार साल तक जेल की सजा भी हो सकती है। इससे पहले ऐसी प्रक्रिया वर्ष 1978 में अपनाने के लिए पहले कानून में संशोधन किया गया था।
इसलिए जरूरी है कानून में संशोधन
केंद्रीय कैबिनेट के इस निर्णय के बाद अधिकारिक सूत्रों ने ऐसे अध्यादेश को मंजूरी मिलने की जानकारी देते हुए कहा गया है कि विमुद्रीकरण के निर्णय के बाद अमान्य 500 व 1000 रुपये के पुराने नोटों को अवैध करार देने के लिए आरबीआई कानून में संशोधन करने की जरूरत होती है, जिसके लिए संशोधन विधेयक संसद में पारित कराना होता है, चूंकि संसद सत्र नहीं चल रहा है, इसलिए आरबीआई कानून में संशोधन के मसौदे को अध्यादेश के रूप में मंजूरी दी गई है। इस अध्यादेश को मंजूरी देने के लिए हालांकि सरकारी सूत्रों ने यह जानकारी नहीं दी है कि पुराने नोटों को रखने वालों पर यह कानून किस तिथि के बाद लागू होगा। जबकि विमुद्रीकरण के ऐलान के दौरान 500 व 1000 रुपये के पुराने नोट बैंकों में जमा कराने के लिए 30 दिसंबर की तिथि तय की गई थी। इस ऐलान में यह भी घोषणा की गई थी कि यदि इस तिथि तक कोई अपने पुराने नोट बैंक खातों में जमा नहीं करा पाता तो वह 31 मार्च तक एक घोषणा पत्र के साथ इन नोटों को भारतीय रिजर्व बैंक के विशिष्ट कार्यालयों में जमा कराया जा सकेगा। ऐसे में माना जा रहा है कि यह कानून एक अप्रैल से लागू होगा।

बुधवार, 28 दिसंबर 2016

ऐसे लग रहा है सड़क हादसों की मुहिम को पलीता!

ड्राइविंग स्कूलों से ट्रैक और विशेषज्ञ प्रशिक्षक गायब
ओ.पी. पाल.
नई दिल्ली।
देश में सड़क हादसों पर लगाम लगाने के लिए मोदी सरकार की जहां सड़क सुरक्षा को प्राथमिकता दी जा रही है, वहीं स्पीड गवर्नर मीटर अनिवार्य करके खासकर कॉमर्शियल और भारी वाहनो की गति सीमा तय करने का फरमान जारी कर दिया है। सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्रालय ने वाहनों के चालकों की कौशल क्षमता बढ़ाकर उन्हें सक्षम बनाने की मुहिम भी चला रखी है, लेकिन देश के विभिन्न राज्यों में स्थापित किये गये चालक प्रशिक्षण केंद्रों के पास न तो ट्रैक है और  इन केंद्रों से विशेषज्ञ भी गायब हैं।
केंद्रीय सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्रालय में बड़ी संख्या में पहुंच रही ऐसी शिकायतों पर गौर किया जाए तो चालकों को ड्राईविंग सिखाने वाले प्रशिक्षण केंद्रों व स्कूलों का देशभर के अधिकांश जिलों में बुरा हाल है। मसलन ड्राइविंग सिखाने वाले ऐसे प्रशिक्षण केंद्र और स्कूल केंद्र द्वारा जारी की गई मोटी धनराशि वाले परिवहन के नॉर्म नहीं पूरे करते नजर नहीं आ रहे हैं। मंत्रालय में पहुंची शिकायतों और सूचनाओं को सही माने तो किसी भी प्रशिक्षण केंद्र व ड्राइविंग स्कूल में न तो ट्रैक हैं और न चालकों को प्रशिक्षण देने वाले विशेषज्ञ ही नहीं हैं। ऐसे केंद्रों व स्कूलों में ड्राइविंग सीखने वाले लोगों को वाहन के साथ आवागमन वाली या भीड़भाड़ वाली सड़कों पर ही उतार दिया जाता है। वहीं शिकायतों में यह भी पाया जा रहा है कि जिला स्तर पर संभागीय परिवहन अधिकारी भी निर्धारित की गई छह माह के निरीक्षण करने की मियाद को भी पूरा नहीं करते और इस प्रावधान के बावजूद एक साल में भी कोई परिवहन अधिकारी चालकों के प्रशिक्षण का निरीक्षण नहीं करते, बल्कि मंत्रालय में ऐसी शिकायतों की भी भरमार है कि ऐसे प्रशिक्षण केंद्रों व निजी ड्राईविंग स्कूलों के संचालकों द्वारा बिना प्रशिक्षण दिये ही अपना प्रमाण पत्र दे रहे हैं, जिनके आधार पर संभागी परिवहन कार्यालय से ऐसे लोग अपना ड्राइविंग लाइसेंस बनवाने में कामयाब हो जाते हैं।
हर पांच साल में होगा नवीकरण
मंत्रालय के अनुसार कॉमर्शियल वाहनों या भारी वाहनों को चलाने के लिए जिला स्तर पर क्षेत्रीय परिवहन विभाग द्वारा स्कूलों से प्रक्षिण प्रमाणपत्र के आधार पर ही ड्राइविंग लाइसेंस जारी करता है जिसका हर पांच साल में नवीकरण कराना जरूरी है। पहली बार ड्राइविंग लाइसेंस के लिए परिवहन विभाग में सरकार ने परीक्षा का प्रावधान भी लागू किया है, जिसमें परिवहन विभाग अपने ट्रेक पर गाडी चलाने की और यातायात नियमावली की परीक्षा लेता है। सूत्रों के अनुसार लाइसेंस फीस पांच हजार रुपए के साथ कॉमर्शियल वाहनों को चलाने के लिए लाइसेंस आवेदन के साथ ड्राइविंग स्कूल का प्रमाण पत्र अनिवार्य है। लेकिन एक भी ड्राइविंग स्कूल स्तरीय न होने से केंद्र सरकार की हादसों पर अंकुश लगाने की मुहिम को पलीता लगता दिख रहा है। सूत्रों के अनुसार केंद्रीय सड़क परिवहन मंत्रालय जल्द ही नए दिशा निर्देश जारी करने की तैयारी में है जिसमें ऐसे ड्राईविंग स्कूलों के खिलाफ कार्रवाई करने का प्रावधान होगा, जो इन स्कूलों के संचालन या खोलने संबन्धी नियमों का उल्लंघन करते आ रहे हैं।
कया हैं ड्राइविंग स्कूल के नियम
सूत्रों के अनुसार परिवहन विभाग से लाइसेंस, प्रशिक्षण देने के लिए मोटर इंजीनियरिंग कर चुका प्रशिक्षक, वाहन सिखाने के लिए पांच साल कॉमर्शियल वाहन चला चुके अनुभवी चालक, खुद का एक वाहन होना जरूरी है। वहीं वाहन में दोहरे नियंत्रण की सुविधा अनिवार्य है और प्रशिक्षण के लिए आवश्यक मॉडल संकेत, यातायात चिन्ह, वाहन के सभी पार्ट्स के ब्योरे वाला चार्ट प्रशिक्षण स्कूलों में होना भी जरूरी है। इसी प्रकार मोटरयान का इंजन, गियर बॉक्स, टायर लिवर, पंक्चर किट, व्हील ब्रेस, जैक, स्पैनर, परिसर में आपातस्थिति के लिए उपचार पेटिका, परिसर में ट्रैफिक संकेतकों युक्त ट्रैक होना जरूरी है। मंत्रालय के अनुसार देशभर में अधिकांश ऐसे ड्राईविंग स्कूलों में कराए गये एक निरीक्षण के दौरान नियमों का उल्लंघन पाया गया है।

मंगलवार, 27 दिसंबर 2016

केन-बेतवा लिंक परियोजना जल्द होगी शुरू

अटल की महत्वाकांक्षी योजना को धार
अंतिम अड़चन बनी वन्य जीव बोर्ड की मंजूरी मिली
ओ.पी. पाल
. नई दिल्ली।
सरकार की नदियों को आपस में जोड़ने की परियोजना के तहत केन-बेतवा लिंक परियोजना जल्न्द शुरू होने वाली है। केन-बेतवा देश के इतिहास में ऐसी पहली परियोजना होगी, जो पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की महत्वाकांक्षी ‘नदियों को आपस में जोड़ने की योजना’ के तहत कार्यान्वयन होगा। दरअसल इस परियोजना में वन्य जीव बोर्ड की मंजूरी मिलते ही अंतिम अड़चन दूर हो चुकी है।
देश में सूखे और बाढ़ तथा जल संकट जैसी समस्या की चुनौती से निपटने के इरादे से अटल बिहारी वाजपेयी की नदियों को आपस में जोड़ने वाली महत्वाकांक्षी परियोजनाओं के तहत केन-बेतवा लिंक परियोजना इतिहास रचने वाली है, जिसे वन्यजीव से हरी झंडी मिलने के बाद अब पर्यावरणीय मंजूरी भी मिल गई है। दरअसल पिछले कई सालों से ऐसी मंजूरी की बाट जोह रही केन-बेतवा नदी जोड़ने की परियोजना शुरू करने में लगातार विलंब हो रहा था। यूपीए सरकार भी इसे आगे नहीं बढ़ा सकी, लेकिन मोदी सरकार ने अटल बिहार के ड्रीम प्रोजेक्ट को आगे बढ़ाते हुए ऐसी 31 परियोजनाओं को कार्यान्वित करने के लिए पटरी पर उतारा, जिसमें उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश के बुंदेलखंड के सूखे से निपटने के लिए केन-बेतवा नदी जोड़ने की परियोजना को तेजी से आगे बढ़ाया। केंद्रीय जल संसाधन, नदी विकास एवं गंगा सरंक्षण मंत्री सुश्री उमा भारती ने केन-बेतवा लिंक परियोजना में हो रहे विलंब को लेकर वन्य जीव एवं पर्यावरणीय समिति की मंजूरी न मिलने पर अनशन तक करने की चेतावनी दी थी।
फास्ट ट्रैक पर होगी परियोजना
इस अंतिम अड़चन दूर होने से केंद्रीय मंत्री उमा भारती इतनी उत्साहित है कि उनका मंत्रालय इस केन-बेतवा परियोजना को फास्ट्र ट्रैक पर शुरू करेगा। उमा भारती जल्द ही केन-बेतवा परियोजना लांच करने की तैयार में है, ताकि इस परियोजना के शुरू होने से मध्यप्रदेश और उत्तर प्रदेश में जल संकट से जूझ रहे बुंदेलखंड क्षेत्र के 70 लाख लोगों की खुशहाली का मार्ग प्रशस्त हो सके, जिन्हें पर्याप्त पानी, फसलों की सिंचाई और रोजगार की समस्या से भी निजात मिलेगी। उमा का कहना है कि मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश के बुंदेलखंड के लिए वरदान बनने जा रही करीब 9393 करोड़ की केन-बेतवा लिंक परियोजना देश की ऐसी पहली परियोजना होगी,जिससे देश में सूखे और बाढ़ की समस्या के साथ जल संकट को दूर करने में मदद मिलेगी। केंद्रीय जल संसाधन मंत्रालय के अनुसार केन-बेतवा नदी जोड़ो परियोजना की दोनों राज्यों की सरकारों द्वारा सभी औपचारिकताएं पहले ही पूरी हो चुकी हैं और डीपीआर के अनुसार परियोजना शुरू करने का पूरा खाका भी तैयार है।
यह है परियोजना का खाका
मंत्रालय के अनुसार मध्य प्रदेश व उत्तर प्रदेश की इस केन-बेतवा परियोजना के तहत लिंक नहर की कुल लंबाई 221 किलोमीटर होगी, जिसमें दो किलोमीटर की सुरंग भी बनेगी। बरसात में केन नदी से आने वाले पानी को रोकने के लिए खजुराहो के निकट गंगऊ वियर से ढाई किलोमीटर दूर दौधन बांध बनेगा। 77 मीटर ऊंचे इस बांध की क्षमता 2953 मीट्रिक घन मीटर होगी। बांध पर 78 मेगावाट क्षमता की दो विद्युत उत्पादन इकाइयां भी स्थापित होंगी। इनमें एक उत्पादन इकाई बांध पर और दूसरी दो किलोमीटर दूर बनने वाली सुरंग के पास स्थापित होगी। यहां से आने वाला पानी बरुआसागर झील में मिलने के बाद बेतवा नदी में पहुंचेगा। खासबात है कि परियोजना के तहत 1700-1700 मिलियन घन मीटर पानी मध्य प्रदेश व उत्तर प्रदेश को मिलेगा। इस परियोजना से जहां मध्यप्रदेश के छतरपुर, टीकमगढ़ एवं पन्ना जिले की 3,69,881 हेक्टेयर भूमि, तो वहीं उत्तर प्रदेश के महोबा, बांदा व झांसी जिले की 2,65,780 हेक्टेयर भूमि की सिंचाई क्षमत में वृद्धि होगी, जिसमें झांसी जिले की 6,35,661 हेक्टेयर कृषि भूमि भी शामिल है। इसके अलावा इस परियोजना के मार्ग में पड़ने वाली 13.42 लाख जनसंख्या को 49 मिलियन क्यूबिक मीटर पेयजल की उपलब्धता से लोगों की प्यास भी बुझेगी। डीपीआर के मुताबिक उत्तरप्रदेश को केन नदी का अतिरिक्त पानी देने के बाद मध्यप्रदेश करीब इतना ही पानी बेतवा की उपरी धारा से निकाल लेगा। परियोजना के दूसरे चरण में मध्यप्रदेश चार बांध बनाकर रायसेन और विदिशा जिलों में सिंचाई का इंतजाम करेगा।

