शुक्रवार, 11 अक्तूबर 2013

भारतीय कारोबारी सौदों से नदारद है रिश्वत नीति!

सर्वेक्षण: सुविधा भुगतान के सख्त खिलाफ हैं भारतीय कंपनियां
ओ.पी.पाल

दुनियाभर में भारतीय कारोबार के समक्ष भ्रष्टाचाचर सबसे प्रमुख चुनौतियों में से एक है, जहां भारतीय कंपनियां सुविधा भुगतान के तो सख्त खिलाफ हैं,लेकिन कारोबारी सौदे हासिल करने में भारतीय कंपनियों में रिश्वत पर कोई नीति नहीं है। ऐसा खुलासा एक वैश्विक इकोनॉमिस्ट इंटेलिजेंस यूनिट द्वारा अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर किये गये एक सर्वेक्षण में सामने आया है।
अंतर्राष्ट्रीय  स्तर पर कारोबारी कंपनियों पर सर्वेक्षण करने वाली वैश्विक जोखिम सलाहकार कंपनी कंट्रोल रिस्क और इकोनॉमिस्ट इंटेलिजेंस यूनिट ने भारतीय कंपनियों के बारे में जो तथ्य उजागर किये हैं उनमें कहा गया है कि अच्छे प्रबंधन वाली कंपनियों के पास ऊंचे कानूनी और नैतिक मानकों का अनुपालन करने के अलावा कोई अन्य विकल्प नहीं होता है। हालांकि कमजोर प्रशासन वाले बाजारों में इन कंपनियों का पाला भी अक्सर ऐसे अधिकारियों से होता है, जो लाइसेंस जारी करने या ठेका देने के बदले रिश्वत की मांग करते हैं। ठीक इसी समय उनका मुकाबला ऐसे प्रतिस्पर्धियों से हो सकता है, जो कारोबारी संहिता के कम जिम्मेदार मानकों का अनुसरण करते हैं। नतीजतन कानूनी सिद्धांतों और वाणिज्यिक व्यवहार में गहरी असंगति देखने को मिलती है। इसी पृष्ठभूमि के मद्देनजर ईआईयू ने एक अंतरराष्ट्रीय सर्वेक्षण कराया। सर्वेक्षण में दुनिया भर की करीब 316 कंपनियों के सलाहकारों और अनुपालन प्रमुखों ने हिस्सा लिया, जिसमें रिश्वत और भ्रष्टाचार के जोखिमों के नजरिये का भी आकलन किया गया। इस सर्वेक्षण रिपोर्ट के मुताबिक जिन 45 भारतीय कंपनियों ने इस सर्वेक्षण में हिस्सा लिया वे अपने अंतरराष्ट्रीय समकक्षों की तरह अंतरराष्ट्रीय भ्रष्टाचार रोधी नियमों का पालन करने की चुनौतियों से निपटने के लिए तैयार नहीं हैं, जबकि देशी नियामकीय ढांचा भी बहुत सख्त है। इस दौरान अभियोजन, जुमार्ना और साख को नुकसान का जोखिम लगातार बढ़ रहा है। भारतीय कंपनियों को सबसे ज्यादा चिंता कामकाज से जुड़े मामलों में रिश्वत देने और थर्ड पार्टी जोखिम की होती है और वे अपने कर्मचारियों को भ्रष्टाचार रोधी प्रशिक्षण देने के मामले में अपने अंतरराष्ट्रीय समकक्षों से काफी पीछे हैं। भारतीय कंपनियों में भ्रष्टाचार रोधी गतिविधियों के लिए कोई नीति निर्धारित या बजट तय नहीं है और ना ही इसकी सूचना देने के लिए कोई प्रक्रिया है।
रोकथाम करना आसान नहीं
कर्मचारियों द्वारा रिश्वत देने पर पाबंदी लगाने के लिए आंतरिक स्तर पर कोई प्रक्रिया नहीं रखने की वजह से कई कंपनियां अपनी साख पर जोखिम बढ़ा रही हैं। सर्वेक्षण में हिस्सा लेने वाली वैश्विक प्रतिभागियों में से करीब 40 फीसदी के यहां भ्रष्टाचार की जानकारी देने के लिए नियम हैं, लेकिन भारतीय प्रतिभागियों के लिए यह आंकड़ा महज 24 फीसदी है।
यहां काफी पिछड़ी भारतीय कंपनियां 
देश में 62 फीसदी भारतीय कंपनियों के यहां कारोबार हासिल करने के लिए रिश्वत देने पर पाबंदी लगाने की कोई औपचारिक नीति नहीं है जबकि अमेरिकी कंपनियों के लिए यह आंकड़ा 23 फीसदी और वैष्विक कंपनियों के लिए 35 फीसदी है। इसी प्रकार 91 फीसदी भारतीय कंपनियों में कर्मचारियों को भ्रष्टाचार रोधी प्रशिक्षण देने की नीति नहीं है, जबकि वैश्विक स्तर पर कंपनियों के लिए यह आंकड़ा 74 फीसदी है और अमेरिकी कंपनियों के लिए 52 फीसदी पाया गया है। सर्वेक्षण के मुताबिक महज 18 फीसदी ही भ्रष्टाचार रोधी कदमों पर खर्च बढ़ाने की योजना बना रही हैं, जबकि इसका वैश्विक स्तर पर औसत 35 फीसदी है और अमेरिकी औसत 48 फीसदी है।
भारतीय कंपनियां अव्वल
इस सर्वेक्षण कि मुताबिक 62 फीसदी भारतीय कंपनियों में रिश्वत देने पर पाबंदी लगाती हैं, जो 53 फीसदी के वैश्विक औसत से कहीं बेहतर है। देश में 73 फीसदी कंपनियों के थर्ड पार्टी समझौतों में प्रावधान है, जो थर्ड पार्टी को कंपनी की ओर से रिश्वत देने पर पाबंदी लगाता है यह 64 फीसदी के वैश्विक औसत से बेहतर है। इसी प्रकार 60 फीसदी के पास भ्रष्टाचार रोकने के लिए निदेशक मंडल स्तर का समर्थन, जो 53 फीसदी के वैश्विक औसत से ज्यादा है। देश में 64 फीसदी कंपनियां संभावित साझेदारों की ईमानदारी पर पूरी जांच कराती हैं, जो 50 फीसदी के वैश्विक औसत से बेहतर आंकी गई है।
11Oct-2013

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