शुक्रवार, 25 अक्तूबर 2013

रफ्तार का रोमांच आज से शुरू

फार्मूला-1 रेस के खिताब पर लगी रहेंगी वेट्टल की नजरें
ओ.पी.पाल

आखिर भारत में एक बार फिर से रफ्तार की जंग यानि फार्मूला-1 रेसिंग के तीसरे संस्करण का इंतजार खत्म हुआ, जो कल शुक्रवार से ग्रेटर नोएडा स्थित बुद्ध इंटरनेशनल सर्किट में पूरी तैयारियों के साथ शुरू होगी, जिसके खिताब पर रेडबुल रेसिंग के जर्मनी चालक सबैस्टियन वेट्टल की नजरें लगी हुई, जो लगतार भारत में हैट्रिक पर होंगे।
पहले सत्र से ही विवादों से घिरी भारतीय ग्रां प्री को अर्थव्यवस्था के बुरे दौर का भी सामना करना पड़ रहा है एक तरफ रुपया लुढ़क रहा तो दूसरी तरफ सरकार इस खेल को लेकर बेपरवाह है, इसलिए भारत में यह फार्मूला रेस आखिरी भी हो सकती है, लेकिन इन बढती प्रशासनिक दिक्कतों और भविष्य को लेकर अनिश्चितता के बीच बुद्ध इंटरनेशनल सर्किट पर फार्मूला-1 रेस का तीसरा अन्तराष्ट्रीय  मुकाबला 25 अक्टूबर शुक्रवार से पूरी तैयारियों के साथ शुरू हो रहा है। भारत में हो रही इस तीसरी फामूर्ला वन इंडियन ग्रां प्री में सेबेस्टियन वेट्टल की नजरें लगातार चौथे खिताब और भारत में जीत की हैट्रिक पर लगी होगी। इससे पहले भारत की धरती पर आयोजित हुई दो इंडियन ग्रां प्री में जर्मन ड्राइवर वेट्टल ने ही खिताबी जीत दर्ज की है। फिलहाल वह अपने निकटतम प्रतिद्वंद्वी फेरारी के फर्नांडो अलोंसो से 90 अंक आगे हैं और लगातार चौथी एफ-1 चैिंम्पयनशिप अपने नाम करने के लिये उन्हें इंडियन ग्रां प्री में शीर्ष पांच ड्राइवरों में जगह बनानी है। फिलहाल तो कल से शुरू हो रही इस रफ्तार की जंग को कराने के लिए इंडियन ग्रां प्री के आयोजक एवं प्रमोटर जेपी स्पोट्स पूरी तैयारियों को अंजाम दे चुके हैं। जेपी समूह के वरिष्ठ उपाध्यक्ष कमर अहमद ने उम्मीद जताई है कि प्रतियोगिता के दौरान वॉलीवुड और क्रिकेट समेत अन्य खेल की हस्तियां भी इस रफ्तार की जंगा लुत्फ उठाने के लिए ग्रेटर नोएडा स्थित बुद्ध इंटरनेशनल सर्कित में नजर आएंगी। इस प्रतियोगिता में दुनियाभर की नामी टीमों समेत 11 टीमें हिस्सा ले रही हैं।
सुप्रीम कोर्ट का भी चाबुक तैयार
आर्थिक तंगी से गुजर रही भारातीय ग्रां प्री की फार्मूला-1 रेस पर रोक लगाने संबन्धी  किसी अमित कुमार की  दायर एक जनयाचिका सु्प्रीम कोर्ट में लंबित है, जिसे शीर्ष अदालत सुनवाई के लिए पहले ही मंजूर कर चुकी है। इस जनहित याचिका में आरोप लगाया गया है कि फार्मूला-1 रेस के आयोजक जेपी स्पोर्ट्स ने वर्ष 2011 का मनोरंजन कर तक नहीं भरा है। वहीं दूसरी ओर उत्तर प्रदेश सरकार ने भी इंडियन ग्रां प्री को मनोरंजन कर में दी गई छूट वापिस ले ली थी। इसलिए भारत में अगले साल यानि वर्ष 2014 में फामूर्ला वन रेस नहीं होने जा रही है, हालांकि 2015 के शुरूआती सत्र में इस रेस के वापस भारत में लौटने की संभावनाएं बरकरार है। अगले साल इस रेस पर छाए संकट का एक कारण यह भी कि पिछली दो रेस में फोर्स इंडिया के चालक अच्छे अंक नहीं जुटा सके हैं, जिनके सामने भी पनी घरेलू रेस में अच्छा प्रदर्शन करने की चुनौती है। हालाँकि उच्चतम न्यायालय में इस पर रोक लगाने संबंधी जनहित याचिका पर सुनवाई मंजूर होने के बावजूद आयोजकों को हालांकि विश्वास है कि इंडियन ग्रां प्री पूर्व निर्धारित कार्यक्रम के अनुसार होगी। जेपी स्पोर्ट्स इंटरनेशनल लिमिटेड के एमडी और सीईओ समीर गौड़ ने यहां बुद्ध इंटरनेशनल सर्किट पर कहा, हमें न्यायपालिका पर पूरा भरोसा है जिसने पहले ही उन्हें चार सप्ताह का समय दिया है। उच्चतम न्यायालय उस याचिका पर शुक्रवार को सुनवाई करने के लिए सहमत हो गया जिसमें इस रेस पर रोक लगाने की मांग की गई है। मुख्य न्यायाधीश पी सतशिवम की अगुवाई वाली पीठ के सामने यह मसला लाया गया और उन्होंने कहा कि इस पर 25 अक्टूबर को सुनवाई होगी। 
कार्यक्रम इस प्रकार से होगा
शुक्रवार, 25 अक्टूबर 2013
अभ्यास-1 10:00-11:30 बजे
अभ्यास-2 2:00-3:30 बजे
शनिवार, 26 अक्टूबर 2013
अभ्यास-3 11:00-12:00 बजे
क्वालिफाई रेस 2:00 बजे
रविवार, 27 अक्टूबर 2013
फाइनल रेस 3:00 बजे
सर्किट नाम: बुद्ध इंटरनेशनल सर्किट
गोद की संख्या: 60
सर्किट की लंबाई: 5.125 किमी
रेस दूरी: 307.249 किमी
गोद रिकॉर्ड: 1:27.249 - एस वेट्टेल (2011)
25Oct-2013

रविवार, 20 अक्तूबर 2013

सचिन को नीति निर्धारक बनाने की कवायद!

सचिन को नौकरी का ऑफर
केंद्र सरकार ने दुनिया के महानतम क्रिकेटर सचिन तेंदुलकर के क्रिकेट को अलविदा कहते ही उन्हें सरकारी नौकरी देने की योजना बना ली है यानि उन्हें सरकारी नीतियों को बनाने का अधिकार देने की तैयारी की जा रही है।
सचिन तेंदुलकर ने 200वां टेस्ट मैच खेलते ही संन्यास की घोषणा की है तो उनके लिए नौकरी के नए ऑफर भी आने शुरू हो गए और स्वयं उसके लिए खेल मंत्रालय ने पहले से ही योजना बनानी शुरू कर दी है। खेल मंत्रालय की योजना है कि सचिन को एक ऐसी परिषद में सदस्य बनाने का प्रस्ताव दे सकता है जो सरकारी नीतियों पर चर्चा करेगा और उन्हें मंजूरी दे सकेगा।
पित्रोदा ने रखा था विचार
प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के सलाहकार सैम पित्रोदा ने खेल क्षेत्र में एक इनोवेशन काउंसिल बनाने का विचार रखा था, जिसका प्रधानमंत्री कार्यालय से सर्मथन मिला है। इस काउंसिल में विभिन्न क्षेत्रों के जानेमाने लोग शामिल किए जाएंगे। खेल जगत, खेल संघों और गवर्नमेंट स्पोर्ट्स प्रमोशन बोर्डस, औद्योगिक जगत के दिग्गज, न्यायविद और पत्रकारों को इसमें शामिल किया जाएगा। खेल मंत्रालय को यह योजना दो महीने पहले भेज दी गई थी। खेल मंत्रालय सचिन और बैडमिंटन खिलाड़ी प्रकाश पादुकोण को इस काउंसिल में शामिल कर सकती है।
सचिन ने दिया था सुझाव
सचिन तेंदुलकर ने खेल को बढ़ावा देने के लिए स्कूल के स्तर पर इस संबंध में काम करने का सुझाव दिया था और मानव संसाधन विकास मंत्रालय को पत्र भी लिखा था। खेल मंत्रालय के एक अधिकारी के मुताबिक तब से मंत्रालय उन्हें काउंसिल का सदस्य बनाना चाहता है क्योंकि दोनों का मकसद एक ही है।
खेल मंत्री होंगे काउंसिल के अध्यक्ष
खेल मंत्री जितेंद्र सिंह काउंसिल के अध्यक्ष होंगे। खेल मंत्रालय के सूत्रों ने बताया कि सरकार ने यह फैसला सचिन के सुझावों के बाद ही किया है। सरकार खेल क्षेत्र में बेहतर नीतियों के लिए नीति निर्माण के स्तर पर इनोवेटिव तकनीक का इस्तेमाल करना चाहती है। जिसका काम यह प्रस्तावित काउंसिल ही करेगी। काउंसिल नीतियों का विस्तृत अध्ययन करेगा, उसमें बदलाव और स्वीकृति भी करेगा।
20Oct-2013

रागदरबार-ये दुनिया वले…

20Oct-2013

शुक्रवार, 18 अक्तूबर 2013

अब नई एयरलाइंसों के सामने होंगी कड़ी चुनौतियां!