नोटबंदी के मुद्दे फिर बिखरा विपक्ष!

सपा, बसपा व वामदल के साथ जदयू का भी यूटर्न
हरिभूमि ब्यूरो
. नई दिल्ली।
संसद में हंगामा करने के बाद अब प्रधानमंत्री मोदी के नोटबंदी के फैसले के खिलाफ नई रणनीति के साथ राजग सरकार को घेरने की तैयारी में लामबंद विपक्षी दल ठीक उसी तरह बिखरता नजर आ रहा है, जिस प्रकार गत 28 नवंबर को आक्रोश दिवस पर जनता का समर्थन न मिलने के कारण दरार पड़ गई थी। कांग्रेस द्वारा मंगलवार को संयुक्त बैठक में सपा, बसपा, वामदल के बाद जदयू व अन्नाद्रमुक ने भी हिस्सा न लेने का फैसला किया है। ऐसे में कांग्रेस फिर से बैकपुट पर आती दिखने लगी है।
दरअसल कांग्रेस की अध्यक्ष श्रीमती सोनिया गांधी ने मंगलवार को नोटबंदी के मुद्दे पर केंद्र की मोदी सरकार की घेराबंदी करने के मकसद से 16 विपक्षी दलों की संयुक्त बैठक बुलाई है, जिसके बाद संयुक्त प्रेस कांफ्रेस होगी। लेकिन दिल्ली में नोटबंदी को लेकर विपक्ष की इस बैठक से एक दिन पहले ही विपक्ष की फूट उजागर होना शुरू हो गई है। सूत्रों की माने तो सोनिया गांधी की अगुवाई में होने वाली इस बैठक में समाजवादी पार्टी, बहुजन समाज पार्टी और वामदलों ने पहले ही हिस्सा न लेने का ऐलान कर दिया है। वहीं जनता दल-यू भी अपने पैर वापस खींचती दिख रही है। हालांकि पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी इस बैठक में हिस्सा लेने आ रही हैं। सपा, बसपा, वामदल और जदयू का मानना है कि अगर ये विपक्ष का सांझा कार्यक्रम है तो पहले इसे तय किया जाना चाहिए था।
किसने क्या कहा
सीपीएम नेता सीताराम येचुरी ने सोमवार को कहा कि वे प्रेस कांफ्रेंस में सभी 16 दल में शामिल नहीं होंगे। उन्होंने सवालिया लहजे में कहा कि अगर पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री इस प्रेस कांफ्रेंस में हो सकती हैं तो असम, त्रिपुरा और अन्य राज्यों के नेता क्यों नहीं? येचुरी ने कहा कि चीजों को सही तरीके से प्लान नहीं किया गया है। उधर जदयू नेता केसी त्यागी ने कहा कि एक आम एजेंडा होना चाहिए, जिसके लिए अभी तक हम निर्णय नहीं ले पाए हैं, कि हम संयुक्त प्रेस कांफ्रेंस में जाएंगे या नहीं। तमिलनाडु से एआईएडीएमके ने भी बैठक में शामिल नहीं होने का फैसला करते हुए माना है कि नोटबंदी को लेकर वह अपने हिसाब से प्रदर्शन करेगी। उधर बिहार के हिसाब से देखें तो जदयू ने भले अभी बैठक से बाहर रहने का मन बनाया है, लेकिन बिहार में उसकी सहयोगी राष्ट्रीय जनता दल (राजद) इस बैठक में शामिल हो रही है। राजद नेता अशोक सिन्हा ने कहा कि नोटबंदी को लेकर होने वाली बैठक में राजद शामिल होगी। हालांकि सूत्रों के अनुसार राजद और एनसीपी को भी इसी तरह की कुछ आपत्तियां हैं। उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री जब कुछ नई घोषणा करेंगे तो वाम दल उसके अनुसार ही विरोध करेंगे। इसके लिए हम अन्य विपक्षी पार्टियों के साथ भी सलाह-मशविरा करेंगे। उधर पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने कहा कि कांग्रेस ने एक मीटिंग की बात कही है। अगर वह मीटिंग में शामिल हुई तो आपको बता देंगी।

अब टिकट वितरण पर चाचा-भतीजे में घमासान

यूपी मिशन: सपा में महाभारत-2
ओ.पी. पाल.
नई दिल्ली।
उत्तर प्रदेश विधानसभा के चुनावों का ऐलान होने का जहां सियासी जंग में उतरे राजनीतिक दलों को बेसब्री से इंतजार है, वहीं सत्तारूढ़ समाजवादी पार्टी में परिवारिक द्वंद की फिर से सुगबुगाहट तेज होती नजर आने लगी है। मसलन मुख्यमंत्री अखिलेश यादव और चाचा शिवपाल यादव की प्रत्याशियों की सूची को लेकर घमासान शुरू हो गया है। ऐसे में सपा की इस रार को महाभारत-2 के रूप में देखा जा रहा है, जिसमें सबकी निगाहें सपा मुखिया मुलायम सिंह यादव पर टिकी हैं, कि उनकी इस दूसरे एपिसोड में क्या भूमिका होगी?
यूपी के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने एक दिन पहले विधानसभा चुनाव के लिए सभी 403 सीटों के प्रत्याशियों की सूची खुद सपा मुखिया मुलायम सिंह यादव को सौंपते ही सिर पर खड़ चुनावों से पहले एक बार फिर से समाजवादी पार्टी का विवाद उजागर हो गया है। सपा परिवार के पहले महाभारत को किसी तरह से मुलायम सिंह यादव की सूझबूझ के बाद विराम मिला था, लेकिन चुनावों में प्रत्याशियों को टिकट देने के मामले में सपा के प्रदेशाध्यक्ष शिवपाल यादव और मुख्यमंत्री अखिलेश यादव फिर इसलिए आमने सामने हैं, चूंकि प्रदेशाध्यक्ष की हैसियत से शिवपाल यादव पहले ही 175 प्रत्याशियों की सूची सपा प्रमुख मुलायम सिंह यादव को सौंप चुके हैं। यह भी तय है कि यूपी विधानसभा चुनाव में प्रत्याशियों की सूची को अंतिम रूप सपा प्रमुख मुलायम सिंह यादव ही देंगे। ऐसा सपा के सूत्रों ने भी पुष्टि की है। सवाल इस बात का है कि टिकटों के वितरण पर एक बार फिर उजागर हुई चाचा-भतीजे की कलह को अन्य राजनीतिक दल सपा के घमासान को महाभारत-2 की संज्ञा देकर चुटकी लेने से भी नहीं हिचक रहे हैं। यही नहीं अन्य दल सपा की फिर से शुरू होती इस अंतर्कलह को अपने सियासी फायदे के रूप में देख रहे हैं। ऐसे में समाजवादी पार्टी प्रमुख मुलायम सिंह यादव पर नजरें हैं कि वह अपने पुत्र व मुख्यमंत्री अखिलेश या फिर भाई शिवपाल के पक्ष को तरजीह देंगे या फिर कोई बीच कारास्ता तय करके इस दूसरे एपिसोड को विराम देने का फार्मूला तलाशेंगे। बहराल फिलहाल तो सपा में चाचा-भतीजे का घमासान ही सामने नजर आ रहा है।
36 का आंकड़ा बरकरार?
सपा में सितंबर में भी सपा परिवार की रार में चाचा शिवपाल और अखिलेश के बीच गहरे विवाद रहे हैं और दोनों के बीच सरकार और पार्टी में दखलंदाजी को लेकर 36 का आंकड़ा रहा है। सपा प्रमुख मुलायम ने इस रार को परिवार की एकता की दलील देकर किसी तरह शांत कराया था। लेकिन टिकट बंटवारें पर ताजा तकरार से जाहिर है कि चाचा-भतीजे में 36 का आंकड़ा बरकरार है। भले ही वह सपा में किसी दल के विलय या प्रत्याशियों में फेरबदल अथवा अन्य किन्हीं कारणों से अंतर्कलह पनप रही हो, लेकिन सपा मुखिया मुलायम सिंह का प्रयास होगा कि चुनावी रणनीति के तहत सपा में इस महाभारत को दूसरे संस्करण के रूप में देखी जारही रार को अपने दावं से विराम देंगे।

