नोटबंदी पर तल्खी के बावजूद इस मुद्दे पर सियासी दल एकजुट
ओ.पी. पाल. नई दिल्ली।
संसद
के शीतकालीन सत्र के दौरान नोटबंदी के फैसले के विरोध में विपक्षी दल भले
ही मोदी सरकार पर लगातार हमला बोलते हुए हंगामा काट रहे हों, लेकिन हाई
कोर्ट में जजों की नियुक्ति के लिए सुप्रीम कोर्ट की कॉलेजियम प्रणाली के
विरोध में सत्ता और समूचा विपक्ष एकसुर में हमला बोलता नजर आया।
दरअसल
शुक्रवार को राज्यसभा में कांग्रेस सांसद आनंद शर्मा की अध्यक्षता वाली
कानून एवं न्यायिक मामलों की संसदीय स्थायी समिति ने हाई कोर्ट में जजों की
नियुक्ति संबन्धी एक रिपोर्ट पेश की। रिपोर्ट में समिति द्वारा की गई
सिफारिशों के बारे में कहा गया है कि उच्च न्यायालयों और सुप्रीम कोर्ट में
जजों की नियुक्ति के मामले में कॉलेजियम प्रणाली पर केंद्र सरकार ज्यादा
बेहतर और उचित कदम उठा सकती है। समिति कहा कि उच्च न्यायपालिका में जजों की
नियुक्ति कार्यपालिका का जरूरी काम है जिसका जिक्र संविधान में भी
उल्लिखित है कि इसे कार्यपालिका और न्यायपालिका को मिलकर निपटाना चाहिए। इस
समिति में सत्ताधारी भाजपा समेत लगभग सभी विपक्षी दलों के सांसद सदस्य
हैं, जिन्होंने सुप्रीम कोर्ट की कॉलेजियम प्रणाली पर जोरदार हमला बोलते
हुए एकजुटता के साथ रिपोर्ट में इस प्रणाली की खामियां गिनाई। संसद में
रिपोर्ट पेश करने के बाद समिति के सभापति आनंद शर्मा के साथ भाजपा समेत सभी
दलों ने कॉलेजियम प्रणाली के तहत उच्च न्यायपालिका में जजों की नियुक्ति
करने में संविधान के आदेशों के उल्लंघन करने तक का आरोप लगाया।
संशोधन खारिज करने पर आपत्ति
संसदीय
समिति की रिपोर्ट में सुप्रीम कोर्ट की 5 सदस्यीय पीठ द्वारा 99वें
संविधान संशोधन को खारिज करने पर भी आपत्ति जताई गई है। समिति का कहना है
कि संसद के दोनों सदनों ने एकमत 99वां संविधान संशोधन पारित कर जजों की
नियुक्ति के लिए राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग के गठन का फैसला लिया था।
समिति की सिफारिश में स्पष्ट कहा गया है कि संविधान संशोधन से संबंधित
मामलों की सुनवाई कम से कम 11 जजों की पीठ को करनी चाहिए। वहीं समिति के
पैनल ने यह भी सिफारिश की कि संविधान की व्याख्या से संबंधित मामलों की
सुनवाई सात जजों से कम की बेंच को नहीं करनी चाहिए। गौरतलब है कि केंद्र
सरकार के राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग के गठन को असंवैधानिक करार देते
हुए सुप्रीम कोर्ट ने हाई कोर्ट में जजों की नियुक्ति प्रक्रिया के लिए
कॉलेजियम प्रणाली को बहाल कर दिया था। इसी कारण जजों की नियुक्ति प्रक्रिया
को लेकर केंद्र सरकार और सुप्रीम कोर्ट में तकरार जारी है।
क्या है कॉलेजियम प्रणाली
सुप्रीम
कोर्ट द्वारा जजों की नियुक्ति के लिए केंद्र सरकार के प्रस्ताव को खारिज
करके फिर से बहाल की गई पुरानी कॉलेजियम व्यवस्था के तहत हाई कोर्ट के
मुख्य न्यायधीश दो सबसे वरिष्ठ जजों के साथ मिलकर केंद्रीय कानून मंत्री के
पास जजों के नाम की सिफारिश भेजते हैं। कानून मंत्रालय प्रस्तावित नामों
पर फैसला लेने से पहले इंटेलिजेंस ब्यूरो की रिपोर्ट लेता है। सभी जांच
पूरी होने के बाद नामों की सिफारिश आगे देश के मुख्य न्यायधीश के पास
नियुक्ति पर अंतिम मुहर के लिए भेजी जाती है। सुप्रीम कोर्ट के मुख्य
न्यायधीश दो सबसे वरिष्ठ जजों के साथ मिलकर नाम पर विचार करते हैं और अंतिम
मुहर लगाते हैं।
सुप्रीम
कोर्ट के कॉलेजियम सिस्टम से की जा रही जजो की नियुक्ति को लेकर केंद्र
सरकार के साथ तकरार बरकरार है। सुप्रीम कोर्ट द्वारा कॉलेजियम प्रणाली बहाल
करने के बाद इसी साल अगस्त में सरकार ने कॉलेजियम पर विचार हेतु मेमोरेंडम
आॅफ प्रोसीजर का नया मसौदा भेजा था, लेकिन सुप्रीम कोर्ट की ओर से आज तक
सरकार को कोई जवाब नहीं मिला है। गौरतललब है पिछले दिनों ही सुप्रीम कोर्ट
ने जजों की नियुक्ति में देरी पर सरकार को फटकार लगाई थी और कहा था कि यदि
कोलिजियम से भेजे गए नामों पर आपत्ति है तो कोर्ट को बताए, लेकिन जजों की
नियुक्तियों को मंजूरी देने में देरी न की जाए। यही नहीं सुप्रीम कोर्ट
तर्क देता रहा है कि सरकार की ओर से एमओपी मसौदा को अंतिम रूप नहीं दिए
जाने की वजह से नियुक्ति प्रक्रिया को रोका नहीं जा सकता। यही नहीं अदालत
ने न्यायाधीशों की नियुक्ति से संबंधित फाइलों पर विचार करने में धीमी
प्रगति को लेकर सरकार को चेतावनी तक दी थी कि वह प्रधानमंत्री कार्यालय और
विधि एवं न्याय मंत्रालय के सचिवों को तथ्यात्मक स्थिति का पता लगाने के
लिए तलब कर सकती है।
10Dec-2016
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