टाटा-सिंगापुर एयरलाइंस के प्रस्ताव पर अगले हफ्ते होगा विचार
ओ.पी.पाल

विमानन उद्योग में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश को मंजूरी देने के बाद जिस प्रकार से विदेशी एयरलाइनों से करार करके बनाई जा रही नई एयरलाइंस के सामने अनेक चुनौतियां हैं, लेकिन टाटा समूह ने एयर एशिया के साथ करार करने के बाद एयर एशिया की स्पर्धी एयरलाइन के साथ भी करार करने के लिए एक प्रस्ताव नागर विमानन मंत्रालय और डीजीसीए में प्रस्तुत कर दिया है, जिस पर एयर एशिया के ऐतराज के सामने टाटा-सिंगापुर के बीच होने वाले करार वाली नई एयरलाइंस को कड़े इम्तहान से गुजरने को मजबूर होना पड़ रहा है।
एयरएशिया एयरलाइन के साथ गठजोड़ करने के बाद टाटा समूह ने सिंगापुर एयरलाइंस क ेसाथ भी एक नई एयरलाइंस शुरू करने का प्रस्ताव दिया है। टाटा-सिंगापुर यरलाइंस के नई विमानन सेवा शुरू करने के प्रस्ताव पर विचार के लिए विदेशी निवेश संवर्धन बोर्ड यानि एफआईपीबी की शुक्रवार को होने वाली बैठक को टाल दिया गया है, जो अब अगले सप्ताह 24 अक्टूबर को आयोजित करने की घोषणा की गई है। सूत्रों के अनुसार टाटा-सिंगापुर एयरलाइंस के बीच होने वाले करार पर विचार करने के लिए वित्त मंत्रालय की एफआईपीबी की बैठक के टलने के पीछे एयरएशिया एयरलाइन का ऐतराज माना जा रहा है, जिसके साथ टाटा समूह के समझौते के तहत बनने वाली नई एयरलाइंस शुरू करने की प्रक्रिया पहले से ही प्रगति पर है। हालांकि इस बैठक को टालने की वजह वित्त मंत्रालय ने कुछ अपरिहार्य परिस्थितियों का हवाला दिया है। जहां तक नई एयरलाइंसों के सामने आने वाली चुनौतियों का का कारण यह भी है कि एयरएशिया और सिंगापुर एयरलाइंस जैसी नई कंपनियों को देश में अब उड़ान लाइसेंस हासिल करने से पहले एक नए और ज्यादा मुश्किल छानबीन प्रक्रिया से गुजरना होगा।
क्या है नया नियम
सीएपी 3100, आईसीएओ की ओर से एयरलाइंस के लिए पेश किया गया नया सर्टिफिकेशन मैनुअल है, जिसमें इंटरनेशनल आॅपरेशंस परमिट हासिल करने के लिए विस्तार से स्पेसिफिकेशंस को भी शामिल किया जाएगा। इसके लागू होने से मौजूदा 5/20 नियम स्वत: ही खत्म हो जाएगा। इससे पहले सीएपी 3100 से एविएशन मिनिस्ट्री के लिए देश में एयरलाइंस को उड़ान भरने की मंजूरी देने के मकसद से कोई एक मैनुअल नहीं था। एयरलाइंस को सिविल एविएशन रिक्वायरमेंट्स नाम के नियमों से जरूरतों को निकालकर परमिट के लिए आवेदन की तैयारी करनी होती थी। मसलन नागर विमानन मंत्रालय के नए मैनुअल में यह पक्का किया गया है कि परमिट के लिए आवेदन करने वाली एयरलाइंस अपने विमानों, एयरपोर्ट स्टाफ, सुरक्षा उपायों, ट्रेनिंग और इंजीनियरिंग से जुड़े लोगों की विस्तार से जानकारी दें। डायरेक्टर जनरल आॅफ सिविल एविएशन अरुण मिश्रा ने कहा कि इससे एयरलाइंस की जवाबदेही बढ़ जाएगी।
 29 प्रस्तावों पर होगा विचार
सिंगापुर एयरलाइंस और टाटा समूह के बीच गठबंधन के प्रस्ताव के अलावा एफआईपीबी को 29 अन्य विदेशी निवेश के आवेदनों पर भी विचार करना है। एजेंडे में शामिल सभी प्रस्तावों पर अब 24 अक्तूबर को विचार होगा। इस बैठक की अध्यक्षता वित्त मंत्रालय में आर्थिक मामलों के सचिव अरविंद मायाराम करते हैं। सिंगापुर एयरलाइंस का टाटा संस के साथ संयुक्त उद्यम में 4.90 करोड़ डालर के निवेश का प्रस्ताव है। इसके अलावा मारीशस की केस्टलेटॉन इनवेस्टमेंट लि. ग्लैक्सोस्मिथलाइन प्रा. लि. तथा कुछ अन्य कंपनियों के निवेश प्रस्ताव शामिल हैं। चालू वित्त वर्ष के दौरान अप्रैल से जुलाई की अवधि में देश में एफडीआई पिछले साल की इसी अवधि के मुकाबले 20 प्रतिशत बढ़कर 7.05 अरब डालर तक पहुंच गया।
18Oct-2013

गुरुवार, 17 अक्तूबर 2013

चपरासी को निजी स्टाफ बनाने की तैयारी!


पीएमओ से प्रस्ताव मंजूर, मामला कैबिनेट सचिवालय के हवाले
ओ.पी.पाल

भ्रष्टाचार और घोटालों और गड़बड़झालों के मामलों पर लगातार घिरती आ रही कांग्रेसनीत यूपीए सरकार ने शायद दलीलों के बावजूद सुधरने का प्रयास नहीं किया है। भले ही अपने चेहतों को फायदा पहुंचाने के लिए नियमों या मानदंडों में बदलाव ही क्यों न करने पड़े हो। ऐसा ही एक मामला हाल में उजागर हुआ, जिसमें एक केंद्रीय मंत्री ने अपने मंत्रालय के एक चपरासी को प्रोन्नति देने के लिए पीएमओ से शैक्षिक योग्यता के मानदांडों और प्रोन्नति के नियमों को बदलावा दिया।
केंद्रीय पेट्रालियम मंत्री वीरप्पा मोइली जिन्होंने पेट्रोल की बचत करने का संदेश देने के लिए स्वयं मेट्रो टेÑन में यात्रा की और न जाने पेट्रोल की बचत के लिए क्या-क्या संदेश दिये, लेकिन जिन मुद्दों से यूपीए सरकार हमेशा घिरी रही है उसकी चपेट में आने से वे भी नहीं बच सके। मसलन उन्होंने अपने एक चपरासी को अपना निजी सहायक बनाने के लिए तय शैक्षिक योग्यता के मानदंडों में राहत दिलाने का काम भी कराया और वह भी पीएमओ के जरिए, ऐसा अधिकार पीएम को हासिल है। इसीलिए वीरप्पा मोइली ने प्रधानमंत्री कार्यालय से अनुरोध किया कि वह अपने चपरासी शुभ नंदन कुमार को अपने निजी स्टाफ में रखना चाहते हैं, इसके लिए मोइली के अनुरोध पर पीएमओ से प्रोन्नति के लिए शैक्षिक मानदंडों और नियमों में बदलाव के प्रस्ताव को मंजूरी दे दी, जिसे कैबिनेट सचिव को भेज दिया गया है। मोइली के अनुरोध पर प्रधानमंत्री इस कार्य के लिए संबंधित मंत्रालय को ही अधिकार देने पर भी विचार कर रहे हैं। यह खुलासा आरटीआई कार्यकर्ता सुभाष चंद अग्रवाल ने सूचना के अधिकार के तहत विवरण हासिल करने के बाद किया है। इस सूचना के अनुसार गत अगस्त माह में पीएमओ ने चपरासियों के लिए शैक्षिक योग्यता के मानदंडों में कमी करने का अधिकार संबंधित मंत्रालयों को देने के प्रस्ताव को पास किया था। अन्य स्टाफ में ऐसे मामलों के अधिकार कैबिनेट सचिव के अधिकार क्षेत्र में हैं। इससे पहले इन बदलावों से पहले मंत्रियों को तय नियमों के अनुसार केवल अपने निजी स्टाफ की नियुक्ति करने का अधिकार प्राप्त था। पीएमओ ने चपरासी शुभ नंदन कुमार का मामला भी कैबिनेट सचिव के जरिए प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह तक पहुंचा, जिस पर शैक्षिक योग्यता कम करने की सिफारिश की गई थी। इस सिफारिश के आधार पर प्रधानमंत्री ने इस प्रस्ताव को मंजूर कर लिया और अधिकार सौंपने के प्रस्ताव को विचार के लिए बढ़ा दिया। गौरतलब है कि ग्रुप-डी से ग्रुप-सी में प्रोन्नत होने वाले कर्मचारियों की शैक्षिक योग्यता पहले आठवीं कक्षा रखी गई थी, जिसे बाद में छठे वेतन आयोग की सिफारिश के बाद इसे बढ़ाकर दसवीं कर दिया गया। इस संबंध में कार्मिक एवं प्रशिक्षण विभाग ने नोटिफिकेशन भी जारी किया जा चुका है। नियमों के अनुसार मंत्रियों के निजी स्टाफ की आयु सीमा को कम करने की शक्तियां कैबिनेट सचिवालय के पास हैं, जबकि जबकि शैक्षिक योग्यता में बदलाव या कमी करने का अधिकार केवल प्रधानमंत्री के ही अधिकार क्षेत्र में है, जिसका लाभ केंद्रीय मंत्री मोइली अपने चपरासी को निजी स्टाफ में शामिल करने के लिए बखूबी से उठाया।
16Oct-2013

मंगलवार, 15 अक्तूबर 2013

फिर चढने लगा रफ्तार की जंग का बुखार!