सोमवार, 26 दिसंबर 2016

‘दंगल’ फिल्म देखकर भावुक हुई गीता फोगट

पीडब्ल्यूएल से मिल रहा है प्रोत्साहन:गीता
ओ.पी. पाल. नई दिल्ली।
आगामी दो जनवरी से यहां अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर शुरू हो रही प्रो रेसलिंग लीग में उत्तर प्रदेश को चैंपियन बनाने के मकसद से महिला पहलवान गीता फोगट जमकर पसीना बहा रही है। हालांकि इस पीडब्ल्यूएल में हिस्सा लेने के लिए राष्ट्रीय राजधानी में दुनियाभर के जानेमाने महिला और पुरुष पहलवानों जमावड़ा लगना शुरू हो गया।
नई दिल्ली के इंदिरागांधी स्टेडियम में दो जनवरी से अंतर्राष्ट्रीय स्तर की आरंभ हो रही प्रो रेसलिंग लीग में दुनियाभर के नामी पहलवान हिस्सा लेकर चैंपियन बनने की हसरत लेकर यहां जमा हो रहे हैं। वर्ष 2012 के लंदन ओलंपिक में देश के लिए हिस्सा लेकर पहली भारतीय महिला पहलवान का गौरव हासिल करने वाली गीता फोगट भी प्रो रेसलिंग लीग में उत्तर प्रदेश टीम को चैम्पियन बनाने के उद्देश्य से जमकर पसीना बहा रही हैं। दरअसल गीता फोगट ने रियो के लिए क्वॉलीफाई करके ओलिम्पियन होने का गौरव हासिल किया, लेकिन जिस तरह से साक्षी मलिक ने गीता फोगट को पीडब्ल्यूएल सीजन-1 और ओलिम्पिक क्वॉलिफाइंग टूनार्मेंट में हराया था, अब गीता फोगट का पीडब्ल्यूएल-2 में अपने वजन 58 किग्रा वर्ग में साक्षी मलिक और ट्यूनीशिया की मारवा अमरी यानि रियो ओलिम्पिक की दोनों पदक विजेताओं को हराना उनका पहला लक्ष्य है। गीता को इन दोनों के साथ अपने मुकाबले का बेसब्री से इंतजार है। उनका कहना है कि शादी के बाद भी उनका अभ्यास जारी है। उन्हें अपने खेल को निखारने में अपने पति पवन से भी काफी मदद मिल रही है। उन्हें पूरा भरोसा है कि वह इस बार उत्तर प्रदेश की टीम को चैम्पियन बनाने में अहम भूमिका निभाएंगी। गीता का आत्मविश्वास इस कदर ऊंचा है कि वह अपने शानदार प्रदर्शन से 58 किलो वर्ग में देश की नम्बर एक खिलाड़ी बनना चाहती हैं।
सचिन व आमिर संग देखी ‘दंगल’
एक बातचीत के दौरान गीता फोगट का कहना है कि ‘दंगल’ फिल्म की रिलीज ने उनके लिए एक ऊर्जा (टॉनिक) का काम किया है। पिछले दिनों ही उन्होंने अपने परिवार के साथ दुनिया के महान क्रिकेटर और भारत रत्न सचिन तेंडुलकर तथा बॉलीवुड हस्ती आमिर खान के साथ खास स्क्रीनिंग पर इस फिल्म को देखा, जिसमें उनके लिए किरदारों ने उन्हें नई ऊर्जा दी है। फिल्म देखने के बाद उन्होंने कहा कि वह सचिन से मान और आमिर खान से सम्मान मिलने की बात मानती हैं। फोगट का कहना है कि वह यह भी मानती हैं कि इस फिल्म ने उनके और बबीता को पीडब्ल्यूएल में शानदार प्रदर्शन करने के लिए एक टॉनिक का काम किया है। इस लीग ने उनके लिए शुरू से ही प्रोत्साहन का काम किया है। गीता फोगट का कहना है कि उन पर बायोपिक बनना और उसे बॉलीवुड और खेल जगत के महान दिग्गजों के साथ देखना उनके परिवार के लिए गर्व की बात है। उनके अलावा बबीता फोगट ने कहा कि यह फिल्म देश में कुश्ती कला को बढ़ावा देने और इस खेल को आम जनता के साथ जोड़ने में बेहद मददगार साबित होगी। महावीर फोगट का कहना है कि आमिर ने उनके किरदार को ठीक उसी तरह जीया है, जैसा कि वह अपनी जिदगी में हैं। उन्हें भरोसा है कि यह फिल्म सफलता के सारे रिकॉर्ड तोड़ देगी। इस फिल्म के बाद गीता और बबीता को देश में स्टार का दर्जा प्राप्त हो गया है।

रविवार, 25 दिसंबर 2016

अब आईटी ने कसा कागजी दलों पर शिकंजा!

चंदे की रकम की पड़ताल करने की तैयारी
ओ.पी. पाल.
नई दिल्ली।
केंद्रीय चुनाव आयोग द्वारा कागजों पर चल रहे 255 राजनीतिक दलों को पंजीकरण सूची से अलग करते हुए आयकर विभाग ने भी अपना शिकंजा कसने की तैयारी शुरू कर दी है। ऐसे फर्जी दलों की मुश्किलें बढ़ना शुरू हो गयी है, जिनकों अभी तक पंजीकृत राजनीतिक दलों के रूप में चंदे की रकम जैसे वित्त में आयकर की छूट मिल रही थी।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा कालेधन के खिलाफ नोटबंदी के फैसले के तहत चलाई गई मुहिम में जिस प्रकार कालेधन को सफेद करने के मामले सामने आएं हैं उनमें ऐसे कागजी दलों द्वारा भी कालेधन को ठिकाने लगाने की आशंका जताई जा रही थी। देश में चुनाव सुधार की कवायद में जुटे चुनाव आयोग ने ऐसी ही आशंका के तहत आयोग में राजनीतिक दलों के रूप में पंजीकृत 255 गैर मान्यता प्राप्त सियासी दलों को अपनी सूची से बेदखल कर दिया है। चुनाव आयोग ने पंजीकृत सूची से अलग की गई इन दलों की सूची वित्तीय जांच के लिए केंद्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड (सीबीडीटी) को कार्रवाही के लिए पत्र के साथ भेज दी है। सीबीडीटी के अलावा अभी तक आयकर की छूट का फायदा ले रहे ऐसे दलों के पास जमा धनराशि और चंदे की रकम की पड़ताल करने के लिए आयकर विभाग ने भी कमर कस ली है, जो कालेधन और चंदे में दर्शायी गई रकम की जांच करके कानूनी कार्यवाही करेगा। ऐसे में इन फर्जी या कागजी दलों की चौतरफा मुश्किलें बढ़ना शुरू हो गई हैं। इसका कारण चुनाव आयोग द्वारा पंजीकृत सूची से अलग होते ही इन दलों को वित्तीय मामलों में किसी प्रकार की कोई छूट नहीं मिल सकेगी।
चुनावी राज्यों पर असर
चुनाव आयोग द्वारा इन 255 दलोें पर की गई कार्यवाही से आगामी फरवरी-मार्च में उत्तर प्रदेश, पंजाब, उत्तराखंड, मणिपुर व गोवा में होने वाले विधानसभा चुनावों पर असर पड़ना तय है। दरअसल ऐसे दलों के प्रत्याशी चुनाव में हिस्सा नहीं लेते, बल्कि बडेÞ दलों को अपने दल की आड़ में वित्तीय रूप से मदद करते रहे हैं। इसलिए संभावना है कि जहां सरकार की नोटबंदी से इन पांचों राज्यों के चुनाव प्रभावित होने की उम्मीद है, वहीं बाकी कसर चुनाव आयोग ने ऐसे दलों के खिलाफ कदम उठाकर पूरी कर दी है। गौरतलब है कि चुनाव आयोग की कागजी दलों की इस पहली सूची में उत्तर प्रदेश के 41, पंजाब के छह, उत्तराखंड के दो, मणिपुर का एक, गोवा के तीन दल शामिल हैं। जहां तक पंजाब का सवाल हैं से डैमोक्रेटिक बहुजन समाज मोर्चा, लेबर विकास पार्टी, लोक हित पार्टी, पंजाब जनता मोर्चा, पंजाब प्रदेश विकास पार्टी और सर्व हिंद शिरोमणि अकाली दल को पंजीकृत सूची से अलग किया गया है।

राग दरबार: भाजयुमो को धार देने की चुनौती

ठाकुर की जगह पूनम
पूनम महाजन को जब युवा मोर्चा की कमान सौंपने का ऐलान हुआ तो बीजेपी के भीतर कई लोगों को आश्चर्य हुआ। खुद अनुराग ठाकुर को भी। हिमाचल के पूर्व मुख्यमंत्री प्रेम कुमार धूमल के बेटे पिछले कई साल से युवा मोर्चा के अध्यक्ष पद पर काबिज थे। सांसद ठाकुर की विदाई का तात्कालीन कारण उनकी बीसीसीआई अध्यक्ष की कुर्सी बनी। चर्चा है कि सुप्रीम कोर्ट में लोढ़ा कमेटी की सिफारिशों को लेकर ठाकुर की किरकिरी के बाद बीजेपी हाईकमान को लगा कि युवा मोर्चा की बागडोर किसी दूसरे नेता को देने में थोड़ी सी भी देरी गले की फांस बन सकती है। अपने देश में क्रिकेट बोर्ड वैसे भी कोयले की खदान हो गया है। जब ठाकुर की हटाने का फैसला हुआ तो उनकी जगह कौन का सवाल आया। विचार हुआ कि यूपी से या पंजाब से किसी को बनाया जाए। दोनों राज्यों में अगले साल चुनाव है। फिर सुझाव आया कि किसी युवा महिला को अध्यक्ष बनाया जाय। आखिरकार तलाश सांसद पूनम महाजन पर जाकर पूरी हुई। पूनम महाराष्ट्र से हैं। युवाओं में लोकप्रिय हैं। उनको युवा मोर्चा का अनुभव भी है। बीजेपी के कई बड़े नेता रहे स्व. प्रमोद महाजन की बेटी पूनम को पार्टी के बड़े नेताओं का आशीर्वाद भी मिलता रहा है। ऐसे वक्त में जब युवा कांग्रेस मोदी सरकार के खिलाफ काफी सक्रिय है,यह देखना रोचक होगा कि पूनम बीजेपी युवा मोर्चा को कैसे आगे बढाती है।   
यूं मोदी के पास पहुंचे राहुल
किसानों की समस्याओं को लेकर जब राहुल गांधी प्रधानमन्त्री नरेंद्र मोदी से मिलने के नफा-नुकसान पर मंथन कर रहे थे, तब कांग्रेस के कई नेताओं का मत था कि ऐसा नहीं करना चाहिए। राहुल ने ताजा ताजा आरोप भी पीएम पर जड़ा था, व्यक्तिगत भ्रष्टाचार को लेकर। आखिरकार प्रधानमन्त्री से मुलाकात करने का निर्णय लिया गया। दरअसल कांग्रेस को ये आशंका सता रही थी कि मोदी सरकार जल्द ही किसानों की ऋण माफी को लेकर घोषणा कर सकती है,ऐसा हुआ तो अगले साल जिन पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव हैं वहाँ बीजेपी के पक्ष में हवा बनेगी। राहुल ने कुछ समय पहले यूपी में किसान यात्रा की थी। विचार हुआ कि अगर राहुल गांधी के नेतृत्व में कांग्रेस प्रतिनिधिमंडल प्रधानमंत्री से मिलने जायेगा तो इसके दो फायदे होंगे। एक, अगर मोदी सरकार किसानों के हक में कुछ फैसले लेती तो कहने को हो जायेगा कि कांग्रेस के दबाव में सरकार मजबूर हुई। दो, अगर सरकार किसानों की अनदेखी करती है तो यूपी समेत बाकी राज्यों में कांग्रेस चुनावी प्रचार में कह सकती है कि राहुल गांधी ने प्रधानमंत्री तक गुहार लगाई पर किसानों की चिंता सरकार को नहीं हुई। इसके बाद राहुल गांधी प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के कार्यालय पहुंचे और किसानों की समस्याओं को लेकर एक ज्ञापन सौंप दिया।

शनिवार, 24 दिसंबर 2016

आखिर 255 सियासी दलों पर गिरी गाज!

