रविवार, 4 दिसंबर 2016

राग दरबार: कांटों भरे चक्रव्यूह में विपक्ष...

अपने दु:ख से नही, दूसरो के सुख से दु:खी
देश में सभी दु:खी हैं फिर भी खुश है..! मोदी सरकार के विमुद्रीकरण के फैसले का विरोध करते विपक्षी दलों के लिए यह कहावत सटीक बैठ रही है कि वह अपने दु:ख से दु:खी नही, दूसरो के सुख से दु:खी हैें। तभी तो संसद में सरकार के विमुद्रीकरण के फैसले का विरोध विपक्षी दलों के गले की फांस बनता नजर आ रहा है। कारण साफ है कि जिस परेशानी के बहाने आम जनता को मोहरा बनाकर सियासत करने में कांग्रेस की अगुवाई में संसद में विपक्षी दल हंगामा कर रहे हैं, वही आम जनता पीएम मोदी के नोटबंदी के फैसले को कालेधन पर लगाम के साथ आतंकवाद, नक्सलवाद और भ्रष्टाचार जैसे कैंसर के इलाज का सबब मानकर खुशी-खुशी की हर परेशानी झेलने को अपने दम पर अभी तक तैयार है। ऐसे में कई विपक्षी दलों विमुद्रीकरण के फैसले का विरोध करके शायद अपने बुने गये इस चक्रव्यूह से बाहर निकलने की राह नजर नहीं आ रही है। तभी तो संसद के दोनों सदनों में कांग्रेस की यह शर्त बेतुकी बताई जा रही है कि पूरी चर्चा के दौरान प्रधानमंत्री सदन में मौजूद रहें। संविधान विशेषज्ञ भी कहते हैं कि संसद शर्तों से नहीं,बल्कि नियमों से चलती है। ऐसे में यही कहना उचित है कि विपक्ष के बहस करने का न कोई मुद्दा है न नेता जो किसी से नैतिक मुल्यो पर बहस कर सके। राजनीतिकारों की माने तो संसद में विपक्ष की लामबंदी करने वाली कांग्रेस के लिए तो किसी ने कहा कि वह अपनी जड़ों में मठ्ठा डालने का काम कर ही रही है, वहीं इस मुद्दे पर सरकार के खुले विकल्प के बाद भी विपक्ष चर्चा करने को तैयार नहीं है। आलम यह है कि सरकार का विपक्ष और विपक्ष का सरकार पर चर्चा से भागने का आरोप-प्रत्यारोप बरकरार है। दरअसल विमुद्रीकरण के बाद जनाधार हासिल करने का समीकरण बैठाकर जिस सियासी रणनीति के तहत विपक्षी दल कांग्रेस की अगुवाई में एकजुट होकर सरकार के फैसले के सामने खड़े हुए थे, विपक्ष के लिए वह दांव मुश्किल भरा इसलिए नजर आने लगा,कि इस नोटबंदी के फैसले के बाद देश में विभिन्न राज्यों में संसदीय, विधानसभा, विधान परिषद के उपचुनावों के अलावा नगर निकाय तक के चुनाव हुए तो उनके नतीजों में नोटबंदी के फैसले का विरोध करने वाले सियासी दलों को झटके लगते दिख रहे है और इसके विपरीत भाजपा या राजग को सियासी लाभ हुआ, तो विपक्षी दलों को नोटबंदी का विरोध किसी बंदर की उझलकूद से कम नजर नहीं आ रहा है।
इस मंत्रालय में रिर्पोटरों को समझना मुश्किल
26 मई 2014 को सप्रंग सरकार के केंद्र की सत्ता से बाहर होते ही जैसे ही नरेंद्र मोदी की अगुवाई वाली एनडीए सरकार ने सत्ता संभाली। नई कैबिनेट का गठन हुआ और मंत्रियों की उनके विभागों के साथ ताजपोशी की गई। कैबिनेट मंत्रियों के इस कुनबे में देश के लगभग हर इलाके का प्रतिनिधित्व देखने को मिलता है। इसमें एक वरिष्ठ कैबिनेट मंत्री ऐसे भी हैं, जिनका सीधा संबंध तो केंद्रीय मंत्रिमंडल की सुरक्षा मामलों की समिति (सीसीएस) से है और अपनी विभागीय जिम्मेदारी संभालते हुए दो वर्ष का समय भी हो गया है। लेकिन उनका कहना है कि यह विभाग तो अपने आप में एक बड़ा विभाग है, जिसे समझना आसान नहीं है। लेकिन इससे भी ज्यादा मुश्किल इस विभाग को कवर करने वाले रिर्पोटरों को समझना है। मैं अपनी स्थानीय भाषा में कहता कुछ हूं और ये लोग समझ कुछ और ही लेते हैं, फिर खबर बना देते हैं। हो जाता है अर्थ का अनर्थ।
पहला नंबर पाने की होड़
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सभी बीजेपी सांसदों को एक दिसंबर तक अपने बैंक खाते की जानकारी जमा करने निर्देश देने के बाद सांसदो में जल्दबाजी देखने को मिल रही है। कुछ सांसद इस निर्देश को लेकर परेशान है दिखाई दे रहे तो कुछ जल्दबाजी में नजर आ रहे है। जल्दबाजी करने वाले सांसदं सबसे पहले अपने खाते की जानकारी देकर अव्वल और पाक साफ दिखना चाहते है। मप्र के ऐसे ही दो सांसदों ने अपनी खातों की जानकारी जुटा ली है। बकायदा इसकों तैयार कर पीएम कार्यालय और पार्टी कार्यालय में जमा भी करवा दिया है। इस जल्दबाजी के पीछे का मकसद पार्टी में खुद को निष्ठावान व ईमानदार कार्यकर्ता बताना है।
-ओ.पी. पाल, कविता जोशी व राहुल
04Dec-2016

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