फार्मूला-1 रेसिंग की उल्टी गिनती शुरू
ओ.पी.पाल

भारत में एक बार फिर से रफ्तार की जंग यानि फार्मूला-1 रेसिंग का खुमार चढ़ने लगा है और ग्रेटर नोएडा स्थित बुद्ध इंटरनेशनल सर्किट में 25 से 27 अक्टूबर तक होने वाली फॉमूर्ला वन एयरटेल इंडियन ग्रां प्री के तीसरे संस्करण की उल्टी गिनती शुरू हो गई है, जिसकी तैयारियां भी पूरी कर ली गई हैं। इस बार इस रफ्तार की जंग में 11 टीमें हिस्सा ले रही है, जिसमें रेडबुल रेसिंग पर सबकी नजरें लगी हुई हैं, जिसके चालक सबैस्टियन वेटेल अपने शानदार प्रदर्शन की बदौलत अंतरराष्ट्रीय पटल पर सुर्खियों में चल रहे हैं।
आगामी 25 अक्टूबर से आरंभ होने वाली रफ्तार की जंग और इंडियन ग्रां प्री के आयोजक एवं प्रमोटर जेपी स्पोट्स ने सभी तैयारियों को अंजाम दे दिया है। जेपी समूह के वरिष्ठ उपाध्यक्ष कमर अहमद ने उम्मीद जताई है कि प्रतियोगिता के दौरान वॉलीवुड और क्रिकेट समेत अन्य खेल की हस्तियां भी इस रफ्तार की जंगा लुत्फ उठाने के लिए ग्रेटर नोएडा स्थित बुद्ध इंटरनेशनल सर्कित में नजर आएंगी। इस साल रेसिंग देखने के लिए लगभग 65 हजार दर्शकों के आने की सम्भावना है। इसके मद्देनजर कुल 65 हजार 514 टिकटों की बिक्री की जाएगी। आयोजकों ने इस प्रतियोगिता के दर्शको के लिए सबसे महंगी टिकट 21 हजार और सबसे सस्ती टिकट 1500 रुपये है। इंडियन ग्रां प्री के आयोजकों के मुताबिक जेपीएसआई ने इस रेस के लिए तीन दिन की सीजन टिकट और रविवार के लिए एक दिन की टिकटें एक साथ जारी की है। बुद्ध इंटरनेशनल सर्किट में 25, 26 और 27 अक्टूबर को होने वाली रेसों में नेचुरल एंव पिकनिक स्टैंड के लिए सीजन टिकट की कीमत 2000 रुपये और रविवार के लिए 1500 रुपये रखी गई है, जबकि मुख्य ग्रैंड स्टैंड के निचले टीयर की सीजन टिकट 21 हजार रुपये और रविवार की टिकट 12 हजार रुपये कीमत की है। मुख्य ग्रैंड स्टैंड के निचले टीयर के तीन दिन के टिकट की कीमत 21 हजार रुपये, अपर टीयर की 15 हजार, प्रीमियम स्टैंड की 10 हजार, स्टार स्टैंड की 7500 और नेचुरल एवं पिकनिक स्टैड की 2000 रुपये है जबकि केवल रविवार की टिकट निचले टीयर के लिए 12 हजार रुपये, अपर टीयर के लिए 10 हजार, प्रीमियम स्टैंड की 7500, स्टार स्टैंड की 5000 और नेचुरल एवं पिकनिक स्टैंड की 1500 रुपये है।
व्यापक इंतजाम के निर्देश
उत्तर प्रदेश सरकार ने सूबे को अंतरराष्ट्रीय फलक पर लाने की दिशा में सरकारी स्तर से भी बेहतर से बेहतर इंतजाम करने के लिए कमर कसी हुई है। सरकार ने इस आयोजन के लिये बुद्ध अंतरराष्ट्रीय सर्किट को ट्रैक एरिया, दर्शक दीर्घा, पैडाक और सर्किट से बाहर के इलाकों के तौर पर चार हिस्सों में बांटकर समुचित पुलिस बंदोबस्त करने के निर्देश भी दिए। इस दौरान 25 हजार वाहनों की पार्किंग की व्यवस्था करने के साथ-साथ यमुना एक्सप्रेस-वे पर 15 किलोमीटर लम्बा एंट्री रैम बनवाने के लिए 15 अक्टूबर तक का समय दिया है। जेपी समूह के अनुसार इस कार रेसिंग को दर्शकों के लिए सर्किट के पास 19 हजार 439 कारों तथा दो हजार मोटरसाइकिलों की पार्किंग की व्यवस्था की गई है। इसके अलावा दर्शकों को कार्यक्रम स्थल तक पहुंचाने के लिए नोएडा सिटी सेंटर मेट्रो स्टेशन से 100 चार्टर्ड बसों का संचालन किया जाएगा। साथ ही शटल बस सेवा की व्यवस्था भी की जाएगी।
फार्मूला-1 रेस: ग्यारह टीमें हिस्सा लेंगी
ग्रेटर नोएडा में 25अक्टूबर को होने वाली फार्मूला वन कार रेस में इस बार कुल 11 टीम हिस्सा लेंगी और 22 चालक शामिल होंगे इसके अलावा तीन दर्जन के करीब अन्य रेसर होंगे, जो इन रेसरों की रेस्ट की जगह पर शामिल किये जाऐगे। भारत में यह रेस तीसरी बार आयोजित की जा रहा हैं। इस रेस में दुनिया भर के एक से बढ़कर एक रफ्तार के बादशाह हिस्सा लेंगे। इस रेसे में हिस्सा लेने वाली टीमें इस प्रकार हैं।
रेस में हिस्सा लेने वाली टीम और उनके चालक:
टीम का नाम                                         चालक

1.रेड बुल रेसिंग                              सबैस्टियन वेटेल, मार्क वैबर
2.मैकलेरेन मर्सर्डीज                      जैनसन बटन, सजिर्यो पेरेज
3.स्कूडेरिया फेरारी मॉलर्बोरो          फॅरनान्डो आलोंसो, फेलिप मासा
4.मर्सर्डीज जीपी पेट्रोनस एफ1      लुईस हैमिल्टन, निको रोजबर्ग
5.लोटस रेनाल्ट जीपी                   किमी रहकोनेन, रोमेन ग्रोसजिन
6.एटी एंड टी विलियम्स               पादरी मेल्डोनाडो, बल्टेरी बोटस
7.फोर्स इंडिया एफ1 टीम              आड्रियन सुटील, पॉल डी रेस्टा
8.सॉबर फेरारी                             निको हुल्केनबर्ग, एस्टेबान गुटियारे
9.स्कूडेरिया टॉरो                          रोसो डेनियल रिकीआर्डो, जीन एरिक वेर्गेने
10. .मरूसिया वर्जिन रेसिंग         चिल्टन मैक्स, जूल्स ब्यांची
11. कटेर्हम रेनाल्ड                      चार्ल्स फिक्चर, ग्येडो वानडेर गार्डे
15Oct-2013

सोमवार, 14 अक्तूबर 2013

धार्मिक स्थलों पर कब रूकेंगे भगदड़ के हादसे!