कांग्रेस के नाम से पंजीकृत मिले 27 कागजी दल
इन दलों को आयकर में नहीं मिल सकेगी छूट
ओ.पी. पाल.
नई दिल्ली।
केंद्रीय चुनाव आयोग ने आखिर ऐसी 255 राजनीतिक दलों को पंजीकरण सूची से बाहर कर दिया है, जो केवल कागजों पर ही चल रहे हैं और उनके पते भी अजीबो-गरीब पाए गये। ऐसे कागजी सियासी दलों में 27 दल कांग्रेस के नाम पर पंजीकृत हैं।
देश में चुनाव सुधार की दिशा में जुटे केंद्रीय चुनाव आयोग ने संविधान के अनुच्छेद 324 के दौरान खुद को मिले अधिकारों के दौरान समीक्षा करने के बाद इन 255 राजनीतिक दलों को अपनी पंजीकरण सूची से बाहर किया है। आयोग के अनुसार यह तो शुरूआत की गई पहली सूची है इसके बाद समीक्षा में अन्य दलों पर भी ऐसी कार्यवाही की जाएगी। इन दलों की सूची में 27 ऐसे दल शामिल हैं जो कांग्रेस के नाम से पंजीकृत हैं। चुनाव आयोग ने समीक्षा के बाद पाया कि इन राजनीतिक दलों की ओर से 2005 से 2015 के बीच कोई भी उम्मीदवार विधानसभा या लोकसभा का चुनाव नहीं लड़ा है। देश में सात राष्ट्रीय दलों भाजपा, कांग्रेस, बसपा, तृणमूल कांग्रेस, भाकपा, माकपा और एनसीपी समेत 21 अप्रैल 2016 तक 1931 सियासी दलों का केंद्रीय चुनाव आयोग में पंजीकरण हो चुका था। यानि सात राष्ट्रीय पार्टियोंं के अलावा 1924 पंजीकृत, लेकिन गैर-मान्यता प्राप्त राजनीतिक पार्टियां थी, जिनमें से समीक्षा के बाद 255 दलों को सूची से अलग किया गया है।
सरकारी भवनों से भी संचालित दल
आयोग के अनुसार समीक्षा के बाद ऐसी हैरान करने वाली बात भी सामने आई है, जिसमें कई राजनीतिक दल सरकारी भवनों के पते से संचालित किये जा रहे हैं यानि 'आल इंडिया प्रोग्रेसिव जनता दल' का पता तो लुटियन जोन में 17 अकबर रोड, नई दिल्ली दिया गया है, जो केंद्रीय गृह मंत्री राजनाथ सिंह का आधकिारिक सरकारी आवास है। वहीं 'पवित्र हिंदुस्तान कड़गम' पार्टी ने 11, हरीश चंद्र माथुर लेन, दिल्ली का पता दिया है, जिसमें जम्मू-कश्मीर सीआईडी का कार्यालय है। इसी प्रकार दिल्ली के द्वारका के एक पते पर ‘राष्ट्रीय मानव कल्याण संघ’ नाम से पंजीकृत दल वाले भवन में दिल्ली विकास प्राधिकरण में काम करने वाला एक व्यक्ति रहता है। उसके मुताबिक वह वहां पिछले दस सालों से रह रहा है। ऐसे ही गुड़गांव के पते से रजिस्टर्ड एक राजनीतिक दल 'राष्ट्रीय मातृभूमि पार्टी' के कर्ताधर्ता तीन मंजिला बंगले में रहने वाले एक होम्योपैथी डॉक्टर हैं।
सीबीडीटी करेगा वित्तीय जांच
चुनाव आयोग ने चंदों के गलत इस्तेमाल की आशंका के कारण केंद्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड (सीबीडीटी) को सूची भेजकर कहा है कि वह ऐसी 255 पंजीकृत लेकिन गैर-मान्यता प्राप्त राजनीतिक पार्टियों के वित्तीय ब्योरे की जांच करें। मसलन अब पंजीकृत सूची से अलग किये गये इन 255 राजनीतिक दलों की वित्तीय जांच केंद्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड (सीबीडीटी) करेगा। चुनाव आयोग ने सीबीडीटी से यह भी कहा है कि यदि इन दलों को कानून का उल्लंघन करते पाया जाए, तो जनप्रतिनिधित्व कानून-1951 की धारा 29-बी और 29-सी के प्रावधानों के मद्देनजर आवश्यक कार्रवाई की जाए। आयोग का मानना है कि ऐसे दलों को अब रजिस्टर्ड राजनीतिक दलों को मिलने वाली छूट नहीं दी जा सकती। इसलिए अब आयोग की इस कार्रवाई के बाद फर्जी राजनीतिक दलों को अब अन्य मान्यता प्राप्त की तरह टैक्स छूट नहीं मिलेगी।
दिल्ली के सर्वाधिक दल
चुनाव आयोग द्वारा पंजीकृत सूची से बाहर किये गये 255 दलों पहली सूची में सबसे ज्यादा 52 राजनीतिक दल दिल्ली के विभिन्न पतों पर पंजीकृत हैं। जबकि 41 राजनीतिक दलों में उत्तर प्रदेश दूसरे पायदान पर है। पंजीकृत सूची से अलग हुए दलों में तमिलनाडु के 39, महाराष्टÑ के 27, हरियाणा व आन्ध्र प्रदेश के 12-12, राजस्थान के 11, मध्य प्रदेश के आठ और छत्तीसगढ़ के तीन राजनीतिक दलों को पंजीकृत सूची से बाहर किया गया है। ऐसे दलों में बिहार, उत्तराखंड, पंजाब, हिमाचल प्रदेश, गुजरात, पश्चिम बंगाल, कर्नाटक, केरल, मेघालय, गोवा, मिजोरम, सिक्किम, नागालैंड व अंडमान निकोबार द्वीप समूह के दल भी शामिल हैं।

शुक्रवार, 23 दिसंबर 2016

सरकार के कैलेंडर 2017 के हर पेज पर छाए मोदी

25 दिसम्बेर से 100 दिनों का सुशासन अभियान चलायेगी सरकार
हरिभूमि ब्यूरो.
नई दिल्ली।
केंद्र सरकार ने भारत सरकार के 2017 के कैलेंडर को ‘मेरा देश बदल रहा है, आगे बढ़ रहा है’ की थीम के साथ हिंदी व अंग्रेजी भाषाओं में जारी किया गया है। सरकारी कैलेंडर के साथ ही डिजिटल कैलेंडर ऐप को भी लॉन्च किया। भारत सरकार के कैलेंडर 2017 में हर महीने के पेज पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपने कोट के साथ छाए हुए हैं।
गुरुवार को राष्ट्रीय मीडिया सेंटर के सभागार में आयोजित एक समारोह में इस कैलेंडर को केंंद्रीय सूचना एवं प्रसारण मंत्री एम. वेंकैया नायडू ने जारी किया। इस कैलेंडर में प्रधानमंत्री ने कुछ ऐसे कोट कहे हैं। जनवरी के पेज पर 'भारत एक युवा देश है, जिसके पास प्रतिभाशाली लोगों की बड़ी वर्क फोर्स है' के अलावा फरवरी के पेज पर 'हमारी सरकार गरीबों के लिए है, हमने कई ऐसे कदम उठाए हैं ताकि सबका विकास हो सके। प्रगति और अवसर के द्वार खुलने से गरीब भी बदलने भारत में अहम भूमिका निभाएगा' जैसे शब्दों को उल्लेखित किया गया है। इसी प्रकार हरेक पेज पर पीएम मोदी के फोटो के साथ उनका कोट दिया गया है। इस सरकारी कैलेंडर को जारी करने के बाद सूचना एवं प्रसारण मंत्री एम. वेंकैया नायडू ने कहा कि प्रधानमंत्री के नेतृत्व में सरकार का विजन राष्ट्र को सतत विकास के पथ पर अगसर करना है। सरकार ‘सुधार, प्रदर्शन एवं बदलाव’ के मंत्र के साथ देश में रूपांतरणीय बदलाव लाने के लिए प्रतिबद्ध है। इस विजन को भारत सरकार के कैलेंडर 2017 में दशार्या गया है। इस कैलेंडर की थीम ‘मेरा देश बदल रहा है,आगे बढ़ रहा है’ पर आधारित है। उन्होंने भारत सरकार का कैलेंडर 2017 जारी करने के अवसर पर अपने सम्बोधन में यह बात कही। इस अवसर पर नायडू ने भारत में प्रेस संबंधी रिपोर्ट 2015-16 भी जारी की, जिसे भारत के समाचारपत्रों के पंजीयक ने तैयार की है। सूचना एवं प्रसारण राज्य मंत्री कर्नल राज्यवर्धन राठौर भी इस अवसर पर उपस्थित थे।
सरकार की उपलब्धियों का प्रचार
नायडू ने यह भी घोषणा की कि सरकार इस साल 25 दिसम्बर से ‘सुशासन’ की थीम पर देश भर में 100 दिनों का एक अभियान चलायेगी। इस दौरान मंत्रीगण एवं सांसद देश भर की यात्रा कर सरकार के उन महत्वपूर्ण कदमों पर प्रकाश डालेंगे, जो पिछले ढाई वर्षों में उठाये गये हैं। सुशासन दिवस पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के जन्म दिवस पर मनाया जाता है। इस संदर्भ में उन्होंने कहा कि सरकार वितरण प्रणालियों की बेहतरी के लिए प्रयासरत है और इसके साथ ही डिजिटल बदलाव को बढ़ावा देने तथा सभी क्षेत्रों में कनेक्टिविटी क्रांति को आगे बढ़ाने की जरूरत है।

एक साथ हो सकते हैं लोस व विस चुनाव!

