शुक्रवार, 23 दिसंबर 2016

एक साथ हो सकते हैं लोस व विस चुनाव!

सरकार ने ईवीएम मशीनों के लिए 1009 करोड़ की मंजूरी
ओ.पी. पाल.
नई दिल्ली।
केंद्रीय चुनाव आयोग ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के देश में लोकसभा और विधानसभा चुनाव एक साथ कराए जाने के सुझाव के बाद तैयारियां शुरू कर दी हैं। शायद इसी मकसद से केंद्र सरकार ने नई इलेक्ट्रानिक वोटिंग मशीन (ईवीएम) की खरीददारी के लिए चुनाव आयोग को 1,009 करोड़ रुपये जारी किये हैं।
केंद्रीय चुनाव आयोग ने ऐसे संकेत दिये हैं कि वर्ष 2019 में होने वाले लोकसभा के साथ ही देश के सभी राज्यों के विधानसभा चुनाव कराए जा सकते हैं। हालांकि इसके लिए जनप्रतिनिधि कानून में संशोधन करने की जरूरत पड़ेगी। गौरतलब है कि पिछले साल लोकसभा और विधानसभा चुनाव एक साथ कराने की वकालत प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की तरफ से की गई थी, जिसे पीएम ने कई बार दोहराया और इस सुझाव को केंद्रीय चुनाव आयुक्त डा. नसीम जैदी ने भी चुनाव सुधार की दिशा में समर्थन करते हुए इस दिशा में कदम बढ़ाने शुरू किये। चुनाव आयोग यदि आगामी लोकसभा और विधानसभा चुनाव एक साथ कराता है तो उसके लिए करीब 14 लाख नई इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीनों की जरूरत पड़ेगी। शायद नई ईवीएम खरीदने के लिए ही केंद्र सरकार ने चुनाव आयोग को 1009 करोड़ रुपये की धनराशि जारी कर दी है।
ईवीएम की पहली खेप जल्द
आयोग के सूत्रों के अनुसार वित्त मंत्रालय द्वारा ईवीएम मशीनों की पहली खेप को खरीदने की मंजूरी दिए जाने और इतनी ही राशि इसीतरह अगले तीन वर्षों तक दिए जाने को स्वीकृति देने के बाद अगर ऐसी जरूरत पड़ती है, तो चुनाव आयोग पर्याप्त मशीनों की खरीददारी कर पाएगा। ईवीएम की पहली खेप के लिए पहले ही आॅर्डर दिया जा चुका है। ऐसे में हर साल करीब पांच लाख ईवीएम अगले तीन सालों तक खरीदी जाएंगी, जिससे चुनाव आयोग की तरफ से देशभर में एक साथ चुनाव कराने को लेकर उसकी तैयारियों का पता चलता है। हालांकि सरकार की तरफ से एक साथ देशभर में चुनाव कराने को लेकर कोई निर्देश नहीं दिए गए हैं। इसके बावजूद अगले तीन सालों तक नई ईवीएम की खरीददारी के लिए मंजूरी साफतौर पर इस बात का संकेत है कि सरकार 2019 के चुनाव से पहले एक साथ चुनाव को लेकर चुनाव आयोग भी काफी गंभीर है।
राज्य सरकारों कार्यकाल पर असर
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और चुनाव आयोग के अलावा नीति आयोग भी लोकसभा और विधानसभा चुनाव एक साथ कराने की कवायदको आगे बढ़ा रहा है। पिछले माह ही नीति आयोग ने इस कवायद के तहत एक रिपोर्ट जारी की थी, जिसमें  राज्यों की सरकारों के कार्यकाल छोटा करने और विस्तार करने का आंकड़ा दर्शाया गया। नीति आयोग की 'एनालिसिस आॅफ साइमल्टेनीअस इलेक्शंस: द व्हाट, व्हाई एंड हाऊ' नामक रिपोर्ट के अनुसार, पहले चरण में चुनाव कराने पर छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश, राजस्थान की विधानसभा का कार्यकाल 5 महीने, मिजोरम 6 महीने और कर्नाटक का 12 महीने बढ़ाना होगा। तो वहीं हरियाणा व महाराष्ट्र विधानसभा का कार्यकाल 5 महीने, झारखंड का 7 महीने और दिल्ली विधानसभा का कार्यकाल 8 महीने कम करना होगा। वहीं दूसरे चरण में एक साथ चुनाव कराने पर तमिलनाडु, पश्चिम बंगाल, पुदुचेरी, असम और केरल विधानसभा का कार्यकाल 6 महीने, जम्मू कश्मीर का 9महीने और बिहार का 13 महीने कार्यकाल बढ़ाना होगा। जबकि गोवा, मणिपुर, पंजाब, उत्तराखंड का 3 महीने, उत्तर प्रदेश का 5 महीने, हिमाचल प्रदेश व गुजरात का 13 महीने और मेघालय, त्रिपुरा व नागालैंड का कार्यकाल 15 महीने का कार्यकाल कम करने की जरूरत होगी।
दो चरणों में चुनाव का सुझाव
नीति आयोग की इस रिपोर्ट में दो चरणों में चुनाव कराने का सुझाव दिया गया है। इस सुझाव के तहत दो चुनावों के बीच 30 महीने या ढाई साल का अंतर होना चाहिए। पहले चरण में अप्रैल-मई 2016 में लोकसभा के साथ ही 14 राज्यों के चुनाव कराए जा सकते हैं, तो वहीं दूसरे चरण में अक्टूबर-नवंबर 2021 में बाकी के राज्यों में मतदान कराना संभव है। रिपोर्ट में राज्यवार विधानसभाओं का बंटवारा भी किया गया है।
कानून में संशोधन बड़ी चुनौती
देश में करीब 10 लाख पोलिंग स्टेशन हैं और 16 लाख ईवीएम होने के बावजूद लोकसभा और विधानसभा चुनावों को एकसाथ कराने की सबसे बड़ी चुनौती केंद्र सरकार के लिए जनप्रतिनिधित्व कानून में संशोधन है। यह एक कानूनी संशोधन होगा, जिसके पक्ष में दो तिहाई समर्थन की आवश्यकता होगी। जिसके लिए संसद के सदस्यों को दोनों सदनों में उपस्थित रहकर समर्थन में वोट करना होगा। इस योजना के लिए कानून मंत्रालय और संसदीय कार्य मंत्रालय काफी महत्वपूर्ण होंगे, जिन्हें इस पर सभी राजनीतिक दलों की सहमति की आवश्यकता होगी।
23Dec-2016

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