पिछली घटनाओं से भी नहीं ले रहे है सबक
ओ.पी.पाल

मध्य प्रदेश में रतनगढ़ देवी मंदिर में भगदड़ मचने से हुए वीभत्स हादसा देश में धार्मिक पर्वो पर ऐसे हादसों में श्रद्धालुओं की मौतें होने का सिलसिला कोई नया नहीं है, इससे पहले भी देशभर के विभिन्न राज्यों में धार्मिक पर्वो पर महज अफवाह के कारण ऐसे हादसों में लोगों को अपनी जान गंवाने के लिए मजबूर होना पड़ा है। इसके बावजूद सवाल यह खड़ा होता है कि पिछले हादसों से शासन व प्रशासन सबक क्यों नहीं लेना चाहता, ताकि पुख्ता इंतजामों के जरिए ऐसे हादसों को रोका जा सके।
देशभर में पिछले तीन दशक में भगदड़ से होने वाले ऐसे हादसों में हजारों श्रद्धालुओं को अपनी जान से हाथ धोना पड़ा है। ऐसे हादसों की केंद्र या राज्य सरकार जांच के आदेश देती रही है, लेकिन अभी तक किसी जांच का नतीजा कभी सामने नहीं आया यानि ऐसे हादसों की जांच और उसकी रिपोर्ट को ठंडे बस्ते में डाल दिया जाता है। मसलन देश में धार्मिक समागम की भीड़ में रतनगढ़ के देवी मंदिर में मची भगदड़ की यह कोई नई घटना नहीं है। इससे पहले भी देश में धार्मिक स्थलों और रेलवे स्टेशनों पर भगदड़ से बड़े हादसे होते रहे हैं। रतनगढ़ देवी मंदिर में हुए इस हादसे में पांच दर्जन से ज्यादा श्रद्धालुओं की मौत होने और डेढ़ सौ से ज्यादा घायल होने की खबरे हैं। मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने भी घटना की जांच के आदेश दिये हैं, लेकिन इस हादसे की जांच का सबब क्या होगा यह भविष्य ही बता पाएगा। इससे पहले 11 फरवरी को इलाहाबाद कुंभ की जांच को सामने लाने के लिए एक माह का समय दिया था, लेकिन उसका नतीजा आज तक सामने नहीं आ पाया है। जहां तक ऐसे समारोहों में इंतजाम पुख्ता करने का सवाल है इसके लिए केंद्र और राज्य तथा प्रशासन एक दूसरे पर ठींकरा फोड़ने में कभी पीछे नहीं रहे और नतीजन ऐसे में सवाल यही उठता है कि महज अफवाहों के कारण भगदड़ जैसे हादसे कब तक होते रहेंगे?
धार्मिक स्थलों पर पिछले तीन दशक में हुए प्रमुख हादसे-
• 11 फरवरी 2012: इलाहाबाद कुंभ के दौरान रेलवे स्टेशन पर भगदड़ में 38 श्रद्धालुओं की मौत।
• 14 जनवरी, 2011: केरल के सबरीमाला मंदिर में भगदड़ से करीब 106 श्रद्धालुओं की मौत, 100 से ज्यादा घायल।
• 16 अक्टूबर 2010: को बिहार में बांका के तिलडीहा दुर्गा मंदिर में 10 मरे।
• 14 अप्रैल 2010: शाही स्नान के मौके पर हरिद्वार में भगदड़, 8 मरे।
• 14 जनवरी 2010: पश्चिम बंगाल के गंगासागर में भगदड़ से 7 की मौत।
• 04 मार्च 2010: प्रतापगढ़ स्थित कृपालु महाराज के आश्रम में भगदड़, 65 मरे।
• 21 दिसंबर, 2009: राजकोट के धोराजी कस्बे में धार्मिक कार्यक्रम के दौरान भगदड़, 8 महिलाएं मरी।
• 30 सितंबर 2008: जोधपुर स्थित चामुंडा देवी मंदिर में 147 मरे।
• 03 अगस्त 2008 : हिमाचल के नैनादेवी पर भगदड़ में 162 मरे।
• 14 अक्टूबर 2007: गुजरात के पंचमहल में 12 लोग मरे।
• 03 अक्टूबर 2007: पुरी के जगन्नाथ मंदिर में चार लोग मरे।
• 03 अक्टूबर 2007: जतिया पर्व के गंगा स्नान में मुगलसराय रेलवे स्टेशन पर जमा श्रद्धालुओं की भगदड़ में 14 महिलाओं की मौत।
• 01अक्टूबर 2006: को भी नवरात्र के मौके पर इसी जगह हुई घटना में 50 तीर्थयात्री सिंध नदी में बह गये थे।
• 25 जनवरी 2005: महाराष्ट्र के सतारा में धार्मिक मेले में 340 मरे।
• 27 अगस्त 2003: महाराष्ट्र में नासिक कुंभ मेले के दौरान 39 की मौत।
• 2001 में मध्य प्रदेश में एक मंदिर में भगदड़ से 13 लोगों की मौत हो गई।
• 1999 में केरल में एक हिंदू धार्मिक स्थल पर भगदड़ में 51 लोग मारे गए।
• 1989 में हरिद्वार में कुंभ मेले मची भगदड़ से 350 लोग इसमें मारे गए।
• 1986 में हरिद्वार में मची भगदड़ में 50 लोग मारे गए।
• 1984 में हरिद्वार में भगदड़ की एक बड़ी घटना में लगभग 200 लोग मरे।
14Oct-2013

शनिवार, 12 अक्तूबर 2013

बदले सियासी समीकरण से रालोद बेचैन!


दांव-पेंचः-पश्चिमी उत्तर प्रदेश में जाट-मुस्लिम गठजोड़ टूटने से आगामी लोकसभा चुनाव की तैयारियों को झटका
ओ.पी.पाल
पश्चिमी उत्तर प्रदेश में जाट-मुस्लिम गठजोड़ को मुजफ्फरनगर और आसपास के जिलों में हुए दंगों ने जिस तरह से तार-तार कर दिया है उससे राष्ट्रीय लोकदल की सियासी बिसात को गहरा झटका माना जा रहा है, जिसके कारण रालोद की आगामी लोकसभा चुनाव की तैयारियों को गहरा झटका भी लगा है, जिसने रालोद की बैचेनी को बढ़ाने का भी काम किया है।
राष्ट्रीय लोकदल के प्रमुख और केंद्रीय नागर विमानन मंत्री चौधरी अजित सिंह को भी जाट-मुस्लिम समीकरण टूटने का अहसास हो चुका है। चार दिन पहले ही जब अजित सिंह मुजफ्फरनगर गये तो उन्हें अपने ही वोट कैडर यानि जाटों के विरोध का सामना भी करना पड़ा, जिसका कारण था कि चौधरी अजित सिंह दंगों के ठीक एक महीने बाद इस क्षेत्र में गये थे, जहां दंगों ने रालोद के वोट बैंक जाट-मुस्लिम को तो तोड़ा ही है, वहीं जाट भी रालोद प्रमुख के प्रति नाराजगी जताते नजर आए। राजनीतिकारों की माने तो ऐसे में रालोद प्रमुख की आगामी लोकसभा चुनाव की तैयारियों को लेकर चिंता बढ़ना स्वाभाविक है। यह सर्वविदित है कि पश्चिमी उत्तर प्रदेश में रालोद की राजनीतिक बिसात जाट-मुस्लिम समीकरण के सहारे ही बिछती रही है, जो इस बार टूटकर तार-तार हो चुकी है। मसलन मुस्लिम वोट बैंक रालोद से पूरी तरह खिसक गया है और जाटों का रूख भी फिलहाल रालोद के पक्ष में नहीं है। इसका मतलब यह भी नहीं है कि जाटों का रूख पूरी तरह से भाजपा की और जा रहा है? ऐसी संभावना पर रालोद कम से कम जाटों को मनाने का प्रयास कर रहा है, लेकिन यह तय हो चुका है कि मुस्लिम वोट बैंक रालोद की झोली में जाने वाला नहीं है। अब रालोद के पास जाट आरक्षण ही एक ऐसा हथियार है जो रालोद को संजीवनी दे सकता है, लेकिन इस स्थिति को कांग्रेस भी भांप रही है और जाटों के रूख को देखते हुए वह जाट आरक्षण के मुद्दे पर पुनर्विचार करके रालोद को ठेंगा भी दिखा सकती है। जहां तक मुस्लिम वोटों का सवाल है वह फिलहाल समाजवादी पार्टी से भी नाराज है लेकिन यूपी की सपा सरकार उन्हें इन दंगों के लिए ज्यादा पीड़ित मानकर उन्हें तरह-तरह की योजनाओं से रिझाने का प्रयास कर रही है, लेकिन मुस्लिमों की नजरे इससे पहले राज्य में बसपा के शासनकाल की तरफ भी मुड़ी हैं जिसने न तो सूबे में दंगा ही होने दिया और सपा शासन के मुकाबले बसपा शासनकाल में प्रशासन भी कभी लापरवाह नजर नहीं आया। इसलिए बसपा को आगामी लोकसभा चुनाव में बिना किसी प्रतिक्रिया के लाभ मिल सकता है, लेकिन कांग्रेस भी रालोद व सपा से खिसकते मुस्लिम वर्ग को आकर्षित करने का प्रयास कर रही है।
रालोद के सामने बड़ी चुनौती
पश्चिमी उत्तर प्रदेश में अपने परंपरागत वोट बैंक जाट-मुस्लिम समीकरण के खिसकने के कारण रालोद के सामने बड़ी राजनीतिक चुनौती खड़ी हो गई है। वर्ष 2009 में देश में हुए लोकसभा चुनाव के दौरान जाट-मुस्लिम गठजोड़ के कारण ही रालोद के खाते में सात में से पांच सीटें आई थी और इसके अलावा रालोद को भाजपा के साथ गठबंधन का सहारा लगा था, लेकिन इस बार के चुनाव में रालोद प्रमुख अजित सिंह की आने वाले दिनों में मुश्किलें इसलिए भी बढ़ती नजर आ रही हैं क्योंकि चौधरी अजित सिंह को गत आठ अक्टूबर को मुजफ्फरनगर में अपनों के ही ताने सुनने के लिए मजबूर होना पड़ा और चौधरी अजित सिंह को यहां तक नसीहत दी गई कि जब मुजफ्फरनगर जल रहा था तो वह कहां थे। अजित सिंह ने भले ही उन्हें सौ सफाई दी हों, लेकिन वह मौजूदा राजनीतिक हालातों को भी महसूस करने से नहीं चूके। इसलिए छोटे चौधरी के लिए आने वाले दिनों में मुश्किलें बढ़ सकती हैं और इसमें भी संदेह है कि आगामी लोकसभा चुनाव में हासिल की गई सीटों को बचा पाएंगे? इसका कारण है कि इस बार रालोद के साथ भाजपा भी नहीं है, हालांकि रालोद अपने दम पर चुनाव लड़ने की बात भी कह रही है, जबकि उसका परंपरागत जाट-मुस्लिम समीकरण बिखर चुका है। यह राजनीतिक समीकरण आने वाले दिनों में किस करवट बैठेगा इस पर नजरें लगी हुई हैं।
कोई हाथ मिलाने को तैयार नहीं
राजनीतिकारों का मानना तो यह है कि जाट बिरादरी को ऐसा लग रहा है कि कवाल में हुई घटना के बाद यदि छोटे चौधरी आकर दोनों समुदायों के बीच मिल बैठकर मामला शांत करा देते तो शायद इतने बड़े पैमाने पर हिंसा नही होती। लेकिन अजित सिंह के लिए इस बार परिस्थितियां विपरित हैं। सूत्रों के अनुसार रालोद इस बार भी भाजपा की तरफ बढ़ना तो चाहती है, लेकिन भाजपा इस बार उनसे हाथ मिलाने के लिए तैयार नहीं है। राजनीतिक जानकारों की माने तो ऐसी परिस्थितियों में रालोद प्रमुख चौधरी अजित सिंह को अपनी बागपत लोकसभा सीट को बचाने के लिए भी नाकों चने चबाने पड़ सकते हैं, जबकि उनके सुपुत्र का मथुरा में विरोध होने के कारण वह फतेहपुर सीकरी की और रूख कर सकते हैं, जो इतना आसान भी नहीं है।
12Oct-2013

शुक्रवार, 11 अक्तूबर 2013

भारतीय कारोबारी सौदों से नदारद है रिश्वत नीति!