सरकार ने ईवीएम मशीनों के लिए 1009 करोड़ की मंजूरी
ओ.पी. पाल.
नई दिल्ली।
केंद्रीय चुनाव आयोग ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के देश में लोकसभा और विधानसभा चुनाव एक साथ कराए जाने के सुझाव के बाद तैयारियां शुरू कर दी हैं। शायद इसी मकसद से केंद्र सरकार ने नई इलेक्ट्रानिक वोटिंग मशीन (ईवीएम) की खरीददारी के लिए चुनाव आयोग को 1,009 करोड़ रुपये जारी किये हैं।
केंद्रीय चुनाव आयोग ने ऐसे संकेत दिये हैं कि वर्ष 2019 में होने वाले लोकसभा के साथ ही देश के सभी राज्यों के विधानसभा चुनाव कराए जा सकते हैं। हालांकि इसके लिए जनप्रतिनिधि कानून में संशोधन करने की जरूरत पड़ेगी। गौरतलब है कि पिछले साल लोकसभा और विधानसभा चुनाव एक साथ कराने की वकालत प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की तरफ से की गई थी, जिसे पीएम ने कई बार दोहराया और इस सुझाव को केंद्रीय चुनाव आयुक्त डा. नसीम जैदी ने भी चुनाव सुधार की दिशा में समर्थन करते हुए इस दिशा में कदम बढ़ाने शुरू किये। चुनाव आयोग यदि आगामी लोकसभा और विधानसभा चुनाव एक साथ कराता है तो उसके लिए करीब 14 लाख नई इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीनों की जरूरत पड़ेगी। शायद नई ईवीएम खरीदने के लिए ही केंद्र सरकार ने चुनाव आयोग को 1009 करोड़ रुपये की धनराशि जारी कर दी है।
ईवीएम की पहली खेप जल्द
आयोग के सूत्रों के अनुसार वित्त मंत्रालय द्वारा ईवीएम मशीनों की पहली खेप को खरीदने की मंजूरी दिए जाने और इतनी ही राशि इसीतरह अगले तीन वर्षों तक दिए जाने को स्वीकृति देने के बाद अगर ऐसी जरूरत पड़ती है, तो चुनाव आयोग पर्याप्त मशीनों की खरीददारी कर पाएगा। ईवीएम की पहली खेप के लिए पहले ही आॅर्डर दिया जा चुका है। ऐसे में हर साल करीब पांच लाख ईवीएम अगले तीन सालों तक खरीदी जाएंगी, जिससे चुनाव आयोग की तरफ से देशभर में एक साथ चुनाव कराने को लेकर उसकी तैयारियों का पता चलता है। हालांकि सरकार की तरफ से एक साथ देशभर में चुनाव कराने को लेकर कोई निर्देश नहीं दिए गए हैं। इसके बावजूद अगले तीन सालों तक नई ईवीएम की खरीददारी के लिए मंजूरी साफतौर पर इस बात का संकेत है कि सरकार 2019 के चुनाव से पहले एक साथ चुनाव को लेकर चुनाव आयोग भी काफी गंभीर है।
राज्य सरकारों कार्यकाल पर असर
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और चुनाव आयोग के अलावा नीति आयोग भी लोकसभा और विधानसभा चुनाव एक साथ कराने की कवायदको आगे बढ़ा रहा है। पिछले माह ही नीति आयोग ने इस कवायद के तहत एक रिपोर्ट जारी की थी, जिसमें  राज्यों की सरकारों के कार्यकाल छोटा करने और विस्तार करने का आंकड़ा दर्शाया गया। नीति आयोग की 'एनालिसिस आॅफ साइमल्टेनीअस इलेक्शंस: द व्हाट, व्हाई एंड हाऊ' नामक रिपोर्ट के अनुसार, पहले चरण में चुनाव कराने पर छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश, राजस्थान की विधानसभा का कार्यकाल 5 महीने, मिजोरम 6 महीने और कर्नाटक का 12 महीने बढ़ाना होगा। तो वहीं हरियाणा व महाराष्ट्र विधानसभा का कार्यकाल 5 महीने, झारखंड का 7 महीने और दिल्ली विधानसभा का कार्यकाल 8 महीने कम करना होगा। वहीं दूसरे चरण में एक साथ चुनाव कराने पर तमिलनाडु, पश्चिम बंगाल, पुदुचेरी, असम और केरल विधानसभा का कार्यकाल 6 महीने, जम्मू कश्मीर का 9महीने और बिहार का 13 महीने कार्यकाल बढ़ाना होगा। जबकि गोवा, मणिपुर, पंजाब, उत्तराखंड का 3 महीने, उत्तर प्रदेश का 5 महीने, हिमाचल प्रदेश व गुजरात का 13 महीने और मेघालय, त्रिपुरा व नागालैंड का कार्यकाल 15 महीने का कार्यकाल कम करने की जरूरत होगी।
दो चरणों में चुनाव का सुझाव
नीति आयोग की इस रिपोर्ट में दो चरणों में चुनाव कराने का सुझाव दिया गया है। इस सुझाव के तहत दो चुनावों के बीच 30 महीने या ढाई साल का अंतर होना चाहिए। पहले चरण में अप्रैल-मई 2016 में लोकसभा के साथ ही 14 राज्यों के चुनाव कराए जा सकते हैं, तो वहीं दूसरे चरण में अक्टूबर-नवंबर 2021 में बाकी के राज्यों में मतदान कराना संभव है। रिपोर्ट में राज्यवार विधानसभाओं का बंटवारा भी किया गया है।
कानून में संशोधन बड़ी चुनौती
देश में करीब 10 लाख पोलिंग स्टेशन हैं और 16 लाख ईवीएम होने के बावजूद लोकसभा और विधानसभा चुनावों को एकसाथ कराने की सबसे बड़ी चुनौती केंद्र सरकार के लिए जनप्रतिनिधित्व कानून में संशोधन है। यह एक कानूनी संशोधन होगा, जिसके पक्ष में दो तिहाई समर्थन की आवश्यकता होगी। जिसके लिए संसद के सदस्यों को दोनों सदनों में उपस्थित रहकर समर्थन में वोट करना होगा। इस योजना के लिए कानून मंत्रालय और संसदीय कार्य मंत्रालय काफी महत्वपूर्ण होंगे, जिन्हें इस पर सभी राजनीतिक दलों की सहमति की आवश्यकता होगी।
23Dec-2016

गुरुवार, 22 दिसंबर 2016

रद्द होगी 200 राजनीतिक दलों की मान्यता

एक दशक में इन दलों ने चुनावों में नहीं लिया हिस्सा
हरिभूमि ब्यूरो.
नई दिल्ली।
मोदी सरकार के कालेधन के खिलाफ नोटबंदी की मुहिम के साथ ही चुनाव आयोग ने भी राजनीतिक दलों पर शिकंजा कसना शुरू कर दिया है। आयोग ने राजनीतिक दलों को मिलने वाली छूट का लाभ ले रहे ऐसे 200 राजनीतिक दलों की मान्यता को रद्द करने का फैसला किया है,जिन्होंने पिछले एक दशक से किसी भी चुनाव में हिस्सा नहीं लिया है।
केंद्रीय चुनाव आयोग के सूत्रों के अनुसार ऐसे 200 राजनीतिक दलों की मान्यता को रद्द करने का निर्णय लिया है, जिन्होंने पिछले 10 सालों से जिन राजनीतिक दलों ने चुनाव नहीं लड़ा है। चुनाव आयोग की इस कार्यवाही के पूरा होते ही ये 200 राजनीतिक दल भविष्य में चुनाव नहीं लड़ पाएंगे। चुनाव आयोग ने संविधान के अनुच्छेद 324 के तहत अपनी शाक्तियों का इस्तेमाल किया, जिसके तहत वह सभी चुनावों की कार्रवाई के नियंत्रण का अधिकार देता है। चुनाव आयोग में पंजीकृत राजनीतिक दलों में फिलहाल सात राष्ट्रीय दल, 58 प्रादेशिक पार्टियां और 1786 रजिस्टर्ड अपरिचित पार्टियां हैं। हालांकि वर्तमान कानून के तहत चुनाव आयोग के पास राजनैतिक दल को पंजीकृत करने की शक्ति तो है, मगर किसी पार्टी को अपंजीकृत करने का अधिकार नहीं है, जिसे मान्यता दी जा चुकी है।
चंदा मिलने की होगी जांच
सूत्रों के अनुसारा केंद्रीय चुनाव आयोग केंद्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड (सीबीडीटी) को पत्र लिखकर ऐसे राजनीतिक दलों की सूचना देगा ताकि वह इन पार्टियों के चंदे की जांच हो सके। चुनाव आयोग के सूत्रों का मानना है कि पिछले दस साल से मान्यता लेने के बावजूद इन 200 दलों ने चुनाव नहीं लड़ा है। ऐसा अंदेशा जताया गया है कि इन दलों ने अपनी अपनी राजनीतिक दलों की आड़ में कालेधन को सफेद किया होगा। ये सभी दल कागजों पर हैं और इन दलों ने वर्ष 2005 से कोई भी चुनाव भी नहीं लड़ा है। गौरतलब है कि राजनीतिक दलों की ओर से अज्ञात चंदा प्राप्त करने पर कोई संवैधानिक या कानूनी पाबंदी नहीं है। जनप्रतिनिधित्व कानून 1951 की धारा 29 सी के तहत चंदे की घोषणा की जरूरत के जरिये अज्ञात चंदे पर परोक्ष आंशिक प्रतिबंध है, लेकिन ऐसी घोषणा केवल 20 हजार रुपये से अधिक के चंदे पर अनिवार्य है।
रडार पर अन्य दल
सूत्रों मुताबिक देश में चुनाव सुधार की कवायद में जुटे चुनाव आयोग ने देश में पंजीकृत 1900 पार्टियों में से दस साल से चुनाव न लड़ने वाले 200 दलों को चिन्हित कर मान्यता रद्द करने की शुरूआत की है, लेकिन आयोग के रडार पर ऐसे भी दल हैं जो चुनाव प्रक्रिया के प्रति गंभीर नहीं है और केवल चंदा हासिल कर कालेधन को सफेद करने के इरादे से दलों का गठन कर चुनाव आयोग में पंजीकृत हैं। ऐसे सभी दलों के खिलाफ भी कार्रवाई करने की तैयारी की जा रही है। सूत्रों के अनुसार ऐसे कई राजनीतिक दल हैं जो आय कर रिटर्न ही नहीं भरते हैं और कुछ भरते हैं तो वह इसकी कॉपी चुनाव आयोग को नहीं भेजते हैं। ऐसे सभी दलों की सूची सीबीडीटी को इसलिए भेजी जाएंगी, ताकि वह उनकी वित्तीय मामलों की जांच हो सके, क्योंकि पंजीकृत राजनीतिक दलों की सूची से बाहर होने के बाद वह फायदों से वंचित हो जाएंगे।
चुनाव आयोग की सिफारिश
गौरतलब है कि इससे पहले चुनाव आयोग ने सरकार से सिफारिश की थी कि राजनीति में कालेधन और धनशोधन के इस्तेमाल पर रोक लगाने के लिए कानून में संशोधन करे जिससे कि कर में छूट उन्हीं पार्टियों को मिले जो चुनाव में सीटें जीतें और दो हजार रुपये एवं उसके ऊपर दिये जाने वाले गुप्त चंदों पर रोक लगे। आयकर कानून-1961 की धारा 13ए राजनीतिक दलों को मकान सम्पत्ति से आय, स्वैच्छिक योगदान से होने वाली आय, पूंजी लाभ से आय और अन्य स्रोतों से आय पर कर छूट प्रदान करती है।
22Dec-2016

ऐसे लगेगी कॉमर्शियल वाहनों की रफ़्तार पर लगाम!

