बुधवार, 14 दिसंबर 2016

नोटबंदी के बाद एक बड़े फैसले की तैयारी में मोदी सरकार


शायद ही अब चुनाव लड़ पाएं दागी नेता!
विधि आयोग और चुनाव आयोग की सिफारिशों पर गंभी सरकार
ओ.पी. पाल. नई दिल्ली।
देश में विमुद्रीकरण के ऐतिहासिक फैसले के बाद अब मोदी सरकार चुनाव सुधार की दिशा में भी बड़ा निर्णय लेने की तैयारी में है। मसलन केंद्र सरकार विधि आयोग की सिफारिशों को लागू करने के लिए गंभीर हो रही है, जिसमें दागदार नेताओं पर तो चुनाव लड़ने की पाबंदी लग ही सकती है, वहीं शायद एक व्यक्ति एक साथ दो सीटों पर भी चुनाव नहीं लड़ पाएगा? ऐसी व्यवस्था समेत कई महत्वपूर्ण प्रस्ताव केंद्रीय चुनाव आयोग ने भी केंद्र सरकार को भेजकर सिफारिश की है।
चुनाव आयोग के प्रस्तावों और विधि आयोग की सिफारिशों पर देश में चुनाव सुधार के लिए यदि सरकार ने ऐसे सख्त निर्णय लिये, तो नोटबंदी के बाद मोदी सरकार का लोकतांत्रिक व्यवस्था में चुनाव सुधार की दिशा में यह भी एक नीतिगत ऐतिहासिक फैसला बनकर सामने आएगा। सूत्रों के अनुसार विधि आयोग की सिफारिशों में आपराधिक पृष्ठभूमि वाले नेताओं के चुनाव लड़ने पर पाबंदी लगाने की सिफारिश की गई है। मोदी सरकार ऐसे नेताओं के चुनाव लड़ने के बारे में विधि आयोग की सिफारिशों को लागू करने की तैयारी में है, जिसमें आपराधिक पृष्ठभूमि वाले नेताओं के चुनाव लड़ने पर पाबंदी लग जाएगी। मंत्रालय के उप सचिव केके सक्सेना द्वारा जारी इस परिपत्र के में कहा गया है कि विधि आयोग द्वारा चुनाव सुधारों को लेकर कम से कम दस पेज के लिखित में दिए गए सुझावों को सरकार लागू करने की तैयारी कर रही है। इसके लिए मंत्रालय ही चुनाव संचालन नियम, 1961 और जनप्रतिनिधि कानून-1951 में फेरबदल की पहल करेगा।
एक प्रत्याशी-एक सीट का प्रावधान!
चुनाव आयोग के प्रस्ताव को विधि आयोग ने भी आगे बढ़ाया है, जिसमें देश में लोकतांत्रिक व्यवस्था में एक प्रत्याशी के कई सीटों से चुनाव लड़ने की छूट के प्रावधान को प्रतिबंधित करने पर जोर दिया गया है। चुनाव सुधार की प्रक्रिया में चुनाव आयोग ने कानून मंत्रालय को अपनी सिफारिश में एक प्रत्याशी को दो या उससे ज्यादा सीटों से चुनाव लड़ने की चली आ रही प्रक्रिया को आर्थिक खर्च पर अंकुश लगाने के लिए महत्वपूर्ण करार दिया है। चुनाव आयोग ने इसके अलावा कुछ और संशोधन भी केंद्रीय विधि मंत्रालय को भेजे हैं। इसका कारण एक उम्मीदवार दो सीट से चुनाव जीतकर एक सीट छोड देता है, जहां उपचुनाव कराने के लिए समय और आर्थिक खर्च की बर्बादी होती है। आयोग ने सरकार से सरकारी बंगले, बिजली, टेलीफोन, पानी, होटल, एयरलाइन आदि का भुगतान या अन्य सार्वजनिक देनदारियों वाले लागों को भी चुनाव लड़ने से रोकने की सिफारिश की है।
क्या है विधि आयोग की रिपोर्ट
सर्वोच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश डा. बीएस चौहान की अगुवाई वाले विधि आयोग की रिपोर्ट में जनप्रतिनिधि कानून में बदलाव के तहत की गई सिफारिशों में केंद्रीय विधि एवं न्याय मंत्रालय के विधायिका विभाग ने हाल ही में सभी संबन्धित विभागों को जारी एक परिपत्र में साफ संकेत दिये हैं कि सरकार जल्द ही विधि आयोग की सिफारिशों को लागू करने के प्रयास में है। मंत्रालय ने जिस व्यक्ति के खिलाफ कम से कम पांच साल की सजा वाले प्रावधान वाले अपराध में आरोप तय हो चुके हों, को चुनाव लड़ने की अनुमति न दिये जाने की सिफारिश को अत्यंत महत्वपूर्ण सुझाव माना है। वहीं दूसरे महत्वपूर्ण सुझाव के साथ की गई सिफारिश में राजनीतिक दलों के नेताओं के खिलाफ चल रहे मामलों की सुनवाई के लिए फास्ट ट्रैक अदालतें गठित कर एक साल के भीतर फैसला देने की बाध्यता को भी गौर करने वाला माना है। विधि आयोग की सिफारिश के अनुसार फास्ट ट्रैक कोर्ट से सजा पाने वाले नेता भले ही ऊपरी अदालत से बरी हो जाएं, लेकिन उन पर चुनाव लड़ने, राजनीतिक पार्टी बनाने और राजनीतिक दल में पदाधिकारी बनने पर हमेशा के लिए पाबंदी लगाने पर जोर दिया गया है।
सरकार का मसौदा तैयार
केंद्र सरकार ने चुनाव सुधार के लिए विधि आयोग की चुनाव आयोग समेत संबंधित विभागों के साथ पिछले दिनों हुई कई बैठकों के बाद सभी पक्षों की सुनवाई की गई और पिछले महीने ऐसे मसौदे को अंतिम रूप दिया गया है। गौरतलब है कि चुनाव आयोग के ऐसे प्रस्तावों पर केंद्र सरकार ने विधि आयोग से सुझाव मांगे थे और सिफारिशें सौंपने को कहा था। विधि आयोग की रिपोर्ट के बाद सरकार ने इस दिशा में कदम उठाना शुरू कर दिया है। विधि आयोग की सिफारिशों के तहत केंद्र सरकार के चुनाव के दौरान पेड न्यूज, स्टेट फंडिंग, झूठे शपथपत्र, खर्च का ब्यौरा कम बताने और अपराधों में आरोपी उम्मीदवारों के चुनाव लड़ने पर रोक लगाने जैसे मुद्दों पर हालांकि प्रमुख राजनीतिक दलों के साथ सहमति बनाने की कवायद भी कर रही है।

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