सर्वेक्षण: सुविधा भुगतान के सख्त खिलाफ हैं भारतीय कंपनियां
ओ.पी.पाल

दुनियाभर में भारतीय कारोबार के समक्ष भ्रष्टाचाचर सबसे प्रमुख चुनौतियों में से एक है, जहां भारतीय कंपनियां सुविधा भुगतान के तो सख्त खिलाफ हैं,लेकिन कारोबारी सौदे हासिल करने में भारतीय कंपनियों में रिश्वत पर कोई नीति नहीं है। ऐसा खुलासा एक वैश्विक इकोनॉमिस्ट इंटेलिजेंस यूनिट द्वारा अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर किये गये एक सर्वेक्षण में सामने आया है।
अंतर्राष्ट्रीय  स्तर पर कारोबारी कंपनियों पर सर्वेक्षण करने वाली वैश्विक जोखिम सलाहकार कंपनी कंट्रोल रिस्क और इकोनॉमिस्ट इंटेलिजेंस यूनिट ने भारतीय कंपनियों के बारे में जो तथ्य उजागर किये हैं उनमें कहा गया है कि अच्छे प्रबंधन वाली कंपनियों के पास ऊंचे कानूनी और नैतिक मानकों का अनुपालन करने के अलावा कोई अन्य विकल्प नहीं होता है। हालांकि कमजोर प्रशासन वाले बाजारों में इन कंपनियों का पाला भी अक्सर ऐसे अधिकारियों से होता है, जो लाइसेंस जारी करने या ठेका देने के बदले रिश्वत की मांग करते हैं। ठीक इसी समय उनका मुकाबला ऐसे प्रतिस्पर्धियों से हो सकता है, जो कारोबारी संहिता के कम जिम्मेदार मानकों का अनुसरण करते हैं। नतीजतन कानूनी सिद्धांतों और वाणिज्यिक व्यवहार में गहरी असंगति देखने को मिलती है। इसी पृष्ठभूमि के मद्देनजर ईआईयू ने एक अंतरराष्ट्रीय सर्वेक्षण कराया। सर्वेक्षण में दुनिया भर की करीब 316 कंपनियों के सलाहकारों और अनुपालन प्रमुखों ने हिस्सा लिया, जिसमें रिश्वत और भ्रष्टाचार के जोखिमों के नजरिये का भी आकलन किया गया। इस सर्वेक्षण रिपोर्ट के मुताबिक जिन 45 भारतीय कंपनियों ने इस सर्वेक्षण में हिस्सा लिया वे अपने अंतरराष्ट्रीय समकक्षों की तरह अंतरराष्ट्रीय भ्रष्टाचार रोधी नियमों का पालन करने की चुनौतियों से निपटने के लिए तैयार नहीं हैं, जबकि देशी नियामकीय ढांचा भी बहुत सख्त है। इस दौरान अभियोजन, जुमार्ना और साख को नुकसान का जोखिम लगातार बढ़ रहा है। भारतीय कंपनियों को सबसे ज्यादा चिंता कामकाज से जुड़े मामलों में रिश्वत देने और थर्ड पार्टी जोखिम की होती है और वे अपने कर्मचारियों को भ्रष्टाचार रोधी प्रशिक्षण देने के मामले में अपने अंतरराष्ट्रीय समकक्षों से काफी पीछे हैं। भारतीय कंपनियों में भ्रष्टाचार रोधी गतिविधियों के लिए कोई नीति निर्धारित या बजट तय नहीं है और ना ही इसकी सूचना देने के लिए कोई प्रक्रिया है।
रोकथाम करना आसान नहीं
कर्मचारियों द्वारा रिश्वत देने पर पाबंदी लगाने के लिए आंतरिक स्तर पर कोई प्रक्रिया नहीं रखने की वजह से कई कंपनियां अपनी साख पर जोखिम बढ़ा रही हैं। सर्वेक्षण में हिस्सा लेने वाली वैश्विक प्रतिभागियों में से करीब 40 फीसदी के यहां भ्रष्टाचार की जानकारी देने के लिए नियम हैं, लेकिन भारतीय प्रतिभागियों के लिए यह आंकड़ा महज 24 फीसदी है।
यहां काफी पिछड़ी भारतीय कंपनियां 
देश में 62 फीसदी भारतीय कंपनियों के यहां कारोबार हासिल करने के लिए रिश्वत देने पर पाबंदी लगाने की कोई औपचारिक नीति नहीं है जबकि अमेरिकी कंपनियों के लिए यह आंकड़ा 23 फीसदी और वैष्विक कंपनियों के लिए 35 फीसदी है। इसी प्रकार 91 फीसदी भारतीय कंपनियों में कर्मचारियों को भ्रष्टाचार रोधी प्रशिक्षण देने की नीति नहीं है, जबकि वैश्विक स्तर पर कंपनियों के लिए यह आंकड़ा 74 फीसदी है और अमेरिकी कंपनियों के लिए 52 फीसदी पाया गया है। सर्वेक्षण के मुताबिक महज 18 फीसदी ही भ्रष्टाचार रोधी कदमों पर खर्च बढ़ाने की योजना बना रही हैं, जबकि इसका वैश्विक स्तर पर औसत 35 फीसदी है और अमेरिकी औसत 48 फीसदी है।
भारतीय कंपनियां अव्वल
इस सर्वेक्षण कि मुताबिक 62 फीसदी भारतीय कंपनियों में रिश्वत देने पर पाबंदी लगाती हैं, जो 53 फीसदी के वैश्विक औसत से कहीं बेहतर है। देश में 73 फीसदी कंपनियों के थर्ड पार्टी समझौतों में प्रावधान है, जो थर्ड पार्टी को कंपनी की ओर से रिश्वत देने पर पाबंदी लगाता है यह 64 फीसदी के वैश्विक औसत से बेहतर है। इसी प्रकार 60 फीसदी के पास भ्रष्टाचार रोकने के लिए निदेशक मंडल स्तर का समर्थन, जो 53 फीसदी के वैश्विक औसत से ज्यादा है। देश में 64 फीसदी कंपनियां संभावित साझेदारों की ईमानदारी पर पूरी जांच कराती हैं, जो 50 फीसदी के वैश्विक औसत से बेहतर आंकी गई है।
11Oct-2013

शनिवार, 5 अक्तूबर 2013

यूपी में क्रिकेट प्रतिभाओं का भविष्य अधर में लटका !