एक फरवरी से अनिवार्य होगा टैंपर प्रूफ स्पीड गवर्नर
ओ.पी. पाल.
नई दिल्ली।
देश में सड़क हादसों पर अंकुश लगाने की दिशा में केंद्र सरकार ने कॉमर्शियल वाहनों की गति पर ब्रेक लगाने के लिए 31 जनवरी के बाद ऐसे वाहनों में केंद्र सरकार द्वारा प्रमाणित मानदंडों के अनुरूप गतिरोधक मीटर (टैंपर प्रूफ स्पीड गवर्नर) लगाना अनिवार्य कर दिया है।
केंद्रीय सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्रालय के अनुसार एक फरवरी से स्कूल बस, यात्री बस या फिर भारी माल वाहक जैसे कॉमर्शियल वाहनों गति नियंत्रित करने के लिए उनमें गतिरोधक मीटर (टैंपर प्रूफ स्पीड गवर्नर) लगाए जाएंगे। ये मीटर केंद्र सरकार द्वारा प्रमाणित मापदंडों के अनुरूप होंगे। सरकार के हाल ही मेें जारी दिशानिर्देशों के तहत यदि 31 जनवरी 2016 के बाद किसी कॉमर्शियल वाहन में टैंपर प्रूफ स्पीड गवर्नर लगा नहीं मिला, तो उस वाहन के मालिक के खिलाफ मोटर वाहन कानून की धाराओं के तहत सख्त कार्रवाई अमल में लाई जाएगी। इससे पहले एक अगस्त को जारी आदेश में केंद्रीय सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्रालय ने 31 सितंबर तक स्पीड गवर्नर की छूट प्रदान की थी, जिसके बाद मंत्रालय ने तेज गति से चलने वाले बड़े वाहनों से बढ़ रही दुर्घटनाओं को देखते हुए एक नवंबर से कॉमर्शियल वाहनों में स्पीड गवर्नर होना अनिवार्य कर दिया था। अभी तक ज्यादातर वाहनों में स्पीड गवर्नर न लगने की शिकायत पर मंत्रालय ने एक और मौका देते हुए अब स्पीड गवर्नर लगवाने के लिए 31 जनवरी तक की छूट दे प्रदान की है। सूत्रों के अनुसार कॉमर्शियल वाहनों में बिना सर्टिफाइड स्पीड गवर्नर के उपयोग की शिकायत के बाद मंत्रालय ने सड़क परिवहन आयुक्तों के जरिए देशभर के एआरटीओ को इस संबंध के आदेश जारी कर दिये हैं।
क्या है टैंपर प्रूफ स्पीड गवर्नर
टैंपर प्रूफ स्पीड गवर्नर गतिरोधक उपकरण या मीटर होता है। यंत्र वाहन के अंदर बिजली मीटर की तरह काम करेगा। मीटर को तय मानक गति से सील होगा, जिसके कारण उससे ज्यादा गति से संबन्धित वाहन को नहीं चलाया जा सकेगा। इस मीटर में कोई भी वाहन चालक गति को घटाने या बढ़ाने के लिए छेड़छाड़ नहीं कर सकेंगे। यदि ऐसा होता है तो मीटर से छेड़छाड़ करने पर कानूनी कार्यवाही अमल में लायी जाएगी। यह गति नियंत्रक उपकरण 8 सवारी से अधिक व 3500 किग्रा से अधिक वजन वाले वाहनों मेंलगाए जाएंगे। मानक के अनुसार कॉमर्शियल वाहन जैसे हैवी लोडिंग वाहन, टैंकर, डंपर की स्पीड 60 किमी प्रति घंटा व बस व सवारी वाहनों की स्पीड 80 किमी प्रति घंटा रहेगी।
ऐसे रहेगी तय गति सीमा
केंद्रीय सड़क परिवहन मंत्रालय के अनुसार इन दिशानिर्देशों के तहत भारी वाहनों की सीमा 60 किमी प्रतिघंटा और बस व सवारी वाहनों की गति सीमा 80 किमी प्रति घंटा तय की जा रही है। ऐसे वाहनों में स्टेज कैरिज वाहन, कॉन्ट्रेक्ट कैरिज वाहन, मैक्सी कैब (यात्री संख्या 8 से अधिक), ओमनी, बस, डंपर, टैंकर, स्कूल बस शामिल हैं। मसलन स्पीड गवर्नर लगने के बाद डंपर, टैंकर,स्कूल बस की स्पीड 60 किमी प्रति घंटा और अन्य माल वाहन व यात्री वाहनों को अधिकतम गति 80 किमी प्रति घंटा रहेगी। मंत्रालय के अनुसार फिलहाल स्पीड गवर्नर लगवाने पर जुर्माने से बचा जा सकेगा। एआरटीओ में रजिस्टर्ड हजारों वाहन ऐसे हैं, जिनमें स्पीड गवर्नर की आवश्यकता है।
इन वाहनों को मिलेगी छूट
मंत्रालय के दिशानिर्देशों के मुताबिक दो पहिया, तिपहिया, चौपहिया वाहन, ऐसे चार पहिया वाहन जिनका उपयोग यात्री व सामान के लिए किया जा रहा है, जिसमें चालक और यात्री की संख्या 8 है और वजन 3500 किलो से अधिक नहीं है। इसके अलावा कुछ और भी वाहन शामिल हैं, जिन्हें स्पीड गवर्नर मीटर से छूट दी जा सकती है।
22Dec-2016

बुधवार, 14 दिसंबर 2016

नोटबंदी के बाद एक बड़े फैसले की तैयारी में मोदी सरकार


शायद ही अब चुनाव लड़ पाएं दागी नेता!
विधि आयोग और चुनाव आयोग की सिफारिशों पर गंभी सरकार
ओ.पी. पाल. नई दिल्ली।
देश में विमुद्रीकरण के ऐतिहासिक फैसले के बाद अब मोदी सरकार चुनाव सुधार की दिशा में भी बड़ा निर्णय लेने की तैयारी में है। मसलन केंद्र सरकार विधि आयोग की सिफारिशों को लागू करने के लिए गंभीर हो रही है, जिसमें दागदार नेताओं पर तो चुनाव लड़ने की पाबंदी लग ही सकती है, वहीं शायद एक व्यक्ति एक साथ दो सीटों पर भी चुनाव नहीं लड़ पाएगा? ऐसी व्यवस्था समेत कई महत्वपूर्ण प्रस्ताव केंद्रीय चुनाव आयोग ने भी केंद्र सरकार को भेजकर सिफारिश की है।
चुनाव आयोग के प्रस्तावों और विधि आयोग की सिफारिशों पर देश में चुनाव सुधार के लिए यदि सरकार ने ऐसे सख्त निर्णय लिये, तो नोटबंदी के बाद मोदी सरकार का लोकतांत्रिक व्यवस्था में चुनाव सुधार की दिशा में यह भी एक नीतिगत ऐतिहासिक फैसला बनकर सामने आएगा। सूत्रों के अनुसार विधि आयोग की सिफारिशों में आपराधिक पृष्ठभूमि वाले नेताओं के चुनाव लड़ने पर पाबंदी लगाने की सिफारिश की गई है। मोदी सरकार ऐसे नेताओं के चुनाव लड़ने के बारे में विधि आयोग की सिफारिशों को लागू करने की तैयारी में है, जिसमें आपराधिक पृष्ठभूमि वाले नेताओं के चुनाव लड़ने पर पाबंदी लग जाएगी। मंत्रालय के उप सचिव केके सक्सेना द्वारा जारी इस परिपत्र के में कहा गया है कि विधि आयोग द्वारा चुनाव सुधारों को लेकर कम से कम दस पेज के लिखित में दिए गए सुझावों को सरकार लागू करने की तैयारी कर रही है। इसके लिए मंत्रालय ही चुनाव संचालन नियम, 1961 और जनप्रतिनिधि कानून-1951 में फेरबदल की पहल करेगा।
एक प्रत्याशी-एक सीट का प्रावधान!
चुनाव आयोग के प्रस्ताव को विधि आयोग ने भी आगे बढ़ाया है, जिसमें देश में लोकतांत्रिक व्यवस्था में एक प्रत्याशी के कई सीटों से चुनाव लड़ने की छूट के प्रावधान को प्रतिबंधित करने पर जोर दिया गया है। चुनाव सुधार की प्रक्रिया में चुनाव आयोग ने कानून मंत्रालय को अपनी सिफारिश में एक प्रत्याशी को दो या उससे ज्यादा सीटों से चुनाव लड़ने की चली आ रही प्रक्रिया को आर्थिक खर्च पर अंकुश लगाने के लिए महत्वपूर्ण करार दिया है। चुनाव आयोग ने इसके अलावा कुछ और संशोधन भी केंद्रीय विधि मंत्रालय को भेजे हैं। इसका कारण एक उम्मीदवार दो सीट से चुनाव जीतकर एक सीट छोड देता है, जहां उपचुनाव कराने के लिए समय और आर्थिक खर्च की बर्बादी होती है। आयोग ने सरकार से सरकारी बंगले, बिजली, टेलीफोन, पानी, होटल, एयरलाइन आदि का भुगतान या अन्य सार्वजनिक देनदारियों वाले लागों को भी चुनाव लड़ने से रोकने की सिफारिश की है।
क्या है विधि आयोग की रिपोर्ट
सर्वोच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश डा. बीएस चौहान की अगुवाई वाले विधि आयोग की रिपोर्ट में जनप्रतिनिधि कानून में बदलाव के तहत की गई सिफारिशों में केंद्रीय विधि एवं न्याय मंत्रालय के विधायिका विभाग ने हाल ही में सभी संबन्धित विभागों को जारी एक परिपत्र में साफ संकेत दिये हैं कि सरकार जल्द ही विधि आयोग की सिफारिशों को लागू करने के प्रयास में है। मंत्रालय ने जिस व्यक्ति के खिलाफ कम से कम पांच साल की सजा वाले प्रावधान वाले अपराध में आरोप तय हो चुके हों, को चुनाव लड़ने की अनुमति न दिये जाने की सिफारिश को अत्यंत महत्वपूर्ण सुझाव माना है। वहीं दूसरे महत्वपूर्ण सुझाव के साथ की गई सिफारिश में राजनीतिक दलों के नेताओं के खिलाफ चल रहे मामलों की सुनवाई के लिए फास्ट ट्रैक अदालतें गठित कर एक साल के भीतर फैसला देने की बाध्यता को भी गौर करने वाला माना है। विधि आयोग की सिफारिश के अनुसार फास्ट ट्रैक कोर्ट से सजा पाने वाले नेता भले ही ऊपरी अदालत से बरी हो जाएं, लेकिन उन पर चुनाव लड़ने, राजनीतिक पार्टी बनाने और राजनीतिक दल में पदाधिकारी बनने पर हमेशा के लिए पाबंदी लगाने पर जोर दिया गया है।

मंगलवार, 13 दिसंबर 2016

नोटबंदी के शोर में जीएसटी पर संकट के बादल!