कानपुर के कमला क्लब ग्राउंड: क्रिकेट प्रशिक्षण अकादमी अचानक बंद

कमला क्लब ग्राउंड पर बनी क्रिकेट अकादमी बंद उत्तर प्रदेश क्रिकेट संघ (यूपीसीए) ने कानपुर के कमला क्लब ग्राउंड पर बनी क्रिकेट प्रशिक्षण अकादमी को अचानक बंद करने का फैसला किया. युवाओं को क्रिकेटरों के गुर और बारीकियां सिखाने वाली 14 साल पुरानी क्रिकेट प्रशिक्षण अकादमी को अचानक यूपीसीए ने बंद करने का फैसला किया है. इस अकादमी को प्रदेश की रणजी टीम के पुराने धुरंधर खिलाड़ी चलाते थे और इसमें बहुत ही कम फीस पर आठ साल से 22 साल तक के युवाओं को क्रिकेट का प्रशिक्षण दिया जाता था. इस अकादमी के बंद होने से यहां प्रशिक्षण प्राप्त कर रहे करीब 120 युवा क्रिकेटर बहुत आहत और परेशान हैं. पिछले कई सालों से सुरेश रैना, भुवनेश्वर कुमार, पीयूष चावला बनने का सपना देख रहे इन बच्चों को अब अपना भविष्य अंधकारमय लग रहा है.
क्रिकेट अकादमी क्यों बंद की गयी, इस बाबत जब यूपसीए के उपाध्यक्ष एम एम मिश्रा से बात की तो उन्होंने कहा कि अब यूपीसीए अगले साल से एक नयी अकादमी खोलने का विचार कर रहा है इस लिये पूर्व रणजी खिलाड़ियों द्वारा चलायी जा रही इस क्रिकेट प्रशिक्षण अकादमी को बंद करने के निर्देश दिये गये है.
उनसे पूछा गया कि जो बच्चे इस अकादमी में इस समय प्रशिक्षण ले रहे थे उनका क्या होगा इस पर उन्होंने कहा जब नयी अकादमी खुलेगी तब देखा जायेंगा. उन्होंने कहा कि इस अकादमी को बंद करने का फैसला यूपीसीए की कार्यकारिणी में लिया गया है.
सबसे बड़ी बात तो यह है कि भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड (बीसीसीआई) के उपाध्यक्ष और यूपीसीए के सचिव राजीव शुक्ला ने अभी 27 सितंबर 2013 को यूपीसीए की एजीएम में कानपुर में पत्रकारों से बातचीत में कहा था कि यूपीसीए अब नये और युवा क्रिकेटरों को आगे लायेंगी और उन्हें प्रशिक्षण देकर आगे बढ़ने का मौका देगी. इसके लिये क्षेत्रीय स्तर पर क्रिकेट अकादमी खोली जायेंगी और क्रिकेट प्रशिक्षण शिविर लगाये जायेंगे. लेकिन यूपीसीए कमला क्लब में क्रिकेट अकादमी बंद कर शुक्ला के सपनों को साकार होने से पहले ही ग्रहण लगा दिया है.
वर्ष 1999 में पूर्व रणजी क्रिकेट खिलाड़ी शशिकांत खांडेकर ने कमला क्लब में कुछ अन्य पूर्व रणजी खिलाड़ियों के साथ मिलकर कमला क्लब क्रिकेट अकादमी की शुरूआत की थी. इन पूर्व खिलाड़ियों का उददेश्य था कि प्रदेश के युवा क्रिकेटरों को प्रशिक्षण देकर उन्हें एक कुशल क्रिकेटर बनाना ताकि वह भविष्य में देश और प्रदेश का नाम रोशन कर सकें. इस अकादमी में उस समय प्रति खिलाड़ी केवल पचास रूपये महीना की फीस ली जाती थी और उन्हें क्रिकेट के गुर सिखाये जाते थे. अब यह फीस केवल 600 रूपये महीना मात्र थी जिसमें गरीब बच्चों को क्रिकेट का सामान भी उपलब्ध कराया जाता था.
खांडेकर ने बताया कि अब तक कमला क्लब की इस क्रिकेट अकादमी से करीब 150 युवा क्रिकेटर ऐसे निकल चुके है जो प्रदेश में अंडर 14, अंडर 19 और रणजी ट्राफी क्रिकेट तक खेल चुके है और अभी भी इस अकादमी में बहुत से ऐसे क्रिकेटर है जिनमें काफी प्रतिभा है और वह प्रदेश की रणजी टीम तक खेल सकते है लेकिन अब अकादमी बंद हो जाने से इन युवा खिलाड़ियों के भविष्य पर प्रश्न चिन्ह लग गया है.
उत्तर प्रदेश जूनियर क्रिकेट टीम के मुख्य चयनकर्ता खांडेकर कहते है कि इस अकादमी में आठ पूर्व रणजी खिलाड़ी युवा क्रिकेटरों को सुबह शाम नियमित रूप से कोचिंग देते थे और इस अकादमी का उददेश्य कभी धन कमाना नही रहा बस एक ही सपना था जिस क्रिकेट में हम क्रिकेटरों ने अपनी पूरी जिंदगी लगा दी वह क्रिकेट के गुर यह युवा खिलाड़ी सीख जायें और एक अच्छे क्रिकेटर बनकर कमला क्लब और अपने प्रदेश और यूपीसीए का नाम रोशन करें.
उन्होंने बताया कि यूपीसीए प्रशासन ने कमला क्लब अकादमी को नोटिस दिया था कि क्रिकेट अकादमी बंद कर दी जायें और हमने यूपीसीए के आदेशों का पालन करते हुये अकादमी बंद कर दी. उनसे पूछा गया कि जो बच्चे वर्तमान समय में अकादमी में प्रशिक्षण ले रहे थे उनका भविष्य क्या होगा इस पर उन्होंने कहा कि इस बाबत आप यूपीसीए के पदाधिकारियों से सवाल कीजिये.
यूपीसीए द्वारा अकादमी बंद करने के आदेश के बारे में जब निदेशक ज्योति बाजपेयी से बात करने की कोशिश की गयी तो बताया गया कि उनकी तबियत खराब है और वह किसी से कोई बात नही कर रहे है लेकिन यूपीसीए के उपाध्यक्ष एम एम मिश्रा ने कहा कि हम अगले साल तक यूपीसीए की अपनी क्रिकेट अकादमी खोलेंगे जिसमें बच्चों को प्रशिक्षण दिया जायेंगा. तब तक यह बच्चे क्या करेंगे इसका कोई जवाब मिश्रा के पास नही था
साभार-सहारा समय 

शुक्रवार, 4 अक्तूबर 2013

सत्ता बचाने और कब्जाने की होड़ में भाजपा-कांग्रेस!

पांच राज्यों के बिगुल बजते ही राजनीतिक सरगर्मियां तेज
ओ.पी.पाल

चुनाव आयोग द्वारा छत्तीसगढ़ व मध्य प्रदेश समेत पांच राज्यों में होने वाले विधानसभा चुनाव की तारीखों का ऐलान होते पहले से तैयारियों में जुटे राजनीतिक दलों में गरमाहट आती नजर आने लगी है। आगामी लोकसभा चुनाव से पहले पांच राज्यों में होने वाले इन चुनावों को सेमीफाइनल मानकर अपनी रणनीति बनाने में जुटने को तैयार राजनीतिक दलों खासकर कांग्रेस और भाजपा में नूरा-कुश्ती होने की संभावनाएं हैं, जो एक-दूसरे से सत्ता छीनने की रणनीति का तानाबाना बुनने में लगे हुए हैं। इन्हीं रणनीति पर रानजीतिक दलों के दिग्गजों की प्रतिष्ठा दांव पर होगी।
लोकसभा चुनाव पर नजरें लगाए खासकर कांग्रेस और भाजपा में इन राज्यों में सत्ता काबिज रखने और सत्ता कब्जाने की नूरी कुश्ती की रणनीति पहले से ही तैयार की जा चुकी है। खासकर छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश में जहां भाजपा हैट्रिक पर है वहीं कांग्रेस भाजपा से सत्ता कब्जाने की रणनीति पर काम कर रही है। घोषित चुनाव कार्यक्रम के मुताबिक नक्सलवाद प्रभावित छत्तीसगढ़ राज्य में दो चरणों में चुनाव कराने का निर्णय राजनीतिक दलों के लिए भी सुगमता प्रदान करेगा। मसलन राजनीतिक दल अपने सशख्त उम्मीदार को ही चुनावी जंग में उतारने का प्रयास करेंगे। जहां तक छत्तीसगढ़ राज्य का सवाल है, वहां भाजपा के मुख्यमंत्री डा. रमन सिंह के सामने हैट्रिक बनाने की चुनौती है, तो कांग्रेस के सामने इस राज्य में पूरी जान फूंककर सत्ता परिवर्तन के लिए लगी प्रतिष्ठा को बचाने का सवाल खड़ा हुआ है। कांग्रेस ने पहले से ही इस राज्य में उम्मीदवार के इच्छुक नेताओं के आवेदन मंगाने की प्रक्रिया को हवा दे रखी है, जिसमें पिछले दो-तीन चुनाव हारने वाले, बागयों और दलबदलुओं के आवेदन भी कांग्रेस को मिले हैं, लेकिन कांग्रेस ऐसे प्रत्याशियों को तरजीह देने के मूड़ में नहीं है। कांग्रेस के सूत्रों की माने तो कांग्रेस पिछले चुनाव में पांच हजार से कम वोटों के अंतर से हार चुके कांग्रेसियों पर दांव लगा सकती है। छग में कांग्रेस की बागडौर चरणदास महंत के हाथों में हैं जो पहले कह चुके हैं कि कांग्रेस के मौजूदा विधायकों के खिलाफ जनाक्रोश देखने को मिल रहा है लिहाजा उन्हें बदले जाने की संभावनाओं से भी इंकार नहीं किया जा सकता। वहीं दूसरी ओर मध्य प्रदेश में भी कुछ ऐसी ही स्थिति है जहां कांग्रेस हर हाल में सत्ता हासिल करने के लिए हाथ-पैर मार रही है, लेकिन भाजपा को सत्ता में बनाए रखने के लिए मुख्यमंत्री शिवराज चौहान की प्रतिष्ठा दांव पर है। यानि शिवराज सिंह चौहान का हैट्रिक बनाने के लिए कड़ा इम्तिहान होना तय है। राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में कांग्रेस की सरकार है, जिसके सामने भाजपा की चुनावी रणनीतियों के सामने मुख्यमंत्री श्रीमती शीला दीक्षित के लिए ये चुनाव एक परीक्षा की घड़ी होंगे, जहां भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज बुलंद करने वाले आम आदमी पार्टी के प्रमुख अरविंद केजरीवाल की भी परीक्षा होनी है, जो कांग्रेस व भाजपा के बीच अवरोध पैदा करके चुनावी परिणाम को त्रिशंकु का रूप दे सकते हैं। हालांकि चुनाव का ऐलान होते ही दिल्ली की मुख्यमंत्री शीला दीक्षित के एक बयान ने राजनीतिक को गर्म कर दिया, जिसमें उन्होंने कहा कि दिल्ली में शीला दीक्षित वापस आए या नहीं, लेकिन कांग्रेस का चौथी बार आना तय है।जहां तक राजस्थान का सवाल हैं वहां पिछले 2008 में कांग्रेस ने भाजपा से सत्ता छीनी थी, लेकिन इस बार मुख्यमंत्री अशोक गहलौत के सामने प्रतिष्ठा बचाने की चुनौती है। मिजोरम में कांग्रेस सत्ता में है और मजबूत भी है, जिसे मौजूदा हालातों में उसे सत्ता को बचाने की चुनौती रहेगी।
पांचों राज्यों में मौजूदा दलीय स्थिति
छत्तीसगढ (90)-भाजपा-50, कांग्रेस-38, बसपा-2
मध्य प्रदेश (230)-भजापा-143, कांग्रेस-71, बसपा-7, भारतीय जनशक्ति-5, सपा-1, निर्दलीय-3
दिल्ली (70)-कांग्रेस-43, भाजपा-23, बसपा-2, लोजपा-1, निर्दलीय-1
राजस्थान (200)-कांग्रेस-96, भाजपा-78, बसपा-6, सीपीआई(एम)-3, जदयू-1, लोकतंत्र समाजवादी पाटी-1, निर्दलीय-14
मिजोरम (40)-कांग्रेस-32, मिजोरम नेशनल फ्रंट-3, मिजोरम पीपुल्स कांफ्रेंस-2, जोराम नेशनलिस्ट पार्टी-2,मारालैंड कांग्रेस-1,

04Oct-2013

राज्यों के भरोसे अर्थव्यवस्था सुधारने की कवायद!

सरकार साल के अंत तक राज्यों को नहीं देगी धनराशि
ओ.पी.पाल

देश की अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने की कवायद में राजकोषीय घाटा कम करने के लिए केंद्र सरकार लगातार उपायों की घोषणा करती रही है, लेकिन इस बार केंद्र सरकार शायद राज्यों के भरोसे अर्थव्यवस्था को सुधारने की तैयारी में जुटी है। यही कारण है कि सरकार ने राज्यों को विभिन्न योजनाओं के लिए आबंटित राशि में कटौती करने के साथ इस साल के अंत तक कोई अतिरिक्त धनराशि जारी न करने का निर्णय लिया है। देश अर्थव्यवस्था सुधारने के लिए केंद्र सरकार पिछले कई सालों से समय-समय पर उपायों को लागू करने का ऐलान करती रही, लेकिन देश की अर्थव्यवस्था पटरी पर आने का नाम नहीं ले रही है। केंद्र सरकार ने अब आगामी लोकसभा चुनाव से पहले देश की अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने के लिए नया तरीका तलाशा है जिसमें राज्यों के हिस्से की आबंटित धनराशि मे कटौती करने और राज्यों को अब इस साल के अंत तक कोई अतिरिक्त धनराशि जारी न करने की योजना का खाका तैयार किया है। मसलन अपने सरकारी खर्चो में कटौती करने के उपायों पर अमल करने में विफल केंद्र सरकार की नजर अब राज्यों को विभिन्न योजनाओं के तहत आबंटित की जाने वाली धनराशि में कटौती करने पर है। यही कारण है कि केंद्र सरकार अब राज्यों से साफ कह दिया है कि उन्हें कम से कम नवंबर माह तक कोई अतिरिक्त धनराशि जारी नहीं की जाएगी यानि राज्य केंद्र से अतिरिक्त धनराशि की मांग का प्रस्ताव न भेजें। ऐसा अनुरोध योजना आयोग ने राज्य की सरकारों से किया हैं, जिसका कारण अर्थव्यवस्था की धीमी रफ़्तार  को दुरस्त करने का प्रयास बताया गया है। इसका अर्थ है कि केंद्र सरकार अब राजकोषीय घाटे को पूरा करने के लिए राज्यों के भरोसे को कसौटी पर तौलने का प्रयास कर रही है। इस संबन्ध में योजना आयोग के राज्यमंत्री राजीव शुक्ला ने पुष्टि करते हुए कहा कि मौजूदा अर्थव्यवस्था के मद्देनजर राज्यों को नवंबर के अंत तक अतिरिक्त योजना व्यय की मांग न करने का अनुरोध किया गया है। सरकार नवंबर के बाद आर्थिक स्थिति का आकलन करेगी और राज्यों की अतिरिक्त व्यय की मांग पर विचार करेगी। उधर आर्थिक विशेषज्ञों का मानना है कि चालू वित्तीय वर्ष पहली तिमाही में आर्थिक वृद्धि दर 4.4 प्रतिशत रही है, जो अर्थव्यवस्था की धीमी गति को प्रदर्शित करती है। अर्थव्यवस्था की रफ़्तार बढ़ेगी या नहीं इसका पता अब नवंबर में दूसरी तिमाही यानि जुलाई से सितंबर तक की अर्थव्यवस्था के आंकड़े जारी होने से ही अनुमान लगाया जा सकेगा, जिसे केंद्र सरकार नवंबर के अंत में ही जारी करेगी। जब कि एशियाई विकास बैंक ने चालू वित्तीय वर्ष के लिए देश की वृद्धि दर के अनुमान को छह प्रतिशत से घटाकर 4.7 प्रतिशत कर दिया है। ऐसे में किन उपायों से सरकार देश की अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाएगी यह भविष्य के गर्भ में है।
शान के विपरीत साबित हुए सभी उपाय
केंद्र सरकार ने हाल ही में देश की अर्थव्यवस्था को सुधारने के लिए अपने मंत्रियों से कहा था कि वे प्रेस कांफ्रेंस या अन्य कार्यक्रम पंच सितारा होटलों में न करें और अपने खर्चो में कटौती करना सुनिश्चित करें, लेकिन इसके बावजूद केंद्र सरकार के कई मंत्रियों के कार्यक्रम पंच सितारा होटलों में हुए हैं। इससे पहले पिछले साल मई माह में तत्कालीन वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी ने खर्चो को तर्कसंगत बनाने की पहल करते हुए एक विस्तृत योजना तैयार की थी, जिसमें केंद्र सरकार ने बेवजह के खर्चो को कम करने के लिए मंत्रियों और अधिकारियों के विदेशी यात्रा में कटौती और पंच सितारा होटलों में बैठकें व कार्यक्रम करने पर रोक लगाई थी। इस तरह के उपाय वर्ष 2011 के दौरान भी किये गये थे, लेकिन शायद केंद्र सरकार के मंत्री और अधिकारी इन उपायों को अपनी शान के विपरीत मानते रहे और इन उपायों पर अमल नहीं हो पाया।
04Oct-2013

गुरुवार, 3 अक्तूबर 2013

मसूद के बाद अब लालू पर टिकी निगाहें!