संसद सत्र में तैयारी के बावजूद मुश्किल में सरकार
एक अप्रैल से कानून लागू करने के टूटे सपने
ओ.पी. पाल. नई दिल्ली।
मोदी सरकार के नोटबंदी के फैसले के विरोध में संसद में विपक्षी दलों के हंगामे के कारण ठप चल रही कार्यवाही के मद्देनजर देश में एक समान कर लागू करने वाले जीएसटी कानून पर संकट के बादल छा गये हैं। मसलन संसद के शीतकालीन सत्र की बाकी बची तीन बैठकों में जीएसटी संबन्धी तीनों कानून पारित होना तो दूर पेश होने की संभावना नहीं है। वहीं जीएसटी परिषद कुछ राज्यों और केंद्र में जीएसटी व्यवस्था में करदाता इकाइयों पर नियंत्रण के अधिकार को लेकर सहमति न बनने से मोदी सरकार का आगामी एक अप्रैल से जीएसटी कानून लागू करने का सपना टूटता नजर आ रहा है।
दरअसल केंद्र सरकार के संसद के मौजूदा शीतकालीन सत्र में जीएसटी विधेयकों को पारित कराने की प्राथमिकता में विमुद्रीकरण का मुद्दा बड़ी अड़चन बनकर सामने आया है। प्रधानमंत्री के नोटबंदी के फैसले का विरोध में कांग्रेस की अगुवाई में लगभग तमाम विपक्षी दल संसद सत्र के पहले दिन से ही दोनों सदनों में लगातार हंगामा करके संसदीय कार्यवाही को ठप करते आ रहे हैं। हालांकि सरकार को उम्मीद थी कि जीएसटी के मुद्दे पर विपक्षी दल सत्र के अंतिम दिनों में सरकार का साथ देंगे, लेकिन इस सत्र में मात्र तीन दिन की कार्यवाही होनी है, जिसमें सरकार कुछ प्रयास भी करती तो उसकी रही-सही उम्मीदें रविवार को ही जीएसटी परिषद में शामिल कुछ राज्यों के वित्त मंत्रियों के कारण टूट गई। मसलन जीएसटी परिषद की इस बैठक में जीएसटी व्यवस्था में करदाता इकाइयों पर नियंत्रण के अधिकार के मुद्दे पर केंद्र व राज्यों के बीच कोई चर्चा ही नहीं हो सकी। वहीं कुछ मुद्दो पर भी आम सहमति बनाया जाना बाकी है। इसी कारण दो दिन चलने वाली इस बैठक को पहले ही दिन बिना किसी नतीजे के ही आगामी 22-23 दिसंबर तक के लिए स्थगित कर दिया गया। जबकि संसद का शीतकालीन सत्र में दोनों सदनों की बैठकेें 16 दिसंबर तक ही निर्धारित हैं। जाहिर सी बात है कि इस संसद सत्र में जीएसटी कानून को पारित होने की कोई गुंजाइश नहीं बची। यही कारण है कि सरकार के सामने अब लाख प्रयास के बाद भी देश में एक अप्रैल से जीएसटी कानून लागू करना मुश्किल ही नहीं, बल्कि नामुमकिन भी है।
सरकार के पास यह भी विकल्प
केंद्र सरकार की ओर से वित्तमंत्री अरुण जेटली का लक्ष्य अभी भी जीएसटी कानून एक अप्रैल से लागू करने का है। ऐसे में माना जा रहा है कि देश में जीएसटी कानून लागू करने के लिए सरकार के पास एक विकल्प यह भी हो सकता है कि वह इस जीएसटी संबन्धी तीनों विधेयकों की संसद की मंजूरी लेने के लिए विशेष सत्र भी बुला सकती है, लेकिन इससे पहले केंद्र सरकार को जीएसटी परिषद में विधेयकों के सभी प्रावधानों पर मंजूरी हासिल करना जरूरी है, जिसके बाद तीनों विधेयकों के मसौदों को तैयार करने के बाद भी सरकार इस कदम को आगे बढ़ा सकती है। हालांकि आर्थिक मामलों के जानकार मानते हैं कि नोटबंदी का मुद्दा चरम पर होने के कारण संसद के अलावा जीएसटी परिषद में भी राज्यों के भरोसे को तोड़ता नजर आ रहा है। ऐसा परिषद की बैठक के दौरान केरल के वित्त मंत्री वित्त मंत्री थॉमस इसाक केंद्रीय वित्तमंत्री अरुण जेटली के समक्ष बयां भी कर चुके हैं। इसलिए इस विकल्प की राह भी सरकार के लिए आसान नहीं है।

केंद्रीय जल आयोग का जल्द होगा पुनर्गठन!

संसदीय समिति की रिपोर्ट अमल में लाने की सिफारिश
हरिभूमि ब्यूरो.
नई दिल्ली।
केंद्र सरकार जल्द ही केंद्रीय जल आयोग के पुनर्गठन कर सकती है, इसके लिए संसद की स्थायी समिति ने मिहिर शाह समिति की रिपोर्ट का हवाला देते हुए उस पर अमल करते हुए ऐसी सिफारिश की है।
केंद्रीय जल संसाधन, नदी विकास एवं गंगा संरक्षण मंत्रालय से संबंधित भाजपा सांसद हुकुम सिंह की अध्यक्षता वाली संसद की स्थायी समिति ने हाल ही में संसद में पेश की अपनी रिपोर्ट में केंद्र सरकार से देश में सिंचाई, जल प्रबंधन से संबंधित अध्ययन करने,राष्ट्रीय जल संसाधन का मूल्यांकन एवं अंतरराज्यीय जल विवाद को निपटाने में सहायता के अलावा जल संबन्धी आकलन की तकनीकी गतिविधियों में मदद करने वाले केंद्रीय जल आयोग के पुनर्गठन करने की सिफारिश की है। समिति ने मिहिर शाह समिति की रिपोर्ट का हवाला देते हुए अपनी रिपोर्ट में वित्त वर्ष 2015-16 के अनुदान की मांगों के तीसरे प्रतिवेदन में कें्रदीय जल आयोग के प्रस्तावित पुनर्गठन में हुए विलंब पर अपना असंतोष जताने का जिक्र भी किया। हालांकि मंत्रालय इसके विलंब को वित्त मंत्रालय की कुछ टिप्पणियों पर असहमति जताने का कारण बताया है। संसदीय ने अपनी रिपोर्ट में कहा कि सितंबर 2015 में मंत्रालय ने पूर्ववर्ती योजना आयोग के सदस्य रहे डा. मिहिर शाह की अध्यक्षता में गठित की गई एक समिति ने इस विषय का विस्तृत अध्ययन करके अपनी रिपोर्ट में पहले ही सीडब्ल्यूसी के पुनर्गठन के संबंध में अपनी सिफारिशें दी हैं।
आयोग की अहम भूमिका
संसदीय समिति ने केंद्र सरकार से सिफारिश की है कि मिहिर शाह समिति की रिपोर्ट में कही गई बातों पर तेजी से अमल किया जाए ताकि केंद्रीय जल आयोग का पुनर्गठन जल्द से जल्द किया जा सके। समिति ने देश में जल संसाधन के क्षेत्र में एक प्रमुख तकनीकी संगठन के रूप में केंद्रीय जल आयोग के महत्व, व्यापक स्वरूप एवं कार्य को देखते हुए इस बारे में मिहिर शाह समिति की रिपोर्ट पर तेजी से अमल किया जाए ताकि आयोग का पुनर्गठन शीर्घ्र किया जा सके। समिति ने इस संबंध में होने वाली प्रगति के बारे में दो महीने के भीतर सूचित किया जाए। समिति ने आयोग के कार्यो में केंद्रीय सहायता प्राप्त करने का भी अपनी रिपोर्ट में जिक्र किया है, जिसमें चुनिंदा परियोजनाओं की निगरानी करना, डिजाइन सर्वेक्षण करना, जांच और विस्तृत परियोजना रिपोर्ट तैयार करना, पर्यावरणीय एवं सामाजिकए, आर्थिक मुद्दों का अध्ययन करना शामिल है। यही नहीं आयोग देश में सिंचाई, जल प्रबंधन से संबंधित अध्ययन करने के साथ राष्ट्रीय जल संसाधन का मूल्यांकन एवं अंतरराज्यीय जल विवाद को निपटाने में सहायता करता आ रहा है। सीडब्ल्यूसी बांध संबंधी सुरक्षा अध्ययन, जलाशयों के प्रबंधन पर विचार करने के साथ प्रशिक्षण एवं क्षमता निर्माण का संयोजन करता है, वहीं जल क्षेत्र में अंतरराष्ट्रीय सहयोग को बढ़ावा देता है।

कैशलेस भुगतान से श्रमिको को राहत देगी सरकार

अब चैक या बैंक खातों के जरिए होगा वेतन
ओ.पी. पाल
. नई दिल्ली।
केंद्र सरकार ने विमुद्रीकरण नीति के तहत कैशलेस भुगतान को बढ़ावा देने की दिशा में देश के कारखानों और उद्योगों में काम करने वाले लाखों कामगारों के वेतन भुगतान को लेकर एक ऐसी योजना तैयार की है, जिसके तहत अभी तक नकद वेतन पा रहे कामगारों को जल्द ही चेक या सीधे उनके बैंक खातों में वेतन का भुगतान पहुंचना शुरू हो जाएगा।
सूत्रों के अनुसार मोदी सरकार ने विमुद्रीकरण के फैसले के बाद जिस प्रकार से डिजीटल पेमेंट को प्रोत्साहन देने की मुहिम शुरू की गई है, उसे देखते हुए केंद्रीय श्रम एवं रोजगार मंत्रालय ने एक कैबिनेट नोट जारी किया गया है, जिसके अनुसार कारखानों और फैक्ट्रियों में काम करने वाले कर्मचारियों का यह यह आकलन किया जाएगा कि श्रमिकों को न्यूनतम वेतन मिल रहा है या नहीं। केंद्र सरकार इसके लिए सरकार मजदूरी अधिनियम,1936 के सेक्शन 6 में संशोधन करने का मसौदा तैयार कर चुकी है, जिसके तहत औद्योगिक या अन्य प्रतिष्ठानों को सैलरी का भुगतान चेक या बैंक खातों के माध्यम से करना होगा। सरकार का मत है कि इस निर्णय से मानकता के आधार पर वेतन न पाने वाले लाखों कर्मचारियों को लाभ भी होगा। नोटबंदी के फैसले के बाद केंद्र सरकार का लक्ष्य है कि मजदूरों को केंद्र और राज्य सरकारों द्वारा तय की गयी न्यूनतम मजदूरी दिलाई जा सके। इसी लक्ष्य के तहत वित्त मंत्रालय के दिशानिर्देशों के तहत श्रम मंत्रालय ने कैबिनेट नोट तैयार किया है। मोदी सरकार का यह फैसला कैशलेस भुगतान को प्रोत्साहित करने की दिशा में सामने आया है, जिसमें यदि कामगारों का वेतन 18000 रुपये प्रति माह से कम है तो उन्हें इस नए कानून के दायरे में लाकर उन्हें भी राहत दी जा सके।