दागियों को बचाने पर बैकपुट पर आई सरकार
ओ.पी.पाल

दागी सांसदों व विधायकों को अयोग्य ठहराने वाले सुप्रीम कोर्ट के निर्णय को बदलने वाले विवादित अध्यादेश पर अपनों से ही घिरी कांग्रेसनीत सरकार ने आखिर उसे वापस ले ही लिया है। इस अध्यादेश के वापस होने से जहां मेडिकल फर्जीवाड़े में चार साल की सजा पाने वाले कांग्रेस के सांसद रशीद मसूद की राज्यसभा सदस्यता खत्म होना तय हो गया है, वहीं अब जेल जा चुके राजद प्रमुख लालू प्रसाद यादव को गुरूवार को सुनाई जाने वाली सजा पर पूरे देश की निगाहें टिकी हुई हैं। अब मौजूदा करीब ऐसे छह दर्जन सांसदों की सदस्यता पर भी कानूनी तलवार लटक गई है, जिनके खिलाफ गंभीर अपराधों में आने वाले समय में सजा सुनाए जाने की संभावनाएं हैं।
गत दस जुलाई को सुप्रीम कोर्ट को अपने फैसले में जनप्रतिनिधित्व कानून की धारा 8 (4) को अनुचित करार देते हुए उसे निरस्त कर दिया था। सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले से किसी भी सांसद या विधायक को अदालत से दो साल या उससे ज्यादा की सजा मिलने पर अयोग्य ठहराया जा सकता था। सुप्रीम कोर्ट के इस निर्णय पर लामबंद हुए राजनीतिक दलों के सहारे कांग्रेसनीत यूपीए सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के इस निर्णय को बदलने के लिए जनप्रतिनिधित्व विधेयक में संशोधन करके सजायाफ्ता सांसदों या विधायकों की सदस्यता बचाने के लिए यह व्यवस्था की थी कि सजा पाए जाने की स्थिति में उसकी सदस्यता तो बची रहेगी, लेकिन वह भत्ता लेने तथा सदन में मतदान में हिस्सा लेने का अधिकारी नहीं होगा। संसद के मानसून सत्र में सरकार इस संशोधन विधेयक को पारित नहीं करा सकी थी और उसे संसदीय स्थायी समिति के हवाले कर दिया गया था। लेकिन सत्र समाप्त होने के बाद कांग्रेस का हर मौके पर संकट मोचक रहे राजद प्रमुख लालू प्रसाद यादव को चारा घोटाले में सजा मिलने की तिथि से पहले ही सरकार ने अध्यादेश को मंजूरी दी, जिस पर प्रमुख विपक्षी दल तो बिफरा ही, वहीं कांग्रेस के दिग्गज यहां तक कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी के पिछले सप्ताह शुक्रवार को अध्यादेश के खिलाफ आए बयान से सरकार और कांग्रेस में बवाल खड़ा हो गया। चूंकि प्रधानमंत्री विदेश के दौरे पर थे तो उन्होंने स्वदेश लौटकर बुधवार को कैबिनेट की बैठक बुलाई, जिसमें इस अध्यादेश और साथ में संशोधित विधेयक को भी वापस करने का फैसला मंजूर किया गया। सरकार के बैकपुट पर आते ही मंगलवार को मेडिकल फर्जीवाड़े में कांग्रेस के राज्यसभा सांसद काजी रशीद मसूद को चार साल की सजा सुनाए जाने पर उनकी सदस्यता खत्म होना तय हो चुका है। वहीं बिहार के चारा घोटाले मामले में पहले ही जेल जा चुके राजद प्रमुख लालू प्रसाद यादव की सजा पर कल गुरूवार को फैसला आना है, जिस पर पूरे देश की निगाहें टिकी हुई हैं।
छह दर्जन सांसदों पर लटकी कानूनी तलवार
राजनीतिक विश्लेषण करने वाली गैर सरकारी संस्था एसोसिएशन फॉर डेमोके्रटिक रिफार्म्स और नेशनल इलेक्शन वॉच ने वर्ष 2008 से अब तक देश के सांसदों और विधायकों के अपराधिक इतिहास को स्वयं जनप्रतिनिधियों द्वारा दिये गये शपथपत्रों को खंगाला है। इस संस्था के मुताबिक संसद में मौजूदा ऐसे 72 सांसद हैं जिनके खिलाफ ऐसे गंभीर आपराधिक मामलें लंबित हैं जिनमें दो साल या उससे ज्यादा सजा का प्रावधान है। यदि अदालत से उन्हें सजा सुनाई जाती है तो उन्हें भी संसद की सदस्यता से वंचित होने के लिए मजबूर होना पड़ेगा। इनमें सर्वाधिक 18 भाजपा, 14 कांग्रेस, आठ समाजवादी पार्टी छह बहुजन समाज पार्टी, चार अन्नाद्रमुक, तीन जनता दल-यू तथा दो माकर््सवादी कम्युनिस्ट पार्टी के दो सांसद शामिल हैं। जबकि 17 अन्य दलों के सांसद इस दायरे में हैं, जिन्हें उनके लंबित अपराधों के आधार पर सजा सुनाए जाने की स्थिति में अयोग्य ठहराया जा सकता है। एडीआर के संस्थापक प्रो.जगदीश छोकर ने बताया कि लोकसभा चुनाव-2009 और 2008 के बाद से हुए विधानसभा चुनावों में चुने गए 4,807 संसद सदस्यों के विश्लेषणों के आधार पर 30 प्रतिशत सदस्य (1460) आपराधिक मामलों में आरोपी पाए गए। इनमें से 688 संसद सदस्यों के खिलाफ गंभीर आपराधिक मामले दर्ज हैं। छोकर ने कहा कि लोकसभा के 543 सांसदों में से 162 के खिलाफ आपराधिक मामले लंबित हैं, जिनमें 72 सदस्यों के खिलाफ ऐसे गंभीर मामले हैं जिनमें दो या उससे ज्यादा की सजा का प्रावधान है।
हरियाणा के दर्जनभर विधायकों की फूली सांसे
सुप्रीम कोर्ट के निर्णय के मुताबिक दस साल की सजा होने के बावजूद हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री ओमप्रकाश चौटाला व और उनके पुत्र अजय चौटाला के साथ उन्हीं की पार्टी के शमशेर बढशामी की सदस्यता जाने का खतरा तो नहीं है, क्योंकि सुप्रीम कोर्ट ने निर्णय स्पष्ट कर दिया था कि यह निर्णय दस जुलाई से पहले मिली सजा पर लागू नहीं होगा, लेकिन इनके अलावा 90 सदस्यों वाली हरियाणा विधानसभा के एक दर्जन से ज्यादा विधायक ऐसे हैं जिनकी अध्यादेश वापस होने से सांसे फूलने लगी है यानि उनके खिलाफ गंभीर अपराधिक मामले लंबित हैं। हरियाणा के ऐसे विधायकों में गोपाल कांडा, अभय चौटाला, सुखबीर सिंह कटारिया, रामकिशन गुर्जर, जिलेराम शर्मा, ओपी जैन, रामकिशन फौजी, जलेब खान, संपत सिंह, रामनिवास, विनोद भायना, जनरल  सिंह, नरेश कुमार प्रमुख रूप से शामिल हैं।
03Oct-2013

मंगलवार, 1 अक्तूबर 2013

तो रूठे जाटों में पैठ बनाएंगे राजेन्द्र चौधरी!

रालोद के गढ़ पर लगी है समाजवादी पार्टी की नजर
ओ.पी.पाल

पश्चिमी उत्तर प्रदेश में राष्ट्रीय लोकदल के गढ़ को तोड़ने की सियासत तो समाजवादी पार्टी ने पहले ही कर दी थी। मुजफ्फरनगर व आसपास के जिलों में सांप्रदायिक हिंसा के बाद जाट-मुसलमान गठजोड़ के टूट जाने के बाद यूपी सरकार की कथित रूप से एक तरफा कार्यवाही से फैली नफरत का राजनीतिक लाभ लेने के लिए समाजवादी पार्टी ने रालोद प्रमुख अजित सिंह के मुकाबले जाटों में पैठ बनाने का जिम्मा चौधरी अजित सिंह का सिपहसालार और भरोसेमंद रहे राजेंद्र चौधरी को सौप दिया है। राजेंन्द्र चौधरी अजित का साथ छोड़कर सपा सरकार के कबीना मंत्री हैं और सपा सुप्रीमो मुलायम सिंह की खास पसंद और प्रिय भी।
रालोद प्रमुख अजित सिंह के यूपीए सरकार का हिस्सा बनने के बाद सपा प्रमुख मुलायम सिंह यादव ने पश्चिम उत्तर प्रदेश में सियासी बिसात बिछानी शुरू कर दी थी, सपा ने इसके लिए सत्ता का सहारा भी लिया और रालोद के गढ़ में सरकारी योजनाओं के कार्यान्वयन का भी ऐलान किया, चाहे वह बागपत व पानीपत के बीच यमुना पर पुल बनाने अथवा किसानों को लाभांवित करने की योजनाएं ही क्यों न हों। यही नहीं रालोद के गढ़ में सपा ने बागपत जिला पंचायत के अध्यक्ष पद पर भी रालोद का तख्तापलट कर सपा को विराजमान कर दिया। इसी राजनीतिक गतिविधियों में सपा ने बागपत लोकसभा सीट पर चौधरी अजीत सिंह के सामने सोमपाल शास्त्री को टिकट थमा दिया था, लेकिन मुजफ्फरनगर दंगों ने सपा की इस रणनीति पर पानी फेर दिया और सोमपाल शास्त्री ने इस टिकट को ठुकरा दिया। खासकर मुजफ्फरनगर व आसपास की हिंसा के कारण टूटे जाट-मुस्लिम गठजोड़ के बाद मुश्किल में आई सपा ने अपनी रणनीति पलटने में देर नहीं की, क्योंकि जाट और मुसलमान भी सपा से नाराज नजर आने लगा, लेकिन सपा को उम्मीद है कि वह मुसलमानों को मना लेगा, जिसके लिए सपा ने मौलानाओं को लखनऊ बुलाकर इस मुहिम को शुरू कर दिया, लेकिन रालोद द्वारा इन दंगा पीड़ित जाटों की सुध न लिए जाने से नाराज जाटों ने शायद अब नरेंद्र मोदी का मुरीद होकर भाजपा की और रूख करना शुरु कर दिया है। जाटों के बदले रूख को भांपते हुए सपा ने कभी अजित सिंह के सिपहसालार रहे अपने एक मंत्री राजेन्द्र चौधरी को जाटों को अपने पक्ष में करने की जिम्मेदारी सौँप दी है। सूत्रों के अनुसार राजेन्द्र चौधरी को जाटों और किसानों के बीच जाकर पैठ बनाना है, ताकि उन्हें अहसास कराया जा सके कि सपा में ही उनका हित सुरक्षित है। हालांकि यह सियासी दांव इतना आसान नहीं है जितना सपा मानकर चल रही है। शायद यही कारण था कि मुजफ्फरनगर दंगों के बाद जब मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने दंगाग्रस्त क्षेत्रों को दौरा किया था तो राजेन्द्र चौधरी ही उनके सबसे करीबियों में नजर आ रहे थे, जबकि मुजफ्फरनगर के प्रभारी मंत्री होने के बावजूद आजम खां अभी तक इन इलाकों तक नहीं पहुंच पाए हैं।
खिसकती जमीन से बेखबर अजित
पश्चिमी उत्तर प्रदेश का खासकर जाट वोटर रालोद प्रमुख अजित सिंह से कुछ विशेष अपेक्षाएं कर रहा है। इसका कारण है कि पहले मुजफ्फरनगर और फिर मेरठ में उभरी नफरत की आग के बाद जाट वोटर कांग्रेस को वोट देना नहीं चाहता और रालोद प्रमुख अपनी राजनीतिक जमीन खिसकने से बेखबर हैं तो ऐसे में रालोद से बढ़ती जाट समुदाय की दूरी का रूख भाजपा खेमे में उत्साह जगा रही है। हालांकि छोटे चौधरी के साहबजादे कुछ सक्रिय जरूरी हैं,लेकिन इन सबके बीच चल रहे मौजूदा घटनाक्रम पर सपा की तीखी नजरें हैं । वह रालोद की खामोशी का सियासी लाभ हासिल करने में कोई कसर छोड़ने को तैयार नहीं है, भले ही उसे पश्चिमी उत्तर प्रदेश में फैली नफरत की आग को थोड़ा बहुत हवा क्यों न देना पड़े। शायद यही कारण है कि सपा ने जाटों में पैठ बनाने के लिए जाट नेता राजेन्द्र चौधरी के रूप में एक मोहरा तैयार कर लिया है, जो चौधरी अजित सिंह के मुकाबले पश्चिमी उत्तर प्रदेश में सक्रिय हो गये हैं।
01Oct-2013