सोमवार, 12 दिसंबर 2016

ऐसे नष्‍ट होंगे पुराने नोट -कालेधन के खिलाफ मुहिम

विमुद्रीकरण की वैधता के लिए कानून में होगा संशोधन
ओ.पी. पाल. नई दिल्ली।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा कालेधन और भ्रष्टाचार के खिलाफ विमुद्रीकरण के फैसले वाली मुहिम को कारगर करने के लिए अभी और भी कड़े फैसले लेने की तैयार में है। विमुद्रीकरण के तहत 500 व 1000 के पुराने नोटों को अवैध करार करने के लिए केंद्र सरकार जल्द ही आरबीआई कानून में संशोधन करेगी। वहीं सरकार ने डिजीटल लेन-देन को गंभीरता के साथ तेज करने के लिए भी कमर कस ली है।
दरअसल कालेधन और भ्रष्टाचार जैसी समस्या से निपटने के लिए गोपनीयता बनाए रखने के इरादे से केंद्र की मोदी सरकार ने गत आठ दिसंबर को आरबीाआई कानून में संशोधन किए बिना ही रिजर्व बैंक कानून की धारा-26 (2) के तहत कार्रवाई करते हुए 500 और 1000 के पुराने नोट अमान्य कर दिये थे, जिन्हें अवैध करार करने के लिए इस कानून में संशोधन लाना भी जरूरी है। कानून में संशोधन के बाद ही बैंकों में जमा हुए और आयकर विभाग द्वारा ताबड़तोड़ छापों के दौरान पकड़े जा रहे पुराने बड़े नोटों को नष्ट करने की प्रक्रिया शुरू की जाएगी। सूत्रों के अनुसार सरकार को मौजूदा वित्तीय वर्ष समाप्त होने से पहले ही आरबीआई कानून में संशोधन करने से ही विमुद्रीकरण की प्रक्रिया के तहत 500 और 1000 के नोट को अवैध करार घोषित किये जा सकेंगे। सरकारी सूत्रों के अनुसार विमुद्रीकरण के लिए कानून संशोधन किये बिना ही पुराने नोटों को अमान्य करना पड़ा है। इस योजना में सरकार आगामी बजट सत्र में कानून संशोधन करके इसका उल्लेख करेगी। इससे पहले ऐसी प्रक्रिया वर्ष 1978 में अपनाने के लिए पहले कानून में संशोधन किया गया था।
अधिसूचना जारी करने का अधिकार
सूत्रों के अनुसार केंद्र सरकार को रिजर्व बैंक के केंद्रीय बोर्ड की सिफारिश पर रिजर्व बैंक कानून की धारा 26 (2) के तहत भारत के राजपत्र में अधिसूचना के जरिये अधिसूचित में वर्णित तारीख से किसी भी श्रृंखला और मूल्य के बैंक नोटों को कानूनी तौर पर बंद करने का अधिकार है, जिसका मोदी सरकार ने विमुद्रीकरण के फैसले में किया। गौरतलब है कि आठ नवंबर से अब तक बैंकों को 15.5 लाख करोड़ रुपए के बंद नोटों की तुलना में 12 लाख करोड़ रुपए की जमा मिली है। सरकार का अनुमान है कि बैंकिंग प्रणाली में करीब 13 लाख करोड़ रुपए वापस लौटेंगे। रिजर्व बैंक द्वारा 500, 1000 के नोट को बंद करने की वजह से ऊंचा लाभांश रिजर्व बैंक कानून में संशोधन के बिना मान्य नहीं होगा।
ई-पेमेंट पर सरकार की योजना
मोदी सरकार ने विमुद्रीकरण के फैसले के बाद देश की जनता को डिजिटल पेमेंट के लिए आकर्षित करने के लिए कई योजनाएं बनाना शुरू कर दिया है। पिछले सप्ताह वित्त मंत्री ने डिजीटल लेन-देने के लिए छूट के प्रावधान का ऐलान किया था। अब नीति आयोग ने नेशनल पेमेंट कोपोर्रेशन से डिजिटल ट्रांजेक्शन करने वालों के लिए साप्ताहिक और त्रैमासिक स्तर पर ईनामी योजना शुरू करने को कहा है, ताकि ज्यादा से ज्यादा लोग डिजीटल पेमेंट करने के लिए आगे आएं। आयोग ने कहा है कि इसके लिए साप्ताहिक स्तर पर लक्की ड्रा निकालने के साथ त्रिमासिक स्तर पर एक करोड़ रुपये तक का बड़ा ईनाम दिया जाए। सरकार पहले ही कह चुकी है कि क्रेडिट कार्ड, डेबिट कार्ड और ई-वॉलेट्स के जरिए भुगतान को प्रोत्साहन दे रही है।

सिंधु समझौते को लेकर गंभीर मोदी सरकार

बूंद-बूंद पानी हासिल करने की तैयारी में भारत
ओ.पी. पाल. नई दिल्ली।
सीमापार से आतंकवादी गतिविधियों को लेकर भारत-पाक के बीच तल्खी में मोदी सरकार के कड़े रूख में सिंधु जल समझौते के तहत अब भारत जल्द ही पश्चिमी नदियों के पानी में अपने पूरे हिस्से का इस्तेमाल करने की तैयारी में है। वहीं इन नदियों पर लंबित परियोजनाओं को भी पूरा करने की योजना बनाई जा रही है।
सीमापार से प्रायोजित आतंकी संगठन के आतंकियों के पठानकोट के बाद उरी आतंकी हमले पर भारत ने सख्त रूख अपनाते हुए पाकिस्तान को चेताया और उरी हमले के बाद तो मोदी सरकार ने सिंधु जल समझौते पर पुनर्विचार करने के बीच ही सर्जिकल स्ट्राइक करके पाक के सामने अपने इरादे साफ कर दिये। दोनों देशों के बीच बढ़ी इस तल्खी के बाद आतंकवाद के मुद्दे पर भारत को वैश्विक समर्थन मिला। आतंकवाद के मुद्दे पर सुधरने का नाम नहीं ले रहे पाकिस्तान पर किसी प्रकार की नरमी न बरतते हुए भारत ने अब सिंधु जल समझौते के तहत पश्चिमी नदियों के पानी में अपने पूरे हिस्से का इस्तेमाल करने की तैयारी शुरू कर दी है। सरकार के इस कड़े फैसले के तहत भारत अगले साल चिनाब नदी पर जल ऊर्जा परियोजना शुरू करने की तैयारी कर चुका है। सूत्रों के अनुसार पिछले दिनों में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पंजाब के बठिंडा में एक जनसभा के दौरान ऐसे संकेत देते हुए साफ कर दिया था कि पाकिस्तान जाने वाली नदियों के पानी की एक-एक बूंद रोककर भारत के किसानों तक पहुंचायी जाएगी। गौरतलब है कि वर्ष 1960 के सिंधु जल समझौते के तहत भारत पश्चिमी नदियों के पानी में अपने हिस्से के पानी को इस्तेमाल के लिए रोक सकता है, जिसकी सीमा 36 लाख एकड़ फीट रखी गई है।
चिनाब नदी पर बनेगा सबसे ऊंचा बांध
सूत्रों के अनुसार स्वालकोट परियोजना के तहत चिनाब नदी पर 193 मीटर देश को सबसे ऊंचा बांध बनाया जाएगा, जिससे 1,856 मेगावॉट बिजली उत्पादन होने का अनुमान लगाया गया है। इस परियोजना को दो चरणों में पूरा करने का खाका तैयार किया गया है। जल संसाधन मंत्रालय के सूत्रोे का कहना है कि भारत ने अब सिंधु के ज्यादा से ज्यादा पानी का इस्तेमाल करने का फैसला कर लिया है। इसीलिए अब तक सिंधु नदी से जुड़ी सभी लंबित परियोजनाओं को जल्द से जल्द पूरा करने की तैयारियों की जा रही हैं। हालांकि इस चिनाब बांध परियोजना से पहले केंद्र सरकार स्वालकोट (1,856 मेगावॉट), पाकुल दुल (1,000 मेगावॉट) और बुरसर (800 मेगावॉट) परियोजनाओं को को शुरू करेगी। चेनाब, झेलम नदियों पर बांध बनाना बहुत बड़ा और मुश्किल काम माना जाता है, लेकिन ये परियोजनाएं पाकिस्तान को भारत के खिलाफ आतंकी गतिविधियों का मुंहतोड़ जवाब देने के लिहाज से शुरू किए जा रहे हैं। एक अधिकारी के मुताबिक केंद्र सरकार सभी जमीनी स्तर के काम के लिए लगातार जम्मू-कश्मीर सरकार के साथ संपर्क में है।
12Dec-2016

अब ड्राईविंग लाइसेंस बनवाना होगा आसान!

लाइसेंस की प्रक्रिया को आसान बनाने का निर्णय
हरिभूमि ब्यूरो. नई दिल्ली।
देश में सड़क सुरक्षा को प्राथमिकता देने के लिए चलाई जा रही सड़क परियोजनाओं के अलावा केंद्र सरकार दुनियाभर में सबसे ज्यादा सड़क हादसों की चिंता को दूर करने के लिए भी कमर कस रही है, जिसके लिए सरकार को कड़े प्रावधान वाले नए मोटर वाहन एवं सड़क सुरक्षा विधेयक के पारित होने का इंतजार है। वहीं वाहन चालकों के लिए सरकार ने चालकों की दक्षता के साथ ड्राईविंग लाइसेंस जारी करने की प्रक्रिया को आसान करने का निर्णय लिया है।
केंद्रीय सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्रालय के अनुसार बिना ड्राईविंग लाइसेंस वाहन चलाना गैर कानूनी है। दरअसल ड्राईविंग लाइसेंस बनवाने की प्रक्रिया बेहद जटिल है, जिसके कारण लोगों को लाईसेंस न होते हुए भी वाहन चलाने पड़ते हैं और जिसके कारण सड़क हादसों में कमी आने का नाम नहीं ले रही है। इसलिए सरकार ने नए मोटर वाहन विधेयक में सख्त प्रावधान किये है, जिसमें हरेक वाहन चलाने वाले चालकों को ड्राईविंग लाइसेंस मुहैया कराने के लिए उसकी प्रक्रिया को आसान बनाने का निर्णय लिया गया है। सरकार ने चालकों को प्रशिक्षण देकर उनकी दक्षता और क्षमता को भी प्रोत्साहन देने की योजना चलाने के लिए देशभर के विभिन्न शहरों में प्रशिक्षण केंद्र स्थापित करना शुरू कर दिया है। सरकार द्वारा लाइसेंस बनवाने की प्रक्रिया को सरल करने से अब कुछ दस्तावेजों की औपचारिकता पूरा करने पर आसानी से ड्राईविंग लाइसेंस बनवाया जा सकेगा।
ये होगी लाइसेंस बनाने प्रक्रिया
देशभर में सभी आरटीओ कार्यालयों में वाहन चलाने वालों को सबसे पहले लर्निंग ड्राइविंग लाइसेंस के लिए आवेदन करना होगा, इसके लिए 4 पासपोर्ट साइज फोटोग्राफ, निवास प्रमाणपत्र, आयु प्रमाण पत्र और फिजीकल फिटनेश की स्वयं घोषणा करनी होगी। इससे पहले मेडिकल सर्टिफिकेट हासिल करना होता था, जो सरकारी चिकित्सकों द्वारा जारी होता था और इसके लिए कठिनाईयों का सामना करना पड़ रहा था। इसलिए स्वयं का घोषणा पत्र दाखिल करने का प्रावधान किया गया है। से सभी दस्तावेज नोटरी से प्रमाणित कराना जरूरी होगा। निवास प्रणामपत्र के तौर पर वोटर आईडी कार्ड, राशन कार्ड, पासपोर्ट, बिजली बिल, पानी बिल, बैंक की पासबुक जिस पर पता लिखा हो के अलावा टेलीफोन बिल, का इस्तेमाल भी किया जा सकता है। आयु के लिए दसवीं क्लास का सर्टिफिकेट, बर्थ सर्टिफिकेट, पैन कार्ड और आधार कार्ड मान्य किया जाएगा। आवेदन जमा करने के बाद संबन्धित व्यक्ति का यातायात नियमों से संबन्धित एक टेस्ट लिया जाएगा। इसके बाद ही छह माह की अवधि के लिए लर्निंग ड्राइविंग लाइसेंस जारी किया जाएगा। छह माह बाद लर्निंग ड्राइविंग लाइसेंस को आरटीओ कार्यालय में जमा करवाने के बाद एक और ड्राइविंग टेस्ट लिया जाएगा इस टेस्ट को पास करने के बाद आपका ड्राइविंग लाइसेंस जारी कर दिया जाएगा।
जल्द शुरू होगा दिल्ली से आगरा तक जलमार्ग
केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी ने कहा कि सरकार जलमार्ग से यातायात को बड़े पैमाने पर विकसित करने पर ध्यान दे रही है, क्योंकि परिवहन का यह सबसे सस्ता माध्यम है। उन्होंने कहा कि दिल्ली से आगरा के बीच जलमार्ग जल्द ही शुरू होगा। गडकरी ने कहा कि सड़क से यात्रा करने पर जहां प्रति किमी 1.50 रुपये का खर्च आता है, वहीं रेल यातायात पर यह खर्च एक रुपये बैठता है, जबकि जलमार्ग से परिवहन पर यह खर्च मात्र 20 पैसे का बैठेगा और इससे काफी रोजगार भी पैदा होंगे।
 12Dec-2016